नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

December 21, 2013

December 14, 2013

समलैंगिको के साथ यह भेद-भाव क्यों..?

समलैंगिको के साथ यह भेद-भाव क्यों..?
http://tootifooti.blogspot.in/2013/12/blog-post_12.html



 समलैंगिक भी इस लोकतांत्रिक समाज का एक हिस्सा हैं, जिन्हें अपनी इच्छानुसार जीवन जीने का पूरा अधिकार है। जबतक उनसे इस समाज और देश का कोई नुकसान नहीं होता तबतक उनकी यौनिक पसन्द पर आपत्ति नहीं की जा सकती। समलैंगिकता अपराध तब है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य के साथ अप्राकृतिक ढंग से जबरदस्ती संबंध बनाने का प्रयास करे। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस वर्ग के लोगों के लिए कदाचित उचित नहीं है क्योंकि समलैंगिक प्रवृत्ति, आप इसे गुण कहे या दोष; यह भी प्रकृत प्रदत्त ही है जो हार्मोन पर निर्भर करता है न कि समाज में किन्हीं अराजक तत्वों द्वारा उत्पन्न हुआ है। एक स्त्री का किसी अन्य स्त्री के प्रति आकर्षण या एक पुरुष का किसी अन्य पुरुष के प्रति आकर्षण उतना ही संभव है, जितना एक पुरुष अथवा स्त्री का विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है। प्रकृति में ऐसे मनुष्यों का आविर्भाव भी हो सकता है जिसे ठीक-ठीक स्त्री या पुरुष की श्रेणी में ही न रखा जा सके। प्रकृति प्रदत्त ऐसे विशिष्टियों के लिए किसी को अपराधी ठहरा देना कहाँ तक न्यायसंगत हो सकता है?  सुप्रीम कोर्ट ने अप्राकृतिक यौनाचार और समलैंगिक संबंधों को अपराध करार दिया है, जिसकी सजा में उम्रकैद तक का प्रावधान है।
इस तरह से देखा जाय तो इस यौनवृत्ति को अवैधानिक घोषित कर सजा का प्रावधान गलत है। इसको सामान्य प्राकृतिक लक्षणों से अलग एक आंशिक विकृति मानकर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कर उपचारात्मक प्रक्रिया की बात तो समझ में आती है। लेकिन इसे अपराध की श्रेणी में रखकर देखा जाना उचित नहीं समझा जा सकता है। अगर लोकतंत्र मे सेरोगेसी को स्थान मिल सकता है, लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता मिल सकती है तो समलैंगिको के साथ यह भेद-भाव क्यों है? समलैगिकता को एक दायरे में सीमित कर देना तो उचित हो सकता है ताकि यह इस समाज में एक अपराध बनकर न उभरे; लेकिन इसे स्वयं एक अपराध घोषित कर देना ज्यादती होगी।
(रचना त्रिपाठी)

December 13, 2013

समलैंगिकता को कानूनी मान्यता

समलैंगिकता को कानूनी मान्यता 

http://ghughutibasuti.blogspot.in/2013/12/blog-post.html



एक पढ़ी लिखी नौकरी करती बेहद निपुण स्त्री ने जो पारम्परिक अरैन्ज्ड विवाह में विश्वास करती थी, जिसने एक से एक अच्छे अन्तर्जातीय रिश्ते ठुकराकर अपने माता पिता के द्वारा चुने सुन्दर, सुशील, अच्छे घर के सजातीय पुरुष से विवाह किया।

वह पहले ही दिन पति के मित्र ( प्रेमी) का अपने ससुराल में पूरा दखल, घर में महत्व, पति पर उसका इतना प्रभाव कि वह जो कहे वह पति मान ले देख दंग रह गई। पति उसके साथ मायके जाने को मना कर दे, किसी रस्म को निभाने से मना कर दे, उसके साथ कमरे में रहने को ही मना कर दे तो हर मर्ज का एक इलाज वह मित्र था। सास ससुर उस मित्र को गुहार लगाते और वह कहे तो पति सर के बल खड़े होने को भी तैयार हो जाता।

खैर बाद में पता चला कि जिसकी वह पत्नी है उसका भी पति है, और पति का पति वह मित्र है। उसका पति तो खैर नाम का ही था। इस असम्भव से रिश्ते को भी पति में बदलाव का अवसर दे निभाने की कोशिश जब पूरी तरह से असफल हो गई तो स्त्री ने तलाक दे दिया। किन्तु वह स्त्री उस पूर्व पति को कभी कोसती नहीं थी। उसका कहना था कि वह भी समाज का शिकार एक पीड़ित था। उसे क्या दोष देना। उससे तो सहानुभूति होनी चाहिए।

यदि वह स्त्री उस समलैंगिक के साथ सहानुभूति रख सकती थी तो हम क्यों नहीं? यदि हम स्वयं को उनके स्थान पर रखकर देखें तो शायद हम इतने कठोर नहीं होंगे। शेष समाज से अलग होना, अचानक अपने बारे में यह जानना कि अन्य मित्रों की तरह वह विपरीत लिंगियों की बजाए अपने ही लिंग वालों की तरफ आकर्षित है। बार बार कोशिश करना कि अन्य मित्रों या सहेलियों की तरह व्यवहार करें, विपरीत लिंगियों से दोस्ती व लगाव रखने की असफल कोशिश करना, किन्तु उनमें कोई आकर्षण न पाना। जिनसे आकर्षित हो उनसे कह नहीं सकना, अपराध भाव, हीन भावना से किशोरावस्था से ही ग्रसित होना। यह सब कितना कठिन होता होगा। अपने आकर्षण, अपने सत्य को परिवार से छिपाकर रखना, झूठ ही विपरीत लिंगियों में नकली रुचि दिखाना यह सब क्या कम सजा है उनके लिए जो समाज और हम उन्हें और सजा देना चाहें?

 हममें कुछ तो मानवीय संवेदनाएँ होनी ही चाहिएँ।

घिनौने बलात्कार के लिए कम सजा और सहमति से बने समलैंगिक सम्बन्धों के लिए उम्र कैद क्या कहीं से भी उचित है?

यदि उस पति का परिवार अपने बेटे का सत्य सामने होने पर भी उसको देखने से इनकार न करता, उसे विवाह के लिए बाध्य न करता तो उस स्त्री के जीवन में इतनी उथल पुथुल, इतना दुख, एक नकली विवाह को करने में और फिर तोड़ने में शक्ति, धन, समय की बरबादी न होती, विवाह के लिए जो मन में रोमान्टिक कल्पनाएँ होती हैं वे चूर चूर न होतीं।

मुझे तो माता पिता, व समाज उस स्त्री के कष्ट के लिए उस कमजोर पुरुष से अधिक उत्तरदायी लगते हैं।
यदि आपको समलैंगिकों से सहानुभूति नहीं है तो भी उनसे धोखे, अज्ञान में विवाह करने वाले अभागों को इस दुर्भाग्य से बचाने के लिए ही सही हमें, आपको, समाज को समलैंगिकों को अपनी तरह, अपने जैसों के साथ जीने का अधिकार देना होगा।

घुघूती बासूती

December 03, 2013

Better Safe Than Sorry अब भी चेत जाए

बैटर सेफ देन सॉरी

काश तरुण तेजपाल , आसाराम इत्यादि इस बात को समझ सकते तो वो आज उस जगह ना होते जहां हैं

आज भी लोग यही सोचते हैं ही नारी का शोषण करना उनका अधिकार हैं और नारी उनकी सम्पत्ति हैं नारी का शरीर उनकी काम वासना कि पूर्ति का साधन मात्र हैं।

तरुण तेजपाल अपनी एक ईमेल में उस पत्रकार को जिसके रेप के वो दोषी हैं लिखते हैं " अगर तुम चाहो तो मै तुम्हारे बॉय फ्रेंड से माफ़ी मांग सकता हूँ "

पत्रकार का जवाब था " क्या मै अपने बॉय फ्रेंड कि सम्पत्ति हूँ ? "

समय बदल रहा हैं और इस ब्लॉग पर इस बात को इंगित कर के मैने बहुत सी पोस्ट दी हैं और उन सब के लिये मुझे पुरुष विरोधी माना गया हैं जबकि उन पोस्ट में बार बार यही कहा गया हैं कि पुरुष को सावधान होने कि जरुरत हैं।

अब भी चेत जाए

ना को ना ही समझे

December 02, 2013

नौकरी छोड़ दो दूसरी जगह भी वही माहोल हो तब क्या करो

क्यूँ नौकरी महिला को क्यूँ छोड़नी चाहिए जबकि गलती boss  कि थी।  आप को विशाखा गाइड लाइन्स  का पता नहीं हैं  शायद ज़रा कानून और संविधान को ध्यान में रख कर पोस्ट लिखे
नौकरी छोड़ दो दूसरी जगह भी वही माहोल हो तब क्या करो
उस पत्रकार ने जो किया सही किया , उसने उस जगह को साफ़ करने कि कोशिश कि हैं जहां वो नौकरी करती थी। 

http://www.yuvarocks.com/2013/12/letter-to-tarun-tejpal-tehlaka-media-social.html?showComment=1385964974399#c167877526415897697

November 30, 2013

कितनी बदनामी होती हैं एक परिवार कि जब एक पुरुष एक अश्लील हरकत करता हैं क्यूँ नहीं उस परिवार को कानूनन उस पुरुष को परिवार से बेदखल करने का अधिकार हो और हर्जाना लेने का भी

" ऐसा प्रत्येक पुरुष जिसमे लेशमात्र भी कामाग्नि मौजूद है असावधान स्त्री के लिए खतरनाक है। "



आइये सावधान रहे अपने पिता से http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2013-11-28/mumbai/44546220_1_malwani-eight-year-old-daughter-survivor
आइये सावधान रहे अपने भाई से http://kayceeweezy.wordpress.com/2012/02/15/sisters-kill-own-brother-for-sexual-harassment/
आइये सावधान रहे अपने पति से http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2013-09-07/bhopal/41854188_1_husband-habibganj-khargone

इन रिश्तो के बाद सावधान रहे अपने गुरु से , अपने बॉस से। http://mangopeople-anshu.blogspot.com/2013/11/mangopeople_27.html?showComment=1385789655195#c2859946066595373664


आप सीधा सीधा ये कह रहे हैं कि पुरुष के बायोलॉजिकल डिसऑर्डर के लिये सावधान स्त्री रहे 

क्यूँ सारे समाज में स्त्री ही सावधान क्यूँ रहे ? पुरुष क्यूँ ना कम से अब सावधान हो जाए 
कि अब आज कि नारी अपनी चिंता ना करके उस पुरुष को बेनाकाब करेगी और इतना बेनकाब करेगी वो समाज में मुँह  नहीं दिखा सकेगा।
 

जिस दिन स्त्री ने ये सोच लिया कि "उसको अब फर्क नहीं पड़ता " जो करेगा वो ही दोषी हैं और उसको निर्वस्त्र करके समाज का हित स्त्री कर रही हैं उस दिन समाज बदेलगा। 

बहुत सदियाँ स्त्री को निर्वस्त्र किया जाता रहा हैं और माना जाता रहा कि शर्म भी उसी को आनी चाहिए थी क्युकी वो सावधान नहीं थी 


बस जिस दिन उस पुरुष " जो किसी भी महिला के साथ रेप , मोलेस्ट या अनय कोई भी दुष्कर्म करता हैं " सबसे निकट महिला सम्बन्धी { माँ , बहिन , पत्नी , कुलीग }   उसका बहिष्कार कर देगी और उस पर डिफेमेशन{ मानहानि } करके अपनी बदनामी का हिसाब उस से मांगेगी  उस दिन सब बदल जाएगा। 

 अभी ये जो बीवी और माँ और अन्य के पीछे छुप कर दुष्कर्म करके पुरुष अपने को देवता सिद्ध करता हैं वो ख़तम होगा और वो दिन अब ज्यादा दूर नहीं हैं 


क्यूँ नहीं एक माँ बीवी या बहिन को ये अधिकार होना चाहिये कि वो अपने पुरुष सम्बन्धी के कारण  बदनामी के लिये डिफेमेशन का केस कर सके और हर्जाना प्राप्त कर सके 

कितनी जिल्लत सहनी पड़ती हैं महिला सम्बन्धियों जिन्हे समाज में एक गुनाह गार के साथ रहना पड़ता हैं 

आज लोग सोमा चौधरी पर थूक रहे हैं  अगर सोमा चौधरी के पास ये अधिकार होता कि वो तरुण तेजपाल के कारण हुई अपनी बदनामी का हिसाब हर्जाने के रूप में तरुण तेज पाल  से ले सकती या तरुण तेजपाल कि बेटी टीआ अपनी बदनामी का हिसाब हर्जाने के रूप में अपने पिता से कानून ले सकती तो आज उनको अपना परिवार बचाने के अपराध का दोषी ना बनना पड़ता।  

कितनी बदनामी होती हैं एक परिवार कि जब एक पुरुष एक अश्लील हरकत करता हैं क्यूँ नहीं उस परिवार को कानूनन उस पुरुष को परिवार से बेदखल करने का अधिकार हो और हर्जाना लेने का भी    
अपनी राय दे 

 If A man is involved in a crime of rape , molestation , sexual harassment the woman of his family , mother , daughter and sister face the wrath of society for standing with him . The same society conditions the woman to look after the family . 
Why should these woman be given a legal right to disown the culprit { man } and put up a defamation case against them . 
Why should they not be entitled legally to claim monetary compensation from such man for loss of their repute and prestige in society .
How much social stigma a wife faces when her husband rapes a woman , why should she not be given a legal right for monetary compensation . 
Once such legal right is given to them at least they will have the guts to move ahead from a family that in no way is a family .


November 28, 2013

हम तो उनकी बात सुन कर डर ही गए , क्या कर सकते हैं वो देवता जो हैं , भारतीये नारी कि पूजा करते हैं

चलिये कुछ और बात करते हैं
क्या तरुण तेजपाल कि बात करना जरुरी हैं
ऐसा इन्होने किया भी क्या हैं
एक फ़्लर्ट कर रहा था
अब इसमे शोषण जैसा , रेप जैसा क्या हुआ
सहज सहमति  भी कोई चीज़ हैं
और ऐसा हुआ भी क्या था

और फिर जब माफ़ी मांग ली गयी तो बात तो अपने आप ही ख़तम हो गयी और भारतीये समाज में तो नारी को देवी मानते हैं और कहा जाता हैं जहां नारी कि पूजा होती हैं वहाँ देवता बसते हैं।

यानि इस तरह तो भारत में रहने वाला हर पुरुष देवता हुआ क्युकी नारी को देवी का दर्ज दे कर देवता वो बन गया

तो देवता गलती कैसे कर सकता हैं

वो तो किसी भी देवी के साथ कुछ भी कर सकता हैं क्युकी ऐसा कुछ भी करके वो उसका "सम्मान " बढ़ाता हैं।
तो चलिये इस प्रकरण में कुछ नहीं हैं बेकार हम  सब समय व्यर्थ नष्ट कर रहे हैं ये तो सब काम काजी महिला के चोचले हैं और इन चोचलों के चलते एक "समाजवादी देवता" ने कल ही कहा हैं महिला को अब नौकरी मिलना मुश्किल हैं http://ibnlive.in.com/news/due-to-tejpal-case-companies-scared-of-hiring-women-naresh-agarwal/436417-37-64.html

हम तो उनकी बात सुन कर डर ही गए , क्या कर सकते हैं वो देवता जो हैं , भारतीये नारी कि पूजा करते हैं

स्त्री का एक स्थान हैं और ये उसको बार बार कोई ना कोई देवता बता ही देता हैं

वैसे मुझे कोई ये बता सकता है कानून कि देवी क्यूँ हैं कानून का कोई अंधा देवता क्यूँ नहीं हैं यहाँ इतना जेंडर बायस क्यूँ हैं पुरुष के खिलाफ ?? :)


November 25, 2013

अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस (25 Nov.) !

                          सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि महिला हिंसा आज इतने विकराल रूप में सामने आ रही है कि  विश्व  पटल पर लाने वाली समस्या बन  खड़ी हो चुकी है . बड़े बड़े प्रगतिशील देश , आधुनिकता और समानता  हुंकार भरने वाले देश और इसी के लिए आगे बढ़कर भाषण देने वाले बड़े बड़े लोग इस काम को करने में पीछे नहीं रहते हैं।
                         डॉक्टर , वकील , जज , नेता, साधू-संत और मंत्री तक महिला हिंसा में लिप्त पाये जा रहे हैं।  ऐसा तब हो रहा है जब कि हमारे जैसे देश की नारी चुप रहना अधिक पसंद करती है कि व्यर्थ में उसकी ही बदनामी होगी।  वह चुपचाप सब कुछ सहती रहती है।  ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ गाँव , गरीब और अशिक्षित महिलाओं के बीच होने वाली भावना है बल्कि ये बड़े बड़े परिवारों में , अच्छा खासा कमाने वाली , समाज में अपना एक अलग रुतबा रखने वाली , उच्च  शिक्षित महिलायों के साथ भी हो रहा है . वह अपने संस्कारों के चलते , अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए और फिर पति की प्रतिष्ठा को ठेस लगेगी - ये सब  सोच कर सारी  हिंसा सहन करती रहती है।
                        महिला  हिंसा से मतलब सिर्फ शारीरिक हिंसा नहीं  है बल्कि बल्कि इसके अंतर्गत आती कई स्थितियां और जिनको आज भी नारी सह रही है क्योंकि हमारा समाज भी इस हिंसा को सहते रहने वाली महिला को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखता है और इसमें पुरुषों से अधिक महिलाएं भी शामिल होती है।  ये जरूरी नहीं कि महिला हिंसा सिर्फ ससुराल में , पति से या  कार्यक्षेत्र में ही सह रही हो।  वह सिर्फ महिला होने के भी रूप में भुगत सकती है।
                       महिला हिंसा  अंतर्गत किसी भी प्रकार की हिंसा या प्रताड़ना को शामिल किया गया है फिर चाहे  वह शारीरिक , मानसिक , भावात्मक या फिर आर्थिक किसी भी रूप में  क्यों न हो ? उसे महिला हिंसा ही कहा जाएगा। हमारे समाज की जो भावनाएं महिलाओं के प्रति है , वे कितनी ही प्रगतिशील होने के दावे का ढिंढोरा क्यों न पीटें , वह इसमें सबसे पहले कारक बनती हैं। हमारी सामाजिक व्यवस्था ( पता नहीं कौन इसके जिम्मेदार  है ?) प्रताड़ित , परित्यक्त , तलाकशुदा , संतानहीन या फिर सिर्फ लड़कियों की माँ के प्रति अपना एक अलग रुख रखता है।  इस काम के लिए जिम्मेदार भी वही है और फिर महिला आयोग , महिला संगठन के प्रति लोगों के विचार सुने हैं - वे इनको महिलाओं को भड़काने वाला ,  घर तोड़ने वाला और समाज विरोधी करार देते हैं।  क्योंकि औरत की अपनी कोई पहचान नहीं होती - वह तो जिस कुलबहू बनती है उसी कीबन जाती है उसी के नाम से जानी जाती है।  फिर उसका अपना स्वतन्त्र अस्तित्व कहाँ है ?
                        हम विश्व की नहीं सिर्फ भारत की बात करें तो आज भी ३५ प्रतिशत महिलायें ( इसमें बचपन से लेकर बात की जा रही है ) अपने माता-पिता के घर में भी हिंसा का शिकार होती हैं।  एक तो जन्म से ही उनको परिवार में दोयम दर्जे का स्थान देना अभी भी ८० प्रतिशत परिवारों की परंपरा में शामिल है। लड़कों की तुलना में उनकी जो उपेक्षा होती है वह उनको भावात्मक रूप से आहात करती है।  बड़े होने पर भी शिक्षा की दृष्टि से उनकी शिक्षा पर कम खर्च करने की सोची जाती है।  घर के अंदर के कामों में साडी जिम्मेदारी उनके सिर पर डाल  दी जाती है। उनके जन्म से ही परिवार वाले ही नहीं बल्कि  दूसरे लोग भी पराया धन , परायी अमानत कह कर परिचय करते हैं।
                    इस महिला हिंसा को सहने के लिए मजबूर क्यों है आज की नारी क्योंकि हमारी सामाजिक व्यवस्था और उसकी आर्थिक परतंत्रता या फिर अगर वह कमाती भी है तो जरूरी नहीं कि वह अपनी कमाई को अपने मन से खर्च कर ले।  ऐसा नहीं है कि आत्मनिर्भर महिलायें को प्रताड़ित नहीं किया जाता।  अभी तक तो एक सोच थी कि ज्यादातर घरों में काम करने वाली महिलाओं के पति ही उनके पैसे छीन कर उनको प्रताड़ित करते हैं लेकिन ऐसा नहीं है -  नौकरी वाली लड़की से शादी करना पसंद करते हैं क्योंकि उनके घर में दोहरी कमाई आएगी और एक कामधेनु उन्हें मिल रही होती है लेकिन कुछ घरों में तो सिर्फ कामधेनु ही समझी जाती है।  उसकी कमाई पर पति और सास ससुर का हक़ होता है।
                            एक अध्ययन के अनुसार ५० प्रतिशत महिलायें पति के द्वारा मार खा चुकी हैं।  रोज न सही लेकिन उनके मन का काम न होने पर हाथ उठाने में गुरेज नहीं करते और इसको वे सामान्य बात मानती है फिर इस हिंसा का तो कोई उपाय नहीं नहीं है। ५० प्रतिशत महिलायें और पुरुष इस बात को बुरा नहीं समझते हैं।
                           ये सब बातें तो तब की हैं जब कि वह एक परिवार में उसके सदस्य होने के नाते सह रही होती है और जी रही होती है।  ऐसा नहीं है कि उसकी आत्मा इस हिंसा के बाद रोती नहीं है लेकिन कभी बच्चों का मुंह देख कर , कभी माता पिता की इज्जत का हवाला देने के बाद और कभी छोटे भाई बहनों के भविष्य को देख कर आपने आंसुओं के गले के नीचे उतार कर सब कुछ सह लेती हैं।
                         इसके अलावा भी परित्यक्ता होने पर वह जिस हिंसा का शिकार होती है उसका जिम्मेदार भी हमारा समाज अधिक जिम्मेदार है।  उसके दर्द को समझने के स्थान पर उस पर परोक्ष रूप से लांछन लगाये जाते हैं क्योंकि पुरुष हर हाल में सही समझा जाता है।  इस का उन्मूलन कैसे हो सकेगा ? इस पर विचार भी होना चाहिए।
                        संतानहीन महिला भी समाज की दृष्टि में पूर्णरूप से दोषी समझी जाती है बगैर से जाने की इसका कारण क्या है ? ससुराल में उसका विकल्प लाने की बात भी सोची जाने  लगती है .  वंश तो उसको ही बढ़ाना होगा।  इस कारण के उन्मूलन की बात सोचने की पहल होनी चाहिए।  चाहे गोद लेकर या फिर और आधुनिक विकल्प भी सोचे जा सकते हैं और उस मानसिक प्रताड़ना से बचाया जा सकता है।
                         सिर्फ लड़कियों की माँ और लडके की माँ को अलग अलग तरीके से व्यवहृत होती है . इसके लिए भी परिवार वाले उनके प्रति विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित करने के अवसर खोजते रहते हैं और कभी कभी तो लड़की होने पर घर से भी निकाल देते है।
                        घर से लेकर बाहर तक किसी भी जगह वह यौन शोषण का शिकार तो बनती ही रही है और जैसे जैसे हमारे समाज ने प्रगति की है वैसे वैसे उसकी असुरक्षा जा रही है।  वह सिर्फ एक सामान समझी जाती है।  घर में पुरुष सदस्यों में अब कोई सीमा रेखा नहीं रह गयी है , पास पड़ोस में चाचा और भाई कहे जाने वाले लोग , स्कूल में सहपाठी ,   कार्य स्थल पर बॉस , सहकर्मी , इसके बाद उसके लिए संसार की कोई भी जगह महफूज़ नहीं है।  रोज रोज घटने वाली घटनाओं ने एक आतक का भाव उसके मन में भर दिया है।  अब पुरुष वर्ग इतना उदंड और वहशी हो चूका है कि उसके न उम्र का लिहाज रहा है और न ही किसी का खौफ बचा है।  जैसे जैसे क़ानून सख्त होने का प्रयास कर रहा है वैसे वैसे ही अपराधों की संख्या बढ़ रही है।  इसके पीछे एक कारन यह भी है कि अब निर्भीक होकर महिलायें अपने प्रति होने वाले हिंसा के मामलों को सामने लाने लगी हैं और इससे जो बेनकाब हो रहे हैं वे दुनियां में बहुत प्रतिष्ठित और सम्मानीय व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं .
                             आज के दिन हैम अपने नारी वर्ग से जो इस बात के प्रति सजग है , न हिंसा को सहन करें और न औरों के सहते हुए देखें।  जरूरत बगावत की ही नहीं है बल्कि शांत और सौम्य तरीके से उससे जुड़े हुए लोगों को समझने की भी है।  अगर लोगों की सोच में सकारात्मक बदलाव आएगा तो वास्तव में महिला हिंसा उन्मूलन की दिशा में एक सफल कदम कहा जाएगा।

November 22, 2013

जिस लड़की का शोषण हुआ उसके पिता के मित्र रहे थे जिन्होने शोषण किया , उनकी बेटी कि सबसे निकटम दोस्त थी ये पत्रकार।

Non reporting of Sexual Harassment for ages have led man to believe that woman are sex slaves born to satisfy the sexual needs of man when and where ever the need arose, with and whom so ever this need aroseThis all starts at family level and keeps going on as none is willing to report it at the family . The ladies of the family always are more protective of the man folk and feel all such things bring blemish on the family repute { even in this case it should have been the daughter to have got her dad arrested immediately }Also its a common practice the higher the man rises the lower he falls , take into account all the cases that happen in work place whether in india or usa or elsewhere the male boss thinks its his RIGHT AS A BOSS to command respect from woman employee , and commanding respect means satisfaction of their sexual needs in which ever way they want .Also woman needs to always understand that when ever some helps them going out of the way there is a ulterior motive to exploit as soon the situation arises not just the situation but the child/ girl / woman , the man feels the person is so obliged that will never report BUTthings have changed , woman have evolved and this is the biggest ERROR of judgement the man make , they are not willing to accept this evolution .
  1.  http://indianhomemaker.wordpress.com/2013/11/22/how-do-you-associate-a-sexual-assault-with-someone-who-you-thought-stood-up-for-justice/#comment-222442
  2. http://www.saharasamay.com/nation-news/676543147/tarun-tejpal-sexual-assault-case-read-victim-s-complete-e-mail-t.html
  3. http://indianhomemaker.wordpress.com/2013/11/22/how-do-you-associate-a-sexual-assault-with-someone-who-you-thought-stood-up-for-justice/

जिस लड़की का शोषण हुआ उसके पिता के मित्र रहे थे जिन्होने शोषण किया , उनकी बेटी कि सबसे निकटम दोस्त थी ये पत्रकार। 


November 21, 2013

मिलिये निशा मधुलिका जी से ,the indian woman has arrived जैसे शब्द इनके लिये कह कर हम अपने लिखे हुए शब्दो का सम्मान करते हैं।


Helping Women Get Online Story: A retired lady, who didn't know what to do with her time started blogging and posting videos on cooking and is a successful YouTube Chef today with a channel that has over 85,000 subscribers an more than 50,000 views a day. Help more women benefit from the Internet, help them discover hwgo.com. Helping Women Get Online, A Google initiative.


मिलिये निशा मधुलिका जी से ,the indian woman has arrived जैसे शब्द इनके लिये  कह कर हम अपने लिखे हुए शब्दो का सम्मान करते हैं।
ब्लॉग वाणी आज और भी मुखर  हैं

अपनी इस पोस्ट http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2010/11/blog-post_14.html पर मैने गृहणी और कंप्यूटर क्रांति कि बात कि थी आज मुझे ये विडियो देख कर अपनी लिखी बात फिर से याद हो आयी

निशा जी को मेरा सलाम और मैथिली जी और सिरिल जी जैसा ब्लॉग परिवार अगर हर घर में हो तो ऐसी ना जाने कितनी कहानिया रोज मुझे पोस्ट करने को मिले

खाना बनाना निकृष्ट काम नहीं हैं और स्त्री खाना बना कर परतंत्र नहीं स्वतंत्र  ही हैं क्युकी हर वो काम जिसको करने में हमें अच्छा लगे और जिसको करने कि क्षमता हम में हो वो काम जरुर करना ही चाहिये।  जब दाल रोटी चावल ब्लॉग बनाया था तब भी मन में  यही बात थी

"दाल रोटी चावल सदियों से नारी ने इसे पका पका कर राज्य किया हैं , दिलो पर , घरो पर" http://daalrotichaawal.blogspot.in/2008/04/blog-post.html

November 20, 2013

सावधान हो जाइये !

        सावधान हो जाइये बगैर आपकी जानकारी के और आपके डिटेल्स कहीं  से भी प्राप्त करके कोई भी आपके नाम से बैंक में अकाउंट खोल सकता है।  मनचाहा पता और मनचाही जगह पर और  फिर उसके आधार पर क्रेडिट कार्ड भी ले सकता है और  लाखों की खरीदारी भी कर सकता है। पता तब चलेगा   चलेगा जब बैंक के रिकवरी नोटिस आपके पास आएगा।  
                                     कल मेरे पास एक फ़ोन दिल्ली से आया कि आपकी बेटी प्रज्ञा श्रीवास्तव के ऊपर स्टेट बैंक का दो लाख सत्तर हजार  लोन है और मैं तीस हजारी कोर्ट से रोहित त्यागी बोल रहा हूँ।  रिकवेरी के लिए उनका वारंट निकला हुआ है।  मैंने डिटेल जानना चाहा तो उसके द्वारा दिया गया वर्किंग प्लेस और रेजिडेंस एड्रेस गलत था।  मैंने कहा कि  बेटी ने कभी यहाँ पर जॉब नहीं की और न ही वह इस एड्रेस पर रही है।  फिर उसने उसका पेन कार्ड नंबर और नॉमिनी में माँ का नाम रेखा देवी (जबकि मैं अपना नाम सिर्फ रेखा श्रीवास्तव ही प्रयोग करती हूँ ) और पिता का नाम आदित्य श्रीवास्तव बताया।  फिर बताया कि उसने इतने रुपये की खरीदारी की है। 
                                     मैंने उसको बताया कि मेरी बेटी यहाँ पर नहीं रहती है वह पुर्तगाल में है और न ही उसने कोई खरीदारी की है।  जो डेट्स खरीदारी की थी उस समय वह इंडिया में भी नहीं थी।  फिर भी वह बेटी का कांटेक्ट नम्बर मांग रहा था जो मैंने नहीं दिया।  लेकिन एक प्रश्न मेरे सामने छोड़ गया कि क्या ऐसे भी सम्भव है।  इस को किस क्राइम में रखा जा सकता है।  लेकिन हो बहुत कुछ सकता है इसलिए आप लोग भी सावधान रहिये।  पेन कार्ड नं हम कई जगह इस्तेमाल करते हैं और  माता पिता के नाम तो हर जगह पर इस्तेमाल होते हैं।  फ़ोटो आपकी नेट से किसी भी तरीके से ली जा सकती है।  इससे कैसे बचा जा सकता है ? 
ठीक वैसे ही जैसे अकाउंट हैक करके रुपये निकले जा सकते हैं वैसे ही नकली अकाउंट खोल कर कुछ भी किया जा सकता है।

November 08, 2013

जन हित मे जारी

जन हित मे जारी

जो लोग गूगल कि सुविधाये इस्तमाल कर रहे हैं वो इस  अवशय पढ़े
http://www.google.com/intl/en/policies/terms/changes/
गूगल इन अपनी पॉलिसी में बदलाव किये हैं
आप अपने प्रोफाइल में भी अगर सही बदलाव कर ले तो आप का प्रोफाइल काफी सुरक्षित हो जायेगा

November 07, 2013

That Day After Everyday- A Short Film


I saw a short movie today: 'That Day After Everyday', and have not been able to shake it off my mind.
 
Its a movie about ordinary women like us who are taught to ignore lewd remarks / advances made by 'Sadak Chhaps' who are no match to us in brains or talent or hard work that we put in every day. And ignore them is what we do till we are pushed over the edge.
 
I am posting it for the readers of Nari Blog since I thought you would appreciate this one.
 
Its a movie by Anurag Kashyap...I just want you to watch it!



November 05, 2013

"जेंडर बायस "

हिंदी फिल्मो में और अब हिंदी टी वी सीरियल मे जहां भी "गरीब" घर दिखाए जाते हैं यानि एक कमरे में जहां परिवार रहते हैं वहाँ हमेशा एक बिस्तर होता है कभी तखत , कभी चारपाई तो कभी मंझी।

October 24, 2013

"आस्था " और " विश्वास " से बड़ा कुछ नहीं होता


@यह मान  बैठना कि व्रत /उपवास करने वाली सभी विवाहित स्त्रियाँ बेड़ियों में जकड़ी है , एकतरफा  सोच है , पूर्वाग्रह है।  

मेरा एक नियम हैं की किसी भी तीज त्यौहार पर चाहे वो किसी भी धर्म या जेंडर से जुड़ा  ना हो , जिस दिन वो त्यौहार होता हैं उस दिन मै उस पर कभी कोई बहस नहीं करती क्युकी "आस्था " और " विश्वास " से बड़ा कुछ नहीं होता।
आप की इस पोस्ट पर कमेन्ट इस लिये दे रही हूँ क्युकी कई बार कोई भी जो किसी बात पर बात करता हैं ख़ास कर अगर वो धर्म , मान्यता इत्यादि से जुड़ी होती हैं तो लोग उसको प्रगति शील , फेमिनिस्ट का तमगा दे ही देते हैं ऐसा क्यूँ हैं ?? पूर्वाग्रह तो ये भी हैं।

 गीता में एक जगह कहा गया हैं अँधा अनुकरण धर्म नहीं अधर्म हैं धर्म मान्यता में नहीं होता हैं मान्यता धर्म को प्रचारित करने के लिये बनती हैं

आप ने सही कहा हैं की साथ रहने के लिये तालमेल बैठाना /सामंजस्य /समझौता जरुरी हैं लेकिन किसी को महज कुछ ऐसा करना हो जो करना उसका अंतर्मन नहीं चाहता तो वो उस मान्यता का अंधा अनुकरण हैं , या वो एक डर हैं की समाज क्या कहेगा
समाज हम से हैं हम समाज से नहीं हैं , जीव हैं तो समाज की जरुरत हैं जीव ही नहीं होगा तो समाज भी नहीं होगा

करवा चौथ स्त्री की सहनशीलता का प्रमाण हैं उसके पति प्रेम का नहीं क्यूँ बहुत सी ऐसी सुहागिने भी हैं जो इस व्रत को केवल और केवल इस लिये रखती हैं क्युकी ना रख कर उनको तमाम सवाल के जवाब देने पड़ते हैं , और कुछ तो पति को गाली दे दे कर नहीं थकती पर वर्त भी रखती हैं

मेरे लिये जो रखती हैं या जो नहीं रखती हैं ये उनका पर्सनल मामला हैं , लेकिन ये परम्परा पुरुष को स्त्री से ऊपर के स्थान पर स्थापित करती हैं , स्त्री में एक डर बिठाती हैं की अगर पति नहीं होगा तो उसको सुहाग सिंगार नहीं मिलेगा

करवा चौथ विवाहित स्त्री के लिये नहीं होता हैं केवल सुहागिन के लिये होता हैं इस लिये इसका महत्व स्त्री से नहीं जुड़ा हैं अपितु उसके सुहागिन होने से जुड़ा हैं

बहुत सी  विधवा स्त्री के लिये ये दिन एक दुःख भरा रहता हैं क्युकी उस दिन उसको निरंतर ये एहसास होता हैं की वो विधवा हैं

@विवाह या व्यवहार प्रेम /पसंद से हो या प्रायोजित !!


विवाह करना या न करना जब तक व्यक्तिगत निर्णय ना हो कर , पारिवारिक निर्णय , सामाजिक निर्णय , सही समय पर सही काम , इत्यादि से जुड़ा मुद्दा रहेगा तब तक विवाह का वर्गीकरण , प्रेम , प्रायोजित , इन्टर कास्ट , इन्टर रेलिजन होता रहेगा। 

October 20, 2013

क्या हम वाकई उनकी मद्दत करते हैं ?? या केवल अपने अहम की तुष्टि और एक अच्छा बिजनेस

 ओपन मार्केट में जिस सामान की कीमत महज १५ रूपए थी उसको घर में काम करने वालो को  ज्यादा दाम में बेच दिया और इसको दान कहा ???ये तो महज बिज़नस हैं और कुछ नहीं बस फर्क ये हैं की खरीदार घर में ही काम करता हैं गीता में बताये किसी भी दान में ये नहीं आता हैं और पात्र सुपात्र इत्यादि की बात करना ही यहाँ बेकार हैं सीधा सीधा फायदा का सौदा हैं उनका जिनका सामान हैं पैसा भी मिला और अहम की तुष्टि भी

आप ऊपर का लिंक क्लिक करके उस पोस्ट पर जा सकते हैं जहां ये कमेन्ट मैने दिया हैं

मुझे सच में जानना हैं की अपने घर की पुरानी वस्तु अपने घर में काम करने वालो को देना या उनको इन वस्तु को बेचना क्या दान की परिभाषा में आता हैं

क्या हम वाकई उनकी मद्दत करते हैं ?? या केवल अपने अहम की तुष्टि और एक अच्छा बिजनेस


September 29, 2013

जानकारी चाहिये

कल के बी सी में एक प्रश्न था जीतो जेक पॉट राउंड में
हिंदी में चर्च को क्या कहते हैं और आप्शन में " गिरिजा घर " दिया हुआ था

September 16, 2013

"I reject the notion that my virtue is located in my vagina" -- Sohaila Abdulali

"I reject the notion that my virtue is located in my vagina" -- Sohaila Abdulali link
अगर आप को ये पढने में नहीं आ रहा हैं तो ऊपर दिये लिंक मे आप को इसका पीडीऍफ़ लिंक दिख जाएगा उसको डाउन लोड करके आप पढ़ सकते हैं।  मेरा सैलूट  सोहईला को।  

September 15, 2013

क्यूँ नहीं लड़की को ये अधिकार हैं की वो देख सके की और पसंद और ना पसंद कर सके अपने भावी घर को।

जब भी हमारे समाज में किसी के विवाह की बात चीत होती हैं तो आज भी "लड़की" के घर आ कर लड़की और  को "लड़के " वाले देखते और पसंद करते हैं। लड़के को भी लड़की के घर आ कर उस से बातचीत करवा कर दोनों की पसंद ना पसंद को आंका जाता हैं।  ये परम्परा सदियों से चल रही क्युकी लड़की लो "पराया धन " कहा जाता हैं।  आज कल तो विदेश में बसे लड़को से भी शादी होती हैं और परम्परा यही चलती हैं।
अभी हमारे एक मित्र जो अमेरिका में रहते हैं लेकिन हैं मथुरा के आस पास के उनका विवाह भी हुआ , मित्र ने अपनी पत्नी का वीसा भी भेजा लेकिन मित्र के माँ पिता चाहते थे लड़की जो दिल्ली के किसी ऍम अन सी में कार्य रत हैं वो पहले कुछ दिन मथुरा रहे और फिर अमेरिका जाए।  लड़की ने अपना दिया त्याग पत्र वापस कर दिया और अपने पति से कह दिया की वो मथुरा अकेली नहीं रह सकती वो , जब रहेगा वो भी रहेगी पर अन्यथा नहीं और इस लिये वो नौकरी नहीं छोड़ेगी और अमेरिका का वीसा उसे नहीं चाहिये।  ६ महीने की लड़ाई , मान मुन्नवल के बाद लडके ने दुबारा वीसा भेजा और लड़की अमरीका गयी बिना माथुर गए।  हमारे मित्र वुमन एम्पावरमेंट के समर्थक हैं लेकिन अपने समय में उनकी इच्छा यही थी की लड़की पहले उनके परिवार के साथ मथुरा में रहती लेकिन क्युकी वो समझदार हैं उन्होंने जिद्द नहीं की और अपनी शादी को डाइवोर्स से बचाने के लिये लड़की को सीधा अपने पास ही बुला लिया।


एक लड़की को अपना घर छोड़ कर जाना होता हैं लेकिन शादी से पहले लड़के वाले उसके घर आ कर उसका घर देखते हैं।  परम्परागत तरीके में लड़की विवाह से पहले अपनी होने वाली ससुराल नहीं जा सकती हैं।

जब रहना बसना दूसरी जगह लड़की को होता हैं , तो उसकी पसंद का घर हैं या नहीं ये उस को दिखा कर पूछना जरुरी क्यों नहीं समझा जाता हैं।  वर पक्ष क्यूँ कन्या पक्ष के घर आकर निरिक्षण परिक्षण करता हैं जबकि वर को तो वहां रहना बसना हैं ही नहीं।

विवाहित पुत्री अमूमन अपने माँ पिता से शिकायत करती पायी जाती हैं की घर बहुत छोटा हैं , वहाँ सुविधा नहीं हैं , वहाँ मेरे लिये जगह नहीं हैं , मेरा सामान खराब हो रहा हैं , रसोई छोटी हैं , बाथरूम कंबाइंड है या सबसे बड़ी शिकायत की विवाह के बाद भी उसको अपना घर नहीं मिला हैं वो तो सास का घर हैं और सास अपने हिसाब से उसको चलाती  हैं।  

ये सही हैं की माँ पिता वर पक्ष का घर देख कर ही शादी की बात करते हैं लेकिन उनकी अपेक्षा और उनकी पुत्री की अपेक्षाओं में अंतर होता हैं।

मुद्दे की बात सिर्फ ये है की क्यूँ नहीं लड़की को हमारी परम्पराओ ने ये अधिकार दिया हैं की वो जहां अपना घर बसाना चाहती हैं वहाँ जा कर वो देख सके की वो वहाँ बसना भी चाहती हैं की नहीं।

क्यूँ नहीं लड़की को ये अधिकार हैं की वो देख सके  और पसंद और ना पसंद कर सके अपने भावी घर को क्युकी रहना और बसना दूसरी जगह उसको हैं।

शायद आप सब को ये सब बाते बहुत छोटी छोटी लगेगी पर क्या डाइवोर्स के कारण ये सब बाते ही नहीं बन जाती हैं।
हो सकता आप कहे लड़की को तो समझोते करने ही होते हैं पर  ये समझोते अब लड़कियां नहीं करना चाहती हैं।

बस इतना ही

September 14, 2013

बलात्कार को कब "rarest of rare " क्राइम माना जाएगा ??

कल का दिन कानून व्यवस्था के लिये एक इम्तिहान ही था।  १६ दिसम्बर को दिल्ली में एक गैंग रेप किया गया था।  ६ लोग थे जिन्होने एक २३ साल की लड़की का बलात्कार किया एक बार नहीं कई बार यहाँ तक की उसके बेहोश होने के बाद भी।  लड़की के साथ उसका दोस्त भी था जो इस सब का गवाह था।  बलात्कार के बाद लड़की के शरीर के अन्दर रोड दाल कर उसकी आंते खीच कर बाहर निकाली गयी थी और फिर उस लड़की और लडके को बिना कपड़ो के सड़क पर बस से नीचे फ़ेंक क़र उनको कुचल कर मारने की कोशिश की गयी थी।

कल अदालत उन दोषियों में से ४ को मौत की सजा सुनाई क्युकी एक तो नाबालिग था उसको तो सजा नहीं दी जा सकती थी उसको रिफोर्म किया जायेगा।  और एक पहले ही आत्म हत्या कर चुका था।

हम सब बड़े खुश हो रहे हैं पर किस बात के लिये ??

सजा बलात्कार के लिये हुई ही नहीं हैं सजा इस लिये हुई हैं क्युकी वो लड़की मर गयी और इस लिये ये अपराध मौत की सजा दिलाने के लिये काफी हैं।  बलात्कार के लिये  मौत की सजा नहीं दी जा सकती हैं   क्युकी बलात्कार " rarest of rare " अपराध है ही नहीं।

ज्योति सिंह पाण्डेय का मरना बहुत जरुरी था वरना इनको मौत की सजा नहीं हो सकती थी।

एक लड़की का बलात्कार करना अगर "rarest of rare " अपराध हैं ही नहीं तो समाज में बदलाव आयेगा इस फैसले से नहीं संभव ही नहीं हैं। 

बलात्कार को कब "rarest of rare " क्राइम माना जाएगा ??

अपनी जानकारी बढाने के अगर आप चाहे तो ये लिंक अवश्य पढ़े

लिंक १
लिंक २
लिंक ३

कभी कभी सोचती हूँ इन अपराधियों की माँ कैसे कह पाती हैं उनका बेटा तो निर्दोष था वो वहाँ था ही नहीं , कैसे इनके वकील इनको बचाने के लिये अपना समय दे पाते हैं ? कैसे इनके परिजन इनके लिये माफ़ी की उम्मीद करते हैं हम सब से।


September 06, 2013

क्या बलात्कारी को सजा ऐसे भी दी जाती हैं

जयपुर से २५० किलोमीटर की दूरी पर कोटा मे केशवपुरा हैं।  कुछ दिन पहले वहाँ पर एक ६ साल की बच्ची का बलात्कार ४० साल के आदमी ने किया।

बलात्कार की घटना के बाद बच्ची की जाति के बुजुर्गो ने पुलिस में रपट नहीं लिखाई बल्कि पंचायत बुलाई और पंचायत ने उस आदमी को सजा देने के लिये एक नया तरीका खोजा।

September 05, 2013

Criminal Law (Amendment) Act, 2013 पिछली पोस्ट से आगे क्रिमिनल लॉ { अमेंडमेंट } ओरडीनन्स पूरी डिटेल में

 पिछली पोस्ट से आगे क्रिमिनल लॉ { अमेंडमेंट } ओरडीनन्स पूरी डिटेल में

1
THE CRIMINAL LAW (AMENDMENT) ORDINANCE, 2013
Promulgated by the President in the Sixty-fourth Year of the Republic of
India.
An Ordinance further to amend the Indian Penal Code, the Code of
Criminal Procedure, 1973 and the Indian Evidence Act, 1872.
WHEREAS a Bill further to amend the Indian Penal Code, the Code of
Criminal Procedure, 1973 and the Indian Evidence Act, 1872 was
introduced in the House of the People and referred to the Department
related Parliamentary Standing Committee on Home Affairs for
examination and report which is pending;
AND WHEREAS Parliament is not in session and the President is
satisfied that circumstances exist which render it necessary for him to take
immediate action to give effect to the provisions of the said Bill with
certain modifications;
NOW, THEREFORE, in exercise of the powers conferred by clause (1) of
article 123 of the Constitution, the President is pleased to promulgate the
following Ordinance:––
CHAPTER I
PRELIMINARY
1. (1) This Ordinance may be called the Criminal Law (Amendment)
Ordinance, 2013.
Short title and
commencement.
(2) It shall come into force at once.
2
CHAPTER II
AMENDMENTS TO THE INDIAN PENAL CODE
Amendment of
section 100.
2. In the Indian Penal Code (hereafter in this Chapter referred to as the
Penal Code), in section 100, in the clause Secondly, after the words
“grievous hurt”, the words “including the offence of grievous hurt
punishable under section 326A” shall be inserted.
45 of 1860.
Insertion of new
section 166A.
3. After section 166 of the Penal Code, the following section shall be
inserted, namely:––
Public servant
disobeying direction
under law.
“166A. Whoever, being a public servant,––
(a) knowingly disobeys any direction of the law which
prohibits him from requiring the attendance at any place of any
person for the purpose of investigation into an offence or any
other matter, or
(b) knowingly disobeys, to the prejudice of any person, any
other direction of the law regulating the manner in which he shall
conduct such investigation, or
(c) fails to record any information given to him under subsection
(1) of section 154 of the Code of Criminal Procedure,
1973 and in particular in relation to cognizable offence
punishable under s e c t i o n 354, section 354A, section 354B,
section 354C, sub-section (2) of section 354D, section 376,
section 376A, section 376B, s ection 376C, section 376D or
s ection 376E,
shall be punished with imprisonment for a term which may extend
to one year or with fine or with both.”.
2 of 1974.
Insertion of new
sections 326A and
326B.
4. After section 326 of the Penal Code, the following sections shall be
inserted, namely:––
Voluntarily causing
grievous hurt by
use of acid, etc.
‘326A. Whoever causes permanent or partial damage or
deformity to, or burns or maims or disfigures or disables, any part or
parts of the body of a person or causes grievous hurt by throwing acid
on or by administering acid to that person, or by using any other
means with the intention of causing or with the knowledge that he is
likely to cause such injury or hurt, shall be punished with
imprisonment of either description for a term which shall not be less
than ten years but which may extend to imprisonment for life and
with fine which may extend to ten lakh rupees:
Provided that any fine imposed under this section shall be given
to the person on whom acid was thrown or to whom acid was
administered.
3
326B. Whoever throws or attempts to throw acid on any person or
attempts to administer acid to any person, or attempts to use any other
means, with the intention of causing permanent or partial damage or
deformity or burns or maiming or disfigurement or disability or
grievous hurt to that person, shall be punished with imprisonment of
either description for a term which shall not be less than five years but
which may extend to seven years, and shall also be liable to fine.
Explanation 1.–– For the purposes of section 326A and this
section, “acid” includes any substance which has acidic or
corrosive character or burning nature, that is capable of causing
bodily injury leading to scars or disfigurement or temporary or
permanent disability.
Explanation 2.–– “Permanent or partial damage” includes
deformity, or maiming, or burning, or disfiguring, or disabling
any part or parts of the body of a person.
Explanation 3.–– For the purposes of section 326A a n d
this section, permanent or partial damage or deformity shall
not be required to be irreversible.’.
Voluntarily
throwing or
attempting to
throw acid.
5. In section 354 of the Penal Code, for the words “shall be punished
with imprisonment of either description for a term which may extend to
two years, or with fine, or with both”, the words “shall be punished with
imprisonment of either description for a term of one year which may
extend to five years and shall also be liable to fine” shall be substituted.
Amendment of
section 354.
6. After section 354 of the Penal Code, the following sections shall be
inserted, namely:––
Insertion of new
sections 354A,
354B, 354C and
354D.
‘354A. (1) The following acts or behaviour shall constitute the
offence of sexual harassment––
(i) physical contact and advances involving unwelcome and
explicit sexual overtures; or
(ii) a demand or request for sexual favours; or
(iii) making sexually coloured remarks; or
(iv) forcibly showing pornography; or
(v) any other unwelcome physical, verbal or non-verbal
conduct of sexual nature.
(2) Any person who commits the offence specified in
clause (i) or clause (ii) of sub-section (1) shall be punished
with rigorous imprisonment which may extend to five years, or
with fine, or with both.
Sexual
harassment and
punishment for
sexual harassment.
4
(3) Any person who commits the offence specified in clause
(iii) or clause (iv) or clause (v) of sub-section (1) shall be punishable
with imprisonment of either description that may extend to one
year, or with fine, or with both.
Assault or use of
criminal force to
woman with
intent to disrobe.
354B. Whoever assaults or uses criminal force to any woman
or abets such act with the intention of disrobing or compelling her
to be naked in any public place, shall be punished with
imprisonment of either description for a term which shall not be less
than three years but which may extend to seven years and with fine.
Voyeurism. 354C. Whoever watches, or captures the image of, a woman
engaging in a private act in circumstances where she would usually
have the expectation of not being observed either by the perpetrator
or by any other person at the behest of the perpetrator shall be
punished on first conviction with imprisonment of either
description for a term which shall not be less than one year, but
which may extend to three years, and shall also be liable to fine, and
be punished on a second or subsequent conviction, with
imprisonment of either description for a term which shall not be
less than three years, but whi ch may extend to seven years, and
shall also be liable to fine.
Explanation 1.–– For the purposes of this section, “private act” includes an
act of watching carried out in a place which, in the circumstances,
would reasonably be expected to provide privacy, and where the
victim's genitals, buttocks or breasts are exposed or covered only
in underwear; or the victim is using a lavatory; or the person is
doing a sexual act that is not of a kind ordinarily done in public.
Explanation 2.–– Where the victim consents to the capture of
images or any act, but not to their dissemination to third persons
and where such image or act is disseminated, such
dissemination shall be considered an offence under this
section.
Stalking. 354D. (1) Whoever follows a person and contacts, or attempts to
contact such person to foster personal interaction repeatedly, despite
a clear indication of disinterest by such person, or whoever
monitors the use by a person of the internet, email or any other
form of electronic communication, or watches or spies on a person
in a manner that results in a fear of violence or serious alarm or
distress in the mind of such person, or interferes with the mental
peace of such person, commits the offence of stalking:
Provided that the course of conduct will not amount to
stalking if the person who pursued it shows––
5
(i) that it was pursued for the purpose of preventing or
detecting crime and the person accused of stalking had been
entrusted with the responsibility of prevention and detection
of crime by the state; or
(ii) that it was pursued under any law or to comply with
any condition or requirement imposed by any person under any
law; or
(iii) that in the particular circumstances the pursuit of
the course of conduct was reasonable.
(2) Whoever commits the offence of stalking shall be punished
with imprisonment of either description for a term which shall
not be less than one year but which may extend to three years, and
shall also be liable to fine.’.
7. For section 370 of the Penal Code, the following sections shall be
substituted, namely:––
Substitution of
new sections 370
and 370A for
section 370.
‘370. (1) Whoever, for the purpose of exploitation, (a) recruits,
(b) transports, (c) harbours, (d) transfers, or (e) receives, a person or
persons, by––
First.–– using threats, or
Secondly.–– using force, or any other form of coercion, or
Thirdly.–– by abduction, or
Fourthly.–– by practising fraud, or deception, or
Fifthly.–– by abuse of power, or
Sixthly.–– by inducement, including the giving or
receiving of payments or benefits, in order to achieve the
consent of any person having control over the person
recruited, transported, harboured, transferred or received,
commits the offence of trafficking.
Explanation 1.–– The expression “exploitation” shall include,
prostitution or other forms of sexual exploitation, forced labour or
services, slavery or practices similar to slavery, servitude, or the
forced removal of organs.
Explanation 2.–– The consent of the victim is immaterial in a
determination of the offence of trafficking.
(2) Whoever commits the offence of trafficking shall be
punished with rigorous imprisonment for a term which shall not
be less than seven years, but which may extend to ten years, and shall
also be liable to fine.
Trafficking of
person.
6
(3) Where the offence involves the trafficking of more than
one person, it shall be punishable with rigorous imprisonment for
a term which shall not be less than ten years but which may extend
to imprisonment for life, and shall also be liable to fine.
(4) Where the offence involves the trafficking of a minor, it
shall be punishable with rigorous imprisonment for a term which
shall not be less than ten years but which may extend to
imprisonment for life.
(5) Where the offence involves the trafficking of more than one
minor at the same time, it shall be punishable with rigorous
imprisonment for a term which shall not be less than fourteen years
but which may extend to imprisonment for life.
(6) When a public servant including police officer is involved
in the trafficking of a minor then such public servant shall be
punished with imprisonment for life, which shall mean the
remainder of that person’s natural life.
(7) If a person is convicted of the offence of trafficking of
minors, on more than one occasion, then such person shall be
punished with imprisonment for life, which shall mean
imprisonment for the remainder of that person’s natural life.
Employing of a
trafficked person.
370A. (1) Whoever, despite knowing, or having reason to
believe that a child has been trafficked, employs such child in
any form of labour, shall be punished with rigorous
imprisonment for a term which shall not be less than five years but
wh i c h may extend to seven years, and with fine.
(2) Whoever, despite knowing or having reason to believe that
an adult has been trafficked, employs such adult for labour, shall
be punished with rigorous imprisonment for a term which shall
not be less than three years but which may extend to five years, and
shall also be liable to fine.’.
Substitution of new
sections for sections
375, 376, 376A,
376B, 376C and
376D.
8. For sections 375, 376, 376A, 376B, 376C and 376D of the Penal
Code, the following sections shall be substituted, namely:––
Sexual assault. ‘375. A person is said to commit “sexual assault” if that
person––
(a) penetrates his penis, to any extent, into the vagina, mouth
urethra or anus of another person or makes the person to do so
with him or any other person; or
(b) inserts, to any extent, any object or a part of the body, not
being the penis, into the vagina, the urethra or anus of another
7
person or makes the person to do so with him or any other person;
or
(c) manipulates any part of the body of another person so as
to cause penetration into the vagina, urethra, anus or any part of
body of such person or makes the person to do so with him or
any other person; or
(d) applies his mouth to the penis, vagina, anus, urethra of
another person or makes such person to do so with him or any
other person;
(e) touches the vagina, penis, anus or breast of the person or
makes the person touch the vagina, penis, anus or breast of that
person or any other person,
except where such penetration or touching is carried out for proper
hygienic or medical purposes under the circumstances falling under
any of the following seven descriptions:––
First.–– Against the other person’s will.
Secondly. –– Without the other person’s consent.
Thirdly. –– With the other person’s consent when such consent
has been obtained by putting such other person or any person in
whom such other person is interested, in fear of death or of hurt.
Fourthly. –– When the person assaulted is a female, with her
consent, when the man knows that he is not her husband and that her
consent is given because she believes that he is another man to whom
she is or believes to be lawfully married.
Fifthly.–– With the consent of the other person when, at the time
of giving such consent, by reason of unsoundness of mind or
intoxication or the administration by that person personally or through
another of any stupefying or unwholesome substance, the other
person is unable to understand the nature and consequences of that
action to which such other person gives consent.
Sixthly. –– With or without the other person’s consent, when such
other person is under eighteen years of age.
Seventhly. –– When the person is unable to communicate
consent.
Explanation 1.–– Penetration to any extent is “penetration” for
the purposes of this section.
Explanation 2.–– For the purposes of this section, “vagina” shall
also include labia majora.
8
Explanation 3.–– Consent means an unequivocal voluntary
agreement when the person by words, gestures or any form of
non-verbal communication, communicates willingness to
participate in the specific act:
Provided that, a person who does not physically resist to the
act of penetration shall not by the reason only of that fact, be
regarded as consenting to the sexual activity.
Exception.–– Sexual intercourse or sexual acts by a man with his
own wife, the wife not being under sixteen years of age, is not sexual
assault.
Punishment for
sexual assault.
376. (1) Whoever, except in the cases provided for by sub-section
(2), commits sexual assault, shall be punished with rigorous
imprisonment of either description for a term which shall not be less
than seven years but which may extend to imprisonment for life, and
shall also be liable to fine.
(2) Whoever,––
(a) being a police officer, commits sexual assault –
(i) within the limits of the police station to which such
police officer is appointed; or
(ii) in the premises of any station house; or
(iii) on a person in such police officer’s custody or in
the custody of a police officer subordinate to such police
officer; or
(b) being a public servant, commits sexual assault on a person
in such public servant’s custody or in the custody of a public
servant subordinate to such public servant; or
(c) being a member of the armed forces is in the area by
virtue of deployment by the Central or a State Government,
commits sexual assault; or
(d) being on the management or on the staff of a jail, remand
home or other place of custody established by or under any law
for the time being in force or of a women’s or children’s
institution, commits sexual assault on any inmate of such jail,
remand home, place or institution; or
(e) being on the management or on the staff of a hospital,
commits sexual assault on a person in that hospital; or
(f) being a relative, guardian or teacher of, or a person in a
position of trust or authority towards, the person assaulted,
commits sexual assault on such person; or
9
5 of 1861.
(g) commits sexual assault on a woman knowing her to be
pregnant; or
(h) commits sexual assault on a person when such person is
under eighteen years of age; or
(i) commits sexual assault, where the person assaulted is
incapable of giving consent; or
(j) being in a position of economic or social dominance,
commits sexual assault on a person under such dominance; or
(k) commits sexual assault on a person suffering from mental
or physical disability; or
(l) while committing sexual assault causes grievous bodily
harm or maims or disfigures or endangers the life of a person; or
(m) commits persistent sexual assault,
shall be punished with rigorous imprisonment for a term which shall
not be less than ten years but which may extend to imprisonment for
life, and shall also be liable to fine.
Explanation 1.–– For the purposes of this sub-section,––
(a) “women’s or children’s institution” means an institution,
whether called an orphanage or a home for neglected women or
children or a widow’s home or an institution called by any other
name, which is established and maintained for the reception and
care of women or children;
(b) “hospital” means the precincts of the hospital and includes
the precincts of any institution for the reception and treatment of
persons during convalescence or of persons requiring medical
attention or rehabilitation;
(c) “police officer” shall have the same meaning as assigned
to the expression “police” under the Police Act, 1861;
(d) “armed forces” means the naval, military and air forces
and includes any member of the Armed Forces constituted
under any Act for the time being in force, including the
paramilitary forces and any auxiliary forces that are under the
control of the Central Government or the State Government.
Explanation 2.–– Where a person is subjected to sexual assault by
one or more persons in a group of persons acting in furtherance of
their common intention, each of the persons in the group shall be
deemed to have committed sexual assault within the meaning of this
sub-section.
10
Punishment for
causing death or
resulting in
persistent vegetative
state of the victim.
376A. Whoever, commits an offence punishable under s u b -
s e c t i o n ( 1 ) o r s u b - s e c t i o n ( 2 ) o f section 376 and in the
course of such commission inflicts an injury which causes the death
of the person or causes the person to be in a persistent vegetative
state, shall be punished with rigorous imprisonment for a term
which shall not be less than twenty years, but wh i c h may extend
to imprisonment for life, which shall mean the remainder of that
person’s natural life, or with death.
Sexual assault by
husband upon his
wife during
separation.
376B. Whoever commits sexual assault on his own wife, who is
living separately under a decree of separation or under any custom or
usage, without her consent, shall be punished with imprisonment of
either description, for a term which shall not be less than two years
but which may extend to seven years, and shall also be liable to fine.
Sexual intercourse
by a person in
authority.
376C. Whoever,––
(a) being in a position of authority or in a fiduciary
relationship; or
(b) a public servant; or
(c) superintendent or manager of a jail, remand home or other
place of custody established by or under any law for the time
being in force, or a women’s or children’s institution; or
(d) being on the management of a hospital or being on the
staff of a hospital,
and abuses such position or fiduciary relationship to induce or seduce
any person either in the first mentioned person’s custody or under the
first mentioned person’s charge or present in the premises and has
sexual intercourse with that person, such sexual intercourse not
amounting to the offence of sexual assault, shall be punished with
rigorous imprisonment of either description for a term which shall not
be less than five years but which may extend to ten years, and shall
also be liable to fine.
Explanation 1.–– In this section, “sexual intercourse” shall mean
any of the acts mentioned in clauses (a) to (c) of section 375.
Explanation 2. –– For the purposes of this section, Explanations 1
and 2 to section 375 shall also be applicable.
Explanation 3.–– “Superintendent”, in relation to a jail, remand
home or other place of custody or a women’s or children’s institution,
includes a person holding any other office in such jail, remand home,
place or institution by virtue of which such person can exercise any
authority or control over its inmates.
11
Explanation 4.–– The expressions “hospital” and “women’s or
children’s institution” shall respectively have the same meaning as in
Explanation 1 to sub-section (2) of section 376.
376D. Where a person is sexually assaulted by one or more
persons constituting a group or acting in furtherance of a common
intention, each of those persons shall be deemed to have committed
the offence of sexual assault, regardless of gender and shall be
punished with rigorous imprisonment for a term which shall not
be less than twenty years, but which may extend to life and
shall pay compensation to the victim which shall be reasonable to
meet the medical expenses and rehabilitation of the victim.
Explanation.–– For the purposes of this section, imprisonment
for life shall mean imprisonment for the remainder of that person’s
natural life.
Sexual assault by
gang.
376E. Whoever has been previously convicted of an offence
punishable under section 376 or section 376A or section 376C or
section 376D and is subsequently convicted of an offence
punishable under any of the said sections shall be punished with
imprisonment for life, which shall mean the remainder of that
person’s natural life or with death.’.
Punishment for
repeat offenders.
9. In section 509 of the Penal Code, for the words “shall be punished
with simple imprisonment for a term which may extend to one year, or
with fine, or with both”, the words “shall be punished with simple
imprisonment for a term which may extend to three years and shall also be
liable to fine” shall be substituted.
Amendment of
section 509.
CHAPTER III
AMENDMENTS TO THE CODE OF CRIMINAL PROCEDURE, 1973.
2 of 1974. 10. In the Code of Criminal Procedure, 1973 (hereafter in this
Chapter referred to as the Code of Criminal Procedure), in section 54A,
the following proviso shall be inserted, namely:––
Amendment of
section 54A.
“Provided that, if the person identifying the person arrested is
mentally or physically disabled, such process of identification
shall take place under the supervision of a Judicial Magistrate
who shall take appropriate steps to ensure that such person
identifies the person arrested using methods that the person is
comfortable with:
Provided further, that if the person identifying the person
arrested is mentally or physically disabled, the identification process
may be videographed.”.
12
Amendment of
section 154
11. In section 154 of the Code of Criminal Procedure, in sub-section
(1), the following provisos shall be inserted, namely:––
.
“Provided that if the information is given by the woman against
whom an offence under section 326A, section 326B, section 354,
section 375, section 376, section 376A, section 376B, section 376C,
section 376D, section 376E and section 509 of the Indian Penal Code
is alleged to have been committed or attempted, then such information
shall be recorded, as far as possible, by a woman police officer and
such woman shall be provided legal assistance and also the
assistance of a healthcare worker or women’s organisation or both:
Provided further that––
(a) in the event that the person against whom an offence
under s ection 354, section 354A, section 354B, s ection 354C,
section 354D, sub-section (1) or sub-section (2) of section
376, section 376A, section 376B, section 376C, section 376D or
section 376E of the Indian Penal Code is alleged to have been
committed or attempted is temporarily or permanently mentally
or physically disabled, then such information shall be recorded
by a police officer, at the residence of the person seeking to
report such offence or at a convenient place of such person’s
choice, in the presence of a special educator or an interpreter, as the
case may be;
(b) the recording of such information may be videographed.
(c) the police officer shall get the statement of the
person recorded by a Judicial Magistrate under clause (a) of
sub-section (5A) of section 164 as soon as possible.”.
45 of 1860.
45 of 1860.
Amendment of
section 160.
12. In section 160 of the Code of Criminal Procedure, in sub-section
(1), in the proviso, for the words “under the age of fifteen years or
woman”, the words “under the age of eighteen years or above the age of
sixty-five years or a woman or a physically or mentally disabled person”
shall be substituted.
Amendment of
section 161.
13. In section 161 of the Code of Criminal Procedure, in sub-section
(3), after the proviso, the following proviso shall be inserted, namely:––
“Provided further that the statement of a woman against whom an
offence under section 354, section 354A, section 354B, section 354C,
section 354D, section 375, section 376, section 376A, section 376B,
section 376C, section 376D, section 376E or section 509 of the Indian
Penal Code is alleged to have been committed or attempted shall be
recorded, as far as possible, by a woman police officer.”.
45 of 1860.
13
14. In section 164 of the Code of Criminal Procedure, after sub-section
(5), the following sub-section shall be inserted, namely:––
Amendment of
section 164.
45 of 1860.
1 of 1872.
“(5A) (a) In cases punishable under section 354, section
354A, section 354B, sub-section (2) of section 354C, sub-section (1)
or sub-section (2) of section 376, section 376A, section 376B,
section 376C, section 376D or section 376E of the Indian Penal Code,
the Judicial Magistrate shall record the statement of the person against
whom such offence has been committed in the manner prescribed in
sub-section (5), as soon as the commission of the offence is brought to
the notice of the police:
Provided that if the person making the statement is temporarily or
permanently physically or mentally disabled, the Magistrate shall take
the assistance of an interpreter or a special educator in recording the
statement:
Provided further that if the person making the statement is
temporarily or permanently physically or mentally disabled, the
statement made by the person, with the assistance of an interpreter or
special educator, may be videographed;
(b) a statement recorded under clause (a) of a person who is
temporarily or permanently physically or mentally disabled shall be
considered a statement in lieu of examination-in-chief, as specified in
section 137 of the Indian Evidence Act, 1872 such that the maker of
the statement can be cross-examined on such statement, without the
need for recording the same at the time of trial.
15. After section 198A of the Code of Criminal Procedure, the
following section shall be inserted, namely:––
Insertion of new
section 198B.
45 of 1860.
“198B. No Court shall take cognizance of an offence under
s ection 376B of the Indian Penal Code where the persons are in a
marital relationship, except upon prima facie satisfaction of the facts
which constitute the offence upon a complaint having been filed or
made by the wife against the accused husband.”.
Cognizance of
offence.
16. In section 273 of the Code of Criminal Procedure, before the
Explanation, the following proviso shall be inserted, namely:––
Amendment of
section 273.
“Provided that where the evidence of a person below the age of
eighteen years who is alleged to have been subjected to sexual assault
or any other sexual offence, is to be recorded, the court may take
appropriate measures to ensure that such person is not confronted by
the accused while at the same time ensuring the right of crossexamination
of the accused.”.
17. In section 327 of the Code of Criminal Procedure, in sub-section
(2), for the words, figures and letters “trial of rape or an offence under
Amendment of
section 327.
14
section 376, section 376A, section 376B, section 376C or section 376D of
the Indian Penal Code”, the words, figures and letters “trial of sexual
assault or an offence under section 376, section 376A, section 376B,
section 376C, section 376D or section 376E of the Indian Penal Code”
shall be substituted.
Amendment of First
Schedule.
18. In the First Schedule to the Code of Criminal Procedure, under the
heading “1.-OFFENCES UNDER THE INDIAN PENAL CODE”,––
(a) after the entries relating to section 166, the following entries shall
be inserted, namely:––
1 2 3 4 5 6
“166A Public servant
disobeying
direction under
law
Imprisonment
for one year
or fine or with
both
Noncognizable
Bailable Magistrate
of the first
class”;
(b) after the entries relating to section 326, the following entries shall
be inserted, namely:––
1 2 3 4 5 6
“326A Voluntarily
causing
grievous hurt
by use of
acid, etc.
Imprisonment for
not less than ten
years but which
may extend to
imprisonment for
life and fine of 10
lakh rupees.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.
326B Voluntarily
throwing or
attempting to
throw acid.
Imprisonment for
five years but which
may extend to seven
years and fine.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.”.
(c) for the entries relating to section 354, the following entries shall be
substituted, namely:––
1 2 3 4 5 6
“354 Assault or use
of criminal
force to woman
with intent to
outrage her
modesty.
Imprisonment of
1 year which
may extend to 5
years, and with
fine.
Cognizable Nonbailable
Any
Magistrate.
15
354A (1) Sexual
harassment of the
nature of
unwelcome
physical contact
and advances or a
demand or
request for sexual
favours.
Imprisonment
which may
extend to 5
years or with
fine or with
both.
Cognizable Nonbailable
Any
Magistrate.
(2) Sexual
harassment of the
nature of making
sexually coloured
remark or
showing
pornography or
any other
unwelcome
physical, verbal
or non-verbal
conduct of sexual
nature.
Imprisonment
which may
extend to 1 year
or with fine or
with both.
Noncognizable
Bailable Any
Magistrate.
354B Assault or use of
criminal force to
woman with
intent to disrobe.
Imprisonment of
not less than 3
years but which
may extend to 7
years and with
fine.
Cognizable Nonbailable
Any
Magistrate.
354C Voyeurism. Imprisonment of
not less than 1
year but which
may extend to 3
years and with
fine for first
conviction.
Imprisonment of
not less than 3
year but which
may extend to 7
years and with
fine for second
or subsequent
conviction.
Noncognizable
Cognizable
Bailable
Nonbailable
Any
Magistrate.
Any
Magistrate.
354D Stalking. Imprisonment of
not less than 1
year but which
may extend to 3
years and with
fine.
Cognizable Nonbailable
Any
Magistrate.”.
16
(d) for the entries relating to sections 370, the following entries shall
be substituted, namely:––
1 2 3 4 5 6
“370 (1)Trafficking
of person.
Imprisonment of not
less than 7 years but
which may extend to
10 years and with
fine.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.
(2) Trafficking
of more than
one person.
Imprisonment of not
less than 10 years but
which may extend to
imprisonment for life
and with fine.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.
(3) Trafficking
of a minor.
Imprisonment of not
less than 10 years but
which may extend to
imprisonment for
life.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.
(4) Trafficking
of more than
one minor.
Imprisonment of not
less than 14 years but
which may extend to
imprisonment for
life.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.
(5) Public
servant or a
police officer
involved in
trafficking of
minor.
Imprisonment for life
which shall mean the
remainder of that
person’s natural life.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.
(6) Person
convicted of
offence of
trafficking of
minor on more
than one
occasion.
Imprisonment for life
which shall mean the
remainder of that
person’s natural life.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.
370A (1) Employing
of a trafficked
child.
Imprisonment of not
less than 5 years but
which may extend to
7 years and with fine.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.
(2) Employing
of a trafficked
adult person.
Imprisonment of not
less than 3 years but
which may extend to
7 years and with fine.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.”.
17
(e) for the entries relating to sections 376, 376A, 376B, 376C and
376D, the following entries shall be substituted, namely:––
1 2 3 4 5 6
376 (1) Sexual
assault.
Rigorous
imprisonment
of not less than
7 years but
which may
extend to
imprisonment
for life and
with fine.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.
(2) Sexual
assault by a
police
officer or a
public
servant or
Member of
armed forces
or a person
being on the
management
or on the
staff of a
jail, remand
home or
other place
of custody
or women’s
or children’s
institution or
by a person
on the
management
or on the
staff of a
hospital, and
sexual
assault
committed
by a person
in a position
of trust or
authority
towards the
person
assaulted or
Rigorous
imprisonment
of not less than
10 years but
which may
extend to
imprisonment
for life and
with fine.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.
18
by a near
relative of
the person
assaulted.
376A Person
committing
an offence
of sexual
assault and
inflicting
injury which
causes death
or causes the
person to be
in a
persistent
vegetative
state.
Rigorous
imprisonment
of not less than
20 years but
which may
extend to
imprisonment
for life which
shall mean the
remainder of
that person’s
natural life or
with death.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.
376B Sexual
assault by
the husband
upon his
wife during
separation.
Imprisonment
for not less
than 2 years
but which may
extend to 7
years and with
fine.
Cognizable
(but only
on the
complaint
of the
victim)
Nonbailable
Court of
Session.
376C Sexual
intercourse
by a person
in authority.
Rigorous
imprisonment
for not less
than 5 years
but which may
extend to 10
years and with
fine.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.
376D Sexual
assault by
gang.
Rigorous
imprisonment
for not less
than 20 years
but which may
extend to
imprisonment
for life which
shall mean the
remainder of
that person’s
natural life and
compensation
to the victim.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.
19
376E Repeat
offenders.
Imprisonment
for life which
shall mean the
remainder of
that person’s
natural life or
with death.
Cognizable Nonbailable
Court of
Session.”.
(f) entry relating to section 509, in column 3, for the words “Simple
imprisonment for one year, or fine, or both,”, the words “Simple
imprisonment for 3 years and with fine” shall be substituted.
CHAPTER IV
AMENDMENTS TO THE INDIAN EVIDENCE ACT, 1872
1 of 1872. 19. After section 53 of the Indian Evidence Act, 1872 (hereafter in this
Chapter referred to as the Evidence Act), the following section shall be
inserted, namely:––
Insertion of new
section 53A.
45 of 1860. “53A. In a prosecution for an offence under section 354, section
354A, section 354B, section 354C, sub-section (1) or sub-section (2) of
section 376, section 376A, section 376B, s ection 376C, section
376D or section 376E of the Indian Penal Code or for attempt to
commit any such offence, where the question of consent is in issue,
evidence of the character of the victim or of such person’s previous
sexual experience with any person shall not be relevant on the issue of
such consent or the quality of consent.”.
Evidence of
character or
previous sexual
experience not
relevant in
certain cases.
20. For section 114A of the Evidence Act, the following section shall
be substituted, namely:––
Substitution of
new section for
section 114A.
45 of 1860.
45 of 1860.
‘114A. In a prosecution for sexual assault under clause (a), clause
(b), clause (c), clause (d), clause (e), clause (f), clause (g), clause (h),
clause (i), clause (j), clause (k), clause (l) or clause (m) of sub-section
(2) of section 376 of the Indian Penal Code, where sexual intercourse
by the accused is proved and the question is whether it was without the
consent of the other person alleged to have been sexually assaulted and
such other person states in that person’s evidence before the court that
such person did not consent, the court shall presume that such person
did not consent.
Explanation.–– In this section “sexual intercourse” shall mean any
of the acts mentioned in clauses (a) to (c) of section 375 of the Indian
Penal Code.’.
Presumption as
to absence of
consent in certain
prosecution for
sexual assault.
21. For section 119 of the Evidence Act, the following section shall
be substituted, namely:––
Substitution of
new section for
section 119.
“119. A witness who is unable to speak may give his evidence in
any other manner in which he can make it intelligible, as by writing or
Witness unable
to communicate
verbally.
20
by signs; but such writing must be written and the signs made in open
Court, evidence so given shall be deemed to be oral evidence:
Provided that if the witness is unable to communicate verbally,
the Court shall take the assistance of a special educator or
interpreter in recording the statement, and such statement may be
videographed.”.
Amendment of
section 146.
22. In section 146 of the Evidence Act, for the proviso, the following
proviso shall be substituted, namely:––
“Provided that in a prosecution for an offence under sub-section
(1) or sub-section (2) of section 376, section 376A, section 376B,
section 376C, section 376D or section 376E of the Indian Penal Code
or for attempt to commit any such offence, where the question of
consent is an issue, it shall not be permissible to adduce evidence or to
put questions in the cross-examination of the victim as to the general
immoral character, or previous sexual experience, of such victim with
any person for proving such consent or the quality of consent.”.
45 of 1860.
President.

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September 03, 2013

रेप कानून मे रेप की परिभाषा क्या हैं ?? इस आलेख को पढ़ ले क्युकी बहुत से लोग रेप यानी बलात्कार का मतलब जानते ही नहीं हैं।

रेप कानून मे रेप की परिभाषा क्या हैं ?? इस आलेख को पढ़ ले क्युकी बहुत से लोग रेप यानी बलात्कार का मतलब जानते ही नहीं हैं।

September 01, 2013

आप के आलेख स्त्री मुक्ति के लिये तो बिलकुल नहीं हैं हाँ उसकी आड़ में पुरुष को कुकर्म को एक आड़ देने की चेष्टा जरुर हैं।

जितना समय ये किशोर उन क्लिप को देखने में लगाते हैं उतने समय में कुछ और भी कर सकते हैं नहीं करते क्यूँ क्युकी नारी शरीर , पोर्न से "रिफ्रेश " होना उनका  अधिकार हैं। 
अरुण को कैसे पता उनके मोबाइल में पोर्न था , क्या उन्होने उनके मोबाइल चेक किये थे , क्या देखने बाद उन्होने पुलिस में कम्प्लेंट करना उचित नहीं समझा ? क्यूँ नहीं समझा ? ना बालिग़ के मोबाइल में पोर्न , या बालिग़ के मोबाइल में पोर्न होना अपराध हैं , इतनी सी बात नहीं पता अरुण राय को ??
सौन्दर्य के प्रति हिंसा  बलात्कार करने का नया कारण , वाह , तारीफ़ करनी होगी आप सब बुद्धिजीवियों की जो केवल और केवल बलात्कार करने वाले को बचाने की सोचते हैं

मेरा कमेन्ट इस लिंक पर



"यह याद रखना होगा कि बलात्कार केवल एक यौन अपराध नहीं है. इसके सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक पक्ष भी हैं. इसीलिए इसका कोई भी दीर्घकालिक तथा स्थाई निराकरण समाज के भीतर से अमानवीकरण के लिए जिम्मेदार परिस्थितियों तथा स्त्रीविरोधी पितृसत्तात्मक मानसिकता से एक फैसलाकुन जंग लड़े बिना मुमकिन नहीं है. "Ashok Kumar Pandey




अशोक कुमार पाण्डेय ये और बता देते की कितने साल ये जंग लड़नी होगी।  

क्या आप को ये नहीं दिखता ये सब बच्चे इस दुनिया में कैसे आये हैं , कितनी विवाहित महिला यौन हिंसा और रोज बलात्कार का शिकार होती हैं और जिसका परिणाम ये बच्चे होते हैं।  एक एक घर में ६ -६ बच्चे कैसे पैदा होते हैं जहां पुरुष काम ही नहीं करता हैं और रोज अपनी बीवी का बलात्कार करता हैं।  

सामाजिक सुधार कैसे होगा ?? पुरुष को रिफ्रेश होने के लिये स्त्री का शरीर कब तक सुलभ उपलब्ध होता रहेगा ?? 

पूरे आलेख में कहीं भी स्त्री की बात , उसकी हां या ना और उसी उम्र की किशोर बच्चिया भी क्या किसी का रेप करती मिली हैं आप को कभी।  नहीं वो तो घरो में मैड का , झाड़ू लगाने का , बेबी सिटींग का काम करती हैं ना तो उनके पास  हैं और ना उनकी सैलरी उनको मिलती हैं।  

हर घर में एक भी या बाप हैं जो उनकी तनखा पर अधिकार रखता हैं और उन पर निगरानी भी।  और उनकी माँ भी गाहे बगाहे इन बच्चियों की मार कुटाई इनके बाप भाई से करवा कर अपने कर्त्तव्य की इती समझती हैं 


बलात्कार स्त्री के प्रति सबसे बड़ी हिंसा हैं और बलात्कार इस लिये नहीं होते क्युकी समाज में कई क्लास हैं , बल्कि इस लिये होते हैं क्युकी पुरुष को अपनी सत्ता कयाम रखें का ये सबसे आसन तरीका लगता हैं।  

आप के आलेख स्त्री मुक्ति के लिये तो बिलकुल नहीं हैं हाँ उसकी आड़ में पुरुष को कुकर्म को एक आड़ देने की चेष्टा जरुर हैं।  

August 31, 2013

चरित्र नारी का ही क्यों ?

                     चरित्र  जैसे शब्द का सबसे गहरा सम्बन्ध सिर्फ नारी  क्यों  माना  जाता है ?  हर आँख उठती है उसी की ओर क्यों ? शक सबसे अधिक उसी के चरित्र पर पर किया जाता है. वह भी उससे कुछ भी पूछे बिना। वैसे तो  सदियों से ये परंपरा चली आ रही है कि  नारी सीता की तरह अग्निपरीक्षा देने के लिए बाध्य होती है। 
                          ऐसे कई मामले पढ़  चुकी हूँ  ,  जिसमें सिर्फ संदेह की बिला पर औरतों को मार दिया जाता है क्योंकि उनके पति , पिता या भाई को उनके चरित्र पर संदेह हो जाता है या  उनका कहीं प्रेम प्रसंग होता है जो उनके घर वालों को पसंद नहीं होता है और फिर दोनों को या फिर किसी एक को मौत  घाट उतार दिया जाता है।  इसका  उन्हें पूरा हक होता है जैसे बेटी , बहन या पत्नी  कोई जीते  जागते इंसान न  होकर उनकी  जागीर हों , जिसे सांस लेने से लेकर बोलने , देखने और सोचने तक का अधिकार नहीं है।  जरा सा कोई काम उनकी सोच या दायरे से बाहर   हुआ नहीं कि--
--- उनके मुंह पर कालिख पुत  जाती है
---वे समाज में मुंह दिखाने  के काबिल नहीं रहते हैं। 
---उनके खानदान के नाम पर बट्टा  लगने लगता है.
---वे अपने पुरुष होने पर लानत मलानत भेजने लगते हैं। 
                           वही लोग जो आज नारिओं के प्रगति की ओर बढ़ते कदम की  दुहाई देते हैं और उसके बाद भी उन्हें अपना चरित्र प्रमाण-पत्र साथ लेकर चलना  होता है क्योंकि ये एक ऐसा आक्षेप है जिसमें शिक्षा , पद , रुतबा या उपलब्धियां कोई भी ढाल नहीं बनता है।  आप आगे बढ़ें लेकिन इस समाज के मन से।  आपने आपातकाल में किसी से लिफ्ट ले ली , सहायता ली नहीं की संदेह के घेरे में कैद।  इसमें साथ में कौन है , किस उम्र का है ? उससे  क्या रिश्ता है ? ये भी कोई मतलब नहीं रखता है।  
                            एक  दिन अखबार में पढ़ा और उस घटना ने झकझोर दिया।  एक २० वर्षीया पत्नी  एक वर्ष पूर्व हुआ था , अपने कार्य स्थल से लौटने पर कोई सवारी न मिलने के कारण एक सहकर्मी  के साथ साईकिल पर बैठ कर आ गयी और दूसरे ही दिन उसकी जली हुई लाश कमरे में बरामद हुई।  
                             एक औरत को उसके पति ने सिर्फ शक के कारण उसके निचले हिस्से को लोहे से बने ऐसे किसी चीज से बंद करके उसमें ताला डाल रखा था और ताली अपने पास रखता था सिर्फ नित्य क्रिया के लिए खोलता था।  जब वह कुछ दिन के लिए मायके गयी तो वह नित्य क्रिया के लिए भी मजबूर हो गयी और लोहे के कारण उसके उस हिस्से पर घाव हो गए थे।  जब घर वालों को पता चला तो उसको कटवाया गया।  उसके पति को पत्नी के चरित्र पर संदेह था।  उस लोहे के  बने यन्त्र को लौहसा के नाम से जाना जाता है यानि कि इसका प्रयोग और भी लोग करते रहे होंगे या हो सकता है कि कर भी रहे हों।  (ये काल्पनिक बिलकुल भी नहीं है लेकिन अब मेरे पास इसका  लिखित प्रमाण नहीं है ) 
                            अगर इसे हम पुरुष के मामले में देखें तो खुले आम एक पुरुष दो महिलाओं को पत्नी के तरह से रख कर रहता है।  अभी हाल ही मैं ओम पुरी के मामले में पढ़ा कि उसकी पत्नी ने घरेलु हिंसा का मामला कोर्ट में दाखिल किया।  ओम पुरी  की दो पत्नियाँ है और वह दोनों के पास रहते है।  यहाँ चरित्र का प्रमाण पत्र  कैसे दिया जा सकता है ? एक वही क्यों ? कितने लोग एक पत्नी के रहते हुए दूसरी को पत्नी बना कर रह रहे होते हैं,  लेकिन उनके चरित्र पर कोई उंगली नहीं उठा सकता क्योंकि वे समाज के सर्वेसर्वा जो  है।  
                            एक दो नहीं बल्कि  सैकड़ों और नामी गिरामी लोग तक एक पत्नी के रहते हुए ( बिना तलाक और अपने ही किसी घर में रखते हुए ) दूसरी पत्नी को भी रखते हैं लेकिन उनकी कोई बोल नहीं सकता है बल्कि पत्नी भी अपने  भाग्य का दोष मानते हुए अपनी नियति मान कर इसको स्वीकार कर लेती है।  अगर कोई औरत ऐसा करे तो क्या ये समाज और पुरुष समाज उसको जीने देगा ? शायद नहीं ( अपवाद इसके भी हो सकते हैं लेकिन ये पुरुषों की तरह से खुले तौर पर  स्वीकार होता है।  पुरुष ही क्यों इसे कोई स्त्री भी स्वीकार नहीं करती है।  क्योंकि ये चरित्र सिर्फ नारी के साथ जुड़ा प्रश्न सदैव रहा है और रहेगा।  

                         

August 25, 2013

काश बाबा साहिब जी ये भी लिख जाते संविधान में की रेप या बलात्कार या यौन शोषण जैसा शब्द भारत जैसे देश में इस्तमाल नहीं होगा और ना ही ये अपराध माना जायेगा।

पता चला हैं की कम कपड़े पहने की वजह से एक और लड़की के साथ मुंबई में गैंग रेप हो गया हैं।  कम कपड़े क्या होते हैं कोई कभी इसको परिभाषित क्यूँ नहीं करता हैं ? कम से कम एक परिभाषा मिल जाती तो संविधान में संशोधन ही करवा दिया जाता।  जहां देखो कम कपड़ो की बात होती हैं किसी भी रेप के बाद , बाबा साहेब अम्बेडकर जी ने पता नहीं संविधान बनाते समय इस बात को ध्यान में क्यूँ नहीं रखा की भारत में महिला भी रहती हैं जिनको क्या पहनना हैं इसका फैसला जनता , नेता और मोरल पुलिस करती हैं।  कम से कम उनको संविधान में एक पूरा अध्याय इस पर लिखना चाहिये था की कपड़ो में क्या और कितना लम्बा होना चाहिए , क्या कितना मोटा होना चाहिये , अंदरूनी वस्त्र कितने पारदर्शी होने चाहिये यानी कितनी मोटाई के कपड़े  के अंदरूनी वस्त्र बनाने चाहिये।  किस उम्र की स्त्री को क्या पहनना चाहिये।

इसके अलावा संविधान में ये भी लिखा होना चाहिये था की अगर कोई स्त्री सड़क पर घूम रही है { अकेली नहीं तब भी } और कोई बच्चा { जुविनाइल } , लड़का { जुविनाइल } , आदमी , बूढ़ा उसको छूता हैं तो उस लड़की को तुरंत अपने कपडे उतार कर उन लोगो की काम वासना की तृप्ति के लिये वहीँ पर अपने को समर्पित कर देना चाहिये क्युकी स्त्री का यही काम हैं इस भारत देश में।
 संविधान में ये भी लिख जाते बाबा साहिब की
कोई ७० साल का योगी जो आश्रम  चलाता हैं अगर उसके पास कोई १६ साल की लड़की आती हैं तो लड़की को अपने शरीर के साथ सम्पर्पण भाव ले कर आना होगा क्युकी जब वो योगी उसके शरीर के साथ खेलेगा तो तो वो यौन शोषण नहीं होगा बल्कि स्त्री के लिये एक गौरव की बात होगी।


काश बाबा साहिब जी ये भी लिख जाते संविधान में की रेप या बलात्कार या यौन शोषण जैसा शब्द भारत जैसे देश में इस्तमाल नहीं होगा और ना ही ये अपराध माना जायेगा।  

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संविधान और कानून सबको एक बराबर मानता हैं।  पुरुष  हो या स्त्री कपड़े दोनों को शालीन पहनने चाहिये लेकिन कम कपड़ो की परिभाषा क्या होती हैं मुझे आज तक नहीं समझ आया।    अगर  टी शर्ट , जींस , शॉर्ट्स लड़कियों के लिये नहीं हैं तो उनको परिधान के रूप में इस देश के कानून से बेन करवा दे , ना लड़का पहने ना लड़की .
रेप न हो इसके लिये जरुरी हैं की मानसिक रूप से पुरुष को ये समझना होगा की स्त्री का शरीर उनके काम वासना की तृप्ति के लिये नहीं हैं और हर पुरुष को अपने से छोटे लडके को बचपन से इस बात को समझाना होगा। 
बात लड़कियों को समझाने की नहीं हैं क्यूंकि सदियों से लडकियां पर्दे में रही हैं और फिर भी वेश्या , विधवा , देव दासी और अनगिनत रूपों में उनका यौन शोषण हुआ हैं।

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अपने पाठको को सूचित कर रही हूँ की आज कल रेप और बलात्कार के विडिओ मोबाइल पर बहुत डाउन लोड किये जा रहे जो एक विकृत मानसिकता का परिचायक हैं।  ये पोर्न देखने से भी ज्यादा गयी बीती प्रक्रिया हैं।  हो सकता हैं आप की आस पास कोई इस मानसिकता को रखता हो , संभव हो तो अपने बच्चो के और घर में काम करने वाले मेल सर्वेंट के मोबाइल चेक कर ले।  आप इसको साधिकार चेक कर सकती / सकते हैं क्युकी बुराई को ख़तम करना  हैं तो खुद ही पहल करनी होगी।  एक एक जगह से इस सब को मिटाना हो और उसके लिये सख्ती जरुरी हैं।

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