नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

February 01, 2011

द्वन्द एक पश्चिम की नारी और एक भारतीय माँ

                                        

                  बात आज से सात साल पहले की है मेरी एक मित्र को गर्दन में बार बार दर्द होता था अक्सर हमें गलत तरीके से सोने या तकियों की वजह से हो जाता है वैसा ही, वो फिजियो थेरेपिस्ट के पास जा कर उसकी सिकाई करवाने लगी साथ ही उसकी बताई कसरत भी करने लगाई | जो बीमारी ये सब करने के बाद दस दिन में ही ठीक हो जानी चाहिए थी वो महीने भर तक ठीक नहीं हुई फिजियो थेरेपिस्ट थोडा शंकित होने लगा बोला आप का पुरा चेकअप करता हु और जैसे वो हथोडी से शरीर के कुछ खास बिन्दुओ पर मार मार कर चेकअप करते है करने लगा फिर बोला आप काफी हाइपर है क्या अक्सर आप को शारीरिक रूप से परेशानी होती है | तो मेरी मित्र ने बताया की नहीं वो काफी शांत स्वभाव की थी किन्तु तीन साल के बच्चे के कारण अभी थोड़ी चिडचिडापन आ गया है हा थोड़ी शारीरिक परेशानी अभी एक साल से हो रही है | डाक्टर ने कहा नहीं बात सिर्फ यही नहीं है आप क्या काम करती है उसने कहा फिलहाल कुछ नहीं बच्चे के कारण तीन साल से छोड़ दिया है पहले करती थी |  वो इंटीरियर डिजाइनर थी और आठ साल उसने ये काम किया और बच्चे होने के बाद छोड़ दिया | डाक्टर ने कहा की आप फिर से काम शुरू कर सकती है तो करे आप की समस्या मानसिक ज्यादा है शारीरिक कम | उसने घर आ कर मुझे ये बताया हमने मिल कर सौ खरी खोटी उस डाक्टर को सुनाई की फिजियो हो कर वो हमें मनोवैज्ञानिको की तरह सलाह दे रहा है इलाज नहीं कर सका तो बहाना मार रहा है | फिर भी मैंने अपने सहेली से कहा की अब तो बच्चा स्कुल जाता है तुम घर में ही एक दो काम क्यों नहीं ले लेती तुम्हारी बिल्डिंग में ही कई लोग घर रिन्यू करा रहे है उनसे बात करो और कुछ करो | एक साल बाद ही वो घर बैठ कर अपना काम करने लगी जितना समय मिलता बस उतना ही काम लेती और आराम से घर और अपना कैरियर संभालने लगी | साल भर बाद आ कर मुझसे कहने लगी की जानती हो उस फिजियो ने शायद सही कहा था, मेरी समस्या शारीरिक कम मानसिक ज्यादा थी अब मुझे बार बार वह गर्दन की समस्या नहीं होती है और मेरा चिड़चिड़ापन भी चला गया जो मै बच्चे के कारण समझती थी |
                         
                                 आप को भी सुन कर थोडा आश्चर्य होगा किन्तु ये सच है ये समस्या केवल मेरी मित्र की नहीं है बल्कि भारत की उन लाखो महिलाओ की है जो योग्यता और इच्छा होने के बाद भी परिवार बच्चे के लिए अपना काम बंद कर देती है | कुछ महिलाए है जो बच्चो को परिवार के अन्य सदस्यों के पास छोड़ कर या आया के पास छोड़ कर अपना काम जारी रखती है किन्तु कुछ है जो अपने बच्चो को दूसरो के भरोसे नहीं छोड़ना चाहती और खुद ही अपना कैरियर त्याग देती है | ऐसा नहीं है की वो घुट कर जी रही है या परिवार का दबाव है, वो खुद अपनी इच्छा से ये करती है किन्तु बच्चे के बड़े होने के साथ ही जब उन्हें थोडा समय मिलने लगता है तो उनके अंदर एक खीज एक गुस्सा धीरे धीरे पनपने लगता है अपने ही उस फैसले के खिलाफ जो उन्होंने अपनी ख़ुशी से लिया है  जिसको ज्यादातर महिलाए पहचान ही नहीं पाती है | बार बार  शारीरिक समस्या होना बात बात पर चिढाना हर बात को दिल से लेना कभी कभी गुमसुम हो जाना दूसरो पर चीखने चिल्लाने लगाना हर किसी को सक की नजर से देखना जैसे अनेक लक्षण सामने आते है इस अंदरूनी खीज और दर्द के कारण  | ये समस्या उनमे ज्यादा होती है जिनके लिए काम उनका जूनून होता है 9 से ५ का नौकरी नहीं या जिन्होंने अपने काम के लिए विशेस योग्यता पाने के लिए खासी मेहनत की हो खूब पढाई की हो जैसे डाक्टर, इंजीनयर, आर्किटेक, वकील, अनेक है | काम के प्रति जुनून होने और मेहनत से पाई योग्यता जब बेकार जाती है तो अंदर ही अंदर एक दर्द पलने लगता है जिसे वो खुद ही नजर अंदाज करती चलती है |
             
                                                                       मै कॉलेज में थी तो मेरी राजनीति शास्त्र की लेक्चरर ने एक बात कही थी |  ३४ की उम्र में उनका विवाह हुआ और ३५ में बच्चे , जे एन यु से गोल्ड मेडलिस्ट पीएच डी ,  लम्बा ना छोड़ने लायक कैरियर पर बच्चे की चिंता, इन सब के बीच जब वो हमें पढ़ाने आई तो बोली की रोज यहाँ आने से पहले मुझे खुद से एक युद्ध लड़ना पड़ता है युद्ध होता है एक पश्चिम की नारी और एक भारतीय माँ के बीच, मै दोनों को ही हारता नहीं देखना चाहती है और दोनों ही अपनी जगह सही है ,या तो दोनों रोज थोडा थोडा हारेंगी या ये रोज का द्वन्द एक दिन किसी एक की मौत के साथ बंद होगा | यही कारण है की ये समस्या एक भारतीय माँ के लिए बड़ी हो जाती है वो एक पश्चिम की नारी ( इसका अर्थ यहाँ नारी के अस्तित्व की पहचान बनाने से है ) तो बन गई है पर उसके अंदर की एक भारतीय माँ कही नहीं गई है और वो अपने बच्चे और परिवार को भी उतना ही या कहु थोडा ज्यादा महत्व देती है और जिंदगी एक मोड़ पर उसे दो में से एक चीज चुनने के लिए कह देती है | बच्चा और परिवार उसके लिए साँस लेने जैसा है तो उसका काम और कैरियर उसके लिए जीवन में पानी जैसा है और जीवन के एक मुकाम पर आ कर उन्हें दोनों में से एक चुनना पड़ता है | यानी उस महिला की मौत निश्चित है साँस लेना छोड़ा तो अभी मर जाएगी पानी छोड़ा तो कुछ दिन बाद मर जाएगी | माँ का अस्तित्व या खुद का अस्तित्व दोनों में से एक की मृत्यु तो होगी है |
                        

                      
                                                                        कुछ महिलाए खुशनसीब होती है जिन्हें घर से काम करने का या समय मिलने पर ही काम करने का या अपने  ही काम को एक अलग  रूप में करने का मौका मिल जाता है | जैसे मैंने बताया मेरी मित्र को मिला गया उसी तरह कुछ कंपनिया भी महिलाओ को काम देती है जो वो घर पर ही रह कर पुरा कर दे सकती है और इस तरह के काफी काम भी है जो महिलाए छोटे रूप में घर से ही समय मिलने के अनुसार कर सकती है , इसी कड़ी में मै और मेरी जैसी कई महिला ब्लोगर हैं जिन्हें ब्लॉग द्वारा बड़ी आसानी से घर बैठे लेखन की भूख मिटाने का मौका मिल गया किन्तु कुछ महिलाए ऐसी खुशनसीब नहीं होती है और उन्हें हमेसा के लिए अपने कैरियर, काम, अस्तित्व की तिलांजलि देनी पड़ती है अपने परिवार और बच्चो की ख़ुशी के लिए | सोचिये उनके मन में ये द्वन्द कितना भयानक होगा और वो किस किस रूप में बाहर आता होगा पर वो स्वयं भी इसको नहीं पहचान पाती और ना हममें से ज्यादातर उनकी समस्या को समझने का प्रयास करते है और ना ही उनकी कोई मदद करते है |
                         
                                                              ऐसे में कई बार महिलाए खुद को किसी और काम में व्यस्त करके या कुछ और शौक पाल कर अपना ध्यान बटाने का प्रयास करती है, कुछ इसमे सफल हो जाती है किन्तु कुछ सिर्फ मन बहलावे तक ही सिमित रहती है और अंदर ही अंदर परेशान रहती हैं | दूसरे क्षेत्रो में मिली सफलता भी उनके अंदर के दर्द को कम नहीं करता है और वो किसी ना किसी रूप में बाहर आता रहता है | कुछ है जो उनके दर्द को समझ सकते है और उन्हें सहजता से लेते है किन्तु ज्यादातर उन्हें नहीं समझ पाते है और उन्हें गलत समझ उनकी पीड़ा को और बढ़ा देते है |

                                             

16 comments:

  1. अंशुमाला जी, कुंठा द्वारा इस तरह का शारीरिक विकार उन महिलाओं में देखने को मिलता है जिनका काम जबरन छुड़ा दिया जाये, या किसी दवाबवश उन्हें छोड़ना पड़े. यदि वे बच्चे के लिये स्वेच्छा से काम छोड़ती हैं, तो उन्हें दिक्कत नहीं होती. आखिर बच्चा उन्ही का है, और पिता से ज़्यादा बच्चे को मां की ज़रूरत होती है. हां, यदि घर में महिला की नौकरी या व्यवसाय को महत्व न देकर उसे केवल बच्चा संभालने को कहा जाये, तो ये ग़लत है.
    मेरी बेटी के जन्म के बाद मैने स्वेच्छा से एक साल तक नौकरी से अवकाश ले लिया था, केवल बेटी की देखभाल के मद्देनज़र.

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  2. आपके विचारो से सहमत |कभी कभी अपने लिए गये निर्णयों से भी महिलाये पछतावे का अहसास लेकर बीमारियों का शिकार हो जाती है |शुरू शुरू में घर में रहना बच्चे के साथ रहना उन्हें अच्छा लगता है फिर अपने साथियों को काम पर जाते देख अपने आप में उन्हें हीनता का भाव पैदा क्र देता है ,उनको लगता है की जब तक मै नौकरी न हीं करूंगी समाज मुझे सम्मान नहीं देगा |ऐसा मैंने खुद भी देखा है |फिर से काम शुरू करना ही एकमात्र इलाज है उसका |

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  3. bahut hi bariya hai
    ha khali raho koi kam na karo to dimag me kai tarah k sawal aate hai.

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  4. अन्शुमालाजी यह निर्णय अगर स्वेच्छा से किया जाय तो ज़्यादा तकलीफदेह नहीं होता .....ऐसा मेरा भी सोचना है....

    पर अक्सर यह सब महिलाओं की अपनी इच्छा से ही नहीं होता । शादी के बाद के बाद शहर बदल जाना या देश ही बदल जाना , बच्चे, पारिवारिक हालात कई बातें शामिल हो जाती हैं जिनके चलते महिलाओं का काम छूट जाता है ...वे अकेले पड़ जाती हैं .... और यह स्थिति बहुत पीड़ादायक होती है.... मानसिक ही नहीं शारीरिक समस्याएं भी उन्हें घेर लेती हैं.... मैं यह भी मानती हूँ.....

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  5. क्या समस्या इतनी छोटी हैं जो अपनी इच्छा और अनिच्छा के बीच मे फंसने से नारी के साथ ये सब होता हैं । नहीं ऐसा नहीं हैं । असली समस्या हैं कि बेटियों को पढ़ा लिखा कर भी हमारा समाज उनके लिये विवाह को ही उनकी नियति मानता हैं । अविवाहित बेटी आज भी समाज मे खुले मन से स्वीकार्य नहीं हैं । आज भी घर का काम नारी कि ही ज़िम्मेदारी हैं ।

    हां मे अंशुमाला कि इस बात पर अपनी आपत्ति जताती हूँ कि पढ़ लिख कर भारतीये नारी पश्चिम की नारी बन गयी और भारतीये माँ उसके अन्दर फिर भी रही । माँ का अस्तित्व देश या किसी सीमा रेखा से नहीं बंधा हैं । पश्चिम की नारी कितनी सक्षम माँ होती हैं ये इस बात से ही पता चलता हैं कि वो केवल बच्चे पैदा करने से माँ बनने का सुख नहीं पाती हैं अपितु गोद लेकर भी इस कि अनुभूति का आनद उठाती हैं । पश्चिम मे जितना गोद लेने का प्रचलन हैं यहाँ नहीं हैं क्युकी वहाँ काम काजी महिला ४५ वर्ष के बाद ही बच्चो के विषय मे सोचती हैं और फिर गोद लेती हैं ।

    इस के अलावा पोस्ट मे बहुत कुछ हैं जिस पर सोचना चाहिये
    अंशु लिखती रहे

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  6. anshumalaji sahi bat kah rahi hain aap.mahilaon ko jo jeevan jeena padta hai vah hi unki sharirik pareshaniyon ka sabse bada karan hai kintu use sabhi nazarandaz karte hain aur to aur mahilain khud bhi aisa hi karti hain.bahut vicharniy post.

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  7. अंशुमाला जी,
    बच्चे के पालन पोषण को लेकर समाज ज्यादा अपेक्षाएँ माँ से ही रखता हैं.कामकाजी महिलाओं के बच्चों का विकास सही नहीं हो पाता यह समाज की सोच है ऐसी बातों से ही महिलाएँ खुद को अपराधिनी मानने लगती है.जबकि यह एक भ्रांति है कुछ समय पहले मैं टी वी पर मनोवैज्ञानिक अरूणा ब्रूटा को सुन रहा था उन्होने ऐसे एक प्रश्न के जवाब में कहा कि इस तरह के कई सर्वेक्षण हो चुके है जिससे पता चलता है कि कामकाजी माओं के बच्चे न सिर्फ स्वावलंबी होते है बल्कि उनका मानसिक विकास भी दूसरे बच्चों की तुलना में बेहतर होता है क्योंकि उन पर रोक टोक ज्यादा नहीं होती और खुद काम करने की आदत विकसित हो पाती है.उनका ये भी कहना था कि दूसरे जो कहते है उस पर ध्यान न दें.बच्चे ज्यादा छोटे हो तो थोडी परेशानी हो सकती है लेकिन इस संबंध में कई कंपनियों ने अपनी नीतियाँ बदली है साथ ही घरवालों का सहयोग भी जरूरी हैं.

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  8. सकारात्मक सोच के साथ likhi gayee aapki रचना सराहनीय है .बधाई .

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  9. @ वंदना जी

    बिल्कुल सही कह आप ने की कुंठा उन महिलाओ को होता है जिनसे काम जबरजस्ती छुड़ा दिया जाता है इसलिए मैंने कही भी नहीं लिख है की वो कुंठित होती है मैंने तो ये भी साफ लिख है की वो घुट कर नहीं जी रही है मैंने कहा है की वो दुखी है | अक्सर हम कहते है की कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है ठीक है की हम कुछ पा कर खुश है पर जो उसके बदले में खो दिया वो भी हमारे लिए प्यारी ही होती है उसके खोने का दर्द तो होता है है ना | बच्चे के जन्म के एक दो साल तक तो इस का एहसास नहीं होता है क्योकि इतना समय ही नहीं होता किन्तु जब बच्चे बड़े हो जाते है और हमें समय मिलता है तब इस दर्द का पता चलता है |



    @ शोभना जी

    धन्यवाद | आप ने लेख में एक नया बिंदु डाल कर उसे आगे बढ़ा दिया |


    @ भारतीय नागरिक जी

    नहीं ये कुंठा नहीं है |


    @ निवेदिता जी

    धन्यवाद |



    @ मोनिका जी

    ज्यादातर तो स्वेच्छा से ही करती है कभी बच्चे की परवरिश के लिए कभी आप के बताये स्थितियों के कारण पर अपनी प्यारी चीज खोने की तकलीफ तो होती ही है ना , चाहे स्वेच्छा से करे या किसी दबाव में |

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  10. @ रचना जी

    आप की बात अपनी जगह सही है की ये समस्या काफी बड़ी है और उसके कई बिन्दुए है यहाँ मैंने उस बड़ी समस्या के सिर्फ एक बिंदु को ही लिया है जहा महिलाए अपनी इच्छा से काम छोड़ती है बाकि चीजो के बारे में मैंने इसलिए नहीं लिखा है |

    @ एक पश्चिम की नारी ( इसका अर्थ यहाँ नारी के अस्तित्व की पहचान बनाने से है )

    जैसा की मैंने लिखा है की ये शब्द मैंने अपने लेक्चरर के लिए है किन्तु यहाँ उसका क्या मतलब है वो भी बताने का प्रयास किया है | हा माँ की ममता को हम किसी सीमा में नहीं बांध सकते है किन्तु ये भी सत्य है की हम भारतीय माँ अपने बच्चे को लेकर कुछ ज्यादा ही पोसेसिव रहते है और काम छोड़ने की एक वजह ये भी होती है अब भारत में भी कई माँ अपने बच्चो को क्रश में या आया के भरोसे छोड़ कर काम पर जाती ही है किन्तु आज भी ज्यादातर माँ इन पर भरोसा नहीं करती है उनमे से एक मै भी हूँ | यहाँ पर पश्चिम की नारी और भारतीय माँ कहने का मेरे यही अर्थ था |

    रचना जी एकल महिलाओ द्वारा बच्चे गोद लेने अब भारत में भी काफी प्रचलित हो गया है और उनकी संख्या दिन पर दिन बढ़ रही है अब इसमे कोई क़ानूनी अड़चन भी नहीं आती है पहले की तरह | ना केवल महिलाए अब तो एकल पुरुष भी बच्चे गोद ले रहे है दो लोगो को तो मै भी जानती हु जो फैशन डिजाइनर है | समय के साथ भारत में भी ये आम बात हो जाएगी |

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  11. अंशुमाला
    केवल एकल महिला नहीं विदेशो मे विवाहित महिला भी गोद लेती हैं बच्चे और केवल इस लिये क्युकी वो माँ बनना चाहती हैं । माँ बनने के लिये बच्चे पैदा करना जरुरी नहीं हैं । ये भारतीये सभ्यता हैं जहां आज भी नारी को कंडीशन किया जाता हैं कि शादी करने मे और माँ बनने मे ही उसकी सम्पूर्णता हैं । भारतीये सभ्यता मे कोई बुराई नहीं हैं बुराई हैं हमारी अपरिपक्व सोच मे ।
    जो लडकिया शादी कर लेती हैं किसी भी दबाव के तहत वही बाद मे ज्यादा परेशान रहती हैं । हम खुल कर अगर अपने घर मे अपने अभिभावकों से बात कर ले और अपनी सोच को सही कर सके तो ही हम खुश रह सकते हैं ।


    बाकी राजन ने बिलकुल सही कहा हैं अपने कमेन्ट मे ।

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  12. @ शालिनी जी

    धन्यवाद |


    @ राजन जी

    @ कामकाजी महिलाओं के बच्चों का विकास सही नहीं हो पाता |

    मै खुद इस बात को नहीं मानती हु मुझे लगता है की बच्चे के सही विकास के लिए हम कोई नियम नहीं बना सकते है काम कर रही महिला के बच्चे अच्छे भी हो सकते है और बुरे भी वैसे ही घर और बच्चे की देखभाल में अपना जीवन देने वाली महिला के भी बच्चे अच्छे या बुरे हो सकते है | यहाँ समस्या ये है की परिवार में कोई और है नहीं और बाहर के किसी व्यक्ति पर बहुत सारी महिलाए बच्चो की देखभाल का जिम्मा नहीं देना चाहती | आप को बताऊ मै निजी रूप से ऐसे कई महिलाओ को जानती हु जो बाहर काम करती है और उनके बच्चे बड़े शैतान है पर मै इस बात की भी गारंटी देती हु की वो महिलाए यदि घर पर रह कर बच्चे पालती तब भी उनके बच्चे उतने ही शैतान और संस्कार विहीन होते |


    @ शिखा जी , शिवकुमार जी

    धन्यवाद |

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  13. अंशुमाला जी , बहुत ही विचारणीय मुद्दे की बात आप ने की है. घर गृहस्थी भी जीवन की एक अनिवार्यता है और इसे भी नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता और दूसरी ओर घर में बैठ कर सिर्फ बोरे होना उचित नहीं. वैसे बच्चे थोड़ा बड़े हो जाय और स्कूल जाने लगे तो फिर समय अपने आप निकल आता है. हा , थोड़ा सामंजस्य तो बिठाना ही पड़ता है.......... बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.

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  14. एक बात मेरे मन में आती है।
    यह द्वन्द केवल महिलाओं के मन में होता है।
    पुरुषों के मन में नहीं।

    समस्या गंभीर है
    पुराने जमाने में महिलाओं के लिए घर चलाना २४/७ का काम था।
    आज इतनी सुविधाएं हैं कि घर का सारा काम पूरा करने बाद भी समय बचता है।
    आजकल इंटरनेट और कंप्यूटर के होते हुए, पढी लिखी महिला को घर बैठे बोर होने की कोई आवश्यकता नहीं है।
    कई उपाय और अवसर हैं अपने समय का सदुपयोग करने का।
    पतियों को समर्थन और प्रोत्साहन देना चाहिए।

    मैं सोचता हूँ कि जब तक कोई आर्थिक मज़बूरी न हो, जब तक बच्चे छोटे होते हैं, महिलाओं के लिए कोई पार्ट टाईम नौकरी ज्यादा उपयुक्त रहेगा। परेवार की भी भलाई होगी, बच्चों का भी खयाल रखा जा सकता है और समय का भी सदुपयोग होगा

    हाँ, यदि किसी ने मर्दों से यह पूछ लिया, कि क्या आप अपनी अधिक होन्हार बीवी जो आपसे ज्यादा कमा सकती है, उसे कोई फ़ुल टाईम नौकरी के लिए भेजकर स्वयं कोई पार्ट टाईम नौकरी करके घर का खयाल रखने के लिए तैयार हैं तो मैं जानता हूँ इसका क्या उत्तर मिलेगा!

    लिखती रहिए। हम आगे भी यहाँ पढने के लिए आते रहेंगे।
    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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