कितनी बड़ी विडंबना है ये हमारे देश की , की हम जिस बेटी को पैदा होते ही एक बोझ समझ बैठते हैं उसी बोझ के साथ हम सारी जिंदगी भी बिताना चाहते हैं ! बचपन से लेकर मरने तक वही लड़की अलग -अलग रूप ले कर हमारा साथ भी निभाती चलती है ! जिसके बिना आदमी एक पल भी नहीं गुजार सकता और कुछ लोग उसी बेटी का अपने घर मै आगमन करते ही कभी अपनी मुसीबत , कभी बोझ समझ कर जीते जी मार डालना चाहता है ! कितने नासमझ है वो इन्सान जो इतनी बड़ी हकीकत को नहीं समझ पाते या फिर ये कहो की समझना ही नहीं चाहते और उससे अपना पीछा छुडाना चाहते है ! उनकी नकारात्मक सोच उसका उसके दहेज़ को लेकर सोचने वाली परेशानी और समाज की अन्य कुरीतियों को लेकर उसके साथ जोड़ कर सोचना उसके कमजोर व्यक्तित्व का परिचय ही तो देती है ! और उसकी संगिनी उसके साथ हर हाल मै रह कर भी एसा कभी नहीं सोचती वो हिम्मत से उसका सामना करने को हमेशा तैयार रहती है पर उसे मारने को कभी नहीं कहती ! आदमी क्या इतना कमजोर और आलसी भी हो सकता है की जिंदगी मै जो परेशानी बाद मै आने वाली हो उससे डरकर वो एक एसे मासूम का खून बहा दे जिसने अभी दुनिया मै कदम भी नहीं रखा है ? ये भी तो हो सकता है नहीं एसा हो भी रहा है की वही बेटी आज माँ - बाबा का सहारा बनी हुई है और उनकी परवरिश कर रही है आज बेटियाँ - बेटों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रही हैं उसमे इतनी ताक़त है की वो अपने साथ अपने पुरे परिवार को पाल सकने की हिम्मत रखती है !
अब देखो न बेटियां बचपन से ही अपने एहसास को किस कदर बनाये रखती है कभी बहन बन कर भाई का साथ देती है तो कभी सुख - दुख मै माँ - बाप की भावनाओं को समझती है ! और फिर शादी के बाद अपने पति के परिवार को भी वही ख़ुशी देती है और जीवन भर उसका साथ भी निभाती है ! फिर ये सब करके वो एसा कोंन सा गुनाह करती हैं की कुछ के दिलों तक उनकी ये भानाएं पहुँच ही नहीं पाती और उनके दिल मै इनको मारने का ख्याल आ जाता है ! इससे तो यही लगता है की जो भी इसकी हत्या के बारे मै सोचता होगा या तो वो दिमागी तोर से ठीक नहीं होता होगा या फिर उसके दिल मै उसके प्रति कोई भावना ही नहीं होती होगी वर्ना जो इतनी बखूबी से अपना कर्तव्य निभाती हो उसे जन्म लेते ही मार डालने का ख्याल उसके दिल मै कभी नहीं आ सकता !
हमें ही मिलकर इसके विरुद्ध आवाज़ उठानी होगी नहीं तो एसी बहुत सी मासूम जानें जो जन्म से पहले ही कुचल दी जाती हैं मरती रहेंगी सिर्फ हमारी नकारात्मक सोच की वजह से ही ! हमें अपनी सोच बदलनी होगी जिससे उनपर होने वाले अत्याचारों को रोका जा सके ! क्युकी अगर बेटियों का आस्तित्व ही दुनिया से खत्म होने लगेगा तब तो धीरे - धीरे सृष्टि का भी तो अंत हो जायेगा क्या ये बात कभी नहीं सोचा हमने क्युकी अकेले बेटे से तो घर को नहीं बनाया जा सकता उसके लिए बेटियों का होना बहुत जरुरी है ! इसीलिए हमें सच्चाई को न झुठलाते हुए उसका सामना करना होगा और बेटियों को भी बेटों की तरह बराबर का सम्मान देना ही होगा ! ये बात कहने में उस वक़्त भी गलत नहीं थी जब बेटियों को न .............के बराबर समझा जाता था की उसका अधिकार तब भी उतना ही था जितना उसने आज अपने हक से हासिल किया है ! और अगर हम ये कहे की अगर आदमी शरीर है तो औरत उसकी आत्मा फिर उनको अलग कैसे आँका जा सकता है ? मेरा कहने का तत्प्राए ये है की दोनों की तुलना एक बराबर ही होनी चाहिए जितना हक बेटे का उतना ही बेटी का भी हो और अगर इनके अनुपात मै एसे ही अंतर आता गया तो वो दिन दूर नहीं जब इस सृष्टि का ही अंत हो जाये ! इसलिए उसके एहसास को समझो और उसे भरपूर प्यार दो , जिससे उसके दिल से प्यार का शब्द ही खत्म न हो जाये और हम अपने इस कृत्य को करके बाद मै पछताए ! इसके लिए हमे उसे और उसके प्यार और बलिदान को समझना होगा और एक सकारात्मक सोच रखनी ही होगी ! जिसे वो सबके साथ अपना ये प्यार इसी तरह बनाये रखने की हिम्मत न खो दे ! बाक़ी आप तो अपने आप समझदार हैं दोस्त !