नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

December 30, 2010

नया साल आप को शुभ हो ।

साल जा रहा हैं । क्या साल वाकई चला गया ?? नहीं मुझ नहीं लगता हाँ ये जरुर लगता हैं कि

जिन्दगी
एक और सीढ़ी ऊपर चली गयी अनुभव एक और साल परिपक्व होगये बस यही हुआ हैं साल का क्या हैं एक गया तो दूसरा दस्तक देता हैं

नारी ब्लॉग पर साल भर मे क्या हुआ ?? कुछ खास नहीं बस ब्लॉग चलता रहा यही हुआ । कारण
हम अगर नारी आधारित विषयों पर लिखते हैं तो वो नकारात्मक ही कहा जाता हैं वही अगर कोई ब्लोगर साल भर मे अपने ब्लॉग पर सामाजिक / नारी आधारित विषयों पर एक पोस्ट भी लगा देता हैं तो प्रगतिशील और सकारात्मक लेखन की क्षेणी मे आता हैं ।
नारी ब्लॉग पर किसी भी पोस्ट मे कुछ भी लिख दो लोगो को लगता हैं ये गलत हैं क्युकी इससे समाज बिगड़ जाएगा ।

कोई बात नहीं हमने सोचा बिगड़ जाने दो कम से कम संचार ने एक माध्यम दिया हैं हम अपनी बात कह लेकौन यहाँ हमारी बात को ले कर अपनी जीवन शेली बदलने वाला हैं !!!!! । देश विदेश तक अगर हमारी बात जा सकती हैं तो क्या बुरा हैं अपनी बात कहने मे
चलिये अब हम अतिवादी होगयेसदियों से दबी हुई बुराईयाँ किस "वाद " के तहत आती हैं नहीं बताया जाता हैं क्युकी वो "टेकन फॉर ग्रांटेड " मानी जाती हैं
ख़ैर ब्लॉग बन गया और चल भी रहा हैं तो इस मे सहयोग होगा ही सदस्यों का अन्यथा कोई भी अपना नाम जब चाहे हटा ही सकता हैंकुछ सदस्य नाराज भी होती हैं क्युकी उनको लगता हैं " प्यार से बात कि जा सकती हैं समझया जा सकता हैं " । मेरा तर्क एक ही होता हैं किस के घर मे माँ नहीं होती और किसी कि माँ प्यार से नहीं समझातीजब कोई अपनी माँ के प्यार और दी हुई शिक्षा को भूल जाता हैं महिला अधिकारों के सम्बन्ध मे बात होते ही तो वो हमारे प्यार और स्नेह को क्या समझेगाये आभासी दुनिया हैं हम आभासी दुनिया मे क्यूँ आये ताकि मन की कह सके और निश्चिंतता से आगे बढ़ सके । अपने सामाजिक सरोकारों से ही कहना होता तो बाहर के समाज मे कम लोग हैं क्या ?/ रिश्तो का निर्मम प्रदर्शन यहाँ लोगो को रिश्तो मे तो बाँध नहीं रहा हां एक दूसरे के प्रति निर्मम जरुर कर रहा हैं ।
हम यहाँ एक दूसरे को टिपण्णी प्रति टिपण्णी से खेमो मे बांधते हैं । जब की इन्टरनेट की सुविधा से हम देश की सीमाए लाँघ रहे हैं फिर रिश्तो मे आभासी दुनिया मे बंधने से क्या हासिल होगा । बस इतना ही की आज एक दूसरो को पेडस्टल पर खडा करके और कल डोर मेट की तरह उस पर पैर पोछ कर निकल जाए ।

आभासी दुनिया मे अपनत्व खोजने से बेहतर हैं जो अपने हैं उनसे अपने संबंधो को सुधरा जाए ताकि आभासी दुनिया मे रिश्तो को नहीं शब्दों और मुद्दों को जिया जाए।



नारी ब्लॉग का मुद्दा हैं "समाज मे नारी कि दोयम स्थिति " और "कानून और संविधान मे दी हुई समानता "
नारी ब्लॉग पर लिखने के लिये जब कोई मेल कर के अपनी इच्छा रखता हैं तो मुझे व्यक्तिगत ख़ुशी होती हैं

लोग कहते हैं कि मै फ़ोन और मेल करके टिपण्णी जुटाती हूँ ऐसा कह कर वो इस ब्लॉग के नियमित पाठको का अपमान करते हैं

नारी ब्लॉग के वो पाठक जो २५-३५ वर्ष कि उम्र के हैं जब हमारी पोस्ट से सहमत होते हैं तो मन मे आह्लाद होता हैं क्युकी जागरूकता अगर इस नयी पीढ़ी मे आगयी तो आने वाला समाज बराबरी कि बात को उनको मै व्यक्तिगत धन्यवाद देना चाहती हूँ

December 29, 2010

आधुनिक बाबागिरी



2010 खत्म होने वाला है और हम उस चौराहे पर खड़े हैं यहां से यह जानना कि शांति और अमन के लिए हमें किस सड़क पर अपने कदम आगे बढ़ाने चाहिए नहीं मालूम। हर तरफ एक अराजकता का सा माहौल है। टीवी में बाबाओं की भीड़ है। 24-25 साल के युवाओं को जिन्हें देश के उत्थान के लिए मेहनत करनी चाहिए, मंच पर बैठ कर प्रवचन कर रहे हैं, क्योंकि जानते हैं कि पैसा कमाने का यह सबसे सरल माध्यम है। लोग उन पर फूलों की वर्षा कर रहे है और वे बैठे इस तरह मंद-मंद मुस्करा रहे हैं मानों कह रहे हो तुमसे बड़ा मूर्ख मैंने आज तक नहीं देखा, जो मुझ जैसे नकारे इंसान पर फूलों की वर्षा कर रहा हो। बाबाओं के ये तथाकथित भक्त बाबाओं पर फूल बरसाने के लिए जितने पैसे खर्च करते हैं उतने में कम से कम सौ बच्चो की पढ़ाई का खर्च उठाया जा सकता है।

आज बाबगिरी एक व्यापार बन गई है। कम समय में ज्यादा पैसे कमाने का उत्तम साधन। बस आपके पास वाक् कला होनी चाहिए। आगे का काम पी आर डिपार्टमेंट देख लेता है कि लांचिग कब कहां और किस चैनल में किस तरह करवानी है, जिससे उनके क्लाइंट को हिट होने में देर न लगे। और भक्त उनकी चिंता, उनकी चिंता ही मत करिए, वो तो आसानी से मिल जाते है। चैनलों पर आने वाला लगभग हर बाबा करोड़ों में खेल रहा है। पहले बाबागिरी करने की एक उम्र हुआ करती थी, कुछ नियम थे, जिनका पालन करना होता था, परंतु आज सबकुछ खत्म हो गया है। किसी अन्य व्यवसाय की तरह यह भी एक व्यवसाय बन गया है। बाबा लोग ईश्वर प्राप्ति का साधन बताने की जगह यह बताने लगे हैं कि आपकी लाटरी कैसे निकलेगी। इसके किए बकायदा पैसे वसूले जाते हैं और लाटरी न लगने पर शिकायत करने पर ये बाबा शिकायतकर्ता के शोषण पर उतर आते हैं। एक आध हिम्मतवाली वाली महिला पुलिस में शिकायत करती है तो पुलिस हरकत में भी आती है। परंतु उसके बाद उस बाबा का क्या होता है कोई नहीं जानता।
बाबाओं के इर्द-गिर्द स्त्रियों का जमावड़ा पहले भी होता था, पर इस तरह की घटनाएं इस स्तर पर नहीं होती थी, जिस स्तर पर आजकल सुनने में आ रही है। जहां तक मैं समझ पा रही हूं आजकल के बाबा पहले के बाबाओं तुलना में ज्यादा यंग हैं। उनके लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना कठिन होता है, परंतु विवाह करके वे अपनी छवि सांसारिक व्यक्ति की भी नहीं बनाना चाहते क्योंकि इससे बाबागिरी की छवि को ठेस पहुंचती है। परंतु मानसिक रूप से वे इतने परिपक्व भी नहीं होते कि स्त्रियों के साहचर्य में रह कर भी वे स्वयं को स्त्री मोह से मुक्त रख सकें। फलस्वरूप इस तरह के हादसे होते हैं।

समय-समय पर होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के प्रति स्त्रियां इतनी पागल क्यों होती हैं कि वे घर का काम-काज छोड़ कर इनके पीछे लग जाती हैं।। मटकियां उठा कर पूरे मोहल्ले का चक्कर लगाती हैं। बाबाओं के पैर दबाती है और अन्य इसी तरह की हरकतें करती हैं। ये महिलाएं बाबाओं की जितनी सेवा करती हैं उतनी सेवा तो मैंनें कभी इन्हें अपने घर के बुजुर्गों की करते भी नहीं देखा। आखिर इस तरह से वे क्या हासिल कर लेती हैं। मन की शांति, परिवार की शांति और कुछ और। मुझे नहीं मालूम। मोहल्ले या सोसायटी में होने वाले इन अनुष्ठानों से मुझे कभी कोई शांति हासिल नहीं हुई, उल्टे तकलीफ जरूर हुई है क्योंकि गांव भर को सुनाने के लिए ये लाउडस्पीकर का प्रयोग करते है जिससे बूढ़े-बच्चे और बीमारों को बहुत तकलीफ होती है।

बाबाओं का ये नेक्सस जो बड़ी तेजी से समाज में अपने पांव पसार रहा है इसे तोड़ने और अपने घर की महिलाओं को इससे बचाने के लिए हमें खुले मन से इस विषय पर विचार करना होगा। मैं धर्म विरोधी नहीं हूं, पर नकली धर्म के नाम पर यह व्यवसाय जिस तरह अपने पांव पसार रहा है मैं उसकी विरोधी हूं। दोष सिर्फ बाबाओं का नहीं है, मानसिक रूप से असुरक्षित समाज भी कहीं न कहीं इसका दोषी है।

-प्रतिभा वाजपेयी.

December 28, 2010

बिना संकलक के हिंदी ब्लॉग पढना बहुत आसान हैं

बिना संकलक के हिंदी ब्लॉग पढना बहुत आसान हैं
अपने अपने ब्लॉग के फोलोवर के फोटो को क्लिक करिये और उस पर दिये हुए ब्लॉग पर जा कर उनको पढिये । इतने ब्लॉग मिल जायेगे की आप पढ़ नहीं पायेगे
हर फोलोवर के नाम के अपने ब्लॉग के साथ साथ उन ब्लॉग का नाम भी होता हैं जिसको वो फोलो कर रहे हैं
सो संकलक की सुविधा के इतर ब्लॉग पढिये और जब अपने फोलोवर के पढ़ चुके तो दुसरो के फोलोवर के पढिये

December 24, 2010

क्यूँ क्या कहते हैं प्रयास जारी रहे मेरा ???

पाठको की सुविधा के लिये आग्रह हैं पढ़े सबको और पढते रहे । मै अपनी हर संभव कोशिश करती हूँ की जिस जगह हूँ और जितना कर सकूँ नारी को आगे ले जाने के लिये कर दूँ । कोशिश छोटी ही सही पर कर रही हूँ । लोग समझाते हैं की ब्लॉग से बहार निकल कर करिये गाव देहात मे जाए वहाँ आन्दोलन चलाये । लेकिन सवाल ये हैं की हम जहां हैं वही क्यूँ ना कुछ करे ।

क्यूँ क्या कहते हैं प्रयास जारी रहे मेरा ???

December 23, 2010

चिंतन

आज प्रवीण शाह की पोस्ट पढी । एक लम्बा कमेन्ट देने का मन हुआ पर फिर लगा अपनी बात यहाँ कहूँ । प्रवीण शाह की पोस्ट को पढ़ कर बस एक "आह " जैसा कुछ निकला ।

आज कल डी डी ऐ फ्लेट के फॉर्म भरे जा रहे हैं सो कुछ दिन सोच रही थी की अगर डी डी फ्लेट के फ्लैट केवल ३० वर्ष के लिये ही दिये जाये और फिर वो सरकार को वापस हो जाए तो क्या ये संभव हैं की जो ब्लैक मनी का धंधा होता हैं वो ख़तम हो जाएजो इल लीगल कंस्ट्रक्शन फ्लैट के अन्दर किया जाता हैं वो बंद हो जाएऔर जो माता पिता का शोषण होता हैं वो बंद हो जाए

३० साल के लिये सरकार रहने की सुविधा उपलब्ध करा दे और उसके लिये एक मुश्त पैसा लेलेलेकिन जो पैसा दे मिलकियत उसकी ही रहे ३० वर्ष तकहां बहुत से लूप होल हैं मेरी सोच मे पर वो सब administrative हैं

कहीं पढ़ा था भारत मे संचित वेअल्थ बहुत हैं और ये एक प्रकार का दुर्गुण होता हैंहमारे यहाँ बच्चे माँ पिता की चीजों पर अपना अधिकार समझते हैं और उनके लिये आपस मे लडते हैं चाहे लड़की या लड़कामेरा मानना हैं की जो चीज़ हमने कमाई ही नहीं वो हमारी हुई कैसे ??

हमारे यहाँ विवाह के समय मायके का आर्थिक रुतबा देखा जाता हैं ताकि लड़की को कब तक मिलता रहेगा ये सुनिश्चित किया जा सकेअगर लड़की के भाई नहीं हैं { यानि बहने या बहने } तो कयी बार शादी नहीं होती हैं क्युकी माँ पिता के बाद कौन करेगा ??

पिछले ३० साल मे जो लोग माँ पिता बने हैं उनकी सोच मे "कम संतान " जरुरी थी ना की लड़का या लड़कीहम दो और हमारे दोअब जिनके दो लडकिया हैं और वो उनकी शादी कर चुके हैं तो अपनी परम्परागत सोच के तहत वो लड़की के घर नहीं रहतेदोनों बहने अगर अपनी बुद्धि से चलती हैं तो संभव हैं झगडा ना हो पर अगर दोनों के पतियों मे नहीं बनती हैं तो बहुत संभव हैं झगडा होअगर दोनों मे से कोई एक भी माँ पिता का ख़याल रखता हैं तो उनकी सम्पत्ति पर अपना अधिकार समझता हैं

उसके विपरीत अगर एक बेटा और एक बेटी हैं तो बेटा और बहु को लगता हैं की सम्पत्ति उनको मिलनी चाहिये और क्युकी बेटी की शादी मे दहेज़ दिया गया सो उसको तो बिलकुल नहीं

ऐसे मे अगर सम्पत्ति पर सरकार का अधिकार हो मृत्युं के बाद तो क्या आप को लगता हैं कुछ सुधार होगा ?? क्या हम अपने बच्चो के लिये "जुटा जुटा " कर उनको अपने ही लिये एक "समस्या " बना रहे हैं

मेरे अपने घर मे मेरे बड़े मामा जी एक लम्बे समय तक अविवाहित रहे५६ वर्ष की आयु मे उन्होने विवाह किया और ६० वर्ष की आयु मे एक बच्चे को अनाथालय से गोद लिया७२ वर्ष की उम्र मे मामा जी नहीं रहे पर उन्होने अपनी चल और अचल संपत्ति की विल अपनी पत्नी के नाम की लेकिन उसमे साफ़ लिखा हैं की केवल पत्नी के जीवित रहने तक , उसके बाद सब कुछ उनके दत्तक पुत्र का होगाहमारे मामा जी अपने सगे भाई के भी बच्चे हैं और अपनी बहिन के भी पर उन्होंने हमेशा कहा थी की वो अपनी सम्पत्ति किसी अनाथ को देकर जायेगे और उन्होंने दीघर मे इस बात को ले कर बहुत नुक्ता चीनी हुई थी पर मुझे व्यक्तिगत रूप से हमेशा उनकी बात सही लगी और आज एक ऐसा बच्चा जिसके कोई नहीं हैं उनके पैसे से पढ़ लिख कर अपनी जिन्दगी बना रहा हैं

हम हमेशा अपने बारे मे सोचते हैंसंग्रहण करके अपने परिवार को देने की सोचते हैं और शायद यही कारण की हमारे परिवार हो कर भी पारिवारिक धरातल पर हम सब के हाथ खाली होते होते हैंएक मुखोटा लगा कर हम अपने बच्चो के अवगुणों पर { जो की कभी हमारे भी थे क्युकी बच्चे हम भी थे किसी के } पर्दा डालते रहते हैं


बेटा या बेटी से कोई फरक नहीं पढ़ने वाला हैंसमस्या बहुत गंभीर हैं

December 20, 2010

एक नज़र इधर भी

ज़रा इस पर भी नज़र डालिये । अभी काम बाकी हैं फिर भी प्रयास कैसा हैं बताइयेगा जरुर ।
लिंक

December 16, 2010

नीरा यादव और नीरा राडिया मे किसको ज्यादा और कितने जूते मारने का मन करता हैं ?



नीरा यादव और नीरा राडिया मे किसको ज्यादा और कितने जूते मारने का मन करता हैं ? दो दिन से इनपर लिखना चाहती थी पर समय का अभाव हैं । हां अभी कोई आकर ये ना कह दे महिला ही महिला कि दुश्मन हैं !!! । पर डरना क्या जी ये मंच तो बना ही इसीलिये हैं

आज एक पोस्ट पर साफ़ शब्दों मे इनकी पिटाई कि गयी और मैने सोचा कुछ अंश अपने पाठको और सदस्यों को भी पढवा दूँ

"पप्पू, मुन्नी, शीला के गानों ने हक़ीक़त में जितने पप्पू, मुन्नी, शीला है, बिना बात उनकी नाक में दम कर दिया...कई बार असल ज़िंदगी में भी कुछ लोग इतने बड़े खलनायक या खलनायिका हो जाते हैं कि उनके ऊपर बच्चों का नाम ही रखना बंद हो जाता है...ये एक स्वाभाविक प्रक्रिया है...आपने गौर किया होगा कि देश में हाल में उजागर हुए दो बड़े घोटालों में महिलाओं का नाम आया...नीरा राडिया और नीरा यादव...कॉरपोरेट लॉबिंग की क्वीन नीरा राडिया ने टू जी स्पेक्ट्रम में ऐसा जलवा दिखाया कि पावरफुल से पावरफुल हस्तियां भी उनके सामने घुटनों के बल रेंगती नज़र आईं...क्या कॉरपोरेट, क्या सियासत और क्या मीडिया...हर जगह नीरा राडिया ने अपने पपलू फिट किए हुए थे...

दूसरी महिला यूपी की पूर्व नौकरशाह नीरा यादव हैं...नीरा यादव ने नोएडा की सर्वेसर्वा रहते सोना उगलने वाली ज़मीन अपने चहेतों और उद्योगपतियों को कौड़ियों के दाम ऐसे बांटी कि सारे नियम-कायदे ताक पर धरे रह गए...नीरा राडिया के ठिकानों पर सीबीआई छापेमारी कर रही है...नीरा यादव को सीबीआई की विशेष अदालत ने चार साल की सज़ा सुनाकर जेल भेज दिया...लेकिन नीरा यादव को चार दिन में ही हाईकोर्ट से ज़मानत मिल गई..."
पोस्ट खुशदीप कि हैं उसको पढ़ आयेविचार वहाँ दे आये हमेशा कि तरह बेहतरीन है
यहाँ कमेन्ट मे बस इतना बताये
कितने जूते मारेगे यहाँ बतायें

चित्र आभार


मै १००० जुटे मार कर एक गिनना चाहूंगी । ये कहना बेमानी हैं कि हम सब "भ्रष्ट " हैं इस लिये जूते नहीं मार सकते क्युकी जब तक हम जूते मारेगे नहीं तब तक हम मै से किसी को भी ये डर नहीं होगा कि कोई हमे सजा भी देसकता हैं

December 13, 2010

घरेलू हिंसा

घरेलू हिंसा एक ऐसी स्थिति जिसका शिकार महिलाओं को होना पड़ता है किन्तु जिसकी शिकायत करने के मामले में पढ़ी-लिखी हो या अनपढ़ एक सी ही हैं.अनपढ़ की तो समझ में आती है कि वह आज भी पुरानी रुढियों में जकड़ी है और अपने पति को देवता और भाग्यविधाता मान कर चलती है इसलिए वह यह कहती हुई[ कि हमार घरवाला हमें मारे पीटे,कूटे तोहे क्या मतबल] इतनी विचित्र नहीं लगती जितनी विचित्र एक पढ़ी लिखी नारी यह कहती [भाग्य ने हमें जो दिया सह रहे हैं,गुज़ार रहे हैं] लगती है.साथ ही यह भी है कि केवल आदमी ही औरत पर अत्याचार नहीं कर रहे औरतें भी हैं जो औरतों को मारती पीटती हैं और तब भी औरतें अपनी सहनशक्ति का परिचय देती हुई हंसती मुस्कुराती कार्य करती हैं.अरे भाई औरतों में यदि सहन शक्ति है तो अत्याचार से निबटने की भी शक्ति है.मैं नहीं कहती कि आप हर झगडे पर थाने पहुँच जाओ या हर मार-पिटाई पर पीटने वाले को कोर्ट में घसीट लो क्योंकि मैं भी जानती हूँ कि कभी कभी गुस्से में हाथ उठने का मतलब पीटना नहीं होता वो तो कभी अपनी नाकामी की वजह से भी हो जाता है किन्तु जब ये रोज़ की बात बन जाये तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए और कानून द्वारा दी गयी सहायता का इस्तेमाल कर स्वयं की शक्ति प्रदर्शित कर स्वयं को भी बचाना चाहिए और अन्यों के समक्ष भी उदाहरण पेश करना चाहिए."अंशुमाला"जी के विशेष आग्रह पर मैं आज आपके समक्ष घरेलू हिंसा से संरक्षण विधेयक २००५ से सम्बंधित कुछ विशेष जानकारी लेकर प्रस्तुत हुई हूँ आशा करती हूँ कि आप इससे अवश्य लाभान्वित होंगी ;
इस विधेयक को १३ सितम्बर २००५ को अधिनियम एक्ट का रूप दिया गया है .यह एक्ट महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाया गया एक ठोस व व्यावहारिक कदम है.यह ज़रूरी नहीं कि सिर्फ पत्नी ही घरेलू हिंसा की शिकार हो इसीलिए अधिनियम में पत्नी के अलावा बेटी बहन सास माँ भाभी दादी नानी नौकरानी आदि सभी को शामिल किया गया है .अब यदि आप यह सोच रही हैं कि आखिर यह घरेलू हिंसा क्या है तो अधिनियम कीधारा ३ कहती है "परिवार में किसी भी बालिका या महिला के साथ पुरुष वर्ग या महिला वर्ग द्वारा किया जाने वाला हर ऐसा कार्य पारिवारिक हिंसा माना जायेगा जिसमे महिला या बालिका का जीना मुश्किल हो जाये या उसे मानसिक शारीरिक कष्ट हो ,उसके साथ अमानवीय व अनैतिक आचरण या क्रूरता करना भी हिंसा माना जाता है ".
इसकी धारा ४ के अनुसार ,"कोई भी व्यक्ति जिसे घरेलू हिंसा की जानकारी मिले वह सम्बंधित संरक्षण अधिकारी को सादे कागज पर शिकायत दे सकता है ".
अधिनियम की धारा २० के अनुसार मजिस्ट्रेट प्रताडिता को मुआवजा दिला सकता है व अंतरिम आदेश जारी कर संरक्षण अधिकारी को अनुपालन करने के आदेश दे सकता है .संरक्षण अधिकारी को महिला की चिकत्सीय जाँच करने ,महिलाओं को कानूनी मदद और सुरक्षित आवास दिलाने की जिम्मेदारी सोंपी गयी है .
धारा ३१ के अनुसार संरक्षण अधिकारी के कानूनी व अंतरिम आदेश का अनुपालन न होने पर आरोपी को एक साल की सजा या २०००० रूपये का जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है .
इस प्रकार महिलाओं की स्थिति कानून द्वारा सुदृढ़ की जा रही है किन्तु ये होगी तब जब महिलाएँ खुद अपनी स्थिति सुदृढ़ करेंगी .क्योंकि ये तो सभी जानती होंगी कि "god helps those who helps themselves ".अर्थार्त भगवान उसकी मदद करता है जो अपनी मदद आप करता है. महिलाओं के अधिकारों के लिए

धर्म ग्रन्थ , समाज के नियम , कानून और संविधान , चुनाव सही करे

भारतीये समाज के अपने नियम हैं जो व्यक्ति से व्यक्ति , जाति से जाति , धर्मं से धर्म और लिंग से लिंग के लिये फरक हैं । ये नियम अपनी सुविधा के लिये जब चाहे बना लिये जाते हैं और जो इनके विरोध मे खडा होता हैं उसको "रीबैल " यानी " परम्परा भंजक " कहा जाता ।

समाज के नियम कानून और संविधान से हमेशा इतर होते हैं क्युकी कानून और संविधान मे एक से नियम होते हैं सब के लिये ।

क्यूँ हम सब कानून और संविधान कि बात ना करके हमेशा वेद पुराण बाइबल कुरआन गुरु ग्रन्थ साहिब की बात करते हैं । किसने कहा ये सब ग्रन्थ कुछ नहीं सीखते पर क्या आप वाकयी इन ग्रंथो मे लिखी हर बात मानते हैं या केवल कुछ बाते जो आप को सुविधाजनक लगती हैं उनको मान कर अपना लेते हैं और बार बार उनको हर जगह दोहराते रहते हैं । जितनी शिद्दत से आप ने ये धर्म ग्रन्थ पढे हैं क्या उतनी शिद्दत से आपने अपने संविधान को कभी पढ़ा और समझने कि कोशिश की हैं ।

भारत का संविधान सब को बराबर मानता हैं हर धर्म को , हर जाती को और हर लिंग को । फिर क्यूँ ये समाज किसी को बड़ा और छोटा मानता हैं और क्यूँ ये समाज नारी को हमेशा दोयम का दर्जा देता हैं ।

नारी के नाम को बदलना शादी के बाद
नारी को देवी कह कर पूजना पर उसको समान अधिकार ना देना यहाँ तक कि पैदा होने का भी { कन्या भुंण हत्या }
नारी का बलात्कार अगर वो किसी कि बात का प्रतिकार करे { कल एक लड़की को छेड़ा गया , प्रतिकार करने पर गाडी मे खीच कर बलात्कार किया गया }
नारी को जाति आधरित बातो पर मारना { एक लड़की को गैर जाति युवक से प्यार करने की सजा उसको ८ कम नगन अवस्था मे चलाया गया पूरे गाव के सामने और रुकने पर कोडे से मारा जाना }

ना जाने कितनी खबरे थी कल के अखबार मे इस लिये आग्रह हैं कि धर्म ग्रंथो और सामजिक नियमो से उठ कर कानून और संविधान कि जानकारी ले । उसको पढे और बांचे ताकि समाज मे फैले "असमानता " को दूर किया जा सके ।

धर्म ग्रन्थ , समाज के नियम , कानून और संविधान , चुनाव सही करे

December 12, 2010

Women empowerment in India is a challenging task

Women empowerment in India is a challenging task as we need to acknowledge the fact that gender based discrimination is a deep rooted social malice practiced in India in many forms since thousands of years. The malice is not going to go away in a few years or for that matter by attempting to work at it through half-hearted attempts. Formulating laws and policies are not enough as it is seen that most of the times these laws and policies just remain on paper. The ground situation on the other hand just remains the same and in many instances worsens further. Addressing the malice of gender discrimination and women empowerment in India is long drawn battle against powerful structural forces of the society which are against women's growth and development.

Women empowerment in India: The need for ground level actions

We have to accept the fact that things are not going to change overnight but because of this we cannot stop taking action either. At this juncture the most important step is to initiate ground level actions however small it might seem. The ground level actions should be focussed towards changing the social attitude and practices prevalent in the society which are highly biased against women. This can be initiated by working with the women at the root level and focusing on increasing women's access and control over resources and increasing their control over decision making. Further working on the aspect of enhanced mobility and social interaction of women in the society would positively influence all round development and empowerment of women in India.

Women empowerment in India: Reality check at the ground level

Today there are lot of things that is happening in the name of women empowerment in India and lot of resources are spent in this direction. Keeping this in mind it is crucial to have a reality check on what is happening on paper and what is the actual ground situation. It is worthwhile to ponder on the fact that we are one of the worst in terms of worldwide gender equality rankings. In India women are discriminated and marginalized at every level of the society whether it is social participation, economic opportunity and economic participation, political participation, access to education or access to nutrition and reproductive health care. A significant few in the society still consider women as sex objects. Gender disparity is high, crimes against women are increasing and violence against women is all time high and in most cases go unreported. Dowry related problems and death is increasing and is profoundly manifesting in the urban population. Workplace harassment of women is another phenomenon which is rapidly increasing as more women join the workforce. Early age marriages are still taking place in large numbers and the number of girls going to school is abysmally low. Moreover majority of the girls who join the school drop out by the age of puberty to get married and live a life of drudgery. Female feticide and infanticide is starring the nation as one of the biggest social crisis. All this is happening despite the fact that there are number of programmes and policy initiatives that is being run by the government and other bodies. The year 2001 was declared as the National policy for empowerment of women. So it is time to ask the question whether we are moving in the right direction and where are we in terms of the paper actions and the actual ground realities.

Women empowerment in India: Discrimination against women in all walks of life

One of the major aspects of women empowerment in India is to change the attitude of society towards women. The problem in India is that the society never worked on the premise of gender equality from a long-long time. Atrocities and discrimination against women is a way of daily life in Indian society. There is an attitude which still prevails in India where women are considered to be only worthwhile of household activities and managing the children. The veil system, child marriage and dowry are testimonies to this truth. Women have never been part of the mainstream society in India and they are still considered as a great liability. If we just look at the sex ratio it will show the plight of women in India. It is the lowest at around 933. Female literacy is just 54.16 % as per 2001 Census. In Indian parliament and assemblies women have never represented more than 10%. Most of the women workers in India are outside the organized sector. Administrators, managers, professionals combined together and technical workers on the other hand are the lowest at 2.3% and 20 % respectively. Now these figures gives the real truth of the actual mentality of the society which has restricted women, marginalized women and discriminated against women quite openly. Can we achieve women empowerment in India with these alarming and dismal figures?

Women empowerment in India: Women not in control over their circumstances

As I mentioned before the government had declared 2001 as the women's empowerment year but nothing much has happened even after that. Women even today are not able to exercise full control over their circumstances or actions. From a welfare society at the inception, India moved on to embrace the developmental model and now the latest fad is the empowerment model. But with all these initiatives however genuine they might have been or they are, nothing substantial has happened on the ground. Majority of Women in India are poor, uneducated and insufficiently trained. They often end up in the daily struggle of managing an ill equipped family and are not in a position to propel out themselves of the oppressive and regressive social and economic conditions. Female infanticide is one of the biggest crimes against humanity that is being carried out in India. The patriarchal system encourages a male child and considers women as a property or liability from the day she is born. We need to accept the truth that there is a great discrepancy in the ideology and the actual practice of empowerment policy in India. Everything is happening at a very superficial level and the time has come to find out an actionable path at the ground level for real and measurable change.

Women empowerment in India: Issues to be tackled

There are quite a large number of issues which need to be addressed to streamline the existing women empowerment programmes in India as well as initiating actual work at the ground level. Women make up to 52% of country's population but their living conditions are very tough and torturous. To initiate measurable actions at ground level, education of women should be given top priority and female literacy programmes need to be enforced across the country. Further to improve the socioeconomic conditions women need to be trained and better equipped for taking informed decisions. The real change will be only visible when social attitudes and norms change. Here inclusive programmes involving the men are the need of the hour. This will be helpful for working out adjustments and sharing of gender based specific performance or tasks which are currently overburdening the women to no end. Unless we improve the ground level living standards of women in India we might not be able to influence their empowerment in any other possible way. Various issues that need to be addressed for improving overall conditions of the women in India include making access to affordable coking fuel for rural women, providing safe drinking water, sanitation, increasing decision making capacity among women, providing equal wages as that of men, ending their exploitation, improving the political participation of women, eradicating poverty among women, increasing the security of women who are engaged in agriculture as daily wage workers, providing affordable healthcare and nutrition and managing the risk of unwanted pregnancies, HIV infections and sexually transmitted diseases.

Women empowerment in India: Ending gender inequality and gender bias

It has to be understood that unless we change the basic social attitude which cultivates gender inequality and gender bias we would not be able to achieve much in terms of women empowerment in India. There are many laws and there have been many amendments that have been carried out to end the discrimination against women and empower women in all aspects of life. Gender equality is enshrined in Indian constitution and constitution empowers the state to end the gender based discrimination against women. There is reservation of seats in local bodies and municipalities and another law is being envisioned for reservation in parliament. But the sad part is that all these laws and amendments have become toothless as the fundamental problems lies in the attitude of the society which is highly biased against women. Now what is the solution? The only solution is for women to come together as a unifying force and initiate self empowering actions at the ground level. Let it happen even if it is at a slow pace initially but it must happen despite however small the initial steps might look like. So the connection is very clear. Once we work towards self empowerment through small number of infinite actions, we become aware of the ground realities and then we can think about taking further recourse towards changing the mindset of the society which fosters gender inequality and bias.

Women empowerment in India: Ending violence against women

When we talk about women empowerment in India the most important aspect that comes into the mind is the attitude of the society towards women. Women are still considered as burden and liabilities. They are also considered as properties. These kinds of attitudes give birth to the evil of violence against women. Women empowerment in India is not possible unless violence against women is eradicated from the society. National Commission of women was created in 1992 and Convention of elimination of all forms of discrimination against women was ratified in 1993. Apart from the laws and policy formulations the violence against women can be only tackled through attitudinal change that need to take place in the family, in the society and the female members of the society as well. Only this attitudinal change and proactive action against violence by every single individual will help in galvanising the slumbering structures of the government and society towards further concrete steps and action. Unless society accepts gender equality as a fundamental principle of human existence all efforts will only partially bear results. Gender sensitisation and gender training is primary need of the hour. The struggle of gender equality should be carried at every level and it should overcome the barriers of caste, class, race and religion.

Women empowerment in India: Cooperation among women

To reemphasize once again, women's empowerment cannot take place unless women come together and decide to self-empower themselves। Self empowerment should be all round in nature. Once this happens then we can think about galvanizing the system towards the direction of better health facilities, nutrition and educational facilities for women at a very large scale. Self empowerment can begin by addressing day to day issues faced by individual women and tackling them with a mindset of improving the overall living conditions of women at every level and strata of the society. A movement has to be build which awakens the individual self in each and every woman for creative and generative action. In this regard progressive and resourceful women in the society need to come forward to help their less privileged sisters in as many ways as possible. This shall help us sow the seed for real women empowerment in India.

Women empowerment in India is a challenging task as we need to acknowledge the fact that gender based discrimination is a deep rooted social malice practiced in India in many forms since thousands of years. The malice is not going to go away in a few years or for that matter by attempting to work at it through half-hearted attempts. Formulating laws and policies are not enough as it is seen that most of the times these laws and policies just remain on paper. The ground situation on the other hand just remains the same and in many instances worsens further. Addressing the malice of gender discrimination and women empowerment in India is long drawn battle against powerful structural forces of the society which are against women's growth and development.

Women empowerment in India: The need for ground level actions

We have to accept the fact that things are not going to change overnight but because of this we cannot stop taking action either. At this juncture the most important step is to initiate ground level actions however small it might seem. The ground level actions should be focussed towards changing the social attitude and practices prevalent in the society which are highly biased against women. This can be initiated by working with the women at the root level and focusing on increasing women's access and control over resources and increasing their control over decision making. Further working on the aspect of enhanced mobility and social interaction of women in the society would positively influence all round development and empowerment of women in India.

Women empowerment in India: Reality check at the ground level

Today there are lot of things that is happening in the name of women empowerment in India and lot of resources are spent in this direction. Keeping this in mind it is crucial to have a reality check on what is happening on paper and what is the actual ground situation. It is worthwhile to ponder on the fact that we are one of the worst in terms of worldwide gender equality rankings. In India women are discriminated and marginalized at every level of the society whether it is social participation, economic opportunity and economic participation, political participation, access to education or access to nutrition and reproductive health care. A significant few in the society still consider women as sex objects. Gender disparity is high, crimes against women are increasing and violence against women is all time high and in most cases go unreported. Dowry related problems and death is increasing and is profoundly manifesting in the urban population. Workplace harassment of women is another phenomenon which is rapidly increasing as more women join the workforce. Early age marriages are still taking place in large numbers and the number of girls going to school is abysmally low. Moreover majority of the girls who join the school drop out by the age of puberty to get married and live a life of drudgery. Female feticide and infanticide is starring the nation as one of the biggest social crisis. All this is happening despite the fact that there are number of programmes and policy initiatives that is being run by the government and other bodies. The year 2001 was declared as the National policy for empowerment of women. So it is time to ask the question whether we are moving in the right direction and where are we in terms of the paper actions and the actual ground realities.

Women empowerment in India: Discrimination against women in all walks of life

One of the major aspects of women empowerment in India is to change the attitude of society towards women. The problem in India is that the society never worked on the premise of gender equality from a long-long time. Atrocities and discrimination against women is a way of daily life in Indian society. There is an attitude which still prevails in India where women are considered to be only worthwhile of household activities and managing the children. The veil system, child marriage and dowry are testimonies to this truth. Women have never been part of the mainstream society in India and they are still considered as a great liability. If we just look at the sex ratio it will show the plight of women in India. It is the lowest at around 933. Female literacy is just 54.16 % as per 2001 Census. In Indian parliament and assemblies women have never represented more than 10%. Most of the women workers in India are outside the organized sector. Administrators, managers, professionals combined together and technical workers on the other hand are the lowest at 2.3% and 20 % respectively. Now these figures gives the real truth of the actual mentality of the society which has restricted women, marginalized women and discriminated against women quite openly. Can we achieve women empowerment in India with these alarming and dismal figures?

Women empowerment in India: Women not in control over their circumstances

As I mentioned before the government had declared 2001 as the women's empowerment year but nothing much has happened even after that. Women even today are not able to exercise full control over their circumstances or actions. From a welfare society at the inception, India moved on to embrace the developmental model and now the latest fad is the empowerment model. But with all these initiatives however genuine they might have been or they are, nothing substantial has happened on the ground. Majority of Women in India are poor, uneducated and insufficiently trained. They often end up in the daily struggle of managing an ill equipped family and are not in a position to propel out themselves of the oppressive and regressive social and economic conditions. Female infanticide is one of the biggest crimes against humanity that is being carried out in India. The patriarchal system encourages a male child and considers women as a property or liability from the day she is born. We need to accept the truth that there is a great discrepancy in the ideology and the actual practice of empowerment policy in India. Everything is happening at a very superficial level and the time has come to find out an actionable path at the ground level for real and measurable change.

Women empowerment in India: Issues to be tackled

There are quite a large number of issues which need to be addressed to streamline the existing women empowerment programmes in India as well as initiating actual work at the ground level. Women make up to 52% of country's population but their living conditions are very tough and torturous. To initiate measurable actions at ground level, education of women should be given top priority and female literacy programmes need to be enforced across the country. Further to improve the socioeconomic conditions women need to be trained and better equipped for taking informed decisions. The real change will be only visible when social attitudes and norms change. Here inclusive programmes involving the men are the need of the hour. This will be helpful for working out adjustments and sharing of gender based specific performance or tasks which are currently overburdening the women to no end. Unless we improve the ground level living standards of women in India we might not be able to influence their empowerment in any other possible way. Various issues that need to be addressed for improving overall conditions of the women in India include making access to affordable coking fuel for rural women, providing safe drinking water, sanitation, increasing decision making capacity among women, providing equal wages as that of men, ending their exploitation, improving the political participation of women, eradicating poverty among women, increasing the security of women who are engaged in agriculture as daily wage workers, providing affordable healthcare and nutrition and managing the risk of unwanted pregnancies, HIV infections and sexually transmitted diseases.

Women empowerment in India: Ending gender inequality and gender bias

It has to be understood that unless we change the basic social attitude which cultivates gender inequality and gender bias we would not be able to achieve much in terms of women empowerment in India. There are many laws and there have been many amendments that have been carried out to end the discrimination against women and empower women in all aspects of life. Gender equality is enshrined in Indian constitution and constitution empowers the state to end the gender based discrimination against women. There is reservation of seats in local bodies and municipalities and another law is being envisioned for reservation in parliament. But the sad part is that all these laws and amendments have become toothless as the fundamental problems lies in the attitude of the society which is highly biased against women. Now what is the solution? The only solution is for women to come together as a unifying force and initiate self empowering actions at the ground level. Let it happen even if it is at a slow pace initially but it must happen despite however small the initial steps might look like. So the connection is very clear. Once we work towards self empowerment through small number of infinite actions, we become aware of the ground realities and then we can think about taking further recourse towards changing the mindset of the society which fosters gender inequality and bias.

Women empowerment in India: Ending violence against women

When we talk about women empowerment in India the most important aspect that comes into the mind is the attitude of the society towards women. Women are still considered as burden and liabilities. They are also considered as properties. These kinds of attitudes give birth to the evil of violence against women. Women empowerment in India is not possible unless violence against women is eradicated from the society. National Commission of women was created in 1992 and Convention of elimination of all forms of discrimination against women was ratified in 1993. Apart from the laws and policy formulations the violence against women can be only tackled through attitudinal change that need to take place in the family, in the society and the female members of the society as well. Only this attitudinal change and proactive action against violence by every single individual will help in galvanising the slumbering structures of the government and society towards further concrete steps and action. Unless society accepts gender equality as a fundamental principle of human existence all efforts will only partially bear results. Gender sensitisation and gender training is primary need of the hour. The struggle of gender equality should be carried at every level and it should overcome the barriers of caste, class, race and religion.

Women empowerment in India: Cooperation among women

To reemphasize once again, women's empowerment cannot take place unless women come together and decide to self-empower themselves. Self empowerment should be all round in nature. Once this happens then we can think about galvanizing the system towards the direction of better health facilities, nutrition and educational facilities for women at a very large scale. Self empowerment can begin by addressing day to day issues faced by individual women and tackling them with a mindset of improving the overall living conditions of women at every level and strata of the society. A movement has to be build which awakens the individual self in each and every woman for creative and generative action. In this regard progressive and resourceful women in the society need to come forward to help their less privileged sisters in as many ways as possible. This shall help us sow the seed for real women empowerment in India.

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December 11, 2010

लड़कियों पर एसिड अटैक क्या कानून काफी है इसे रोकने के लिए ?

आज कल महिलाओ पर तेजाब फेंकने की घटनाओं में काफी तेजी आई है | इसको देखते हुए केंद्र सरकार ने इसके खिलाफ सख्त कदम उठाने का विचार किया और गृह मंत्रालय ने इसके लिए भारतीय दंड सहिंता में संशोधन लाने का प्रस्ताव रखा है | प्रस्ताव के अनुसार तेजाब फेंकने वाले को दस साल की कैद और दस लाख रूपये जुर्माना लगाने का प्रावधान है | सरकार के काम की गति को देख कर हम अंदाजा लगा सकते है की आने वाले पांच छ सालों में ये कुछ संशोधनों के साथ कानून बन जायेगा | पर क्या हम किसी लड़की पर तेजाब फेक कर उसको मौत से भी बत्तर जीवन देने वालो को मात्र कड़ी सजा देने का कानून बना कर रोक सकते है | जी नहीं ये संभव नहीं है क्योंकि बिना इस कानून के भी आज की तारीख में भी ऐसा करने वालो पे हत्या का प्रयास का मुक़दमा चलता है (पर वास्तव में तो होना ये चाहिए की उस पर क्रूरता से हत्या करने का मुक़दमा चलना चाहिए ) जिसमे काफी कड़ी सजा का प्रावधान है ,लेकिन उसके बाद भी इस तरह की घटनाओं पर लगाम नहीं लग सका है |
कारण क्या है --- किसी लड़की या महिला पर तेजाब फेंकना पूरी तरह से बदला लेने की भावना से की जाती है | मनोवैज्ञानिक इसे सैडीज्म कहते है |  अभी तक इस तरह की घटनाओं में लड़की से एक तरफ़ा प्यार या लड़की द्वारा विवाह के प्रस्ताव को ठुकराया जाना या अपने साथी के चरित्र पर शक होने के कारण किया जाता है | ऐसा करने वाले लड़की को सबक सिखाने,उससे बदला लेने और "मेरी नहीं हुई तो किसी की नहीं होगी" जैसी ओछी मानसिकता के कारण ये करते है | ये विकृत दिमाग के वो लड़के है जो किसी लड़की द्वारा प्रेम प्रस्ताव या विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिये जाने को पचा नहीं पाते है या लड़की के चरित्र पर शक करते है और उसे अपने पुरुषवादी गुरुर का अपमान समझने लगते है | उसी अपमान का बदला लेने के लिए वो पूरी तरह से सोच समझ कर लड़की के चेहरे पर तेजाब फेक कर उसे विकृत बनाने का प्रयास करते है की इसी स्त्रियोचित व्यक्तित्व की निशानी  खूबसूरती के कारण ही इसने हमारे प्रस्ताव को ठुकराया है हम उसे ही बर्बाद कर देंगे | वो उसे जीवित रख कर उसका जीवन नरक बनाने का प्रयास करते है |
कानून काफी नहीं है ----- इस तरह के अपराधों को हम केवल कानून बना कर नहीं रोक सकते है या ये कहे  कि किसी भी सामाजिक समस्या को हम केवल कानून बना कर नहीं रोका सकते है | दहेज़ कानून , कन्या भ्रूण हत्या ,बाल विवाह और घरेलू हिंसा कानून बना कर हम पहले ही देख चुके है की इससे अपराध पर कोई लगाम नहीं कसा जा सका है | उसके बाद एक लड़की का तेजाब फेक कर उसे मौत से भी बत्तर जीवन देने वाले के लिए क्या दस साल की कैद काफी है | किसी लड़की के लिए इस तरह की घटना मौत से भी बड़ी है ऐसा करने वालो पर तो हत्या का मुक़दमा चलाना चाहिए और उसे लड़की के जीवित रहने पर कम से कम आजीवन कारावास और उसकी मृत्यु होने पर उसी सीधे फाँसी की सजा का प्रावधान होना चाहिए | फिर कानून बना भर देने से काम नहीं चलता है ज़रुरी है कि उसे कड़ाई से लागू किया जाये अपराधी को जल्द से जल्द पकड़ा जाये और जल्द से जल्द उसे सजा भी दिलाई जा सके | जो हमारे देश के कानून व्यवस्था को देख कर मुमकिन नहीं लगता है की होगा | इसी कारण से इस तरह के अपराध दिन पर दिन और बढ़ते जा रहे है |
अपराध की मानसिकता पर चोट की जाये --------- फिर सवाल ये है कि इसे रोका कैसे जाये ? तो इसके लिए ज़रुरी है कि अपराध की मानसिकता पर चोट की जाये | अभी तक जो भी केस सामने आये है उन सभी में तेजाब फेंकने का एक मात्र सोच यही था की लड़की का चेहरा ख़राब करके उसके जीवन को बर्बाद कर दिया जाये उसे शारीरिक नुकसान के साथ ही एक बड़ा मानसिक चोट दिया जाये जिससे वो कभी भी बाहर ना आ सके | बस जरुरत इसी मानसिकता पर चोट करने की है | इसके लिए ज़रुरी है की लड़की के पुराने चेहरे को फिर से उसे वापस दिया जाये | सरकार जो प्रस्ताव ला रही है उसमे भी दस लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है जो निश्चित रूप से लड़की के लिए होगा ताकि वो फिर से अपना इलाज करा सके | किंतु जब अपराधी इस जुर्माने को भर ही नहीं सकेगा तब | इसके लिए ज़रुरी है की सरकार अपनी तरफ से ये सुनिश्चित  करे की जिस भी लड़की के साथ इस तरह की घटना होगी यदि अपराधी जुर्माने की या इलाज की रकम नहीं भर पता है तो उसकी प्लास्टिक सर्जरी सरकार कराएगी और उसे वापस उसका पुराना चेहरा देगी | ये प्लास्टिक सर्जरी सरकारी अस्पतालों की में किया जा रहा मुफ्त कटे होठ का आपरेशन जैसा नहीं होना चाहिए बल्कि उच्च तकनीक वाला आधुनिक सर्जरी होना चाहिए जिसमे लड़की को उसका चेहरा वापस उसे मिले | ये करना ज़रुरी है क्योंकि अपराधी के तेजाब फेंकने का मकसद को ही पूरा नहीं होने देना है | जिससे इस तरह की कोई भी बात किसी के दिमाग में आती है तो उसे ये याद रहेगा की पकडे जाने पर ना केवल उसे कड़ी सजा मिलेगी बल्कि उसे भारी जुर्माना भी देना होगा और बाद में लड़की वापस से अपना चेहरा भी पा लेगी और उसका मकसद कामयाब नहीं होगा |
फंड कहा से आयेगा --------जी हा ये इलाज काफी महँगा होगा और इसके लिए फंड की समस्या होगी | ऐसे तो सरकारी खर्च पर विदेश जा कर इलाज करने वाले मंत्रियों के देश में फंड की समस्या तो नहीं होनी चाहिए फिर भी इसके लिए सरकार प्राइवेट सेक्टर, निजी एन जी ओ का भी साथ ले सकती है, पाकिस्तान में इस तरह की एक एन जी ओ है जो महिलाओ के जले चेहरों की अच्छी प्लास्टिक सर्जरी करती है मुफ्त में, भारत की एक महिला ने भी अपनी सर्जरी वहा जा कर कराई है  या फिर महिला बाल कल्याण मंत्रालय के बजट से इसके लिए धन की व्यवस्था कर सकती है | ऐसे तो मुझे लगता है की समाज को भी खुद आगे आकर इन मामलों में पीड़ित का इलाज में मदद करना चाहिए | यदि सरकार कुछ साल भी इस कार्य को पूरा करती है तो काफी सम्भावना है की इस तरह के अपराध में कमी आये और फिर उसे किसी धन की समस्या का सामना ही ना करना पड़े |

December 10, 2010

तुमने भले ही मुझे पहले हराया हो लेकिन आज जीतने के लिये तुम्हे मुझे एक बार फ़िर हराना पडेगा।

"इस पोस्ट को लिखने के लिये दिल तडप रहा था और इस वीडियो को अब तक दसियों बार देखने के बाद भी मन नहीं भरा। मिल्खा सिंह के १९५८ में हुये राष्ट्रमंडल खेलों में ४०० मीटर दौड में स्वर्ण पदक जीतने के ५२ वर्षों के बाद भारत ने एथलेटिक्स में एक और स्वर्णपदक जीता और जिस बहादुरी से जीता उसके लिये इन चारों महिलाओं की जितनी तारीफ़ की जाये कम है। तुम चारों को मेरा सैकडों बार सलाम !!!"

ये अंश एक बेहतरीन पोस्ट से हैं नीरज नयी पीढ़ी के हैं और नारी आधारित विषयों पर उनकी टिप्पणियाँ मे २००७ से विभिन्न ब्लोग्स पर पढ़ती आ रही हूँ ।

आप भी इस पोस्ट को जरुर देखे और खुश हो जैसे नीरज हुए ।
the indian woman has arrived कि टैग लाइन मनजीत , सिनी जोसेफ़, अश्विनी अकुंजी,मनदीप जैसी भारतीये महिला जो जीतने का माद्दा रखती हैं उनको दिमाग मे रख कर ही बनायी थी ।

पोस्ट विस्तार से यहाँ पढ़े
नीरज शुक्रिया

भ्रष्टाचार और हम




पिछले कई दिनों से हर समाचार माध्यम की मुख्य खबर भ्रष्टाचार से संबंधित है। करीब-करीब तीन हफ्ते होने को आ रहे हैं और पक्ष तथा विपक्ष दोनों अपनी अपनी बातों पर अडिग है संसद ठप्प है। राजा अपना इस्तीफा दे चुके हैं, सीवीसी के पद पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है....सुप्रीम कोर्ट को इलाहाबाद हाईकोर्ट ईमानदारी में संदिग्धता नजर आ रही है....कल जो व्यक्ति नागरिक और उड्डयन मंत्रालय पर रिश्वत मांगने का आरोप लगा रहा था आज वही नीरा राडिया टेप कांड के बाद खुद को टू जी स्पैक्ट्रम में फंसा पा रहा है...कॉमनवेल्थ खेल में हुए भ्रष्टाचार पर आने वाली खबरों का अभी अंत नहीं हुआ है। हां, इस बीच एक अच्छी खबर भी आई देश की भ्रष्टतम आईएएस अधिकारी नीरा यादव को चार साल की कैद की सजा सुनाई गई। वे हाल-फिलहाल जेल में हैं, पर कितने जेल में रहेंगी इस बारे में पूरे विश्वास से कोई कुछ नहीं कह सकता, क्योंकि पैसे के लालच में और अपने पेशे की दुहाई देते हुए कोई न कोई वकील उनकी जमानत करवा ही लेगा।

भ्रष्टाचार आतंकवाद का एक बदला हुआ रूप है। आतंकवादी सीधे-सीधे अपना काम करते है; वो जो कुछ करते है वह तुरंत लोगों के सामने आ जाता है। सरकारी मशीनरी सक्रिय होती है लोग पकड़े जाते है, अगर पकड़े नहीं भी जाते तो भी संगठन की पहचान तो हो ही जाती है और ऐसे संगठनों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित करने की कोशिशे शुरू हो जाती है। पर भ्रष्टाचार के मामले में ऐसा नहीं होता, यहां सब लोग सब कुछ जानकर भी अंजान बनने का ढोग रचते हैं। भ्रष्टाचार घुन की तरह देश को खा रहा है, पर भ्रष्टाचारी अपने आकाओं के साए तले आराम से घूम रहे हैं।

एक बात तो तय है कि देश के सामाजिक और नैतिक मूल्यों का पतन बहुत तेजी से हुआ है। आज की तारीख में लालच बहुत बढ़ गया है। किसके पास कितना पैसा है यह उसका स्टेटस तय करता है। अतः हर व्यक्ति अपने को दूसरे से श्रेष्ठ दिखाने के येन केन प्रकारेण धन कमाना चाहता है। इसलिए सिर्फ लाभ देने वालो को ही दोषी ठहराना न्यायोचित नही होगा, लाभ लेने वालों पर भी लगाम कसनी होगी। क्योंकि इस अपराध में दोनों बराबर के भागीदार हैं। सामान्यतः अगर कोई किसी को आर्थिक या कोई अन्य लाभ दे रहा है तो निश्चित रूप से रूप से उसमें उसका अपना भी कोई न कोई फायदा जरूर होगा...या तो वह अपने किसी गलत काम को सही करवा रहा होगा...या अपनी भाग-दौड़ से बचने के लिए सम्बद्ध अधिकारी को पैसा खिला रहा होता है। पर इन लोगों की वजह से स्थितियां ऐसी बन गई हैं कि अब अपना सही काम करवाने के लिए भी सम्बद्ध अधिकारियों को पैसा खिलाना पड़ता है।

पहले पैसा खाते-खिलाते समय थोड़ी शर्म-लिहाज होती थी, पर आज बदली हुई परिस्थितियों में एक पक्ष पैसा लेना अपना अधिकार समझता हैं तो देना वाला भी इसको बहुत गलत निगाह से नहीं देखता, बल्कि सच तो यह है कि काफी हद तक समाज में यह प्रक्रिया स्वीकार कर ली गई है। मामला तभी उलझता है जब बात लाखों करोड़ों की हो। बात अगर हजारों तक सीमित हो, तो कोई ऐसे मामलों पर कोई तव्वजो नहीं देता।

पेपर में आज भ्रष्टाचार को लेकर एक बड़ा दिलचस्प सर्वे छपा है। यह सर्वे मुंबई के एक कॉलेज के छात्रों पर किया गया है। सर्वे के अनुसार छात्रों का मानना है की देश के 96 प्रतिशत राजनीतिज्ञ भ्रष्टाचारी है, लेकिन 75 प्रतिशन छात्रों का यह भी कहना कि अगर सड़क के नियमों को तोड़ते वक्त यदि ट्रैफिक पुलिस उनको पकड़ती है तो वो ले देकर मामला सुलटा लेंगे। यह हमारे देश के भावी भविष्य का सोच है। इसे आप क्या कहेंगे?

-प्रतिभा वाजपेयी.

December 09, 2010

संबोधन

संबोधनों की बात चली तो कुछ दिन पहले "विचार शून्य जी " एक पोस्ट का ध्यान आगया जिस को पढ़ कर काफी समय सोचती रही थी और साथ मे ध्यान आया अपनी एक मित्र का ।कल "रचना जी" पोस्ट पढ़ीतो सोचा लिखूं पुरुष और स्त्री के आयु बोधी संबोधनों की बात करने से पहले हमको बात करनी चाहिये की महिला को इतनी जल्दी बुढा बनाने का प्रचलन शुरू कैसे होता हैं ।

मेरी मित्र सोमा २५ वर्ष की थी जब विवाह करके मेरे पड़ोस मे आयी थी । सोमा शादी से पहले एक विदेशी कंपनी मे काम कर रही थी और केवल माता पिता के दबाव मे आकर ही उन्होंने शादी की थी । सोमा के पति भी बहुत अच्छी जगह नौकरी पर थे पर वो दिल्ली मे थे सो सोमा को जयपुर की अपनी नौकरी छोड़ कर दिल्ली आना पडा था । सोमा के पति की उम्र ३२ साल थी जब शादी हुई ।

सोमा ने मुझ से कहा की जब वो शादी हो कर आयी तोपहले दिन ही सबसे पहले उसकी सास ने उससे कहा की देखो "शैलेश का ख्याल रखना " । सोमा का मानना था की शैलेश जो उम्र मे उस से बड़ा हैं उसे सोमा का ख्याल रखने को कहा जाता तो ज्यादा सही होता । क्यूँ एक लड़की जो उम्र मे छोटी हैं उस को तुरंत सबका ख्याल रखने का जिम्मेदार मान लिया जाता हैं और जो लड़का उम्र मे बड़ा हैं यानी उसका पति वो हमेशा " मुन्ना , छोटा बच्चा " ही बना रहता हैं ।

लड़की को अपने ही पति की माँ का रोल अदा करने का जिम्मा शादी होते ही क्यूँ सौप दिया जाता हैं । और उसकी के बाद संबोधनों का सिलसिला बदलने लगता हैं । धीरे धीरे हमउम्र पुरुषो से भी माँ कहलाने में वो उज्र करना बंद कर देती हैं

मै टी वी धारावाहिकों पर रीसर्च कर रही हूँ सो ये रिश्ता की "अक्षरा" हो या बालिका बधू की "आनंदी" दोनों के पति नादान , बच्चे ही हैं जबकि उम्र मे उनसे बड़े हैं और उनका ख्याल रखना , उनको सही समय से खाना पानी देना और उनकी गलतियों के लिये निरंतर उनके बड़ो से आक्षेप सुनना की "वो तो नादान हैं तुमको तो समझ रखनी चाहिये । "

बस .......

विचार शून्य जी और रचना जी की पोस्ट से इस पोस्ट को लिखने की बात मन मे आयी इस लिये उनका नाम दिया हैं

December 08, 2010

महिला ब्लोगर ये क्या हैं , क्यूँ आप सब इतना निरादर कर रही हैं अपने हम उम्र ब्लॉगर पुरुषो का ।

हिंदी ब्लॉग जगत मे ५०- ५५ साल के पुरुष ब्लोगर को एक ५० - ५५ साल कि महिला ब्लॉगर मे "माँ" दिख जाती हैं लेकिन अभी तक किसी भी ५०-५५ साल कि महिला ब्लॉगर मे ५०- ५५ साल के पुरुष मे "पिता " नहीं दिखा हैं । ना जाने कितनी ५०-५५ साल कि महिला ब्लोगर कि छवि मे दादी और नानी भी ५०- ५५ साल के पुरुष ब्लोगर को दिख रही हैं वही किसी भी महिला ब्लोगर को अपने हम उम्र पुरुष ब्लोगर मे ये छवि नहीं दिखती यानी दादा और नाना की ।

महिला ब्लोगर ये क्या हैं , क्यूँ आप सब इतना निरादर कर रही हैं अपने हम उम्र ब्लॉगर पुरुषो का । क्यूँ नहीं आप भी उनको पिता श्री , दादा श्री और नाना श्री कह कर संबोधित करती हैं ?? अपना पक्ष रखिये तो प्लीज़

December 05, 2010

महिला ब्लॉगर अपनी जानकारी यहाँ दे सकती हैं

indianwomanhasarrived.woman@blogger.com
महिला ब्लॉगर इस ईमेल पर अपने ब्लॉग कि जानकारी दे सकती हैं
आप ईमेल भेज दे , दो तीन दिनमे इस ब्लॉग पर आप का नाम दिख जायेगा

आप को मेल मे क्या लिखना हैं ये आप पुरानी प्रविष्टियाँ देख समझ ही सकती हैं

December 04, 2010

महिला आरक्षण नीति

सम्पूर्ण विश्व में महिला सशक्तिकरण व् महिला सम्बंधित नीतियों का मुख्य लक्ष्य आज ''महिलाओं को राजनैतिक रूप से सशक्त '' करने का है .भारत ,जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक राष्ट्र है ,में स्वतंत्रता के ६३ वर्षों बाद भी भारतीय नारी लोकतान्त्रिक प्रकिर्या में पीछे छूट गयी है .भारतीय संविधान द्वारा स्त्री -पुरूष को समान दर्जा दिए जाने के बावजूद देश की महत्वपूर्ण राजनैतिक संस्थाओं में स्त्री की भागीदारी दस प्रतिशत से भी कम है ।
ऐसा नहीं है कि भारत सरकार इस मुद्दे से अनभिग्य हो .भारतीय समाज में स्त्रियों के प्रति उपेक्षा पूर्ण व्यवहार की समाप्ति व् उनकी राजनैतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए चौदह वर्ष पूर्व ही ''महिला आरक्षण विधेयक 'लोकसभा में पेश कर दिया गया था .९ मार्च २०१० को राज्य सभा में यह बिल पास हो जाने के बाद से ''महिलाओं को तैंतीस प्रतिशत आरक्षण ' की इस नीति पर बवाल खड़ा हो चुका है । क्या है महिला आरक्षण नीति की आवशयकता ?इस पर क्यों है इतना बवाल ?इन्हें हम इन बिन्दुओं के अंतर्गत समझ सकते है --
***महिला आरक्षण नीति की आवशयकता - भारतीय समाज में स्त्री को दोयम दर्जे का प्राणी माना जाता रहा है .एक और स्त्रियाँ आर्थिक रूप से पुरूष के पराधीन हैं;दूसरी और सार्वजानिक जीवन में उनकी स्थिति संतोषजनक नहीं है .प्रख्यात लेखिका सरला महेश्वरी जी के शब्दों में ''राजनैतिक स्थिति से तात्पर्य यही है किऐसे तमाम निकायों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना चाहिए जो निकाय निर्णयकारी निकाय है,जिन निकायों से किसी भी राष्ट्र की सामाजिक ,आर्थिक नीतियों को निर्धारित किया जाता है ।'''
बिना आरक्षण के महिलाओं की राजनैतिक स्थिति को सुद्रढ़ कर पाना वर्तमान में असंभव ही है क्योकि
*अधिकांश राजनैतिक पार्टियाँ पुरुष प्रधान मानसिकता वाली है.साधारणतया वे महिलाओं को चुनावों में अपना उम्मीदवार नही बनाती ।
*महिला प्रमुख वाली पार्टियाँ भी पुरूष प्रधान समाज के कारण पुरषों को ही उम्मीदवार बनाने के लिए बाध्य है
*सरकार केविधायी व् कार्यकारी अंगों में महिलाओं की स्थिति न के बराबर है अत: वे स्त्री के अधिकारों के सम्बन्ध में आवाज नही उठा पाती ।
इन सब कारणों से यह जरूरी हो जाता है किविधायी संस्थाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व हेतु एक सुनिश्चित प्रतिशत आरक्षित किया जाये ।
महिला आरक्षण बिल के अनुसार संसद में ३३.३% सीते महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होंगी .चुनाव के लिए लौटरी के जरिये एक तिहाई सीत्ते महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएगी .पर शुरू से ही पुरषों ने इसका विरोध किया है .अब फिर से इस बिल को लोकसभा में प्रस्तुत करने कि बात है .देखिये अब क्या होता है ?

क्या आप निर्णय लेते हैं कभी या हर बात इग्नोर करते हैं और हँस कर

अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिसने बलात्कार या यौन शोषण किया हैं { केवल शक का आधार नहीं आप को पक्का पता हैं } और आप उस व्यक्ति की शादी होते देखते हैं तो
क्या आप उस परिवार को सूचित करेगे जहाँ वो शादी कर रहा हैं ?

अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिसने बलात्कार या यौन शोषण किया हैं { केवल शक का आधार नहीं आप को पक्का पता हैं } तो

क्या आप उसका सामाजिक बहिष्कार करेगे ??

क्या आप को बलात्कार या यौन शोषण के विषय मे कोई जानकारी हैं या ये मात्र शब्द हैं आप के लिये और आप विश्वास करते हैं कि नारी खुद ही जिम्मेदार है इस सब के लिये ???

December 03, 2010

उड़ान परों से नहीं हौसले से !

आज विश्व विकलांग दिवस है. आज मेरा नमन उन विकलांग भाई और बहनों तथा बच्चों को , जिन्होंने अपने विकलांग होने के बाद भी अपने हौसले से अपने अस्तित्व को सबसे ऊंचा रखा. अपनी इस कमजोरीको लोगों के लिए उपहास का विषय बनाने के बाद भी अपने प्रयासों से उनके मुँह पर तमाचा ही जड़ा है. ऐसे हौसलेको सलाम.
यह समाचार दैनिक जागरण के साभार है किन्तु इतना प्रेरक है कि इसको ही प्रस्तुत करने का मन किया और आपके सामने रख दिया.
"हाथों की लकीरों पर कभी विश्वास नहीं करना,
किस्मत उनकी होती है जो लकीरें खुद खींच लेते हैं."
इन पंक्तियों को साकार करने वाली है सिंहपुर गाँव की मीना. जिसके दुनियाँ आते ही हाथों का सुख ईश्वर ने छीन लिया था. घर- परिवार और सभी परिचित सिर्फ 'च्च्च ' ही कर सकते थे. लेकिन बड़े होते ही उसके हौसले ने अपने विकलांग होने के अहसास को एक चुनौती मान कर स्वीकार किया और उसने अपने हाथों की जगह पैरों को दे दी और उसकी लगन से सफलता उसके कदमों में आ गिरी. स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अब वह विकलांगता को अभिशाप मानने वाले लोगों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाये है. वह बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक बनने की अभिलाषा लिए बी एड की तैयारी कर रही है.
सिंहपुर विकास खंड के कादिल का पुरवा निवासी रामबरन यादव की दोनों हाथों से विकलांग पुत्री मीना पैरों से कापी में लिखती है और अपनी शिक्षा इसी तरह से पूरी की है. इस कार्य को करना इतना आसन भी नहीं है बचपन में चक पैरों में फंसा कर स्लेट पर लिखती रही और अब पेन फंसा कर लिख सकती है.
प्रेरणा लें वे माँ बाप जो किसी भी तरीके से विकलांग बच्चों को अभिशाप समझते हैं या फिर बोझ समझ कर उन्हें ढोने की बात करते हैं. वे कुछ भी कर सकते हैं बस उनको उसको आपके प्रोत्साहन और सहयोग की जरूरत होती है.

कही अनजाने में आप अपने शब्दों से बलात्कार पीड़ित का दर्द तो नहीं बढ़ा रहे है

                             समय के साथ हम सभी ने समाज की कई गलत पुरानी मान्यताओं और सोच को पीछे छोड़ा है और एक नई सोच को बनाया है  उसे अपनाया है | ये देख कर अब अच्छा लगता है की समाज में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो किसी बलात्कार पीड़ित नारी को दोषी की नजर से नहीं देखते है और उसके प्रति सहानुभूति रखते है , मानते है की इस अपराध में उसका कोई दोष नहीं है और उसे फिर से खड़े हो कर अपना नया जीवन शुरू करना चाहिए | मीडिया से ले कर हम में से कई लोगों ने उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए और अपराधियों को सजा दिलाने के लिए आवाज़ उठाई और काफी कुछ लिखा है | पर क्या पीड़ित के पक्ष में लिखते और बोलते समय हमने कभी इस बात पर ध्यान दिया है की हम अनजाने में वो शब्द लिखते और बोलते जा रहे है जो पीड़ित के मन में और दुख पैदा कर सकता है उसे फिर से खड़ा होने से रोक सकता है और उसके लिए सजा जैसा हो जायेगा |

                          जी हा कई बार जब हम इस विषय पर लिखते है तो कुछ ऐसे शब्द और वाक्य भी लिख देते है जिससे कुछ और  ध्वनिया  और अर्थ भी निकलते है | जैसे बलात्कार पीड़ित के लिए हम " उसकी इज़्ज़त लुट गई", " उसकी इज़्ज़त तार तार कर दी " या "उसे कही मुँह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा " जैसे वाक्य लिख देते है | क्या वास्तव में ऐसा ही है कि जिस नारी के साथ बलात्कार हो वो हमारे आप के इज़्ज़त के काबिल ना रहे क्या हम उसे उसके साथ हुए इस अपराध के बाद कोई सम्मान नहीं देंगे क्या वास्तव में वो समाज के सामने नहीं आ सकती, लोगों से नज़रे नहीं मीला सकती है लोगो को अपना मुँह नहीं दिखा सकती | मैं यहाँ ये मान कर चल रही हुं कि हम में से कोई भी ऐसा नहीं सोचता होगा फिर हम इन शब्दों का प्रयोगक्यों करते रहते है और पीड़ित को और दुखी कर देते है उसमे ग्लानी भर देते है |

               एक बार पीड़ित के तरफ से सोचिये की उस पर उसके लिए लिखे इस शब्दों का क्या असर होगा या ये कहे की उसने तो ये सारे शब्द पहले ही सुन रखे होंगे और उसके साथ हुए इस अपराध के बाद जब वो इस शब्दों को खुद से जोड़ेगी तो उस पर कितना बुरा असर होगा | यही कारण है की कई लड़कियाँ अपने साथ इस तरह के अपराध होने के बाद इस ग्लानी में कि अब उनकी इज़्ज़त लुट गई है उनका कोई सम्मान नहीं करेगा वो कही मुँह दिखाने के काबिल नहीं रही वो परिस्थिति से लड़ने के बजाये आत्महत्या कर लेती है | 
                 ये ठीक है की ये शब्द हमने नहीं बनाये है ये काफी समय पहले से बनाये गए है | रेप के लिए ये शब्दों तब बनाये गए जब समाज की सोच वैसी थी जब समाज इसके लिए कही ना कही स्त्री को ही ज्यादा दोषी मानता था और इस अपराध के बाद उसे अपवित्र घोषित कर दिया जाता था उसे समाज में अलग थलग करके उसे भी सजा दी जाति थी | लेकिन अब हमारी सोच बदल गई है हम मानते है ( कुछ अब भी नहीं मानते ) की इसमे पीड़ित का कोई दोष नहीं है दोष तो अपराध करने वाले का है और सजा उसे मिलनी चाहिए ना की पीड़ित को | जब हमने ये सोच त्याग दिया है तो हमें इन शब्दों को भी त्याग देना चाहिए जो कही ना कही पीड़ित को ही सजा देने वाले लगते है | कुछ शब्दों को हमने पहले ही त्याग दिया है जैसे उन्हें अपवित्र कहना पर अब हमें इस शब्दों को भी त्याग देने चाहिए | ताकि किसी पीड़ित को ये ना लगे की उसने कोई अपराध किया ही य समाज उसे सज दे रह है या वो सम्मान के काबिल नहीं रही | जब ये ग्लानी अपराधबोध नहीं होगा तो उसे अपने दर्द से बाहर आने में और एक नया जीवन शुरू करने में आसानी होगी |

आशा है मेरी बात सभी पाठक सकारात्मक रूप से लेंगे यदि मेरी सोच में कही कोई गलती हो तो मेरा ध्यान अवश्य दिलाइयेगा मैं उसमे अवश्य सुधार करुँगी और यदि इस मामले में आप की भी कोई राय है तो मुझे अवगत कराये

तोडती पत्थर

नयी सदस्य ana ने अपनी कविता यहाँ दी थी उसको नारी कविता ब्लॉग पर पढ़ा जा सकता हैं
सभी नये सदस्यों से आग्रह हैं यहाँ कविता ना पोस्ट करे । कविता केवल नारी कवित ब्लॉग पर ही दे ।

December 01, 2010

नारी और भारतीये संविधान

कविवर मैथली शरण गुप्त ने कहा है:
"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,
आँचल में है दूध और आँखों में पानी."
महिलाओं के लिए यही शब्द बहुत समय से प्रयोग किये जाते हैं किन्तु यदि हम भारतीय कानून की बात करें तो उसमे महिलाओं के अधिकारों के लिए कहीं कोई कोताही नहीं बरती गयी है.अब यदि महिलाएं ही अपने अधिकारों का प्रयोग ना करें तो इसके लिए कानून को दोष नहीं दिया जाना चाहिए.महिलाओं का अपने अधिकारों का इस्तेमाल ना करना दो कारणों से होता है एक तो वे भावनात्मक रूप से अपने परिवार से जुडी होने के कारण अपने परिजनों के या उनकी इच्छा के खिलाफ नहीं जाती और दूसरे वे अपने अधिकारों के विषय में कुछ जानती ही नहीं.ऐसे में जो पहली तरह की महिलाएं हैं उनका तो भगवान ही रखवाला कहा जा सकता है किन्तु जो दूसरी तरह की महिलाएं हैं उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी देकर अत्याचार से लड़ने में कानून उनकी मदद कर सकता है.
आज मैं जहाँ तक मुझे जानकारी है उसके अनुसार भारतीय संविधान द्वारा महिलाओं के हित में की गयी व्यवस्थाओं के बारे में जानकारी देकर अपना यह पुनीत कर्त्तव्य पूर्ण करना चाहूंगी.मेरा यह कार्य यदि मेरी एक भी बहन के काम आ सका तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी.
  • अनु.१५ के अनुसार लिंग, धर्म ,जाति अथवा जन्म स्थान के आधार पर किसी के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता किन्तु महिलाओं हेतु राज्य अनु.१५[३] के अंतर्गत विशेष व्यवस्था कर सकता है . .
  • अनु.४० के अंतर्गत त्रिस्तरीय ग्रामीण पंचायतों और शहरी निकायों में सभी स्तरों पर उन्हें एक तिहाई पद आरक्षित करने हेतु संविधान में ७३ वां और ७४ वां संविधान संशोधन किया गया है जिसके परिणाम स्वरुप देश की त्रिस्तरीय पंचायतों में ८० लाख महिलाओं को जनप्रतिनिधि के रूप में राजनीति और विकास प्रशासन में भाग लेने के अवसर प्राप्त हुए हैं .
  • अनु.३३० व अनु.३३२ क में प्रस्तावित ८४ वें संविधान संशोधन द्वारा लोकसभा व विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था हेतु प्रयास किये जा रहे हैं .
  • अनु.४२ द्वारा स्त्रियों के लिए विशेष प्रसूति सहायता की व्यवस्था की गयी है
यूं तो संविधान देश का सर्वोच्च कानून है और समस्त देशवासियों के लिए अधिकारों की व्यवस्था करता है जिनमे से अपने अल्प ज्ञान से मैं आप महिलाओं के लिए ये चंद प्रावधान ही चुन कर ला पाई हूँ.यदि आप मुझसे कुछ और जानकारी चाहे तो अवश्य पूछें क्योंकि इस तरह मुझे आपकी समस्याओं की जानकारी होगी और इस तरह मेरे अध्ययन में भी वृद्धि होगी .

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