अगर महिलाए समानता की बात करे तो उन्हे अपने अभिभावकों से इन अधिकारों के विषय मे सबसे पहले बात करनी चाहिये
१ जब आपने हमे इस लायक बना दिया { पैरो पर खड़ा कर दिया } की हम धन कमा सकते हैं तो हमारे उस कमाये हुए धन पर आप अपना अधिकार समझे और हमे अधिकार दे की हम घर खर्च मे अपनी आय को खर्च कर सके । हम विवाहित हो या अविवाहित पर हमारी आय पर आप अधिकार बनता हैं । आप की हर जरुरत को पूरा करने के लिये हम इस धन को आप पर खर्च कर सके और आप अधिकार से हम से अपनी जरुरत पर इस धन को खर्च करे को कह सके।
२ आपकी अर्थी को कन्धा देने का अधिकार हमे भी हो । जब आप इस दुनिया से दूसरी दुनिया मे जाए तो भाई के साथ हम भी दाह संस्कार की हर रीत को पूरा करे । आप की आत्मा की शान्ति के लिये मुखाग्नि का अधिकार हमे भी हो ।
३ आप हमारा कन्या दान ना करे क्युकी दान किसी वस्तु का होता हैं और दान देने से वस्तु पर दान करने वाले का अधिकार ख़तम हो जाता हैं । आप अपना अधिकार हमेशा हम पर रखे ताकि हम हमेशा सुरक्षित रह सके।
जिस दिन महिलाए अपने अभिभावकों से ये तीन अधिकार ले लेगी उसदिन वो समानता की सही परिभाषा को समझगी । उसदिन समाज मे "पराया धन " के टैग से वो मुक्त हो जाएगी । समानता का अर्थ यानी मुक्ति रुढिवादी सोच से क्योकि जेंडर ईक्वलिटी इस स्टेट ऑफ़ माइंड { GENDER EQUALITY IS STATE OF MIND }
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
November 30, 2010
November 29, 2010
दाल रोटी चावल
जब नारी ब्लॉग बनाया था तब एक ब्लॉग दाल रोटी चावल भी बनाया था जिसका लिंक ये हैं । क्युकी आज कल इस पर पोस्ट नहीं आ रही हैं सो नये ब्लोगर इससे अनभिज्ञ हो सकते हैं । जिन लोगो को कुकिंग का शौक हैं वो इस ब्लॉग पर जा कर रेसिपी पढ़ सकते हैं और हाँ जो लोग नयी रेसिपी भेजना चाहते हैं मुझ से संपर्क कर सकते हैं ।
दाल रोटी चावल
दाल रोटी चावल
November 27, 2010
क्यूँ ???
एक और लड़की का रेप हुआ दिल्ली मे चलती गाड़ी मे । काम करके आ रही थी और ऑफिस कि गाडी ने १०० मीटर दूर घर से उतारा दोनों लड़कियों को , एक को पीछे से आ रही कार मे सवार चार लडको ने उठा लिया । सामूहिक बलात्कार करके लड़की को छोड़ कर रास्ते मे चले गए ।
फिर मीडिया ने शीला दीक्षित को घेरा और कहा क्या कर रही हैं वो लड़कियों कि सुरक्षा के लिये ? पिछली बार ऐसा कुछ हुआ था तो शीला दीक्षित के अन्दर कि महिला/माँ ने कहा था "लड़कियों को देर से नहीं आना चाहिये " और मीडिया उन पर चढ़ बैठा था कि आप ये कैसे कह सकती हैं । इस बार शीला दीक्षित चीएफ़ मिनिस्टर ने कहा वो जो मीडिया कहेगा वो करने को तैयार हैं ।
हफ्ते भर पहले मेट्रो के महिला आरक्षित कोच मे एक लडको ग्रुप ने सारे आम महिला को मोलेस्ट किया , कल महिला पुलिस को इन कोच मे बिठाया लेकिन उनकी पोशाक साधारण रखी । जैसे ही लडके घुसे महिला पुलिस ने धुनाई कर दी और साथ मे महिला पसेंजर ने भी जम कर पिटा । हम किसी भी ऐसे हादसे के बाद तुरंत सरकार मे जो भी हैं उसको हडकाया जाता हैं लेकिन क्या होता हैं ???
कहां से आते ये गुंडा एलिमेंट जो महिला को छेड़ता हैं और बलात्कार कि हद तक जाता हैं ?
हमारे समाज कि मानसिकता जो लड़की / महिला को क्या समझती हैं ।?
ये लडके किन घरो से आते हैं ?? उन घरो मे क्या लडकियां नहीं हैं ???
किस बात कि कमी हैं इन घरो मे जहां कि संताने ये सब कर रही हैं ??
माता -पिता कितना ज़िम्मेदार हैं इन बच्चो के ऐसा बनने मे ??
या
क्या लड़कियों को पढ़ना और आगे लाना समाज का एक गलत निर्णय रहा ??
फिर मीडिया ने शीला दीक्षित को घेरा और कहा क्या कर रही हैं वो लड़कियों कि सुरक्षा के लिये ? पिछली बार ऐसा कुछ हुआ था तो शीला दीक्षित के अन्दर कि महिला/माँ ने कहा था "लड़कियों को देर से नहीं आना चाहिये " और मीडिया उन पर चढ़ बैठा था कि आप ये कैसे कह सकती हैं । इस बार शीला दीक्षित चीएफ़ मिनिस्टर ने कहा वो जो मीडिया कहेगा वो करने को तैयार हैं ।
हफ्ते भर पहले मेट्रो के महिला आरक्षित कोच मे एक लडको ग्रुप ने सारे आम महिला को मोलेस्ट किया , कल महिला पुलिस को इन कोच मे बिठाया लेकिन उनकी पोशाक साधारण रखी । जैसे ही लडके घुसे महिला पुलिस ने धुनाई कर दी और साथ मे महिला पसेंजर ने भी जम कर पिटा । हम किसी भी ऐसे हादसे के बाद तुरंत सरकार मे जो भी हैं उसको हडकाया जाता हैं लेकिन क्या होता हैं ???
कहां से आते ये गुंडा एलिमेंट जो महिला को छेड़ता हैं और बलात्कार कि हद तक जाता हैं ?
हमारे समाज कि मानसिकता जो लड़की / महिला को क्या समझती हैं ।?
ये लडके किन घरो से आते हैं ?? उन घरो मे क्या लडकियां नहीं हैं ???
किस बात कि कमी हैं इन घरो मे जहां कि संताने ये सब कर रही हैं ??
माता -पिता कितना ज़िम्मेदार हैं इन बच्चो के ऐसा बनने मे ??
या
क्या लड़कियों को पढ़ना और आगे लाना समाज का एक गलत निर्णय रहा ??
November 26, 2010
एक बेहतरीन पोस्ट पढिये --- महिला अहिंसा दिवस
महादेवी वर्मा ने अतीत के चलचित्र में कहा था – “एक पुरुष के प्रति अन्याय की कल्पना से ही सारा पुरुष समाज उस स्त्री से प्रतिशोध लेने को उतारू हो जाता है और एक स्त्री के साथ क्रूरतम अन्याय का प्रमाण पाकर भी सब स्त्रियां उसके अकारण दण्ड को अधिक भारी बनाए बिना नहीं रहतीं।”
कल २५ नवम्बर को महिला अहिंसा दिवस था एक पोस्ट लिखने का मन था पर इस पोस्ट को पढ़ कर कुछ शेष नहीं रहगया लिखने को सो आप भी इस लिंक पर जाए जरुर ।
पोस्ट का एक अंश
लिंक
भारतीये समाज और सभ्यता कि दुहाई देने जब खुद खुले आम / प्राइवेट पार्टी मे शराब पीते हैं और फिर दुहाई देते हैं कि हमारे यहाँ "पब" कल्चर मे हमारी बेटियाँ क्यूँ जाती हैं तो उनकी सोच पर हंसी आती हैं । आप पीयों तो ठीक बेटी पीये तो नयी पीढ़ी का दोष ।
कल २५ नवम्बर को महिला अहिंसा दिवस था एक पोस्ट लिखने का मन था पर इस पोस्ट को पढ़ कर कुछ शेष नहीं रहगया लिखने को सो आप भी इस लिंक पर जाए जरुर ।
पोस्ट का एक अंश
सच है यह भी
कि क़ानून ढेर सारे हैं, पर महिलाओं के ख़िलाफ़ न सिर्फ़ हिंसा ज़ारी हैं बल्कि दिन-प्रतिदिन बढती ही जा रही हैं। जन्म लेते ही उनके ख़िलाफ़ हिंसा का चक्र शुरु हो जाता है।
यह सच है कि उनकी वेदना और त्रासदी को पुरुष लिख सकता नहीं
क्योंकि यह कड़वा सच तो हमारे पुरुष समाज की ही देन हैं
सती प्रथा
पर्दा प्रथा
बाल-विवाह
कन्या वध
बहु विवाह
विधवा प्रताड़ना
दहेज हत्या
बालिका भ्रूण हत्या
ऑनर किलिंग
पति और परिवार के सदस्यों का बुरा वार्ताव
छेड़-छाड़
तेज़ाब से हमला
साइबर अपराध
एम एम एस
दफ़्तरों में छेड़-छाड़
हां मानता हूं
हमारे इस पुरुष प्रधान समाज में यह भी मान लिया गया है कि नारी –
वस्तु है
संपत्ति है
संभोग और संतान की इच्छा पूरी करने का साधन
उपभोक्तावादी संस्कृति में उपभोग्य वस्तु
लिंक
भारतीये समाज और सभ्यता कि दुहाई देने जब खुद खुले आम / प्राइवेट पार्टी मे शराब पीते हैं और फिर दुहाई देते हैं कि हमारे यहाँ "पब" कल्चर मे हमारी बेटियाँ क्यूँ जाती हैं तो उनकी सोच पर हंसी आती हैं । आप पीयों तो ठीक बेटी पीये तो नयी पीढ़ी का दोष ।
November 25, 2010
क्या भारत में महिलाएँ पुरुषों की मर्ज़ी से वोट देती है पाठक अपनी राय दे
नारी ब्लॉग पर जब भी नारी के खिलाफ हो रहे किसी भी गलत बात का विरोध किया जाता है तो कुछ लोग उसमे कोई ना कोई मीन मेख निकाल देते है या ज़बरदस्ती उसे धर्म संस्कृति परंपरा के साथ जोड़ कर उस पर आपत्ति करने लगते है | तो आज हम कुछ नहीं कहेंगे आज यहाँ पर पाठकों से अनुरोध है की वो एक विषय पर अपने विचार अपनी सोच अपने अनुभव बताये |
विषय है क्या भारत में महिलाएँ अपनी इच्छा से वोट ना दे कर घर के पुरुष सदस्यों की मर्ज़ी से वोट देती है |
अभी बिहार चुनावों के पहले ये बात लालू प्रसाद ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि उनकी पत्नी राबड़ी देवी वही वोट देंगी जहा वो कहेंगे अब चुनावों के बाद जब ये बात सामने आ रही है कि वहा पर महिलाओ ने पुरुषों से लगभग ५% ज्यादा मतदान किया है तब कहा जा रहा है उन्होंने घर के पुरुषों के कहने पर एक पार्टी को वोट दिया | अब पाठक बताये की आप कि क्या राय है इस विषय में आप को कितनी सच्चाई नजर आ रही है क्या वाकई ऐसा ही होता है ?
क्या निरक्षर और कम पढ़ी लिखी महिलाओ के साथ ये किया जाता है ?
क्या महिलाओ की राजनीति में कम रूचि और समझ का फायदा उठाया जाता है ?
क्या पढ़ी लिखी महिलाओ को भी पुरुष अपने राजनीतिक समझ से प्रभावित करने का प्रयास करते है ?
आज लेखक की राय सभी पाठकों के विचारों को जानने के बाद आयेंगे ताकि कोई ये भी ना कह सके की लेखक ने अपने राय से लोगों के विचारों को प्रभावित किया है | अत : सभी पाठकों से अनुरोध है की वो इस विषय में अपने राय ज़रूर दे भले एक दो लाइन की ही सही |
विषय है क्या भारत में महिलाएँ अपनी इच्छा से वोट ना दे कर घर के पुरुष सदस्यों की मर्ज़ी से वोट देती है |
अभी बिहार चुनावों के पहले ये बात लालू प्रसाद ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि उनकी पत्नी राबड़ी देवी वही वोट देंगी जहा वो कहेंगे अब चुनावों के बाद जब ये बात सामने आ रही है कि वहा पर महिलाओ ने पुरुषों से लगभग ५% ज्यादा मतदान किया है तब कहा जा रहा है उन्होंने घर के पुरुषों के कहने पर एक पार्टी को वोट दिया | अब पाठक बताये की आप कि क्या राय है इस विषय में आप को कितनी सच्चाई नजर आ रही है क्या वाकई ऐसा ही होता है ?
क्या निरक्षर और कम पढ़ी लिखी महिलाओ के साथ ये किया जाता है ?
क्या महिलाओ की राजनीति में कम रूचि और समझ का फायदा उठाया जाता है ?
क्या पढ़ी लिखी महिलाओ को भी पुरुष अपने राजनीतिक समझ से प्रभावित करने का प्रयास करते है ?
आज लेखक की राय सभी पाठकों के विचारों को जानने के बाद आयेंगे ताकि कोई ये भी ना कह सके की लेखक ने अपने राय से लोगों के विचारों को प्रभावित किया है | अत : सभी पाठकों से अनुरोध है की वो इस विषय में अपने राय ज़रूर दे भले एक दो लाइन की ही सही |
November 23, 2010
लड़कियों को सुरक्षित रखने के ज्यादा अच्छा उपाय
एक सवाल है | यदि समाज में ठग अपराधी हो तो क्या किया जाना चाहिए ?
क्या हम सभी को घर के अंदर बंद हो कर रहना चाहिए ?
घर के बाहर गहने पैसे या कीमती समान नही ले कर निकलना चाहिए ?
यदि अपराधी घर के अंदर आ कर अपराध कर जाये तो फिर क्या करे ?
या अपराधी घर का ही हो तो क्या किया जाये ?
सजा अपराधी को दिया जाये उसे समाज से बाहर किया जाये या खुद घर में बंद कर या अन्य उपाय कर खुद को सजा दी जाये?
आप कहेंगे की खुद को क्यों सजा दी जाये अच्छा हो की अपराधी को सजा दी जाये कुछ ऐसा किया जाये की अपराधी अपराध करने से तौबा कर ले ना की खुद को सजा दी जाये |
पर समाज की सोच तब खुद को सजा देने जैसी हो जाती है जब कोई बात महिलाओ से जुड़ी हो |
अभी हाल में मेरा ज्ञान बढ़ा की लड़कियों के नाक कान इस लिए छिदवाए जाते है ताकि उनकी कामुकता निकाल जाये या उनके शरीर की गर्मी निकल जाये | पढ़ कर आप को हंसी आ रही होगी मुझे भी आई थी | मैं बिना कोई वेद पुराण पढ़े बता सकती हुं की ये बेमतलब की बात उनमें से किसी में भी नहीं लिखी होगी | पर इस बात से इंकार तो नहीं किया जा सकता है की समाज के आम लोगो में ये सोच है आम लोगो के दिमाग में इस तरह की बात उपजी है, क्यों | अब इसका कारण आप पूछेंगे तो वो यही कहेंगे की हमारी लड़कियाँ सुरक्षित हो वो उस "गर्मी" के कारण कोई गलत कदम ना उठाये इसलिए ये किया जाता है |
असल में ये पुरुषवादी समाज की पुरुषवादी सोच है और इसका लड़कियों की सुरक्षा से कोई मतलब नहीं होगा | यदि कोई समाज अपनी लड़कियों के सतित्व की सुरक्षा के लिए इतना फ़िक्र मंद होता तो मुझे लगता है की इससे अच्छा उपाय तो ये होता की लड़कों के शरीर में छेद कर कर के उनकी "गर्मी " निकाल दी जाती तब शायद ज्यादा लड़कियाँ सुरक्षित होती | सोचिये की दोनों कान और एक छेद नाक में करने से लड़कियाँ इतनी नियंत्रित हो जाती है तो क्यों ना सभी लड़कों के कान और नाक में दो चार छेद कर दिया जाये वो भी कुछ नियंत्रित हो जायेंगे थोड़ी गर्मी उनकी निकल जाएगी और हमारी बहन बेटिया आराम से घर से बाहर निकाल सकेंगी पहले से ज्यादा सुरक्षित रहेंगी | तीन छेदों के बाद भी किसी लड़के की गर्मी ना निकाले तो उसमे दो चार छेद और कर देने चाहिए | इस गर्मी के कारण वो कोई ऐसी हरकत कर बैठे की लोग सरे आम उसके सर में एक बड़ा छेद करने की हसरत करने लगे उससे तो यही अच्छा होगा की उनकी सुरक्षा के लिए उन में दो चार छेद और कर दिया जाये और तब तक करते रहे जब तक की उनकी गर्मी ठीक से खुद को नियंत्रित करने लायक ना निकाल जाये |
मैं यहाँ ये नहीं कह रही हुं की लड़कियों के नाक कान में छिद्र करना उन पर कोई अत्याचार है या ये काम ज़बरदस्ती की जाती है | लड़कियों के लिए ये सजने सवरने का साधन है और ज्यादातर अपनी मर्ज़ी से करती है या बचपन में घरवालों के द्वारा कराये जाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती है | मेरा सवाल तो समाज की सोच पर है और इस तरह की सोच कोई पहली या आखिरी नहीं है | ऐसी सोचे समाज का लड़कियों की तरफ उसका रवैया दर्शाता है कि कैसे किसी लड़की के साथ होने वाले छेड़ छाड़ की घटना में उसे ही दोषी ठहरा दिया जाता है कभी उसके कपड़ों को कभी उसके घर से बाहर निकालने को तो कभी उसके खुली सोच को इसका कारण बताया जाता है और सजा के तौर पर उसे ही घर में बंद कर दिया जाता है | क्यों नहीं हम अपने अपने सड़को को ही सुधारने की कोई शिक्षा देते है |
ऐसा क्यों किया जाता है ? क्यों नहीं अपराध करने वाले को सजा दिया जाये क्यों नहीं उन्हें ही सुधारने का काम किया जाये ?
नहीं सुधारे तो बस दो चार छेद कर सारी गर्मी बाहर निकाल दी जाये | बोलिए क्या ये लड़कियों को सुरक्षित रखने के ज्यादा अच्छा उपाय नहीं है |
क्या हम सभी को घर के अंदर बंद हो कर रहना चाहिए ?
घर के बाहर गहने पैसे या कीमती समान नही ले कर निकलना चाहिए ?
यदि अपराधी घर के अंदर आ कर अपराध कर जाये तो फिर क्या करे ?
या अपराधी घर का ही हो तो क्या किया जाये ?
सजा अपराधी को दिया जाये उसे समाज से बाहर किया जाये या खुद घर में बंद कर या अन्य उपाय कर खुद को सजा दी जाये?
आप कहेंगे की खुद को क्यों सजा दी जाये अच्छा हो की अपराधी को सजा दी जाये कुछ ऐसा किया जाये की अपराधी अपराध करने से तौबा कर ले ना की खुद को सजा दी जाये |
पर समाज की सोच तब खुद को सजा देने जैसी हो जाती है जब कोई बात महिलाओ से जुड़ी हो |
अभी हाल में मेरा ज्ञान बढ़ा की लड़कियों के नाक कान इस लिए छिदवाए जाते है ताकि उनकी कामुकता निकाल जाये या उनके शरीर की गर्मी निकल जाये | पढ़ कर आप को हंसी आ रही होगी मुझे भी आई थी | मैं बिना कोई वेद पुराण पढ़े बता सकती हुं की ये बेमतलब की बात उनमें से किसी में भी नहीं लिखी होगी | पर इस बात से इंकार तो नहीं किया जा सकता है की समाज के आम लोगो में ये सोच है आम लोगो के दिमाग में इस तरह की बात उपजी है, क्यों | अब इसका कारण आप पूछेंगे तो वो यही कहेंगे की हमारी लड़कियाँ सुरक्षित हो वो उस "गर्मी" के कारण कोई गलत कदम ना उठाये इसलिए ये किया जाता है |
असल में ये पुरुषवादी समाज की पुरुषवादी सोच है और इसका लड़कियों की सुरक्षा से कोई मतलब नहीं होगा | यदि कोई समाज अपनी लड़कियों के सतित्व की सुरक्षा के लिए इतना फ़िक्र मंद होता तो मुझे लगता है की इससे अच्छा उपाय तो ये होता की लड़कों के शरीर में छेद कर कर के उनकी "गर्मी " निकाल दी जाती तब शायद ज्यादा लड़कियाँ सुरक्षित होती | सोचिये की दोनों कान और एक छेद नाक में करने से लड़कियाँ इतनी नियंत्रित हो जाती है तो क्यों ना सभी लड़कों के कान और नाक में दो चार छेद कर दिया जाये वो भी कुछ नियंत्रित हो जायेंगे थोड़ी गर्मी उनकी निकल जाएगी और हमारी बहन बेटिया आराम से घर से बाहर निकाल सकेंगी पहले से ज्यादा सुरक्षित रहेंगी | तीन छेदों के बाद भी किसी लड़के की गर्मी ना निकाले तो उसमे दो चार छेद और कर देने चाहिए | इस गर्मी के कारण वो कोई ऐसी हरकत कर बैठे की लोग सरे आम उसके सर में एक बड़ा छेद करने की हसरत करने लगे उससे तो यही अच्छा होगा की उनकी सुरक्षा के लिए उन में दो चार छेद और कर दिया जाये और तब तक करते रहे जब तक की उनकी गर्मी ठीक से खुद को नियंत्रित करने लायक ना निकाल जाये |
मैं यहाँ ये नहीं कह रही हुं की लड़कियों के नाक कान में छिद्र करना उन पर कोई अत्याचार है या ये काम ज़बरदस्ती की जाती है | लड़कियों के लिए ये सजने सवरने का साधन है और ज्यादातर अपनी मर्ज़ी से करती है या बचपन में घरवालों के द्वारा कराये जाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती है | मेरा सवाल तो समाज की सोच पर है और इस तरह की सोच कोई पहली या आखिरी नहीं है | ऐसी सोचे समाज का लड़कियों की तरफ उसका रवैया दर्शाता है कि कैसे किसी लड़की के साथ होने वाले छेड़ छाड़ की घटना में उसे ही दोषी ठहरा दिया जाता है कभी उसके कपड़ों को कभी उसके घर से बाहर निकालने को तो कभी उसके खुली सोच को इसका कारण बताया जाता है और सजा के तौर पर उसे ही घर में बंद कर दिया जाता है | क्यों नहीं हम अपने अपने सड़को को ही सुधारने की कोई शिक्षा देते है |
ऐसा क्यों किया जाता है ? क्यों नहीं अपराध करने वाले को सजा दिया जाये क्यों नहीं उन्हें ही सुधारने का काम किया जाये ?
नहीं सुधारे तो बस दो चार छेद कर सारी गर्मी बाहर निकाल दी जाये | बोलिए क्या ये लड़कियों को सुरक्षित रखने के ज्यादा अच्छा उपाय नहीं है |
तिलियार ब्लोग्गर मीट -- किसने कहा मै नहीं थी ???? पढिये क्या क्या हुआ
तिलयार झील पर ब्लोगर मीट मे कितने ब्लॉगर थे और क्या क्या खाया गया ये तो आपसब पढ़ और देख ही चुके हैं । अब देखिये इस पोस्ट मे आये कमेन्ट को जो मानसिक खालीपन और जहालत से लबालब हैं , ये सन्दर्भ जिस मे द्विअर्थी संवाद किसको लेकर किया जा रहा हैं ये साफ़ दिख रहा हैं। बड़े बड़े महान ब्लॉगर वहाँ कमेन्ट मे हजारी बजा रहे हैं ।
मुझ से निरंतर कहा जाता हैं ब्लोगिंग एक परिवार हैं और मैने नारी ब्लॉग बना कर गलती की हैं यहाँ कोई खराब नहीं हैं और मै हमेशा offensive पर रहती हूँ और बहुत कर्कश हूँ । सो इस बार ये पोस्ट देने से पहले सबके आदर्श श्री सतीश सक्सेना जी और श्री समीर लाल जी को मेल दे कर ये सूचित किया कि वो इस लिंक को देखे । मैने उनके उत्तर का इंतज़ार किया और अब इंतज़ार ख़तम हुआ क्युकी उत्तर आगया हैं
सतीश जी का मानना हैं कि उन्होने इस नज़रिये से नहीं सोचा और समीर जी कहते हैं कि सुधारने के लिये एक मौका देना चाहिये
अब छिछोरो को क्या कोई सुधार सका हैं वो किसी भी उम्र पर पहुँच जाये उनके लिये स्त्री केवल और केवल स्त्री ही होती हैं । लेकिन एक बात जरुर हैं जो इन छिछोरो कि संगती में ताली बजाते हैं वो स्पाइन लेस ही होते हैं ।
अब आप सब इस लिंक पर पढे जो हो रहा हैं । देखिये ब्लोगिंग क्यूँ कि जाती और उसके क्या क्या फायदे हैं । और ये भी देखिये जो समाज मे आवाज उठाते हैं हम उनके प्रति क्या रविया रखते हैं । इस पोस्ट पर आये कमेंट्स सब कहानी खुद ही कह रहे हैं और इनको आप तक लाना जरुरी हैं । मै ना पोस्ट हटाने कि मांग कर रही हूँ , ना कमेंट्स हटाने कि क्युकी कौन क्या हैं और जहिनियत के अंदर कितनी जहालत हैं ये पोस्ट और ऐसी तमाम पोस्ट और कमेन्ट जहां कोई आपत्ति दर्ज नहीं होती उसका आइना हैं
मुझ से निरंतर कहा जाता हैं ब्लोगिंग एक परिवार हैं और मैने नारी ब्लॉग बना कर गलती की हैं यहाँ कोई खराब नहीं हैं और मै हमेशा offensive पर रहती हूँ और बहुत कर्कश हूँ । सो इस बार ये पोस्ट देने से पहले सबके आदर्श श्री सतीश सक्सेना जी और श्री समीर लाल जी को मेल दे कर ये सूचित किया कि वो इस लिंक को देखे । मैने उनके उत्तर का इंतज़ार किया और अब इंतज़ार ख़तम हुआ क्युकी उत्तर आगया हैं
सतीश जी का मानना हैं कि उन्होने इस नज़रिये से नहीं सोचा और समीर जी कहते हैं कि सुधारने के लिये एक मौका देना चाहिये
अब छिछोरो को क्या कोई सुधार सका हैं वो किसी भी उम्र पर पहुँच जाये उनके लिये स्त्री केवल और केवल स्त्री ही होती हैं । लेकिन एक बात जरुर हैं जो इन छिछोरो कि संगती में ताली बजाते हैं वो स्पाइन लेस ही होते हैं ।
अब आप सब इस लिंक पर पढे जो हो रहा हैं । देखिये ब्लोगिंग क्यूँ कि जाती और उसके क्या क्या फायदे हैं । और ये भी देखिये जो समाज मे आवाज उठाते हैं हम उनके प्रति क्या रविया रखते हैं । इस पोस्ट पर आये कमेंट्स सब कहानी खुद ही कह रहे हैं और इनको आप तक लाना जरुरी हैं । मै ना पोस्ट हटाने कि मांग कर रही हूँ , ना कमेंट्स हटाने कि क्युकी कौन क्या हैं और जहिनियत के अंदर कितनी जहालत हैं ये पोस्ट और ऐसी तमाम पोस्ट और कमेन्ट जहां कोई आपत्ति दर्ज नहीं होती उसका आइना हैं
Comments :
38 टिप्पणियाँ to “भाटिया और अलबेला में युद्ध--ब्लोगर मिलन के बाद------ललित शर्मा”
लड़कियों को सुरक्षित रखने के ज्यादा अच्छा उपाय
एक सवाल है | यदि समाज में ठग अपराधी हो तो क्या किया जाना चाहिए ?
क्या हम सभी को घर के अंदर बंद हो कर रहना चाहिए ?
घर के बाहर गहने पैसे या कीमती समान नही ले कर निकलना चाहिए ?
यदि अपराधी घर के अंदर आ कर अपराध कर जाये तो फिर क्या करे ?
या अपराधी घर का ही हो तो क्या किया जाये ?
सजा अपराधी को दिया जाये उसे समाज से बाहर किया जाये या खुद घर में बंद कर या अन्य उपाय कर खुद को सजा दी जाये?
आप कहेंगे की खुद को क्यों सजा दी जाये अच्छा हो की अपराधी को सजा दी जाये कुछ ऐसा किया जाये की अपराधी अपराध करने से तौबा कर ले ना की खुद को सजा दी जाये |
पर समाज की सोच तब खुद को सजा देने जैसी हो जाती है जब कोई बात महिलाओ से जुड़ी हो |
अभी हाल में मेरा ज्ञान बढ़ा की लड़कियों के नाक कान इस लिए छिदवाए जाते है ताकि उनकी कामुकता निकाल जाये या उनके शरीर की गर्मी निकल जाये | पढ़ कर आप को हंसी आ रही होगी मुझे भी आई थी | मैं बिना कोई वेद पुराण पढ़े बता सकती हुं की ये बेमतलब की बात उनमें से किसी में भी नहीं लिखी होगी | पर इस बात से इंकार तो नहीं किया जा सकता है की समाज के आम लोगो में ये सोच है आम लोगो के दिमाग में इस तरह की बात उपजी है, क्यों | अब इसका कारण आप पूछेंगे तो वो यही कहेंगे की हमारी लड़कियाँ सुरक्षित हो वो उस "गर्मी" के कारण कोई गलत कदम ना उठाये इसलिए ये किया जाता है |
असल में ये पुरुषवादी समाज की पुरुषवादी सोच है और इसका लड़कियों की सुरक्षा से कोई मतलब नहीं होगा | यदि कोई समाज अपनी लड़कियों के सतित्व की सुरक्षा के लिए इतना फ़िक्र मंद होता तो मुझे लगता है की इससे अच्छा उपाय तो ये होता की लड़कों के शरीर में छेद कर कर के उनकी "गर्मी " निकाल दी जाती तब शायद ज्यादा लड़कियाँ सुरक्षित होती | सोचिये की दोनों कान और एक छेद नाक में करने से लड़कियाँ इतनी नियंत्रित हो जाती है तो क्यों ना सभी लड़कों के कान और नाक में दो चार छेद कर दिया जाये वो भी कुछ नियंत्रित हो जायेंगे थोड़ी गर्मी उनकी निकल जाएगी और हमारी बहन बेटिया आराम से घर से बाहर निकाल सकेंगी पहले से ज्यादा सुरक्षित रहेंगी | तीन छेदों के बाद भी किसी लड़के की गर्मी ना निकाले तो उसमे दो चार छेद और कर देने चाहिए | इस गर्मी के कारण वो कोई ऐसी हरकत कर बैठे की लोग सरे आम उसके सर में एक बड़ा छेद करने की हसरत करने लगे उससे तो यही अच्छा होगा की उनकी सुरक्षा के लिए उन में दो चार छेद और कर दिया जाये और तब तक करते रहे जब तक की उनकी गर्मी ठीक से खुद को नियंत्रित करने लायक ना निकाल जाये |
मैं यहाँ ये नहीं कह रही हुं की लड़कियों के नाक कान में छिद्र करना उन पर कोई अत्याचार है या ये काम ज़बरदस्ती की जाती है | लड़कियों के लिए ये सजने सवरने का साधन है और ज्यादातर अपनी मर्ज़ी से करती है या बचपन में घरवालों के द्वारा कराये जाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती है | मेरा सवाल तो समाज की सोच पर है और इस तरह की सोच कोई पहली या आखिरी नहीं है | ऐसी सोचे समाज का लड़कियों की तरफ उसका रवैया दर्शाता है कि कैसे किसी लड़की के साथ होने वाले छेड़ छाड़ की घटना में उसे ही दोषी ठहरा दिया जाता है कभी उसके कपड़ों को कभी उसके घर से बाहर निकालने को तो कभी उसके खुली सोच को इसका कारण बताया जाता है और सजा के तौर पर उसे ही घर में बंद कर दिया जाता है | क्यों नहीं हम अपने अपने सड़को को ही सुधारने की कोई शिक्षा देते है |
ऐसा क्यों किया जाता है ? क्यों नहीं अपराध करने वाले को सजा दिया जाये क्यों नहीं उन्हें ही सुधारने का काम किया जाये ?
नहीं सुधारे तो बस दो चार छेद कर सारी गर्मी बाहर निकाल दी जाये | बोलिए क्या ये लड़कियों को सुरक्षित रखने के ज्यादा अच्छा उपाय नहीं है |
क्या हम सभी को घर के अंदर बंद हो कर रहना चाहिए ?
घर के बाहर गहने पैसे या कीमती समान नही ले कर निकलना चाहिए ?
यदि अपराधी घर के अंदर आ कर अपराध कर जाये तो फिर क्या करे ?
या अपराधी घर का ही हो तो क्या किया जाये ?
सजा अपराधी को दिया जाये उसे समाज से बाहर किया जाये या खुद घर में बंद कर या अन्य उपाय कर खुद को सजा दी जाये?
आप कहेंगे की खुद को क्यों सजा दी जाये अच्छा हो की अपराधी को सजा दी जाये कुछ ऐसा किया जाये की अपराधी अपराध करने से तौबा कर ले ना की खुद को सजा दी जाये |
पर समाज की सोच तब खुद को सजा देने जैसी हो जाती है जब कोई बात महिलाओ से जुड़ी हो |
अभी हाल में मेरा ज्ञान बढ़ा की लड़कियों के नाक कान इस लिए छिदवाए जाते है ताकि उनकी कामुकता निकाल जाये या उनके शरीर की गर्मी निकल जाये | पढ़ कर आप को हंसी आ रही होगी मुझे भी आई थी | मैं बिना कोई वेद पुराण पढ़े बता सकती हुं की ये बेमतलब की बात उनमें से किसी में भी नहीं लिखी होगी | पर इस बात से इंकार तो नहीं किया जा सकता है की समाज के आम लोगो में ये सोच है आम लोगो के दिमाग में इस तरह की बात उपजी है, क्यों | अब इसका कारण आप पूछेंगे तो वो यही कहेंगे की हमारी लड़कियाँ सुरक्षित हो वो उस "गर्मी" के कारण कोई गलत कदम ना उठाये इसलिए ये किया जाता है |
असल में ये पुरुषवादी समाज की पुरुषवादी सोच है और इसका लड़कियों की सुरक्षा से कोई मतलब नहीं होगा | यदि कोई समाज अपनी लड़कियों के सतित्व की सुरक्षा के लिए इतना फ़िक्र मंद होता तो मुझे लगता है की इससे अच्छा उपाय तो ये होता की लड़कों के शरीर में छेद कर कर के उनकी "गर्मी " निकाल दी जाती तब शायद ज्यादा लड़कियाँ सुरक्षित होती | सोचिये की दोनों कान और एक छेद नाक में करने से लड़कियाँ इतनी नियंत्रित हो जाती है तो क्यों ना सभी लड़कों के कान और नाक में दो चार छेद कर दिया जाये वो भी कुछ नियंत्रित हो जायेंगे थोड़ी गर्मी उनकी निकल जाएगी और हमारी बहन बेटिया आराम से घर से बाहर निकाल सकेंगी पहले से ज्यादा सुरक्षित रहेंगी | तीन छेदों के बाद भी किसी लड़के की गर्मी ना निकाले तो उसमे दो चार छेद और कर देने चाहिए | इस गर्मी के कारण वो कोई ऐसी हरकत कर बैठे की लोग सरे आम उसके सर में एक बड़ा छेद करने की हसरत करने लगे उससे तो यही अच्छा होगा की उनकी सुरक्षा के लिए उन में दो चार छेद और कर दिया जाये और तब तक करते रहे जब तक की उनकी गर्मी ठीक से खुद को नियंत्रित करने लायक ना निकाल जाये |
मैं यहाँ ये नहीं कह रही हुं की लड़कियों के नाक कान में छिद्र करना उन पर कोई अत्याचार है या ये काम ज़बरदस्ती की जाती है | लड़कियों के लिए ये सजने सवरने का साधन है और ज्यादातर अपनी मर्ज़ी से करती है या बचपन में घरवालों के द्वारा कराये जाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती है | मेरा सवाल तो समाज की सोच पर है और इस तरह की सोच कोई पहली या आखिरी नहीं है | ऐसी सोचे समाज का लड़कियों की तरफ उसका रवैया दर्शाता है कि कैसे किसी लड़की के साथ होने वाले छेड़ छाड़ की घटना में उसे ही दोषी ठहरा दिया जाता है कभी उसके कपड़ों को कभी उसके घर से बाहर निकालने को तो कभी उसके खुली सोच को इसका कारण बताया जाता है और सजा के तौर पर उसे ही घर में बंद कर दिया जाता है | क्यों नहीं हम अपने अपने सड़को को ही सुधारने की कोई शिक्षा देते है |
ऐसा क्यों किया जाता है ? क्यों नहीं अपराध करने वाले को सजा दिया जाये क्यों नहीं उन्हें ही सुधारने का काम किया जाये ?
नहीं सुधारे तो बस दो चार छेद कर सारी गर्मी बाहर निकाल दी जाये | बोलिए क्या ये लड़कियों को सुरक्षित रखने के ज्यादा अच्छा उपाय नहीं है |
November 14, 2010
हिंदी ब्लॉग विमर्श दिल्ली एक रिपोर्ट दो घंटे अच्छे बीते ये कम उपलब्धि नहीं हैं ।
१३ नवम्बर को दिल्ली मे हिंदी ब्लॉग विमर्श का आयोजन किया गया । मुख्य अतिथि श्री समीर लाल थे जो ब्लॉग जगत मे किसी भी नये ब्लॉगर के ब्लॉग पर सबसे पहले टिपण्णी देने वाले ब्लॉगर के रूप मे जाने जाते हैं । समीर लाल कनाडा के निवासी हैं और साधना जो उनकी पत्नी हैं के साथ दिल्ली आये हैं । {साधना मीट मे ना आ सकी थी }। मुख्य अतिथि के आने से पहले ही सब ने चाय और नाश्ता लेना शुरू कर दिया था !!!!!!!!!!! सो आप समझ सकते हैं कि कौन किस लिये आया !!!!!
शायद ही कोई नया ब्लॉगर होगा जो समीर को ना जानता हो । कह सकते हैं कि समीर कि usp उनका वो पहला कमेन्ट ही हैं जो वो हर ब्लॉग पर देते हैं । समीर का मानना हैं कि जब तक हिंदी ब्लॉग १० लाख का आकड़ा नहीं छुयेगे तब तक कमाई का जरिया नहीं बन सकते । समीर के हिसाब से हर वो ब्लॉग जो विवाद पर बना मिट गया हैं । समीर ने कहा कि ब्लॉग लेखन टिपण्णी के लिये नहीं करना चाहिये क्युकी जब तक आप को वो पहला कमेन्ट नहीं मिला था { यानी समीर का पहला कमेन्ट !!!!!! } तब तक आप जानते ही नहीं थे कि टिपण्णी क्या होती हैं । समीर चाहते हैं ब्लॉग कि संख्या बढाई जाये { ब्लॉग कि या ब्लॉगर कि ये उन्होंने साफ़ नहीं किया } ताकि लोगो को ब्लॉग पर विज्ञापन देने कि जरुरत हो । इसके अलावा समीर ने कहा वो किसी भी विवाद मे नहीं पड़ते और आज तक उन्होंने कभी भी कहीं भी किसी से भी ये नहीं कहा हैं वो किसी के ग्रुप मे हैं या कोई अनूप शुक्ल के ग्रुप मे हैं । उनके हिसाब से लोग खुद ये सब सोचते हैं
ग्रुप कि बात सतीश सक्सेना ने उठाई थी उन्होंने बताया था समीर के साथ कार मे आते समय इस बात पर काफी बात हुई { आधे घंटे का रास्ता था तो काफी बात अगर इस बात पर हुई तो फिर और बाते तो क्या ही हुई होगी !!!} क्युकी सतीश सक्सेना हमेशा "मध्यस्थ " बनने का मार्ग खोजते हैं सो यहाँ भी उन्होने वही कहा कि "बुरा मत देखो , बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो " लेकिन खुद ग्रुप कि बात और अनूप शुक्ल - समीर कि दोस्ती मे विवाद को भी उन्होने ही नये ब्लॉगर के समक्ष रखा ।
बालेन्दु दाधीच जी ने तकनीक के जरिये और फिर उसके उल्ट अपनी कविता के जरिये ब्लॉग और ब्लॉगर कि बात को , महिमा को बताया । सबसे ज्यादा समय इन्होने ही लिया परन्तु समीर कि बात सुने बिना ही समय कि कमी के कारण ये बीच मे से ही चले गए !!!!!!!
जिन लोगो ने हाल मे ब्लोगिंग शुरू कि हैं वो सब जानना चाहते थे कि पहले हिंदी ब्लॉगर कौन थे । पहले हिंदी ब्लॉगर अलोक थे , चिटठा शब्द भी उन्ही का बनाया हुआ हैं और चिटठा जगत के कर्णधारो मे वो भी हैं । पहली महिला ब्लॉगर पद्मजा मानी जाती हैं । ये जानकारी मुझे थी सो मैने वहाँ भी बता दी ।
नए ब्लॉगर ये मानते हैं कि तकनीक कि जानकारी जरुरी हैं बहुत से ब्लॉगर तकनीक मे कमजोर हैं ।
हिंदी को आगे लाने के लिये ब्लॉग माध्यम नहीं हैं और इंग्लिश से परहेज करना सही नहीं हैं इस बात को डॉ टी एस दराल ने अनुमोदित किया । हिंदी से प्यार हमे हिंदी ब्लॉगर बनाता हैं लेकिन इंग्लिश और अन्य भाषाओ मे भी लिखना हमे मजबूत बनाता हैं ।
मेरे ये कहने पर कि ब्लॉग संख्या बढने के लिये सबको कोशिश करनी चाहिये कि अपनी पत्नी को प्रेरित करे सब को हंसी आ गयी और एक ने तो कहा कि उनकी पत्नी को ब्लॉग लेखन "बेफिजूल " लगता हैं । और फिर उन्होंने ये भी कहा कि अगर पत्नी भी ब्लोगिंग करेगी तो खाना कौन बनाये गा { अब इस के आगे मे उनसे क्या कह सकती थी उनकी पत्नी हैं वो खाना बनवाये या बर्तन धुलवाए , पत्निया शायद इसी लिये होती हैं } समीर ने जरुर ये कहा जिस को पसंद हो गा ब्लॉग वही लिखेगा ।
मीटिंग के बाद एक ही सवाल था मन मे कि जिस ब्लोगिंग को आप अपने घर मे "सम्मान " नहीं दिला सकते आप उसको विश्व ख्याति कैसे दिलवायेगे ।
मीटिंग के आयोजक बहुत ही विनर्म और शालीन थे । उन्होने अपनी तरफ से सबको पूरा सम्मान दिया । उनका शुक्रिया । बाकी कुछ ऐसा ख़ास नहीं हुआ कि कहे कि आप नहीं आये तो आप ने मिस किया । पर हां जो नहीं आये उनको हर आने वाले ने जरुर मिस किया। दो घंटे अच्छे बीते ये कम उपलब्धि नहीं हैं ।
शायद ही कोई नया ब्लॉगर होगा जो समीर को ना जानता हो । कह सकते हैं कि समीर कि usp उनका वो पहला कमेन्ट ही हैं जो वो हर ब्लॉग पर देते हैं । समीर का मानना हैं कि जब तक हिंदी ब्लॉग १० लाख का आकड़ा नहीं छुयेगे तब तक कमाई का जरिया नहीं बन सकते । समीर के हिसाब से हर वो ब्लॉग जो विवाद पर बना मिट गया हैं । समीर ने कहा कि ब्लॉग लेखन टिपण्णी के लिये नहीं करना चाहिये क्युकी जब तक आप को वो पहला कमेन्ट नहीं मिला था { यानी समीर का पहला कमेन्ट !!!!!! } तब तक आप जानते ही नहीं थे कि टिपण्णी क्या होती हैं । समीर चाहते हैं ब्लॉग कि संख्या बढाई जाये { ब्लॉग कि या ब्लॉगर कि ये उन्होंने साफ़ नहीं किया } ताकि लोगो को ब्लॉग पर विज्ञापन देने कि जरुरत हो । इसके अलावा समीर ने कहा वो किसी भी विवाद मे नहीं पड़ते और आज तक उन्होंने कभी भी कहीं भी किसी से भी ये नहीं कहा हैं वो किसी के ग्रुप मे हैं या कोई अनूप शुक्ल के ग्रुप मे हैं । उनके हिसाब से लोग खुद ये सब सोचते हैं
ग्रुप कि बात सतीश सक्सेना ने उठाई थी उन्होंने बताया था समीर के साथ कार मे आते समय इस बात पर काफी बात हुई { आधे घंटे का रास्ता था तो काफी बात अगर इस बात पर हुई तो फिर और बाते तो क्या ही हुई होगी !!!} क्युकी सतीश सक्सेना हमेशा "मध्यस्थ " बनने का मार्ग खोजते हैं सो यहाँ भी उन्होने वही कहा कि "बुरा मत देखो , बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो " लेकिन खुद ग्रुप कि बात और अनूप शुक्ल - समीर कि दोस्ती मे विवाद को भी उन्होने ही नये ब्लॉगर के समक्ष रखा ।
बालेन्दु दाधीच जी ने तकनीक के जरिये और फिर उसके उल्ट अपनी कविता के जरिये ब्लॉग और ब्लॉगर कि बात को , महिमा को बताया । सबसे ज्यादा समय इन्होने ही लिया परन्तु समीर कि बात सुने बिना ही समय कि कमी के कारण ये बीच मे से ही चले गए !!!!!!!
जिन लोगो ने हाल मे ब्लोगिंग शुरू कि हैं वो सब जानना चाहते थे कि पहले हिंदी ब्लॉगर कौन थे । पहले हिंदी ब्लॉगर अलोक थे , चिटठा शब्द भी उन्ही का बनाया हुआ हैं और चिटठा जगत के कर्णधारो मे वो भी हैं । पहली महिला ब्लॉगर पद्मजा मानी जाती हैं । ये जानकारी मुझे थी सो मैने वहाँ भी बता दी ।
नए ब्लॉगर ये मानते हैं कि तकनीक कि जानकारी जरुरी हैं बहुत से ब्लॉगर तकनीक मे कमजोर हैं ।
हिंदी को आगे लाने के लिये ब्लॉग माध्यम नहीं हैं और इंग्लिश से परहेज करना सही नहीं हैं इस बात को डॉ टी एस दराल ने अनुमोदित किया । हिंदी से प्यार हमे हिंदी ब्लॉगर बनाता हैं लेकिन इंग्लिश और अन्य भाषाओ मे भी लिखना हमे मजबूत बनाता हैं ।
मेरे ये कहने पर कि ब्लॉग संख्या बढने के लिये सबको कोशिश करनी चाहिये कि अपनी पत्नी को प्रेरित करे सब को हंसी आ गयी और एक ने तो कहा कि उनकी पत्नी को ब्लॉग लेखन "बेफिजूल " लगता हैं । और फिर उन्होंने ये भी कहा कि अगर पत्नी भी ब्लोगिंग करेगी तो खाना कौन बनाये गा { अब इस के आगे मे उनसे क्या कह सकती थी उनकी पत्नी हैं वो खाना बनवाये या बर्तन धुलवाए , पत्निया शायद इसी लिये होती हैं } समीर ने जरुर ये कहा जिस को पसंद हो गा ब्लॉग वही लिखेगा ।
मीटिंग के बाद एक ही सवाल था मन मे कि जिस ब्लोगिंग को आप अपने घर मे "सम्मान " नहीं दिला सकते आप उसको विश्व ख्याति कैसे दिलवायेगे ।
मीटिंग के आयोजक बहुत ही विनर्म और शालीन थे । उन्होने अपनी तरफ से सबको पूरा सम्मान दिया । उनका शुक्रिया । बाकी कुछ ऐसा ख़ास नहीं हुआ कि कहे कि आप नहीं आये तो आप ने मिस किया । पर हां जो नहीं आये उनको हर आने वाले ने जरुर मिस किया। दो घंटे अच्छे बीते ये कम उपलब्धि नहीं हैं ।
November 12, 2010
अगर भारतीय समाज को "परिवार " को बचाना हैं तो उसे ये मानना होगा कि नारी पुरूष बराबर हैं नहीं तो-----
साहित्य मे बार बार जो नारी को अबला कह जाता हैं क्या सही हैं ?? क्या नारी जो ख़ुद भी आज भी यही लिखती हैं कि वोह अबला हैं , ये पुरूष प्रधान समाज हैं सही कर रही हैं ? क्या इस प्रकार का साहित्य आज के समय मे भी सही हैं जहाँ बार बार ये लिखा जाता हैं कि समाज मे नारी को केवल घुटन मिलती हैं ?? आज से ६० साल पहले जब देश आजाद हुआ तब स्थिती और थी , औरत के लिये समाज मे जो स्थान था उस समय उसके अनुकूल जो नारियाँ लेखिका बनी उनका रचना साहित्य उस समय के लिये था { नहीं मे ये नहीं कह रही साहित्य obselete हो जाता हैं } क्योकि उनके पास आगे बढने के लिये , घुटन से निकालने के लिये कोई और रास्ता नहीं था । किताबे पढ़ना और किताबे लिखना और इतना बढिया लिखना की कोई भी नारी पढे तो रिवोल्ट करने के तैयार हो जाए यही मकसद था उनके लेखन का पर आज के समय मे नारी के पास घुटन से आज़ादी अर्जित करने के बहुत साधन हैं । आज कि नारी का विद्रोह पुरूष से नहीं , समाज कि कुरीतियों से हैं जो नारी - पुरूष को एक अलग लाइन मे खडा करती हैं । ६० साल पहले कि नारी विद्रोह कर रही थी शायद पुरूष से और इसीलिये वह बार बार कहती थी " हमें आजादी दो " लेकिन आज कि नारी अपने को आजाद मानती हैं और उसका विरोध हैं उस नीति से जो उसे पुरूष के बराबर नहीं समझती ।
हम सब का प्रयास यही होगा कि आगे आने वाली पीढी स्त्री और पुरूष बाद मे हो मनुष्य पहले । प्रतिस्पर्धा ना रहे दोनों मे । अगर भारतीय समाज को "परिवार " को बचाना हैं तो उसे ये मानना होगा कि नारी पुरूष बराबर हैं नहीं तो अब परिवार और जल्दी टूटेगे क्योकि आज कि पीढी कि स्त्री आर्थिक रूप से सक्षम हैं और उसे अकेले रहने और अकेले तरक्की करने से परहेज नहीं हैं ।
November 10, 2010
पति पत्नी और वो यानि गलती बलिदान व्यभिचार
हमारे समाज मे एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री को हमेशा "हेय" द्रष्टि से देखा जाता है । उनके बारे मे कहा जाता हैं कि ये दूसरो का घर बिगाड़ती हैं । इनको हमेशा दूसरो के पति ही अच्छे लगते हैं ।
क्यो ऐसा कहा जाता हैं ?
और क्यो ऐसी बात को एक पत्नी कहती हैं ?
क्या पति पत्नी का रिश्ता इतना कमजोर हैं कि वह एक दूसरी महिला के कारण टूट जाता हैं ?
एक एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री अगर रिश्ता खोज रही हैं तो कहीं ना कहीं उसे अपनी जिंदगी मे कोई कमी लगती हैं जिसे वह पूरा करना चाहती हैं अतः निष्कर्ष मे वह किसी का पति नहीं खोज रही हैं अपितु अपने लिये एक साथी/पति खोज रही हैं ।
इस अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री से अगर , कोई पुरूष जो किसी का पति हैं , सम्बन्ध बनाता हैं तो गलती पति कि हैं या इस स्त्री की ?? अगर दोनों कि तो समाज मे दोषी केवल इस स्त्री को क्यो समझा जाता हैं । मै यहाँ समाज की मानसिकता की बात कह रही हूँ । क्यो उस पुरूष को हमेशा ये कह कर निर्दोष मान लिया जाता हैं कि "ये तो एक पुरूष कि आदत हैं" और "घूम घाम कर वह अपने घर वापस आ ही जायेगा " । क्या ऐसा पुरूष जब घर वापस आता हैं तो निर्दोष होता हैं ? क्यो हमारे समाज और कानून व्यवस्था मे ऐसे पुरुषो के लिये कोई सजा का प्रावधान नहीं हैं? जो एक महिला के साथ विवाह करता हैं और दूसरी महिला के साथ भी कुछ समय सम्बन्ध रखता हैं और फिर सामजिक दबाव के चलते वापस पत्नी के पास जाता हैं . क्यो नैतिकता कि कोई जिमेदारी इस पुरूष कि नहीं होती हैं ? क्या नैतिकता एक व्यक्तिगत प्रश्न हैं ?? जो समाज मे सुविधा के हिसाब से लागू किया जाता है ।
इसके अलावा भारतीये पत्निया जो हमेशा अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री को "हेय" नज़र से देखती हैं और गाहे बगाहे टिका टिप्पणी करती हैं उनका कितना अपना दोष हैं इस प्रकार के संबंधो बनने मे ? क्यो उनका पति किसी और स्त्री की और आकर्षित होता हैं ? ऐसी बहुत सी विवाहित स्त्रियो हैं जहाँ बच्चे होने के बाद पति पत्नी मे दैहिक सम्बन्ध ना के बराबर हो जाते है । कामकाजी पत्नी या घर गृहस्थी मे उलझी पत्नी अपने पति कि ज़रूरतों को भूल जाती हैं और फिर पति बाहर जाता हैं , तो क्या ऐसी पत्नी पर समाज मे अनैतिकता को बढ़ावा देने का दोष नहीं लगना चाहिए ??
और इस सब से जुडा सबसे अहम् प्रश्न हैं कि अगर पति ने दूसरी स्त्री से सम्बन्ध स्थापित किया है और पत्नी को पता हैं तो वह ऐसे पति के साथ आगे कि जिंदगी क्यो रहना चाहती हैं ? क्या बच्चो के लिये ? तो ऐसे घर मे जहाँ पति पत्नी केवल सामजिक व्यवस्था के चलते समझोता करते हैं वहाँ के बच्चो को संस्कार मे क्या मिलता हैं ? क्या पत्नी अपने आप को अलग करके दुबारा जिंदगी को स्वाभिमान के साथ नहीं जी सकती हैं ? कहाँ चला जाता हैं पत्नी का स्वाभिमान जब वह उसी आदमी के साथ फिर दैहिक समबन्ध बनाती हैं ? क्यो उसको उस पुरूष के साथ सम्बन्ध बनना अनैतिक नही लगता जो किसी और के साथ सम्बन्ध बना चुका हैं ?
और अगर उसको ये अनैतिक नही लगता हैं तो फिर उसे एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री का किसी पुरूष से दैहिक सम्बन्ध क्यो अनैतिक लगता हैं ? क्या " अनैतिक " शब्द कि परिभाषा व्यक्ति से व्यक्ति और समय से समय बदल जाती हैं ?
अगर पति पत्नी के लिये को नैतिकता अनैतिकता का प्रश्न नहीं हैं तो समाज मे नैतिकता का सारा जिम्मा केवल एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री का ही क्यो हैं ।
पति पत्नी और वो मे नैतिकता सिर्फ़ वो के लिये ही क्यो होती हैं ??
पति का कृत्य गलती / मिस्टेक , पत्नी का कृत्य बलिदान / सक्रीफईस और एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री का कृत्य व्यभिचार / प्रोमिस्कुइटी ????
क्यो ऐसा कहा जाता हैं ?
और क्यो ऐसी बात को एक पत्नी कहती हैं ?
क्या पति पत्नी का रिश्ता इतना कमजोर हैं कि वह एक दूसरी महिला के कारण टूट जाता हैं ?
एक एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री अगर रिश्ता खोज रही हैं तो कहीं ना कहीं उसे अपनी जिंदगी मे कोई कमी लगती हैं जिसे वह पूरा करना चाहती हैं अतः निष्कर्ष मे वह किसी का पति नहीं खोज रही हैं अपितु अपने लिये एक साथी/पति खोज रही हैं ।
इस अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री से अगर , कोई पुरूष जो किसी का पति हैं , सम्बन्ध बनाता हैं तो गलती पति कि हैं या इस स्त्री की ?? अगर दोनों कि तो समाज मे दोषी केवल इस स्त्री को क्यो समझा जाता हैं । मै यहाँ समाज की मानसिकता की बात कह रही हूँ । क्यो उस पुरूष को हमेशा ये कह कर निर्दोष मान लिया जाता हैं कि "ये तो एक पुरूष कि आदत हैं" और "घूम घाम कर वह अपने घर वापस आ ही जायेगा " । क्या ऐसा पुरूष जब घर वापस आता हैं तो निर्दोष होता हैं ? क्यो हमारे समाज और कानून व्यवस्था मे ऐसे पुरुषो के लिये कोई सजा का प्रावधान नहीं हैं? जो एक महिला के साथ विवाह करता हैं और दूसरी महिला के साथ भी कुछ समय सम्बन्ध रखता हैं और फिर सामजिक दबाव के चलते वापस पत्नी के पास जाता हैं . क्यो नैतिकता कि कोई जिमेदारी इस पुरूष कि नहीं होती हैं ? क्या नैतिकता एक व्यक्तिगत प्रश्न हैं ?? जो समाज मे सुविधा के हिसाब से लागू किया जाता है ।
इसके अलावा भारतीये पत्निया जो हमेशा अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री को "हेय" नज़र से देखती हैं और गाहे बगाहे टिका टिप्पणी करती हैं उनका कितना अपना दोष हैं इस प्रकार के संबंधो बनने मे ? क्यो उनका पति किसी और स्त्री की और आकर्षित होता हैं ? ऐसी बहुत सी विवाहित स्त्रियो हैं जहाँ बच्चे होने के बाद पति पत्नी मे दैहिक सम्बन्ध ना के बराबर हो जाते है । कामकाजी पत्नी या घर गृहस्थी मे उलझी पत्नी अपने पति कि ज़रूरतों को भूल जाती हैं और फिर पति बाहर जाता हैं , तो क्या ऐसी पत्नी पर समाज मे अनैतिकता को बढ़ावा देने का दोष नहीं लगना चाहिए ??
और इस सब से जुडा सबसे अहम् प्रश्न हैं कि अगर पति ने दूसरी स्त्री से सम्बन्ध स्थापित किया है और पत्नी को पता हैं तो वह ऐसे पति के साथ आगे कि जिंदगी क्यो रहना चाहती हैं ? क्या बच्चो के लिये ? तो ऐसे घर मे जहाँ पति पत्नी केवल सामजिक व्यवस्था के चलते समझोता करते हैं वहाँ के बच्चो को संस्कार मे क्या मिलता हैं ? क्या पत्नी अपने आप को अलग करके दुबारा जिंदगी को स्वाभिमान के साथ नहीं जी सकती हैं ? कहाँ चला जाता हैं पत्नी का स्वाभिमान जब वह उसी आदमी के साथ फिर दैहिक समबन्ध बनाती हैं ? क्यो उसको उस पुरूष के साथ सम्बन्ध बनना अनैतिक नही लगता जो किसी और के साथ सम्बन्ध बना चुका हैं ?
और अगर उसको ये अनैतिक नही लगता हैं तो फिर उसे एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री का किसी पुरूष से दैहिक सम्बन्ध क्यो अनैतिक लगता हैं ? क्या " अनैतिक " शब्द कि परिभाषा व्यक्ति से व्यक्ति और समय से समय बदल जाती हैं ?
अगर पति पत्नी के लिये को नैतिकता अनैतिकता का प्रश्न नहीं हैं तो समाज मे नैतिकता का सारा जिम्मा केवल एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री का ही क्यो हैं ।
पति पत्नी और वो मे नैतिकता सिर्फ़ वो के लिये ही क्यो होती हैं ??
पति का कृत्य गलती / मिस्टेक , पत्नी का कृत्य बलिदान / सक्रीफईस और एक अविवाहित , सिंगल , तलाकशुदा स्त्री का कृत्य व्यभिचार / प्रोमिस्कुइटी ????
क्यों होते हैं लोग बेवफ़ा...फ़िरदौस ख़ान
बेवफ़ाई... इस पर बहुत कुछ कहा और लिखा जा चुका है... आख़िर क्या वजह हुआ करती है कि लोग बेवफ़ा हो जाते हैं...? वो उम्रभर साथ निभाने की सारी क़समों-वादों को भुला देते हैं...बेवफ़ाई की वजह जो भी हो, लेकिन यह एक साथ कई ज़िन्दगियों को तबाह कर डालती है... यह एक कड़वा सच है...और इसे किसी भी सूरत में नकारा नहीं जा सकता...
पति या पत्नी की बेवफ़ाई के लिए कई बार व्यक्ति ख़ुद भी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार होता है...मसलन, अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी/प्रेमिका से ज़्यादा किसी और महिला को महत्व देता है तो ऐसे में पत्नी/प्रेमिका के मन में असुरक्षा की भावना पैदा होना स्वाभाविक है...अगर यह सिलसिला लंबे वक़्त तक चले तो पत्नी/प्रेमिका तनाव में रहने लगेगी... हो सकता है ऐसे में वो किसी ऐसे व्यक्ति को तलाशने लगे जिससे वो अपने मन की बात कह सके... और बाद में यही व्यक्ति उसके लिए भावनात्मक सहारा बन जाए... बाद में इसी पत्नी/प्रेमिका को बेवफ़ा क़रार दे दिया जाता है... ठीक यही हालत मर्दों के साथ भी है... इसके अलावा बेमेल विवाह भी इसके लिए काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार हो सकते हैं...
कोई भी व्यक्ति यह कभी पसंद नहीं करेगा कि उसका साथी उससे ज़्यादा किसी और को महत्व दे, ख़ासकर उस वक़्त, जो सिर्फ़ उनका अपना हो... एक-दूसरे पर विश्वास करना बहुत ज़रूरी है, लेकिन इसके साथ यह भी ज़रूरी है कि किसी भी ऐसे काम से बचा जाए, जिससे आपके प्रति आपके साथी का विश्वास डगमगाने लगे... आजकल महिला और पुरुष साथ काम करते हैं...ऐसे में उनके बीच बातचीत भी होती है, और इसमें कोई बुराई भी नहीं है... बुराई तो तब होती है, जब यह बाहरी रिश्ते आपके वैवाहिक रिश्तों को प्रभावित करने लगते हैं...
ज़िंदादिल होना अलग बात है और दिल फेंक होना दूसरी बात... और दिलफेंक व्यक्ति (महिला या पुरुष) ऐतबार के क़ाबिल नहीं होता...
November 07, 2010
दहेज़ से लेकर बेटी के मरने तक मे केवल मायके का ही दायित्त्व--- ये कब से शुरू हुआ और क्यों ??
हमारे समाज मे , हिंदू रीति रिवाजो के अनुसार अगर कोई भी काम करना हो तो लड़की के मायके से हमेशा नेग आता हैं । लड़की यानी बहु और बहु की सास भी ।
ये खर्चा के बहिन के बेटे / बेटी की शादी पर होता हैं ।
शादी के समय भात की रस्म होती हैं जिसमे मामा सारा खर्चा करता हैं और बहिन की ससुराल के हर सदस्य के लिये कपडे , जेवर , मिठाई { सामर्थ्य अनुसार पर जितनी सामर्थ्य उतनी ईज्ज़त का भी रिवाज हैं !!!! } लाता हैं।
ये खर्चा के बहिन के घर मे गमी पर होता हैं ।
अगर बहिन के ससुर , सास , देवर , जेठ मे से किसी की भी मृत्यु हो जाए तो फिर मायेके सेही कम से कम तेरही तक का खाने पीने का खर्चा आता हैं । इसके अलावा परिवार के कपडे और तेरही के कपडे भी मायके से ही होते हैं । जिसके भी पगडी बंधती हैं वोह भी मायके की ही होती हैं । और यहाँ एक समान भावः हैं की अगर बहु हैं घर मे तो उसके मायके से और सास के मायके से दोनों के यहाँ से आता हैं !! ।
अगर बेटी या बहिन विधवा हुई हैं तो उसके नये कपडे भी मायेके से ही आते है ।
और अगर बहिन / बेटी नहीं रही हैं तो भी ये मायके वालो का ही धर्म समझा जाता हैं की वोह बाकी सब के लिये विधि अनुसार कपडे इत्यादि भेजे ।
नाती । नातिन होने की शुभ सुचना आने पर भी मायके से ही छठी पर सबके कपडे इत्यादि जाते हैं ।
क्यों हर विधि विधान मे " मायके से आना " इतना अनिवार्य होता हैं और अगर नहीं आता हैं तो आज भी बहुत से घरो मे उन बहु / सास को सम्मान नहीं मिलता ।
कन्यादान किया तो किया... सारी उम्र दान देने और लेने की आदत ... ???? क्यो ??
आज आपके विचार फिर आमंत्रित हैं की दहेज़ से लेकर बेटी के मरने तक मे केवल मायके का ही दायित्त्व --- ये कब से शुरू हुआ और क्यों ??
ये खर्चा के बहिन के बेटे / बेटी की शादी पर होता हैं ।
शादी के समय भात की रस्म होती हैं जिसमे मामा सारा खर्चा करता हैं और बहिन की ससुराल के हर सदस्य के लिये कपडे , जेवर , मिठाई { सामर्थ्य अनुसार पर जितनी सामर्थ्य उतनी ईज्ज़त का भी रिवाज हैं !!!! } लाता हैं।
ये खर्चा के बहिन के घर मे गमी पर होता हैं ।
अगर बहिन के ससुर , सास , देवर , जेठ मे से किसी की भी मृत्यु हो जाए तो फिर मायेके सेही कम से कम तेरही तक का खाने पीने का खर्चा आता हैं । इसके अलावा परिवार के कपडे और तेरही के कपडे भी मायके से ही होते हैं । जिसके भी पगडी बंधती हैं वोह भी मायके की ही होती हैं । और यहाँ एक समान भावः हैं की अगर बहु हैं घर मे तो उसके मायके से और सास के मायके से दोनों के यहाँ से आता हैं !! ।
अगर बेटी या बहिन विधवा हुई हैं तो उसके नये कपडे भी मायेके से ही आते है ।
और अगर बहिन / बेटी नहीं रही हैं तो भी ये मायके वालो का ही धर्म समझा जाता हैं की वोह बाकी सब के लिये विधि अनुसार कपडे इत्यादि भेजे ।
नाती । नातिन होने की शुभ सुचना आने पर भी मायके से ही छठी पर सबके कपडे इत्यादि जाते हैं ।
क्यों हर विधि विधान मे " मायके से आना " इतना अनिवार्य होता हैं और अगर नहीं आता हैं तो आज भी बहुत से घरो मे उन बहु / सास को सम्मान नहीं मिलता ।
कन्यादान किया तो किया... सारी उम्र दान देने और लेने की आदत ... ???? क्यो ??
आज आपके विचार फिर आमंत्रित हैं की दहेज़ से लेकर बेटी के मरने तक मे केवल मायके का ही दायित्त्व --- ये कब से शुरू हुआ और क्यों ??
November 04, 2010
November 03, 2010
इस बार की दिवाली पर कानों को कष्ट नहीं...आँखों को सुकून दें.
आप सबको दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं....यह रोशनी का पर्व सबके जीवन को जगमग कर दे.बस पटाखे जलाने में थोड़ा संयम बरतें...क्यूंकि इन पटाखों का निर्माण छोटे-छोटे बच्चे बड़ी ही अमानवीय स्थिति में रहते हुए करते हैं.
दीवाली बस दस्तक देने ही वाली है.सबकी तरह हमारी भी शौपिंग लिस्ट तैयार है. पर एक चीज़ कुछ बरस पहले हमारी लिस्ट से गायब हो चुकी है और वह है--'पटाखे'. सिर्फ हमारी ही नहीं...कई घरों की शॉपिंग लिस्ट से. और इसकी वजह है....बच्चों के स्कूल में दिखाई गयी एक डॉक्युमेंटरी.
जिसमे दिखाया गया कि 'सिवकासी' में किन अमानवीय परिस्थितियों में रहते हुए छोटे छोटे बच्चे, पटाखे तैयार करते हैं. इसका इन बच्चों के कोमल मन पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि इन लोगों ने पटाखे न चलाने का प्रण ले लिया. छोटे छोटे बैच भी बनाये SAY NO TO CRACKERS वह दिन है और आज का दिन है इन बच्चों ने पटाखों को हाथ नहीं लगाया
मैने तो वो डॉक्युमेंटरी नहीं देखी...पर नेट पर इसके विषय में काफी कुछ ढूंढ कर पढ़ा. और पढ़ कर मुझे लगा, कि हर स्कूल में यह डॉक्युमेंटरी दिखाई जानी चाहिए. वायु-प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण की बातें, बच्चों को उतनी समझ में नहीं आतीं पर अगर अपनी उम्र के बच्चों को वो इन हालातों से गुजरते देखते हैं, तो इसकी अमिट छाप पड़ जाती है,उनके मन-मस्तिष्क पर.
'सिवकासी' चेन्नई से करीब 650 km दूर स्थित है.भारत में जितने पटाखों की खपत होती है,उसका 90 % सिवकासी में तैयार किया जाता है.और इसे तैयार करने में सहयोग देते हैं, 100000 बाल मजदूर.करीब 1000 करोड़ का बिजनेस होता है,यहाँ.
8 साल की उम्र से ये बच्चे फैक्ट्रियों में काम करना शुरू कर देते हैं.दीवाली के समय काम बढ़ जाने पर पास के गाँवों से बच्चों को लाया जाता है.फैक्ट्री के एजेंट सुबह सुबह ही हर घर के दरवाजे को लाठी से ठकठकाते हैं और करीब सुबह ३ बजे ही इन बच्चों को बस में बिठा देते हैं.करीब २,३, घंटे की रोज यात्रा कर ये बच्चे रात के १० बजे घर लौटते हैं.और बस भरी होने की वजह से अक्सर इन्हें खड़े खड़े ही यात्रा करनी पड़ती है.
रोज के इन्हें १५ से १८ रुपये मिलते हैं.सिवकासी की गलियों में कई फैक्ट्रियां बिना लाइसेंस के चलती हैं और वे लोग सिर्फ ८ से १५ रुपये ही मजदूरी में देते हैं.ये बच्चे पेपर डाई करना,छोटे पटाखे बनाना,पटाखों में गन पाउडर भरना, पटाखों पर कागज़ चिपकाना,पैक करना जैसे काम करते हैं.
जब भरपेट दो जून रोटी नहीं मिलती तो पीने का पानी,बाथरूम की व्यवस्था की तो कल्पना ही बेकार है.बच्चे हमेशा सर दर्द और पीठ दर्द की शिकायत करते हैं.उनमे कुपोषण की वजह से टी.बी.और खतरनाक केमिकल्स के संपर्क में आने की वजह से त्वचा के रोग होना आम बात है.
गंभीर दुर्घटनाएं तो घटती ही रहती हैं. अक्सर खतरनाक केमिकल्स आस पास बिखरे होते हैं और बच्चों को उनके बीच बैठकर काम करना पड़ता है.कई बार ज्वलनशील पदार्थ आस पास बिखरे होने की वजह से आग लग जाती है.कोई घायल हुआ तो उसे ७० किलोमीटर दूर मदुरै के अस्पताल में ले जाना पड़ता है.बाकी बच्चे आग बुझाकर वापस वहीँ काम में लग जाते हैं.
कुछ समाजसेवी इन बच्चों के लिए काम कर रहें हैं और इनके शोषण की कहानी ये दुनिया के सामने लाना चाहते थे.पर कोई भारतीय NGO या भारतीय फिल्मनिर्माता इन बच्चों की दशा शूट करने को तैयर नहीं हुए. मजबूरन उन्हें एक कोरियाई फिल्मनिर्माता की सहायता लेनी पड़ी.25 मिनट की डॉक्युमेंटरी 'Tragedy Buried in Happiness कोरियन भाषा में है जिसे अंग्रेजी और तमिल में डब किया गया है. इसमें कुछ बच्चों की जीवन-कथा दिखाई गयी है जो हजारों बच्चों का प्रतिनिधित्व करती है.
12 साल की चित्रा का चेहरा और पूरा शरीर जल गया है.वह चार साल से घर की चारदीवारी में क़ैद है,किसी के सामने नहीं आती.पूरा शरीर चादर से ढँक कर रखती है,पर उसकी दो बोलती आँखे ही सारी व्यथा कह देती हैं.
14 वर्षीया करप्पुस्वामी के भी हाथ और शरीर जल गए हैं.फैक्ट्री मालिक ने क्षतिपूर्ति के तौर पर कुछ पैसे दिए पर बदले में उसके पिता को इस कथन पर हस्ताक्षर करने पड़े कि यह हादसा उनकी फैक्ट्री में नहीं हुआ.
10 साल की मुनिस्वारी के हाथ बिलकुल पीले पड़ गए हैं पर मेहंदी रचने की वजह से नहीं बल्कि गोंद में मिले सायनाइड के कारण.भूख से बिलबिलाते ये बच्चे गोंद खा लिया करते थे इसलिए क्रूर फैक्ट्री मालिकों ने गोंद में सायनाइड मिलाना शुरू कर दिया.चिपकाने का काम करनेवाले सारे बच्चों के हाथ पीले पड़ गए हैं.
10 साल की कविता से जब पूछा गया कि वह स्कूल जाना मिस नहीं करती?? तो उसका जबाब था,"स्कूल जाउंगी तो खाना कहाँ से मिलेगा.?'"..यह पूछने पर कि उसे कौन सा खेल आता है.उसने मासूमियत से कहा--"दौड़ना" उसने कभी कोई खेल खेला ही नही.
जितने बाल मजदूर काम करते हैं उसमे 80 % लड़कियां होती हैं.लड़कों को फिर भी कभी कभी पिता स्कूल भेजते हैं और पार्ट टाइम मजदूरी करवाते हैं.पर सारी लड़कियां फुलटाईम काम करती हैं.13 वर्षीया सुहासिनी सुबह 8 बजे से 5 बजे तक 4000 माचिस बनाती है और उसे रोज के 40 रुपये मिलते हैं (अगली बार एक माचिस सुलगाते समय एक बार सुहासिनी के चेहरे की कल्पना जरूर कर लें)
सिवकासी के लोग कहते हैं साल में 300 दिन काम करके जो पटाखे वे बनाते हैं वे सब दीवाली के दिन 3 घंटे में राख हो जाते हैं.दीवाली के दिन इन बाल मजदूरों की छुट्टी होती है. पर उन्हें एक पटाखा भी मयस्सर नहीं होता क्यूंकि बाकी लोगों की तरह उन्हें भी पटाखे खरीदने पड़ते हैं.और जो वे अफोर्ड नहीं कर पाते.
हम बड़े लोग ऐसी खबरे रोजाना पढ़ते हैं और नज़रंदाज़ कर देते हैं.पर बच्चों के मस्तिष्क पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है.यही सब देखा होगा,उस डॉक्युमेंटरी में, इन बच्चों ने और पटाखे न चलाने की कसम खाई जिसे अभी तक निभा रहें हैं.सिवकासी के फैक्ट्रीमालिकों ने सिर्फ उन बच्चों का बचपन ही नहीं छीना बल्कि इन बच्चों से भी बचपन की एक खूबसूरत याद भी छीन ली.
आप सब को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं. मुझे आपकी दीपावली का मजा किरिकिरा करने का कोई इरादा नहीं था....पर वो शेर हैं ,ना..
झिलमिलाते चिरागों की चमक न देखा कीजिये
ढालते हैं, उनमे जो तेल, उन हाथों का सजदा कीजिये
दीवाली बस दस्तक देने ही वाली है.सबकी तरह हमारी भी शौपिंग लिस्ट तैयार है. पर एक चीज़ कुछ बरस पहले हमारी लिस्ट से गायब हो चुकी है और वह है--'पटाखे'. सिर्फ हमारी ही नहीं...कई घरों की शॉपिंग लिस्ट से. और इसकी वजह है....बच्चों के स्कूल में दिखाई गयी एक डॉक्युमेंटरी.
जिसमे दिखाया गया कि 'सिवकासी' में किन अमानवीय परिस्थितियों में रहते हुए छोटे छोटे बच्चे, पटाखे तैयार करते हैं. इसका इन बच्चों के कोमल मन पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि इन लोगों ने पटाखे न चलाने का प्रण ले लिया. छोटे छोटे बैच भी बनाये SAY NO TO CRACKERS वह दिन है और आज का दिन है इन बच्चों ने पटाखों को हाथ नहीं लगाया
मैने तो वो डॉक्युमेंटरी नहीं देखी...पर नेट पर इसके विषय में काफी कुछ ढूंढ कर पढ़ा. और पढ़ कर मुझे लगा, कि हर स्कूल में यह डॉक्युमेंटरी दिखाई जानी चाहिए. वायु-प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण की बातें, बच्चों को उतनी समझ में नहीं आतीं पर अगर अपनी उम्र के बच्चों को वो इन हालातों से गुजरते देखते हैं, तो इसकी अमिट छाप पड़ जाती है,उनके मन-मस्तिष्क पर.
'सिवकासी' चेन्नई से करीब 650 km दूर स्थित है.भारत में जितने पटाखों की खपत होती है,उसका 90 % सिवकासी में तैयार किया जाता है.और इसे तैयार करने में सहयोग देते हैं, 100000 बाल मजदूर.करीब 1000 करोड़ का बिजनेस होता है,यहाँ.
8 साल की उम्र से ये बच्चे फैक्ट्रियों में काम करना शुरू कर देते हैं.दीवाली के समय काम बढ़ जाने पर पास के गाँवों से बच्चों को लाया जाता है.फैक्ट्री के एजेंट सुबह सुबह ही हर घर के दरवाजे को लाठी से ठकठकाते हैं और करीब सुबह ३ बजे ही इन बच्चों को बस में बिठा देते हैं.करीब २,३, घंटे की रोज यात्रा कर ये बच्चे रात के १० बजे घर लौटते हैं.और बस भरी होने की वजह से अक्सर इन्हें खड़े खड़े ही यात्रा करनी पड़ती है.
रोज के इन्हें १५ से १८ रुपये मिलते हैं.सिवकासी की गलियों में कई फैक्ट्रियां बिना लाइसेंस के चलती हैं और वे लोग सिर्फ ८ से १५ रुपये ही मजदूरी में देते हैं.ये बच्चे पेपर डाई करना,छोटे पटाखे बनाना,पटाखों में गन पाउडर भरना, पटाखों पर कागज़ चिपकाना,पैक करना जैसे काम करते हैं.
जब भरपेट दो जून रोटी नहीं मिलती तो पीने का पानी,बाथरूम की व्यवस्था की तो कल्पना ही बेकार है.बच्चे हमेशा सर दर्द और पीठ दर्द की शिकायत करते हैं.उनमे कुपोषण की वजह से टी.बी.और खतरनाक केमिकल्स के संपर्क में आने की वजह से त्वचा के रोग होना आम बात है.
गंभीर दुर्घटनाएं तो घटती ही रहती हैं. अक्सर खतरनाक केमिकल्स आस पास बिखरे होते हैं और बच्चों को उनके बीच बैठकर काम करना पड़ता है.कई बार ज्वलनशील पदार्थ आस पास बिखरे होने की वजह से आग लग जाती है.कोई घायल हुआ तो उसे ७० किलोमीटर दूर मदुरै के अस्पताल में ले जाना पड़ता है.बाकी बच्चे आग बुझाकर वापस वहीँ काम में लग जाते हैं.
कुछ समाजसेवी इन बच्चों के लिए काम कर रहें हैं और इनके शोषण की कहानी ये दुनिया के सामने लाना चाहते थे.पर कोई भारतीय NGO या भारतीय फिल्मनिर्माता इन बच्चों की दशा शूट करने को तैयर नहीं हुए. मजबूरन उन्हें एक कोरियाई फिल्मनिर्माता की सहायता लेनी पड़ी.25 मिनट की डॉक्युमेंटरी 'Tragedy Buried in Happiness कोरियन भाषा में है जिसे अंग्रेजी और तमिल में डब किया गया है. इसमें कुछ बच्चों की जीवन-कथा दिखाई गयी है जो हजारों बच्चों का प्रतिनिधित्व करती है.
12 साल की चित्रा का चेहरा और पूरा शरीर जल गया है.वह चार साल से घर की चारदीवारी में क़ैद है,किसी के सामने नहीं आती.पूरा शरीर चादर से ढँक कर रखती है,पर उसकी दो बोलती आँखे ही सारी व्यथा कह देती हैं.
14 वर्षीया करप्पुस्वामी के भी हाथ और शरीर जल गए हैं.फैक्ट्री मालिक ने क्षतिपूर्ति के तौर पर कुछ पैसे दिए पर बदले में उसके पिता को इस कथन पर हस्ताक्षर करने पड़े कि यह हादसा उनकी फैक्ट्री में नहीं हुआ.
10 साल की मुनिस्वारी के हाथ बिलकुल पीले पड़ गए हैं पर मेहंदी रचने की वजह से नहीं बल्कि गोंद में मिले सायनाइड के कारण.भूख से बिलबिलाते ये बच्चे गोंद खा लिया करते थे इसलिए क्रूर फैक्ट्री मालिकों ने गोंद में सायनाइड मिलाना शुरू कर दिया.चिपकाने का काम करनेवाले सारे बच्चों के हाथ पीले पड़ गए हैं.
10 साल की कविता से जब पूछा गया कि वह स्कूल जाना मिस नहीं करती?? तो उसका जबाब था,"स्कूल जाउंगी तो खाना कहाँ से मिलेगा.?'"..यह पूछने पर कि उसे कौन सा खेल आता है.उसने मासूमियत से कहा--"दौड़ना" उसने कभी कोई खेल खेला ही नही.
जितने बाल मजदूर काम करते हैं उसमे 80 % लड़कियां होती हैं.लड़कों को फिर भी कभी कभी पिता स्कूल भेजते हैं और पार्ट टाइम मजदूरी करवाते हैं.पर सारी लड़कियां फुलटाईम काम करती हैं.13 वर्षीया सुहासिनी सुबह 8 बजे से 5 बजे तक 4000 माचिस बनाती है और उसे रोज के 40 रुपये मिलते हैं (अगली बार एक माचिस सुलगाते समय एक बार सुहासिनी के चेहरे की कल्पना जरूर कर लें)
सिवकासी के लोग कहते हैं साल में 300 दिन काम करके जो पटाखे वे बनाते हैं वे सब दीवाली के दिन 3 घंटे में राख हो जाते हैं.दीवाली के दिन इन बाल मजदूरों की छुट्टी होती है. पर उन्हें एक पटाखा भी मयस्सर नहीं होता क्यूंकि बाकी लोगों की तरह उन्हें भी पटाखे खरीदने पड़ते हैं.और जो वे अफोर्ड नहीं कर पाते.
हम बड़े लोग ऐसी खबरे रोजाना पढ़ते हैं और नज़रंदाज़ कर देते हैं.पर बच्चों के मस्तिष्क पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है.यही सब देखा होगा,उस डॉक्युमेंटरी में, इन बच्चों ने और पटाखे न चलाने की कसम खाई जिसे अभी तक निभा रहें हैं.सिवकासी के फैक्ट्रीमालिकों ने सिर्फ उन बच्चों का बचपन ही नहीं छीना बल्कि इन बच्चों से भी बचपन की एक खूबसूरत याद भी छीन ली.
आप सब को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं. मुझे आपकी दीपावली का मजा किरिकिरा करने का कोई इरादा नहीं था....पर वो शेर हैं ,ना..
झिलमिलाते चिरागों की चमक न देखा कीजिये
ढालते हैं, उनमे जो तेल, उन हाथों का सजदा कीजिये
November 02, 2010
लोग आज भी श्रीमती डॉ पाठक की ह्रदय गति रुकने के कारण के बारे मे बात करते हैं
१९७७
आल इंडिया इंस्टिट्यूट के डॉ क्वाटर्स
डॉ पाठक का निर्जीव शरीर
कारण दिल का दौरा
उम्र ५६ साल
cardiolojist
हाथ मे फ़ोन का चोगा
एक पेपर स्लिप
मुझे लगता हैं दिल का दौरा पडा हैं हो सकता हैं ना बचूं कोई जिम्मेदार नहीं हैं
१ महीने बाद
श्री डॉ पाठक ने अपने से ३० वर्ष छोटी लड़की से दूसरा विवाह किया । श्री डॉ पाठक ने इस लड़की का इलाज ६ महीने लिया था । श्री डॉ पाठक की बेटी { पहली पत्नी से } ने उसी दिन अपनी पहली संतान को जनम दिया और दूसरी श्रीमति पाठक , पहली श्रीमती पाठक के गहने पहन कर उस से मिलने गयी ।
शादी के ७ महीने बाद श्रीमती पाठक ने जुड़वाँ बच्चो को जनम दिया
१९७८
श्री पाठक का बड़ा बेटा और बेटी उनसे विमुख हैं कोई पारिवारिक रिश्ता नहीं
लोग आज भी श्रीमती डॉ पाठक की ह्रदय गति रुकने के कारण के बारे मे बात करते हैं
आल इंडिया इंस्टिट्यूट के डॉ क्वाटर्स
डॉ पाठक का निर्जीव शरीर
कारण दिल का दौरा
उम्र ५६ साल
cardiolojist
हाथ मे फ़ोन का चोगा
एक पेपर स्लिप
मुझे लगता हैं दिल का दौरा पडा हैं हो सकता हैं ना बचूं कोई जिम्मेदार नहीं हैं
१ महीने बाद
श्री डॉ पाठक ने अपने से ३० वर्ष छोटी लड़की से दूसरा विवाह किया । श्री डॉ पाठक ने इस लड़की का इलाज ६ महीने लिया था । श्री डॉ पाठक की बेटी { पहली पत्नी से } ने उसी दिन अपनी पहली संतान को जनम दिया और दूसरी श्रीमति पाठक , पहली श्रीमती पाठक के गहने पहन कर उस से मिलने गयी ।
शादी के ७ महीने बाद श्रीमती पाठक ने जुड़वाँ बच्चो को जनम दिया
१९७८
श्री पाठक का बड़ा बेटा और बेटी उनसे विमुख हैं कोई पारिवारिक रिश्ता नहीं
लोग आज भी श्रीमती डॉ पाठक की ह्रदय गति रुकने के कारण के बारे मे बात करते हैं
November 01, 2010
युग बदलते हैं सफ़र १९६०- २००८
१९६०
एक परिवार , बेटा आ ई अस { I A S } मे
प्रेम विवाह
बहू आ ई अस { I A S }
पहली संतान पुत्री
लाडली दादी की
माँ काम पर जाती , शाम को आती , सिर पर आँचल ले कर रहती , घर मे ससुर भी थे इस लिये , और सिर पर आँचल से ही आदर का पता चलता हैं ।
घर मे नौकर चाकर थे पर रोटी बनाने का काम बहू का था वो करती , आ ई अस थी तो क्या , बहू काम था रोटी बनाना । पति मात्र एक मूक दर्शक क्युकी बहू नहीं चाहती थी की उसको कोई नारीवादी या फेमिनिस्ट कहे और वो ये भी नहीं चाहती थी की कोई ये कहे की उसने अपने सब कर्तव्य नहीं पूरे किये क्युकी वो नौकरी करती थी
बेटी दादी के संरक्षण मे बड़ी हो रही थी । दादी रोज माँ के जाने के बाद उसको कहती , माँ को तुमारा ख्याल नहीं हैं तभी तो नौकरी पर जाती हैं । देखो मै तुम्हारे पास रहती हूँ और माँ तुमको कुछ नहीं कह सकती ।तुम जो चाहे करो । बेटी भी धीरे धीरे माँ को कहने लगी तुम बेकार नौकरी पर जाती हो । और हाँ घर मै जब भी आओ दादी कहती हैं तमीज से आओ । माँ सुनती रहती थी क्युकी माँ को तो सुनना ही था उसको तो सामंजस्य बिठाना ही था आख़िर प्रेम विवाह किया था , और संक्युत परिवार की बहू थी ।
१९८०
बेटी बड़ी होगई , नाचना , गाना , हँसी ठठा करना और कुछ भी कहने पर माँ की बात ना सुनना बस यही उसकी जिंदगी थी । हर बात मे एक ही तूरा दादी ठीक ही कहती थी तुमको नौकरी के अलावा क्या आता हैं , ठीक से सिर पर पल्ला भी नहीं लेना आता ।
बड़ी मुश्किल से लड़की ने बी ऐ तक पढायी की । पैसे की कमी नहीं थी सो दोस्तों की कमी नहीं और सुंदरता मे चार चाँद लगा ही देता हैं । सीरत का क्या वो तो पिता कितना दहेज़ देगा उस से तय होनी थी । गाने गाने का शौक , नाज नखरे दिखने कि तकनीक और पैसा खर्च करने की क्षमता आस पास लडको का हुजूम हमेशा रहता जो दादी के ना होने से उत्पन्न अभाव को भरता ये कह कर " तुम तो इतनी सुंदर हो , बस नज़र हटाने को मन ही नहीं करता " । माँ लाख माना करती पर रोमांस ख़तम नहीं होता , माँ को भी याद दिलाया जाता , आप ने तो प्रेम विवाह किया था ।
१९८६
लड़की की उम्र शादी के योग्य हो गयी थी । पिता ने एक अन आर आई लड़का देखा और बेटी को विदेश भेजा ।
विदाई के लिये माँ जब समान लगा रही थी तो उन्होने बेटी को कुछ समझाना चाहा और जवाब मिला "तुम तो रहने ही दो , सिर पर पल्ला तक तो लेना आता नहीं तं मुझे क्या सीखाओगी ""
उस दिन माँ ने कहा
"चलो मुझे सिर पर पल्ला लेना नहीं आता कोई बात नहीं , पर मेरी कुछ हैसियत तो हैं , तुम्हारी क्या हैसियत हैं । मै जब शादी हुई तब भी नौकरी करती थी , पति के बराबर कमाती थी और उनके बराबर पढ़ी लिखी थी । मुझ से विवाह उन्होने मेरी सीरत की वजह से किया था । तुम क्या हो ? ये जो तुम इतना इतराती हो किस लिये , किस के बल बूते ? ये हसियत जिसकी वजेह से तुम्हारी शादी हुई हैं वो तुम्हारी नहीं तुम्हारे पिता की हैं , कभी सोच कर बताना तुम्हारा अपना क्या हैं ?
बेटी विदा होगई
२००९
बेटी विदेश मे रहती हैं , अपने चारो और उसने वहाँ भी ताली बजाने वाले इकट्ठा कर लिये हैं । जो उसकी हर बात के दीवाने हैं । हाँ अपनी लड़की को वो बहुत सख्ती से रखती हैं ।
एक परिवार , बेटा आ ई अस { I A S } मे
प्रेम विवाह
बहू आ ई अस { I A S }
पहली संतान पुत्री
लाडली दादी की
माँ काम पर जाती , शाम को आती , सिर पर आँचल ले कर रहती , घर मे ससुर भी थे इस लिये , और सिर पर आँचल से ही आदर का पता चलता हैं ।
घर मे नौकर चाकर थे पर रोटी बनाने का काम बहू का था वो करती , आ ई अस थी तो क्या , बहू काम था रोटी बनाना । पति मात्र एक मूक दर्शक क्युकी बहू नहीं चाहती थी की उसको कोई नारीवादी या फेमिनिस्ट कहे और वो ये भी नहीं चाहती थी की कोई ये कहे की उसने अपने सब कर्तव्य नहीं पूरे किये क्युकी वो नौकरी करती थी
बेटी दादी के संरक्षण मे बड़ी हो रही थी । दादी रोज माँ के जाने के बाद उसको कहती , माँ को तुमारा ख्याल नहीं हैं तभी तो नौकरी पर जाती हैं । देखो मै तुम्हारे पास रहती हूँ और माँ तुमको कुछ नहीं कह सकती ।तुम जो चाहे करो । बेटी भी धीरे धीरे माँ को कहने लगी तुम बेकार नौकरी पर जाती हो । और हाँ घर मै जब भी आओ दादी कहती हैं तमीज से आओ । माँ सुनती रहती थी क्युकी माँ को तो सुनना ही था उसको तो सामंजस्य बिठाना ही था आख़िर प्रेम विवाह किया था , और संक्युत परिवार की बहू थी ।
१९८०
बेटी बड़ी होगई , नाचना , गाना , हँसी ठठा करना और कुछ भी कहने पर माँ की बात ना सुनना बस यही उसकी जिंदगी थी । हर बात मे एक ही तूरा दादी ठीक ही कहती थी तुमको नौकरी के अलावा क्या आता हैं , ठीक से सिर पर पल्ला भी नहीं लेना आता ।
बड़ी मुश्किल से लड़की ने बी ऐ तक पढायी की । पैसे की कमी नहीं थी सो दोस्तों की कमी नहीं और सुंदरता मे चार चाँद लगा ही देता हैं । सीरत का क्या वो तो पिता कितना दहेज़ देगा उस से तय होनी थी । गाने गाने का शौक , नाज नखरे दिखने कि तकनीक और पैसा खर्च करने की क्षमता आस पास लडको का हुजूम हमेशा रहता जो दादी के ना होने से उत्पन्न अभाव को भरता ये कह कर " तुम तो इतनी सुंदर हो , बस नज़र हटाने को मन ही नहीं करता " । माँ लाख माना करती पर रोमांस ख़तम नहीं होता , माँ को भी याद दिलाया जाता , आप ने तो प्रेम विवाह किया था ।
१९८६
लड़की की उम्र शादी के योग्य हो गयी थी । पिता ने एक अन आर आई लड़का देखा और बेटी को विदेश भेजा ।
विदाई के लिये माँ जब समान लगा रही थी तो उन्होने बेटी को कुछ समझाना चाहा और जवाब मिला "तुम तो रहने ही दो , सिर पर पल्ला तक तो लेना आता नहीं तं मुझे क्या सीखाओगी ""
उस दिन माँ ने कहा
"चलो मुझे सिर पर पल्ला लेना नहीं आता कोई बात नहीं , पर मेरी कुछ हैसियत तो हैं , तुम्हारी क्या हैसियत हैं । मै जब शादी हुई तब भी नौकरी करती थी , पति के बराबर कमाती थी और उनके बराबर पढ़ी लिखी थी । मुझ से विवाह उन्होने मेरी सीरत की वजह से किया था । तुम क्या हो ? ये जो तुम इतना इतराती हो किस लिये , किस के बल बूते ? ये हसियत जिसकी वजेह से तुम्हारी शादी हुई हैं वो तुम्हारी नहीं तुम्हारे पिता की हैं , कभी सोच कर बताना तुम्हारा अपना क्या हैं ?
बेटी विदा होगई
२००९
बेटी विदेश मे रहती हैं , अपने चारो और उसने वहाँ भी ताली बजाने वाले इकट्ठा कर लिये हैं । जो उसकी हर बात के दीवाने हैं । हाँ अपनी लड़की को वो बहुत सख्ती से रखती हैं ।
Subscribe to:
Posts (Atom)
copyright
All post are covered under copy right law . Any one who wants to use the content has to take permission of the author before reproducing the post in full or part in blog medium or print medium .Indian Copyright Rules
Popular Posts
-
आज मैं आप सभी को जिस विषय में बताने जा रही हूँ उस विषय पर बात करना भारतीय परंपरा में कोई उचित नहीं समझता क्योंकि मनु के अनुसार कन्या एक बा...
-
नारी सशक्तिकरण का मतलब नारी को सशक्त करना नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट का मतलब फेमिनिस्म भी नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या ...
-
Women empowerment in India is a challenging task as we need to acknowledge the fact that gender based discrimination is a deep rooted s...
-
लीजिये आप कहेगे ये क्या बात हुई ??? बहू के क़ानूनी अधिकार तो ससुराल मे उसके पति के अधिकार के नीचे आ ही गए , यानी बेटे के क़ानूनी अधिकार हैं...
-
भारतीय समाज की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार बेटी विदा होकर पति के घर ही जाती है. उसके माँ बाप उसके लालन प...
-
आईये आप को मिलवाए कुछ अविवाहित महिलाओ से जो तीस के ऊपर हैं { अब सुखी - दुखी , खुश , ना खुश की परिभाषा तो सब के लिये अलग अलग होती हैं } और अप...
-
Field Name Year (Muslim) Ruler of India Razia Sultana (1236-1240) Advocate Cornelia Sorabji (1894) Ambassador Vijayalakshmi Pa...
-
नारी ब्लॉग सक्रियता ५ अप्रैल २००८ - से अब तक पढ़ा गया १०७५६४ फोलोवर ४२५ सदस्य ६० ब्लॉग पढ़ रही थी एक ब्लॉग पर एक पोस्ट देखी ज...
-
वैदिक काल से अब तक नारी की यात्रा .. जब कुछ समय पहले मैंने वेदों को पढ़ना शुरू किया तो ऋग्वेद में यह पढ़ा की वैदिक काल में नारियां बहुत विदु...
-
प्रश्न : -- नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट {woman empowerment } का क्या मतलब हैं ?? "नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट " ...
nsmssksr yah tippani jsbsrdasti se karvaai gayi hai. baki batein baad mein.
raj bhatia
nsmssksr yah tippani jsbsrdasti se karvaai gayi hai. baki batein baad mein.
raj bhatia
main to abhi sokar he nahin utha hu. ye photo kahan se aa gaya?
waakai sab photoo mast hain.
oho, to chai bhatia ji ne di thi.
हम तो इसी लिए खिसक लिए थे हालत ठीक नज़र नहीं आ रहे थे ...
नोक झोंक प्यार मुहब्बत की निशानी है
यह बना असली परिवार। बरतन हों और खड़कने की आवाज नहीं आए तो काहे की रसोई और कैसा परिवार। शीत युद्ध है गर्म युद्ध।
बहुत चिंतित है ब्लु लाइन बसे
kuchh bhi kaho, rohtak aa kar maza aa gaya, bhai raj bhatiya aur lalit sharma ke alava sangita puri,nirmla kapila, dr aruna kapoor,ajay jha samet naye sathiyon me kevalram,niraj jat,hardeep ityadi se mil kar maza aaya.....agar aise prem aur utsah bhare aayojan lagatar hote rahen to bloggers me aur nikatta aayegi bahut bahut aabhr raj ji ka ...........
vaise lalit ji ne maze khoob karaaye - maine to khoob aanand liya raat bhar rachna ka .............ha ha ha ha ha ha
खूब रहा ब्लागर मिलन ... पढ़कर आनंद आ गया पंडित जी ...
अति सुन्दर :)
बहुत बढ़िया रिपोर्टिंग ....... असल रिपोर्टिंग तो यही है ..... काफी सारी अंदर की बातें पता चली !!
मूंछो की लाज रख ली..... बेधरक हो कर रिपोर्ट कर दी.... बढिया लगा.
मज़ा आया रिपोर्ट पढ़ कर ...बहुत बढ़िया
chaliye zald lout ke aiye ham log aa rahe hai C.G.
vaheen sunege
चाय तो मुझे भी पीनी है जी
हिमाचल जाकर ही पीयेंगें, केवलराम जी के हाथों से
फिर बर्तन किस तरीके से मांजे गये देशी या जर्मन
नीरज में दम है सुबह-सुबह रचना को झेला :)
आपकी अजवायन ने कुछ आराम दिया या नहीं
रात को ही वह दवा ले लेते जी, जो अलबेला जी बता रहे थे :)
प्रणाम
@अलबेला जी
गलत बात है जी खुद तो रातभर रचना का आनन्द लिये और सुबह नीरज को झेलाया।
ललित जी को दवा क्यों नहीं दिलवाई जी आपने
प्रणाम
खूब रहा ब्लागर मिलन
हमें तो हिमाचल की चाय का इन्तजार है।
मूंछ वाले कविराज काहे रचना रचना पुकारते हो असली रचना कही सुन ना ले | और आपकी वो तस्वीर सब भाभीजी को भेजने वाला हूँ जिनमे आप जनानियो के पास बैठ कर बहुत हंस रहे है |तब आपको रचना याद आयेगी |
जानदार शानदार जबर्दस्त्त ..मजा आ गया पढकर ये मिलन .
जय हो।
---------
ग्राम, पौंड, औंस का झमेला। < विश्व की दो तिहाई जनता मांसाहार को अभिशप्त है।
ab kesi tbiyt he jnaab ki hm to bs aapke khtte mithe anubhvon ke prtikshart hen. akhtar khan akela kota rajsthan
आपने तो डरा ही दिया था.
मैंने पहले ही कहा था पानी के किनारे जरा खाने "पीने में एहतियात बरतना। हो गया ना ऐंड-बैंड़।
पोस्ट ही बता रही है सबके रात का फसाना। :-)
जय हो !!!
नीरज ने इतनी मोटी रजाई ओढी हुई है तो क्या इतनी ठण्ड थी?
जय हो,अब तो कल की चाह का आर्डर बुक कर लेवें.
पढ़कर आनंद आ गया भैया.... सेहत का ख्याल रखें... शुभकामनाएं.
रचना! :)
ठण्ड में कोट पहन कर नहाना उचित रहेगा... मेरी सलाह मान लीजिये.. :)
जादू नहीं दिखाया! पूरी पोस्ट ही जादू है!
@अलबेला जी...ये सही नहीं किया आपने...दस मिनट के लिए ही मिले और जयपुर को चल दिए
@ललित जी...आप सही हैं... चुपचाप रेवाड़ी के लिए निकल लिए...:-(
जादू दिख गया हमें तो...अभी बचोगे नहीं..सुनाये बिना छोडूंगा नहीं..कभी तो पकड़ आ जाओगे इसी ट्रिप में. :)
हाय मूंछवाले डार्लिंग..why did not you call me? मुन्नी नाराज हुई तुमसे डार्लिंग.. you have missed the bus of 'MUNNI BADNAM HUI TERE LIYE' dance.
Dont worry darling..keep in mind for next time...love you darling n best wishes to all the bloggers.
सोच रहे हैं कि हमें भी पहुँच ही जाना चाहिए था :)
क्या आपका बहाना बना हम भी न नहाने का प्रयास करें।
अच्छा लेख़., यदि आप को "अमन के पैग़ाम" से कोई शिकायत हो तो यहाँ अपनी शिकायत दर्ज करवा दें. इस से हमें अपने इस अमन के पैग़ाम को और प्रभावशाली बनाने मैं सहायता मिलेगी,जिसका फाएदा पूरे समाज को होगा. आप सब का सहयोग ही इस समाज मैं अमन , शांति और धार्मिक सौहाद्र काएम कर सकता है. अपने कीमती मशविरे देने के लिए यहाँ जाएं
ललित जी
जितनी शानदार पोस्ट है , उतनी ही शानदार प्रतिक्रियाएं भी क्या कहूँ ...आपका अंदाज ही कुछ ऐसा है ...आप सबसे मिलकर हार्दिक प्रसंता हुई ....आगे भी इन्तजार रहेगा मिलन का ..सुंदर पोस्ट
चलते -चलते पर आपका स्वागत है