नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

October 30, 2010

इन्टरनेट ने सीमाए समाप्त कर दी हैं फिर क्यों लेखन मे इतनी संबंधो कि सीमाओ कि सुरक्षा चाहिये ।

ब्लॉग पर जो महिला लिख रही हैं वो सब किसी ना किसी संबोधन मे बंध कर ही सुरक्षित महसूस करती हैं ऐसा क्यूँ । ना जाने कितनी जगह मै देखती हूँ कि कोई किसी कि माँ समान हैं तो किसी कि बहिन समान हैं ।

सबसे पहला प्रश्न ये ही मन मे उठता हैं कि कोई किसी के समान कैसे हो सकता हैं । या तो वो आप का भाई हैं या वो बहिन ये समान कह कर क्या मतलब होता हैं ।
दूसरी बात ये बहुत अच्छी बात हैं कि आप कि सम्बन्ध बनाने मे रूचि हैं लेकिन क्या ये जरुरी हैं कि आप उन संबंधो का जिक्र अपने लेख और कमेन्ट मे भी करे । सम्बन्ध निज कि थाती होते हैं उनका प्रदर्शन कर के दुसरो को प्रभावित करना लेख को मजबूत नहीं कमजोर भी कर सकता हैं । आप कि निज कि ईमेल मे आप एक दूसरे को कैसे भी संबोधित करे , ऑरकुट , फेसबुक इत्यादि पर कितने सोशल नेट्वोर्किंग करे लेकिन ब्लॉग पर क्यूँ ??

ब्लॉग लेखन से जुड़े लोगो से सम्बन्ध हो , मित्रता हो , रिश्ते बनाए , हम एक दूसरे के लिये वक्त जरुरत खड़े हो सके , भाई बहिन के नातो मे बांध सके शायद इस से अच्छा कुछ हो नहीं सकता पर इस सबको हम अपने पोस्ट मे भो प्रदर्शित करे वो भी निरंतर !!?? कभी किसी सम्बन्ध ने हमे छुआ और हमने उसको ब्लॉग पर सहेज दिया तो वो अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता और हमारे स्नेह का प्रतीक हैं लेकिन लेकिन लेकिन !!!!

कल एक ब्लॉग पर एक पोस्ट मे आये कमेन्ट मे पढ़ा

हिंदी ब्लॉग्गिंग में अब तो कुछ दिनों से देखा गया है की रिश्तो की बहार आ गयी है. राखी (काल्पनिक ही सही) भेजी जाती है और मुहबोली बहनों को क्या चाहिए , केवल मनमाफिक कमेन्ट, चाहे वो कहानी किसी सस्ती पत्रिका जैसे मनोरम कहानिया , या मधुर कहानिया से कॉपी की गयी हो या प्रेरित हो . यहाँ ब्लॉग्गिंग कम सोशल नेट्वोर्किंग ज्यादा होती है .

ये समझते हैं लोग ब्लॉगर महिला को ये छवि बन रही हैं आपकी यहाँ ।

"जील" के ब्लॉग पर पढ़ा कि क्युकी वो महिला हैं इसलिये उसको कमेन्ट ज्यादा मिलते हैं
"मुक्ति" काफी दिन संताप मे रही क्युकी जो कल तक उनको दीदी कहता था ब्लॉग पर उनके लिखे को एक दिन अश्लील कह रहा हैं


माँ कि कोई उम्र और सीमा नहीं होती ये सच हैं पर क्या एक ५५ साल का ब्लॉगर एक ५४ साल कि ब्लॉगर को माँ समझ सकता हैं । कानून भी कहता हैं कि १८ वर्ष कि आयुन सीमा का अंतराल होना आवश्यक हैं विपरीत लिंग मे अगर आप किसी के बेटा या बेटी बने !!!!!!!!! और अगर आप को माँ कहने वाला किसी दूसरी ब्लॉगर का अपमान कर रहा हैं तो आप फिर उसको कुछ नहीं कह सकती क्युकी आप का बेटा कुछ गलत कर ही नहीं सकता । ये तो समाज मे पहले से ही व्याप्त सोच हैं । मेरा बेटा , मेरा पति , मेरा भाई कभी गलत हो ही नहीं सकते !!!!!!

इसके अलावा लेखन मे गोड फादर या गोड मदर कि परम्परा हिंदी साहित्यकारों मे बड़ी पुरानी हैं लेकिन ये ब्लोगिंग हैं और यहाँ साहित्यकार ही नहीं बहुत से अहिन्दी भाषी , विदेशी लोग भी हैं सो हिंदी साहित्य कि इस परम्परा को यहाँ थोपना गलत हैं । जो लोग साहित्यकार हैं या अपने को साहित्यकार समझते हैं और ब्लॉग का उपयोग उसके लिये करते हैं उनके ब्लॉग पर जो महज ब्लॉगर हैं वो शायद ही कमेन्ट करते हो क्युकी ब्लॉगर कि अक्ल मे साहित्य नहीं मुद्दे होते हैं ।

आप महिला हैं आप ब्लॉगर हैं सही हैं लेकिन अगर आप अपने संबंधो का प्रदर्शन यहाँ करती हैं तो आप खुद भी चोट खा सकती हैं क्युकी ये आभासी दुनिया हैं अपने को सुरक्षित कर के लिखने कि प्रक्रिया ही गलत लगती हैं क्युकी सुरक्षा सम्बन्ध से नहीं आत्म बल से मिलती हैं

जब ये ब्लॉग बनाया था तो "डॉ.कविता वाचक्नवी " से बात कि इस मंच जुडने के लिये तो उन्होने मुझे "बेटा " कह कर संबोधित किया और मैने उन्हे "मेम " चैट मे बात हुई और जब परिचय आगे बढ़ा तो पता लगा मै उम्र मे उनसे बड़ी हूँ । उन्होने फ़ौरन क्षमा मांगी पर जरुरी नहीं हैं कि जितने सदस्य इस ब्लॉग के हैं वो सब एक दूसरे कि उम्र जानते हो या जो ३२६ फोल्लोवेर हमको पढते हो वो सब हम मे माँ या बहिन खोज रहे हैं ।

इन्टरनेट ने सीमाए समाप्त कर दी हैं फिर क्यों लेखन मे इतनी संबंधो कि सीमाओ कि सुरक्षा चाहिये । सीता ने लक्ष्मण रेखा पर कि थी इसीलिये रावण उसे उठा ले गया था उस युग से हम काफी आगे आ चुके हैं ।

18 comments:

  1. विचारणीय... कुछ चीज़ें भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं...मसलन जब लड़कियां या महिलाएं किसी अनजान पुरुष को संबोधित करती हैं तो उनके मुंह से 'भाई साहब' या 'भैया' शब्द ही निकलता है...वो दूध वाला हो, सब्ज़ी वाला हो, या कोई और... इसी तरह किसी बुज़ुर्ग को 'बाबा', 'चचा जान' या 'ताऊ' (हरियाणा में) कहकर पुकारा जाता है...लेकिन इसका यह मतलब क़तई नहीं कि हम उसके साथ कोई रिश्ता क़ायम कर रहे हैं... ये शब्द सम्मान के भाव को दर्शाते हैं... इसी तरह पुरुष भी महिलाओं को 'माता जी', 'बहन जी' या 'बिटिया' कहकर संबोधित करते हैं...किसी बच्चे को बुलाना हो और हम उसका नाम न जानते हों तो यही कहेंगे कि 'बेटा' यहां आना... जहां तक संबंध बनाने की बात है कोई भी व्यक्ति सामने वाले को देखकर ही उससे रिश्ता बनाता है...कोई भी लड़की न तो किसी अनजान पुरुष को 'राखी' भेजेगी और न ही कोई पुरुष किसी अनजान लड़की को 'बहन' बनाएगा...जहां दोनों के मन में एक-दूसरे के लिए स्नेह और सम्मान होगा, वहीं कोई भी रिश्ता पनपेगा...वरना आज के ज़माने में खून के रिश्तों की ही डोर कमज़ोर पड़ रही है...

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  2. रचना जी,
    आपने बहुत अच्छी बात उठाई है ! ब्लॉग जगत एक विचार आदान प्रदान तथा अपनी क्रियाशीलता दिखाने का एक अच्छा साधन है पर अगर इसमें हम अनजान रिश्ते लायेंगे तो चोट पहुंचेगी ही और ऐसी चोट नारी के चरित्र पर छींटे उडाकर ही हमेशा दी जाती है !

    इसलिए सावधानी हमें खुद ही बरतनी है !

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  3. सबसे बेहतर तो यही है कि यहां हम एक व्‍यक्ति के रूप में ही एक दूसरे से रूबरू हों।

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  4. @रचना जी,महिलाओं को तो नहीं परंतु कई पुरूष ब्लोगर्स को मैं भाई कहकर संबोधित करता हूँ लेकिन यह संबंधो की दुहाई देकर किसी पर मनमाने विचार थोपने जैसा बिल्कुल नहीं होता ।महिलाऔँ के संबंध में आप इसके जो नुकसान बता रही है वह मै देख चुका हूँ इसलिए मुझे पता है मैँ तो ऐसे कई उदाहरण भी दे सकता हूँ जिन्होने नहीं देखा वो आपकी बात नही मानेंगे चाहे आप कितनी ही कोशिश करें।वैसे मुझे लगता है इस क्रम में ज्यादा नुकसान गुरू शिष्य परम्परा के कारण हुआ है जिसके बारे में आपने नहीं लिखा हैं।

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  5. socho ! socho ! fir socho !koi fayada nahi ! koi labh nahi !hm sirf apne ko sudhar sakate hai ~!lekin hm sudharate kahan hai ?

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  6. रचना जी,
    अच्छा हुआ आपने सारे कमेंट्स डिलीट कर दिए...अब लोग आपकी पोस्ट पढ़कर उसपर प्रतिक्रिया देंगे.

    देखिए..यह अपना निजी विचार है...कि कौन किसी को किस रिश्ते से बुलाये. अगर किसी की पोस्ट पर २५ कमेन्ट आते हैं तो उसमे मुश्किल से २,३ भैया, दीदी कहकर बुलाते हैं...या फिर ७० कमेन्ट हैं तो ४,५

    जब आप अक्सर ..चैट करते हैं...मेल का आदान-प्रदान करते हैं , फोन पर भी बात करते हैं तो अपनेआप कोई संबोधन जुबान पर आ जाता है...और यह स्वाभाविक है. और फिर यहाँ ब्लॉग पर सभी व्यस्क हैं. अपनी क्रिया-कलापों के लिए जिम्मेदार. आपने कहा है..बेटा,भाई गलत करे तो कोई उसे कैसे डांटे क्यूंकि एक रिश्ता बन गया है.
    शायद आपको याद हो, इसी नारी ब्लॉग पर मिथिलेश से मेरी कितनी बहस हुई थी...और वो मुझे दीदी भी कहता था. मैने कई जगह उसके विचारों का विरोध किया पर उसे राखी पर शुभकामनाएं भी दीं.

    आपने जिस कमेन्ट को उद्धृत करके यह कहा है कि "ये समझते हैं लोग ब्लॉगर महिला को, ये छवि बन रही हैं आपकी यहाँ ।"

    पहली बात तो जब आपने खुद स्वीकार किया है कि आप ब्लॉग पर कहानियाँ नहीं पढ़तीं तो उन महाशय ने सत्य लिखा है...ये कैसे सोच लिया आपने?? उनके कमेन्ट को कोट करने के पहले यह तो सोच लिया होता कि हो सकता है कोई व्यक्तिगत खुन्नस हो.
    जिस पोस्ट से आपने वह कमेन्ट कोट किया है..वहाँ भी मैने कमेन्ट किए हैं..प्लीज़ देख लीजियेगा.

    आपने कोट किया है.."मुहबोली बहनों को क्या चाहिए , केवल मनमाफिक कमेन्ट, चाहे वो कहानी किसी सस्ती पत्रिका जैसे मनोरम कहानिया , या मधुर कहानिया से कॉपी की गयी हो"

    मैं नियमित कहानियाँ लिखती हूँ. मेरी कहानियाँ आकाशवाणी से भी प्रसारित होती हैं.और कुछ लोग मुझे दीदी भी कहते हैं. यह कमेन्ट मेरे ऊपर भी समझा जा सकत है (जो कि है ). एक सच ये भी है कि ब्लॉग पर कहानियाँ बहुत ही कम लिखी जाती हैं. पर सस्ती कहानियों की उपमा एक को भी नहीं दी जा सकती.

    और किसी के विचार को देख-सुन कर हम अपनी छवि क्यूँ बनाएं. हमें खुद पर विश्वास होना चाहिए. आज इन्होने ऐसा लिख दिया...तो ऐसा व्यवहार करें...उन्होंने वैसा लिख दिया तो..वैसा व्यवहार करें.

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  7. रचना जी, मैं आपकी बात से सहमत हूँ कि ब्लॉग जगत में आखिर रिश्ते क्यों बनाते हैं लोग? सिर्फ कमेन्ट पाने के लिए? मुझे ऐसा नहीं लगता. मुझे लगता है कि हम आखिर उसी समाज से तो आये हैं जहाँ आज भी हम बिना संबंधों के किसी से बात नहीं करते. तो ब्लॉगजगत में भी ऐसा ही होता है. मैं इसे अस्वाभाविक नहीं मानती.
    जहाँ तक मेरी बात है तो मैंने खुद आज तक किसी को भी अपना भाई नहीं बनाया और ना मेरी रिश्ते बनाने में कोई रूचि है. मैं जिस माहौल से यहाँ आयी हूँ वहाँ हमलोग अपने से कई साल बड़े लोगों को भी नाम लेकर बुलाते थे. केवल एक रिश्ता जिसे हम मानते थे, वो महिलाओं में बहनापे का रिश्ता था, जिसमें समानता होती है.
    जिसकी बात आपने यहाँ की है उसने खुद मुझे दीदी कहना शुरू किया था मैंने उसे खुद भाई नहीं बनाया. और इस सबके बावजूद मेरी उससे कई बार गंभीर बहसें हुईं. मुझे दुःख इस बात का नहीं हुआ कि उसने मेरे लिखे को अश्लील कहा... दुःख आजकल की पीढ़ी की मानसिकता को लेकर था जिसे मैं बहुत समझदार और खुले दिमाग का समझती हूँ.

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  8. मैं फ़िरदौस ख़ान जी के विचारों से सहमत हूँ की ये शब्द सम्मान के भाव को दर्शाते हैं. लेकिन जब किसी को राखी भाई बना लिया जाए तो ओपचारिकता ख़त्म और सगे भाई जैसा आदर आवश्यक हो जाता है. इन रिश्तों की बहार अगर सम्मान देने के लिए कहे जा रहे शब्द हैं , तो भी ख्यालातों के टकराव के बाद भी यह काएम रहना चहिये.
    इन भाई की टिप्पणी को बहुत गंभीरता से नहीं लेना चहिये, क्योंकि इनके साथ ऐसा कुछ हुआ होगा, जो इन्होने बताया.इसका यह मतलब नहीं की सभी महिलाएं ऐसा करती हैं, या सभी रिश्ते (राखी भाई) खोखले हुआ करते हैं. यह और बात है की मेरा जाती तजुर्बा एक भी इन्ही भाई के जैसा ही रहा है. मेरा तजुर्बा यही कहता है की इंसानियत का रिश्ता ही इंसान निभा ले तो बहुत है, ऐसे रिश्तों की आवश्यकता नहीं है, हाँ समानजनक शब्द से किसी भी महिला को पुकारो इतना काफी है.

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  9. rachna ji aap sahi kah rahi hain,blog par ham jisse judte hain ek lekhak ke taur par judte hain.aise koi ichha nahi hoti ki ham kisi ko bahan bhai aadi sambidhan se sambodhit karien.aakhir ham vicharvan manushay hain aur vicharon ka mail ya takrav hame jodta hai isme anya kisi bat par sochne ki zaroorat kya hai?

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  10. रचना दीदी
    @कोई किसी के समान कैसे हो सकता हैं । या तो वो आप का भाई हैं या वो बहिन ये समान कह कर क्या मतलब होता हैं ।
    यही प्रश्न मेरा दोस्त होने के बारे में है दोस्त का मतलब क्या है ?? [आज तक कोई सही उत्तर नहीं मिला ] ये बहन समान है या किसके समान है फिर भी लोग इस रिश्ते को ब्रोड माइंडेड होने के भ्रम में अपनाए हुए हैं ना?? तो इस बहन समान में क्या बुराई है ??

    @क्या ये जरुरी हैं कि आप उन संबंधो का जिक्र अपने लेख और कमेन्ट मे भी करे ।
    क्या इससे किसी अन्य को कोई तकलीफ हो सकती है ??

    सम्बन्ध निज कि थाती होते हैं उनका प्रदर्शन कर के दुसरो को प्रभावित करना लेख को मजबूत नहीं कमजोर भी कर सकता हैं ।
    ये भी देखने के नजरिये पर निर्भर होता है एक बेकार से लेख पर कईं सारे और एक अच्छे लेख पर बहुत कम कमेन्ट भी होते हैं ना [यहाँ मैं स्त्री पुरुष होने के बारे में नहीं कहा रहा हूँ ]

    @क्युकी वो महिला हैं इसलिये उसको कमेन्ट ज्यादा मिलते हैं
    [अगर मैं सही समझ रहा हूँ तो] एक इंसान ने अपने मन की बात इमानदारी से कही [सही लगी या गलत ये वहीं बता देना था ]और आप लोगों ने उसका तमाशा बना दिया है , ये उचित है क्या ??

    @ सीता ने लक्ष्मण रेखा पर कि थी इसीलिये रावण उसे उठा ले गया था उस युग से हम काफी आगे आ चुके हैं
    यही परेशानी है लक्ष्मण रेखा का सही मतलब ना सीता को समझ में आया था ना आज के आधुनिक लोगों को

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  11. रचना दीदी,
    आप यहाँ कमेन्ट प्रकाशित करें या ना करें मुझे फर्क नहीं पड़ता, मुझे अपनी बात आप तक पहुंचानी थी पहुंचा दी

    ~~~~जय श्री राम~~~~~

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  12. रश्मि
    जिस कमेन्ट को मैने यहाँ दिया हैं उसमे जेंडर बायास कूट कूट कर दिख रहा हैं ऐसा ही एक कमेन्ट श्री सुभाष भदोरिया जी ने ब्लॉग कवित्रियों के लिये २००७ मे दिया था समीर लाल के ब्लॉग पर जिस दिन से मैने यहाँ पर जेंडर बायस कि बात शुरू कि और अपना मकसद बनाया इस बायस को यहाँ से हटाने के लिये । मेरी कोशिश होती हैं कि मै इस मानसिकता को सामने लाऊं और महिला ब्लॉगर को आगाह करूँ कि इस को ब्लॉग पर ना फैलने दे । वो आप हैं या मै या जील या मुक्ति या कोई अनजान महिला मेरे लिये उसके खिलाफ लिखे गये शब्द यानी वो शब्द जो उसके महिला होने के कारण उसको दोयम बनाते हैं पूरे महिला समाज के खिलाफ हैं । और हम सब को इनका प्रतिकार करना चाहिये । हम इनको अगर इगनोरे करेगे तो आगे आने वाली महिला को और भी अपशब्द सुनने को मिलेगे ।
    १०० बार बोला गया झूठ सच ही हो जाता हैं इस लिये अगर कोई झूठ कह रहा हैं तो उस झूठ को झूठ कहने मे क्या बुराई हैं ???

    अगर इस कमेन्ट मे कहा गया होता कि ब्लॉगर कि कहनियों मे कोई दम नहीं हैं तो वो पाठक कि राय थी पर इस मे ब्लॉगर महिला कहा गया ।

    सम्बन्ध से सुरक्षा महिला से ज्यादा पुरुष उठाते हैं । जो आप{ इस को व्यक्तिगत नहीं संबोधन माने } को दीदी कहते हैं , माँ कहते हैं वो जगह जगह आप को यही कहते हैं और दूसरी महिला ब्लॉगर को गाली देते हैं और साथ साथ ये भी कहते हैं देखो मेरी इतनी दीदी हैं माँ हैं मे इतना शरीफ हूँ यानी अपनी शराफत साबित करने करने के लिये उन्हे एक दीदी और माँ चाहिये । वही अगर ये संबोधन केवल निज कि थाती हो यानी इसका प्रदर्शन ब्लॉग पर ना हो तो लोग खुल कर विचारों का आदान प्रदान कर सकेगे ।

    @गौरव
    आप में बहस करने का जज्बा बहुत हैं और मै ये कयी ब्लॉग पर देख चुकी हूँ आप के कमेन्ट पहले भी नहीं हटाये हैं अगर वो पोस्ट से जुड़े हैं । कल २३ कमेन्ट डिलीट किये और मोडरेशन फिर लगा दिया हैं । सम्बन्ध बनाना आसान होता हैं निभाना मुश्किल । आभासी दुनिया मे किसी को परखने से बेहतर हैं कि हम उसके विचारों को परखे । उन पर बात करे । बिना किसी को परखे सम्बन्ध बना लेना और बाद मे उनपर रोना !!!

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  13. @रचना जी,
    आपने बिलकुल सही कहा....रचना जी,
    इन महाशय को पिछले तीन महीने से इग्नोर कर रही हूँ...हर जगह, ये मेरे लेखन में मेरी न्यूज़ रीडिंग में त्रुटियाँ निकाल आते हैं....इग्नोर करती रही और हालात यहाँ तक पहुंचे कि fake profile बना कर मेरे लेखन को घटिया..सस्ता...सब कह गए...

    कुछ पुरुष ब्लोगर भी कहानियाँ लिखते हैं....उनकी रचनाओं पर ये खामोश रहें.

    अब उम्मीद है...बाज़ आयेंगे अपनी हरकतों से.

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  14. अगर कोई कमेन्ट किसी महिला को इस नाते मिलता है कि वह महिला है, तो ऐसे जेंडर बायस कमेंट्स का विरोध करना ही चाहिए. मैंने भी जहाँ तक हो सका इसका विरोध किया है.

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  15. बहुत ज़रूरी पोस्ट थी ये रचना जी.
    बहुत सही मुद्दे को उठाया है आपने. आखिर दोस्ती को किसी भी रिश्ते में बांधने की ज़रूरत क्यों होनी चाहिये? दोस्ते अपने आप में बहुत खूबसूरत रिश्ता है. रहा सवाल भैया, दीदी, मां, जैसे सम्बोधनों का, तो निश्चित रूप से ये सम्बोधन तक ही सीमित होते हैं, और सम्मानसूचक शब्द को परिभाषित कर रहे होते
    हैं. सगे रिश्ते तो लोग ठीक से निभा नहीं पा रहे, इन आभासी रिश्तों को कैसे निभाए? हां, यदि इन आभासी रिश्तों में ईमानदारी हो, तो ये भी निभ सकतेहैं. लेकिन ब्लॉग पर निश्चित रूप से इन रिश्तों का प्रदर्शन नहीं होना चाहिये.
    और हां रश्मि, कहानियां तो मैं भी लिखती हूं, कौन हैं ये महाशय जो इतने लम्बे समय से तंग कर रहे हैं? इनके पास और कोई काम नहीं है क्या?

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  16. rachna ji ek gair mudde ko mudda banaane ka safal prayas aapne kiya hai. lekin haa jab itnee baat yahaa hui hai tab bahas ke gunjaaish to bantee he hai.

    mujhe vyaktigat roop se bhai bahin banane ka chalan theek nahee lagtaa hai par haa sambodhan mai mai nijee jindgee par bhee, chat par bhee aur blog comment mai bhee jin purush blogars se apnapan ho jata hai unmai chhoto ko nam ke saath bhai ayr bado ko bade bhaiya ya sir aise sambodhan hameshaa detaa hoo. mahilaao ke maanle mai meree koshish hotee hai ki chhotee ho ya badee sabke nam ke saath ji lagaaye.

    aur logo jinmai mahilaaye bhee hai aur purush bhee kyu naa unhee pe chhoda jaaye ki vo kya chaahte hain. jitne log didi aunty ya ma jaise sambodhan dete hai koi jarooree nahee ki unke vichar gambheertaa se us mahila bloggar ke liye theek vaise hee hon lekin haan kisee khas ke liye vaise bhav ho sakte hain.

    sahee baat ye hai ki ham dost bhai bahin kahne mai bahut jaldvaajee karte hai

    dost kya hai - do astiyo ka samanvay. lekin koi ek ya had se jyada 2 log ho sakte hai jeevan mai jinke liye aisa kaha ja sake. ham har saathee ya parichit ko dost kahte hain.

    bahin ( bhagini ) meree samajh se sirf apne maa kee putree ko kaha jaa sakta hai

    lekin kya kare

    bachpan se pratigyaa mai rataya gaya. samast bharteeya mere bhai bahin hain. peeche se koi shararatee ladkaa kah jata tha ek ko chhodkar

    ant mai meree samajh mai ise sambandhit bloggars ke vivek par chhoda jaye ki vo kya sambodhan pasand karte hai. par ha kisee bhram mai naa jiye.

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