नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

August 31, 2010

कुछ प्रश्न अपनी साथी महिला ब्लॉग लेखिकाओ से

कुछ प्रश्न अपनी साथी महिला ब्लॉग लेखिकाओ से

क्या जब कोई आप की चर्चा अपने ब्लॉग पर करना चाहता हैं
तो आप उसको चर्चा करने देने से पहले उसके पूरे ब्लॉग को एक बार पढ़ती हैं सारी पोस्ट
क्या आप देखती हैं की आप से पहले जितने लोगो की चर्चा उस ब्लॉग पर हुई हैं वो किस स्तर और मुद्दे पर लिखते हैं अपने ब्लॉग पर
क्या आप उस ब्लॉगर की जिन लोगो से बहस हुई हैं उन पोस्ट को जा कर पढ़ती हैं


अगर उस ब्लॉगर ने आप से पहले किसी और महिला के प्रति अपशब्द लिखे हैं
तो क्या आप उस महिला से बात कर के तथ्य क्रोस चेक करती हैं या ये मान कर चलती हैं की आप के अलावा और जितनी भी महिला हैं वो गलत हैं

किसी महिला के ऊपर कोई ब्लॉगर एक पोस्ट लगता हैं जिस मे वो महिला को नारीवादी , असंस्कारी इत्यादि कहता हैं
तो क्या आप उस पोस्ट पर उस महिला के विरुद्ध कमेन्ट करती हैं बिना पूरे तथ्य जाने क्युकी वो ब्लॉगर आप के ऊपर एक चर्चा कर चुका हैं

जब आप किसी सामूहिक ब्लॉग से जुडती हैं तो
क्या आप उसके बाकी सदस्यों को जानती हैं
क्या आप कभी ये चेक करती हैं की लोग आप की आड़ मे दूसरी महिला के साथ कैसे अभद्र व्यवहार करते हैं

ब्लॉग पर परिवार वाद
क्या आप तब ही खुश होती हैं जब कोई आप को आंटी , दीदी , माँ इत्यादि बुलाता ब्लॉग पर
क्या आप विनम्र दिखने के लिये ये सब मान लेती हैं
क्या आप को लगता हैं की बिना भाई , पिता , बेटा कहे पुरुष ब्लॉगर को आप सुरक्षित नहीं होगी

अपने अन्दर झाँक कर देखिये की क्यूँ जब एक महिला किसी पुरुष के खिलाफ कुछ लिखती तो आप विवादों से दूर हो जाती हैं और पुरुष जब किसी महिला के खिलाफ लिखते हैं तो बाकी पुरुष उनके साथ होते हैं


मेरी अंतरात्मा पर एक बोझ हैं कल से
कि क्यूँ रहती हैं
एक चुप्पी हमेशा
जब कि एक औरत
चीख कर कुछ कहती हैं
और
क्यूँ
होती हैं टंकार हमेशा
जब कि एक पुरुष
सिर्फ फुसफुसा रहा होता हैं

August 30, 2010

मेरे घर की तीन बिगड़ी दिल शहजादिया

काश्वी मेरी बुआ की लड़की की लड़की उम्र २३ साल
इस समय ऍम सी ऐ कर रही हैं । रात बिरात घर से अपने स्कूटर पर आती जाती हैं । अपना कमरा हैं अलग , उसमे ऐसी लगा हैं , नीचे मार्बले की फ्लौरिंग हैं । लैपटॉप हैं , मोबाइल हैं ।
हाथ मे डाईमंद की तीन अगुठियाँ हैं ।
काश्वी की माँ सरकारी नौकरी मे हैं मिडिल क्लास फैमिली हैं । छोटा मकान हैं अपना । पति का दस साल पहले ही निधन हो गया हैं ।
काश्वी की ननिहाल विरासत से उनको २० लाख रुपया मिलेगा काश्वी की नानी भी नौकरी करती थी
काश्वी इकलौती बिटिया हैं ।बात करने मे काश्वी बहुत विनम्र हैं और देखने मे सुन्दर गोरा रंग हैं घर का कोई काम नहीं करती हैं । खाना बिलकुल नहीं बनाती हैं । बाहर का हर काम करने मे निपुण हैं । माँ को स्कूटर पर बिठा कर यहाँ वहाँ ले जाती हैं । सरकारी नौकरी नहीं करेगी ।
काश्वी को अपने लिये ऐसा पति चाहिये जो दिल्ली मे रहता हो , और अच्छी नौकरी मे हो और काश्वी की नौकरी उसके लिये अहमियत रखती हो । घर के काम के लिये काश्वी एक मेड रखना चाहती हैं । पति अपना काम करे जैसे अपने कपड़े इत्यादि खुद धोये वो अपना काम करेगी ।या दोनों मिल कर करे हर काम । पति की आय उनसे ज्यादा ही हो कारण ज्यादा पैसा किसे बुरा लगता हैं और जब वो विरासत मे २० लाख रुपया नानी का और ४० लाख का अपनी माँ का मकान और अपनी नौकरी { कम से २०००० रूपए प्रतिमास } ले कर चल रही हैं तो पति कैसा चाहिये ये चुनने का अधिकार तो उनको है ही ।

अपर्णा मेरे छोटे चाचा की बेटी उम्र १६ साल
अभी
१० वी की परीक्षा दे कर ८२ प्रतिशत अंको से पास हुई हैं । ननिहालकी विरासत से ३ करोड़ की एकलौती वारिस । पिता एक छोटे व्यवसाई । पिता के तरफ भी कोई और वारिस नहीं हैं लेकिन बाबा अपनी सम्पति देगे या नहीं कहा नहीं जा सकता । माँ गृहणी ।
अपर्णा का अपना कमरा हैं , अपर्णा ४ साल की आयु से अपना कंप्यूटर चलाती हैं । कंप्यूटर मे माहिर हैं । लैपटॉप चाहिये , मिलगया हैं नानी से पैसा दसवी के रिजल्ट का सो लेपटोप आने मे देर नहीं हैं । अपर्णा की नानी भी नौकरी करती थी
अपर्णा के पिता के लिये अपर्णा की हर इच्छा पूरी करना बहुत जरुरी हैं । उन्होंने अपर्णा के कमरे मे अलग ऐसी लगवा दिया हैं । पिता अपने ऊपर कुछ खर्चा करे ना करे लेकिन अपर्णा को ५०० रूपए कभी भी दे दे सकते हैं पिक्चर जाने के लिये दोस्तों के साथ । २१ साल की अपर्णा के होते ही नानी की करवायी हुई बिमा पोलिस्य का २ लाख उसको मिलेगा और बाकी उसके पापा डाल देगे और वो नई कार लेगी । पापा आज भी स्कूटर से ही चलते हैं ।
अपर्णा "hates" बस मे जाना । आइसक्रीम और पिज्जा और मोमो खाने मे पसंद हैं । घर का खाना , ना खाना अच्छा लगता हैं न बनाना । १२ क्लास के बाद कोई professional course करके जितनी जल्दी हो नौकरी करना चाहती हैं ।

मोनिका मेरे छोटे चाचा की बेटी की बेटी उम्र साल
ननिहाल
की तरफ से २५ लाख के मकान की एकलौती वारिस । बाबा दादी की लाडली , जो चाहिये तुरंत मिलेगा । बाबा दादी की विरासत लगभग ४० लाख । पिता का अपना छोटा व्यवसाय , माँ स्कूल टीचर ।
मोनिका इतनी कम उम्र मे भी ये जानती हैं की उसको अपर्णा दीदी की तरह ही सब कुछ चाहिये । मोनिका की माँ मोनिका की आँख मे आंसूं नहीं देख सकती । उसे अपनी बेटी को स्वाबलंबी बनाना हैं । मोनिका के पिता ज़रा स्ट्रिक्ट हैं लेकिन दादा दादी और माँ के आगे उनकी कुछ नहीं चलती ।

इन तीनो को मै अपने घर की बिगड़ी दिल शहजादिया कहती हूँ क्युकी इनका पालन पोषण बिलकुल राज कुमारी की तरह होता हैं । कभी भी अगर इनके अभिभावकों से कहो तो वो नाराज हो जाते हैं और कहते हैं की नहीं उनकी बेटिया बिगड़ी दिल शहजादियाँ नहीं हैं ये सब आज कल आम हैं जो वो अपनी बच्चियों को दे रहे हैं

इन तीनो के अभिभावक ने इनके जनम से पहले ही फैसला कर लिया था की उनकोएक ही बच्चा चाहिये ताकि वो उसको बढ़िया परवरिश दे सके . लड़की होने के बावजूद भी उनका फैसला नहीं बदला हैंउनकी परवरिश मे कोई कमी भी नहीं हैं क्युकी उनकी बेटियाँ बहुत जहीन हैं और तमीजदार भीपढने लिखने मे भी बहुत तेज हैंलेकिन परम्परागत कामो को नहीं करती हैं जो लड़कियों के समझे जाते हैं

अब सवाल ये उठता हैं की ऐसी लड़कियों की जब शादी होगी तो उनसे ये अपेक्षा रखना की वो घर मे हर काम मे प्रवीण हो , वेस्टर्न कपड़े ना पहने इत्यादि क्या सही हैं क्युकी तीनो को ही वेस्टर्न कपड़ो मे बड़ा मजा आता हैं
??? या उनके माता पिता लडके वालो के आगे झुके रहे ??

तीनो अभिभावक कहते हैं अपनी बेटियों की शादी उनकी जिन्दगी का मकसद नहीं हैं , अपनी बेटियों की खुशियाँ उनकी जिन्दगी का मकसद हैं । उन्हे बच्चे की कामना थी वो उनको मिल गया अब वो बेटा हैं या बेटी उन्हे कोई फरक नहीं हैं ।

August 29, 2010

जीवन साथी या ढांचा बंद पत्नी

मोहित उम्र ३२ साल एक आई टी फर्म मे ३०००० रूपए की मासिक आय । घर के सब काम करने मे भी सक्षम । घर मे जरुरत का सामान जैसे सोफा , वाशिंग मशीन , माइक्रोवेव , गैस , पलंग इत्यादि सब उसकी अपनी खरीद से मौजूद । शादी का इच्छुक लेकिन मगल हैं भारी कुंडली मे । पिछले कई सालो से अंकुर के लिये रिश्ते खोजे जा रहे हैं ।

मोहित दिल्ली मे हैं और उसका माता पिता लखनऊ मे ।
पिता एक सरकारी कर्मचारी अपनी नौकरी से दम्भित ऊँची पोस्ट नियमित आय के अलावा भी आय के साधन , बहुत चाहते थे बेटा भी सरकारी नौकरी करता । पिता ने अपनी ४ बहनों का विवाह किया और चाहते हैं की मोहित की शादी मे भी लेन देन हो यानी आपसी रिश्तो मे प्यार ।

उनकी पसंद की लड़की के गुण
एक बी ऐ पास लड़की जिसके पिता कम से कम एक घर और कार देने की हसियत तो रखते हो । इसके अलावा एक अच्छी शादी कर सके , यानी कम से शादी मे ३० लाख और खर्च कर सके । घर लखनऊ मे दिया जाए जो ३ कमरों का तो हो और एक पोश लोकेलिटी मे हो । और सबसे बड़ी बात लड़की नौकरी ना करती हो अगर ज्यादा पढ़ी लिखी भी हो तब भी क्युकी पढ़ी लिखी , नौकरी पेशा लड़कियों के यहाँ बच्चे होने पर बड़ी समस्या होती हैं । उन्होने अभी से अपनी पत्नी को कहना शुरू कर दिया हैं की तुम "आया " बनाने के लिये तैयार हो जाओ । उनको लड़की ऐसी चाहिये तो सिल पर चटनी पीस सके और जब वो मोहित के पास रिटायर हो कर आये तो उनको गरम खाना खिला सके । बोलने मे मृदुभाषी हो , मायके का अहम् , धोंस लेकर लड़की ससुराल ना आये । वैसे बाकी उनको कुछ नहीं चाहिये

मोहित की माँ ,
एक ८ वी पास महिला , खाना बनाने मे दक्ष । सालो से पति के हिसाब से जी रही । दान दहेज़ नहीं लाई थी , आज भी पति इस बात का ताना देते हैं । उनके कम अकल होने की बात कहते हैं और बात करते समय ये बताना कभी नहीं भूलते की कैसे उन्होने अपनी पत्नी को बेसिक मैनर्स सिखाये । पत्नी खाना खाती हो तो भी अगर उनको कुछ चाहिये तो पत्नी को थाली छोड़ कर उठ कर उनको देना चाहिये । इस से पत्नी का उनके प्रति प्रेम दिखता हैं ।

मोहित की माँ को मोहित के लिये लड़की मे क्या चाहिये
लड़की साफ़ रंग की होनी चाहिये क्युकी उनका मोहित बहुत गोरा हैं । लड़की को जींस इत्यादि नहीं पहनना चाहिये उनके सामने । सर ढक कर रहना होगा जब सास ससुर घर मे हो । खाना बनाना वो सीखा लेगी अपने पास रख कर । लड़की को नौकरी नहीं करनी चाहिये हां पढ़ा लिखा होना चाहिये । अगर डॉ या ऍम बी ऐ हो तो भी वो शादी कर देगी अपने बेटे की लेकिन नौकरी ना करे क्युकी उनकी ससुराल मे जो लडकियां हैं वो सब बहुत पढ़ी लिखी हैं पर अपने अपने पति के साथ बिना नौकरी के खुश हैं । कुछ तो विदेशो मे बस गयी हैं लेकिन नौकरी नहीं करती हैं अपनी मर्ज़ी से ।

मोहित की पसंद
एक काम काजी लड़की , अगर आ ई टी से हो तो बहुत अच्छा । इस महगाई के ज़माने मे दिल्ली जैसे शहर मे बिना दो लोगो की कमाई की एक स्तर की जिन्दगी { जो उसने अपने लिये सोची हैं } जीना संभव नहीं । खाना बनाना आना कोई जरुरी नहीं क्युकी ये सब बाते कोई महत्व नहीं रखती । खाना कौन बनाए या बाहर से आये कोई फरक नहीं होगा । लड़की सुन्दर हो , सुंदर यानी जिसके साथ वो महसूस करे की वो सुंदर हैं ।

मोहित के लिये कोई भी लड़की फाइनल नहीं हो पाती क्युकी मोहित की सोच उस के माता पिता की सोच से भिन्न हैं । मोहित ऐसा लड़का नहीं हैं जो माता पिता से अलग हो कर शादी करे । मोहित की अपनी कोई ऐसी दोस्त नहीं हैं जिस से वो शादी करना चाहता हो , और सबसे बड़ी बात मंगली होने की वजह से मंगली लड़की से ही विवाह होगा ।

अभी इन्टरनेट से एक रिश्ता मोहित के लिये आया । लड़की मंगली हैं पर काली हैं । ऍम बी ऐ हैं , दिल्ली मे नौकरी खोज रही हैं । पिता नहीं हैं , माँ के साथ किराए के मकान मे रहती हैं । ननिहाल लखनऊ मे हैं । भाई यू अस ऐ मे हैं । मिडिल क्लास फॅमिली हैं ।

मोहित को लड़की पसंद हैं उसने माँ पिता को लड़की देखने को कहा लेकिन लड़की उनके मानडंडो मे खरी नहीं उत्तर रही ।

कभी कभी लगता हैं नयी पीढ़ी के लडके ज्यादा सुलझी सोच के साथ अपने जीवन को जीने की कामना कर रहे हैंउनकी नज़र मे आज की नयी पीढ़ी की लडकियां उनकी जीवन साथी बन सकती हैं सही मायने मे लेकिन पुरानी पीढ़ी की सोच आज भी लड़कियों को परम्परागत ढांचों मे देखना पसंद करती हैं

August 28, 2010

हम कैसे कैसे अपने लिये गलत संबोधनों को स्वीकृति देते हैं

इस पोस्ट पर जिस प्रकार से "ब्लोगरा " शब्द से अपने को सम्मानित महसूस कर रही हैं ब्लॉग लिखती महिला लगता हैं बहुत जल्दी न्यूट्रल शब्द "ब्लॉगर " का स्त्रीलिंग बन ही जाएगा और ये भी स्थापित हो ही जायेगा की ब्लॉग लिखना पहले पुरुषो ने शुरू किया और फिर महिला ने । अपने अधिकारों के प्रति इतनी उदासीनता बस महिला मे ही देखने को मिलती हैं

हम कैसे कैसे अपने लिये गलत संबोधनों को स्वीकृति देते हैं ये पोस्ट , इसकी हेअडिंग और इस पर आये कमेन्ट इसी बात को दरशाते हैं

एक निहायत अफ़सोस जनक स्थिति हैं

जब ये पोस्ट आज से कुछ महिना पहले मैने दी थी

क्या ब्लॉगर शब्द पुल्लिंग हैं ?? जागिये महिला ब्लॉगर जागिये

तब कुछ ऐसा ही होने का मुझे आभास था और आज वही होता भी दिख रहा हैं ।
नारी मे अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी हैं और यही कमी नारी को कमजोर करती हैं

August 27, 2010

मैडम सच हैं पर कितना सच हैं आप का ये सच

आज कल विदेश मे बसे लडको से भारत मे बसी लड़कियों का विवाह करने का रुझान बढ़ता ही जा रहा हैं । इन मे से बहुत सी लडकियां काफी पढ़ी लिखी हैं जैसे की डॉ , इंजीनियर , एम टेक या आ ई टी क्षेत्र से जुड़ी लडकियां । इन सब लड़कियों को लगता हैं की विदेश मे बसे लडको से विवाह कर के वो भी विदेश मे नौकरी कर लेगी । लड़कियों के अभिभावक भी इसी प्रकार के विवाह के लिये उत्सुक लगते हैं । यानी विवाह को करियर की एक सीढ़ी बना कर लडकियां आगे जाना चाहती हैं ।

लेकिन बहुत सी लडकियां और उनके अभिभावक उस समय चकित होते हैं जब उनको बताया जाता हैं की लड़की विदेश मे जा कर तुरत नौकरी शायद ना कर पाए । कारण बहुत सीधा हैं , लडके का वीसा किस क्षेणी का हैं उसकी पत्नी को नौकरी मिलेगी या नहीं ये इस पर निर्भर करता हैं । बहुत से नौकरी -वीसा इस प्रकार के होते हैं जिनमे पत्नी नौकरी नहीं कर सकती हैं ये एक प्रकार से तय ही होता हैं ।

ना जाने कितनी पढ़ी लिखी लडकियां जो जीविका अर्जन के लिये सक्षम हैं , जिनको शिक्षित करने के लिये भारतीये सरकार का बहुत पैसा लगता हैं जैसे डॉ , इंजिनियर इत्यादि वो विदेशो मे जा कर अपनी इस शिक्षा का कोई उपयोग नहीं करती हैं । वही अगर अपने देश मे होती तो शायद उनकी तकनिकी शिक्षा इस देश के काम आती ।

कई बार विदेशो मे बसी ऐसी ही महिला नौकरी के विरोध मे बोलती पाई जाती हैं । वो निरंतर ये कहती हैं की नारी का काम घर को संभालना होता हैं । नौकरी करने वाली महिला अपना घर सक्षमता से नहीं संभल पाती इस लिये वो इतना शिक्षित होने पर भी नौकरी नहीं कर रही हैं और फिर भी आराम से रह रही हैं ।

सच्चाई को अपने मुताबिक नया आयाम देकर और लड़कियों को गुमराह करने वाली ऐसी स्त्रियाँ ये नहीं सोचती की वो नारी सशक्ति करण के रास्ते मे एक व्यवधान खडा करती हैं । कहीं ना कहीं ऐसा लगता हैं जैसे क्युकी वो नौकरी नहीं कर पाई इस लिये और भी ना कर सके ।

August 26, 2010

शत शत नमन


शत शत नमन
आज मदर टेरीसा का १०० वा जनम दिन हैं ।
मदर टेरीसा एक ऐसी माँ हैं जिनका हाथ हमेशा " poorest of poor " के सर पर रहा था .

August 22, 2010

"हम नारी पर हो रही हिंसा के विरोधी हैं और ये सब काल्पनिक हैं " क्या सच मे ??

आज कल टी वी के हर धारावाहिक मे नारी पात्रो के साथ निरंतर यौनिक हिंसा दिखाई जा रही हैं उस से में मे हमेशा एक ही प्रश्न उठता हैं की ये सब क्यूँ दिखाया जाता हैं ।

हर जगह बलात्कार और मोलेस्टेशन ऐसे दिखाया जाता हैं जैसे ये एक आम बात हैं और नीचे लिखा होता हैं
"हम नारी पर हो रही हिंसा के विरोधी हैं और ये सब काल्पनिक हैं "

हिंसा दिखा कर हर बार डराया भी जाता हैं और फिर उसको कप्ल्प्निक भी कह दिया जाता हैं ।

ये सब गलत हैं क्युकी इस से तो यही सन्देश जाता हैं की जो भी लड़की समाज की गलत बातो का विरोध करेगी उसके शरीर को नोच कर उसको सबक सिखाया जायेगा ।
जिस बात को ख़तम करना कहिये उसको ग्लमराइज किया जाता हैं और इस से बहुत से लड़कियों को नुक्सान होता हैं ।

आप क्या कहते हैं ??

August 18, 2010

महिला को वोट करने का अधिकार आज ही मिला था समानता का जन्मदिन हैं आज


आज गूगल के पेज पर ये मेसेज दिखा


Celebrating 90 years since the ratification of the 19th Amendment, guaranteeing women the right to vote

श्याद पहली बार इस प्रकार का मेसेज गूगल पर दिया गया हैं । महिला को वोट करने का अधिकार आज ही मिला था समानता का जन्मदिन हैं बधाई ।


विस्तार से यहाँ पढे

Events celebrate 90 years of women having right to vote


BY BECCY TANNER

The Wichita Eagle

The Wichita-Metro Chapter of the League of Women voters is celebrating the 90th anniversary of the 19th Amendment with a series of events starting this month and continuing through spring 2011.

Beginning at 7 p.m. Aug. 26, the public is invited to Wichita State University's Hughes Metropolitan Complex at 29th North and Oliver to listen to a panel of women discuss women's issues. Doors open at 6:30 p.m.

The panel includes Linda Weir-Enegren, co-founder of Roots and Wings and founder of Rainbows United; Nola Foulston, District Attorney; Felicia Rolfe, morning anchor at KWCH; Lavonta Williams, City Council member; Lily Wu, Wichita State University Gore Scholar; and Ernestine Krehbiel, president of the Kansas League of Women Voters.

The league is collaborating with nine local organizations to present the ongoing activities that will include book clubs, a film series and other activities.

Participating organizations include Wichita State University's Political Science and Women's Studies departments; the Wichita Public Library; Wichita Professional Communicators; the Wichita chapter of Links Inc.; the National Organization for Women; AAUW, the organization formerly known as American Association of University Women; Hispanic Women; NAACP; and the Kansas African American Museum.

The 19th Amendment, guaranteeing women the right to vote, was ratified Aug. 18, 1920.



Read more: http://www.kansas.com/2010/08/16/1448535/events-celebrate-90-years-of-women.html#ixzz0wxmsB8sD

पिप्ली गांव में एक 'धनिया' भी है..

माथे पर सुहाग की निशानी नहीं थी और ना ही आंखों में ज़िंदगी में आए सूनेपन को बयां करने वाले कोई आंसू.. हां, हाव-भाव में एक नरमी ज़रूर आ गई है..। नरमी भी ऐसी जो किसी बदलाव की तरफ़ नहीं बल्कि हालात के सामने बेबस हुई एक विधवा की तरफ़ इशारा करती है.. एक विधवा जिसके तीन बच्चे हैं.. और बच्चों के अलावा परिवार में एक बूढ़ी बीमार सास और जेठ हैं..।
मैं शालिनी वत्स की बात कर रही हूं.. जिन्होंने ‘पिप्ली लाइव’ में नत्था की पत्नी धनिया का किरदार निभाया है..।
पूरी फिल्म में मुझे सबसे ज्यादा जिस किरदार ने प्रभावित किया वो धनिया का था और जिस तरह से शालिनी वत्स ने धनिया के किरदार को पर्दे पर उकेरा वो सचमुच क़ाबिले तारीफ़ है..। कल ही फिल्म देखी.. और अभी तक धनिया की छाप ज़ेहन पर है..। (बाक़ी किरदारों को कमतर नहीं आंक रही हूं, बस धनिया ने कुछ ज्यादा ही प्रभावित किया)
लेख की शुरुआत में जिस दृश्य की बात मैं कर रही हूं.. उस दृश्य में धनिया पर से मेरी नज़रे हटी नहीं..
(धनिया और बाकी पूरी दुनिया को लगता है कि नत्था की एक हादसे में मौत हो चुकी है, जबकि ऐसा नहीं है ज़िंदगी और मीडिया के दम घोंटू माहौल की वजह से नत्था गांव से दूर शहर में चला गया है)
पति की मौत हो चुकी है लेकिन धनिया के चेहरे पर कोई शिक़न नहीं है.. वो आंगन में बैठकर कुछ काम कर रही है और तभी उसके जेठ घर वापस लौटते हैं.. नत्था की कथित मौत पर मुआवज़े की आस पर दर-ब-दर भटकने के बाद बुधिया खाली हाथ लौट आया है.. धनिया उसे पानी पीने को देती है और साथ ही मुआवज़े के बारे में पूछती है..। धनिया के बर्ताव में एक अपनापन और सवाल में विनम्रता नज़र आती है..। आप सोचेंगे अपनो के प्रति अपनापन और विनम्रता होना कौन सी बड़ी बात है.. लेकिन मुझे लगता है बड़ी बात है..। क्योंकि ये वही धनिया है जो ग़ुरबत और सास के तानों के बीच किसी तरह ज़िदंगी काट रही है और ज़िम्मेदारियों को संभाल रही है.. और उसके जबाबी शब्द बाण किसी फिदायीन से कम नहीं लगते थे..।
हादसे में पति की मौत (भले ही वो पहले ही आत्महत्या करने का ऐलान कर चुका हो और पूरा नेशनल मीडिया इस बात को कवर कर चुका हो) के बावजूद धनिया पर वो असर नहीं दिखता जो अमूमन पति के गुज़र जाने के बाद होता है या जिस तरह से फिल्मों में फिल्माया जाता है..। ऐसा लग रहा है मानों नत्था का होना न होना उसके लिए कोई मायने ही नहीं रखता.. या ग़रीबी का जाल कुछ ऐसा है कि उसे मुआवज़े के तेज़धार हथियार से ही काटा जा सकता है और उस हथियार को पाने के लिए पति की जान को दांव पर लगाना कोई महंगा सौदा नहीं..।
एक शादीशुदा औरत के लिए.. चाहे वो कितनी ही आत्मनिर्भर क्यों न हो, पति का साथ बहुत अहम होता है..। और फिर धनिया जैसी ग्रामीण महिला के लिए तो उसका सुहाग उसकी सबसे बड़ी दौलत होना चाहिए.. लेकिन ग़रीबी और बच्चों की चिंता ने उसे ऐसा घेरा है कि वो सिर्फ़ यही सोच पाती है कि कैसे उसकी और उसके बच्चों की ज़िंदगी कटेगी..।
इससे पहले निर्देशक बाल्की की फिल्म ‘पा’ में औरत के चरित्र का नया पहलु देखा था.. जब शादी से पहले ही गर्भवती हुई विद्या बालन को उनकी मां बेहिचक पूछती हैं कि तुम इस बच्चे को रखना चाहती हो या नहीं..। बेहद खुशी हुई थी.. मां के किरदार के इस नए रुप से (वजह चाहे जो भी रही हो)...
ऐसा ही कुछ अलग ‘पिप्ली लाइव’ में देखा जहां एक औरत के लिए ज़िंदगी की लड़ाई, सुहाग के न रहने पर खत्म नहीं हो जाती..।

August 16, 2010

Intellect not a prisoner of gender

Intellect not a prisoner of gender

Differences between male and female abilities -from map reading to multi-tasking -can be traced to variations in the hard-wiring of their brains at birth, it is claimed.
Men instinctively like the colour blue and are bad at coping with pain, we are told, while women cannot tell jokes but are superior at empathising with other people. Bestsellers such as John Gray's Men Are from Mars, Women Are from Venus have helped stress the innate differences between the minds of men and women.
But a growing number of scientists are challenging the pseudo-science of “neurosexism“, as they call it, and raising concerns about its implications.
These researchers argue that by telling parents that boys have poor chances of acquiring good verbal skills and girls have little prospect of developing mathematical prowess, unjustified obstacles are being placed in the paths of children.
In fact, there are no major neurological differences between the sexes, says Cordelia Fine in her book Delusions of Gender. There may be slight variations in the brains of women and men, added Fine, but the wiring is soft, not hard.
In short, our intellects are not prisoners of our genders or our genes and those who claim otherwise are merely coating old-fashioned stereotypes.
Robin McKie

August 12, 2010

अन्य प्रदेशो मे शायद समानता हो !!!!

उत्तर प्रदेश मे दामाद के पैर छुये जाते हैं और बहु से पैर छुआये जाते हैं
उत्तर प्रदेश मे दामाद को घर लाने मे लाखो का खर्चा किया जाता हैं और बहु के आने पर लाखो मिलते हैं
फिर भी हम कहते हैं समानता हैं ?? क्या वाकयी ??




उत्तरप्रदेश इस लिये क्युकी वही कि हूँ अन्य प्रदेशो मे शायद समानता हो !!!!

August 10, 2010

इन सब बातो को कहने की ज़रूरत क्यूँ महसूस होती हैं ??

हमारी बेटी किसी से कम नहीं हैं
हम बेटे और बेटी मे फरक नहीं करते
बेटियाँ भी किसी से कम नहीं होती

August 02, 2010

सावधान हिंदी मे इस प्रकार कि किसी भी मेल का जवाब ना दे । ये स्पाम हैं । जन हित मे जारी

सावधान हिंदी मे इस प्रकार कि किसी भी मेल का जवाब ना दे ये स्पाम हैं



एमआर. कोफी नाना
शाखा प्रबंधक
अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक बैंक
KUMASI शाखा घाना.

नमस्ते प्रिय,

मेरा नाम कोफी नाना है, मैं अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक बैंक शाखा Kumasi घाना के शाखा प्रबंधक हूँ. मैं इंटरनेट के माध्यम से अपनी खोज के दौरान आपकी जानकारी मिली. मैं 46years की उम्र के सुंदर हूँ और 3 बच्चों के साथ शादी कर ली. यह आप को सुनने के लिए है कि मैं शांति के एक आदमी हूँ और मैं समस्या नहीं चाहता ब्याज सकता है, लेकिन मुझे नहीं पता कि कैसे आप इस बारे में लग रहा है क्योंकि आप डबल मन हो सकता है. लेकिन मैं आपको लगता है कि यह असली है और आप मेरे साथ इस लेन - देन करने के बाद पछतावा नहीं जा रहे हैं कह रहा हूँ. मैं केवल आशा है कि हम एक दूसरे की सहायता कर सकते हैं. लेकिन अगर तुम इस व्यापार नहीं करना चाहते हैं कृपया इसे भूल जाओ और मैं तुम्हें फिर से संपर्क नहीं करेगा प्रदान करते हैं.

मैं एक वित्तीय अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक बैंक Kumasi घाना के क्षेत्रीय प्रबंधक के रूप में है कि हम दोनों को लाभ होगा लेनदेन, पैक किया है. यह मेरे लिए एक वित्तीय रिपोर्ट में राजधानी (अकरा, घाना में अपने मुख्य कार्यालय को भेज कर्तव्य प्रत्येक वर्ष के अंत में) है. पिछले वर्ष 2009 की रिपोर्ट पिछले साल के अंत के पाठ्यक्रम पर, मुझे पता चला कि मेरी शाखा जिसमें मैं मैनेजर हूँ 3,750,000 [डॉलर 3, 750.000.00] जो मेरे सिर कार्यालय इसकी जानकारी नहीं है बनाया और के बारे में पता होना कभी नहीं होगा. मैं के बाद से जगह हम क्या किसी भी लाभार्थी के बिना उचंत लेखा फोन पर इस निधि.

बैंक के एक अधिकारी मैं सीधे इस निधि से कनेक्ट नहीं किया जा सकता है, तो यह मुझे तुम हमारे लिए काम करने के लिए संपर्क करने की जानकारी दी है, ताकि आप की सहायता के लिए और अपने बैंक खाते में हमारे लिए इस कोष में हिस्सा प्राप्त कर सकते हैं. आप मतलब जबकि कुल फंड का 35% है, तो ध्यान दें वहाँ व्यावहारिक रूप से कोई जोखिम भी शामिल हैं, यह बैंक स्थानान्तरण करने के लिए बैंक की जाएगी, मैं तुम्हें इस निधि के साथ जो जमा किया के मूल जमाकर्ता के रूप में दावा स्टैंड से की जरूरत है हमारे शाखा इतना है कि मेरे सिर के कार्यालय अपने नामित बैंक खाते में स्थानांतरण आदेश कर सकते हैं.

यदि आप यह मेरे साथ काम करने की पेशकश स्वीकार करते हैं, मैं इसे बहुत ज्यादा के रूप में जल्दी के रूप में मैं सराहना करेंगे अपनी प्रतिक्रिया मैं तुम्हें कैसे हम इसे सफलतापूर्वक प्राप्त कर सकते हैं पर विवरण दे देंगे प्राप्त करते हैं. कृपया मुझे इस ईमेल पते के साथ संपर्क करें: kofi.nana55 @ yahoo.com

सर्वश्रेष्ठ सादर
श्री कोफी नाना

August 01, 2010

पत्नी बनते ही वो प्रोपर्टी हो जाती है क्या....... ?

एक अनपढ़ मजदूर ने पत्नी को लात मारी और उसकी मौत हो गई...... पूरे देश के सामने औरतों के सम्मान की बात बड़े भारी भरकम शब्दों में करने वाले राहुल महाजन ने पत्नी डिम्पी के साथ मारपीट की। दोनों ख़बरें अखबार के एक ही पन्ने पर थी तो विचार आया की डोमेस्टिक वॉयलेंस किसी खास तबके, शिक्षा के स्तर, लव मैरिज, अरेंज मैरिज........ शायद किसी भी चीज़ से सम्बंधित नहीं है सिवाय मानसिकता के। उस बीमार मानसिकता के, जिसमेँ शायद राहुल जैसे पुरुष यह मानने लगते हैं की पत्नी बनते ही कोई उनकी लड़की प्रोपर्टी हो जाती है। न उसका कोई आत्म-सम्मान रहता है और न ही कोई अधिकार। राहुल जैसे लोगों के तो और भी क्या कहने क्योंकि वो अपने इस अमानवीय व्यवहार को दोहराने के आदी भी हैं। हमारे समाज में ऐसे पुरुषों की कमी नहीं है जो अपनी मर्दानगी दिखाने के लिए पत्नी को मारने-पीटने का असभ्य और अमानवीय काम करते है। मन में सबसे बड़ा सवाल तो उस सोच को लेकर है की यही पुरुष दुनिया के सामने औरतों को इज्ज़त देने का दिखावा तो बखूबी कर लेते हैं इतना ही नहीं कुछ पुरुष ऐसे भी मिल जायेंगे जो जीवन के लगभग हर फील्ड में असफल हैं लेकिन बीवी से साथ हाथापाई करने और उसे प्रताड़ित करने में बहुत आगे।
क्यों इन्हें समझ नहीं आता की एक थप्पड़ पत्नी के शरीर पर ही नहीं उसकी आत्मा पर भी चोट करता और पति के इन्सान होने पर भी सवालिया निशान लगाता है। मैं तो मानती हूँ की ऐसे पति अपने माता -पिता, परिवार, और यहाँ तक की अपनी परवरिश को भी अपमानित करते हैं। अफ़सोस इस बात का भी है पूरे समाज और परिवार के सामने तामझाम से शादी होने के बावजूद भी जब पत्नी के साथ मारपीट होती है तो यह उसका उसका व्यक्तिगत मुद्दा बन जाता है। जिसमेँ खुद परिवार के लोग भी दखल नहीं देना चाहते। देखते हैं की अब क्या होता है क्योंकि यह शादी तो पूरे देश के सामने हुई थी...........?

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