नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

May 05, 2010

निरुपमा के चरित्र के बहाने ना जाने कितनी बेटियों को घर कि चार दिवारी मे बंद होना होगा क्युकी गर्भवती होने का डर जो हैं ।

निरुपमा नहीं रही आईये उसकी आत्मा कि शांति के लिये प्रार्थना करते हुए कुछ बातो पर विचार करे

ब्लॉग जगत को क्या हम वैकल्पिक मीडिया मानते हैं कि किसी कि मौत पर हम तुरंत अपना न्याय सुनाने लगते हैं ? एक तरफ हम मीडियाको इसी बात के लिये धिक् कारते हैं और दूसरी तरफ हम खुद भी वही करते हैं । एक व्यक्ति नहीं रहा कम से कम उसकी मौत को अपमानित तो ना करे उसका चरित्र हनन करके ।

सवाल ये हैं कि निरुपमा का दोष क्या था , क्या उसका गर्भवती होना बिना विवाह के उसका दोष हैं तो एक बात हमेशा सबको पता हैं कि गर्भवती केवल नारी ही होती हैं लेकिन गर्भ मे अंश पुरुष का भी होता हैं तो दोष केवल और केवल नारी का ही क्यूँ होता हैं । पुरुष कि जवाब देही हमारा कानून तो तय कर चूका हैं और डी अन ऐ टेस्ट किसी भी पुरुष के अंश को किसी भी गर्भ मे साबित करने का एक वैज्ञानिक तरीका हैं जो कानून को मान्य हैं लेकिन

हमारा समाज कब पुरुष कि जवाब देहि तय करेगा नारी के गर्भवती होने मे ??? क्या सजा देता हैं हमारा समाज ऐसे पुरुषो को जिनकी वजह से कोई नारी गर्भवती हो जाती हैं ???
कहीं बलात्कार होता हैं और गर्भ रह जाता हैं दोषी कौन नारी ,
कहीं प्रेम मोहब्बत का वास्ता होता हैं गर्भवती फिर नारी दोषी भी वही सामाजिक दबाव भी उसी पर
यहाँ तक कि कभी कभी तो विवाहित नारी को भी गर्भवती होने पर दोषी माना जाता हैं क्युकी अभी पति को संतान नहीं चाहिये ।

कब तक हम प्रकृति कि दी हुई गर्भवती होने कि शक्ति को नारी का दोष मानेगे समाज ने अगर विवाह का नियम बनाया हैं तो उसका पालन ना करने पर दोष केवल नारी का ?? ये कहना कि वो स्वछन्द होगयी हैं कितना सही हैं ???

मुधुमिता हत्या कांड हो , शिवानी हत्या कांड हो या अब निरुपमा हत्या कांड हो सब मे समाज ने अपना पल्ला झाड लिया ये कह कर जो भी स्त्री शादी के अलावा सम्बन्ध बनाती हैं वो है ही "गलत " क्युकी गर्भ उसी ने धारण किया हैं । यानी गर्भ धारण करना ही मात्र स्त्री का दोष हुआ

और ये तो सदियों से हो रहा केवल आज कि बात नहीं हैं शील भंग स्त्री का होता हैं और दोष भी उसी का होता हैं
क्या किसी के पास "शील " कोई परिभाषा हैं और अगर हैं तो क्या उस परिभाषा को स्त्री और पुरुष पर हम समान रूप से लागू कर सकते हैं

कब हम समाज कि बनाई परिभाषा से ऊपर उठ कर कानून और संविधान कि मे दी हुई परिभाषा को मानेगे

लड़की के लिये क्या सही और क्या गलत से हट कर कब हम लडके और लड़की के लिये क्या सही और क्या गलत कि बात करेगे

कब किसी भी हादसे के बाद हम ये कहना बंद करेगे "लड़की थी उसको अपना ध्यान रखना चाहिये था अब समाज मे क्या मुंह दिखायेगे "

हमारी यही सोच लड़की के माँ पिता को अपनी लड़की के प्रति निर्मम बनाती हैं
जब जेस्सिका लाल पर गोली चली थी तब भी यही कहा गया था कि "ओह बार मे काम कर रही थी यही होगा " यानी दोषी फिर जसिका ना कि मनु

जो पत्र निरुपमा के पिता का आज मीडिया मे सब को दिख रहा क्या वो एक आम पत्र नहीं हैं जो कोई भी पिता अपनी पुत्री को लिख सकता हैं जो उससे दूर हैंलेकिन नहीं हम शब्दों वो खोजते हैं जो हम खोजना चाहते हैं हम खुद न्यायधीश बन कर फैसला लेना चाहते हैं लेकिन कानून कि नज़र से नहीं सामाजिक , संस्कृति और धर्म कि नज़र से

बच्चो को एक उम्र तक ही बच्चा मनाना चाहियेएक उम्र के बाद उनको अधिकार हो कि वो अपने फैसले कर सके लेकिन नहीं हमारे समाज मे हम बच्चो को अपनी जागीर मानते हैं और उनके हर फैसले पर हमारी मोहर जरुरी हैं
कितने सही हैं हैं हम ???


निरुपमा के साथ क्या हुआ और किसने किया इसको साबित होने बहुत साल हैं तब तक उसके चरित्र के बहाने ना जाने कितनी बेटियों को घर कि चार दिवारी मे बंद होना होगा क्युकी गर्भवती होने का डर जो हैं

आईये ये ना होने दे अपने घरो मे , बेटियों को उस चीज़ कि सजा ना दे जो गलती उनकी नहीं हैं । ब्लॉग के माध्यम से सोच बदले इस समाज की

26 comments:

  1. इस आतंक के सामाजिक परिवेश को बदलने के लिए हमें एकजुट होकर जमीनी स्तर पर कुछ करने की पहल करनी चाहिए ?

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  2. बिल्कुल सहमत ! यही अपनी पोस्ट और टिप्पणियों मे हमने भी कहा है। हम पहले अपनी मंशाएँ साफ करें तभी हमारी बेटियाँ निरुपमा होने से बचेंगी-

    हे अन्धे पिताओं, अपनी अजन्मी /जन्मी बेटियों को बख्शो !वे तुम्हे चाहती हैं और एक बार भी यह नही सोचतीं कि तुम अपने 'अहंकार ' के लिए उनकी जान के दुश्मन हो जाओगे। वे तुम्हारी जागीर नही हैं !वे तुम्हारे उपनिवेश नही है !वे तुम्हारी सल्तनतें नहीं है!

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  3. हमारा समाज हर मामले में महिला को ही दोषी ठहराता है...
    हालांकि ऐसे मामलों में पुरुष भी बराबर के हिस्सेदार होते हैं... इससे इनकार नहीं किया जा सकता... फिर भी सज़ा सिर्फ़ महिलाओं को ही डी जाती है...
    जब तक समाज की मानसिकता नहीं बदलती यानि समाज 'निष्पक्ष' होकर कोई काम नहीं करता, तब तक यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहेगा...
    चूंकि समाज पुरुष प्रधान है, ऐसे में समाज के जागरूक पुरुषों को आगे आना होगा... साथ ही महिलाओं को भी अपना नज़रिया बदलना होगा...
    महिलाओं पर अत्याचार के लिए महिलाएं ही ज़्यादा ज़िम्मेदार होती हैं... 'मज़हब के ठेकेदार' ऐसी औरतों को अपनी ढाल बनाकर महिलाओं पर अत्याचार करते रहते हैं...

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  4. पता नहीं ये सिलसिला कब तक चलेगा? यूँ ही हम खानदान की इज्जत औरतों को मानते रहेंगे और उन औरतों की कोई इज्जत नहीं... कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं.
    आधुनिक औरतें अपने मन की हो गयी है... पाश्चात्य संस्कृति की नकल में अंधी हो गयी है... उन्हें घर में बन्द कर देना चाहिये, जिससे सारे समाज में शान्ति-व्यवस्था बनी रहे.

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  5. आपके आलेख से पूर्ण सहमत
    उम्दा और विचार पूर्ण पोस्ट

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  6. निरूपमा की मौत ने बहुत से सवाल खडे किये है और ये अच्छा ही है कि आप जैसे कुछ लोग तुरन्त निष्कर्ष पर पहुचने से बच रहे है.

    आपने एक बात कही कि गर्भ सिर्फ़ स्त्री ही धारण कर सकती है, तो इसमे तो कोई विवाद की गुन्जाइश ही नही है लेकिन एक बार माता - पिता की नज़र से सोचकर देखो. हम कितने ही प्रगतिशील हो जाये अविवाहित पुत्री का गर्भ धारण करना निश्चित रूप से आत्मा को गहरी चोट पहुचाने वाला समाचार है.

    लडका हो या लडकी अगर वो घर से दूर रह रहे है तो माता पिता अपनी सच्ची आत्मा से उनके सुखी और स्वस्थ जीवन की ही कामना करते है.

    कानून अपना काम करेगा और जो दोषी होगा शायद कभी दन्डित भी हो जाये लेकिन क्या हम जैसे प्रगतिशीलता के समर्थक माता पिता की ये कामना गलत है कि हमारे बच्चे अधिक जिम्मेदार बने. अधिक पढने का मतलब अगर अधिक गैर जिम्मेदार होना है तो इस पढाई की उपयोगिता क्या है?

    शहरो मे अकेले रहकर पढ रहे युवा अपने आअचरन से अपने माता पिता को आश्वस्त करे कि उन्हे अपनी खुद के प्रति जिम्मेदारी पता है और अपने जीवन का कोई भी निर्णय साहस और गर्व के साथ लेन्गे ना कि आधुनिकता की चकाचौन्ध और आवारगी के आवेग मे.

    अभी ये तय होना बाकी है कि असल खलनायक कौन है. लेकिन जो भी हो उसे कडी से कडी सजा मिले. हमारे बच्चे पढाई की आड मे दोस्ती और दोस्ती की आड मे शारीरिक सम्बन्धो से बचे. जब पढाई का समय है तो सिर्फ़ पढाई करे और जब दोस्ती करे तो सिर्फ़ दोस्ती. शारीरिक सम्बन्ध भी बनाने हो तो पढे लिखे है ना, जरा आगा पीछा भी सोच ले.

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  7. अविवाहित पुत्री का गर्भ धारण करना निश्चित रूप से आत्मा को गहरी चोट पहुचाने वाला समाचार है.
    aur avivahit putr kaa pita bannaaa ???

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  8. जब तक इस तरह की घटनाओं पर हम स्त्री दोषी, पुरुष दोषी जैसी सोच से बाहर नहीं आयेंगे तब तक कुछ नहीं होना है. जो बदतमीज किस्म के लड़के हैं और इसी किस्म की लड़कियां हैं वे ही सारे लड़के और लड़कियों को बदनाम कर रहीं हैं.
    अब बात ये की गर्भवती कौन हुआ और किसने किये....इसके पहले ये जानना जरूरी है की क्या जीवन में शारीरिक संबंधों की अनिवार्यता हो गई है? देखने में आ रहा है की जब तक किसी लड़के या लड़की के किसी से सम्बन्ध नहीं बनते वो अपने को प्रगतिशील नहीं समझता है.
    रही बात सामंती सोच की और बच्चों को एक उम्र के बाद उनके निर्णयों के आधार पर छोड़ने की तो फिर इस मौत पर इतना हाय-हल्ला क्यों? उम्र हो गई थी दोनों की, रोकते तो सामंती सोच और नहीं रोका तो गर्भवती................. बच्चों को उनके निर्णयों की क्षमता पर छोड़ दें और इंतज़ार करें कि कब हमारा बेटा किसी लड़की को गर्भवती बना कर आ रहा है या फिर कब हमारी लड़की हमें अपने माँ बनने की खबर सुनाएगी.(क़ानून सही कहता है...समलैगिकता अपराध नहीं, किसी के गर्भवती होने का खतरा नहीं, गर्भवती करने का दोष नहीं.......बस आपस में लगे रहो........????)
    लगता है कि अब वो जमाना आ गया है जब हम इंसान जानवरों की तरह शरीर खोजते फिरेंगे....सम्बन्ध नहीं, रिश्ते नहीं....मर्यादा नहीं...........क्षमा करें आज के समय में भी मर्यादा की बात कर रहे हैं.

    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  9. @ रचना said...
    अविवाहित पुत्री का गर्भ धारण करना निश्चित रूप से आत्मा को गहरी चोट पहुचाने वाला समाचार है.
    aur avivahit putr kaa pita bannaaa ?

    mere liye dono ek samaan hain lekin yahaa sandarbh niroopmaa kaa hai

    mei aise kaayar premee kee ghor nindaa kartaa hoo.

    rachna ji meree tippanee bahut lambee hai. achchha lagtaa ki aap aur muddo par bhee apnee rai rakhtee.

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  10. gharbvati haemsha koi naa koi "nirupma " hi hogii

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  11. यदि कोई पुरुष अनसेफ सेक्स करने के बाद H I V पाजिटिव हो जाये तो आप दोष किसको देंगी निश्चित रूप से पुरुष को क्योकि शरीर उसका था उसे उसका ख्याल रखना था और सुरक्षा उपाय अपनाना चाहिए था | प्रकृति ने स्त्री को गर्भवती होने का सौभाग्य दिया है तो पहली जिम्मेदारी उसकी है की वो उसको दुर्भाग्य में न बदलने दे | किसी अन्य से हम कैसे ये उम्मीद लगा सकते है कि वो आप का ख्याल रखे जबकि आप खुद ये काम नहीं कर रहे है | बात केवल निरुपमा की नहीं है बल्कि उन सभी तथाकथित आधुनिक लडकियों की है जो विवाह पूर्व सेक्स सम्बन्ध तो बना लेती है पर अपनी सुरक्षा का कोई उपाय नहीं करती है क्या उन्हें टीवी पर २४ घंटे आने वाले कंडोम और गोलियों का विज्ञापन नहीं दिखाई देता | थोड़ी समझदारी दिखा कर वो खुद को और अपने परिवार को भी किसी भी बुरी स्थिति से बचा सकती है |

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  12. क्या उन्हें टीवी पर २४ घंटे आने वाले कंडोम और गोलियों का विज्ञापन नहीं दिखाई देता |
    aap agar blogpadhtee ho to aap ko kam sae 20 post is vishy par milaegi jahaan jo ladkiyaan yae sab karteee haen unko bhi galat kehaa jaataa

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  13. "निरुपमा के चरित्र के बहाने ना जाने कितनी बेटियों को घर कि चार दिवारी मे बंद होना होगा"
    सही कहा आज भी छोटे शहरों में लडकियों को इसी डर से ज्यादा पढाया लिखाया नहीं जाता कि वो ज्यादा पढ़ लिख गई तो अपने मन का करेंगी और कही किसी के साथ शादी कर ली तो हम क्या करेंगे | अब ऐसे परिवारों को अपनी लड़कियों को न पढ़ने के लिए एक और उदाहरण मिल गया

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  14. रचना जी कौन क्या कह रहा है हमें उस पर ध्यान देने कि जरुरत नहीं है मैंने ये बात सिर्फ लडकियों को अपना ध्यान खुद रखने के लिए लिखा है | यदि वो विवाह पूर्व गर्भवती होती है और माँ बनती है तो परेशानी उन्हें ही होगी अच्छा होगा कि पहले ही समझदारी दिखा कर खुद को बचा ले | किसी पुरुष से किसी तरह कि उम्मीद करना बेवकूफी ही होगी

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  15. इस लेख के बाद जितने भी कमेंट आये, उन सबमें मुख्य बात कही खोकर सी रह गयी। हम आप इस बात पर इतना बहस क्यों कर रहे है कि निरुपता का गर्भवती होना ही उसके मौत का कारण बना। मौत का सबसे बड़ा कारण उसके अंतरजातीय विवाह के फैसला था। उसने कुछ ही महीने इस बात की जानकारी दी थी कि वह शादी करना चाहती है। यह घर वालों को स्वीकार नहीं था, जैसा कि अबतक खबरों में आ चुका है। गर्भवती होना तो तब मुद्दा बना और हम सबके सामने आया जब उसे झूठ बोलकर घर बुलाया गया। मां की रीढ़ की हड्डी टूटने की खबर किस बेटी को विचलित न करेगी। लेकिन इसकी आड़ में उसे अंतरजातीय विवाह करने से रोकने की साजिश रची जा रही थी, यह खुद निरुपमा को भी पता नहीं थी। अगर वह शादी करने में सफल हो गयी होती, उसके गर्भवती होने की बात ना तो हम जानते और न ही उस बारे में बहस करते। बहस का मुद्दा तो यह होना चाहिए कि आज भी भारतीय समाज में किसी लड़की को अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार उसके माता पिता इसलिए नहीं देते क्योंकि वह उसकी जाति का नहीं। इस बात का ध्यान रखें कि यह हत्या निरुपमा नामक एक लड़की की नहीं एक योग्य पत्रकार की है, आगे चलकर इस समाज को बहुत दे सकती थी। बहस इस बात पर करें कि क्या जाति और धर्म के नाम पर विवाह की इजाजत न देना एक माता पिता का अधिकार है।

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  16. monica
    shaddi kaa faesla maut kaa karna nahin bantaa haen lekin agar hamarey smaaj mae avivahit ladki maa ban jayae to uski maut bina marey hi nishchit haen jabki avivahit ladkae kae liyae koi farak nahin haen

    intercast marriage , religion all are just a way to diver attention from the real reason of a unmaaried girl getting pregnant

    aur is post kaa yahii mudda haen aur isii par kament haen

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  17. aur avivahit putr kaa pita bannaaa ???


    यह भी खेदजनक ,अविवेकपूर्ण और गैर जिम्मेदारी भरा है -
    एक ने तो जान देकर दंड भोगा -पर जो बचा है वह घडियाली आंसू बहा रहा है और मीडिया उसे हीरो बनाने पर लग गयी है !
    उसे दण्डित होना है क़ानून नहीं तो समाज देगा ही ....

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  18. ओह ! निरुपमा पाठक अपनों से ही धोखा खाकर चली गई. हमारे समाज को क्या हो गया है. दोषी कौन है ? एक बेटी जो सबसे अधिक अपने घर वालों से प्यार करती है ,विश्वास करती है ,वो स्वप्न में भी नहीं सोच सकती कि उसके साथ क्या हो सकता है. उसके पिता के लिखे पत्र से साफ पता चलता है कि अपनी बड़ी जाति का उनको इतना गरूर था कि एक नादान बिटिया को ही सामने से हटाने का रास्ता उनके सामने रह गया था. पर यक्ष प्रश्न है कि क्या उनकी बेटी का अकेले ही दोष रहा .यदि उसने कोई गलती भी की तो क्या उसमे उसके परिवार वालों का भी उतना ही दोष नहीं रहा है. *अपने बेटी या बेटे का भी विश्वास जीतना उनका कर्त्तव्य बनता है* ताकि वे कोई भी ऐसा कदम न उठायें या उनके जानकारी में रखें. अपने माँ पिता या घरवालों से कोई बात न छिपाएं . परिवार ही बच्चों का पहिला संरक्षण होता है जब वहां से ही निराशा हाथ लगेगी तो मार्ग भटकाव होगा.
    क्या अब उनकी नाक ऊँची हो गई है या उनका सम्मान बढ़ गया है . बेटी को पढ़ा-लिखा कर ऊँचाइयों तक पहुँचाना फिर यूँ अपने तथा-कथित आत्म-सम्मान के नाम पर इतना घातक कदम उठाना. अभी तक कुछ भी साफ नहीं हुआ है पर प्राप्त समाचारों के साक्ष्य पर हमें बहुत दुःख है की आजादी के इतने वर्षों बाद भी एक लड़की-बेटी के साथ हमारे देश में ऐसा हुआ है. इसमे कानूनन सजा कभी भी किसी को भी मिले पर ऐसी घटना क्यों हुई इस पर विचार करने की विशेष जरुरत है.
    आज हमें हमारी बेटियों को इतना एलर्ट व सावधान करने की जरुरत है कि पूर्ण शिक्षित-आत्मनिर्भर होकर वे कितने भी आगे बढ़ें पर सावधान रहें -गलत हाथ में जाने से बचें. प्रेम करना या स्वयं निर्णय लेना गलत नहीं पर अपने को पूर्ण संयमित रखकर अपने जीवन को आगे अपने अनुसार बनाना तो है पर अपनी ही सशक्त प्रहरी बनकर .
    उग्र या कुंठित होकर ,घबराकर कोई कार्य ऐसा न हो जाये कि उनके अपने ही उनके सबसे बड़े विरोधी बन जाएँ. अनेकों ऐसे रास्ते हैं जिनसे जीता जा सकता है . सभी को एक होने की जरुरत है कि फिर कोई ऐसी घटना न हो कभी .
    अलका मधुसूदन पटेल , लेखिका-साहित्यकार .

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  19. Hari ji aur Dr. Kumarendra ji ke vicharon ko padhen aur naareevaad-purushvaad se itar unhen samajhne ki koshish karen..
    maine aajtak aisa koi pita nahin dekha jo apne avivahit putra dwara kisi avivahit ladki ko garbhvatee karne par seena taan kar chal raha ho.. sar sharm se dono ka jhukta hai chahe wo bete ka baap ho ya beti ka. Takleef aur kalank ka theekra stree ko jyada jhelna padta hai ye sahi hai aur aisa nahin hona chahiye. lekin sirf nari aur purush ke roop me sab ko baantkar koi hal nahin niklega.

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  20. Deepak
    Ham bhi yahii kehtey haen baetey aur beti ko samaan maano par nahin samaaj nahin mantaa . yae samaaj kaa vibhajan haen aur ismae kewal aur kewal naari ko suffering haen

    hari sharma aur kumarendra ko padhane mae badaa achcha lag saktaa haen apr vastviktaa kyaa haen

    kyaa kabhie kisi ladkae ko uskae mata pita / smaaj ne pratarit kiya haen
    prem karnae par
    avivahit pita bannae par

    agar haan to ek bhi example yahaan dae bhartiyae smaaj kaa jahaan ladkae kae mata / pitaa yaa samaaj ne usko kisi avivahit ladki ko maa banae kae jurm mae police ko diyaa ho

    aap ko bhi jarurat haen is vishy par aayee har mahila blogger ki post ko padnae ki
    us aakrosh ko samjhnae ki jo
    ab mahila mae aa raha haen is system kae virdhh

    sambhav ho to apnae level par kuchh karey hamari baat aaye laaye

    is rudhivaaditaa ko badale ki beti jo karey so galt beta jo karey so sahii

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  21. इस पोस्ट के सभी कमेंट यही बताते है कि किसी को वस्तुस्थिति को सही जानकारी नहीं है। कोई लड़के को सजा दिलाने की वकालत कर रहा है। कोई इस बात पर बहस कर रहा है कि गर्भवती स्त्री को ही सजा मिलती है लेकिन लड़के को नहीं मिलती। कोई कहता है कि क्या किसी लड़के को ऐसा करने पर प्रताड़ित किया जाता है। कोई कहता है कि केवल निरुपमा को ही मौत की सजा क्यों मिली। मैं जानना चाहता हूं कि इन सब बातों का औचित्य ही क्या। शायद दिल्ली में बैठे हमारे बंधु को यह नहीं मालूम कि निरुपमा उस लड़के से शादी करना चाहती थी। दोनों ने शादी का फैसला लिया था। मोनिका जी ने बिल्कुल सही कहा। हम उसके गर्भवती होने को मौत का कारण नहीं मान सकते। उसकी मौत का कारण उसका अंतरजातीय विवाह का फैसला था, जिसे परिवार वाले सहमत नहीं थे। ना तो उसके प्रेमी ने उसे धोखा दिया, न निरुपमा ने इसे गलती माना। दोनों शादी के लिए पूरी तरह से तैयार थे। लड़के के घर वालों को निरुपमा भी पसंद थी। विरोध केवल निरुपमा के घरवालों का था। वह नहीं चाहते थे कि निरुपमा किसी नीच कुल के लड़के से शादी करें इसलिए एक साजिश की तहत उसकी हत्या कर दी गयी न कि उसके गर्भवती होने के कारण। कोडरमा में क्या हुआ उसकी वास्तविकता आप खबरों के माध्यम से नहीं जान सकते। इसलिए बेटे बेटी के अंतर और गर्भवती होने के हल्ले से इतर इस बात पर बहस करें कि क्या अब भी अंतरजातीय विवाह करना इतना दुष्कर है कि अपनी ही बेटी को मारने में संकोच ना हो। इसके समाधान को बहस का मुद्दा बनायें ना कि टेलीविजन चैनल की टीआरपी की तर्ज पर ब्लॉग की रेटिंग बढ़ाने के लिए गर्भवती गर्भवती का हल्ला मचायें।

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  22. rachna said
    और ये तो सदियों से हो रहा केवल आज कि बात नहीं हैं शील भंग स्त्री का होता हैं और दोष भी उसी का होता हैं ।
    क्या किसी के पास "शील " कोई परिभाषा हैं और अगर हैं तो क्या उस परिभाषा को स्त्री और पुरुष पर हम समान रूप से लागू कर सकते हैं ।
    purush ka 'sheel'???? iska na to koi itihaas hai na koi vartmaan nirupama jaise mamlon me purush khud bhi ye hi chahta hai ki bahas ko dharam ya jaati jaise muddon ki taraf mod diya jaye taki mahilaon ka dhayan purushon se hataya ja sake lekin mahilayen hai ki......

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  23. aur haan prakash ji aap naahak hi pareshaan hai jara is post ka title hi dobara padh lijiye jahir si baat hai nirupama ke bahane yahan aur bhi kai mahattavpurna muddon par baat ho rahi hai

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  24. prakash
    ranjan kae jwab ko mera mena jayaae

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  25. . हमारे समाज को क्या हो गया है. दोषी कौन है ? एक बेटी जो सबसे अधिक अपने घर वालों से प्यार करती है ,विश्वास करती है

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