" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
January 25, 2010
शेम ओन यू कृष्णा तीरथ , जब खुद मिनिस्टर एक महिला हो कर जेंडर बायस फेलाने मे पहला कदम उठा रही हो तो बालिकाओ का क्या भविष्य हैं इस देश मे आप खुद ही सोच
लेकिन कृष्णा तीरथ से पूछना जरुर चाहती हैं कि
वो महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं लेकिन कन्या भूण ह्त्या के खिलाफ जो विज्ञापन वो दे रही हैं उसमे कहीं भी किसी भी महिला का चित्र नहीं हैं क्या कन्या भूण हत्या केवल इस लिये रोकी जाए कि माँ बेटा पैदा कर सके । माँ का महातम क्या केवल बेटा पैदा करने से ही जुड़ा हैं ।
क्या कन्या भूण ह्त्या इस लिये नहीं बंद होनी चाहिये क्युकी बेटी को भी समान अधिकार हैं जीने का ?? क्या कृष्णा तीरथ जी को कोई ऐसी भारतीये महिला नहीं देखी जिसको पैदा करके उसकी माँ गौरवान्वित हुई हो। या क्या " बालिका दिवस " भारत मे इस लिये मनाया जाता हैं कि औरत को याद दिलाया जा सके कि तुमको बेटा पैदा करना हैं इस लिये ही हमने तुमको नहीं मारा ।
जब खुद मिनिस्टर एक महिला हो कर जेंडर बायस फेलाने मे पहला कदम उठा रही हो तो बालिकाओ का क्या भविष्य हैं इस देश मे आप खुद ही सोचे शेम ओन यू कृष्णा तीरथ
Its highly disgusting krishna teerath that when india has a woman president you want to emphasize that the girl child needs to be saved so that she can bear a male child . shame on you krishna teerath
None is intersted in saving girl child and even if they want to its only for giving birth to a male child why else the goverment could not find one single woman to feaure in the advertisement
January 17, 2010
वाईटनिंग क्रीम गोरा बनाए के नुक्सान
विदेशो मे सूरज कि गर्मी का तापमान उतना नहीं होता और अगर होता भी हैं तो वहाँ त्वचा पर इसका सीधा प्रभाव कम ही पड़ता हैं लेकिन भारत मे अभी भी ज्यादा लोग ख़ास कर स्कूल और कॉलेज के बच्चे धूप मे ही आते जाते हैं । सेंट्रल ऐ सी या हीटिंग का अभी यहाँ उतना प्रचलन नहीं हैं । सो ऐसे मे अगर त्वचा का रंग भी हल्का हो जाता हैं तो वो शील्ड ख़तम हो जाती हैं जो कुदरत ने दी हैं
कोई भी फेस क्रीम जो स्किन की टोन को हल्का करने कि बात करती हैं उसका इस्तमाल केवल उन लोगो के लिये ही सही हैं जो डार्क पिगमेंटेशन यानी ज्यादा मेलानिन पिगमेंट के शिकार हैं या leucoderma के मरीज़ जो अपनी दो रंग कि स्किन को एक रंग का कर सकते हैं
ये भी ध्यान दे कि जो क्रीम विदेशो मे बनती हैं वो वहां के लोगो कि त्वचा और रेहान सहन को देख कर ही बनाई जाती हैं इस लिये उसको लगाने से भारत के लोगो को फायदे कि जगह नुक्सान ज्यादा हो सकता हैं ।
ये पोस्ट एक layman's language मे हैं साइंस के आधार पर आप leucoderma विटिलिगो इत्यादि पर बहुत जानकारी इन्टरनेट से पा सकते हैं और whitening cream के ऊपर भी बहुत सी जानकारी उपलब्ध हैं जिस मे स्किन के कैंसर का भी खतरा बताया जाता हैं
January 15, 2010
"ऑनर किलिंग" !
"ऑनर किलिंग' किसी न किसी तरीके से आहत नारी को ही कर रही है। यह आज की नहीं सदियों से चली आ रही परम्परा का सुधरा हुआ रूप है। राजपूतों में बेटियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था क्योंकि अपने सम्मान को ताक में रख कर किसी और के द्वार पर बेटी के विवाह के लिए सिर न झुकाना पड़े।
आज ये खूबसूरत नाम दे दिया गया है। एक ऐसा कृत्य जिसके लिए अपने से जुड़े किसी आत्मीय के खून से ही अपने हाथ रंग लिए जाते हैं। - पर यह भूल जाते हैं की जिस ऑनर के लिए वे ये अपराध कर या करवा रहे हैं - वह उनके ऑनर को हर हाल में कलंकित ही कर रहा है। उनके कार्यों से न सही ,अपने कार्यों से भी गया तो आपका ही ऑनर।
इसके कितने उदहारण दिए जाए - उत्तर प्रदेश में एक भूतपूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी ने बहुत यत्न से परिवार के साथ ऐसे ही एक कृत्य को अंजाम दिया था पर क्या हुआ? एक माँ की बेटी गई पर क्या वे अपने ऑनर को बचा पाये। अभी हाल में ही हुए जम्मू में आँचल शर्मा ( जो शादी से पहले मुस्लिम थी) को अपने पति रजनीश शर्मा को खोना पड़ा क्यों? उसके परिवार के ऑनर का सवाल था की लड़की किसी गैर धर्म वाले से विवाह कैसे कर सकती है। ख़ुद न किया तो ये कृत्य दूसरों से करवा दिया।
ये झूठे ऑनर को क्या इनका कोई भी कृत्य कलंकित नहीं कर रहा है। उँगलियाँ आप पर ही उठ रही हैं। तब भी उठती और अब भी उठ रही हैं। फिर क्यों नहीं थोड़ा सा साहस करके अपनी झूठी शान ताक पर रख कर अपने ही अंशों को उनका अपना जीवन जीने देते हैं। वे तो अपना जीवन देकर तुम्हें आत्मतुष्टि दे जाते हैं लेकिन इस अपराध बोध से आज नहीं कल तुम्हारा ही अतीत तुम्हें जीने नहीं देगा। किलिंग तो कुछ लोगों के जीवन में रक्त-मज्जा के साथ घुलमिल सकती है किंतु 'ऑनर किलिंग ' हमेशा किसी बड़े नमी गिरामी या तथाकथित इज्जतदार परिवारों की ही करतूत होती है।
रोज अख़बारों में पढ़ा जाता है
--'युगल प्रेमियों की लाशें मिलीं'।
--'दोनों को जिन्दा जला दिया'
--'कहीं अनजान युवती की लाश मिली'
--'पंचायत ने उन्हें जान से मारने का आदेश दिया'
--'न्याय के लिए पति अदालत की चौखट पर खड़ा है और उसकी पत्नी नहीं मिल रही है.
--'दुर्घटना बनाकर उनकी इहलीला समाप्त कर दी गई'
और फिर ये ऑनर किलर जश्न मना रहे होते है कि परिवार की इज्जत बच गई, लेकिन ये नहीं जानते की ये चहरे के नीचे लगे हुए चेहरे को पढ़ने की कला इस समाज को आती है। समाज में दबी जबान से तो चर्चा का विषय आप बने ही होते हैं।
कभी - कभी तो विवाह जैसे संस्कार के बाद भी लड़की के सिन्दूर को ऐसे मिटा दिया जाता है कि जैसे होली के रंग हों। 'भूल जाओ की कोई तुम्हारी जिन्दगी में ऐसा आया था।'
लड़की अपनी है तो बच गई और किसी के बेटे को खत्म करवा दिया, या ठीक इसके विपरीत भी किया जाता है। यह सोच कर की कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा। इस ऑनर किलिंग के बाद तो ये 'पॉवर वाले' लोगों की 'पॉवर ' आदमी की जिन्दगी को एक खिलौने की तरह गर्दन मरोड़ कर फ़ेंक देते हैं। आम आदमी तो न्याय तक नहीं प्राप्त कर पाता है - उनकी पॉवर हत्या करने वालों से लेकर सबूतों और न्याय के ठेकेदारों को खरीदने में सक्षम होती है।
'नीतीश कटारा' का नाम इस दिशा में आज भी याद है। घर वालों के जेहन में अपने जिगर के टुकडों की छवि न्यार के लिए दौड़ते दौड़ते धूमिल होने लगती है या फिर वे ख़ुद ही उसी के पास चले जाते हैं.
January 14, 2010
एकल जीवन : समाज के लिए कितना सार्थक!
नर और नारी समाज के दो मजबूत स्तम्भ हैं और इनके ऊपर ही परिवार , विवाह जैसी संस्थाओं की नींव रखी हुई है किन्तु समाज के बदलते स्वरूप में - ये स्तम्भ दरकने लगे हैं। 'स्व' में घिरा मानस 'पर' के साथ जीना क्यों नहीं चाहता है और अगर ऐसा है तो क्या इस विषय में समाज के प्रबुद्ध लोगों को विचार नहीं करना चाहिए?
लखनऊ विश्वविद्यालय के एक सर्वेक्षण के अनुसार : महिलाओं में इस बात का समर्थन किया है की एकाकीपन गृहस्थ महिलाओं की अपेक्षा जीवन के हर क्षेत्र में कामयाबी दिलाने और आत्मविश्वास के बढ़ने में सहायक रहा है।
किसी का दामन थाम कर चलने की जो मजबूरी उनकी माँ में थी - वह विरासत में उन्हें भी मिली थी किन्तु जब यथार्थ के धरातल पर खुद को अकेले खड़े पाया तो जमीन और सख्त लगती साथ ही पैरों में ताकत भी अधिक लगी। उन्हें तब चिंता दायें - बाएं देखने की नहीं बल्कि सामने अपने बच्चों या स्वयं अपने भविष्य को देखने की थी और इस चिंता ने उन्हें कमजोर नहीं दृढ बनाया। परिवार , समाज और अपने दायरे में लड़ने की शक्ति मिली।
इस सर्वेक्षण में अविवाहित, तलाकशुदा, विधवा और परित्यक्ता महिलाओं को शामिल किया गया था। इसमें ९३ प्रतिशत महिलाओं ने इस बात को स्वीकार किया की उनका एकाकीपन कार्य और व्यवसाय के क्षेत्र में कामयाबी में सहायक बना। इसमें उच्च पदस्थ ही नहीं बल्कि मजदूरी, सब्जी बेचनेवाली, दुकान चलने वाली हर वर्ग एक आयु समूह की महिलाएं हैं।
इस एकाकी जीवन जीने वाली महिलाओं में अधिकतर अपने जीवन से संतुष्ट मिली। अविवाहित चाहे जिस कारण से रही हों किन्तु समझौते का जीवन जीने से बेहतर खुद अपना जीवन जीना है। परित्यक्ताओं की पृष्ठभूमि में : स्वतः परित्यक्त तो कोई नहीं होना चाहता किन्तु बदचलन पति, दहेज़ लोलुप ससुराल वाले या सौत के साथ रहने से बेहतर उन्होंने अलग जीना माना। अपना स्वाभिमान, जीवन और बच्चे सुरक्षित हैं। अपने प्रयासों से आत्मनिर्भर हैं - प्रताड़ना और घुटन से मुक्त है। स्वतः चुने इस एकाकी जीवन में उन्हें संतुष्टि है।
यद्यपि एकाकी जीवन से संतुष्ट होने वाली ८७ प्रतिशत महिलाओं ने कहा की उनके यौन शोषण का खतरा रहता है। जबकि ५४ प्रतिशत मानती है कि वे पुरुष के प्रति आकर्षण से मुक्त नहीं है। सर्वे में शामिल ५३ प्रतिशत महिलाओं ने माना कि जीवन में विवाह को जरूरत से अधिक महत्व दिया जाता है। जबकि ६५ प्रतिशत महिलाओं ने जीवन में पति की जरूरत को बेमतलब महत्व देने वाला माना।
इसके अतिरिक्त वे विधवाएं जो कि निम्न श्रेणी में काम करने वाले कर्मचारियों की पत्नी है और आज उनके स्थान पर नौकरी कर रही हैं ।
"मुआ शराब पीकर पीटत रहे और रुपैयाऊ न देत रहे। अब बहन हम रुपैयाऊ कमात हैं और बाल बच्चन को अच्छा खबात - पिआत है।"
आज पूर्णतया संतुष्ट जीवन जी रही हैं।
घर में मैड का काम करने वाली ८० प्रतिशत महिलाओं के पति शराबी है या फिर किसी बुरी लत के शिकार हैं - अपनी कमाई तो देते ही नहीं है और पत्नी की कमाई भी मार पीट कर ले जाते हैं।
वे जरूर अकेले रह कर भी खुश नहीं रह पाती हैं।
ये सर्वेक्षण किसी विघटन की कहानी नहीं कह रहा है बल्कि ये संकेत कर रहा है कि जीवन में आत्मसंतुष्टि ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। जो किसी समाज और परिवार की धरोहर नहीं है। यह एक संकेत है कि हमें इस दिशा में भी विचार करना होगा की इन विसंगतियों को कैसे दूर किया जाय और समाज का जो स्वरूप तर्कसंगत है उसको कैसे बचाया जाय।
संगीता पुरी सारा जीवन समर्पित कर दिया ज्योतिष को
उनकी भविष्यवाणी भूकंप के बारे मे फिर सही सिद्ध हुई हैं ।
इस सप्ताह में ही भूकम्प के कई झटकों के आने की उम्मीद है !!
मिनी आईस एज Feeling That Cold Wind? Here’s Why।
अपने विषय मै अपने को निरंतर आगे बढाते रहना और उसको समझना और समझते रहना यही सीख देती संगीता मुझे
January 10, 2010
मै , आराधना गुप्ता , रुचिका गिरहोत्रा की दोस्त ARADHNA GUPTA
I AM ARADHNA GUPTA Ruchika Girhotra’s friend
For me, spirituality is the means of awakening my soul and connecting with God. I am a spiritual person and i pass the entire credit of all my good and bad deeds to Him. I was raised in a family of believers and i firmly believe in the existence of a supreme power. It is God who has given me the strength to brave all situations and fight a legal battle for my friend Ruchika.
I feel i am God’s chosen warrior and at the same time i feel blessed to be part of a crusade for the right cause. The path carved out in the Bhagavad Gita is the philosophy of my life. I don’t just read it but implement it as it charts out a practical way to live a fulfilling life.
My parents are spiritual and they influenced my spiritual beliefs from a very young age. I believe in chanting. Usually, i cut myself from rest of the world and chant in my room. When Ruchika committed suicide, i was shattered and had lost hope in myself. I used to cry a lot but then my parents came to my room and said that now the entire legal battle rests on me. It was at that moment that i realized that it was God talking to me through my parents.
Now after winning the first set of legal battles for my friend, i am all set to fight the rest of the war. There is also peace in my heart that finally my friend’s voice to get justice is being heard.
(As told to Supriya Bhardwaj) times of india
पोस्ट आभार
ईश्वर ऐसी दोस्त सबको दे और आराधना जैसी शक्ति भी हर नारी को दे ताकि दुनिया को सचाई का रास्ता और सही गलत का अंतर स्पष्ट हो
January 09, 2010
क्या जरुरी हैं गुण या सुंदरता ??
एक तरफ लोग भारतीये परिधान कि तरफदारी करते हैं तो दूसरी तरफ भारतीये संस्कृति का विरोध करते हैं क्युकी भारतीये संस्कृति मे सेक्सी शब्द का प्रयोग करना बड़ा अजीब लगता हैं ।
साडी का ये परमोशन विदेशो मे ठीक हैं लेकिन भारत मे क्या साडी एक सेक्सी ड्रेस हैं कहना सही हैं ।
कभी सोच कर देखियेगा कि नारी को आप सुंदर ही क्यूँ देखना चाहते हैं ? क्या कभी आप नए महसूस किया हैं कि यही सुंदर होने का एहसास नारी को कमजोर बनाता हैं और एक सोफ्ट टार्गेट भी बनाता हैं ।
कोई लड़की अगर किसी पुरुष को ना कहदे तो सबसे पहले आक्रमण उसकी सुंदरता पर ही होता हैं । कही उसपर तेजाब फेका जाता हैं तो कही उसे जलाया जता हैं । यानी पहले बढ़ावा दो कि सुंदर लगो और फिर अगर वो तुम्हरी बात ना माने तो उसी सुंदरता को ख़तम करके तुम अपनी जीत का आवाहन करो ।
बात गुणों कि क्यूँ नहीं होती , बात हमेशा नारी सुंदर कैसे हो इस पर ही क्यूँ ख़तम होती हैं । नारी कितना आगे जाए बात कभी इसकी क्यूँ नहीं होती । बात एक्स्सलेंस कि क्यूँ नहीं होती बात केवल ब्यूटी पर ही क्यूँ सिमट कर रह जाती हैं ।
१००% एक्स्सलेंस कि बात हो चाहे कोई भी काम क्यूँ ना हो । एक गृहणी अगर घर मे २४ घंटे केवल सज स्वर कर बेठी रहेगी तो क्या वो अपने घर को अपना १००% दे सकती हैं , या एक काम काजी स्त्री अगर चूड़ी बिंदी के फेर मे रही तो क्या वो अपने ऑफिस को अपना १००% दे सकती हैं ?
क्या जरुरी हैं गुण या सुंदरता ??
January 07, 2010
दोषी कौन
पर अब ऐसा नहीं है। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और उनकी जगह छोटे परिवारों ने जन्म ले लिया है। जहां मां-बाप दोनों नौकरी करते हैं। बच्चों की जिम्मेदारी या तो नौकरों पर होती है या फिर वे अकेले रहते हैं। मां-बाप उनके हाथ में मोबाइल थमाकर और घर में इंटरनेट लगाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं। अब बच्चा अकेला नहीं हैं। वे जब चाहे उससे बात कर सकते हैं, और बस यहीं गड़बड़ हो जाता है। बच्चा अब सिर्फ उनके संपर्क में नहीं होता, उन हजारों लोगों के संपर्क में होता है जो इंटरनेट की दुनिया में बांहें पसारे उसके स्वागत में खड़े होते हैं।
इंटरनेट पर नेटवर्किंग का जमाना है। फेसबुक, आरकुट, ट्विटर ऐसी कई जगहें हैं जहां आप दोस्त बना सकते है। इसके अलावा याहू, ज़ी मेल, हॉट मेल। मतलब ये की आप कहीं भी क्लिक करिएं, कोई न कोई आपको बात करने के लिए मिल ही जाएगा। यहां पर मैं आपको अपनी एक मित्र की बेटी से मिलवाना चाहूँगी। उसके पास भी वे सभी सुविधाएं हैं जिनका मैंने ऊपर ज़िक्र किया है। अभी थोड़े समय पूर्व ही उसने फेसबुक की सदस्यता ली। अचानक बहुत सारे लोगों के दोस्ती के प्रस्ताव उसके सामने आएं। उनमें से कुछ को उसने चुना भी। यहां मैं यह बताना जरूरी समझती हूँ कि इन मित्रों से संपर्क में आने से पहले वह पढ़ने में बहुत तेज थी। अस्सी-पचासी प्रतिशत नंबर सामान्य रूप से उसके आते थे। फेसबुक का चस्का कुछ ऐसा लगा कि किताबों का साथ छूटने लगा। स्कूल से शिकायतें आने लगी कि क्या हो गया है इसे। ये पढ़ाई में ध्यान क्यों नहीं देती? कहीं बीमार तो नहीं है? इतनी गुमसुम क्यों रहती है? क्या डिप्रेशन हो गया है? घर वालों को भी समझ नहीं आ रहा था कि बात क्या है? अभी तक तो सब कुछ ठीक था, अब अचानक क्या हो गया है। उन्होंने उसकी गतिविधियों पर निगाह रखनी शुरू की, तो उन्हें यह जानकर बहुत धक्का लगा की जब वो यह समझते थे कि उनकी बेटी कमरा बंद करके पढ़ाई कर रही है, उस समय वह वास्तव में फेसबुक में अपने दोस्त के साथ चैटिंग में व्यस्त होती थी। (जिसने पहली ही मुलाकात में अपना मोबाइल नंबर भी उसे थमा दिया था।) और उसके बाद अपने दोस्तों को यह बताने में व्यस्त होती थी कि आज उसने अपने उस विशिष्ट मित्र से क्या बातें की। गुस्से मं आकर मेरी मित्र न सिर्फ अपनी बेटी की पिटाई की बल्कि इंटरनेट का कनेक्शन भी कटवा दिया। उसने सोचा अब सब ठीक हो जाएगा। लेकिन बात नहीं बनी। दोनों बच्चे मित्रता की इस डोर में काफी नज़दीक आ चुके थे। इसलिए फेसबुक की जगह मोबाइल ने ले ली। वह उस लड़के के इतने नज़दीक आ चुकी थी कि उससे बात किए बिना रहना उसके लिए बहुत मुश्किल था। बातें भी काफी व्यक्तितगत स्तर की होती थी। जाहिर है ऐसी रसभरी बातें कोई पहली बार उससे कर रहा था और वह इन बातों को लेकर काफी उत्तेजित थी। एक दिन रात के समय जब वह अपने दोस्त से बात कर रही थी, मेरी मित्र अचानक कमरे में आ गई और उसने जो कुछ अपनी बेटी के मुँह से सुना, उसे सुनकर उसके पैरों तले की जमीन ही खिसक गई। उसने आगे बढ़कर अपनी बेटी के हाथ से उसका मोबाइल छीन लिया और फोन पर ही उस लड़के को चेतावनी दी कि आइंदा उसने फिर कभी फोन किया तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा।
अपनी बेटी के व्यवहार से मेरी मित्र काफी आहत है। और उसे समझ में नहीं आ रहा कि वो क्या करे कि उसकी हँसती खेलती बेटी उसे वापस मिल जाएं!!!
-प्रतिभा वाजपेयी
January 05, 2010
नारी उद्धार सारे व्रत, तपस्या सिर्फ पुरुषों के लिए ??
किसको दोष दें - पुरुषवादी समाज जिसने अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए सारे धर्म, ग्रन्थ और रीतियाँ अपने अनुसार लिखी या फिर हम महिलाओं की जो आजतक अंतर का बीज बोते चली आ रही हैं। बेटियों या पत्नियों की लिए कोई व्रत क्यों नहीं ??
हमें आत्ममंथन की बहुत आवश्यकता है, यूँही आँख बंद करके हम सदियों पुरानी रीती-रिवाज़ अपनाते चले आ रहे हैं जो खुलमखुल्ला पुरुष और नारी में भेद अभिव्यक्त करता है और फिर आशा करते हैं नारी उद्धार की।
आपका क्या विचार है -
जेंडर बायस से जेंडर न्यूट्रल के सफ़र कि शुरवात होगई हैं ।
बहुत से लोग जेंडर बायस का मतलब नहीं समझने का बहाना करते हैं और कहते हैं क्या होता हैं ये ? कोई बात नहीं अब सरकार भी रुचिका केस के बाद जेंडर बायस का मतलब समझ गयी हैं !!! हमारे बहुत से कानून जेंडर बायस हैं और अब जेंडर न्यूट्रल कानून बनाने कि बात पर सरगमी बढ़ रही हैं । नारी को दोयम का स्थान दिया गया और कानून को भी ऐसे बनाया गया कि नारी कि आवाज अगर निकले भी तो कानून की दलीलों मे दब कर रह जाए और कानून भी ऐसे जिनमे नारी को हमेशा ही पुरुष के संरक्षण मे रहना होगा । उसका अस्तित्व उसका जेंडर कोई अर्थ ही नहीं रखता । और अगर वो अपने अधिकार कि बात यानी समाज मे फैलाए जेंडर बायस कि बात करती हैं हैं तो नारीवादी कहलाती हैं ।
लोग कहते हैं हिंदी मे दो ही प्रकार के शब्द हैं स्त्रीलिंग और पुल्लिंग , यहाँ जेंडर न्यूट्रल शब्द नहीं हैं शायद इसीलिये यहाँ जेंडर बायस इतना फेला हैं कि वो इंग्लिश के जेंडर न्यूट्रल शब्दों का स्त्रीलिंग खोजने लगते हैं ।
चलिये आप पढिये ये खबर विस्तार से और तारीफ़ करिये आराधना प्रकाश कि जो इस केस कि एक मात्र ऐसी गवाह थी , जिस ने मोलेस्टेशन होते देखा था । १३ वर्ष कि थी आराधना प्रकाश भी , तब से उसने इस लड़ाई को १९ साल तक लड़ा और घुटन से अपनी आज़ादी अर्जित की । उसकी लड़ाई का ही नतीजा हैं कि आज जेंडर बायस से जेंडर न्यूट्रल के सफ़र कि शुरवात होगई हैं ।आराधना कि लड़ाई अभी भी जारी हैं
Continuing with its measures to make the country’s legal system women-friendly, the government is set to amend the “gender- biased” laws.
It wants to send out an effective message after the Ruchika case exposed the bias in the existing laws.
Ruchika ended her life in 1993 after former Haryana police chief SPS Rathore molested her in 1990 and allegedly harassed her family.
“We have decided to review all gender-biased laws, which affect the legitimate rights of women. All laws should be gender-neutral,” Law Minister M. Veerappa Moily told HT.
“Divorce and property laws are the two examples of gender-biased laws, and we are considering amendments in existing laws to ensure equal rights for women and a time-bound trial to reduce their sufferings.”
It will soon be possible for single women to adopt a child, following the Union Cabinet’s approval to amend the adoption law, the minister said.
“The cabinet has cleared the proposal to amend the Guardians and Wards Act, 1890, and Hindu Adoption and Maintenance Act, 1956. We are now going to convert these laws into gender-neutral laws,” he said.
According to the current laws, a couple can adopt only if the man is named the guardian.
On divorce laws, he said: “There is no need for divorce cases to drag on for years when the marriage has broken down. Cases must be decided in a time-bound manner...”
He conceded that “there is a need to relook at the property laws”. For example, the Land Reforms Act of 2005 entitles a male child and his family to the family property while married girl child is denied the same.
Moily said his ministry has set the process in motion by sending a new draft law to the home ministry for special courts to try sexual offences, which will make it mandatory that the trial be completed in six months and anticipatory bail for the accused wouldn’t be allowed.
“No questions on the character of the victim of sexual violence (molestation, attempt to rape and rape) will be allowed during the trial and the statement will only be recorded in presence of a woman officer,” he said।
January 02, 2010
मोलेस्टेशन अ नॉन बैलएबल ओफेंस
The draft Sexual Offences (Special Courts) Bill, 2010 -prepared by the Law Ministry -- and currently awaiting the Home Ministry's assent, also defines what constitutes molestation much more sharply than at present.
It proposes allowing the police to arrest a person accused of the crime without a warrant.
A simple complaint from the victim will be enough.
"Tough measures are required to deter sexual offences against women," Law Minister M. Veerappa Moily told HT.
"Following the shocking Ruchika case, it is clear that molestation needs to be treated as a serious sexual offence as rape."
The bill seeks to modify relevant sections of both the Indian Penal Code and the Criminal Procedure Code.
The Law Ministry's move to make molestation a non-bailable and cognisable offence -- increasing the maximum imprisonment for the crime from two to five years -in wake of the Ruchika Girhotra case will surely help women seeking justice for an offence "as traumatic as rape."This year alone, 506 cases of molestation were reported in the National Capital.
In 2008, 590 cases of molestation were reported in the city.
And there are many women who do not lodge any complaint for the fear of being harassed by the police or the accused.
"We have come across several victims who have backtracked on complaints of molestation. Either they fear the accused or the police," said Rajat Mitra, clinical psychologist who has counselled several victims of sexual offences.
"The multiplicity of instances where they have to repeat the ordeal to the police takes a toll on most of them and they do not press ahead with the complaint," Mitra said.
Following a Delhi High Court order, the Delhi Police had set up a rape crisis intervention centre to deal with victims of sexual offences, including molestation.
"In collaboration with NGOs we have provided training to policemen to deal with women who complain of sexual harassment. There is a strict diktat to take immediate action in such cases. Preferably a policewoman is put on the job," said Rajan Bhagat, spokesman, Delhi Police. He added that if a victim needed "protection", it is immediately granted.
"We tell the police not to interrogate the victim. There are countless cases where she is taken to a police station and asked to narrate the incident in a hostile environment.
There should be privacy and no interruptions at all. These guidelines are seldom followed," said Mitra.
"A molestation victim goes through the same bouts of depression and depression that of rape victim," said Mitra.
Police said to counter such instances, they also provide selfdefence training to college students.
"From time to time we keep organising self defence techniques at various colleges. This helps them to tackle any kind of crisis," said the officer.
News Courtsey Hindustan Times
रुचिका , जसिका लाल दो ऐसे नाम हैं जिन्होने सोचने को मजबूर किया हैं कि न्याय प्रणाली मे सुधार कि आवश्यकता हैं ।
एक बेहद जरुरी पोस्ट
एक बाल्टी पानी ले हल्का गरम , इस मे गरम कपड़े भिगो दे । आधा घंटा भीगने दे । इसके बाद कपड़ो को निकाल कर टांग दे ताकि पानी निकाल जाए ।
अब एक दूसरी बाल्टी मे आधा बाल्टी पानी ले और उसमे १/४ चम्मच प्रति कपड़े के हिसाब से साबुन का पावडर मिलाये । अब इस पानी कपड़े को डूबा दे १/२ घंटा ।
इस के बाद साफ़ पानी मे कपड़ो को धो ले और छाया मे सूखने डाले ।
ध्यान दे अपने गंदे कपड़े अपने घर के अन्दर ही सुखाये ।
हैं ना कितना आसान , साबुन कि भी बचत हो जाती हैं और कपड़ा साफ़ भी हो जाता हैं
और अगर पानी को भी बचाना हैं तो आप उसको वाटर कांसेर्वेशन के जरिये फिर से साफ़ कर सकते हैं
कल फिर आईयेगा , नारी ब्लॉग पर आप को घर कैसे साफ़ रखते हैं बताया जायेगा
January 01, 2010
साइबर क्राइम अगेंस्ट वोमन Cyber Crime Against Woman
लिंक १
लिंक २
लिंक ३
लिंक ४
नववर्ष की शुभकामनाएं !
इसके बाद सविनय निवेदन करती हूँ कि कुछ दिग्भ्रमित ब्लॉगर साथियों से कि पहले अपनी सोच और अभिव्यक्ति को साकार रूप लेकर प्रकाशित करने से पहले एक बार अपनी पत्नी या बहन या माँ को पढ़ा लें। नारी सिर्फ नारी है और सभी की सोच बहुत अलग नहीं होती है अगर वे उसके सार्वजनिक पठन योग्य होने बताती हैं तो आप उसको बेशक डालें।
ऐसा नहीं है , ये मानव प्रवृत्ति है कि नग्न चित्रों, दृश्यों, और साहित्य को पढ़ने में रूचि लेती है, किन्तु यह वे अपने या अपने साथियों तक ही सीमित रखते हैं। ये ब्लॉग्गिंग विधा ने तो सबके सामने परोसने की सुविधा दे दी तो उसको हम इन चीजों के लिए अगर प्रयोग करते हैं तो यह हमारी कुंठित मानसिक का द्योतक है। अगर नारी जाति की अभिव्यक्ति से इतनी ही घृणा है तो फिर उसको त्याग दीजिये मत पढ़िए और न उसको पढ़कर उत्तेजित होइए। क्योंकि किसी भी व्यक्ति विशेष की अभिव्यक्ति के प्रति आक्रामक होकर अपनी विकृत मानसिकता का प्रदर्शन करना कहाँ तक उचित है? उससे बड़ी बात तो यह है कि उनकी ही प्रवृत्ति वाले लोग पीछे तालियाँ बजा रहे हैं।
कलम सरस्वती कि देन है और रचनाधर्मिता और लेखन कि शुचिता भी उनकी ही देन है। इस लेखनी से अनर्गल लिखकर ( वह मैं भी हो सकती हूँ।) क्यों दूसरों के सामने हम अपने मानसिक दिवालियेपन का प्रदर्शन करें। कुछ हमारे साथी खुले आम 'रचना' के नाम को लेकर अनर्गल टिप्पणी कर रहे हैं। यह कल रेखा, निशा, सुधा , ऋतू कोई भी हो सकती है। किसी के व्यक्तिगत जीवन पर टिप्पणी, आक्षेप, असभ्यता और कुसंस्कारों की ही देन है। हाँ यदि इनमें से कोई आपके नाम से कुछ लिखे तो आप प्रतिरोध के हकदार हैं लेकिन यह प्रतिरोध भी सम्माननीय ढंग से हो सकता है।
"नारी" ब्लॉग पर क्या लिखा जाता है? उस पर टिप्पणी कीजिये प्रशस्ति की कोई आकांक्षा नहीं है। उसके लेखकों को विषय मत बनाइये। बहुत सारे विषय है, अपने आस-पास झांककर देखिये। जिनके पास कुछ भी नहीं है वे नेता जी जिंदाबाद के नारे लगाते लगाते उनके प्रिय चमचों में शामिल हो जाते हैं- ऐसे लोगों से भी अनुरोध है कि अपनी पहचान खुद बनायीं जाती है। अनावश्यक और अमर्यादित रचनाओं की वाह वाही करने से आप और वे नाम कमा सकते हैं सम्मान नहीं। फिर कुछ लोगों का ये भी ध्येय होता है कि बदनाम होंगें तो क्या नाम न होगा? वे इससे बिलकुल पृथक हैं।
सभी साथियों से अनुरोध है कि जो कला ईश्वर ने आपको डी है - उसका सम्मान कीजिये और सार्थक लेखन कीजिये।
धन्यवाद!
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