अब क्या इसके लिए भी कपड़े ही दोषी है ?
आम तौर पर अकसर ये देखा जाता है कि लड़कियां या महिलायें एक बहुत ही easy टारगेट होती है । और जब भी किसी लड़की या महिला के साथ कोई हादसा होता है तो अक्सर उनके कपडों को इसका दोषी बताया जाता है कि जब लड़कियां ऐसे कपड़े पहनेंगी तो ऐसा (rape ) तो उनके साथ होगा ही ।
पर क्या सच मे लड़की या महिला के कपड़े ही इसका (rape)कारण होते है ।
हमें तो ऐसा नही लगता है । आज कल जिस तरह की घटनाएं देखने को मिल रही है उसमे कपड़े से कहीं ज्यादा कुंठित मानसिकता का दोष है ।
रविवार को सुबह-सुबह गोवा के टाईम्स ऑफ़ इंडिया में ये ख़बर पढ़ी । और इस ख़बर को पढ़कर मन विचलित भी हुआ और एक अजीब से वितृष्णा भी हुई ।और काफ़ी देर तक mood भी ख़राब रहा ।और रह-रह कर ये सोचने पर मजबूर हुए कि एक असहाय लड़की के साथ ऐसा करके क्या उस आदमी को आत्म संतुषटी मिली होगी । आप भी जब ये ख़बर पढेंगे तो आपको भी ऐसा ही लगेगा ।
कभी-कभी लगता है कि क्या इंसानियत इतनी ख़त्म हो गई है कि mentally एंड physically challenged लड़की जो न तो अपने को बचा (defend) सकती है और न ही किसी को (माँ-बाप को ) भी कुछ बता सकती है उस लड़की का rape करके कैसे वो व्यक्ति चैन से रह सकता है । क्या उसकी आत्मा उसे धिक्कारती नही है ।
इस लड़की के साथ जो कुछ भी हुआ क्या उस मे भी लड़की के कपडों का ही दोष है ।
पता नही हमारा समाज और समाज के लोग कहाँ जा रहे है ।
कुंठित मानसिकता ही है इसके पीछे| आपने जिसका उल्लेख किया वह एक बहुत बड़ी समस्या है| और किसी भी बड़े समस्या के समाधान के लिए त्याग जरुरी होता है| कुंठित मानसिकता कम कपडे देखकर और कुंठित ही होगी, किसी के उपदेश से वह सुधर नहीं जायेंगे| नारी की समस्या को उसी को समझना होगा, कम कपडे से मिले आनंद का त्याग करना होगा|
ReplyDeleteकुंठित मानसिकता वाले सिर्ग उसी को टारगेट नहीं बनाते जो कम कपडे में होती है, उनसे ये सब वह मानसिकता कराती है, और यह मानसिकता, अल्प उत्साह निरीह, बचियों, अपंग लड़कियों पे आसानी से चलता है| हमें यह बात समझनी होगी|
कम कपडे वाले अपना नुक्सान करें न करें, बाकियों का उत्साह जरुर बढ़ते हैं, की जाओ मेरे सामने तो जुबान नहीं खुलेगी, किसी निरीह पर जाके प्रयोग करो|
उनका समर्थन करके आप भी वही कार्य कर रही हैं|
एक और आग्रह है, भाषा का उपयुक्त प्रयोग करें और खुल कर लिखें|
ReplyDeleteअगर नेट पे समस्या है तो इ मेल कैसे कार्य कर रहा है??
अगर नेट पे समस्या है तो इ मेल कैसे कार्य कर रहा है??
ReplyDeleteis prashn ka jwaab haen ki server speed slow honae par blog nahin khultey par mail bheji jaa saktee haen
par aap nam sae naa likh sakae kyun ,
hamey to aap kae prashn kaa uttar dae diya {kyuki mamta 3 din shyaad aur bsnl connection goa mae theek honae kae baad hi blog par aagaegii }
par aap nam sae naa likh sakae kyun ,
iska jwaab jarur dae yae kis maansiktaa mae ata haen bandhu
इस के लिए कपड़े कहीं दोषी नहीं हैं। इस के सैंकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे। कभी भी बलात्कार कम कपड़ों के कारण नहीं हुए हैं।
ReplyDeleteकुण्ठित मानसिकता को तो शिकार चाहिये; कम कपड़े तो एक बहाना है। छेड़छाड़, बलात्कार की शिकार महिलाओं में कम कपड़े वालियों का प्रतिशत बहुत कम ही निकलेगा। कपड़े कम या अधिक होने चाहिये और शालीन परिधान की परिभाषा अलग बहस के मुद्दे हो सकते हैं और हैं भी।
ReplyDeleteअत्यंत शर्मनाक है यह सब और हमारी संवेदना मरने लगी है और संबंधों कि दीवारें दरक रहीं है .
ReplyDeleteकुछ करना ही होगा इससे पहले कि सब कुछ ख़तम हो जाये
सादर
डॉ.भूपेन्द्र
अपराध तो अपराध है,उसे छुपाने का बहाना भर बस है कम कपड़ो का रोना-धोना।
ReplyDeleteदोषी पुरुष की मानसिकता है। उसे सहज शिकार चाहिए। जिस दिन पुरुष चरित्र की बात की जाने लगेगी तब शायद उसे भी स्वयं पर अंकुश लगाना आ जाएगा। हम अक्सर कहते हैं कि उस महिला का बलात्कार हुआ, यह कभी नहीं कहते कि उस पुरुष ने बलात्कार किया। जिस दिन यह प्रचारित होने लगेगा तब अन्तर अवश्य आएगा।
ReplyDeleteकिसी भी रेप के पीछे आदमी की गन्दी मानसिकता ही होती है और कुछ नहीं ....ऐसों के लिए ज्यादा से ज्यादा सजा का प्रावधान होना चाहिए ...और आदमी को अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए
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ReplyDeleteनारी विरोधी अपराध चाहे वह शारीरिक या मानसिक उत्पीडृन हो या फिर यौन हिंसा यह पितृसत्तात्मक सामाजिक ढांचा और स््त्री को आब्जेक्टिफाई करने की मानसिकता की बदौलत होता है। इस प्रकार की ओछी मानसिकता को सदुपदेशों और विधवा विलाप से खत्म नहीं किया जा सकता है और वह भी ऐसे माहौल में जब अपसंस्कृति का घटाटोप छाया हुआ हो
ReplyDeleteहमारे भारतीय समाज की एक बड़ी *विडम्बना* है कि यहाँ **बलात्कार** बड़ा अपराध तो माना जाता है पर "अपराधी व्यक्ति" लोगों को पता होने के बाद भी *ना* के बराबर सजा या *कानून की देरी* का लाभ पाकर निश्चिंत बना रहता है. वहीँ "निरपराध बच्ची या महिला" सामाजिक तिरस्कार व प्रताड़ना की अधिकारी बना दी जाती है. सहानुभूति पूर्वक विचार करने के बदले उसके कपडों पर या उस पर कई प्रकार के दोषारोपण कर दिए जाते हैं.---परिणाम अधिकांशतः इस तरह के अपराध पूरी तरह समक्ष नहीं आकर अप्रगट ही बने रहते हैं और ओछी व विकृत मानसिकता के लोग भयहीन-स्वच्छंद घूमते रहते हैं .. समाज में व्याप्त विसंगतियों व गलत धारणाओं को दूर करके अपराधी को तुंरत कानूनन कठोर सजा+जुरमाना व पीडिता को सामाजिक न्याय सही मिले.
ReplyDeleteसाथ ही अपराधी का सामाजिक बहिष्कार हो.
bas itna sa kahunga,yadi ghee ko aag ki anch mile to ,ghee apnisanyam kab tak banaye rakhegi,use pighalna hi he,so bharkau kapde,jism-pradarshan ka bahut bada hath he,dimag ko sankuchit karne me
ReplyDeleteसच है कि कुन्ठित मानसिकता ही इस सब के लिये जिम्मेदार है ,सिर्फ़ कपडे नहीं, परन्तु कपडे ही कुन्ठित मानसिकता के ल्ये जिम्मेदार हैं। सिक्के का अन्य पहलू देखिये, एकान्गी नज़र से नहीं।
ReplyDeleteआयूष कन्फ़ुय्सड हैं,
ReplyDeleteएक तरफ़ सदुपदेश व ओछी मानसिकता की बात दूसरी ओर अप सन्सक्रति की । अप सन्सक्रति के कारण ही विध्वा विलाप आदि होता है।शायद दोनों बातों का ही अर्थ नहीं समझे हैं।