बालिका के प्रति समाज में रहने वाला हर व्यक्ति *स्त्री हो या पुरुष* अगर अपनी सोच और मानसिकता में थोडा भी परिवर्तन ले आये तो अपने आप जन-मन का रुख बदल जायेगा वह स्वतः नवनिर्माण की ओर बढेगी. आप अपने -लाड-दुलार-प्यार-पालन-पोषण में कोई कमी नहीं करते तो उसके भविष्य उज्जवलता में भी सहायक बनें.
१ जिम्मेदार नागरिक व विकास प्रेरक के रूप में लिंग निर्धारण - भ्रूण हत्या के अपराध में न तो शामिल हों, न होने दें. अपने आस-पास के लोगों को भी रोकें. वर्त्तमान की असंतुलन की ओर बढती परिस्थिति सबके समक्ष है.. लड़कियों की कमी से क्या हमारे बेटों के ब्याह संभव होंगे ,स्रष्टि का संतुलन बना रहेगा.महिलाऐं अपनी बेटी को जन्म अवश्य लेने दें.
माँ तेरे हाथों मेरा जीवन ,दे प्राणों का दान ,शिक्षारूपी पंख लगा दे भरूं गगन में उडान .
चहक-चहक कर उडूं गगन में चाँद सितारे लाऊ उजियारी फैलाउंगी *माँ मत ले मेरे प्राण*.
२ हमारे परिवार समाज में लड़के व लड़कियों में कोई भेद भाव न करें ,उनके अधिकारों से उनको वंचित न करें.. पुत्र के बराबर पुत्री भी माँ-पिता के साथ उनकी देखभाल-संभाल को हर क्षण तैयार है.समाज में आप देख रहे हैं.
आपकी सर्वगुण सम्पन्न बेटी के लिए उसकी योग्यता ही उज्जवलता है ,जहाँ बिना किसी खर्च(तात्पर्य दहेज़ से है) के लोग उसे अपने परिवार की बहू बनाने में गौरवान्वित होंगे, स्वयं हाथ मांगने आयेंगे..
३. बालिका की किसी भी सामाजिक या घरेलू समस्या या जरुरत के प्रति उदासीन न रहें ,आंखें बंद न करें. पुत्र की तुलना में पुत्री को जनम देने में,बड़ा करने में *क्या आपने उतने ही कष्ट नहीं उठाये* फिर ये भेद क्यों?.
४.क्या केवल कानून बनाकर हम बाहरी व घरेलू हिंसा, असमानता या बलात्कार- दुर्व्यवहार आदि को रोक सकते हैं. बच्चियों को समुचित जानकारी व सावधान करने की जरूरत है ताकि वे दिग्भ्रमित न हों ,आपसे खुलकर बात कर सकें. आप के संपूर्ण स्नेह-विश्वास सहारे की जरुरत है उनको. .
५. शिक्षा के स्तर में शीघ्र व पूरी जागरूकता हो. उनकी रूचि के अनुसार उनको समुचित मौका दें. अनेकों उदा.सामने हैं पुत्रियों ने अपना जीवन अपने माँ-पिता-परिवार हेतु अर्पित किया है. अपनी शादी तक नहीं होने दी. ६.प्रशासन व सरकार द्वारा दी गई आर्थिक-शैक्षिक-आरक्षित सहायता ,मानसिक व शारीरिक विकास हेतु दी गई सुविधाओं की पर्याप्त जानकारी व संपूर्ण अवसर दें.
दिल के ख्यालों में अब तेरी ही रोशनी है, अँधेरी जिंदगी से दूर ये सच्चाई की रोशनी है..
रोशनी के ये दायरे कभी ज्ञान ,कभी ख़ुशी, कभी ज्योति बांटे, हम तुम्हारी ही अपनी हैं..
११. हम अपनी बेटी,बहन,माँ व घर की हर महिला का सम्मान करेंगे तो किसी और की कोई हिम्मत ही नहीं होगी कि कोई आँख उठाकर भी देख सके. सामाजिक चैतन्यता आने से हम यूँ विचलित नहीं होंगे. इन परिस्थितियों को बदलना ही होगा. *हमारी बेटियों के लिए हमें ये जंग सामूहिक लड़नी ही है*..
विशेष ----हमारे समाज के उन क्षेत्रों में ज्यादा ध्यान देने व अपनी आवाज पहुँचाने की जरूरत होगी जहाँ उपरोक्त सुविधाएँ व संसाधन उपलब्ध नहीं हैं .ग्रामीण क्षेत्र, पिछडे इलाके, मजदूर वर्ग के बीच जाकर जागरूकता लानी होगी.
*WE SHOULD LIGHT A LAMP IN EACH DARK PLACE OF SOCIETY*
*अलका मधुसूदन पटेल *-* gyaana blog*
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.