LITTLE DROPS OF WATER ,LITTLE GRAINS OF SAND.
CAN MAKE THE MIGHTY OCEAN & THE PLEASANT LAND;
भारतवर्ष में कई भाषाएँ जाति धर्मं हैं पर निःसंदेह महिलाओं के प्रति सभी जगह सामाजिक परिक्षेत्रों में बहुत अधिक बदलाव दिखता है,सामाजिक सरोकार बदल गए हैं. उनके प्रति सामाजिक द्रष्टिकोण में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है उनके प्रति नजरिया बदल रहा है.परिवारों में पुत्र-पुत्री में भेद-भाव नहीं के बराबर हैं. समान अवसर,प्यार,सम्मान भी मिल रहे हैं. पहिले जहाँ उनका घर से बाहर निकलना ही अच्छा नहीं माना जाता था ,शिक्षा के लिए संसाधन व क्षेत्र बहुत कम उपलब्ध होते थे. वर्त्तमान में अधिकांश शिक्षा संस्थाएं महिला शक्ति को आगे बढने को प्रेरित व आमंत्रित करती हैं. आज उच्च शिक्षिता का समाज में दबदबा है.स्वावलंबी महिलाओं को परिवार के साथ समाज में भी इज्ज़त से देखा जाता है.आज की नारी अपनी बात गर्व से कहने का साहस कर सकती है. पुरुष वर्ग के साथ कंधे मिलाकर चल रही है उनके समकक्ष अधिकार प्राप्त कर रही है अपना फैसला ,इच्छा व महत्वाकांक्षा कहीं ज्यादा आत्मविश्वास व बेबाकी से पेश कर रही है.पारिवारिक उत्पीडन या सामाजिक अन्याय के विरुद्ध उठ खडी हुई है..
एक टहनी एक पतवार बनती है ,एक कोयला एक अंगार बनती है..
मारते हैं एक ठोकर एक रोड़ा समझकर,वही मिटटी एक मीनार बनती है. ..
स्वयं का मामला हो या परिवार का ,मूक तमाशबीन न रहकर निर्णायक भूमिका निभा रही है. आर्थिक आत्म-निर्भरता बढने से उनमे आत्म-विश्वास .अधिकारों के प्रति जागरूक-सचेत. यही नहीं पुरुष-पित्रसत्ता प्रधान भारतीय समाज की परम्पराओं-अंध-विश्वासों-रूढिगत विचारों का विरोध जता रहीं हैं.व्यक्तित्व विकास की और अग्रसर हैं.सिर्फ कामकाजी ही नहीं,घरेलू ,ग्रामीण महिलाऐं भी मुखर हो चलीं हैं.
पर कहीं विद्रोह भी पनप रहा है क्योंकि नए दौर के इस युग में भी महिलाओं को बहुत मानसिक दबाव सहना पड़ रहा है. पुरुष वर्ग के साथ घर की महिलाओं को भी महिलाओं के प्रति अपनी अपने प्राचीन नजरिये में बदलाव लाना होगा. उन पर वर्चस्व स्थापित करने के बदले उनका पूरक बनना होगा तो समाज की बेहतरी हो सकती है.
*नए ज़माने के ऐ दोस्त, हौसला रख ,दिशाओं का रुख बदल दे.*
*भटकाव से बचाव व सावधानियां*
आज की नारी आधुनिकता व पाश्चात्यता की अंधी दौड़ में ,आर्थिक स्वतंत्रता व सुविधाओं की मदहोशी में गुमराह भी होती जाती है. साजिशों को समझना नहीं चाहती.मतलबी-स्वार्थी होकर अपने भी उसके लिए पराये होते जाते हैं. परिवारों का संरक्षण ,स्नेहिल वातावरण को नकार के एकल परिवार का स्वातंत्र्य जीवन रास आ रहा है. चाटुकारिता ,भेद,रंजिशें, घमंड, विद्रोह,उद्दंडता,अनुशासनहीनता आदि बुरी आदतें भी अपना रही है. अपनी संस्कृति ,अस्मिता और गौरवमयी मर्यादा को भूलने में गर्व महसूस कर रही है. कृत्रिम फेशन के लिए अपनी लाज-शर्म को दांव पर लगाने से उसे परहेज करना ही होगा. गलत धारणा बदलनी होगी की अमर्यादित कपडे पहनने से या अति-आधुनिका बनने से उन्नति जल्दी होगी.
छलावे से बचकर अपनी शील मर्यादा बनाये रखने से स्वाभाविक अपराध कम होंगे.
नारी शक्ति *अँधेरे के मार्ग में न भटककर "उजाले के स्वागत" में पंख लगाकर उड़ना है. विश्वास करे सामाजिक क्रांति आने के साथ उसके बदलाव को स्वतः नई दिशा ,खुले मन व वरद हस्त से मिलेगी.
वरिष्ट कवियत्री ने कहा है --,
पाश्चात्य विचार की नयी सदी ,शताब्दी है
नई -नई आशाएं हैं ,कई -कई अपेक्षाएं हैं
हमें अपनी जमीन पर आस्था विश्वास बना रहे
वृद्ध चरणों में नत होने का गौरव बोध बना रहे .
दायित्व भी हैं ,धरोहर भी, सौहाद्र भी हैं ,संस्कार भी, .
करना होगा हमें इनसे भी प्यार, अपनी जमीन पर ही रहकर,.
हमारे घर परिवार का भी,और बुजुर्गों का पूरा सत्कार .
*अलका मधुसूदन पटेल *-* gyaana ब्लॉग*
प्रस्तुति पसंद आई।
ReplyDeletebahut hi sahi likha hai aapne apne adhikaron ke liye pariyas sheel rehte huye apne svabhiman aur nari ki garima ki raksha bhi karni hai tabhi nari age badh sakti hai
ReplyDeleteबहुत बढिया ...
ReplyDelete*नारी* ब्लॉग में *नारी* पर कई बिन्दुओं पर लिखा आप सब ने ध्यान से पढ़ा व पसंद किया .आप सबको धन्यवाद.
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