नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

April 29, 2009

मुझे मेरे समाज का यह दोगलापन समझ नही आता ..क्या आपको आता है ?

यह उन दिनों की बात है जब, मैं बारहवीं कक्षा के अंतिम वर्ष में थी. एक नेताजी ने कुछ स्त्री विरोधी बाते कह दी. चारो ओर से विरोध में स्वर उठने थे उठे. उन दिनों मेरा सामाजिक सरोकार जरा कम हुआ करता था. सीनियर लड़कियों ने उपरोक्त नेताजी को अपमानित करने के लिए साडी और चूड़ी भेजने का एलान किया. मैंने सोंचा इनकी सोंच का भठ्ठा ऐसे ही तो नही बैठ सकता, थोडी खोज-बिन करने पर जानकारी मिली की सामने के ब्वायज कॉलेज के लड़कों ने इनकी बुद्धि के ताबूत में आंखरी किल ठोंकी है. उन्ही के सहयोग और सह पर यह आयोजन हो रहा है. आनन -फानन में स्थानीय मिडिया को भी बुलाया गया. मुझे भी खबर मिली..मैं हमेसा की तरह १० मिनट लेट से (आयोजनों में देर से पहुँचने की बुरी आदत की शिकार हूँ ) पहुंची. मैंने जो दृश्य सामने देखा मेरा दिमाग उसे स्वीकार नही कर पाया. बैनर पोस्टर टंगे थे नेता का नाम लेकर "चुल्लू भर पानी में डूब मरो " टाइप...और सामने साडियां और चूडियाँ पड़ी थी.
छात्र नेताओं को तो मैंने कुछ नही कहा. मैंने महिला कॉलेज की छात्राओं से पूछा,
-"आप इस नेता को स्त्रीत्व की यह निशानियाँ भेज कर अपमानित करना चाहती हैं, क्या मैंने सही समझा ?"
जवाब आया -"हाँ, तुमने सही समझा"
-"यानि की स्त्री होना या यह स्त्रीत्व चिन्ह धारण करना शर्म से डूब मरने की बात है, आपने खुद को क्या समझ कर यह आयोजन यहाँ किया है?"
सब लोग चुप हो गए. मैंने उसी वक्त उठ कर घर चली आई. दोस्त ने बताया की जैसे - तैसे नजरें नीची करके आयोजन निपटा और लोग अपने घर चले गए.
मैं तब से अब तक सोंचती हूँ ..कभी किसी स्त्री को अपमानित या उसका सामाजिक बहिष्कार करने के लिए पुरुष के कपडे क्यों नही भेजे जाते?
क्यों एक तरफ लोग कहते हैं यह गहने -कपडे हमारी परम्परा है ..और दूसरी तरफ इसी परम्परा को अपमानित करने का साधन बनातें हैं? स्त्रीत्व को स्त्री के सामने गौरवशाली होने का पैमाना बताया जाता है, पर पुरुषों के बीच "क्या चूडियाँ पहन रखी है तुमने", "अरे क्या लड़कियों की तरह रोता है " जैसे मुहावरे बोले जाते हैं ..फिर किस तरह स्त्रीत्व को मैं गौरवशाली होने का पैमाना मानूं ?
मुझे मेरे समाज का यह दोगलापन समझ नही आता ॥क्या आपको आता है ?

लवली की इस पोस्ट पर कमेन्ट उसके ब्लॉग पर ही दे ताकि एक संवाद वहाँ हो सकेकमेन्ट के लिये ऊपर दिये लिंक पर पोस्ट करे

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