*न चाँद तारे तोड़ने की चाहत है हमारी,
न आसमां को अपनी मुट्ठी में समेटने की हसरत..
एक इन्सां बनकर समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश,
मुकम्मल बनाना है अरमान की ताकत .
भारतीय महिलाओं ने अंतरिक्ष की उंचाईयों को छू लिया है. जमीं के हर क्षेत्र में अपने परचम लहरा दिए हैं.अपने देश सहित सारा विश्व चमत्कृत है. शिक्षा विज्ञान ,चिकित्सा, इंजिनियर ,टेक्निकली बड़े बड़े उद्योग-बिसिनेस वुमन, आर्टिस्ट, साहित्य,लेखक ,सरकारी- गैर सरकारी अधिकारी,आर्थिक,सामाजिक,राजनितिक,ग्राम-शहर कही भी-कोई भी क्षेत्र उनसे अछूता नहीं है. विचारणीय है कि इनकी संख्या इतनी कम क्यों है ? आबादी में महिलाओं का हिस्सा आधा माना जाता है फिर ये मुट्ठी भर क्यों ? अंतर्तम से पूछिये ,क्या आप को नहीं लगता की आप या हमारे परिवार की बालिका-महिला भी ऐसी बुलंदियों को छुए… सोचना है हम कैसे अपनी उन बहिनों के अधिकार दिलवा पाएंगे जो इतनी घुटन में रहती है कि उनको तो खुली हवा में साँस लेना भी मुश्किल है. जन धारणा है कि बालिकाएं या महिलाऐं खुद अपनी लडाई लड़ें पर कैसे ? अपने ही लोगो से वे कैसे विद्रोह करें.अपने सन्सकारों से वे सुसंस्कृत हैं, क्या उनके अधिकार ,कानूनी संरक्षण,उनके लिए मिलने वाली सुविधाएँ सब तरह की जानकारी उन तक पहुचने का बीडा समाज के हर पुरुष-महिला-युवा-बच्चों का नहीं है. . साथ ही जो बहिनें आगे बढ़कर अपनी मंजिलें पा चुकीं हैं. उनकी जिम्मेदारी अब और बढ़ गई है. क्योंकि वे जानती हैं कि उन्होंने * घुटन से अपनी आज़ादी खुद कैसे अर्जित की है*. सशक्त सहभागिनी बनकर सबसे पहिले सहयोग की पहल करना है उनको.अपने *परिवार*-*पास पड़ोस*-*समाज* में आज से ही शुरुआत करनी है. समाज के एक व्यक्ति,परिवार'जाति;धर्म, वर्ग की बात नहीं पूरे भारत के कोने-कोने में अलख जगानी है.--.
*तकदीर संवरती है उनकी जो खुद को संवारा करते हैं ,तूफां में जब हो किश्ती तो, साहिल भी किनारा करते हैं.*
हम जानते हैं कि महिलाओं को *अधिकार* मिलने के बाद भी उनका पालन नहीं होता. उसी तरह हर *कानून* उपलब्ध होने पर भी क्रियान्वन नहीं होता.वास्तव में *नारी* को *सामाजिक बुराइयों* के विरुद्ध स्वयं "अपने व अपने लोगों" से *सम्मानपूर्वक* अपनी लडाई लड़नी है. समाज में लोगो की मानसिकता में भी बदलाव आया है पर सही जानकारी के अभाव में उनकी इच्छा व आशा पूरी नहीं हो पाती. परिजन व महिला स्वयं अभी भी *नैतिक मूल्यों* के विरोध में अपने ही लोगो के विरुद्ध पूरी तरह आवाज नहीं उठा पाते. अपनी पहचान बनाने के लिए महिलाओं को अपने अधिकार जानने होंगे .तभी नई ताकत एवं पक्के इरादों से भेद-भावहीन समाज बनाया जा सकेगा जो सही विकास का मार्ग खोल सकेगा.*हमारा भारतीय समाज एक नए सामाजिक स्वरुप में उज्ज्वलता की ओर अग्रसर* होगा. महिला व उनके परिजनों ,साथ ही समाज के हर वर्ग के जागरूक नागरिक के हित-चैतन्य-आस्था-विश्वास हेतु समस्त जानकारी बहुत संक्षेप में प्रस्तुत है..*कुछ मुख्य अधिकार - कानून व सहायता*.
संविधान के अनुसार महिलाओं के मौलिक अधिकार----- मौलिक अधिकार वे बुनियादी अधिकार हैं जो जीवन के लिए जरूरी होते हैं. हर मनुष्य को कुछ अधिकार की जरुरत होती है जिसके बिना वो सही जीवन नहीं जी सकता १ समानता का अधिकार( संविधान के अनुसार सभी नागरिक सामान हैं.धर्म,लिंग,जाति या जन्म स्थान का आधार पर भेद-भाव नहीं किया जा सकता. २.स्वतंत्रता का अधिकार(जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) ३ शोषण के विरुद्ध अधिकार(किसी भी प्रकार का शारीरिक-mansik शोषण ) ४ धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ५ संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार ६. संवैधानिक उपचारों का अधिकार .मुफ्त कानूनी सहायता-औरतें और बच्चे (देश की हर अदालत में मुफ्त कानूनी सहा.केंद्र उपलब्द्ध हैं) अन्य आवश्यक अधिकार व कानून .
भारतीय महिलाओं ने अंतरिक्ष की उंचाईयों को छू लिया है. जमीं के हर क्षेत्र में अपने परचम लहरा दिए हैं.अपने देश सहित सारा विश्व चमत्कृत है. शिक्षा विज्ञान ,चिकित्सा, इंजिनियर ,टेक्निकली बड़े बड़े उद्योग-बिसिनेस वुमन, आर्टिस्ट, साहित्य,लेखक ,सरकारी- गैर सरकारी अधिकारी,आर्थिक,सामाजिक,राजनितिक,ग्राम-शहर कही भी-कोई भी क्षेत्र उनसे अछूता नहीं है. विचारणीय है कि इनकी संख्या इतनी कम क्यों है ? आबादी में महिलाओं का हिस्सा आधा माना जाता है फिर ये मुट्ठी भर क्यों ? अंतर्तम से पूछिये ,क्या आप को नहीं लगता की आप या हमारे परिवार की बालिका-महिला भी ऐसी बुलंदियों को छुए… सोचना है हम कैसे अपनी उन बहिनों के अधिकार दिलवा पाएंगे जो इतनी घुटन में रहती है कि उनको तो खुली हवा में साँस लेना भी मुश्किल है. जन धारणा है कि बालिकाएं या महिलाऐं खुद अपनी लडाई लड़ें पर कैसे ? अपने ही लोगो से वे कैसे विद्रोह करें.अपने सन्सकारों से वे सुसंस्कृत हैं, क्या उनके अधिकार ,कानूनी संरक्षण,उनके लिए मिलने वाली सुविधाएँ सब तरह की जानकारी उन तक पहुचने का बीडा समाज के हर पुरुष-महिला-युवा-बच्चों का नहीं है. . साथ ही जो बहिनें आगे बढ़कर अपनी मंजिलें पा चुकीं हैं. उनकी जिम्मेदारी अब और बढ़ गई है. क्योंकि वे जानती हैं कि उन्होंने * घुटन से अपनी आज़ादी खुद कैसे अर्जित की है*. सशक्त सहभागिनी बनकर सबसे पहिले सहयोग की पहल करना है उनको.अपने *परिवार*-*पास पड़ोस*-*समाज* में आज से ही शुरुआत करनी है. समाज के एक व्यक्ति,परिवार'जाति;धर्म, वर्ग की बात नहीं पूरे भारत के कोने-कोने में अलख जगानी है.--.
*तकदीर संवरती है उनकी जो खुद को संवारा करते हैं ,तूफां में जब हो किश्ती तो, साहिल भी किनारा करते हैं.*
हम जानते हैं कि महिलाओं को *अधिकार* मिलने के बाद भी उनका पालन नहीं होता. उसी तरह हर *कानून* उपलब्ध होने पर भी क्रियान्वन नहीं होता.वास्तव में *नारी* को *सामाजिक बुराइयों* के विरुद्ध स्वयं "अपने व अपने लोगों" से *सम्मानपूर्वक* अपनी लडाई लड़नी है. समाज में लोगो की मानसिकता में भी बदलाव आया है पर सही जानकारी के अभाव में उनकी इच्छा व आशा पूरी नहीं हो पाती. परिजन व महिला स्वयं अभी भी *नैतिक मूल्यों* के विरोध में अपने ही लोगो के विरुद्ध पूरी तरह आवाज नहीं उठा पाते. अपनी पहचान बनाने के लिए महिलाओं को अपने अधिकार जानने होंगे .तभी नई ताकत एवं पक्के इरादों से भेद-भावहीन समाज बनाया जा सकेगा जो सही विकास का मार्ग खोल सकेगा.*हमारा भारतीय समाज एक नए सामाजिक स्वरुप में उज्ज्वलता की ओर अग्रसर* होगा. महिला व उनके परिजनों ,साथ ही समाज के हर वर्ग के जागरूक नागरिक के हित-चैतन्य-आस्था-विश्वास हेतु समस्त जानकारी बहुत संक्षेप में प्रस्तुत है..*कुछ मुख्य अधिकार - कानून व सहायता*.
संविधान के अनुसार महिलाओं के मौलिक अधिकार----- मौलिक अधिकार वे बुनियादी अधिकार हैं जो जीवन के लिए जरूरी होते हैं. हर मनुष्य को कुछ अधिकार की जरुरत होती है जिसके बिना वो सही जीवन नहीं जी सकता १ समानता का अधिकार( संविधान के अनुसार सभी नागरिक सामान हैं.धर्म,लिंग,जाति या जन्म स्थान का आधार पर भेद-भाव नहीं किया जा सकता. २.स्वतंत्रता का अधिकार(जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) ३ शोषण के विरुद्ध अधिकार(किसी भी प्रकार का शारीरिक-mansik शोषण ) ४ धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ५ संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार ६. संवैधानिक उपचारों का अधिकार .मुफ्त कानूनी सहायता-औरतें और बच्चे (देश की हर अदालत में मुफ्त कानूनी सहा.केंद्र उपलब्द्ध हैं) अन्य आवश्यक अधिकार व कानून .
- पिता की संपत्ति पर अधिकार.
- शादी के बाद नाम बदलने की जबरदस्ती नहीं
- अपनी कमाई व स्त्री धन पर अपना अधि.
- समान काम समान वेतन 5 18 वर्ष की उम्र के बाद अपने निर्णय को स्वतंत्र..
कानूनी सहायता एवं सजा (केवल मुख्य जानकारी का उल्लेख) . (निम्न कोई अपराध होने पर किसी महिला- संगठन,जागरूक संस्था या सक्षम व्यक्ति को साथ ले जाना चाहिए ) 1.ऍफ़.आई.आर.कराएं.रिपोर्ट न लिखने पर (जाएँ) 1 .कलेक्टर.2 स्थानीय समाचार पत्र-मीडिया को जानकारी 3 राष्ट्रीय महिला आयोग 4 अपने राज्य के महिला आयोग..
- बलात्कार ------ धारा 376 -सजा कम से कम ७ से १० साल या आरोप सिद्ध होने पर उम्र कैद.जुरमाना
- बाहरी हिंसा या छेड़छाड़ धारा २९४ या ३५४ किस तरह का आरोप है उसपर आधारित सजा जेल..
- दहेज़-वर्त्तमान में समाज की सबसे बड़ी सामाजिक समस्या. लेना+देना दोनों अपराध. कम से कम ६ माह की सजा+१०,००० रु. बढकर १५,००० रु.,५ साल की सजा. दहेज़ हत्या -३०४ B-साक्ष्य+गवाह दोनों हो .(केस सिद्ध होने पर बड़ी से बड़ी सजा का प्रावधान ) .
- पत्नी को तलाक़ या छोड़ने के बाद धा. १२५ के अंत.गुजारा भत्ता.बच्चे का खर्चा
- घरेलू हिंसा होने पर-४९८ A १८६० शारीरिक या मानसिक क्रूरता-नए कानून के अनुसार उत्पीडन हिंसा करनेवालों को तुंरत गिरफ्तार ,पूछताछ या सफाई देने का भी मौका नहीं (इस कानून का बहुत दुरूपयोग भी हो रहा है अक्सर दुर्भावना से लड़की या उसके परिजन विरोधी पक्ष को झूठा भी फंसा दे रहे है जो नहीं होना चाहिये पीडीत पक्ष ही रिपोर्ट करे,अन्यथा ये कानून हटने से मुश्किल आ सकती है. ).
- कामकाजी महिला के लिए कानून -खास अधिकार .१ सरकार द्वारा निर्धारित वेतन की उपलब्धता २ महिलाओं की सुरक्षा के अनुसार ही काम लेना जरुरी. ३ प्रसूति सुविधा(अभी और बढा दी गई है) .
- लिंग जाँच या भ्रूण हत्या रोकने का कानून.अधि.१९९४.इ. धारा ३१२ -३१६ ५ साल की कैद व १०,००० रु. जुरमाना , दूसरी बार में ५०,००० तक
महिलाओं के लिए मुख्य सरकारी योजनाएं.
१ बालिका सम्रद्धि योजना
२ मात्रत्व लाभ योजना
३ विधवा पेंशन
४ वृद्धावस्था पेंशन.
५ इंदिरा आवास योजना
६.अनुसूचित या गरीबी से नीचे वर्ग की लड़की के विवाह हेतु सहायता.
७ राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना
८ स्वर्ण जयंती रोजगार योजना १० गांवों के पंचायती राज्य में ३३% आरक्षण 11.प्रत्येक समिति में महिला व दलित महिला की भागीदारी निश्चित. और भी अनेक योजनाएं हैं समयानुसार बदलती रहती हैं.
हम आप सब जानते है*मानव जीवन एक सामूहिक संस्था *है. समाज के सुगम सञ्चालन के लिए परिवार बने हैं . स्त्री-पुरुष व उनका परिवार एक दुसरे के पूरक है उनके आपसी सामंजस्य के बिना कुछ नहीं हो सकता.वास्तव में परिवार के हर सदस्य की अपनी प्रतिष्टा-आवश्यकता–जिम्मेदारी-बाध्यता होती है.हमारी पूरी श्रंखला केवल *समाज को चैतन्य* करने की कोशिश है क्योंकि यदि हमारे परिवार की *महिला-शक्ति* का ह्वास होता रहा तो समाज कहाँ चला जायेगा अकल्पनीय है. उसके समग्र विकास के लिए हर परिवार ठान ले तो भारत कितना *उज्जवल* होगा जरा सोचकर देखें…………. .
पुराणों में माना गया है .. जग जीवन पीछे रह जावें,यदि नारी दे न पावे स्फूर्ति .इतिहास अधूरे रह जावें ,यदि नारी कर न पावे पूर्ति.. क्या विश्व कोष रह जावें ,होवे अगर न नारी विभूति .क्या ईश्वर कहलायें अगम्य,यदि नारी हो न रहस्य मूर्ति.
*अलका मधुसूदन पटेल*
*अलका मधुसूदन पटेल*
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