आवश्यकता है जागरूक व सावधान समाज प्रहरियों की .चुनौती है स्वदेशवासियों को.
हमारे देश की आज़ादी के पचास वर्षों के बाद भी इस वैज्ञानिक व आधुनिक युग में नारी की ये अमानवीय स्थिति जो सामान्यतः द्रष्टिगत नहीं होती .कई जगह आज भी मौजूद है. इन परिस्थितियों को दूर करने के उपाय ढूँढना है.सदियों से चली आ रही रुढियों व पुरानी सोच को बदलना है. दिशा व दशा को परिवर्तित करनी है.
स्वास्थ्य विभाग के (पूर्व)सर्वेक्षण की जानकारी से उपलब्ध आंकड़े संक्षिप्त में प्रस्तुत हैं.
क्या यह आप जानते हैं........(जबकि यह सब कानूनन अपराध है. )
१ भ्रूण व शिशु हत्या ,भारत में प्रत्येक वर्ष ३० से ५० लाख शिशु कन्या भ्रूण नष्ट किये जाते हैं .
२. प्रत्येक वर्ष जन्म लेते ही १०,००० कन्या शिशुओं को मार डाला जाता है. आधुनिक समाज में भी अलग-अलग प्रान्तों में इस असंवेदनशील कृत्य की सूरत अलग अलग है.कही कम कहीं ज्यादा.
३.कई जगहों पर कन्या को जन्म नहीं लेने दिया जाता. कई जगहों पर कन्या के पैदा होने के बाद उससे भेदभाव करके माँ का दूध व पर्याप्त पोष्टिक भोजन नहीं दिया जाता इससे कुपोषण होने से वो कभी कमजोर तो कभी उसकी म्रत्यु हो जाती है. घर की महिलाओं का ही अपनी बेटी से असमानता व दुर्व्यवहार होता है.
इस तरह के अनेक कारणों से भारत की जनसँख्या में ५ करोड़ महिलाऐं कम हो चुकीं हैं.
पुरुष-स्त्री का अनुपात १०००/ ८७२ से ९०० तक आगया है. जिसमे अभी भी सुधार नहीं है.
४. मनोचिकित्सक सुधीर कक्कड़ के अनुसार ६००,००० से ७००,००० भारतीय बच्चे यौन हिंसा के शिकार बन जाते हैं. अधिकांशतः परिवार के अंदर ये अपराध होता है जो द्रष्टिगत नहीं होता.
५. प्रत्येक दर्ज एक अपराध के पीछे १०० बिना दर्ज किये अपराध रहते हैं.पिछले १० वर्षों में १० वर्ष से कम आयु की बालिकाओं के साथ बलात्कार की घटना में २७% की वृद्धी हुई है. ६५% घरेलू अपराध के मुक़दमे पुलिस में दर्ज होते हैं. घरों में होने वाले अपराध ज्यादा होता हैं आश्चर्य जनक रूप से महिलाओं की भागीदारी सामान होती है.
६.बंगलोर,मुंबई,चेन्नई,हैदराबाद,दिल्ली,कलकत्ता में ७०,००० से १००,००० के करीब वैश्याएँ थीं. जिनमे १५% जबरदस्ती बनाईं गई लड़कियों की संख्या थी. प्रतिवर्ष किसी भी रूप में २० से २३ लाख औरतों की खरीद-फरोख होती है.२५% बच्चियां होती हैं .
७. ग्रामीण क्षेत्रों में ४०% लड़कियों का विवाह १५-१६ वर्ष से कम आयु में हो जाता है.राजस्थान में ५६% का १५ वर्ष से कम,१४% का १० वर्ष से कम व ३% का ५ वर्ष से कम होता है. प्रान्तों के अनुसार आंकडा अलग है.
अधिकांशतः किशोरवय की बालिका प्रथम संतान की माँ बन जातीं हैं. कम आयु में माँ बनने व जानकारी के अभाव में माँ की म्रत्युदर ज्यादा है. भारत में १००,००० में से जन्म लेने वाले बच्चों ४५० की माँ म्रत्यु दर है.
बच्चों व माँ की इस दर की गिनती पक्की नहीं है.
८.७०% महिलाऐं पति व उसके परिवारवालों की हिंसा की शिकार .प्रतिवर्ष १५००० महिलाऐं दहेज़ हत्या की शिकार.
९ .गर्भवती महिला के साथ मारपीट ,विधवाओं के साथ दुर्व्यवहार ,संपत्ति के लिए हत्या.प्रतिवर्ष लगभग १५००० विधवाएं परिजनों द्वारा निराश्रित ,असुरक्षित,आश्रमों में यौन हिंसा की शिकार.
१०.हर ३४ मिनिट में एक महिला बलात्कार की शिकार,हर २६ मिनिट में एक महिला छेडछाड़ की शिकार.
२. प्रत्येक वर्ष जन्म लेते ही १०,००० कन्या शिशुओं को मार डाला जाता है. आधुनिक समाज में भी अलग-अलग प्रान्तों में इस असंवेदनशील कृत्य की सूरत अलग अलग है.कही कम कहीं ज्यादा.
३.कई जगहों पर कन्या को जन्म नहीं लेने दिया जाता. कई जगहों पर कन्या के पैदा होने के बाद उससे भेदभाव करके माँ का दूध व पर्याप्त पोष्टिक भोजन नहीं दिया जाता इससे कुपोषण होने से वो कभी कमजोर तो कभी उसकी म्रत्यु हो जाती है. घर की महिलाओं का ही अपनी बेटी से असमानता व दुर्व्यवहार होता है.
इस तरह के अनेक कारणों से भारत की जनसँख्या में ५ करोड़ महिलाऐं कम हो चुकीं हैं.
पुरुष-स्त्री का अनुपात १०००/ ८७२ से ९०० तक आगया है. जिसमे अभी भी सुधार नहीं है.
४. मनोचिकित्सक सुधीर कक्कड़ के अनुसार ६००,००० से ७००,००० भारतीय बच्चे यौन हिंसा के शिकार बन जाते हैं. अधिकांशतः परिवार के अंदर ये अपराध होता है जो द्रष्टिगत नहीं होता.
५. प्रत्येक दर्ज एक अपराध के पीछे १०० बिना दर्ज किये अपराध रहते हैं.पिछले १० वर्षों में १० वर्ष से कम आयु की बालिकाओं के साथ बलात्कार की घटना में २७% की वृद्धी हुई है. ६५% घरेलू अपराध के मुक़दमे पुलिस में दर्ज होते हैं. घरों में होने वाले अपराध ज्यादा होता हैं आश्चर्य जनक रूप से महिलाओं की भागीदारी सामान होती है.
६.बंगलोर,मुंबई,चेन्नई,हैदराबाद,दिल्ली,कलकत्ता में ७०,००० से १००,००० के करीब वैश्याएँ थीं. जिनमे १५% जबरदस्ती बनाईं गई लड़कियों की संख्या थी. प्रतिवर्ष किसी भी रूप में २० से २३ लाख औरतों की खरीद-फरोख होती है.२५% बच्चियां होती हैं .
७. ग्रामीण क्षेत्रों में ४०% लड़कियों का विवाह १५-१६ वर्ष से कम आयु में हो जाता है.राजस्थान में ५६% का १५ वर्ष से कम,१४% का १० वर्ष से कम व ३% का ५ वर्ष से कम होता है. प्रान्तों के अनुसार आंकडा अलग है.
अधिकांशतः किशोरवय की बालिका प्रथम संतान की माँ बन जातीं हैं. कम आयु में माँ बनने व जानकारी के अभाव में माँ की म्रत्युदर ज्यादा है. भारत में १००,००० में से जन्म लेने वाले बच्चों ४५० की माँ म्रत्यु दर है.
बच्चों व माँ की इस दर की गिनती पक्की नहीं है.
८.७०% महिलाऐं पति व उसके परिवारवालों की हिंसा की शिकार .प्रतिवर्ष १५००० महिलाऐं दहेज़ हत्या की शिकार.
९ .गर्भवती महिला के साथ मारपीट ,विधवाओं के साथ दुर्व्यवहार ,संपत्ति के लिए हत्या.प्रतिवर्ष लगभग १५००० विधवाएं परिजनों द्वारा निराश्रित ,असुरक्षित,आश्रमों में यौन हिंसा की शिकार.
१०.हर ३४ मिनिट में एक महिला बलात्कार की शिकार,हर २६ मिनिट में एक महिला छेडछाड़ की शिकार.
प्रस्तुति *श्रीमती अलका मधुसूदन पटेल*
अलका जी को बधाई। इतनी विस्तृत जानकारी देने के लिए। लेकिन इन सारी परिस्थितियों को भी नारी ही दूर करेगी अपने स्वाभिमान के सहारे। नारी जो जननी है और इसी कारण उसके शरीर की रचना में अन्त:स्रावों की बहुत बड़ी भूमिका है। लेकिन हम इन्हें अशुद्ध और परेशानी मानकर चलते हैं। अत: नारी ही पूर्ण है इस तथ्य को जब तक अंगीकार नहीं करेंगे हमारी हीनभावना हम पर हावी रहेगी।
ReplyDeleteश्रीमती अजित गुप्ता जी की बात का मै भी अनुमोदन करती हूँ और मानती हूँ की नारी को तन कर खडे होना हैं ताकि ये सब बंद हो .
ReplyDeleteगर्भ की जांच के लिए जाता कौन है ,प्रेरित कौन करता है इन सब के पीछे कोई महिला ही होती है अधिकतर . नारी के सम्मान के लिए नारियो को ही कुछ करना पड़ेगा .
ReplyDeleteविस्तृत जानकारी के लिए धन्यवाद, आज भी भारत में इतनी कुरीतियाँ हैं. पर जाने क्यूँ लोग इनको अपने समाज से दूर करने के बजाय धर्म, मजहब और पता नहीं किन किन चीजों पर बहस करके समय निकाल देते है.
ReplyDelete...और मैं डॉक्टर श्रीमती अजित गुप्ता की बात से भी सहमत हूँ कि इन सब परिस्थितियों को दूर करने में नारी की भी अहम भूमिका होनी चाहिए.
सभी माननीयों को अपने सुचिंतित विचार व्यक्त के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteप्रतिदिन नारी ब्लॉग देखते रहें.
आपका साथ व आपकी भावनाएं ही तो वास्तविक सहयोग है.
किसी महान कवि का गीत याद आता है.
"गहरा है अँधियारा , दिया जलाना है,
हमको तुमको सबको,अब आगे आना है.
ऐसे बढो कि आंधी लोहा मान ले,
सभी यहाँ तुमको तुमसे पहचान लें."
*अलका मधसूदन पटेल*
'जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं?'
ReplyDeleteमहिला शक्ति का *नारी ब्लॉग* और उसमे आप हम सब का सामूहिक पढना-लिखना-समझना ही तो हिंदुस्तान की चिंता है.प्रयास यही है कि समाज की सूरत बदलनी चाहिए.
ReplyDeleteजिम्मेदार विचारों का स्वागत है.
मैथिलीशरण गुप्तजी ने कहा है,
हो रहा है जो जहाँ सो हो रहा,वही हमने कहा तो क्या कहा.
किन्तु होना चाहिए कब क्या कहाँ, व्यक्त करती व्यथा यहाँ.
महिला शक्ति का *नारी ब्लॉग* और उसमे आप हम सब का सामूहिक पढना-लिखना-समझना ही तो हिंदुस्तान की चिंता है.प्रयास यही है कि समाज की सूरत बदलनी चाहिए.
ReplyDeleteजिम्मेदार विचारों का स्वागत है.
मैथिलीशरण गुप्तजी ने कहा है,
हो रहा है जो जहाँ सो हो रहा,वही हमने कहा तो क्या कहा.
किन्तु होना चाहिए कब क्या कहाँ, व्यक्त करती व्यथा यहाँ.
*अलका मधुसूदन पटेल*