हमेशा ये लिखा जाता रहा हैं ,कन्या भूण ह्त्या हो रही हैं इसको रोको । इसके कारण की बात करो तो अशिक्षा , अज्ञान और रुढिवादी सोच को बताया जाता । तीनो कारणों को बदला जा सकता हैं और अपनी अपनी जगह हम सब भी इसके प्रति लोगो को सचेत कर रहे हैं । हम मे से ज्यादा इस बात को मानते हैं की ये ग़लत हैं ।
आज की पोस्ट मे , बात करना चाहती हूँ उन कारणों की जिनसे इस सोच ने जन्म लिया की बेटी को मार दो , बेटी को जन्म ना दो ।
समाज मे
- कब से ये सब शुरू हुआ ,
- किन कारणों से हुआ ,
- क्यूँ बेटियों के प्रति भारतीये समाज को इतना निर्मम होना पडा ,
- क्यूं समाज को बेटियों को बेटो से कमतर आँका गया ।
आज बस आप कारण बताये ताकि समस्या के जड़ तक ये बात जाए ।
प्रश्नों को क्रम दिया गया हैं सो उत्तर उसी क्रम से दे जिससे लोगो को बात समझने मे आसानी हो ।
ब्लॉग लेखन की पहुँच विश्वव व्याप्त हैं सो क्या पता कब कुछ भी लिखा किसी के अनपूछे प्रश्न का उत्तर बन जाये ।
मेरे ख्याल से इन सब सवालों का एक ही जवाब है...हमारा सामाजिक तानाबाना...जिसमे बेटों को हद से जयादा महत्त्व दे दिया गया है..!आज के इस वैज्ञानिक.. युग में भी बेटी के लिए नारी को ही दोषी समझा जाता है...और बेटों से ही पीढी चलेगी जैसी आव धारणाएं..व्याप्त है..!इन्हें मेरे ख्याल से शिक्षा के प्रचार प्रसार से ही दूर किया जाना चाहिए...
ReplyDeletekuchh bhee likhne se pehle aapko bata doon ki ye sab mera shodh hai ya jaankaaree kahein, koi nischit satya nahin,
ReplyDeletedekhiya jahan tak main samajahtaa hoon iskee shuraat tab se huee jab betiyon ke maataa pitaa ko dahej aur gareebee ke kaaran unka vivaah karna mushkil hone laga.
beshak ye samaaj purushvaadee hai magar ye bhee sach hai ki betee paidaa hone kaa jyada dukh ya kahein ki kabhi kabhi to maatam ghar kee mahilaaon ko hee hotaa hai.
ek aur aashcharyajanak baat ye ki dukh kee baat ye hai ki is paap kee dar shahree kshetron mein jahan shikshit log rehte hain jyada hai jabki adhik santaan aur beton kee chaahat ke baavjood graameen kshetrom mein abhee bhee ye utnaa nahin failaa hai.
sarkaar yadi sachmuch chaahtee hai isko samapt kiya jaaye to bahut sakth kaanoon banana padege, na sirf banana balki laagoo karnaa padegaa.
waise yadi nari khud hee nirnay kar le to kisi kaa baap bhee usse ye sab jabran nahin karaa saktaa..
waise aapne is mudde ko uthaa hee diya hai to bahas aage jaaree rehnee chaahiye.
जिसमे बेटों को हद से जयादा महत्त्व दे दिया गया है
ReplyDeleterajnish parihaar ji yae kyun shuru hua hoga is ki barae mae bhi likhae please
kanya broon hayta ek abhishap hai iss dekh ko aaj bhi agar ye hota hai
ReplyDeletekai log garbh me jach jarva kar ladkiyo ko maar dete hai ........
ve is ghoor mahapaap ko pata nahi kyu aacha samjjhte hai
ladki to devi ka roop hoti uski pooja ki jani chahiye
भ्रूण हत्या को जब कानूनी मान्यता मिली तो बिना टेस्ट के गर्भ को समाप्त कर देने की प्रवृत्ति समाज में आयी ... पर उस समय यह बिना लिंग परीक्षण के सिर्फ परिवार नियोजन के लिए ही किया जाता था ... जब चार महीने के बाद का भ्रूण का लिंग परीक्षण होना शुरू हुआ तब भी लोग इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते थे कि कन्या के गर्भ को समाप्त कर दिया जाए ... वास्तव में जब से छह सप्ताह से ही भ्रूण का लिंग परीक्षण की तकनीक विकसित हुई है और छोटी अवधि के गर्भ समापन में रिस्क कम हुआ है ... तब से कन्या भूण हत्या की प्रवृत्ति विकसित हुई है ... रहा सवाल लडके और लडकी में फर्क का तो वह काफी दिनों से चला आ रहा है ... पर पहले कोई उपाय नहीं था और लोग ढोने को मजबूर थे ... पहले परिवार के बढने की भी कोई चिंता नहीं रहती थी ... दो चार लडकियों के बाद भी लडका हो तो कोई फर्क नहीं पडता था ... पर अब एक लडकी के बाद कोई दूसरी नहीं होने देना चाहता और अगर पहला लडका ही हो जाए तो लडकी के लिए दूसरे बच्चे का चांस भी कोई नहीं लेना चाहता ... यही सब कारण हैं कन्या भ्रूण हत्या के।
ReplyDeleteEK-DO DIN ME AAPKO IS VISHAY PAR SAMPOORN JAANKARI DETE HAIN.
ReplyDeleteISAKE PEECHHE SIRF DAHEJ HI KAARAN NAHIN HAI.
YE EK BHRANTI HAI SAMAAJ ME....
SHESH AAP HAMAARE DWARA BHEJE MATTER ME DEKH LIJIYEGA.
कोई भी कानून सामाजिक स्वीकृति के बिना अधिक प्रभावी नहीं हो सकता। आवश्यकता उस बर्बर और जाहिल मानसिकता को बदलने की है जो अपनी ही सन्तान की हत्या करने को भी ग़लत नहीं समझती।
ReplyDeleteभ्रूण हत्या को जब कानूनी मान्यता मिली तो बिना टेस्ट के गर्भ को समाप्त कर देने की प्रवृत्ति समाज में आयी ... पर उस समय यह बिना लिंग परीक्षण के सिर्फ परिवार नियोजन के लिए ही किया जाता था ... जब चार महीने के बाद का भ्रूण का लिंग परीक्षण होना शुरू हुआ तब भी लोग इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते थे कि कन्या के गर्भ को समाप्त कर दिया जाए
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