*स्वनिर्माण चेतना एवं जागरूकता-------बालिका के हितों की रक्षा*
ईश्वर की सर्वश्रेष्ट कृति मानव ,मानव में श्रेष्ट स्त्री ,सारी दुनिया की सृजक, पालक, कला, संस्कृति, सर्वगुणा शक्तिमान ,समरूपा, ममतामयी और न जाने कितनी उपाधियों से परिपूर्ण है नारी शक्ति. नई दुनिया की स्रष्टिकर्ता आज सिर्फ संघर्ष का पर्याय बनकर क्यों रह गई है..आज जरूरत है बालिका-महिला को अपने को पहचानने की. स्वयं अपने नवनिर्माण हेतु चैतन्य होने की. अपने में आत्म-विश्वास, संपूर्ण आस्था जगाने की. अपने समुचित विकास एवं अधिकारों के लिए उसे सम्पूर्णता से अपने जनतांत्रिक देश में आवाज ही नहीं देना है सक्षम बनकर सही राह चुनना है. नई ऊंचाइयों की ओर बढ़ना है धरती पर कदम जमाकर अपने आकाश को पाना है.नित्य नवीन चुनौतियाँ ,भीषण समस्याएँ, स्वयं अपने परिवार, समाज की विसंगतियां ,नित नई कठिनाइयाँ ,प्रतिकूल बाधाए-अवरोध ,परिस्थितिवश अनावश्यक अनवरत शारीरिक-मानसिक शोषण-दोहन-तनाव उसके सामने हैं. पल-पल अन्धविश्वास,कुप्रथाएँ,अशिक्षा,अत्याचार जन्म से मृत्यु तक उसको चुनौती दे रहे हैं.. आधुनिकता के आवरण में भी उसको अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं .. इन सबसे जूझती *नारी* को अपने लिए सोचने-जाग्रत होने का समय कहाँ रह गया है पर--कवि का कथन है..
संघर्ष तो करना होगा,जूझना होगा,ज्योतिर्मय संसार बनाना होगा.. नहीं है कोई उपाय ,संघर्षों-कष्टों से बचने का,सत्य से हटने का.
सही के लिए तो अब आगे बढना होगा अंतिम स्वास तक मिटना होगा.यह नियति नहीं प्रगति है नवीन पथ की परिणति है.
बंधी-बंधाई लीक से हटकर कुछ अलग सोचो ,बदलो. समझना होगा कि कोई चमत्कार नहीं होनेवाला, संवेदनाओं या सहानुभूतियों का ज्वार नहीं आनेवाला, स्वयं प्रबुद्ध बनकर आत्म-संयमित होकर समाज के दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब निहारकर नारी अधिकारिक चेतना जगानी होगी. छोटे-छोटे प्रयत्नों से बड़े-बड़े काम होते हैं. अपनी *संस्कृति-संस्कारों* को धरोहर मानकर समस्त *मिथ्या आवरणों* को दूर करके अपने अस्तित्व की लडाई खुद लड़नी होगी. शोषण, उत्पीडन, हिंसा से अपनी रक्षा के कदम बढाने होंगे. सामुदायिक जीवन में मिलकर आवाज उठाने से आत्मबल बढ़ने के साथ जनबल भी मजबूत होता है. न केवल परिजन,समाज के बुद्धिजीवी भी आगे सहायतार्थ एकत्रित होते जाते हैं.महिलाओं के अंतःकरण की सच्ची सोच उसके आत्मविश्वास के साथ समाज को सद्-प्रेरणा देते हैं.सामाजिक सुरक्षा मिलने से उसकी भावनाएँ ,आकान्शाएँ कुचल नहीं पाएँगी, उसे नहीं कहना पड़ेगा.(भ्रूण हत्या पर रोक हेतु)
सोचना होगा बालिका के हितों की रक्षा खुद अपनी रक्षा है.
*अलका मधुसूदन पटेल*
जो लोग सोचते हैं कि बालिकाओं को मारकर वे अपने वंश को आगे बढ़ा ले जायेंगे वे नितांत गलत सोचते हैं।
ReplyDeleteएक पल को सोचिए कि बालिकाओं का जन्म लेना रोक दिया जाये तो क्या आने वाले समय में वंशवृद्धि के लिए लड़की की जरूरत नहीं होगी?
क्या लड़के-लड़के मिल कर बच्चे पैदा कर लेंगे? ये तो विज्ञान भी सिद्ध कर चुका है कि महिलाओं की कोशिकाओं के आपसी मेल से तो बच्चे का जन्म हो सकता है पर पुरुषों की कोशिकाएँ अभी इसमें सक्षम नहीं हैं। इसी कारण से नारी को श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है।
बालिकाओं के विकास में अपना ही विकास देखकर ही समाज का विकास सम्भव है। हमारा तो मानना है कि जो बेटों को अधिक चाहते हैं वे अपने बेटों को बहू दिलाने की खातिर ही बच्चियों को बचाने की मुहिम में हमारा साथ्ज्ञ दें।
आज की बच्ची कल की राष्ट्र निर्माता है।
बंधी-बंधाई लीक से हटकर कुछ अलग सोचो ,बदलो. समझना होगा कि कोई चमत्कार नहीं होनेवाला,
ReplyDeletebilkul sahii kehaa aapney
yahii is blog ki soch bhi haen