परिवार में जब किसी बालिका ,महिला,पुरुष या घर के "किसी भी उम्र" के किसी सदस्य के साथ घर के ही लोग हिंसा का या असामान्य ,गलत व्यवहार ,मारपीटकरना,डराना,धमकाना, छीना झपटी हत्या आदि अमानवीय बर्ताव करते हैं.तो उसे *घरेलू हिंसा* या *डोमेस्टिक वायोलेंस* कहते हैं .
नैसर्गिक कोमल शारीरिक प्रकृति व स्वरुप होने के कारण ज्यादातर लड़कियों व महिलाओं के जीवन के हर पहलू में किसी न किसी प्रकार की हिंसा होती ही रहती है. यह हिंसा बलप्रयोग ,शारीरिक ,लैंगिक,यौन हिंसा , भावनात्मक ,मनोवैज्ञानिक आदि सभी रूप से विद्यमान हैं. हिंसा का डर,भय, खौफ औरत की मजबूरी बन जाता है. व पुरुष वर्ग व बलशाली लोगों का नियंत्रण उसपर बना रहता है. उसका "लड़की" के रूप में पैदा होना ही उसको हिंसा का शिकार बना देता है. कोख में बच्ची को मार देना या फिर पैदा होने के बाद उसे ठीक से खाना ना देना ,डॉक्टर द्वारा सही इलाज ना करना ,अच्छे स्कूल में ना पढाना व उच्च शिक्षित ना कराना,कम उम्र में ही शादी कर देना. नकारात्मक सहयोग ,पुत्र-पुत्री के बीच असमानता-भेदभाव का बर्ताव, आर्थिक निर्भरता का ये पारिवारिक व सामाजिक भेदभाव बचपन से लड़की के मन में हीन भाव भर देता है,उसको पनपने नहीं देता.बचपन से उसके उठने ,बैठने ,आने-जाने पर लगाई गई रोक उसे मानसिक कमजोर बना देते हैं.ये सीमाएं शादी के बाद भी परम्पराओं व रीति -रिवाजों की आड़ में बंधन के रूप में उसको जकड कर रखते हैं. इस सब के साथ शारीरिक स्वरुप में कोमल होने के कारण आदमी या घर के लोग उसपर हावी हो जाते हैं व उसपर घरेलू हिंसा करने लगते हैं. पति या उसके परिवारजन उसके साथ दुर्व्यवहार ,दुर्भावना,मारपीट,गली-गलौज,मानसिक शारीरिक प्रताड़ना ,यौन हिंसा अदि होती है.अक्सर भारतीय समाज ने औरतों की पवित्रता को घर समाज जाति की प्रतिष्टा का मोहरा बना लिया है. *उचित संरक्षण* सही है वह सम्मान के साथ चाहती भी है पर अनावश्यक परतंत्रता नहीं ,उसका हक़,उसके अवसर न छीने जाये. पुत्र की तरह उसका भी संपूर्ण मानसिक विकास+शिक्षा होना जरुरी है.
"आश्चर्यजनक रूप से घरेलू हिंसा में पारिवारिक महिलाओं की ही महिलाओं के प्रति भागीदारी बराबर रहती है".
पहिले अपने जन्म लिए घर में व ब्याह के बाद पति के घर में भी अक्सर घरेलू हिंसा द्रष्टिगत हो जाती है.
विशेष------- *सामाजिक हिंसा* में भी औरतों या बालिकाओं के साथ असामान्य व्यवहार ,बलात्कार,जबरदस्ती यौनिक छेड़ छाड व बल हिंसा देखने को मिल जाती है. यां उत्पीडन का मतलब है किसी भी औरत को बुरी नजर से घूरना,सीटी बजाना ,गंदे गाना,भद्दी अश्लील बातें, मजाक या जानबूझकर शारीरिक संपर्क की चेष्टा.महिलाओं के लिए आपत्तिजनक कहना ही नहीं गलत शब्दों में लिखना तक हिंसा कहलाता है.
नैसर्गिक कोमल शारीरिक प्रकृति व स्वरुप होने के कारण ज्यादातर लड़कियों व महिलाओं के जीवन के हर पहलू में किसी न किसी प्रकार की हिंसा होती ही रहती है. यह हिंसा बलप्रयोग ,शारीरिक ,लैंगिक,यौन हिंसा , भावनात्मक ,मनोवैज्ञानिक आदि सभी रूप से विद्यमान हैं. हिंसा का डर,भय, खौफ औरत की मजबूरी बन जाता है. व पुरुष वर्ग व बलशाली लोगों का नियंत्रण उसपर बना रहता है. उसका "लड़की" के रूप में पैदा होना ही उसको हिंसा का शिकार बना देता है. कोख में बच्ची को मार देना या फिर पैदा होने के बाद उसे ठीक से खाना ना देना ,डॉक्टर द्वारा सही इलाज ना करना ,अच्छे स्कूल में ना पढाना व उच्च शिक्षित ना कराना,कम उम्र में ही शादी कर देना. नकारात्मक सहयोग ,पुत्र-पुत्री के बीच असमानता-भेदभाव का बर्ताव, आर्थिक निर्भरता का ये पारिवारिक व सामाजिक भेदभाव बचपन से लड़की के मन में हीन भाव भर देता है,उसको पनपने नहीं देता.बचपन से उसके उठने ,बैठने ,आने-जाने पर लगाई गई रोक उसे मानसिक कमजोर बना देते हैं.ये सीमाएं शादी के बाद भी परम्पराओं व रीति -रिवाजों की आड़ में बंधन के रूप में उसको जकड कर रखते हैं. इस सब के साथ शारीरिक स्वरुप में कोमल होने के कारण आदमी या घर के लोग उसपर हावी हो जाते हैं व उसपर घरेलू हिंसा करने लगते हैं. पति या उसके परिवारजन उसके साथ दुर्व्यवहार ,दुर्भावना,मारपीट,गली-गलौज,मानसिक शारीरिक प्रताड़ना ,यौन हिंसा अदि होती है.अक्सर भारतीय समाज ने औरतों की पवित्रता को घर समाज जाति की प्रतिष्टा का मोहरा बना लिया है. *उचित संरक्षण* सही है वह सम्मान के साथ चाहती भी है पर अनावश्यक परतंत्रता नहीं ,उसका हक़,उसके अवसर न छीने जाये. पुत्र की तरह उसका भी संपूर्ण मानसिक विकास+शिक्षा होना जरुरी है.
"आश्चर्यजनक रूप से घरेलू हिंसा में पारिवारिक महिलाओं की ही महिलाओं के प्रति भागीदारी बराबर रहती है".
पहिले अपने जन्म लिए घर में व ब्याह के बाद पति के घर में भी अक्सर घरेलू हिंसा द्रष्टिगत हो जाती है.
विशेष------- *सामाजिक हिंसा* में भी औरतों या बालिकाओं के साथ असामान्य व्यवहार ,बलात्कार,जबरदस्ती यौनिक छेड़ छाड व बल हिंसा देखने को मिल जाती है. यां उत्पीडन का मतलब है किसी भी औरत को बुरी नजर से घूरना,सीटी बजाना ,गंदे गाना,भद्दी अश्लील बातें, मजाक या जानबूझकर शारीरिक संपर्क की चेष्टा.महिलाओं के लिए आपत्तिजनक कहना ही नहीं गलत शब्दों में लिखना तक हिंसा कहलाता है.
*अलका मधुसूदन पटेल*
bahut hee sahee paribhasit aur ingit .poore saptak kee prateexa.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी! टेम्पलेट अच्छा है, लेकिन कृष्ण पृष्ट पर श्वेत शब्द आँखों पर जोर डाल रहे हैं। पृष्ट श्वेत या हल्के रंग का ठीक और शब्द गहरे रंग के।
ReplyDeleteरचना जी,
ReplyDeleteइस लेख को छापने के लिए बहुत धन्यवाद,
१) कभी कभी हिंसा के बाद झूठे कुतर्क दिए जाते हैं, "गुस्से में अपने ऊपर नियंत्रण न रहना" और उसके बाद माफ़ी मांगने जैसे दिखावे भी किये जाते हैं| मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि इस अवस्था के बाद हिंसा की स्थिति दुबारा लौटती है और पहले से अधिक तीव्रता से लौटती है |
२) समय के साथ, इस चक्र में हिंसा के वापिस लौटने की स्थिति का अंतर कम होता चला जाता है और फिर ये नियमित हो जाता है|
अतः अपने आस पडौस में, रिश्तेदारियों में ऐसी स्थितियों पर नजर रखें और इसे केवल घर का मामला न समझें | ये एक विकृत सामाजिक/कानूनन अपराध है जिसका एक सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है|
neeraj
ReplyDeletethe artcile is by alka madhusudan patel and you can see her profile psoted 2 days back . she is a master in her field so the entire credit of this psot is hers
महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा होती है, यह कटु सत्य है लेकिन इसके सुधार के लिए पुरुष-संस्कार की आवश्यकता है। पूर्व काल में ॠषि-मुनी तक स्वीकार करते थे कि पुरुष में इन्द्रिय निग्रह की आवश्यकता है इसलिए उनका सतत प्रयास रहता था कि पुरुष को संस्कारित करें। लेकिन आज संस्कारित करने के स्थान पर उन्हें विकृत बनाया जा रहा है। घर-घर में टीवी इतने अश्लील चित्र प्रस्तुत करता है कि अच्छे से अच्छे व्यक्ति का मन डोल जाता है और वह किसी आसान शिकार को खोजने निकल जाता है। परिणाम होता है परिवार की ही कोई कन्या या फिर पड़ोस के नन्हीं-मुन्नी उनका शिकार बन जाती हैं।
ReplyDeleteमहिला में ममता और पुरुष्ा में काम भाव की अधिकता होती है लेकिन वर्तमान में महिला के भी काम भाव को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है इसी कारण जहाँ पुरुषों के संस्कार की बात होनी चाहिए थी वहाँ अब गौण हो चली है और हिंसा बढ़ती ही जा रही है।
डिजाईन यूजर फ्रैंडली नहीं है आँखों को कष्ट देता है पहले वाला ही अच्छा था
ReplyDeleteअपने देश हिंदुस्तान की संस्कृति है कि परिवार में, समाज में, देश में जब भी कोई संकट या समस्या आती है तो वो किसी एक की नहीं *सबकी आवाज* बन जाती है ,*भावनाएँ* आपस में जुड़ जातीं हैं.
ReplyDelete"रचनाजी का ब्लॉग ,
मेरी लेखनी ,आप सब जागरूक पाठकों का सतत सहयोग".
सबका प्रयास व जिम्मेदारी है इन परिस्थितियों से बचकर हमारे देश की *महिला शक्ति* की जीने की राह सही व आसान हो. आपके अमूल्य विचारों का स्वागत है.
*अलका मधुसूदन पटेल*
dinesh ji and rupali
ReplyDeletethanks for your comment the template has been changed we hope it is ok now
regds
@gyaana
ReplyDeleteblog rachna ji ka nahin haen wo kewal sutrdhaar haen
रचनाजी मै केवल यही स्पष्ट करना चाह रही हूँ कि ये भावनाएं व विचार भी आप-हम सबके मन में एक साथ प्रस्फुटित हो रहे हैं. *नारी* के माध्यम से हम व्यक्त कर रहे हैं. समाज के सभी जागरूक लोग इस जिम्मेदारी को चिंतित होकर निभाने के लिए उत्सुक हैं. इतने ज्वलंत विषय के लिए कोई अलग नहीं है.
ReplyDeleteसभी स्नेही पाठकों को धन्यवाद ,
अलका मधुसूदन पटेल
यह भी एक तरह का आतंकवाद है! इसे समाप्त करना होगा, ताकि सभी अपने और दूसरों के जीवन में खुशियाँ भर सकें!
ReplyDeleteइस सामाजिक विकृति को सुधारने के लिए कहीं न कहीं से पहल तो होनी ही चाहिए..घरेलू हिंसा में पहली बार उठे हाथ को रोकने की हिम्मत औरत को खुद जुटानी होगी...
ReplyDeleteVery well said about domestic violence. Thanks to Mrs.Alaka Patel.Basic reason is our orthodox attitude towards women.we all have to work hard to change our society's mindset.
ReplyDelete* Dr.Pradip Awate,
Pune, Maharashtra.
9423337556.
ये कागजों में हम जो चर्चा कर रहे हैं , कभी न कभी तो लोगों कि मानसिकता को बदलने का काम करेगी. आज जो हम है, जहाँ हमने अपनी बेटियों को पहुंचा दिया है या वे अपने अदम्य परिश्रम और लगन से पहुँच रही हैं. उस ताबूत कि कील होंगी जिसमें नारी जाति के लिए सिर्फ अपेक्षाएं और आदेश जरी किये जाते थे. इच्छायों के बारे में कभी पूछा ही नहीं गया था.
ReplyDeleteये पहल कहीं न कहीं कमजोर कर रही है, अपने प्रति हो रहे भेदभाव को. ईश्वर इन प्रयासों को पूर्ण सफलता प्रदान करे.
मनुस्मृति कहती है:
ReplyDeleteThis sloka is from the third chapter fifty sixth verse of manu smriti.
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्र एतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। (3,56)
जहाँ महिलाओं का सम्मान होता है, वहीं देवता खुश होते हैं। लेकिन जहाँ महिलाओं का निरादर होता है, वहाँ कितने भी यज्ञ-अनुष्ठान कर लीजिये - कोई फायदा नहीं होगा।
Where the women are honoured there the gods are pleased. But where the women are not honoured there the sacred rites performed will not be fruitful.
यत्र – where , नार्यस्तु- women are ,पूज्यन्ते – honoured, तत्र – There, देवताः – gods are , रमन्ते – pleased, यत्र – where , एतास्तु – these (women are) , न – not, पूज्यन्ते – honoured, तत्र – There , सर्वाः क्रियाः – the actions , अफलाः – are not fruitful.
मूल स्रोत: http://samskrute.blogspot.com/2009/03/12_30.html
Hame nari pr ho rhe apradho ko rokna hoga....
ReplyDeleteor tbhi ho sakta h jb hm sb saath milkr chale...