हमारे देश में नारी के लिए "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता" यानि जहाँ नारी की पूजा की जाती है, वहां देवता रमते हैं. लेकिन वास्तव में कुछ ऐसा दिखता नज़र नहीं आता है. जहाँ एक ओर नारी के सम्मान की बात की जाती है, वही दूसरी ओर इसकी वास्तविकता की तस्वीर समाचार पत्रों और टीवी आदि के जरिये सबके सामने आये दिन देखने-सुनने को मिलती रहती है, जो एक बुरे सपने की तरह आकर गुजर जाती है, यह देख वास्तविकता नज़र आती है कि आज भी पुरुष दृष्टिकोण में नारी के प्रति कोई बहुत बड़ा मूलभूत परिवर्तन नहीं आ पाया है, जिसे देखकर बहुत दुःख होता है कि यह परिवर्तन कब होगा? इसी दिशा में नारी मंच के माध्यम से मैं आज एक सामाजिक बुराई की ओर सबका ध्यान आकृष्ट करना चाहती हूँ कि क्यों जहाँ एक ओर समाज औरत को सम्मान देने की बात करता है, वहीँ दूसरी और उसके लिए गालियों को बौछार सरेआम होते देख मूक बनी रहती है और गाली भी ऐसी कि न माँ दिखती है और न बहन! कितनी बिडम्बना है यह! क्या आज जगह-जगह इस बेशर्म की तरह उग रही अमरबेल को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए नारी-पुरुष मानसिकता से उठकर एकजुट होने के जरुरत नहीं है? क्या इस तरह की नारी संबोधनकारी गलियों को बर्दाश्त करना उचित होगा? यदि नहीं तो, आओ अपने-अपने स्तर से इस बुराई को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए आगे आयें और ऐसे लोगों को बता दें (जो अपनी माँ-बहन का सम्मान भूल चुकें है) कि हम नारी का अपमान हरगिज़ बर्दाश्त नहीं करेंगें.
-Kavita Rawat
कर्म करें लिखे हुए पे ना जाएँ.. लोग लिखते बहुत अच्छा हैं.. लेकिन मन में जाने क्या-क्या रखते हैं...
ReplyDeleteलिखा तो ये भी गया है- ''त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यम, देवो ना जानापि कः सा मनुष्यः.''
कई बार लिखने वाले इतनी गिरी बातें भी लिख जाते हैं ना जाने किस खुमार में..
इसलिए बेहतर है कि कम सुधरें .. समाज आप सुधर जायेगा..
जय हिंद...
और आपने गलती से लिख दिया है कि हम नारी का सम्मान कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे... उसे अपमान करें..
ReplyDeleteजय हिंद...
कि हम नारी का सम्मान हरगिज़ बर्दाश्त नहीं करेंगें. ......?
ReplyDeleteप्रभुत्वशाली वर्ग के अधीन जो रहे उनके विरुद्ध गालियों का आविष्कार हुआ,क्या यह सच नहीं कि सारी गालियाँ दलित, अल्पसंख्यक और नारी के खिलाफ हैं.सिर्फ गाली ही नहीं मुहावरे तक ऐसे हैं.इनकी जमकर मुखालिफत का समय अब आ गया है....शहरोज़
ReplyDeleteसमझ नहीं आता कि आदमी माँ, बहिन की गाली दूसरे को देता है या खुद को????
ReplyDeleteगाली देना आदमी ने अब इतना सहज रूप में अपने स्वभाव में ढाल लिया है जैसे वाक्य पूरा करने के लिए कोई सहायक क्रिया हो. इस गंदी आदत को बदलना ही होगा.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
स्त्री से जोड़कर गालियाँ देने कि प्रथा बहुत पहले से है. आज हम इतने शिक्षित और सभ्य हो चुके हैं तब भी बंद नहीं कर पाए या इस आदत को छोड़ पाए है. इसका शिक्षा और सभ्यता से कोई लेना देना नहीं. यह तो हमारे संस्कारों कि बात है कि हम किस वातावरण मेंपले हैं और परिवार व परिवेश का माहौल कैसा है?
ReplyDeleteजब लोगों में यह अहसास आ जायेगा कि माँ और बहन सिर्फ माँ और बहन होती है , उसको किसी व्यक्ति विशेष के दायरे में नहीं बांध सकते तो उस जगह अपनी माँ और बहन को सोच कर खुद ही रुक जाएगा. वैसे जो काम पुरुष करते हैं , यह आरोप बराबर लगता कि कि नारी भी तो ऐसा ही करने लगी हैं. और होता भी है लेकिन जहाँ तक मेरी इस उम्र तक मैंने किसी नारी के मुंह से ऐसी गलियां नहीं सुनीं है.
वैसे जब भी मैं औरो से ऐसी गाली सुनती हूँ तो मेरा खून खौल जाता है कि हम अब भी वहीँ हैं चाहे कुछ भी बन जाएँ या कहीं भी पहुँच जाएँ.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeletevicharottejak...kya iska pratikar purushparak galiyon se ho? naheen... galee hi ban ho... gli dena hi denevale kee kamjoree ka prateek hai. jab chahe anusar naheen kar/kara pate to gali dete hain.
ReplyDeletetrue 100%
ReplyDelete