आज अपने इस लेख के माध्यम से मैं एक नयी बहस करने जा रही हूँ. पिछले कुछ दिनों मैं अपनी दीदी के यहाँ रहकर आयी हूँ. दीदी की नौ साल की बेटी है. किशोरावस्था की ओर कदम बढ़ाती इस बच्ची की कुछ बातों को सुनकर आश्चर्य होता है कि कैसे बचपन से ही हम बच्चों के मन में जेंडर-भेद के बीज बो देते हैं. हाँलाकि हमारे परिवार में इस बात का ध्यान दिया जाता है, पर बच्चों को आस-पड़ोस की बातों से तो नहीं बचाया जा सकता.
हुआ यह कि हमें कहीं जाना था तो उसे दीदी ने एक ड्रेस पहनानी चाही इस पर बच्ची ने उसे इसलिये पहनने से मना कर दिया क्योंकि उसकी किसी दोस्त ने उससे कह दिया था कि यह ब्वायज़ की ड्रेस है. जब मैंने उसे समझाया कि यह एक कार्गो पैंट है जिसे लड़का-लड़की दोनों पहनते हैं तो वह मान गयी. इस छोटी सी बात ने मुझे सोचने के लिये मज़बूर कर दिया कि इस तरह की बातें बच्चों को सिखाना उचित है या नहीं? वैसे तो बच्चों को अपने पसंद की पोशाक चुनने का अधिकार होना चाहिये, परन्तु प्रश्न यह है कि इस चयन का आधार क्या हो? मेरे विचार से बच्चों को मौसम और आराम के अनुसार कपड़े पहनना सिखाना चाहिये न कि केवल फ़ैशन के आधार पर. मैंने यह भी देखा है कि आजकल छोटी लड़कियाँ "स्लीवलेस" पोशाक ही पहनना चाहती हैं. उन्हें यह बताना चाहिये कि शाम को बाहर खेलते समय छोटे कपड़े पहनने से उन्हें कीड़े और मच्छर काट सकते हैं, जिससे उनकी तबीयत ख़राब हो सकती है. इसके अतिरिक्त कम कपड़े पहनने से गिरने पर चोट भी लग सकती है. मैं यह मानती हूँ कि बच्चों को यह अहसास दिलाया जाना चाहिये कि वे लड़का हैं या लड़की, पर इसके आधार पर उनके साथ भिन्न-भिन्न ढँग से व्यवहार करना उचित नहीं है.
हम पता नहीं लिंग-भेद के प्रति इतने आग्रही क्यों होते हैं. पहले लड़कियों को सिखाया जाता था कि अपने शरीर को ढँककर रखो, पूरी बाँह के कपड़े पहनो. मुझे याद है कि जब मैंने सलवार-कुर्ता पहनना शुरू किया था तो बहुत दिनों तक पूरी बाँह के कुर्ते ही पहनती थी. आजकल लोग अपनी बेटियों को पूरी छूट देते हैं उनके मनपसंद कपड़े पहनने की. पर मानसिकता अब भी वही है. अब भी हम स्वास्थ्य और आराम की अपेक्षा चलन पर अधिक ध्यान देते हैं. यह सच है कि छोटी बच्चियाँ "क्यूट" पोशाकों में प्यारी लगती हैं, पर कहीं ऐसा न हो कि इसके चलते उनमें कोई कुंठा बैठ जाये.
ये मेरे विचार हैं, आपको क्या लगता है... ...??
we need to make our children human rather then groom them to be boys and girls and give an upper hand to boys because usually the body build of boys is physically stronger then girls .
ReplyDeleteits not just about clothes its about the differnce inbuilt in our thinking process where we start teaching our children that they are man and woman even from the tender age
लड़के लडकी /नारी पुरुष समान है ,हाँ अलग से हैं!
ReplyDeleteयह घोष वाक्य होना चाहिए हमारा !
आराधना जी ..... आपकी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी..... बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया ....बहुत ही सुंदर व बेहतरीन प्रस्तुति.....
ReplyDeleteladako aur ladakiyo ke pamnave koyee antar nahi hona chahiye jo jisaki ichha hai pahane
ReplyDeleteमैं भी सहमत हूँ आपसे....कपड़ों का चयन मौसम के अनोकूल होना चाहिए,न की फैशन के अनुकूल...चाहे लड़के हों या लड़कियां....
ReplyDeleteहाँ ,यहाँ एक और बात का भी ख़याल रखना चाहिए कि गर्मियों में लड़के जितने कम कपडे पहन सकते हैं,उतने कम लड़कियों को नहीं पहनना चाहिए...
वस्तुतः वस्त्र ऋतुओं से रक्षा करने लायक ही नहीं बल्कि बुरी नियत रखने वालों से रक्षा होने लायक भी होने चाहिए...
ranjana se sahmat. har jagah barabari ke sthan par suvidha, suraksha aur shaleenata ko adhik mahatve ho.
ReplyDelete