वह इक नारी है.... नही उस जैसी बहुत सी होती है या हम में से वह भी एक है।
खरा रंग पर नाक नक्श तीखे। रंग को मात देती थी उसकी सुंदरता ।थोड़ा हेाश संभालते ही मां बाप ने एक आदमी से फेरे नाम की क्रिया संपन्न कराकर कर्त्तव्य पूरा कर हल्के हुये। उसे केवल आदमी ही संबोधित करना ठीक होगा। क्योंकि उसका कोई वजूद तो था नही जो मिस्टर या श्रीमान कहा जाता।
कम उम्र में मातृत्व का भार देकर कमाने का कहकर एक दिन दिसावर चला गया। वापिस कोई खबर नही। वह रेाई खूब रोई । ईश्वर से मन्नतें मागी कि उसका पति आ जाये। उसके बिना उसका क्या होगा? वह तो जी ही नही पायेगी। पुरुष के बिना स्त्री का जीना मुहाल है। पर उससे क्या होता ? बच्चा बड़ा होने के लिये बाप का इंतजार नही कर रहा था । उसे रोटी चाहिये थी। वह आंखों में आंसू ले मजदूरी मे जुट पड़ी। कई छिछोरे आये
लालच दिया कि उसे भूल जा !वह भी तो भूल चुका है लेकिन उसे अपने भारतीय नारी होने पर गर्व था। जिंदगी मायूसी के साथ आशा में कट रही थी । तभी परमेश्वर प्रकट हुआ। वह फूली न समायी । बलैया ली ,कसम दी ,सौगंध ली और फिर एक बार मातृत्व दिया। उसे लगा यह संतान उसे बांध कर रख लेगी। पर........
जेा कमाकर लाया था दो चार महीने में खप गया। उसकी कमाई पर कुछ दिन खटिया तोड़ी । वह मनाती कि तुम आराम से रहो ।मैं कमाउंगी । पर मुझे छोड़कर मत जाना। लेकिन वह बिना कुछ कहे ही भाग छूटा । बंबई जाकर खबर दी कि काम ठीक है । कभी वापिस लौटूंगा। उसने अपनी किस्मत को कोसा। रो धोकर दिन बरस और जिंदगी गुजारने लगी।
रोटी कपड़ा मकान, और जैसे तैसे खुद केा बचाती हुई समय के साथ खुद भी बीत रही थी। सोचा कभी तो पति को सुध आयेगी अपनी संतानों की । जबकि वह जानती थी कि अब नही लौटेगा। लेकिन स्त्रियां अपने आपको भुलावा कितना देती है !गुरुत्वाकर्षण की बजाय स्त्रियों का खुद को आशा की सान्त्वना देना ही धरती को थामे हुये है।
उसे अपने सतीत्व पर पूरा भरोसा था। एक दिन उसका पति उसको जरुर समझेगा। उसकी तपस्या सफल होगी। और खुशियां आयेगी। बूढे बुजुर्गों ने समय की आहट ले ली थी इसीलिये उसे कहा कि दूसरा घर कर ले सुख पायेगी लेकिन वह ऐसे कैसे कर सकती है। पति चाहे कैसा भी हो उसका तो कुछ फर्ज है ना।
सचमुच वह कुछ वर्षों बाद लैाटा। पता चला वहीं शादी कर ली थी। बच्चे हुये पर वह औरत ही उसे छोड़ कर चली गई।
पति ने माफी मांगी ।वह चीखी चिल्लाई और आखिर उसके दिखाये सपनों में डूबन उतराने लगी ।अब यही रह कर कमाने लगा। पहले वाला दम नही रहा। स्वास्थ्य लगातार गिरने लगा। उसने अपनी तकदीर को कोसा कि अब ही तो उसके जीवन में सुख आया है वह भी ईश्वर से सहन नही हेा रहा । लेकिन वह तस्वीर का दूसरा रुख नही जानती थी। पति का यही रहना उसने अपने पतिव्रत धर्म का तेज माना था। उसकी तपस्या का फल जान मस्त थी।
पति एड्स की सौगात ले आया था।
बहुत दिनों बाद कल देखा उसे। बहुत बुरी हालत में थी। आंखों पर विश्वास न हुआ । तीस साल की थी पर पचास से ज्यादा की लग रही थी। बोलती सी आंखें गहरे काले केाटर में धंस कर अपने संघर्षाें का सिला मांग रही थी। चाम हड्डियों से चिपका अवशेष रह गया था। गंजियाया सिर और फटे कपड़े । हांफती सी स्ट्रेचर पर पड़ी थी।
पति की करतूतों का बोझ तुम पतिव्रता होकर भुगत रही हो। मैने कहा।
अचंभा यह कि समाज उसके चलन पर ही उंगली उठा रहा है। उस पति को किसी ने नही कोसा कि निर्दाेष को ये सजा क्यूं दी?
पहले क्यूं नही संभली तुम !!!
..........किरण राजपुरोहित नितिला
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteअचंभा यह कि समाज उसके चलन पर ही उंगली उठा रहा है। उस पति को किसी ने नही कोसा कि निर्दाेष को ये सजा क्यूं दी?...yahi to samaj ka durbhagya hai. Apni galatiyon ko Nari ke upar thopkar apna purushatv dikhata hai..shmae-shame !!
ReplyDeleteham sqab bolna churu karey apnae aas paas ki naariyonmae samajik chetna kaa aavahan karae yahii samaj badaelaga aur jarur badalaegaa
ReplyDeleteये नियति है हर उस भारतीय स्त्री के जो पतिव्रत को ही अपना सब कुछ मानती है. ये एक नहीं है. हर १०० घरों में ऐसी १० स्त्रियाँ हैं , जो पति को परमेश्वर मानकर उसके हर अत्याचार को सह रही है और बच्चों का मुंह देख कर समझौताकर रही है.
ReplyDeleteबाहर जाकर कमाने वाले कितने पति पत्नी के प्रति वफादार होते हैं? इस बात को नजर उठा कर देखें तो ये तमाम एड्स के रोगी ऐसे ही पति हैं जो कि बाहर से इस रोग को लेकर आते हैं . उनके बारे में और कुछ कहने का जरूरत नहीं है.
लेकिन सवाल इस बात का है कि सुबह का भूला अगर शाम को वापस आ जाता है तो पत्नी क्या यह सवाल कर सकती है कि पहले अपना एड्स टेस्ट करवाओ. कभी नहीं? लेकिन उचित यही है? इससे सिर्फ एक नहीं बल्कि पूरा का पूरा परिवार ही तहस नहस हो जाता है. बच्चों के लिए न माँ रही और न बाप. इन अनाथों का दोष है?
आप सब ही सोच कर बतलाइए कि क्या एड्स का टेस्ट जरूरी नहीं है और अगर हाँ तो इसको समाज और परिवार स्वीकार कर लेगा ????
मुझे लगता है , अब हम सभी को नींद से जाग जाना चाहिए ....जब पत्नी अर्धागिनी है तो पति अकेले कैसे इश्वर बने बैठा है ? ये समाज का वो हिस्सा है , जिसमें किसी परिवर्तन की उम्मीद एक मर्द से नहीं की जा सकती ...
ReplyDeleteनारी को दिये गये अच्छे संस्कार उसे ले डूबते हैं जब उसका साथी इस अच्छे व्यवहार के लायक ही न हो ।
ReplyDeletevicharpradhan post.
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