कहने को तो हम इक्कसवीं सदी में विचर रहे हैं। सूचना क्रांति के बाद किसी भी विषय पर पलक झपकते ढेरों सूचनाएं मिल जाती हैं, इसके बावज़ूद हमारे अंधविश्वासों में कोई कमी नहीं आयी है। अभी भी डायन के नाम पर महिलाओं की हत्या की जाती है, मानसिक रोगियों को उचित चिकित्सीय सहायता देने के स्थान पर उन पर भूत-प्रेत का साया बता कर ओझा–गुनियों के चक्कर लगाएं जाते हैं।
इस बार कानपुर यात्रा के दौरान मेरी मुलाकात एक ऐसे ही शख्स से हुई। ये पढ़े-लिखे सज्जन एक अच्छी कंपनी पर ऊँचे पद पर कार्यरत हैं, लेकिन अपने भाई की मानसिक स्थिति को लेकर परेशान थे। उनका मानना था कि किसी ने उनके भाई को कुछ करा दिया है, वे पहले ऐसे नहीं थे। वे शांत स्वभाव के और घर के सबसे अनुशासित सदस्य थे। पर पिछले कुछ समय से उनका व्यवहार बदल गया है। वे अपना अधिकांश समय घर पर बिताते है और घर के पिछवाड़े खाली पड़ी जमीन पर उन्होंने नीबू, बेर, करौंदे जैसे कँटीले वृक्षों का जंगल बना दिया है। जब कि हमारे यहां माना जाता है कि घर पर कँटीले वृक्ष उगाना शुभ नहीं होता। यही नहीं उन्होंने बरगद और पीपल जैसे वृक्ष न सिर्फ उगा रखे हैं बल्कि उनको बोंसाई स्वरूप भी दिया है। इस बात को लेकर उनका पिताजी से बहुत झगड़ा हुआ, नौबत मार-पीट तक पहुँच गई। उन्होंने घर के मेन गेट पर ताला लगा दिया ताकि घर को कोई भी सदस्य घर के बाहर न जा पाए। पता नहीं उनके शरीर में इतनी ताकत कहां से आ गई थी कि हम सब मिल कर उन अकेले को संभालने में असमर्थ थे। आप विश्वास नहीं करेंगी कि इतनी भयानक ठंड और कोहरे के दौरान वे करौंदे का शरबत पीकर रात में छत पर टहलते हैं। क्या आप इसे सामान्य इंसान की हरकत कहेंगी? यही नहीं उन्होंने घर के अंदर ड्रेस कोड लागू किया हुआ है जिसके तहत घर के सदस्य केवल लाल, नारंगी और नीले रंग के ही वस्त्र पहन सकते हैं। इसके अलावा कोई रंग पहनने पर उनका गुस्सा फट पड़ता है।
हमने उन्हें कई लोगों को दिखाया। किसी ने कहा कि साईं बाबा की भभूति खिलाओं फायदा होगा, हमने उन्हें भभूति खिलाई फायदा भी हुआ। पहले वे एक बार में तीन-चार लोगों का भोजन करते थे। भभूति खाने के बाद भोजन की मात्रा में कमी आई। लेकिन थोड़े दिन बाद उन्होंने भभूति खाने से यह कह कर इंकार कर दिया कि मां उन पर जादू-टोना कर रही है। ओझाओं का कहना कि उन पर एक से अधिक प्रेतों का साया है और ये खाना वे स्वयं नहीं खाते, वे प्रेत खा जाते हैं। बहुत परेशान हैं समझ नहीं आता क्या करें?
आप उन्हें किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते?, मैंने पूछा।
दिखाया था। डॉक्टर को भी दिखाया था और उसकी दवा से भाई साहब की उग्रता में भी कमी आई थी, लेकिन थोड़े समय बाद उन्होंने डॉक्टर के पास जाने से इंकार कर दिया। हमने उन्हें ले जाने की बहुत कोशिश की लेकिन वे नहीं गए तो नहीं गए। अब सिर पर सवार भूत उन्हें जाने दें तभी न वो जाएं, उन्होंने हताश स्वर में कहा।
हम लोगों के पास उनके लिए अपने भाई को डॉक्टर को दिखाने और उन्हें अस्पताल में भरती करवा देने के अतिरिक्त और कोई सुझाव नहीं था और उनके हाव-भाव स्पष्ट कह रहे थे कि यदि हमारे पास किसी तांत्रिक या ओझा का पता हो तो वो हम उन्हें दें। जो हमारे पास नहीं था अतः हम दोनों ही चुप हो गए।
दोस्तो, ये कोई मनगढंत कहानी नहीं है। यह एक कटु सत्य है जो दर्शाता है कि हमारे यहां मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कितनी जागरुकता है? हम अपने निकट संबंधी को भूत-प्रेत ग्रस्त होना तो सहजता से स्वीकार लेते है, पर उसे किसी मनोचिकित्सक के पास न ले जाने के हजारों बहाने ढूढ़ लेते हैं।
-प्रतिभा वाजपेयी
इस बार कानपुर यात्रा के दौरान मेरी मुलाकात एक ऐसे ही शख्स से हुई। ये पढ़े-लिखे सज्जन एक अच्छी कंपनी पर ऊँचे पद पर कार्यरत हैं, लेकिन अपने भाई की मानसिक स्थिति को लेकर परेशान थे। उनका मानना था कि किसी ने उनके भाई को कुछ करा दिया है, वे पहले ऐसे नहीं थे। वे शांत स्वभाव के और घर के सबसे अनुशासित सदस्य थे। पर पिछले कुछ समय से उनका व्यवहार बदल गया है। वे अपना अधिकांश समय घर पर बिताते है और घर के पिछवाड़े खाली पड़ी जमीन पर उन्होंने नीबू, बेर, करौंदे जैसे कँटीले वृक्षों का जंगल बना दिया है। जब कि हमारे यहां माना जाता है कि घर पर कँटीले वृक्ष उगाना शुभ नहीं होता। यही नहीं उन्होंने बरगद और पीपल जैसे वृक्ष न सिर्फ उगा रखे हैं बल्कि उनको बोंसाई स्वरूप भी दिया है। इस बात को लेकर उनका पिताजी से बहुत झगड़ा हुआ, नौबत मार-पीट तक पहुँच गई। उन्होंने घर के मेन गेट पर ताला लगा दिया ताकि घर को कोई भी सदस्य घर के बाहर न जा पाए। पता नहीं उनके शरीर में इतनी ताकत कहां से आ गई थी कि हम सब मिल कर उन अकेले को संभालने में असमर्थ थे। आप विश्वास नहीं करेंगी कि इतनी भयानक ठंड और कोहरे के दौरान वे करौंदे का शरबत पीकर रात में छत पर टहलते हैं। क्या आप इसे सामान्य इंसान की हरकत कहेंगी? यही नहीं उन्होंने घर के अंदर ड्रेस कोड लागू किया हुआ है जिसके तहत घर के सदस्य केवल लाल, नारंगी और नीले रंग के ही वस्त्र पहन सकते हैं। इसके अलावा कोई रंग पहनने पर उनका गुस्सा फट पड़ता है।
हमने उन्हें कई लोगों को दिखाया। किसी ने कहा कि साईं बाबा की भभूति खिलाओं फायदा होगा, हमने उन्हें भभूति खिलाई फायदा भी हुआ। पहले वे एक बार में तीन-चार लोगों का भोजन करते थे। भभूति खाने के बाद भोजन की मात्रा में कमी आई। लेकिन थोड़े दिन बाद उन्होंने भभूति खाने से यह कह कर इंकार कर दिया कि मां उन पर जादू-टोना कर रही है। ओझाओं का कहना कि उन पर एक से अधिक प्रेतों का साया है और ये खाना वे स्वयं नहीं खाते, वे प्रेत खा जाते हैं। बहुत परेशान हैं समझ नहीं आता क्या करें?
आप उन्हें किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते?, मैंने पूछा।
दिखाया था। डॉक्टर को भी दिखाया था और उसकी दवा से भाई साहब की उग्रता में भी कमी आई थी, लेकिन थोड़े समय बाद उन्होंने डॉक्टर के पास जाने से इंकार कर दिया। हमने उन्हें ले जाने की बहुत कोशिश की लेकिन वे नहीं गए तो नहीं गए। अब सिर पर सवार भूत उन्हें जाने दें तभी न वो जाएं, उन्होंने हताश स्वर में कहा।
हम लोगों के पास उनके लिए अपने भाई को डॉक्टर को दिखाने और उन्हें अस्पताल में भरती करवा देने के अतिरिक्त और कोई सुझाव नहीं था और उनके हाव-भाव स्पष्ट कह रहे थे कि यदि हमारे पास किसी तांत्रिक या ओझा का पता हो तो वो हम उन्हें दें। जो हमारे पास नहीं था अतः हम दोनों ही चुप हो गए।
दोस्तो, ये कोई मनगढंत कहानी नहीं है। यह एक कटु सत्य है जो दर्शाता है कि हमारे यहां मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कितनी जागरुकता है? हम अपने निकट संबंधी को भूत-प्रेत ग्रस्त होना तो सहजता से स्वीकार लेते है, पर उसे किसी मनोचिकित्सक के पास न ले जाने के हजारों बहाने ढूढ़ लेते हैं।
-प्रतिभा वाजपेयी
सच में, बहुत आश्चर्य होता है कि इतने पढ़े-लिखे लोग भी इस प्रकार की अतार्किक बातें करते हैं.
ReplyDeletenice
ReplyDeleteहालांकि भूतों से मेरा कभी कहीं वास्ता नहीं पड़ा मगर दिली तमन्ना जरूर है उनसे मिलने की।
ReplyDeleteइस दुनिया में मैं भूतों को सबसे समझदार प्राणी मानता हूं, हम इंसानों से कहीं ज्यादा। दरअसल भूत कभी डराते नहीं। हम हमारे भय से ही भूतों से डरे-भागे रहते हैं। जितना इंसान खुद के बारे में नहीं जानता उससे कहीं अधिक भूत उसके बारे में जानते हैं। क्योंकि हर इंसान के अंदर एक भूत रहता-बसता।
जरा सोचकर देखिए जब भूत-भूत आपस में मिलकर हम इंसानों की खुराफातों के बारे में बातें करते होंगे तो कैसा लगता होगा उन्हें? शायद यही कहते होंगे कि अरे ये इंसान तो हमसे भी ज्यादा भूतिया हैं।
इन परालौकिक बातों का हमारे पास कोई प्रमाण नहीं होता है लेकिन इनके अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता है. आत्मा कभी नहीं मरती उसका अस्तित्व मृत्यु के बाद भी रहता है. अकाल मृत्यु ग्रसित व्यक्ति की आत्मा कभी-कभी इस योनि को प्राप्त करती है. इन सज्जन के साथ क्या समस्या है यह तो मैं नहीं जानती लेकिन भुक्तभोगी लोगों के साथ हुए वाकयों से इस बात को नाकारा भी नहीं जा सकता है.
ReplyDeleteहाँ उसका समाधान कहीं न कहीं खोजना पड़ता है. जब इन चीजों से सामना होता है तो व्यक्ति पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ इसे स्वीकार कर लेता है. डाक्टर भी इसके आगे हथियार डाल देते हैं. हाँ मनोरोगों की भी बहुत से श्रेणियां होती हैं - मनोचिकित्सक का परामर्श भी इस दिशा में लाभ प्रदान कर सकता है.
जब तक भगवान का अस्तित्व है तब तक भूतों का भी अस्तित्व रहेगा. ये कैसे संभव है कि एक ना दिखने वाले की पूजा की जाए और दूसरे ना दिखने वाले को नकारा जाये?
ReplyDeleteये बात और है कि आदमी स्वार्थ में कभी औरत में डायन का आरोपण कर देता है तो कभी मनोचिकित्सक से बचने के लिए इधर-उधर भटकता रहता है.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
Padhe-likhe log jyada dharm-bheeru hote hain. we dusron ko updesh jhadte hain, par jab apne upa ati hai to sare updesh fail ho jate hain...wonderful Post !!
ReplyDelete_____________________
शब्द-शिखर पर इस बार काला-पानी कहे जाने वाले "सेलुलर जेल" की यात्रा करें और अपने भावों से परिचित भी कराएँ.