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"अतः जरूरी है की बाजारवाद के इस बढ़ते प्रभाव जिसमे आंतरिक गुणों की जगह बाह्य सुन्दरता जैसे गुणों को तरजीह दी जा रही है उसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए । और योग्य और गुणवान लोगों को प्रोत्साहित कर एक स्वस्थ्य समाज के विकास की कामना की जानी चाहिए । " आज एक ब्लॉग पर ये पढ़ते हुए मन किया की पूछू आप सब से की ऊपर दिये गए चित्रों से जो दिख रहा हैं वो क्या हैं ? कब तक हम ओछी मानसिकता का सेहरा बाजारवाद के सर पर पहनाते रहेगे ।
"अतः जरूरी है की बाजारवाद के इस बढ़ते प्रभाव जिसमे आंतरिक गुणों की जगह बाह्य सुन्दरता जैसे गुणों को तरजीह दी जा रही है उसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए । और योग्य और गुणवान लोगों को प्रोत्साहित कर एक स्वस्थ्य समाज के विकास की कामना की जानी चाहिए । " आज एक ब्लॉग पर ये पढ़ते हुए मन किया की पूछू आप सब से की ऊपर दिये गए चित्रों से जो दिख रहा हैं वो क्या हैं ? कब तक हम ओछी मानसिकता का सेहरा बाजारवाद के सर पर पहनाते रहेगे ।
आप की "पारखी नजर " सुन्दरता को खोज ही लेती हैं वहाँ भी जहाँ महिला इस से ऊपर उठ कर काम कर रही हैं । आप महिला मे केवल और केवल शारीरिक सुन्दरता ही देखते हैं , आप बडे से बड़े ओहदे पर क्यों ना हो पर रहते कामुक पुरूष ही हैं । गुन आप को चाहीये ही नहीं सो गुन की बात ही क्यों की जाती हैं
बाजार चाहता है कि औरत उसका हिस्सा बने ताकि उसकी दुकान चलती-संवरती रहे।
ReplyDeletekarobaar krne ke liye bhi oorat jaruri hai.......???
ReplyDeleteस्त्री और उस की सुंदरता पुरुष की कमजोरी है। बाजार इस को भुना रहा है। पुरुष उन की मानने को तैयार नहीं।
ReplyDeleteदेखिये, अगर आप बुश के चित्रों के लिए चिंतित हैं तो मैं इन्हें अजीब नहीं मानता. भारतीय और अमेरिकी परिवेश में बहुत अन्तर है. वहां का समाज और मानसिकता हमसे अलग है. आप इसे भारतीय दृष्टिकोण से मत देखिये और इन्हें लेकर कोई मोरल जजमेंट मत पास कीजिये.
ReplyDeleteवैसे अब ऐसे दृश्य हमारे यहाँ भी यंग जनरेशन में आम दिख जाते हैं, और केवल पुरुषों की ओर से ही नहीं. नयी पीढी की सोच अलग है, काफी खुली हुई है और मैं इसमें कोई बुराई भी नहीं देखता.
ये बात भी स्वीकारने लायक नहीं है कि सुन्दरता के सामने गुणों की कद्र नहीं होती. तमाम महिलाओं का उदहारण दिया जा सकता है जिन्होंने अपने काम के दम पर अपनी पहचान बनाई और इज्जत हासिल की है.
अगर प्रेजिडेंट बुश के सामने महिला के स्थान पर कोई पुरूष अधिकारी होता, तो आप क्या कहतीं रचना जी !
ReplyDeleteतस्वीरें शानदार हैं और कार्यस्थल पर स्त्री-पुरुष समानता को दर्शाती हैं। ख़ासतौर पर मसाज देते बुश।
ReplyDeleteइसमें न तो बाज़ार है, न स्त्री-पुरुष के संबंधों वाला नज़रिया। हर चीज को औरत-मर्द के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।
@ghoat buster ji
ReplyDeleteये चित्र बुश के उस समय के हैं जब वो एक सार्वजनिक मंच पर एक जर्मन महिला के साथ मिसबिहेव कर रहे थे . जर्मन महिला ने इस पर कडी आपति दर्ज की थी और बाद मे बुश ने माफ़ी भी मांगी थी .किसी भी समाज मे मानसिकता एक सी है पुरूष की स्त्री के प्रति . केवल और केवल एक देह आकृति . ये महिला एक बहुत उचे ओहदे पर हैं जर्मनी मे बुश के साथ बारबरी से डायस पर बैठी हैं पर बुश जी को मसाज करनी थी सो उन्होने की . और दुसरा चित्र जरदारी जी का जब वो इस अमेरिकी महिला को "आप बहुत जोर्जेओउस हैं "कह रहे हैं .
आश्चर्य हैं आप को ये सन्दर्भ नहीं पता . वरना आप इसमे देशज और विदेशी मानसिकता की बात का प्रश्न और मोरल का प्रश्न नहीं उठाते .
सतीश जी आप विषय से हटना चाहते या विषय को देखना नहीं चाहते . आप ख़ुद ही अपने प्रश्न का उत्तर दे दे तो और लोग भी समझ सके की आप वास्तव मे क्या कह रहे हैं .
ReplyDelete@varsha
ReplyDeletekripaa kar jaan lae ki yae chitr kisi samaanta ko nahin darsha rahey haen , aaur ghostbuster ji ko maene jo sandarb diya haen please ek baar us sandarbh ko jarur daekhae aur dobara bhi kament karey
मैं आप से पूरी तरह सहमत हूँ, ओरत को इस्तेमाल किया जाता है, जगह चाहे कोई भी हो, मानसिकता वही रहती है...रहा सवाल बुश या ज़रदारी का तो इन लोगों के किरदार से और अपेक्षा ही क्या की जासकती है...
ReplyDeleteबना दिया बाज़ार राष्ट्र को, भूल गए अपना इतिहास. सब लगे हैं बाज़ार में ख़ुद को और अपने फायदे के लिए दूसरों को भुनाने में.
ReplyDelete@आप बडे से बड़े ओहदे पर क्यों ना हो पर रहते कामुक पुरूष ही हैं.
सब पुरूष ऐसे नहीं हैं.
स्त्री और उस की सुंदरता पुरुष की कमजोरी है। बाजार इस को भुना रहा है। पुरुष उन की मानने को तैयार नहीं।
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