क्या बतायेगे वो कौन सी मानसिकता होती हैं
१. जब एक नाबालिक बच्ची का बलात्कार होता हैं ??
२ जब एक NUN का बलात्कार होता हैं
३. जब एक ५८ साल की विदेशी महिला का बलात्कार होता हैं जैसी ही वो एअरपोर्ट पर टैक्सी लेती हैं
अब ये कह कर रास्ते ना बदले और डिस्कशन को ख़तम ना करे की ये हादसे हैं .
जवाब दे की कहा थी वो अध् नंगी . तीनो एक्साम्प्ले के लिंक भी दे सकती हूँ
ये जो पुरूष की मानसिकता हैं की अपनी कमजोरी को वो स्त्री पर थोपता हैं हम सब उस पर चर्चा करना चाहते हैं ।
उस पर ये कहना की जवान पुरूष स्त्री को देख कर अपना आपा खो देता हें और इस लिये स्त्री को अपने पूरे शरीर को ढांक कर रखना होगा कितना सही हैं ??
या ये कहना की पुरूष और स्त्री मे biological difference का परिणाम हैं बलात्कार सो स्त्री की नैतिक ज़िम्मेदारी हैं की वो अपने को पुरूष की कामुक नज़रो से बचाए ??
पुरूष की नैतिक ज़िम्मेदारी क्या हैं , इस पर क्यों नहीं डिस्कशन होता ??
क्या क्या पुरूष करे की अपनी इन्दिर्यों पर उसका कंट्रोल बढे इस पर क्यूँ नहीं बात होती ??
क्यों हर डिस्कशन का दायरा केवल नारी को नैतिक मूल्य समझाने मे ख़तम होता हैं ।
जब हिंदू सनातन धरम को मानने वालो के घरो मे पूजा होती हैं तो एक रजस्वला स्त्री को पूजा इत्यादि मे नहीं भाग लेने देते लेकिन वही हिंदू सिख समाज मे गुरु ग्रन्थ साहिब के पाठ के समय एसी कोई दुविधा नहीं होती क्युकी वहाँ स्त्री पुरूष की समानता को माना जाता हैं । आप से भी निवेदन हैं की बात समानता की करे उस डिस्कशन को करे जिस को करने से आप सब हमेशा बचते हैं . नारी के शरीर और कपड़ो से ऊपर उठ कर बात हो .
अध् नंगी कह कर आप अपनी गलतियों पर "परदा " डालते हैं और बार बार "एक बीच का रास्ता निकले " की गुहार लगाते हैं पर कभी अपनी कमियों पर और उनको दूर करने का कोई हल नहीं बताते हैं ??
कब तक "भारतीये परम्परा " की दुहाई दे कर आप सब अपनी रुढिवादी सोच से समाज मे फैली गंदगी को और बढाते रहेगे । कब आप जागेगे और निर्माण करना चाहेगे एक स्वस्थ समाज का जहाँ आप की गलती के लिये नारी जिम्मेदार न हो । जवाब दे , विचार दे या ना दे पर कोई हल जरुर सोचे अपनी कमियों को दूर करने का और उसको अपने बेटो को जरुर बताये ताकि आने वाले समय मे आप के बेटे वो गलती ना करे जो आप से जाने अनजाने हो रही हैं ।
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
September 07, 2008
पुरूष की नैतिक ज़िम्मेदारी क्या हैं , इस पर क्यों नहीं डिस्कशन होता ??
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
copyright
All post are covered under copy right law . Any one who wants to use the content has to take permission of the author before reproducing the post in full or part in blog medium or print medium .Indian Copyright Rules
Popular Posts
-
आज मैं आप सभी को जिस विषय में बताने जा रही हूँ उस विषय पर बात करना भारतीय परंपरा में कोई उचित नहीं समझता क्योंकि मनु के अनुसार कन्या एक बा...
-
नारी सशक्तिकरण का मतलब नारी को सशक्त करना नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट का मतलब फेमिनिस्म भी नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या ...
-
Women empowerment in India is a challenging task as we need to acknowledge the fact that gender based discrimination is a deep rooted s...
-
लीजिये आप कहेगे ये क्या बात हुई ??? बहू के क़ानूनी अधिकार तो ससुराल मे उसके पति के अधिकार के नीचे आ ही गए , यानी बेटे के क़ानूनी अधिकार हैं...
-
भारतीय समाज की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार बेटी विदा होकर पति के घर ही जाती है. उसके माँ बाप उसके लालन प...
-
आईये आप को मिलवाए कुछ अविवाहित महिलाओ से जो तीस के ऊपर हैं { अब सुखी - दुखी , खुश , ना खुश की परिभाषा तो सब के लिये अलग अलग होती हैं } और अप...
-
Field Name Year (Muslim) Ruler of India Razia Sultana (1236-1240) Advocate Cornelia Sorabji (1894) Ambassador Vijayalakshmi Pa...
-
नारी ब्लॉग सक्रियता ५ अप्रैल २००८ - से अब तक पढ़ा गया १०७५६४ फोलोवर ४२५ सदस्य ६० ब्लॉग पढ़ रही थी एक ब्लॉग पर एक पोस्ट देखी ज...
-
वैदिक काल से अब तक नारी की यात्रा .. जब कुछ समय पहले मैंने वेदों को पढ़ना शुरू किया तो ऋग्वेद में यह पढ़ा की वैदिक काल में नारियां बहुत विदु...
-
प्रश्न : -- नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट {woman empowerment } का क्या मतलब हैं ?? "नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट " ...
उचित प्रश्न हैं, उठने चाहिएँ.
ReplyDeleteइन सबकी भर्त्सना करनेवाले पुरुषों को अपने भीतर झॉंककर देखना होगा और समाज में ऐसे कृत्यों कें लिए कड़े कानून बनाने होगें। सच साबित होने पर उन्हें नंगा करके फॉंसी दी जाए ताकी उसे अहसास हो कि एक स्त्री के कपड़े उतरते हैं तो वे किस पीड़ा से गुजरती है। माना ये व्यावहारिक नहीं है और सच साबित करने की प्रक्रिया भी बड़ी लंबी है मगर मेरा मानना है कि लातों के भूत कानून के जरिए ही लतियाये जा सकते है।
ReplyDeleteकुछ देर पहले कविता जी का पोस्ट पढ़ा-बलात्कार की साइकोलॉजी - यह एक मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा है। इस पोस्ट में कुछ बढ़िया सुझाव देखने को मिले। (यहॉं मैं लिक लगा नहीं पाया।)
ReplyDeleteuchit parashn hai logon ki soch ko is taraf le jana chahiye
ReplyDeleteaur iske khilaaf aawaj uthana zaruri hai
बात सही है, नैतिकता की बात सिर्फ नारी पर नहीं थोपी जा सकती। कहीं भी अगर कोई बात उठती है तो वह सिर्फ नारी पर खत्म नहीं होनी चाहिए। सवाल का जवाब पूरा तभी होगा जब पुरुष और महिलाओं पर बराबर का नैतिकता का दबाव बने।
ReplyDeleteसही सवाल उठाए गए हैं...परिवार और समाज में अक्सर बेटों के माता पिता को सुनना पड़ता है कि उन्हें किस बात की चिंता,बेटी जो नहीं है लेकिन शायद यहीं वे लोग भूल कर जाते हैं...मेरे विचार में बेटों के माता-पिता पर दवाब ज़्यादा होता है कि बेटों को अच्छे सँस्कार कैसे दिए जाएँ जो माँ के साथ साथ नारी के हर रिश्ते को आदर सम्मान दे पाएँ... खासकर माँ होने के नाते मैं समझती हूँ कि बेटों को सही दिशा दिखाने का दायित्त्व 75% अगर मेरा है तो 25% पिता की भूमिका भी बहुत अहम है.
ReplyDeleteपुरूष की नैतिक ज़िम्मेदारी पर भी डिस्कशन होना चाहिए.
ReplyDeleteपुरूष द्वारा नारी पर बलात्कार इस धरा का सबसे घ्रणित अपराध है. इस की कोई माफ़ी नहीं होनी चाहिए.
भारतीय परम्परा समाज मे गंदगी नहीं फैलाती, और न ही भारतीय परम्परा रुढिवादी है. भारतीय परम्परा से ज्यादा उदार परम्परा पूरी दुनिया में नहीं है. कैसे भी रुढिवादी सोच से समाज मे गंदगी फैलाने वाले लोग ग़लत है, उनकी निंदा की जानी चाहिए. कोई भी समाज अपने आप में स्वस्थ या अस्वस्थ नहीं होता. उसे स्वस्थ या अस्वस्थ उस में रहने वाले बनाते हैं. उन का सोच स्वस्थ होगा तो समाज स्वस्थ होगा. समाज को अस्वस्थ कह कर उस की निंदा करने से अस्वस्थ सोच वाले लोग साफ़ बच जाते हैं. निंदा इन लोगों की होनी चाहिए, समाज की नहीं.
आप के द्वारा सुझाए प्रश्नों पर जरूर विचार होना चाहिए। माँ-बाप की जिम्मेदारी है कि वे बेटों और बेटियों को समान धरातल पर देखें और उचित प्रकार से सुसंस्कृत बनाएँ। पर इस और कितने माँ-बाप ध्यान दे रहे हैं। पहले जितने लोग इस पर ध्यान देते थे,उन की संख्या भी निरंतर घट रही है।
ReplyDeleteबहुत ज़रूरी सवाल सामने रखा है आपने ।
ReplyDeletewhatever be the reasons or whoever be the cause behind it BUT IT IS TRUE THAT RAPE IS A CURSE AND BARBARIC BLOT ON HUMANITY.
ReplyDeletemales say females are culprit and females say males are but we all must act to curb this meanace with all might.
one of the reason behind is that we discuss isolated cases. as a whole it is very shamefull that we didnt know or think on child psychology. has anybody ever enquired that which type of books are being read by the younger generation? cheap and vulgar books are being sold in every corner of cities which describe sexual acts in such a language which corrupts the minds.
obsene C D are easily available showing every details of sexual activities which pollutes the immature mind of the child very deeply. music videos, ADs and films represent which type of intimate scenes?
anybody ever thought to control these items to reach younger generations?
has anybody ever done any research on the EFFECT of THESE ITEMS on IMMATURE MINDS?
it is very unfortunate that there is nobody either government or leaders or NGOs or social reformists or child psychologists or anybody who think in this direction?
the covering of female body is the secondary thing.
FIRST OF ALL WE HAVE TO KEEP THE MIND OF YOUNGER GENERATIONS FREE AND AWAY FROM THESE INDECENT, OBSCENE, VULGAR BOOKS, FILMS, ADVERTISEMENTS so that and only then they become more balanced and free from psychological disorders and the society will be more human and happy.
मीनाक्षी जी से बहुत हद तक हम सहमत है ।
ReplyDelete