छवि , कितना महात्म है इस छवि का की हम ब्लॉग लेखन मे भी अपनी छवि बनाए रखना चाहते हैं । हिन्दी ब्लॉग लेखन मे ब्लॉगर प्रोफाइल देखा जाए तो ७५% से ज्यादा ब्लॉगर ५० वर्ष के आयु के होंगे । इस मे ९०% विवाहित हैं और उनके बच्चे इस समय विवाह योग्य हैं ।
वर्ग १
अब इनमे जो महिला हैं और एक विवाह योग्य पुत्री की माँ हैं वो किसी भी ऐसी पोस्ट पर कमेन्ट नहीं करती जहाँ लड़किया की समानता की बात को पुरजोर तरीके से कहा जाता हैं या जहाँ किसी महिला पर कमेन्ट होता हैं क्युकी उन्हे लगता हैं की ऐसा करने से उनकी छवि के ऐसी माँ के रूप मे उभरेगी जो अपनी पुत्री को ससुराल भेजने से पहले ही "बराबरी " की बात के लिये तैयार कर रही हैं , यानी ब्लोगिंग समाज मे अगर कोई ऐसा परिवार हो सकता हैं जहाँ उनकी पुत्री का विवाह हो सकता हो तो उनकी बातो से नहीं होगा यानी उनकी छवि अगर सही नहीं होगी तो उनकी पुत्री की छवि भी बिगड़ जायेगी फिर कौन इस समाज मे उसका हाथ थामेगा । सो अभी समय नहीं हैं की वो अपनी मन की बात कहे , कुछ ग़लत कही लिखा जा रहा हैं , लिखने दो हम नहीं कमेन्ट करेगे हमे अपनी बेटी ब्याहनी हैं ।
वर्ग २
अब इनमे जो महिला हैं और जिनके विवाह योग्य पुत्र हैं वो भी अपनी छवि को लेकर बहुत सजग हैं । भाई बेटा ब्याहना हैं अगर ज्यादा ये लिखेगी की बहु मे क्या क्या होना चाहिये या ये की बेटियों के माता पिता को उन्हे क्या सिखाना चाहिए तो कही एसा ना हो की लोग समझे की बड़ी "कड़क " सास साबित होगी । या कही किसी ब्लॉग पर किसी महिला के लिये अपशब्द बोले जा रहे हो तो वो बिल्कुल ही चुप रहती हैं वरना छवि बिगड़ जायेगी लोग सोचेगे की ये तो हमेशा झंडा लिये रहती हैं इनके घर मे बेटी दे कर अपनी बेटी की जिन्दगी कौन ख़राब करे ।
वर्ग ३
अब इनमे जो पुरूष हैं और ५० की आयु को पार कर चुके हैं और विवाह योग्य पुत्री के पिता हैं बार बार ऐसे आलेख लिखेगे जिसमे ये बताया जाता हैं की वो कितनी अच्छे संस्कार दे रहे हैं अपनी पुत्री को ताकि सबको लगे की जब पिता इतना संस्कारी हैं तो बेटी कितनी संस्कारी होगी । सो छवि बन गयी संस्कारी पिता की संस्कारी पुत्री ।
वर्ग ४
अब इनमे जो पुरूष हैं और ५० की आयु को पार कर चुके हैं और विवाह योग्य पुत्र के पिता हैं उनको हर ब्लॉग लिखती महिला फेमिनिस्ट लगती हैं और उनका डर की ऐसी ही कोई उनके घर आगई तो क्या होगा ?? अब उन सब को तो यही बताया गया हैं की औरत का मतलब जो घर मे रहे और काम करे , ये क्या ब्लॉग लिखने लगी ।
यानी हिन्दी ब्लॉगर समाज भारतीये समाज का आईना बन गया हैं जहाँ लोग ब्लॉग्गिंग को नहीं अपनी छवि को ज्यादा महत्व देते हैं । यहाँ भी आप उसी रुढिवादी सोच से ग्रसित लगते हैं जो बाहर हैं । यहाँ भी आप वही बोलना चाहते हैं जो आप को लगता हैं की समाज मे होना चाहिये । लेकिन अगर कोई महिला ये लिख दे की समाज मे ये होना चाहिये तो आप को लगता हैं की महिला लेखन पुरूष विरोधी हैं । अगर आप को अधिकार हैं अपनी बात कहने का तो हमे क्यं नहीं हैं ??
हिन्दी ब्लोगिंग समाज का एक वर्ग निरंतर इस बात को लिखता हैं की जो भी महिला ब्लॉग लेखन मे नारी सशक्तिकरण की , नारी समानता की और नारी के प्रति समाज की रुढिवादी सोच की बात करती हैं वो पूर्वाग्रह या किसी व्यक्तिगत घटना से ग्रसित हैं ।
क्या ये जरुरी हैं की किसी अंधे और गूंगे की पीडा को समझने के लिये हमे अंधे बनना होंगा । क्या हम अपनी संवेदना को इतना नहींजगा सकते की कुछ समय उनके साथ व्यतीत कर के उनके लिये कुछ पत्र इत्यादि लिख कर हम उनकी निशब्द शब्दों मे एक गूंज सुन सके ।
ब्लोगिंग का जो वर्ग ये मानता हैं की महिला लेखन इसलिये तीखा है की हम सब को हमारे माँ बाप ने संस्कार नहीं दिये हैं या हमे पुरुषों के ख़िलाफ़ भड़काया हैं उन सब को "vicious circle " के बारे मे जरुर जानना चाहिये .
नारी पुरूष की समानता की बात करने से एक बात बिल्कुल साफ़ तरीके से उभर कर सामने आती हैं की बच्चो को संस्कार देने का दाइत्व आज भी माँ का ही समझा जाता हैं पर
आज की पीढी उसकी रुढिवादी सोच और कुंठा , उसका नारी के बदले रूप से आंतकित होना , उसका बार बार उन महिला की तारीफ़ करना जो पारंपरिक छवि मे ढली हैं और उन महिला पर निरंतर व्यक्तिगत आक्षेप करना जो अपनी पारंपरिक छवि की चिंता नहीं करती , २- ६० वर्ष की महिला का यौन शोषण करना , केवल अपनी बहिन और अपनी बेटी तक अपने संस्कारो को सुशील रखना ......
अगर ये सब माँ की संस्कारी शिक्षा का परिणाम हैं तो मेरी सब पिताओं से प्रार्थना हैं की समय रहते चेत जाए और नारी को दिये गए इस " अभूतपूर्व " अधिकार को वापस ले ले और अपने बच्चो के ख़ुद पढाये , संस्कार दे ताकि आगे आने वाली पीढी आप की सोच मे ढली हो ।
बढ़िया है!
ReplyDeleteअब पिता सशक्तिकरण/ समानता और पिता के प्रति सोच पर भी चर्चा की जाने लगी है।
लिखते रहें, आपकी सोच बहुतेरों को बदल देगी।
रचना जी मैं तीसरी और चौथी दोनों श्रेणियों में आता हूँ। फिर भी वैसा नहीं करता जैसा आप ने लिखा है। क्या मेरी संतानों को उस सब का शिकार होना पड़ेगा जैसा आप ने लिखा है?
ReplyDeleteयदि यह सही है तो फिर मुझे अपने विचारों का समर्पण कर देना चाहिए और घोंघे के खोल में छुप जाना चाहिए।
रचना जी ऐसा नहीं है। चाहे कम मात्रा में ही सही समाज बदल रहा है। लोग बातों को समझते हैं। चाहे ऐसे लोग कम हों लेकिन हैं। तलाश करने पर जरूर मिलेंगे। मेरे बेटे बेटी अविवाहित नहीं रहने वाले।
रचना जी !
ReplyDeleteद्विवेदी जी की ही तरह मैं भी तीसरी और चौथी दोनों श्रेणियों में आता हूँ , और जैसा आप सोचती हैं वैसा बिल्कुल नही हूँ ! यकीन करें यह कोरी वाहवाही के लिए नही लिख रहा ! फैसला लें अपने विचारों पर ....
http://sandoftheeye.blogspot.com/2008/09/blog-post_08.html
ReplyDeleteअच्छा ये भी होगा कि बेटी और बहुओं को ब्लॉग लिखने के लिए प्रोत्साहित करें।
ReplyDeleteआती तो मैं वर्ग 2 में हूँ लेकिन आप की बात से असहमत हूँ। पहले तो ये बताइए कि कितने लोग ये उम्मीद लगाये बैठें है कि उन्हें अपने भावी बहू या दामाद इस ब्लोग की दुनिया से मिलने वाले हैं। और अगर ऐसी कोई उम्मीद नहीं लगा सकते तो खुल के अपनी बात कहने में क्युं डरेग़ें। और वास्तविक दुनिया के कितने हमारे जान पहचान वाले हमारा ब्लोग पढ़ते हैं या जहां हम लिख आते हैं वहां पढ़ते हैं। मेरी वास्तविक दुनिया का तो कोई भी मित्र या नातेदार ये भी नहीं जानता कि हम ब्लोग लिखते हैं पढ़ना तो दूर की बात है। तब डर काहे का, आप का ऐसा सोचना सही नहीं लगता
ReplyDeleteमैं मूरख - वर्ग 3-4 में पहुँचने की लालसा वाला
ReplyDeleteवर्ग 1 से अभी तक कोई नहीं!?
चलिये, ब्लॉग समाज वाले नहीं करेंगे शादी अपने बच्चों की इस समाज में।
लेकिन हमारे वास्तविकस्थल, कार्यस्थल, निवासस्थल, पहचानस्थल, सोसायटीस्थल, बाज़ारस्थल, पार्टीस्थल, आभासस्थल, वार्तास्थल, रिश्तेदारीस्थल के भी अपने अपने निर्मित समाज हैं। कहाँ-कहाँ संस्कार और अधिकार का बोझ उठाने-रखने का ख्याल करता है मानव।
फिर इस ब्लॉगस्थल पर भी ख्याल करे तो क्या हर्ज है?
वैसे आप कौन से वर्ग में हैं?
वर्ग पहला ....यह आपने अपने विचार लिखे हैं शायद... ऐसा कुछ नही हैं कि लड़की को ब्याहना है तो कहीं इस तरह की पोस्ट पर कमेंट्स नहीं करते ..आज कल सब बहुत समझदार हैं ..कैसे किसको जीना है वह खूब जानते हैं ...
ReplyDeleteमैं उस वर्ग से आता हूँ जिनके बच्चों का विवाह हो चुका है. मेरे परिवार में सबको अपनी इच्छा से जीवन जीने का अधिकार है. मेरा विश्वास है कि सबको यह अधिकार होना ही चाहिए.
ReplyDeleteब्लॉग जगत से मेरा नाता है न कि मेरे परिवार का....बच्चे अपना जीवन साथी खुद चुनने के अधिकारी हैं...लेखन और उस पर प्रतिक्रिया कैसी हो, इस विषय पर सबकी अपनी अलग अलग राय हो सकती है. देखने और सोचने का अलग अलग नज़रिया हो सकता है.
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