किसी भी महिला के लिए बलात्कार का शिकार होना बहुत बड़ा हादसा है। शायद उसके लिए इससे बड़ी त्रासदी कोई है ही नहीं। बदकिस्मत से अपने देश में महिलाओं से बलात्कार की दर निरंतर बढ़ती जा रही है। यह एक जघन्य अपराध है, लेकिन अक्सर गलतफहमियों व मिथकों से घिरा रहता है। एक आम मिथ है कि बलात्कार बुनियादी तौर पर सेक्सुअल एक्ट है, जबकि इसमें जिस्म से ज्यादा रूह को चोट पहुंचती है और रूह के जख्म दूसरों को दिखायी नहीं देते। बलात्कार एक मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा है। इसके कारण शरीर से अधिक महिला का मन टूट जाता है। बहरहाल, जो लोग बलात्कार को सेक्सुअल एक्ट मानते हैं, वह अनजाने में पीड़ित को ही `सूली' पर चढ़ा देते हैं। उसके इरादे, उसकी ड्रेस और एक्शन संदेह के घेरे में आ जाते हैं, न सिर्फ कानून लागू करने वाले अधिकारियों के लिए, बल्कि उसके परिवार व दोस्तों के लिए भी।
महिला की निष्ठा व चरित्र पर प्रश्न किये जाते हैं और उसकी सेक्सुअल गतिविधि व निजी-जीवन को पब्लिक कर दिया जाता है। शायद इसकी वजह से जो बदनामी, शर्मिंदगी और अपमान का अहसास होता है, बहुत-सी महिलाएं बलात्कार का शिकार होने के बावजूद रिपोर्ट नहीं करतीं। बलात्कार सबसे ज्यादा अंडर-रिपोर्टिड अपराध है।
बहुत से मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों का मानना है कि बलात्कार हिंसात्मक अपराध है। शोधों से मालूम हुआ है कि बलात्कारी साइकोपैथिक, समाज विरोधी पुरूष नहीं हैं जैसा कि उनको समझा जाता है। हां, कुछ अपवाद अवश्य हैं। बलात्कारी अपने समुदाय में खूब घुलमिल कर रहते हैं।
बलात्कार पीड़ित की जरूरतें
बलात्कार पीड़ित महिला की मदद कैसे की जाये? इस पर खूब विचार करने के बावजूद भी आसान उत्तर उपलब्ध नहीं है। वैसे भी जो महिला बलात्कार से गुजरी है, उसने जिस ट्रॉमा का अनुभव किया है, उसे दो और चार के नियम से ठीक नहीं किया जा सकता। डॉक्टर जिस्मानी घावों को तो भर सकते हैं, लेकिन जज्बात को पहुंची चोट जो दिखायी नहीं देती, उनको भरना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन उनको भरने से पहले यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि वह मौजूद हैं।
बलात्कार के बाद ज्यादातर महिलाएं शॉक की स्थिति में होती हैं। कुछ महिलाएं हिस्ट्रिकल हो जाती हैं जब कि अन्य इन्कार के स्तर से गुजरती हैं। लेकिन सभी पीड़ितों को अलग-अलग डिग्री का डर, ग्लानि, शर्मिंदगी, अपमान और गुस्सा महसूस होता है। यह भावनाएं एक साथ जागृत नहीं होतीं, लेकिन अपराध के लंबे समय बाद तक यह महिला को प्रभावित करती रहती हैं। इसलिए जो भी उस महिला के नजदीकी हैं, खासकर पुरूष सदस्य, उनके लिए उसकी भावनाओं को समझना व मदद करना महत्वपूर्ण है।
बलात्कार से बचना
महिलाएं, चाहे वह जिस उम्र की हों, आमतौर से यह सोचती हैं कि वह बलात्कारी का मुकाबला कर सकती हैं, उससे बच सकती हैं। बदकिस्मती से कम महिलाएं इस बात पर विचार करती हैं कि वह अपना बचाव किस तरह से करें सिवाय इसके कि वह बलात्कारी की टांगों के बीच में जोर की लात मार देंगी। सवाल यह है कि महिला क्या करे? पहली बात तो यह है कि वह अपने आपको कमजोर स्थिति में पहुंचने से बचाये। अन्य विकल्प हैं-
- बातचीत करके अपने आपको संकटमय स्थिति से निकाल लें। कुछ महिलाओं ने बलात्कारी से अपने आपको यह कहकर बचा लिया कि वे मासिक-चक्र से हैं, गर्भवती हैं या उन्हें वीडी (गुप्तरोग) है।
- बुरे लगने वाले फिजिकल एक्ट जैसे उल्टी करना, पेशाब करना या स्टूल पास करके हमलावर को आश्चर्यचकित कर दें।
- कुछ मामलों में दोस्ताना व सभ्य बर्ताव करने और आशंकित बलात्कारी का विश्वास अर्जित करने से भी बचाव हो सका है।
अगर बच नहीं सकीं, तो
- अपने आपको दोष न दें
- उस पर विचार-विमर्श करें और मदद लें
- मेडिकल सहायता लें
बाद के प्रभाव
पीड़ित अक्सर अपनी सुरक्षा के अहसास पर विश्वास खो बैठती है। उपचार कराते समय वह निम्न स्तरों से गुजरती हैं-
- शुरूआती स्तर : चुप्पी और बेयकीनी से लेकर अत्यधिक एंग्जाइटी और डर की भावनाएं उत्पन्न होती हैं
- दूसरा स्तर : डिप्रेशन या गुस्सा
- तीसरा स्तर : बलात्कार की यादें अब भी अतिवादी भावनात्मक प्रतिक्रिया शुरू कर सकती हैं
- अंतिम स्तर : सब कुछ पीछे छोड़ने के लिए तैयार।
एक जरूरी आलेख, आभार।
ReplyDeleteमुझे कुछ लोग नरवादी कहते पाये गए, पर मैं तारीफ करता हूँ आप के लेख की, यह पूर्णतया संतुलित है. इसमें मीन-मेख नहीं निकाला जा सकता. कहीं-कहीं पर कुछ ज़रूर कहा जा सकता है, पर ऐसा करके मैं दोषियों का समर्थक ही हो जाऊंगा. जबकि मैं सामाजिकता का पक्षधर हूँ. इस सामाजिकता के लियेनारियों का सशक्त होना आवश्यक है, ताकि वे नर का मुकाबला कर सके. अतः यह लेख उचित है.
ReplyDeleteयदि आप ने बलात्कार को रूहानी चोट के बजाय जिस्मानी चोट तक ही सीमित रखने की कोशिश की होती तो ये एक नारी को पुनः उठ खड़े होने में ज्यादा मददगार होता.
बेहद अच्छे लेखों की श्रेणी में यह लेख मील का पत्थर साबित होगा ! अफ़सोस है डॉ कविता ने यह संक्षिप्त में ही समाप्त कर दिया तथापि सारगर्भित और कम शब्दों में ही बहुत कुछ कह दिया गया है ! बधाई !
ReplyDeleteबलात्कार की शिकार महिला जो कष्ट भोगती है वह अकल्पनीय है , अधिकतर यह अमानवीय अपराध परिचितों के द्बारा, विश्वास का गला घोंट कर किए जाते हैं , और उस नराधम को यह पता होता है की यह लडकी लोकलज्जा और परिवार के सम्मान के कारण इसकी ख़बर किसी को नही करेगी ! शारीरिक शक्ति का दुरूपयोग, और एक कमज़ोर को डराने के अस्त्र के कारण, ये हरामजादे इस तरह के कृत्यों में सफल हो जाते हैं !इसके बाद भुक्तिभोग्या और कमज़ोर आत्मविश्वास के साथ बिना अपने संरक्षकों या परिवारजनों को बताये जीवन जीने के लिए विवश होती है !
इन नरपिशाचों को "भीड़ के द्बारा पब्लिक एग्जीकयूशन" करवाना बेहतर विकल्प है !यही एक कमज़ोर का उचित बदला हो सकता है !
बलात्कार के बाद क्या ?? की जगह प्रश्न होना चाहिये बलात्कार क्या ?? जब तक नारी शील का टोकरा अपने सर पर रख कर घूमती रहेगी , संरक्षण खोजती रहेगी ऐसा ही होता रहेगा । बलात्कार औरत के मन का , अस्तित्व का , बोलो का , भावानाओ का या फिर उसके शरीर कही न कही होता ही है रोज हर पल फिर शरीर को इतनी importance क्यों ?? पांच तत्व हैं एक दिन पांच तत्व मे विलीन हो जायेगे । सबसे पहले नारी को अपने शरीर को ख़ुद भूलना होगा , भूलना होगा की वह सुंदर हैं , हसीन है और उसके शरीर उसकी उपलब्धि है जिसके सहारे वह पुरूष को पा सकती है । पुरूष को पाने की कामना मे अपने अस्तित्व को खोना भी बलात्कार है जिसे बहुत सी नारियाँ रोज अपने ऊपर करती हैं । जिस दिन इस शरीर के मोह से नारी अपने को निकाल लेगी बलात्कार केवल एक जबरन सम्भोग बन जाएगा जिसका मेडिकल treatment जरुरी होगा trauma treatment नहीं .
ReplyDeletekavita
aap nirentar achcha aur gyanvardhakh likhtee haen
यह पोस्ट वाकई काफी अच्छी ह। मैं पहली बार इस ब्लॉग में अाया हूं। बलात्कार के बाद की मनोदशा, उससे बचने के उपाय जैसे मुद्दों पर अापने बहुत स्पष्ट िवचार रखे हैं। समाज में सभी पऱकार के लोग रहते हैं। जहां इस देश में नारी को शिक्त का पऱतीक माना गया है वहीं कुछ इसे िसफॆ उपभोग की वस्तु समझते हैं। इस िमथक को अाप जैसी मिहलाएं ही तोड़ सकती हैं। पऱयास जारी रखें, सफतला जरूर िमलेगी।
ReplyDeleteकविताजी का लेख जितना प्रभावशाली लगा, उतना ही टिप्पणियों ने भी प्रभावित किया...
ReplyDeleteराजीवजी के विचार में रुहानी चोट की बजाय इसे जिस्मानी चोट कहा जाता...रचनाजी के विचार में शरीर का मोह त्यागते ही ट्रॉमा की बजाय सिर्फ इलाज से ठीक होने की ज़रूरत होगी...आज नारी में ऐसी ही क्रांतिकारी सोच की ज़रूरत है.
Rachna se sahamat.
ReplyDeleteरचना जी से सहमत होते हुए भी असहमत हूँ, होना चाहिए लेकिन क्या ये हो पाता है? ठीक है, कि एक ओरत ये भूल जाए, और ये सोच ले कि उसके साथ एक भयानक हादसा हो गया, लेकिन क्या ये समाज, और यहाँ रहने वाले लोग ऐसा होने देंगे? ज़रा बताइये, किसी पत्नी का बलात्कार हो जाए और वो ख़ुद को तसल्ली दे भी ले to क्या उसका पति और घर वाले उसे उसी खुले दिल से अपनाएंगे? अपना भी लें to क्या उसके पति के प्यार का वाही नदाज़ बरक़रार रहेगा? नही, इस में बहुत बहुत समय लगेगा...पति बहुत अच्छा है, उसे अपना भी लेता है लेकिन जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर, कहीं न कहीं वो इस बात को याद ज़रूर दिलाएगा क्योंकि पुरूष इतना बड़ा ज़र्फ़ नही कर सकता...बहुत मुश्किल है, ऐसे हादसों के बाद किसी स्त्री का सामान्य जिंदगी जी पाना...
ReplyDeleteरक्षंदा जी उसी जगह पहुंच गईं जहां से बात शुरू हुई थी। बलात्कार को एक शारीरिक चोट माना जाए, मानसिक-भावात्मक नहीं। सड़क दुर्घटना में पैर में चोट लग जाए तो पति या परिवार के दूसरे सदस्य आपका ज्यादा ख्याल रखते हैं,तो बलात्कार जैसी दुर्घटना के बाद भी ज्यादा ख्याल रखना चाहिए और यही सोच उपजानी है। रचना जी से मैं पूरी तरह सहमत हूं। और ये भी कि पुरुष की कामना में अपने अस्तित्व को खोना भी बलात्कार है...बात बिलकुल सही है।
ReplyDeleteआप सभी की प्रतिक्रियाओं के लिए ह्रिदय से कृतज्ञ
ReplyDeleteहूँ.
सर्वश्री-
वर्षा,रक्षन्दा,मीनाक्षी,स्वप्नदर्शी,दहलीज,रचना,सतीश सक्सेना,राजीव और द्विवेदी जी !
मेरा आभार स्वीकारें.
रही आघात के केन्द्र की बात तो ध्यान रख्ना होगा कि जब उसे हम शारिरक आघात के रूप मेइं प्रतिस्थापित करने की बात करते हैं तो स्त्री के लिए उसके अर्थ को शरीर की पवित्रता-अपवित्रता के साथ जोड़ने के खतरे पैदा कर रहे होते हैं. सम्भोग और बलात्कार में अन्तर यही है कि एक के साथ इच्छा जुड़ी हुई होती है, जबकि दूसरे के साथ अनिच्छा व अनुमति के बिना किए जाने वाले (कु) कर्म की (कु)चेष्टा.
अन्तर स्त्री की (स्व) इच्छा और (अन्) इच्छा का है. जिनका सम्बन्ध सीधे सीधे मानसिकता से है.अत:इन अर्थों में भी इसका सम्बन्ध मन से अधिक है.
आप सभी की प्रतिक्रियाओं के लिए हृदय से कृतज्ञ
ReplyDeleteहूँ.
सर्वश्री-
वर्षा,रक्षन्दा,मीनाक्षी,स्वप्नदर्शी,दहलीज,रचना,सतीश सक्सेना,राजीव और द्विवेदी जी !
मेरा आभार स्वीकारें.
रही आघात के केन्द्र की बात तो ध्यान रखना होगा कि जब उसे हम शारीरिक आघात के रूप में प्रतिस्थापित करने की बात करते हैं तो स्त्री के लिए उसके अर्थ को शरीर की पवित्रता-अपवित्रता के साथ जोड़ने के खतरे पैदा कर रहे होते हैं.
सम्भोग और बलात्कार में अन्तर यही है कि एक के साथ इच्छा जुड़ी हुई होती है, जबकि दूसरे के साथ अनिच्छा व अनुमति के बिना किए जाने वाले (कु) कर्म की (कु)चेष्टा व भावना.
अन्तर स्त्री की (स्व) इच्छा और (अन्) इच्छा का है. जिनका सम्बन्ध सीधे सीधे मानसिकता से है.अत:इन अर्थों में भी इसका सम्बन्ध मन से अधिक है.
एकदम ठीक।
ReplyDeleteलेकिन मुझे याद आता है कि अरसा पहले, केरल (शायद) से एक महिला सांसद ने कहीं कह दिया था कि कोई भी औरत बलात्कार का शिकार हो ही नहीं सकती, जब तक वह खुद ना चाहे। यदि कोई औरत कहती है कि बलात्कार हुया है तो उसकी सहमति अवश्य ही होगी।
उनके इस बयान पर देश भर में हंगामा हो गया था। तमाम प्रदर्शनों/ पुतला दहनों/ धमकियों आदि के बाद उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा था।
उनका मंतव्य मात्र इतना बताना था कि कुदरत ने औरत को जैविक रूप से इतना सशक्त बनाया है कि बिना उसकी मर्जी के पुरूष जननांग प्रवेश ही नहीं कराया जा सकता। वगैरह्… वगैरह …
मुझे उन सांसद का नाम याद नहीं आ रहा है। यदि किसी के जहन में यह घटनाक्रम हो तो जाहिर करें। अगली बार कहीं उनका नाम तो बता सकूँगा।
बलात्कार पर एक बेहतरीन फिल्म भी बनी है। विनोद मेहरा- रेखा की 'घर'। अवसर मिले तो अवश्य देखियेगा।
@किसी भी महिला के लिए बलात्कार का शिकार होना बहुत बड़ा हादसा है। शायद उसके लिए इससे बड़ी त्रासदी कोई है ही नहीं। बदकिस्मती से अपने देश में महिलाओं से बलात्कार की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। यह एक जघन्य अपराध है.
ReplyDeleteमेरे विचार में इस अपराध की सजा मृत्युदंड ही हो सकती है.