स्त्री-पुरुष के बीच खीचीं 'असमानता की विभाजन' रेखा को अब खत्म करने की आवश्यकता है। खैर, हम यह स्वीकारते हैं कि पुरुषों का स्त्रियों के प्रति जो व्यवहार या आचरण रहा है, उसे एकदम से खारिज करना हर स्त्री के लिए संभव नहीं होगा। सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक क्षेत्र में हर कहीं वो पुरुषों द्वारा छली और शोषित की जाती रही है। सदियों से पुरुष ने स्त्री को जो जख्म दिए हैं, उन्हें विस्मृत कर पाना, उसके इतना आसान नहीं। लेकिन इन तमाम बंदिशों और शोषण की व्यथा-कथाओं को दरकिनार करते हुए, अगर स्त्री-पुरुष एक दूसरे के संघर्ष में एक साथ आकर खड़े होते हैं, तो इससे बहुत सारी पुरानी वर्जनाएं और स्थापनाएं एक-साथ टूट सकेंगी। इनका टूटना एक नए स्त्री-पुरुष समानता के समाज का द्योतक भी बन सकता। जोकि निश्चित ही फायदेमंद होगा।
क्या आपको नहीं लगता कि जब हमारे आस-पास इतनी तेजी से बदलाव हो रहे हैं, हर रोज कुछ न कुछ नया आ रहा है, तो क्या इस रिश्ते में एक नया बदलाव नहीं आना चाहिए? जब हम इस सच से इंकार नहीं कर सकते कि स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं, फिर एक-दूसरे को मजबूत आधार देने में हमें परेशानी क्यों होती है! ऐसा मत समझिए कि अड़ियल केवल पुरुष ही होते हैं, अड़ियल स्त्रियां भी होती हैं।
अगर हम यह सोचती हैं कि हम पुरुषों को कोसकर स्वयं को बहुत बड़ी क्रांतिकारी महिला सिद्ध कर लेंगी, तो मेरे विचार से यह सोच बेमानी ही है। दूसरी तरफ पुरुष अगर यह सोचते हैं कि वो हर स्तर पर स्त्री को दबाकर ही रखेंगे, तो यह उनकी खुशफहमी भर है। दोनों की अपनी-अपनी जिद्द है। लेकिन इस जिद्द का अगर हम सही जगह और सही अर्थों में उपयोग कर सकें, तो शायद ज्यादा बेहतर होगा।
मैंने तो स्त्री-विमर्श भी काफी पढ़ और जानकर देख लिया, मगर वहां मुझे सिर्फ पुरुषों के खिलाफ विष-वमन ही दिखाई पड़ा, कहीं कोई सार्थक बात पढ़ने-समझने को नहीं मिली। स्त्री-विमर्श में स्त्री-पुरुष के बीच समानता की बात कहीं नहीं कही गई है। अगर स्त्री-पुरुष को वैचारिक, सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक विकास करना है, तो एक-दूसरे को समझ कर चलना ही पड़ेगा। हम उन्हें कोसें, वो हमें कोसें, यह कोसा-कासी किसी भी समस्या का हल नहीं निकाल पाएगी। रास्ते तमाम निकल सकते हैं, पर उसके लिए स्त्री-पुरुष दोनों को ही अपने-अपने अहमों का त्याग करना होगा। पुरुष के पास उसका वर्चस्व है, जिससे वो महिला को दबाकर रखना चाहता है। साथ ही, स्त्री को भी पुरुष के प्रति अपनी एकरूपी अवधारणाओं को बदलना होगा।
मैं यह मानती हूं कि हर पुरुष एक जैसा नहीं होता। हर स्त्री भी एक जैसी नहीं होती। अगर दोनों ही अपनी-अपनी खामियों-खराबियों पर थोड़ा-थोड़ा पुर्नविचार कर लें, तो ये भेद-भाव निश्चित ही मिट सकता है।
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
September 30, 2008
ये भेद-भाव मिट सकता है अगर...
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समानता का यही अर्थ है, समान जिम्मेदारियाँ, समान अधिकार, बराबरी का व्यवहार।
ReplyDeleteअनुजा जी की बात सही है और मैं सहमत हूँ । हमारा समाज पुरूष प्रधान रहा है और पुरूष हमेशा से ही स्त्री पर शासन करना चाहता है पर समय बदल रहा है अब ऐसा कम ही होगा। आप का विचार अच्छा है गौर करें तो।
ReplyDeleteअनुजा जी की बात सही है और मैं सहमत हूँ । हमारा समाज पुरूष प्रधान रहा है और पुरूष हमेशा से ही स्त्री पर शासन करना चाहता है पर समय बदल रहा है अब ऐसा कम ही होगा। आप का विचार अच्छा है गौर करें तो।
ReplyDeleteमैं द्विवेदी जी की बात से सहमत हूँ. मैं भी यही मानता हूँ.
ReplyDeleteयह बात भी सही है कि हमारा समाज पुरूष प्रधान रहा है और बहुत से पुरूष हमेशा से ही स्त्री पर शासन करना चाहते रहे हैं. पर यह बात हर पुरूष पर लागू नहीं होती. लेख में जो कहा गया है वह सही है, पर यह सब पूरे पुरूष वर्ग पर लागू नहीं होता. सारे पुरुषों को कटघरे में खड़ा कर देना उचित नहीं है. इस आशय से लेख में कुछ संयम की जरूरत है.
अनुजा जी की बात सही है और मैं सहमत हूँ
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