बूंद-बूंद कर ही घड़ा भरता है। बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल चीनी ताइपे ओपन बैडमिंटन ग्रां प्री खिताब पर कब्जा जमा लिया है। दो ग्रां प्री खिताब जीतने वाली पहली भारतीय शटलर बन गई हैं। बीजिंग ओलंपिक ने इस खिलाड़ी को पदक नहीं दिया पर आत्मविश्वास दिया। आज हमारे पास साइना, सानिया, आईसीसी बेस्ट वूमन क्रिकेटर ऑफ द इयर का खिताब पा चुकी झूलन, धावक अंजू बॉबी जॉर्ज समेत कई महिला खिलाड़ी हैं। जो देश के साथ-साथ अपने शहर,मोहल्ले,गली और घर का गौरव हैं। इनकी उपलब्धियां परिवर्तन के लिए राह बना रही हैं। साइना ने अपनी जीत के बाद कहा कि बीजिंग ओलंपिक से उन्हें आत्मविश्वास मिला और उनका खेल सुधरा। दरअसल हमें ये आत्मविश्वास ही जुटाना है। जो हम सबके पास है, पर हमारी ही कोशिकाओं में कहीं छिप गया, क्योंकि हमारी छोटी-छोटी जीत पर किसी ने पीठ नहीं थपथपाई, हमें कभी चिड़िया की आंख सरीखा वो लक्ष्य नहीं दिखाया, जिसे हमें भेदना था, अपनी गाड़ी का पंचर ठीक करने के लिए हमने कभी पेचकस, प्लास नहीं थामा। हमें हमारा आत्मविश्वास चाहिए। अब भी छोटे शहरों में तो अमूमन और बड़े शहरों में भी लड़कियों को कहां जाना है, क्या करना है, कैसे बोलना है, क्या पढ़ना है, सबकुछ तय कर के दिया जाता है। उन्हें अपनी बात रखने का मौका तक नहीं मिलता। आत्मविश्वास का 'अ' भी उनसे उनके अपने ही घर में छीन लिया जाता है। अब भी कितनी लड़कियां बीए,बीएससी और बीएड सिर्फ इसलिए कर रही हैं ताकि उनकी शादी हो जाए। घरवाले जैसा दूल्हा खोजने की हैसियत रखते हैं बेटी को वैसी ही डिग्री हासिल करने तक पढ़ाते हैं। हालांकि एमबीए,एमसीए,इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनेवाली लड़कियों की तादाद में इज़ाफ़ा हो रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं। पर अब भी बहुत कुछ बाकी है। हमें हमारा खोया आत्मविश्वास चाहिए। मन की मज़बूती चाहिए। लड़कियां अब भी भावनात्मक तौर पर बहुत कमज़ोर होती हैं। साइना का उदाहरण इसीलिए दिया क्योंकि उसने आत्मविश्वास से जीत अर्जित की है। अब लड़कियां भी घर के बाहर गिट्टे और आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचकर अप्पू खेलने के बजाय बैडमिंटन कोर्ट में और क्रिकेट ग्राउंड में पसीना बहा रही हैं। मेरी सलाह है हर लड़की को अपने लिए एक खेल जरूर चुनना चाहिए।
(चित्र गूगल से साभार)
excellent psot varsha
ReplyDeletekeep writing and साइना is a example of grit and determination
बहुत अच्छी पोस्ट है...जारी रखें...
ReplyDeletepost pad kar achcha lga....
ReplyDeletehamare liye isse accha aur kya ho sakta hai .
ReplyDeleteजो उदाहरण बरसों पहले किरण बेदी, ने भारतीय लड़कियों के सामने रखा था, हमारी लड़कियां उसे काफी आगे लेकर आयी हैं, मगर अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना बाकी है ! अच्छे आलेख के लिए शुभकामनायें !
ReplyDeleteकाफ़ी बेह्तर ब्लोग है
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट!! बधाई.
ReplyDelete@मेरी सलाह है हर लड़की को अपने लिए एक खेल जरूर चुनना चाहिए।
ReplyDeleteअच्छी सलाह है.