नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

August 09, 2008

कन्फ्यूजन

कुछ दिन पहले नारी ब्लॉग की सदस्य अनीता जी ने एक पोस्ट लिखी थी नारी ब्लॉग के लिये

जिसकी लाठी उसकी भैस

जिसमे उन्होने कुछ प्रश्न पूछे थे । उनमे से पहले तीन प्रश्न नीचे दिये हैं

1) हममें से कितनी नारियां शादी करने के वक्त इस बात को सहर्ष स्वीकार कर लेतीं कि हमारा भावी पति हाउस हस्बैंड बन के रहना चाह्ता है।वो घर अच्छे से संभाल सकता है और आप पढ़ी लिखी कामकाजी महिला हैं, क्या हम ऐसी व्यवस्था से खुश होतीं। अगर स्त्री पुरुष समानता है, अगर दोनों को ह्क्क है कि वो बाहर जा कर कमाएं तो क्या दोनों को ये हक्क नहीं कि दोनों में से जो चाहे घरेलू ग्रहस्थ बन कर जीवन जी ले और दूसरा उसको स्पोर्ट कर ले।

2) हममें से कितनी नारियां अपनी किसी सहेली को और उसके पति को पूर्ण आदर दे सकती अगर वो ऊपर लिखे सिस्टम का हिस्सा होती।

3) आज हर नारी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के लिए नौकरी करना चाह्ती है, उसके लिए जी तोड़ मेहनत भी करती है।आर्थिक आत्मनिर्भरता होनी भी चाहिए। लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं हो रहा कि कुछ पाने के चक्कर में हम कुछ खो भी रहे हैं।क्या आज नारी कल से ज्यादा आजाद है? शादी के बाजार में आज ऐसी लड़की की क्या कीमत है जो पैसा नहीं कमाती, अगर वो पढ़ लिख कर भी काम न करना चाहे तो क्या वो ऐसा करने के लिए स्वतंत्र है?

अनीता जी ने सोचा होगा की कुछ सकारातमक जवाब महिला देगी , हो सकता हैं तीखे हो पर लेकिन किसी भी महिला ने प्रश्नों का सीधा उत्तर नहीं दिया , हाँ ये कहा आप ठीक हैं , आपके प्रश्न ठीक हैं , समय बदल रहा हैं इत्यादि पर बुनयादी बात पर सब छुप थे के महिला अपने से कम पढे लिखे , या कम आय वाले से विवाह क्यों नहीं करती या अपने से नीचे पोस्ट पर काम करने वाले से क्यों विवाह नहीं कर पाती ।

अनीता जी की पोस्ट पढ़ कर महसूस हुआ जैसे अनीता जी मानती हैं ये सब होना चाहिये और ये सब औरतो को स्वीकार करना चाहिये { उस पोस्ट मे और भी बहुत से पक्ष हैं पर इस समय केवल यही पक्ष ले रही हूँ } ।

कल मीनाक्षी की पोस्ट आयी

समाज में हलचल स्वाभाविक

मीनाक्षी ने अपनी पोस्ट लिखी थी उस न्यूज़ के ऊपर जिसमे ऐयरफोर्स की एक महिला ऑफीसर ने अपने से जूनियर रैंक के ऑफीसर से शादी करनी चाही तो एयरफोर्स के हैड क्वार्टर में हलचल मच गई..... के बारे मे बताया गया था ।

एयरफोर्स मे प्रोटोकॉल के हिसाब से कोई भी महिला अधिकारी अगर अपनी जूनियर से शादी करती हैं और उसको ले कर मेस मे आती हैं तो बाकी जो पुरूष हैं वो uncomfortable महसूस करेगे "In an organisation where social interaction between an officer and a subordinate rank, as equals, is taboo, it is indeed an uncomfortable situation for the male-dominated services . "

इस पोस्ट पर अनीता जी नए इस बात को बिल्कुल सही माना और उन्होने दो कमेन्ट दिए

anitakumar said...
मुझे तो ये मुद्दा नर या नारी का नहीं लगता। सवाल प्रोटोकोल का ही है। अगर उस नारी को अपने से जूनियर नर से शादी करने में कोई आपत्ती नहीं तो ये उसका अपना मामला है वो कर सकती है लेकिन ये भी सही है कि आर्मी के रूलस के अनुसार वो व्यक्ति ओफ़िसर्स मैस में नही आ पायेगा। आखिरकार दूसरे ओफ़िसर्स ऐसी परिस्थती क्युं बर्दाश करेगें और अगर वो नारी कहती है कि मै अपने पति के साथ उस मैस में चली जाती हूँ जहां उसे जाने का अधिकार है तो उसके साथी क्या अपनी सीनियर के साथ वहां सहज हो पायेगे क्या। आर्मी से बाहर का परिवेश होता तो बात अलग थी।इसे मैं इसी तरह से देख रही हूँ अगर एक प्रध्यापिका अपने कॉलेज के पियुन से शादी कर ले तो वो दोनों कॉलेज में कहां बैठ कर खाना खायेगें, क्या वो बाकी सब टीचर्स के साथ बैठ सकते हैं, ये दूसरे टीचर्स नहीं चाहेगे और क्या वो टीचर पियुन्स के साथ बैठ कर खा सकती है, ये पियुन्स नहीं पसंद करेगें। किसी भी नर या नारी को अपनी पसंद दूसरों पर थोपने का अधिकार नहीं हो सकता न्।

और दूसरा कमेन्ट था

anitakumar said...
हमारे समाज में आज भी स्टेट्स डिस्टेंस है इससे तो इंकार नही किया जा सकता, कितने लोग अपने नौकर को अपने साथ एक ही टेबल पर बैठा कर खाना खाने की इजाजत दे सकते हैं। तो मामला नर या नारी का नहीं है।
August 8, 2008 6:28 PM



अपनी पोस्ट मे पूछे गए प्रश्नों का उत्तर अनीता जी ने ख़ुद ही दे दिया । बस यही कारण हैं की कोई महिला अपने से नीचे स्तर पर काम कर रहे पुरूष से विवाह नहीं करती क्योकि समाज मे उसको स्वीकृती नहीं मिलती और जो करना भी चाहती हैं जैसे ऐयरफोर्स की एक महिला ऑफीसर उनको बहुत समस्या आती हैं ।



हमारे समाज ने ये जो "प्रोटोकोल" बना रखे हैं इस नारी ब्लॉग पर हम उन्ही "प्रोटोकोल" को तोड़ने की ही बात करते हैं । जिस बात को प्रश्न कर के अनीता जी जानना चाहती हैं उस बात को वो ख़ुद ही ग़लत मानती हैं वरना "अगर एक प्रध्यापिका अपने कॉलेज के पियुन से शादी कर " का उदहारण ना देती । वो ख़ुद प्रध्यापिका हैं सो अपनी परिवेश मे उनकी सोच ने उनके अवचेतन मन से वो लिखवाया जो उनको सही लगता हैं ।

प्रश्न करने वाली अनीता "प्रोटोकोल" तोड़ने की बात करती हैं तो उत्तर देने वाली अनीता "प्रोटोकोल" को मानने की बात करती हैं ।

15 comments:

  1. रचना जी, अनिता जी, और मीनाक्षी जी,
    मैं जब भी कहता हूँ कि स्त्री,पुरुष बराबरी का यह प्रश्न जब भी उठेगा समाज की तमाम असमानताओं के प्रश्न भी उठेंगे।
    समाज में स्त्री समानता स्थापित ही नहीं की जा सकती जब तक कि समाज में सभी तरह की कृत्रिम असमानताएँ समाप्त नहीं हो जाती हैं। स्त्री की शोषण से मुक्ति का संघर्ष वास्तव में मानव की मुक्ति का संघर्ष है। समाज में किसी व्यक्ति की हैसियत उस के काम से तय होती हो तो स्त्री की भी उस के काम से ही तय होगी।
    जब तक तमाम कामों को बराबर का महत्वपूर्ण नहीं समझा जाता है। मानव मात्र को समानता हासिल नहीं होती स्त्री को भी नहीं होगी।

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  2. "प्रश्न करने वाली अनीता "प्रोटोकोल" तोड़ने की बात करती हैं तो उत्तर देने वाली अनीता "प्रोटोकोल" को मानने की बात करती हैं । "
    बहुत ही बड़ा विरोधाभास है.

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  3. रचना जी आज की आप की पोस्ट से मैं कुछ हैरान हूँ । हां मुझे याद है कि मैने ये सवाल पूछे थे लेकिन इसका मतलब ये निकाला जायेगा कि मै खुद सवालों में पूछे बदलाव चाह्ती हूँ मुझे आश्चर्यचकित कर गया। असलियत इसके एकदम विपरीत है। मेरा ये सवाल पूछने का तात्पर्य ये था कि मैं खुद भी ऐसे बदलाव समाज में देखना पसंद नही करुंगी और उम्मीद कर रही थी कि कोई और भी ऐसे बदलाव नहीं देखना चाहेगा।
    मेरे ख्याल से बालकिशन जी की तरह और लोगों को भी लग सकता है कि मेरी सोच में विरोधाभास है। इस लिए यहां ये स्पष्ट करना जरूरी है कि मैं अपने लिए या किसी और भी नारी के लिए हाउस हस्बैंड की कल्पना नहीं कर सकती। दूसरी पोस्ट पर दी हुई मेरी टिप्पणी का भी आप ने रेफ़ेरेंस दिया है तो मैं साफ़ तौर पर कहना चाहुंगी कि मैं ऐसी शादी के खिलाफ़ शायद नहीं होऊगीं जिसमें एक टीचर एक पियुन से शादी कर ले, ये उसकी अपनी पसंद होगी और शायद उस पियुन में एक इंसान के नाते कई अच्छे गुण होगें लेकिन मैं ये भी उम्मीद करुंगी कि वो टीचर हम लोगों से ये उम्मीद नहीं लगायेगी कि हम उस पियुन को एक आम दोस्त के रूप में स्वीकार करें और कार्य परिपेक्ष में उसे पियुन के रूप में स्वीकार करें । ऐसे में अच्छा यही होगा कि दोनों में से कोई एक कार्य स्थल बदल ले। जिस तरह उन्हें अपनी जिन्दगी के फ़ैसले लेने का हक है मुझे लगता है कि समाज के दूसरे लोगों को भी हक्क है कि वो नयेपन को स्वीकारे या न स्वीकारे। नयापन मन से स्वीकारने की बात है कोई जोर जबरदस्ती कर के या लानत मलानत भेज कर स्वीकार नहीं करवाया जा सकता। जंहा तक मिलिट्री के प्रोटोकोलस हैं मुझे लगता है कि वो वहां जरुरी
    भी हैं और बदलाव के नाम पर पुरानी अच्छी प्रथाओं को भी बदला जाए ये ठीक नहीं। बाकी हम दिनेश जी की बात से बिल्कुल सहमत हैं कि नर नारी के रिशतों में बदलाव लाने से पहले हर प्रकार के काम को समान रूप से महत्तवपूर्ण माना जाए तब ही बदलाव आयेगा।
    आप कह सकती हैं कि मेरे अंदर विरोधाभास है क्युं कि मैं किसी भी रीति रिवाज को सिर्फ़ इस लिए नहीं बदलना चाहती क्युं कि लोग उसे स्त्री विरोधी मानते हैं हां अगर मुझे लगेगा कि उन रिवाजो के चलते नारी/नर के साथ अन्याय हो रहा है तो जरूर उसके खिलाफ़ आवाज उठाऊंगी। मैं किसी भी पुरुष को सिर्फ़ इस लिए लानत मलानत नहीं भेजना चाहुंगी कि वो पुरुष हैं और अब तक नारियों के साथ पुरुष बुरा व्यव्हार करता आया है। मैं मानती हूँ कि आज पुरुष की सोच में काफ़ी बदलाव आ रहा है जैसे नारी की सोच में आ रहा है और हमें केस टू केस निर्णय लेना चाहिए कि हमें पुरुष को दोस्त मानना है या उसके खिलाफ़ आवाज बुलंद करनी हैं। मैं दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रहते हैं।

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  4. मेरे विचार में फौज की प्रोटोकाल को बदलने या न बदलने का निर्णय फौज पर ही छोड़ देना चाहिए. फौज में अनुशासन बहुत जरूरी है. अगर सब रेंक एक जगह इकट्ठे होकर खाने-पीने लगें तो अनुशासन तो गया. फ़िर क्या लड़ेगी फौज? क्या यह जरूरी है कि हर बात में अपनी राय दी जाए और हर नियम को बदलने की बात की जाए.

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  5. अनीता जी मैने आप की इस पोस्ट को इसीलिये डाला ताकि आप के बारे मे जो अलग अलग ब्लॉग पर इस पोस्ट को ले के लिखा गया हैं वो भ्रम सही हो जाए . आप का बढ़पन है की आप ने इसको यहाँ डालने की अनुमति दी . इसको डालने की सबसे बड़ी वजह यही थी की आप अगर एंटी मेन नहीं हैं तो एंटी वूमन भी नहीं हैं . हम सब यहाँ पुरूष के विरोध मे नहीं सामजिक रुधि वादी सोच के विरोध मे हैं

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  6. सुरेश गुप्ता जी
    जिस प्रकार से ये जरुरी नहीं हैं की हर जगह अपनी राय दी जाए ये भी जरुरी नहीं हैं की हर जगह कमेन्ट किया जाए . जैसे आप हर जगह कमेन्ट करने के अपने अधिकार का उपयोग करते हैं हम सब अपनी राय रखते हैं . कमेन्ट देना भी अपनी राय देना ही होता हैं जो आप भी निरंतर दे रहे हैं . अपने कमेन्ट मे भाषा और सोच पर सयम रखा करे अन्यथा यहाँ भी आप के कमेंट्स के विरोध मे आवाजे आ सकती हैं जैसे दुसरे ब्लोग्स पर आती हैं . ये ब्लॉग सोच विचार राय और संवाद के लिये ही बना हैं .

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  7. रचनाजी, आपने सही कहा कि हमने अंजाने में ही 'समाज मे हलचल स्वाभाविक' पोस्ट लिख दी थी लेकिन आपने कैसे समझ लिया कि अनितादी प्रोटोकॉल तोड़ने की बात करके फिर मानने की बात कर रही हैं. मेरे विचार में उन्होंने अपनी पोस्ट में सिर्फ प्रश्न किए थे...जहाँ तक बदलाव की बात है समाज में हमें अलग अलग प्रतिक्रियाएँ मिलेंगी,यही शायद वे कहना चाहती थीं..
    जहाँ तक आर्मी की बात है वहाँ ऐसे विवाह को पुरुषप्रधान समाज में एक टैबू कहा गया. ऐसी शादी को मान्यता दी जाए या नहीं इस पर सर्वे कराने की बजाय आर्मी मे अनुशासन की बात करते तो कुछ और तस्वीर दिखती.

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  8. ये जो प्रोटोकोल है न, और आदमी की औकात देखकर दोस्ती करने या साथ बैठ्कर सिर्फ अपने बराबर वालो के खाना. इस सोच पर मै लानत भेजती हूँ एक इंसान के नाते. इसी वजह से जाति व्यवस्था से मुझे चिड है कि वो आदमी को बांट देती है. अब उसकी जगह आर्थिक सामाजिक हैसियत ले रही है. और ऐसी हैसियत वाले अहलेदारो को भी लानत भेजने मे मुझे बुराई नही लगती.

    ये सब गुलाम सोच के ही परिणाम, अपने को किसी से उपर और किसी से नीचे समझना और इसी मुगालते मै जीना. क्या हो गया है भारतीय संस्क्रिति के वाहको को? भूल गये क्या "अहम ब्रह्माश्मी, त्वमेव त्तवाशमी" यानी मै ही ब्रह्मांड हू, और तुम इसका तत्व हो"

    किसी भी अमेरिकी और युरोप के देश मे इन प्रोटोकोलो पर समाज का एक बडा हिस्सा कम कि लानत भेज चुका है. कोर्नेल जैसे विश्वविधालय के नामी-गिरामी प्रोफेस्सर एक बार भी अपने अधीनस्थ छात्रो, करमचारियो, और चपरासियो के साथ एक मेज पर बैठ्कर अक्सर खाना खाते है, और मौका लगे तो झूठी प्लेट धोने मे भी परहेज नही करते.
    मुझे खुद किसी भी जात-पात, काले-भूरे, गोरे, या किसी भी सामजिक हैसियत के बन्दे के साथ खाने-पीने मे कोई गुरेज नही है, सिर्फ अपराधियो के, और ऐसे लोगों के जिनकी सोच साम्प्रदायिक है, जाति व्यवस्था या रेंज रूप और स्टेटस से जुडी है.

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  9. नर और नारी एक दूसरे के पूरक हैं -हाँ दोनों के कार्य क्षेत्र नैसर्गिक रूप से बटे हुए हैं -सारा लफडा वहीं है जहाँ कार्य क्षेत्रों का अतिक्रमण होता है दोनों तरफ़ से ....कथित प्रगति नें जहाँ पुरुषों को स्त्रैण बनाना शुरू किया है वहीं नारियां रोल बदल कर 'पौरुष प्रतीका 'बन रहीं हैं यह रोल रिवर्सल अनेक समस्याओं को जन्म दे रहा है ........बस इससे आगे कुछ कहने की हिम्मत नही है -बर्र के छत्ते में कौन हाथ डाले !

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  10. दोस्तों/सखियों इतने सारे शब्दों में मैने एक ही बात कहने की कौशिश की है कि नर और नारी के अधिकार समान होने चाहिए व्यक्तिगत रूप से भी और सामुहिक रूप से भी और
    जियो और जीने दो।

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  11. मेरी सहमति स्वप्नदर्शी जी से हैं ब्लॉगर को ही ले ब्लॉगर की कोई जाती , लिंग नहीं होता और ना ही कोई स्टेटस होता हैं . यहाँ भी बारबार कहा गया की नारी ब्लॉगर , महिला ब्लॉगर , आधी दुनिया . आज जो ये नारी ब्लॉग चल रहा हैं ये मेरा विद्रोह हैं ब्लोगिंग को बाँटने वालो के ख़िलाफ़ की लो अगर तुम बाटना चाहते हो तो हम ख़ुद ही अलग हो जाते हैं पर तुम हम को अब रोक नहीं सकते हमारी आवाज को दबा नहीं सकते . नहीं चाहेये हमे कोई पुरूस्कार क्योकि हम स्त्री हैं . हमारी सोच आज़ाद हैं और हम बराबर हैं . अब इस को रोल रिवेर्सल जो कहते हैं वो सब सामाजिक प्रोटोकॉल को मानते हैं जिसको उन्होने ख़ुद अपनी फायेदे के लिये बनाया हैं .
    मानवता से बढ़ा कोई धर्मं नहीं , मनुष्यता से बढ़ी कोई जाती नहीं . नारी और नर बराबर हैं , समान हैं और ये अधिकार हर देश का संविधान देता हैं . जैसे ही एयरफोर्स का रुल बदलेगा व्यवस्था बदलेगी वहाँ भी . और इस बदलाव का सेहरा फिर एक नारी के सर ही बंधेगा " जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

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  12. फौज के प्रोटोकाल और एक सामान्य प्रोटोकाल में अन्तर है. अगर फौज के प्रोटोकाल में ढील दो गई तो जवान अधिकारिओं की आज्ञा को मानने से इनकार करना शुरू कर देंगे. फौज देश की रक्षा करती है. आज्ञा न मानने का परिणाम भयंकर होगा.

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  13. सुरेश गुप्त कृपा कर post को पढे यहाँ केवल उस प्रोटोकॉल की बात हो रही हैं जिसमे एक महिला को अपने से नीचे पड़ पर काम कर रहे अधिकारी से विवाह की अनुमति इस लिये नहीं दी जाते क्योकि पुरूष प्रधान फौज मे अन्य पुरुषों को ये गवारा नहीं हैं क्योकि वो एक कम पद वाले अधिकारी के साथ बैठ कर खाना नहीं खाना चाहते . आप क्यों मुद्दे को बिना समझे कमेन्ट करते हैं . या अगर आप जान बुझ कर एअसा करते हैं तो आप चाहते हैं इस मुद्दे पर बात ना हो क्योकि मुद्दे मे सीधा सीधा पुरूष मानसिकता दिख रही हैं जो एक नारी को इस लिये शादी नहीं करने देना चाहती क्योकि वोह नियम से हट कर शादी कर रही हैं . अफ़सोस होता हैं जब आप जैसे समझदार लोग मुद्दे की बात नहीं करना चाहते . और अभी नारी को combat services की आज्ञा अभी नहीं हैं सो देश की सिक्यूरिटी आप मर्दों के हाथ मे ही है समभाल कर रक्खे

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  14. रचना जी का कन्फ्यूज़न अभी भी दूर नहीं हुआ जबकि अनीता जी ने बड़ी शालीनता और सहजता से अपनी सोच और दृष्टिकोण स्पष्ट कर दिया है।
    दरअसल रचना जी का घोषित एजेन्डा ही एक कन्फ्यूजन पर आधारित है। वे मेरिट पर चर्चा किए बगैर सीधे सभी प्रोटोकॉल तोड़ने का उद्‍घोष करती प्रतीत होती हैं। ध्वंस की यह मानसिकता कुछ सकारात्मक परिणाम देगी, इसमें पर्याप्त संदेह दिखता है। पुरुष समाज में भी बहुत लोग समतामूलक मानवीय मूल्यों के प्रबल पक्षधर हैं और इस दिशा में काम भी कर रहे हैं। लेकिन रचना जी बिना साँस लिए एक तरफ से सबको उसी डण्डे से हाँकने चल देती हैं जो जल्दबाजी में निकाले गये निष्कर्षों ने उनके हाथ में थमा दिए हैं

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  15. सिदार्थ जी
    आप ब्लॉग पर आए इसके लिये धन्यवाद . अपशब्द कहे उसके लिये मे कृतार्थ हूँ . आदत हो गयी हैं आप जैसे सुधि जानो के वचनों को सुनने की .
    पोस्ट का ड्राफ्ट अनीता जी को दीखाने के बाद ही यहाँ डाला गया हैं . आप को उनकी बहुत फ़िक्र हैं विशवास ना हो तो उनसे संपर्क करके पूछ ले . आप को हमारी अनीता जी की इतनी फ़िक्र हैं जान कर अच्छा लगा . विश्वास ना हो तो उनसे पूछ ले . मेरे बारे मे दुसरे क्या सोचते हैं उससे बेहतर मानती हूँ की मे अपने बारे मे क्या सोचती हूँ . ब्लॉग मोदेराटर हूँ आप का ये कमेन्ट हटा भी सकती हूँ पर नहीं हटा रही क्योकि मुझे अपने बारे मे और अनीता जी से अपने संबंधो के बारे मे कोई भी कनफूजन नहीं हें

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