ब्लाग पर क्या चल रहा है, मर्द औरत के बारे में किस प्रकार से मौका मिलते ही कुछ भी लिख डालते हैं, औरतें उस पर कैसे रियेक्ट करती हैं,यह मानती हूं कि किसी का किसी को अपमानित करने का कोई इरादा नहीं होता है लेकिन एक बहस सी छिड़ जाती है जिस में कुछ अच्छी और कुछ तीखी बातें हो जाती हैं। मैंने सोचा इसे इस अपने पाठकों को भी बतायूं कि यह सब कैसा होता है। सो मैने रिमिक्स पर लिख दिया, आप भी पढ़े! रिमिक्स हिंदुस्तान का फीचर पेज है।
अपने ब्लॉग पर इसको पोस्ट किया अब यहाँ कर रही हूँ उन कमेंट्स के साथ जो उस ब्लॉग पर आए है
रचना said...
aap nae apni kalam ki dhaar ko news paper mae bhi diya badhiya laaga . par chitr ??
August 7, 2008 9:27 PM
शैलेश भारतवासी said...
बहुत बढ़िया
August 8, 2008 1:29 AM
ilesh said...
मनविंदर.....ब्लॉग यह हे की यहाँ लोग अपने विचारो को प्रस्तुत करे ,अपने अन्दर उमड़ रहे भावो को दुनिया के सामने रखे,जो हलचल दिल में हे,मन में हे उसे बहार आने का रास्ता ब्लॉग ने दिया..चूँकि ज्यादातर औरत ने आजतक सहा हे,उसको ये प्लेटफोर्म मिल से अपने विचारो को प्रस्तुत करने का माध्यम मिल गया,उसके अन्दर का आक्रोश बहार आने लगा जो अबतक सुशुप्त पड़ा था,हम जानते हे की पुरूष प्रधान संस्कृति की वजह से कभी कभी पुरूष को स्त्री के विचार से धक्का लगता हे,और बहस सुरु हो जाती हे,आज स्त्री इतनी आजाद हे की वो अपने किसी भी विचार को बे जिजक दुनिया के सामने रख सकती हे,कभी कभी लगता हे की वैचारिक आज़ादी बहस के रूप में हमें दो छोर में तो नही बाँट रही हे? और ये भी हे की हम हमारे विचारो को प्रस्तुत किए बिना भी तो नही रह सकते......मगर हा एक दुसरे के विचारो को positive थिंकिंग से सोचा जाएगा तो सायद ऐसी बहस से अच्छा नतीजा हम पा सकेगे.जितने भी मसले सामने आते हे उनमे एक ही बात कॉमन हे हमें सामने वाले इंसान के विचारो को समजना नही हे.......और फ़िर एक और बहस........God bless us.......
August 8, 2008 1:33 AM
मीनाक्षी said...
रचनाजी, चित्र को देखकर प्रश्नचिन्ह लगाना स्वाभाविक है...लेकिन तस्वीर मनविन्दरजी की सोच नही हो सकती इतना यकीन है बाकि आप खुद समझ ले कि हमारे आसपास का सिस्टम कैसा है.
August 8, 2008 2:50 AM
Manvinder said...
minakshee ji..aapne sahi kaha hai...chittr aaj ke systam ka ek hissa hai....sahi baat ko sunder dang se batane ke liye ssaadhuwaadmene es post mai blog per ek soch ko batane ka peryaas kiya hai
August 8, 2008 3:06 AM
नारी के इस प्रकार के चित्र देख कर मुझे तो बुरा लगता है. नारी देह का जिस तरह और जिस सोच के अंतर्गत आज प्रदर्शन हो रहा है वह सही नहीं है.
ReplyDeleteमेरी आपति चित्र से बस इतनी हैं की जिस बात का विरोध हम कर रहे हैं ऐसे चित्र हमारे विरोध को हल्का करते हैं . मेने अरविन्द के ब्लॉग पर भी यही कहा हैं
ReplyDelete"बड़ी अजीब बात हैं "चोखेर बाली" , "नारी" और वह कोई भी ब्लॉग जहाँ स्त्री स्वतंत्रता और बराबरी पर विचार होता हैं हमारी संस्कृति का पतन होने लगता हैं और यहाँ खुले आम विज्ञान के नाम पर बिना कोई " टैग " लगाए स्त्री के अंगो के ऊपर लिखा जा रहा हैं और वह कोई भी ब्लॉगर जो चोखेर बाली और नारी पर आकर अपशब्द लिखता हैं कमेंट्स मे , या अपनी नाराजगी दीखता हैं यहाँ बिल्कुल चुप हैं . जो बोल रहे हैं वह भी कामसूत्र का हवाला दे रहे हैं . और लवली की बात पर जरुर गौर करे अगर विज्ञान की ही बात है . स्वतंत्रता हैं अभिव्यक्ति की , अपना निज का ब्लॉग हैं सब सही हैं पर फी बाकि सब पर भी टिका तिपानी बंद करे"
.पिछले एक सल् से हिन्दी ब्लोगिंग कर रही हूँ और देख रही हूँ किस प्रकार से महिला ब्लोग्गेर्स के ऊपर व्यंग किये जाते हैं उनको http://halchal.gyandutt.com/2008/01/blog-post_31.html से लेकर न जाने कितनी उपाधियों से नवाजा जाता हैं . और वही ब्लॉगर इस तरह के लेखन पर साइंस का परदा डालते हैं . अरविन्द को पूरा अधिकार हैं ओह अपनी ब्लोग्पर कुछ भी लिखे पर
http://indianscifiarvind.blogspot.com/2008/07/blog-post_26.html
पर आए कमेन्ट को भी देखे
Anonymous said...
लो जी लो, नारियो की ठेकेदारनियाँ आ ही गयी। इनमे से एक तो अविवाहित है पर दूसरो के बसे-बसाये घर उजाड रही है। शादी का लड्डू खाया ही नही तो भला क्या बात करेंगी परिवार के बारे मे। --- और दूसरी, वो तो आप मसिजीवी का चेहरा देख के जान लेंगे। आइये , सताये हुये मसि के दुख के लिये कुछ पलो का मौन रखे। विज्ञान को न समझने वाली ये नारियाँ खूब उछल रही है। पर आप लिखते रहे ब्लागर भाई।
राज भाटिय़ा said...
अजी एक तरफ़ तो यह अपने आप को हमारे से ऊचा उठा रही हे, हम से मुकाबला कर रही हे एक तरफ़ एक अच्छे लेख पर भडक रही हे , वाह री नारी,जनाब आप किसी एक नारी को निशाना बना कर तो नही लिख रहे फ़िर यह बबाल क्यो? लिखो जी लिखो,
ब्लॉगर को महिला और पुरूष मे हिन्दी ब्लोगिंग के ठेके दारो ने बांटा हैं एक न्यूट्रल शब्द को लिंग भेद मे बांटना ग़लत था . उसका विरोध किया तो भी हम ग़लत थे , नारी या चोखेर बाली बनाया तो भी हम ग़लत हैं .
आज लोगो को नारियल शब्द लिखने से भी डर लगता हैं तो मुझे " भय बिन होये ना प्रीती " याद आता हैं
असली मुद्दे को भूल कर कुछ और बात को लाया जा रहा हैं . मुद्दा था की जो ब्लॉगर नारी स्वतंत्रता . नारी लेखन से समाजिक पतन को जोड़ते हैं वही मुस्करा मुस्करा कर साइंस पढ़ते हैं .