एक बनियान तक तो बिना नारी के बेच नहीं सकते , बात करते हैं बराबरी की . अब साबुन हो या मोटर साइकिल , या कार , अगर बेचनी हैं तो महिला बिना नहीं बेच पायेगे . बात करते हैं मार्केट के दुष्प्रभाव की , बात करते हैं महिला के अनावरण की , महिला को समझाते हैं की वह शरीर बेच रही हैं . क्यों समझाते हैं ,?? खुद क्यों नहीं एक अभियान चलाते की नहीं खरीदेगे कोई भी सामान जिस को बेचने मे किसी महिला का सहयोग हो . महिला मॉडल सामान से ज्यादा पॉवर रखती हैं इस लिये कंपनी अपने समान को बेचने के लिये मॉडल लाती हैं . वह शरीर नहीं अपनी काबलियत बेचती हैं . पर जिस को जो देखना होता हैं वह वही देखता हैं . आप देखते हो , कंपनी आप की कमजोरी को भुनाती हैं और एक मॉडल लाखो कमा कर अपनी जिन्दगी मे बहुत आगे निकल जाती हैं . और आप !!!! रोज टीवी का रिमोट दबाते रहते हो , अखबार , मगज़ीन मे पन्ने पलटते हो , बार बार देख कर नयन सुख भोगते हो और फिर महिला मॉडल की वज़ह से आयी हुई सामाजिक अनैतिकता पर एक लंबा आख्यान दे डालते हो , छु नहीं सकते केवल देख सकते हो तो मन की भडास निकालते हो .
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
August 21, 2008
एक बनियान तक तो बिना नारी के बेच नहीं सकते
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aap bahut jyada poorvagrah se grast hai. kya aap bata sakti hai ki kisi mahila advertisment producer ne kisi mahila ke bina apne advertisment ki kalpna ki ho? ya kisi mahila ne sahasi pose ko refuse kar diya ho?
ReplyDeleteashwariya raay nae ek wine ka add nahin kiya haen foreign kaa jismae usko kafi paesaa miltaa karan , us drink kaa naam ganga rakha jana tha
ReplyDeletekyaa kisi male model sae bhi aap yae poocheygae ki usney apna assignment kyon nahin chodaa jis mae sahasii pose tha
baat kaam ki haen aur us kaam ko respect kae saath accept karney kii haen
purva grah to aap ka bhi haen ki mahila kae pose ko aap sahasi pose kehtey haen
आप ने सच ही लिखा है. हर अच्छे या बुरे काम में महिलाऒ का योगदान, सहयोग या प्रेरणा होती ही है. महिलाओं के बिना पुरुष कुछ नहीं कर सकता. हां शायद महिलाओं को पुरुषों के सहयोग की आवश्यकता नहीं?
ReplyDeleteये तो वही बात हो गई कि खिसियानी बिल्ली क्या करे खंबा नोचे. देखिये महिलाओं को अभी अपनी भूमिका ख़ुद तय करनी है. महिला होकर एकता कपूर महिलाओं की क्या छवि दिखा रहीं हैं सबको पता है. क्या यही नारी है? जहाँ तक सामान बेचने का सवाल है तो विज्ञापन में काबिलियत नहीं नंगई बिक रही है, इसे समझना होगा. काबिलियत होती तो पुरुषों के अंडरवियर बेचने महिला कम कपडों में नहीं आती. पूर्वाग्रह का चश्मा हटा कर नारी की वास्तविक शक्ति को पहचानिये.
ReplyDeletemae ektaa kapoor kae serial nahin daekhtee aap bhi naa daekhae swayam band ho jayegae , par serial band ho jaane sae ekta kapoor jo aaj TV queen kelaatee haen uski kabliyat nahin khatam hotee . aur wasae ekta kapur kae serial ki har mahila sashakt haen chahey woh vamp hii kyu naa ho , wo purusho ko nakar rahee haen kyoki uskae serial ka har purush kuch nahin kartaa . kabhie soch kar daekhae ki wo asli mae kyaa sandesh dae rahee haen naari jagat ko aur vakai aashchary kii baat haen ki kisii bhi purush mae yae jagruktaa hahin aayee ki is baat ko lae kar kucch karey . PURUSH CHAVII KA SATYAANASH HO RAHAA HAEN chetna laaye apni community mae dr Kumander singh jii
ReplyDeletekehtey haen naari kae liyae uska pati hee purush hota haen baaki koi vastr heen purush ho to wo usko maatrtav ki nazar sae daekhtee haen . teen loko kae swaami ko bhi ek naari nae bachchaa banaa liyaa tha yaad karey
ReplyDeletephir vigyapan mae aap ko nangaaii nahin deekahegee , agar isko khatam karna haen to issay upar uthaey
रचना जी मैं सम्मान करता हूँ आपके विचारों का शायद इसी कारण से अपना ब्लॉग जब बनाया तो इधर-उधर घूमने में परेशानी न हो आपके ब्लॉग का लिंक बनाया. इसका एक और कारण मेरे मन में नारी जाती के लिए सम्मान की भावना का होना भी है, क्योंकि मेरा जन्म एक नारी की कोख से हुआ है. समस्या नारी की स्थिति दिखने-दिखाने की नहीं उसकी उस छवि को तार-तार करने की है जिसके उदाहण आप दे रहीं हैं.
ReplyDeleteसमस्या तो यहीं है यदि आदिकालीन मर्यादित नारी के उदहारण पुरूष दे तो वो नारी को गुलाम रखने की मानसिकता कही जायेगी और यदि यही उदहारण नारी दे तो उसे नारी सशक्तिकरण कहा जाएगा. हम तो अपनी कम्युनिटी को सुधरने में लगे हैं आप भी मुगालते में ना रहें तो अच्छा होगा.
धन्यवाद इस पर बाक़ी चर्चा कभी अपने ब्लॉग http://kumarendra.blogspot.com पर या http://stri-vimarsh.blogspot.com पर करेंगे.
नारी प्रतीक हैं शक्ति का . ye aapke hii sandesh se.
ReplyDeletesanger ji
ReplyDeletemae bhi sabkaa samaan hee kartee hun , aur vimarsh mae agar apshabd naa ho to samaan aur apamaan kaa prashn nahin hota
aap ko agar maere shabdo mae koi shabd apne vyktitav kae liyae aapman janak mehsoos hua ho to kshama karey. behas mae maan smaam , apmaan kuch nahin hota , behas mae jitna jarurii hota haen sahii tathyo kae saharey
बहुत ही कडवा सच हॆ कि 'छू नहीं सकते केवल देख सकते हो तो मन की भडास निकालते हो।'
ReplyDeleteवॆसे ऒरत अगर कम कपडों में दिखे तो बवाल मच जाता हॆ जबकि पुरुष कुछ भी पहने या ना पहने, कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
रचना जी से एक सनम्र निवेदन:
ReplyDeleteब्लॉग पोस्ट के अलावा टिप्पणियों समेत अन्य स्थानों पर, अपनी काबलियत दर्शाते हुये कृपया देवनागरी लिपि का प्रयोग करें।
बनियान वाली पोस्ट पर तो एक कहावत का ख्याल आया। अरे वही छुरी-खरबूजे वाली
एक मॉडल लाखों कमा कर अपनी जिन्दगी मे बहुत आगे निकल जाती हैं
ReplyDelete------
क्या वाकई ?आगे निकलने के आपके पैमाने मुझे विचित्र लगे।
आप समस्त प्रसंग को जिस दृष्टिकोण से देख रही हैं पुरुष का स्त्री मॉडल के प्रति है।स्वयम स्त्री क्या मह्सूस करती है?
अभाव और चाह!!
चाह उस हीरे,साबुन या फेयनेस क्रीम की जिसे ऐशवर्या ने लगाया हो।वह एक खूबसूरत और हिट अभिनेत्री के पदचिह्नों पर चलना चाहती है।क्योंकि बाज़ार ही उसे समझा रह हैकि -खूबसूरती बस मे, दुनिया कदमों में।
तो ज़ोर खूबसूरती पर है।
आपका नज़रिया मज़ेदार है और इस पर आगे भी विचार करते रहना चाहिये। बहुत कुछ एक दूसरे से समझ सकेंगे हम सब ।
sujata
ReplyDeletemae kewal aur kewal woman empowerment ki baat kartee hun , har feild mae upaar aur aagey jaatii mahilaa ki aur usko 4 baatey sunatey samaj ki. aapney sahi kehaa ki "duniya kadma mae " bas har ladaaii ka yahii mudaa haen . sangharsh mae wahii aagey jaata haen jo duniya ko jhuka sakney ki taakat rakhtaa haen . agar koi kisii kae jaese bananaa chahtaa hae to usko wahaan tak pahuchnay kae liyae bahut mehnat karni hogee . mae model mae sundertaa nahin usakaa kaam karkae paesaa kamney kaa jazba daekhtee hun aur un logo daekhtee hun jo kuch nahin kartey bas kewal meen makh nikal tey haen . mil kar hii baat clear hotee haen
aap blog par aaayee bahut achchaa laga .
@"एक बनियान तक तो बिना नारी के बेच नहीं सकते".
ReplyDeleteयह जो हो रहा है उचित नहीं है. नारी देह का ऐसा प्रदर्शन सभ्य समाज पर एक कलंक है.
बना दिया बाज़ार राष्ट्र को भूल गए अपना इतिहास.
१) पुरूष ऐसी चीज़ों को देखना छोडें, २) महिलाएं ऐसी चीज़ों के विज्ञापनों में नंगा होना छोडें. गलती दोनों की है. एक ही लेख में गुस्सा, विचार और थोड़ा-सा व्यंग्य - सभी निकाल गरे हैं आपने!
ReplyDeleteactually females have to have their agitation forum against such type of ads. they should form a action forum which will not only raise voice against all the person who try to molest the dignity of women, compell her for compromise but at the same time you must remember that it is not so much easy to use a woman against her will. if you see the magazines such as cosmopotian, playboy etc you will find indecent photos of females which have not been taken by force but they have been paid huse sum of money.
ReplyDeleteyou need to understand that unless and until women are willing to accept indecent ads nobody can help them. they must jave the courage to refuge revealing ads whatever be the payment but no is no. all the female models also have to be united so that if a female model has refused any ad no other model will accept it.
somebody has said that exploitation is possible of the person having
1-beauty
2-ambitions
3-no brain
so you are requested that you should make the females, especially in the field of modelling, aware agaist the male intrigue of their exploitation and bycot the females who accept such type of ads for name fame or money. men will watch all the indecent things be it a painting ad or film. if you can not control male mentality you atleast, as a forum for woman empowerment, can atleast make all the females aware not to accept body revealing ads and if not bycott them.
---स्त्री बोध-----
ReplyDeleteजीवन पथ के
लम्बे गुजरते रास्तो पर,
एक बार नही
अनेको बार
मुझे अपने बोध का
अहसास हुआ है..
पिता की
गोद से लेकर ,
मा के आन्चल तक .
गाव की गली से लेकर,
शहर की चोडी
सडक तक.
इस बोध के विष को
ना जाने कीतनी ही बार
पीना पडा है,
फिर भी इसका भार ,
मेरे व्यक्तीत्व को
नही दबा पाया है ,
क्यु की मैने तो
उसको हमेशा ,
हर बार काठ की तरह,
इसके उपर ही
तैरता पाया है .....................गुरु कवी हकीम