लिव इन रिलेशनशिप यानी सहजीवन। आपको याद होगा कि अपने देश में इस विषय पर विवाद की शरुआत दक्षिण भारतीय सिने जगत की सुपर स्टार खुशबू के उस बयान से शुरू हुई थी जिसमें उन्होंने विवाह पूर्व सेक्स संबंधों को जायज ठहराया था और इसके फलस्वरूप तमिलनाडु में काफी हो-हल्ला हुआ था। अब कोर्ट ने उनके पक्ष में निर्णय देकर एकबार फिर उस विवाद को हवा दे दी है। पक्ष-विपक्ष में हर तरह के विचार आ रहे हैं। कुछ लोग विवाह नाम की संस्था को सामाजिक ढकोसला मानकर इसकी आवश्यकता पर ही प्रश्न चिह्न लगा रहे है।
प्रागैतिहासिक काल में विवाह नाम की संस्था नहीं थी, स्त्री-पुरुष आपस में सेक्स संबंध बनाने के लिए स्वतंत्र थे। समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ नियम बनाए गए और विवाह नाम की संस्था ने जन्म लिया। समय के साथ समाज की रीति नीति में काफी परिवर्तन आए है, इंसान की पैसे की हवस और अहम की भावना ने इस संस्था को काफी नुकसान पहुँचाया है, लेकिन मात्र इसके कारण इसकी आवश्यकता पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता।
सहजीवन पश्चिमी अवधारणा है, जिसके कारण वहां का सबसे ज्यादा सामाजिक विघटन हुआ है। परंतु धीरे-धीरे अपने देश में भी लोकप्रिय हो रही है। खासकर देश के मेट्रोपोलिटन शहरों में रहने वाले युवाओं के मध्य इस तरह के रिश्ते लोकप्रिय हो रहे है। पहले इस तरह के रिश्ते समाज में एक तरह के टैबू के रूप में देखे जाते थे, पर अब फैशन के तौर पर इन्हें अपनाया जा रहा है। इस तरह के रिश्तों को युवाओं का समाज के रीति-रिवाजों के प्रति एक विद्रोह माना जाय या एक आसान जीवन शैली- जिसमें वे साथी की जिम्मेदारियों से मुक्त एक स्वतंत्र जीवन जीते है। यह एक तरह की ट्रायल एंड एरर जैसी स्थिति होती है जिसमें यदि परिस्थितियां मनोकूल रही हैं तो साथ लंबा रहता है अन्यथा पहले साथी को छोड़ कर आगे बढ़ने में देर नहीं लगती। अगर आप भावुक है और रिश्तों में वचनबद्धता को महत्व देते है तो आपको सहजीवन की अवधारणा से दूर ही रहना चाहिए, यहां वचनबद्धता जैसे नियम लागू नहीं होते। यहां सामाजिक नियमों को दरकिनार कर साथ रहने का रोमांच जरूर होता है, लेकिन इस बात की गारंटी नहीं होती कि परिवार और समाज की अवहेलना कर यह रोमांच कितनी अवधि तक जीवित रहेगा।
यहां पर मैं सुप्रीम कोर्ट के ही एक और निर्णय की ओर भी आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगी, जिसके अनुसार मां-बाप का यह हक है कि उनके बच्चे बुढ़ापे में उनकी देखभाल करें। ऐसा न करने पर उन्हें कानूनन दंडित किया सकता है। अब यही पर कन्फ्यूजन क्रिएट होता है। सहजीवन भारतीय समाज द्वारा मान्य नहीं है दूसरे ऐसे बच्चे जिनकी अपनी जीवन-धारा ही सुनिश्चित न हो, वे अपने मां-बाप को इसमें कैसे शामिल करेंगे? इस तरह के रिश्ते सिवाय सामाजिक विघटन के हमें और कुछ नहीं दे सकते।
अंत में मैं एक बार फिर अभिनेत्री खुशबू का उल्लेख करना चाहूंगी। खुशबू ने अपने लिव इन रिलेशनशिप से उस समय काफी गहरी चोट खाई थी, जब शिवाजी गणेशन के सुपुत्र प्रभु से अपने रिश्तों को सार्वजनिक करने के बाद भी, प्रभु ने न तो इन रिश्तों को स्वीकारा और न ही अपनी पत्नी से अलग हुए । बाद में खुशबू ने दक्षिण भारतीय फिल्मों के मशहूर एक्टर और डायरेक्टर सी.सुदंर से विवाह करने के लिए मुस्लिम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया। शायद उस समय तक उनको इस बात का अहसास पूरी तरह हो गया था कि विवाह ही एक ऐसी संस्था है जो आपको भावात्मक सुरक्षा और जीवन में साथ निभाने की वचनबद्धता देती है। सहजीवन थोड़े समय के लिए आपको रोमांचित तो कर सकता है, लेकिन लंबे साथ की कामना आप इससे नहीं कर सकते।
आज जरूरत है कि विवाह संस्था में आई कुरीतियों को दूर करने की, ताकि पारिवारिक संबंधों में पारस्परिक गरमाहट बढ़े। हमारा चिंतन परिवार नाम की संस्था को दृढ़ता बढ़ाने के लिए होना चाहिए।
-प्रतिभा वाजपेयी
प्रागैतिहासिक काल में विवाह नाम की संस्था नहीं थी, स्त्री-पुरुष आपस में सेक्स संबंध बनाने के लिए स्वतंत्र थे। समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ नियम बनाए गए और विवाह नाम की संस्था ने जन्म लिया। समय के साथ समाज की रीति नीति में काफी परिवर्तन आए है, इंसान की पैसे की हवस और अहम की भावना ने इस संस्था को काफी नुकसान पहुँचाया है, लेकिन मात्र इसके कारण इसकी आवश्यकता पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता।
सहजीवन पश्चिमी अवधारणा है, जिसके कारण वहां का सबसे ज्यादा सामाजिक विघटन हुआ है। परंतु धीरे-धीरे अपने देश में भी लोकप्रिय हो रही है। खासकर देश के मेट्रोपोलिटन शहरों में रहने वाले युवाओं के मध्य इस तरह के रिश्ते लोकप्रिय हो रहे है। पहले इस तरह के रिश्ते समाज में एक तरह के टैबू के रूप में देखे जाते थे, पर अब फैशन के तौर पर इन्हें अपनाया जा रहा है। इस तरह के रिश्तों को युवाओं का समाज के रीति-रिवाजों के प्रति एक विद्रोह माना जाय या एक आसान जीवन शैली- जिसमें वे साथी की जिम्मेदारियों से मुक्त एक स्वतंत्र जीवन जीते है। यह एक तरह की ट्रायल एंड एरर जैसी स्थिति होती है जिसमें यदि परिस्थितियां मनोकूल रही हैं तो साथ लंबा रहता है अन्यथा पहले साथी को छोड़ कर आगे बढ़ने में देर नहीं लगती। अगर आप भावुक है और रिश्तों में वचनबद्धता को महत्व देते है तो आपको सहजीवन की अवधारणा से दूर ही रहना चाहिए, यहां वचनबद्धता जैसे नियम लागू नहीं होते। यहां सामाजिक नियमों को दरकिनार कर साथ रहने का रोमांच जरूर होता है, लेकिन इस बात की गारंटी नहीं होती कि परिवार और समाज की अवहेलना कर यह रोमांच कितनी अवधि तक जीवित रहेगा।
यहां पर मैं सुप्रीम कोर्ट के ही एक और निर्णय की ओर भी आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगी, जिसके अनुसार मां-बाप का यह हक है कि उनके बच्चे बुढ़ापे में उनकी देखभाल करें। ऐसा न करने पर उन्हें कानूनन दंडित किया सकता है। अब यही पर कन्फ्यूजन क्रिएट होता है। सहजीवन भारतीय समाज द्वारा मान्य नहीं है दूसरे ऐसे बच्चे जिनकी अपनी जीवन-धारा ही सुनिश्चित न हो, वे अपने मां-बाप को इसमें कैसे शामिल करेंगे? इस तरह के रिश्ते सिवाय सामाजिक विघटन के हमें और कुछ नहीं दे सकते।
अंत में मैं एक बार फिर अभिनेत्री खुशबू का उल्लेख करना चाहूंगी। खुशबू ने अपने लिव इन रिलेशनशिप से उस समय काफी गहरी चोट खाई थी, जब शिवाजी गणेशन के सुपुत्र प्रभु से अपने रिश्तों को सार्वजनिक करने के बाद भी, प्रभु ने न तो इन रिश्तों को स्वीकारा और न ही अपनी पत्नी से अलग हुए । बाद में खुशबू ने दक्षिण भारतीय फिल्मों के मशहूर एक्टर और डायरेक्टर सी.सुदंर से विवाह करने के लिए मुस्लिम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया। शायद उस समय तक उनको इस बात का अहसास पूरी तरह हो गया था कि विवाह ही एक ऐसी संस्था है जो आपको भावात्मक सुरक्षा और जीवन में साथ निभाने की वचनबद्धता देती है। सहजीवन थोड़े समय के लिए आपको रोमांचित तो कर सकता है, लेकिन लंबे साथ की कामना आप इससे नहीं कर सकते।
आज जरूरत है कि विवाह संस्था में आई कुरीतियों को दूर करने की, ताकि पारिवारिक संबंधों में पारस्परिक गरमाहट बढ़े। हमारा चिंतन परिवार नाम की संस्था को दृढ़ता बढ़ाने के लिए होना चाहिए।
-प्रतिभा वाजपेयी
sahi kaha aapne
ReplyDeleteसहजीवन थोड़े समय के लिए आपको रोमांचित तो कर सकता है, लेकिन लंबे साथ की कामना आप इससे नहीं कर सकते।
ReplyDeleteआज जरूरत है कि विवाह संस्था में आई कुरीतियों को दूर करने की, ताकि पारिवारिक संबंधों में पारस्परिक गरमाहट बढ़े। हमारा चिंतन परिवार नाम की संस्था को दृढ़ता बढ़ाने के लिए होना चाहिए।
बिल्कुल सहमत हूं आपसे !!
आज जरूरत है कि विवाह संस्था में आई कुरीतियों को दूर करने की,
ReplyDeleteIts very very important that we bring man and woman at one level so that both get equal opportunity in everything including marriage
अगर शादी में पतिपरमेश्वर और चरणों की दासी वाला विचार हटा दिया जाए तब बात बन सकती है ...
ReplyDeleteदोनों पढ़े लिखे है समझदार है योग्य है ...तो फिर समान सम्मान मिले
मैं इस मामले को अलग दृष्टिकोण से देखती हूँ. आपको ये लगता है कि लिव इन को कानूनी मान्यता मिल जाने से इसकी प्रवृत्ति बढ़ेगी मुझे नहीं लगता. लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता न होने से सबसे अधिक नुकसान उन भोली-भाली लड़कियों को होता है, जिन्हें कुछ धूर्त लोग प्यार का झांसा देकर रिश्ते में बाँध लेते हैं. यहाँ हम यह कहकर छुट्टी नहीं ले सकते कि जैसा किया है भुगतो क्योंकि आज की परिस्थितियाँ अलग हैं, इस प्रवृत्ति को रोका नहीं जा सकता इससे आप इन्कार नहीं कर सकते.
ReplyDeleteकानूनी मान्यता न होने से ऐसे लोगों को पुलिस अक्सर परेशान करती है.कानूनी मान्यता मिलने से ऐसे लोगों को राहत मिलेगी. खैर, मैं अपना दृष्टिकोण विस्तार से किसी पोस्ट में लिखूँगी.
इस रिश्ते से उत्पन्न होने वाले बच्चों को भी कानूनी मान्यता मिल जाने से राहत मिलेगी, वे अवैध सन्तान नहीं कहलायेंगे. और दूसरी बात फिर लोग इस रिश्ते को सिर्फ़ मौज-मस्ती के लिये इस्तेमाल करने से भी हिचकेंगे.
ReplyDeleteलोग कह सकते हैं कि फिर इसमें और शादी में फ़र्क क्या रह जायेगा? तो यही फ़र्क होगा कि शादी में होने वाली औपचारिकताएँ जैसे---जाति के अन्दर शादी करना; गोत्र के बाहर शादी करना; जाति में भी फलां गोत्र में न करना; दुनिया भर की रस्में; जिनमें न चाहते हुये अथाह पैसा खर्च होता है; दहेज; शादी की पवित्रता और प्रतिष्ठा के चलते औरतें घरेलू हिंसा सहते हुये और पति की बेवफाई को बर्दास्त करते हुये भी निभाती रहती हैं---ये सब नहीं रहेगा.
सबसे बड़ी बात दो वयस्क लोगों पर दुनिया दबाव नहीं डालेगी कि शादी कर लो. लोग स्वतन्त्र होंगे कि वे शादी करना चाहते हैं या लिव इन में रहना चाहते हैं.
विवाह ही एक ऐसी संस्था है जो आपको भावात्मक सुरक्षा और जीवन में साथ निभाने की वचनबद्धता देती है। सहजीवन थोड़े समय के लिए आपको रोमांचित तो कर सकता है, लेकिन लंबे साथ की कामना आप इससे नहीं कर सकते।
ReplyDeleteआज जरूरत है कि विवाह संस्था में आई कुरीतियों को दूर करने की, ताकि पारिवारिक संबंधों में पारस्परिक गरमाहट बढ़े। हमारा चिंतन परिवार नाम की संस्था को दृढ़ता बढ़ाने के लिए होना चाहिए।
----------------------------------
आपके मत से सहमत - वीनस केशरी
जीना पड़ेगा तो ये उनकी खुशफहमी है उन्हें जानकारी के लिए बता दू की घरेलू हिंसा के अन्दर लिवइन रिलेशन को भी रखा गया है वजह थी इस रिश्ते में भी बढती हिंसा अब ये बताने की जरुरत नहीं है की हिंसा कौन कर रहा था और कौन सह रहा था ये रिश्ता पुरुषवादी समाज की एक नई ढकोशला है परिवार की जिम्मेदारियों से बचने का और आजादी और आधुनिकता के नाम पर लडकियों को बेवकूफ बनाने का आप बताये की कितने लोग ऐसे रिश्तो को शादी में बदलते है | इस तरह के रिलेशन में रहने वाले ज्यादातर पुरषों के एक समय में एक से ज्यादा लडकियों से संम्बंध होते है | खुद जब वो शादी करते है तो लड़की के वर्जन होने की चाहत रखते है | जो लड़की समाज की न सुन लिवइन रिलेशन में रह सकती है मुझे नहीं लगता वो इतनी कमजोर होगी की विवाह के बाद पति की दासी बन कर रहे दो हमझादार और पढ़े लिखे लोग जो एक दुसरे के साथ वफादार है उन्हेंलिव इन रिलेशन में रहने की जरुरत ही क्या है वो विवाह करके भी रह सकते है रही बात पति की बेवफाई की तो सभी को ऐसे समय पर पति से तलाक लेने का हक़ है पति को काम से काम पत्नी को निर्वहन खर्चा देने की सजा तो मिलेगी पर लिव इन में तो उन्हें आप कुछ भी नहीं कर सकती
ReplyDeleteर लिव इन में तो उन्हें आप कुछ भी नहीं कर सकती
ReplyDeleteexactly that is why court wants to legalize this so that the woman who are victims get proper compensation adn their children also get compensation
woman need to financialy independenet and educated so that they can think from their own brain and dont get swayed by what society thinks is good for them
सहजीवन थोड़े समय के लिए आपको रोमांचित तो कर सकता है, लेकिन लंबे साथ की कामना आप इससे नहीं कर सकते।
ReplyDeleteआज जरूरत है कि विवाह संस्था में आई कुरीतियों को दूर करने की, ताकि पारिवारिक संबंधों में पारस्परिक गरमाहट बढ़े। हमारा चिंतन परिवार नाम की संस्था को दृढ़ता बढ़ाने के लिए होना चाहिए।
1. आपने विषय की मूलभूत अंतर्वस्तु को उसकी समूची विलक्षणता के साथ बोधगम्य बना दिया है।
2. यह रचना --- --- समस्या के विभिन्न पक्षों पर गंभीरती से विचार करते हुए कहीं न कहीं यह आभास भी कराती है कि विवाह संस्था में आई कुरीतियों को दूर करने की आवश्यकता है।
३. बेहद तरतीब और तरक़ीब से अपनी बात रखी है। सार्थक शब्दों के साथ तार्किक ढ़ंग से विषय के हरेक पक्ष पर प्रकाश डाला गया है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
रचना जी कोर्ट में पति के अत्याचारों और उसकी बी बेवफाई को साबित करने और न्याय मिलाने में इतना समय लग जाता है तो लिव इन रिलेशन में हम कैसे साबित कर पाएंगे की हमारे साथ धोखा हुआ है हमें शादी के नाम पर ठगा गया है न्याय मिल भी गया तो क्या भावनात्मक रूप से हुए नुकसान को तो कोई भी नहीं पुरा कर सकताऔर जब किसी के साथ रह कर बच्चे ही पैदा करना है तो फिर शादी में क्या बुराई है | मान लीजिये बच्चा बड़ा हो कर आप से इस बारे में सवाल करे आप तो समाज से लड़ ली पर वो नहीं कर पाया तो आप उसको क्या जवाब देंगी | आप ने कहा की लड़किया पढ़ी लिखी है उनके पास अपना दिमाक है और वो अपना निरणय ले सकती है पर समस्या ही तो यही है ऐसे मामलों में लड़किया अपना दिमाग ही कहा प्रयोग करती है वह ये सारे फैसले दिल के सहारे करती है जब की पुरुष हर मामले में दिमाग लगाने की चालाकी करता है | यदि हर किसी को ऐसे रिश्ते बनाने की छुट दी जाये तो हर पुरुष एक साथ कई लडकियों के साथ रिश्ते रखेगा वो कहेगा किसी एक के साथ रहना ही होता तो वो शादी नहीं कर लेता वो तो आजादी के लिए ही इस रिलेशन में है | फिर क्या वो स्थिति किसी लड़की के लिय सहज और सम्मानित होगी | ये सही है की समाज को किसी के बारे में निर्णय लेने का हक़ नहीं है पर समाज ने ये नियम समाज को अराजकता और जंगल राज से बचाने के लिए ही लिया है पुरुषवादी समाज जनता है की यदि उसने ये नियम नहीं बनाया तो नारी को सिर्फ भोग का सामान समझने वाला पुरुष हर नारी के साथ इस तरह से रिश्ते बनाते फिरेगा और नुकसान में सिर्फ नारी ही होगी |
ReplyDeleteRachna ji ,
ReplyDeleteThis is to seek your kind attention to an article published in magazine section of today's "Dainik Hindustan". Very derogatory language has been used against single girls in it. My blog is not the right forum to raise this issue ,but i hope u 'll follow the article and register your concern against this tendency of papers. Regards.
munish
ReplyDeletecan you please email the cutting to me and i dont see any reason why you should not voice your objection on your blog . it would be more effective but still i can assure you if you can send it to me it will be up here
regds
rachna
नारी को सिर्फ भोग का सामान समझने वाला पुरुष हर नारी के साथ इस तरह से रिश्ते बनाते फिरेगा और नुकसान में सिर्फ नारी ही होगी |
ReplyDeleteiskae liyae sirf shikyaat karnae sae kyaa hogaa
apnae ko majboot karey har naari aarthik rup sae aur shiksha sae aur apnae nirnay khud lae
purush ko apni suraksha kaa daaitva kyun soptee haen naari apni suraksha khud karaey
agar aap kisi ki kshter chaaya mae rehna chahtey haen to aap ko uskae hisaab sae hi to chalna hoga
मेरे ख्याल से कोर्ट ने यह नहीं कहा है कि सब लोग ’लिव इ” में रहने लग जायें और न कोर्ट के कहने पर लोग ऐसा करने लगेंगे. सवाल ये नहीं है कि किसी को लिव इन में रहना चाहिये या नहीं. "चाहिये" तो समाज में बहुत कुछ, पर सब कुछ चाहने से नहीं होता. न मेरे चाहने से सब "इव इन" को अपना लेंगे और न किसी और के न चाहने से उसे छोड देंगे. सवाल ये है कि जिन लोगों ने परिस्थितिवश ’लिव इ’ को चुना है, उनके साथ अपराधियों वाला व्यवहार न किया जाये क्योंकि वो लोग समाज को कोई नुकसान नहीं पहुँचा रहे हैं, सिर्फ़ अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह जी रहे हैं और ये भी कि उन दोनों में आपस में कोई इस सम्बन्ध का फ़ायदा न उठा पाये और उनके बच्चों को कानूनी रूप से वैध माना जाये. ये सब तभी हो सकता है, जब लिव इन को कानूनी वैधता मिल जाये. मेरे ख्याल से कानूनी मान्यता मिलने से इसे ये सोचकर अपनाने वालों पर रोक लगेगी कि ये तो ज़िम्मेदारी से मुक्त व्यवस्था है क्योंकि उन्हें डर होगा कि वे अगर अपनी ज़िम्मेदारी से भागेंगे तो कानून उन्हें पकड़ लेगा. तब वही लोग इसे अपनायेंगे जो इसे लेकर गम्भीर हैं और सैद्दान्तिक रूप में इसे शादी की कमियों के विकल्प के रूप में देखते हैं.
ReplyDeleteइस रिश्ते से उत्पन्न होने वाले बच्चों को भी कानूनी मान्यता मिल जाने से राहत मिलेगी, वे अवैध सन्तान नहीं कहलायेंगे. और दूसरी बात फिर लोग इस रिश्ते को सिर्फ़ मौज-मस्ती के लिये इस्तेमाल करने से भी हिचकेंगे.
ReplyDeleteदो हमझादार और पढ़े लिखे लोग जो एक दुसरे के साथ वफादार है उन्हेंलिव इन रिलेशन में रहने की जरुरत ही क्या है
ReplyDeleteaapki post achchhi aur sateek lagi ...is masle par maine apni raay is post men likhi hai...
ReplyDelete'लिव-इन रिलेशनशिप ' या फिर 'लीगलाइज्ड पेड सेक्स'...?
isee tarah kee soch ko protsahan milanaa chaiye. aadhunikataa k naam par moolyo ke saath, parmparao k saath khilvaad bhi theek nahee.aapke lekh se bahuto ko sahi dishaa milegee. badhai, issakaratmak chintan k liye.
ReplyDelete