नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

October 07, 2008

स्त्री को भोग्या बनाने वाले ब्लॉगर





पिछले तक़रीबन एक महीने से एक ब्लॉगर e guru के नाम से नारी आधारित विषयों पर अपनी राय बढ़ जढ़ कर लिख रहें हैं । सबसे ज्यादा भारतीये संस्कृति के बात और नारी को कैसे रहना चाहिये और उन्हे कैसे जीवन जीना चाहिये और कौन कौन से पेशे नारी के लिये सही हैं और कहां कहां नारी का शोषण नारी के गलत कपड़ो और नारी के गलत कैरियर चुनाव कारण होता हैं शास्त्री जी के ब्लॉग पर ही होता हैं । अभी उन्होने तीन अध्यायों मे

" स्त्री भोग्या नहीं है!! "

"स्त्री को भोग्या बनाने की कोशिश! "

"स्त्री को भोग्या बनाने वाले पेशे! "

को वैज्ञानिक तर्कों के सहारे समझाया हैं { अब दिनेश जी को समझ नहीं आया तो इसमे शास्त्री जी की क्या गलती हैं } लेकिन e guru राजिव जी को बिल्कुल समझ आगया और उन्होने तीनो लिंकों पर विस्तार से अपनी टिप्पणी दे कर समझाया की


ई-गुरु राजीव October 5, 2008 10:53 am

२१ वीं सदी की नारियाँ जो नियंत्रणहीन हैं और वे ख़ुद को अनावृत्त करने के लिए स्वतन्त्र हैं, स्वच्छंद हैं, बल्कि उनके लिए यह मौज-मजे की बात है॥सच बात है किसी एक को तो ख़ुद पर रोक लगानी ही होगी।उन्हें दोषी नहीं माना जाय, अनावृत्त ( निर्वस्त्र ) होने दें.हम अपनी आखें फोड़ लें या उन्हें अनदेखा कर दें. नहीं तो हम पतित कहे जायेंगे. हर सदी में उनके साथ ऐसा होता आया है.अब नहीं होना चाहिए अब हमें अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण पाना सीख लेना चाहिए.मैं आपकी इस बात से सहमत हुआ, बल्कि हमेशा से ही था कि ख़ुद को अनावृत्त कर देने वाली औरतों को देखना ही नहीं चाहिए. उनकी हमेशा ही उपेक्षा करता आया हूँ और ऎसी अधनंगी औरतें सम्मान के काबिल हो ही नहीं सकती. तो क्यों हम उनकी ओर देखकर आत्म-नियंत्रण खोएं. हमें ख़ुद पर नियंत्रण रखना आना चाहिए. हम क्यों उनके ख़ुद के अनावरण का सहारा लेकर अपना अनियंत्रण छुपाने की कोशिश करते हैं.

ई-गुरु राजीव October 6, 2008 2:55 pm

स्त्री कोमल होती है, यह सच्चाई है इसे स्वीकार करें.एक-दो अपवाद…. यदि हों……। तो छोड़ दें और मान लें स्त्री कोमल है,उसे कमज़ोर तो कोई कह भी नहीं रहा है, न मैंने कहा, न सतीश जी, न शास्त्री जी और न ही किसी और टिपण्णीकार ने।पता नहीं आपने ऐसी बात क्यों कह दी है !!राजीव गाँधी की हत्यारिन ने अपनी गलती मान ली लेकिन क्या अफज़ल गुरु ने यह माना कि संसद पर हमला उसकी गलती थी !! कभी नहीं मानेगा।इसीलिए यह लिंग-भेद प्राकृतिक है।मेरे कहने पर मत जाइए पर प्रकृति के विरुद्ध जाकर सीमा पर जंग लड़के अपनी परेशानी मत बढाइये.आप ने कहा कि ” फ़ीज़िक्स ,केमस्ट्री ,मैथ्स और भूगोल से हट कर भी स्त्री का अपना वजूद है ” बिल्कुल है मैं सहमत हूँ और इतिहास की बात करता हूँ. रजिया सुल्ताना हों या रानी लक्ष्मीबाई या रानी दुर्गावती, दूसरा युद्ध कौन लड़ सका था !!कोई नहीं, क्यों !! क्योंकि वे कोमल थीं. ( ध्यान रहे कि मैं उनका अपमान नहीं कर रहा हूँ. )पूरे विश्व इतिहास में कोई भी महिला आप बता दें, जो हिटलर, मुसोलिनी, चंगेज़ खान, बाबर, अकबर, शेरशाह सूरी, अशोक, सिकंदर किसी से मेल-जोल खाता हो. नहीं है, न !! पर आप मारग्रेट थैचर, इंदिरा गांधी, इंदिरा नुई, ऐश्वर्या राय, मदर टेरेसा, हाल में चर्चित सारा पौलिन { }के नाम ले सकती हैं, { और मायावती भी } ये लोग समाज में बहुत ही चर्चित थे या हैं. ये सफल महिला कही जाती हैं, पर ये तीर, तलवार चलाने वाली नहीं कोमल महिलायें हैं जो समाज में रहकर काम करती रहीं. नारी सशक्तिकरण इनसे हुआ है. सीमा पर लड़ कर सशक्तिकरण नहीं दिखाया जाता है. बनाना है तो इनकी तरह बनिए, देश समाज का नाम रौशन करें, न कि देश, समाज को रौंदकर ख़ुद को सशक्त साबित करें.

और इसके बाद राजिव जी की तीसरी टिपण्णी आयी तीसरे लिंक पर

ई-गुरु राजीव October 7, 2008 12:00 pm

” स्त्री भोग्या नहीं है, एवं यदि कोई व्यक्ति उल्टेसीधे तर्कों के आधार पर स्त्री के यौनिक शोषण का पक्ष लेता हैं तो वह स्त्रीस्वतंत्रता का पक्षधर नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की आड में वे छुपा हआ स्त्रीविरोधी है! ”
शत-प्रतिशत सही बात.
कुछ पुरूष स्त्री-लम्पट होते हैं और कुछ स्त्रियाँ पुरुषों को लम्पट बनाने का प्रयास कर रही हैं और कुछ पेशे भी इन दोनों को बढ़ावा दे रहे हैं क्योंकि वहाँ पर ये दोनों ही अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर लेते हैं।और यही बातें एक सभ्य समाज को पतन की ओर ले जाने वाली हैं, इनका हर स्तर पर विरोध होना ही चाहिए.कुछ बातें जैसे-1. स्क्रिप्ट की डिमांड,2. बार-गर्ल का आसान तरीका अधिकाधिक रूपये कम समय में बना लेने का,3. बार-टेंडर बन शराब परोसना.

इनका ख़ुद का ब्लॉग है जिस पर ये एक विदेशी महिला का चित्र लगाए हुए हैं और चित्र पर बडे ही फक्र से लिख रहे हैं "the home of blogs pandit " ऊपर स्क्रीन शोट हैं इनके चिट्ठे का । और शास्त्री जी नारी उत्थान की बात करते हैं लेकिन साथ साथ ऐसे ब्लोग्गेर्स को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं जो नारी को भोग्या बनाते हैं { इस लिंक पर शास्त्री जी महिमा मंडन कर रहे e guru rajiv ji का । बिना किसी का प्रोफाइल चेक किये उसको आगे बढ़ाना कितना उचित हैं ?? जवाब शायद नहीं देगे शास्त्री जी क्योकि उनका हर लेख " क्रमश " होता हैं । लेकिन लिखा वही जाता हैं जो पहले लेख मे होता हैं

http://sarathi.info/archives/1124
http://sarathi.info/archives/1126
"

http://sarathi.info/archives/1124

http://sarathi.info/archives/1126

http://sarathi.info/archives/1131

http://sarathi.info/archives/1132

स्त्री भोग्या नहीं है!! "
"स्त्री को भोग्या बनाने की कोशिश! "
"स्त्री को भोग्या बनाने वाले पेशे! "

कोई भी लिंक खोल ले एक ही बात है की नारी के वस्त्र नारी को भोग्या बनाते हैं और नारी को अनुशान मे रहना होगा। एक ही बात को बार बार कह कर वो "कंडिशनिंग " को बढ़ावा दे रहे हैं । कंडिशनिंग की नारी को नियंत्रण मे रखो । और कम उमर के ब्लोग्गेर्स को बढ़ावा दे कर वो " पुरूष के मस्तिष्क की कंडिशनिंग " कर रहे हैं , जो आगे चल कर समाज के लिये बहुत ही नुकसान देह साबित होगा ।

शास्त्री जी कहते हैं की

"सारथी एक बौद्धिक शास्त्रार्थ चिट्ठा है एवं हम मतभेद को छुपाने की कोशिश नहीं करते। जो वादविवाद करते हैं, वे अपना पक्ष खुद रखेंगे."

जब वो अपने ब्लॉग पर क्या परोसा जा रहा हैं इसकी नैतिक जिम्मेदारी नही लेते तो समाज मे नैतिकता की जिम्मेदारी क्या लेगे और क्यूँ लेगे ?

मुझ से निरंतर कहा जाता हैं मे क्रोध ना करूँ सहज रहू और हर पोस्ट को औरत मर्द के नज़रिये से ना देखू । पर नहीं कर पाती हूँ आशा हैं अनूप जी समझ सकेगे ।

16 comments:

  1. इस रिव्यू के लिये आभार रचना जी!! प्रबुद्ध पाठक अब बडे आराम से मेरे आलेखों एवं टिप्पणीकारों के कथनों को जांच सकेंगे क्योंकि आपने काम की सारी जानकारी एक जगह एकत्रित कर दी है.

    वैसे यह काम तो मुझे करना चाहिये था, लेकिन आप का आभार कि आप ने मेरा भार कम कर दिया.

    -- शास्त्री

    -- हिन्दीजगत में एक वैचारिक क्राति की जरूरत है. महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  2. जब लोगों की चर्चित होने की इच्छा लत बन जाए तो वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। जिन लोगों को स्त्री को अनावृत्त( क्या स्त्री भला इतनी मूर्ख है कि वह नंगी होकर घूमेगी) देख कर हाजत लग जाती है, वे अपनी नन्हीं बेटियों तक को देख कर जाने कितनी बार क्या से क्या कर् गुजर चुके होंगे, भगवान् जाने! या वे बेचारी बेटियाँ। वैसे समाचारपत्रों में भी नित अब तो पिता द्वारा बेटी से मुँह काले करने के कारनामे चमचमाते हैं,(और युगों से ही) ८५प्रतिशत बलात्कारी घर के ही होते आए हैं। इन्हें अपनी काली करतूतों पर गर्व है और अपनी औलादों को भी ये ऐसे ही तथाकथित मर्दवादी बनाने में लगे हैं तो रचना को भला पेट में क्यों दर्द होता है? और दर्द का ईलाज भी ये ही मान्यवर बताएँगे। कुंठित मर्दवादी परिवारों में पले बढ़े लोग ऐसे ही होते हैं, रचना! ऐसे लोगों के चटखारे लेने के लिए लिखे गए वक्तव्यों पर नजर डालना भी अपनी तौहीन है। सत्यकथा और मनोहर कहानियों को पढ़ने वालों की संख्या निस्सन्देह सरस्वती को पढ़ने वालों से १० गुना अधिक होती ही है। भीड़ जुटाने का मनोविज्ञान नट से बेहतर किसे आता है?उन अर्थों में ये लोग नट ही हैं।

    चालाक और धूर्त पुरुषों ने ही स्त्री को हवा और प्रकाश तक से वंचित करने के तर्क गढ़ लिए, अन्यथा स्त्री के समाज में चंडी बनकर आते ही इन सब जैसों की भैरव मंडली का अन्त न हो जाता?

    पाश्चात्य देशों में किसी के पास इतनी फ़ुरसत तक नहीं है, न किसी को रुचि है, न वे ऐसी अनधिकार चेष्टा करते हैं कि स्त्री के वस्त्र और परिधान के निर्णायक तक बनें।

    अगर स्त्री को देखने मात्र से ये स्खलित हुए जाते हैं तो क्या खा कर गान्धी जी के चरण की चप्पल के नीचे के थूक तक में लिपटे एक् रजकण तक पहुँचने की भी किसी की सामर्थ्य है भला? क्योंकि गांधी बाबा तो अपने चरित्र की परीक्षा के लिए पत्नी से इतर स्त्रियों के साथ नग्नावस्था में सोने का सफल प्रयोग करते रहे हैं। उनका तो चरित्र न भ्रष्ट हुआ.

    इस लिए महानुभावो (?)! अपने चरित्र का इलाज करवाएँ। आने वाली पीढि़याँ दुआ देंगी। या कम से कम कोसेंगी तो नहीं।

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  3. मैने उनकी पोस्ट नही पढी मगर हा आपके द्वारा उद्ध्रीत उनकी टिप्पणी पढी !!उनसे पुरी तरह असहमत हुँ ।लगता है उनका व्यक्तीत्व लडकियो के स्कर्ट से उपर नही आया है!!

    मेरे हिसाब से नारी केवल श्रद्धा और सम्मान है कोई सामान नही मेरे खुद के घर को मेरी माँ ने जितना सवारा है उतना पापा ने नही ।आपके इस सार्थक प्रयास को नमन ।इसे पढा बहुतो ने होगा मगर चुपचाप सरक लिये होंगे जब अपनी बात आती है तब कोई कुछ नही बोलता ।बस नेता पुलीस इन्ही की टांग खिंचते रहो और क्या !

    मुक्त करो नारी को मानव चिरबंदनी नारी को
    युग-युग की निर्मम कारा से बंदनी सखी प्यारी को।

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  4. मैं समझ नहीं सका कि आपको महिला के फोटो से आपत्ति है या विदेशी महिला के फोटो से आपत्ति है ??
    मेरे लिए किसी भी देश की महिला हो सभी महिला ही हैं. आपकी आपत्ति समझ के बाहर है.
    1. यदि विदेशी महिला है तो आप को आपत्ति है.
    2. यदि भारतीय महिला की फोटो होती तो आपको आपत्ति होती.
    3. यदि माता सरस्वती की फोटो पर वैसा लिख देता तो भी आप को आपत्ति होती. (ख़ुद मुझे भी, इसीलिए ऐसा नहीं किया है.)
    कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जो किसी भी परिस्थिति में खुश नहीं होते, आप भी उन्हीं में से लगती हैं !!
    महिला की फोटो में कुछ भी बुरा नहीं है, उसने सारे कपड़े पहन रखे हैं और वह पूरी तरह से शालीन लग रही है, उसके न ही अश्लील हाव-भाव हैं. आप को आख़िर कहाँ पर आपत्ति है ?? कृपया यह बता दें तो विचार कर उसे हटाने के बारे में सोचूंगा. अब आप के मस्तिष्क में क्या चल रहा है, उसे सबके सामने रखें.
    किसी का चिट्ठा उसका अपना चिट्ठा होता है और उसे हक़ है कि वह कोई भी तस्वीर या फोटो लगाए,
    आपको चिट्ठा पुलीसिंग का लाइसेंस किसने दे दिया !!
    यहाँ तक कि ख़ुद ब्लॉगर भी सभी को छूट देता है किसी भी तरह की फोटो या वीडियो लगाने का, फ़िर आप कौन ???
    मेरे लिए तो निंदक नियरे राखिये वाली बात है,
    मुझे तो अच्छा लगेगा कि लोग यह सुझाएँ कि इसमें क्या लगाएं और क्या हटायें.
    आज ही किसी ने कहा कि मुख्य-पृष्ठ पर बहुत ज्यादा समान है, हटा दें.
    शुक्र है कि आप ने वह फोटो देख ली वरना आप यदि अगले दिन आतीं तो उसे न पातीं.
    अब तो वह संभवतः सबके दर्शनार्थ बना रहेगा.

    (अपने अंदर की गंदगी को साफ़ करे पहले , नारी-उत्थान अपने आप हो जायेगा)
    ऐसा तो मैं भी आप से कहूँगा बल्कि मैं सौ जगहों से ये बात आप के बारे में चिल्ला-चिल्ला कर कहूँगा यदि आप ने एक लेख नारी पर मेरे चिट्ठे के बारे में और उस लड़की की फोटो के बारे में नहीं लिखा.
    प्यारी सी गुलाबी टी-शर्ट पहने और प्यारी सी मुस्कान वाली महिला की फोटो से पता नहीं आपको क्या एलर्जी हो गई. !! यदि आपको उसकी मोहक मुस्कान में वासना के कतिपय अंश दिख रहे हों तो ये सिर्फ़ आपके दिमाग की उपज है.
    मेरी नज़र में वह एक प्यारी सी लड़की है.
    अधनंगी या कुछ और नहीं.
    भगवान् जाने आपको उसमें क्या बुरा दिख गया.
    अपनी सोच को सही रखें यह ज़रूरी नहीं कि जो घटियापन आपको दिखा वही मुझे भी दिखे.
    मुझे बस 5 महीने दीजिये मैंने लोगों के सैकड़ों ब्लोगों पर वह फोटो न लगवा दी तो मेरा नाम ई-गुरु राजीव नहीं,
    याद रखियेगा. फिलहाल यही है, इसे याद रखियेगा.
    आप ज़रा नारी पर एक लेख लिख दीजिये और बताइये कि आपको उस तस्वीर में क्या बुरा लगा, कुछ विकल्प मैं दे देता हूँ-
    1. उसके कपड़े.
    2. कपड़े का रंग.
    3. उसकी हँसी.
    4. टी-शर्ट पर लिखा वाक्य.
    5. उसके बाल.
    6. वाक्य के फॉण्ट
    साथ ही यह भी बताइये कि कैसी फोटो वहाँ पर अच्छी लगेगी. मैं विचार कर यदि उचित समझा तो आप अपने अनुसार बदलाव पाएंगी.

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  5. कमाल है कपड़े उतारती नारी इनकी आंखों को चुभती क्यों है? अगर ऐसा ही है तो खुद क्यों नहीं कपड़े उतारकर खड़े हो जाते बीच चौहराए पर।

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  6. रचना जी, आप यदि हल चाहतीं तो आपको मेरी सारी टिप्पणियाँ यहाँ पर लानी चाहिए थीं, लेकिन आप तो बस मुझे नीचा दिखाना चाह रही हैं. और कुछ नहीं.

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  7. आपके ब्लॉग का लिंक मुझे मेरे ही नाम से भेजा गया मिला, ऐसा क्यों हुआ यह समझ नहीं पाया हूँ. सम्भवतः भूल से हुआ हो या करने कुछ गये और हो कुछ गया वाला मामला रहा हो.


    जिन्हे जो बकवास करनी है, कहीं तो ठेलेंगे ही. ध्यान न दें. सबके अपने अपने संस्कार प्रगट हो रहे हैं.

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  8. < http://streevimarsh.blogspot.com/2008/10/blog-post_9270.html >

    यहाँ इस प्रकरण पर रात ही प्रविष्टि लगाई थी, देखी जा सकती है।

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  9. कहते है कि जिनके घर पत्थर के होते हैं वो दूसरे के घर पत्थर नहीं फेंकते । मैंने और पोस्ट तो पढी नहीं पर महाशय की बातों से बिल्कुल असहमत है । लो स्त्री ऐसा कर रही है चलो वो तो गलत है जबकि आपको खुद भी पाता है पर फिर भी उस बुराई में आप क्यों सम्मिलित हो रहें है । नारी और भारतीय नारी में बहुत फर्क है । सोच की बात है ।

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  10. naree aur purush dono hee prakriti ka ang hain.sanskriti hamne banayee hai.aur vah itanee vibhinna ho saktee hai ki vichar me samajh me algav ho.lekin jab vah drishtikon se badh kar samajik pratibaddhata ban jatee hai to shosan bhee ho saktee hai aur sabhee purush pradhan samajon me hai.mudda bhee yahee hai.

    vaise bas teen tarah ke vyakti hote hain.achche bure aur nikrishta.aur vah sab samooh ling dharm varn desh me hote hain.naree ki shakti me saundarya kee chetna apekshit hai.aur satya sundar shiv ka srot bhee naree hee hai.apne har roop me,vishesh kar jananee hokar vahee matri shakti(sirf aurat naheen)sanskriti ka nirdharan kare.purush prakriti janya sahyogee ho.ladayee purush pradhan naree shosan kee sanskriti se hai.ladayee stree purush kee naheen hai.bahas bhee isee tak rahe.aur har purush me shosak bhee naheen dhoondhe.vah putra,bhyee,sakha, guru,sahachar, rakshak,bahut kuch ho sakata hai aur hota bhee hai.vah bhee team ka hee hissa hai.

    bahas vyaktigat na ho to achcha lagega.

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  11. हम तो संजय बेंगाणी की बात कहना चाहते हैं-
    जिन्हे जो बकवास करनी है, कहीं तो ठेलेंगे ही. ध्यान न दें. सबके अपने अपने संस्कार प्रगट हो रहे हैं.

    आप ई-गुरु से सवाल-जबाब कर रहीं हैं। करती जा रही हैं। वो पूछ रहा है कि उसके ब्लाग पर फ़ोटॊ में बुरा क्या लगा? बताइये !
    शास्त्रीजी की पोस्टों में महिलाओं का जिक्र ऐसे अंदाज में आता है कि क्या कहें? वो जिस अंदाज में महिलाओं के बारे में लिखते हैं उससे तो ऐसा लगता है कि औरत अपने को ठीक कर ले तो सब मामला सही हो जायेगा। दुनिया में हरजगह लोग कई शताब्दियों में जीते हैं एक साथ। महिला हो या पुरुष। चरित्र निर्माण के लिये सामाजिक आर्थिक स्थितियों का महत्व होता है। खाली भोगवादी/पश्चिमी संस्कृति की बात कह देने से सब नहीं हो जाता। महिलाऒं और पुरुष की समस्यायें एक समाज की समस्यायें हैं। महिलायें परेशान होंगीं तो पुरुष चैन से बैठ सकते हैं ये तो नहीं होता न! हर घर में मां-बहन, बेटी हैं। एक शायर का शेर है , शायद नवाज देवबंदी का-
    बदनजर उठने ही वाली थी उसकी जानिब
    अपनी बेटी का ख्याल आया तो दिल कांप गया
    (उसकी तरफ़ बुरी नजर उठने ही वाली थी लेकिन अपनी बेटी का ख्याल आया तो दिल कांप गया।)

    आप नारी की स्थिति के बारे में ईमानदारी से आवाज उठाती हैं यह बहुत अच्छी बात है। लेकिन आप इस तरह जरा-जरा सी बात पर जबाब देती घूमेंगी तो अपना समय बर्बाद करेंगी जो कि आप और संरचनात्मक तरीके से लगा सकती हैं। आप ई-गुरु राजीव से सवाल-जबाब कर रहीं हैं जो मौज-मजे ले हैं आपसे, किसी न किसी बात को पकड़कर। आपसे कट्टी-मिट्टी कर रहे हैं। आप भी उनके जबाब दनादन दिये जा रही हैं।

    चूंकि आपने इस पोस्ट का लिंक मुझे भेजा इसलिये हिम्मत करके यह टिप्पणी कर रहा हूं। इसे सही संदर्भ में समझा जाये यह निवेदन है। डर लगता है कि अनजाने में कही कौन सी बात मर्दवादी करार कर दी जाये।

    वैसे आपकी मेहनत की तारीफ़ करता हूं! यह भी कि ई-गुरू राजीव के ब्लाग पर लगी फोटो में मुझे कोई खराबी नहीं लगती। महिलाओं की उससे ज्यादा आपत्ति जनक तस्वीर तो शास्त्रीजी पोस्टों में दिखाई जाती है जिसमें महिलाओं की कोई तस्वीर नहीं लगती। सबके बारे में लिखने और सवाल-जबाब का समय हरेक के पास नहीं होता न! बहुत समय चाहिये वाद-विवाद-सम्वाद के लिये। हम फ़ुरसतिये हैं लेकिन इत्ते भी नहीं कि ये सब कर सकें।

    आप खुश रहें। आपको और आपके परिवार को दशहरा की शुभकामनायें।

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  12. सत्य से साक्षात्कार कराया है आपने साधू वाद
    मेरी नई रचना "शेयर बाज़ार पढने हेतु आपको सादर अपने इष्ट मित्रों सहित आमंत्रण है कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारें और जाते जाते अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करें <> स्वागत है

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  13. मुझे किसी भी ब्लॉग पर क्या परोसा जा रहा हैं , क्या चित्र लगाए जा रहे हैं से कोई आपति नहीं हैं लेकिन जब कोई ब्लॉगर दोहरी मानसिकता दिखाता हैं तो मुझे कथनी और करनी का अन्तर लगता हैं .
    एक तरफ ऐ गुरु राजीव जी बार बार बता रहे हैं की नारी भोग्या कैसे बनती हैं और दूसरी तरफ़ नारी का ही चित्र अपनी ब्लॉग पर लगा कर उसे भोग्या बना रहे हैं . एक तरफ़ शास्त्री जी नारी के भोगाया बाने जाने से परेशान हैं और बार बार नारी को समझते हैं कैसे रहो वाही दूसरी तरफ़ ऐ गुरु जैसे ब्लॉगर जो अपरिपक्व उम्र के हैं उनको बढ़ावा दे कर उनकी कंडिशनिंग कर रहे हैं . एक कम आयु का बालक अपने कमरे मे बहुत से चित्र लगाता हैं पर वो बालक समाज मे जा कर महिलाओं को ये नहीं समझाता की कैसे रहो . उम्र के साथ वो परिपक्व होता जाता हैं और चित्रों का चयन बदलता जाता हैं पर अगर एक परिपक्व उम्र का पुरूष वही चित्र अपने कामनी मे लगाता हैं या उस बालक को बढ़ावा देता हैं की औरतो पर नकेल कसो तो समाज मे वो रुढिवादिता फेला रही हैं अपने फायदे के लिये

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  14. शारीरिक रूप से पुरूष और नारी अलग हैं पर मौलिक रूप से वह दोनों इंसान हैं, ईश्वर की एक सर्वोत्तम कृति. दोनों मिलकर समाज की रचना करते हैं. दोनों को यदि चर्चा का विषय ही बनाना है तो दोनों को इंसान के रूप में देखना होगा. जो पुरूष नारी को भोग्या रूप में देखते हैं उन्हें अपनी आंखों और सोच को बदलना होगा. परस्पर प्रेम और सम्मान जरूरी है वरना विचार विमर्श गाली प्रतियोगता में बदल जायेगा.

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  15. @ eguru rajiv ji nae yae kehaa tha मुझे बस 5 महीने दीजिये मैंने लोगों के सैकड़ों ब्लोगों पर वह फोटो न लगवा दी तो मेरा नाम ई-गुरु राजीव नहीं,
    par ab vo chitr vahaan nahin haen , achchalaga ki kuch badlaav aaya

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  16. इन लोगों को सारी समस्याओं की जड़ स्त्री का पहनावा लगता है. स्त्री के साथ होने वाली यौन-दुर्व्यवहार की घटनाओं को ये लोग स्त्री-पुरुष के जैविक अंतर का परिणाम मानते हैं. इनके अनुसार सारी औरतें घर के अन्दर रहें तो सारी समस्याएँ सुलझ जायेंगी. तरस आता है ऐसी सोच पर...ऐसी सोच के परिणामस्वरूप ही देश में यौन शोषण की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं क्योंकि इनके तर्क उन घटनाओं के लिये भी औरतों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. कविता जी ने बिल्कुल सही लिखा है. मैं उनकी बात से सहमत हूँ.

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