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जरूरी नहीं था कि वो आसमान की ऊंचाइयां छूने की प्रतिभा रखती हो लेकिन उसमें इतनी प्रतिभा तो थी कि वो ज़मीन पर तनकर चल सके। अपनी समझ के दायरे से अपने लिए अच्छा-बुरा सोच सके। इतना यक़ीन उसे खुद पर था। उसके मां-बाप को भी उस पर इतना यक़ीन था। लेकिन फिर भी वो उसका हाथ एक योग्य व्यक्ति के हाथ में देकर मुक्त हो जाना चाहते थे। वो अच्छे थे। वो उसके भविष्य को लेकर चिंतित थे। इसीलिए उसने एक अच्छा कमानेवाले लड़के को देखकर बेटी का ब्याह उसके साथ रचाया। अब मुक्ति, नो टेंशन।
शादी के कुछ साल बाद भी वो झुंझला जाती, मेरी शादी क्यों हुई। हालांकि वो ख़ुश थी अपने पति के साथ अपनी गृहस्थी बसाकर। गृह स्वामिनी बनकर। पर उसकी झुंझलाहट भी कुछ कहती थी।
कभी किसी क्षण में अनायास ही उसकी ज़ुबान से निकल जाता मैं भी कुछ कर सकती थी, कुछ बन सकती थी। उसके मुंह से निकले ये अप्रत्याशित शब्द क्या चाहते थे ये खुद उसे भी नहीं पता। करियर बनाया था उसने। पर शादी के बाद करियर के बक्से पर ताला लग गया। पति नौकरी के लिए मना नहीं करता, पर चाहता भी नहीं था। वो उसे नाराज़ कर अपनी ख़ुशी नहीं पाना चाहती, पति उसे नाराज़ कर अपने मन की पूरी कर लेता है।
उसने अपनी ख्वाहिशों को रसोई में जलते चूल्हे की आंच पर जला दिया। राख अब भी उड़कर आंखों में आ जाती, यदा-कदा। वो सीरियल देख रही थी, उसकी ज़ुबां से अपरिचित शब्द फूटे, मैं भी तो ये कर सकती थी, पता नहीं क्यों पापा ने शादी कर दी, तभी रिमोट का लाल बटन दबा टीवी बंद कर दिया, रसोई में कुकर सीटी मार रहा था, वो भागी।
चित्र गूगल से साभार
achcha likha hai
ReplyDeleteकोशिशें और परिस्थितियाँ व्यक्ति को बनाती हैं। हां कोशिशों के पैर में जंजीर डाल दी जाए तो परिस्थितियाँ भी बदल जाती हैं।
ReplyDeleteनारी बेचारी नहीं । शादी ना तो समस्या है और ना ही समाधान । नारी संबंधी इसी तरह के आलेख उसकी बेचारगी में इज़ाफ़ा करते हैं ।महिलाओं द्वारा बेबसी भरा चित्रण खेदजनक है ।
ReplyDeleteनारी के मानसिक द्वंद को दिखती एक पोस्ट . यही होता हैं ज्यादातर महिला के साथ . जरुरी हैं की बेटी और उसके अभिभावक पहले बेटी की शिक्षा , आर्थिक रूप से स्वतंत्रता और एक प्रोफेशनल कैरियर के प्रति सजग हो . नारी की शादी उसका व्यक्तिगत चुनाव हो , २५ साल की आयु तक हर बेटी को स्वतंत्रता हो अपना कार्य छेत्र चुनने की और नौकरी करने की . शादी की बात उसके बाद ही होनी चाहिये . सपनों को केवल देखने से नहीं उनको पुरा करने के लिये बेटी को ख़ुद भी प्रयतनशील और जागरूक होना होगा . केवल और इक्वल बेबस होना और बेबसी का दिखावा करना नितान्त अशोभनिये हैं
ReplyDelete@हालांकि वो ख़ुश थी अपने पति के साथ अपनी गृहस्थी बसाकर। गृह स्वामिनी बनकर।.......पर शादी के बाद करियर के बक्से पर ताला लग गया। पति नौकरी के लिए मना नहीं करता, पर चाहता भी नहीं था।........अपनी ख्वाहिशों को रसोई में जलते चूल्हे की आंच पर जला दिया।
ReplyDeleteवह भी कुछ बन सकती थी, पर क्या यह सब कुछ केवल नौकरी कर के ही हो सकता है? क्या मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है नौकरी करना? जितनी भी सफल महिलायें आज हैं क्या वह सब नौकरी करती हैं? और भी तरीके हो सकते हैं अपना करियर बनाने के, कुछ बनने के.
"क्या मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है नौकरी करना?"
ReplyDeleteसुरेश जी आप के प्रशन का उत्तर आप के प्रश्न मे ही हैं .
भारत मे औरत को मानव नहीं समझा जाता और इसीलिये उसकी इच्छा का कोई महत्व नहीं हैं , उसका कोई अपना वजूद नहीं हैं . अगर पुरूष के लिये नौकरी जरुरी हैं तो औरत के लिये नौकरी की ज़रूरत पर प्रश्न क्यों ??
सरीता जी,
ReplyDeleteयहां शादी को समस्या नहीं बताया गया है, शादी कर के वो ख़ुश भी है,लेकिन उसकी दुनिया सिर्फ शादी पर नहीं खत्म होती, उसे इससे ज्यादा चाहिए, उसकी अधूरी ख़्वाहिशें हैं, जिन्हें वो पूरा करना चाहती है, रचना जी ने एक वाक्य में सही निचोड़ निकाला है, नारी का मानसिक द्वंद। बहुत सी लड़कियों को मैं जानती हूं जिनके साथ मैंने पढ़ाई की, जी-जान लगाकर फिजिक्स-कैमेस्ट्री के समीकरण समझना,अच्छे नंबर लाने की कोशिश में दिन-रात एक करना और शादी के बाद सब खत्म। उनकी दुनिया शादी के बाद इससे आगे बढ़ सकती थी, पति का साथ होता वो भी कहीं लेक्चरर, वैज्ञानिक होतीं, न भी हों तो क्या ग़म है, लेकिन अगर वो ऐसा चाहती थीं और नहीं बन सकीं तो....
सुरेश जी,
ReplyDeleteनौकरी करना तो किसी को नहीं पसंद, क्योंकि नौकरी में आप स्वतंत्र नहीं होते, आपका एक बॉस होता है, पर नौकरी आपको आर्थिक स्वतंत्रता देती है जिससे आप घर-परिवार-समाज में सम्मान अर्जित करते हैं और अपने मन की कर सकते हैं, औरतों की आज़ादी की सारी बातें बंद हो जाएंगी, जब औरत आर्थिक तौर पर स्वतंत्र हो जाएगी।
aapka blog sarvashreshtha blog hai....badhai ho naari utthan ke liye is yogdan par...
ReplyDeleteyaha naritva ki bhartiya paribhasha aur naarivaad (jo ki bharat mein abhi shaishavavastha mein hai) ka dwandwa hai....jo ki hai hi nahin... kyunki naari ne apni ichchha apne adhikar sabko tathakthit kartavyon ki vedi par hom kar diya hai....
peechhe chhoota hai sirf sawalon ka dhuan...