"35 साल पहले बाहर से मँगाया जाने वाला खास पकवान हुआ करता था जो कभी कभी खास मौके पर ही मँगवाया जाता था लेकिन आज रेडी मील का फैशन दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है. बुक शॉप की शैल्फ नई नई कुक बुक्स के साथ भरी पड़ी हैं. रेडी मील की बढ़ती सेल का बुरा असर किशोर बच्चों पर साफ दिखाई दे रहा है जो चिंता का विषय है"
1970 में नारीवाद की पत्रिका 'स्पैयर रिब' को चलाने वाली रोसी बॉयकाट उन दिनों औरत को रसोईघर में अपना समय बरबाद न करने की सलाह देतीं थी. आज सोचने पर विवश हो गई कि कहीं वे बहुत दूर तो नहीं निकल आईं... हाँलाकि नारीवाद के संघर्ष से जुड़ी रोसी बॉयकाट इस कारण को छोटा ही मानती हैं...आप का क्या विचार है?
रंजू जी की पोस्ट 'होम मेकर' पढ़ कर नारीवाद की समर्थक रोसी बॉयकाट की याद आ गई जिसके बारे में पिछले कई दिनों से पढ़ रही हूँ।
मुझे पिताजी ने भोजन बनाना सिखाया था, वे बहुत अच्छे कुक भी थे। मेरी पत्नी शोभा ने अपनी बेटी को नहीं बेटे को भोजन बनाना ही नहीं, सब काम सिखाए। बेटी को नहीं। बेटी अकेली रहने लगी तो स्मृति से सब सीख गई है। जो भी वह बनाती है वह स्वादिष्ट होता है, ऐसा लोग कहते हैं। क्यों कि वह जब भी यहाँ होती है कुछ नहीं बनाती।
ReplyDeletesahi hai,aaj teenagers jo khasta halat hai us par vichar hona chahiye,unhe shayad aur waqt dene ki jarurat hai,sanskar mein kami nahi hoti kabhi kabhi waqt ki kami hoti hai,kabhi waqt diya bhi to sab achha nahi hota,sangat kahe ya individual personality of teenager,magar aaj unki raah sahi hogi to aanewala kal swarnim hoga.
ReplyDeleteमीनाक्षी जी एक दम सही फ़रमा रहीं हैं आप विकासवाद, बाजारवाद, भौगोलीकरण व समानता के अधिकारों की अन्धी प्रतिस्पर्धा में ऐसा न हो जीवन ही पीछे छूट जाय और हम मशीन बनकर रह जायं.
ReplyDelete३५ साल पहले बाहर से मंगाया जाने वाला खाना ख़ास पकवान हुआ करता था यह बिलकुल सही कहा आपने !आज बहुत कम ऐसे अवसर होते हैं जब घर में खाना बनाया जाता है !जितने व्यंजन व् पकवान भारत में बनाये जाते हैं ,शायद ही किसी देश में बनाये जाते होंगे !स्वास्थ्य व् स्वाद की दृष्टि से घर के पके भोजन की कोई तुलना नहीं हो सकती !रेडी मील यदि समय बचाता है तो दूसरी और हमारे स्वास्थ्य पर असर डालता है ,उसमें अधिक दिनों तक बचने के लिए डाले गए रसायनिक पदार्थ हमारे शरीर को हानि पहुंचा सकते हैं !हमें अपनी आने वाली पीढी को शुद्ध स्वच्छ और घर के पकाए व्यंजन खाने के लिए प्रेरित करना चाहिए !
ReplyDeleteखाना बनाना आना भी उतना ही जरुरी है जितना खाना खाना ..आज बाज़ार यदि इन सब रेडी मील भोजन से भरे पड़े हैं तो एक तो यह सेहत का नुकसान तो है ही बाकी रसोई घर से धीरे धीरे उन चीजों का लुप्त होना भी बनता जा रहा है जो कभी ढेर सारे प्यार और मेहनत से बनाए जाते थे ..क्यूंकि आज सिर्फ़ लगता है की आज की पीढी या आने वाली पीढी सिर्फ़ कमाना जानती है और सुख सुविधा के साधन से घर को भरना खाने के नाम पर उनके पास सिर्फ़ २ मिनट हैं तो उस में सिर्फ़ यह मेगी या रेडी मील ही खाए जा सकते हैं ...आने वाली पीढी को क्या दोष दे हम ..हम लोग जो इस वक्त मिडलएज में हैं मैं कई वह खाने की चीजे नही बना पाती जो मेरी दादी या नानी घंटो पसीने बहा कर प्यार से मेहनत से बनाया करती थी ...जो चीजे हम ही बनाना भूल चुके हैं वह आने वाली पीढी तो नाम भी नही जान पाएगी ..???
ReplyDeleteredy meal ne samay me bachat jaroor ki hai kintu usse swasthya ki samasyayen bhi badi hai. ghar me khana banta hai to pariwar me bhawnatmak rishte bhi majboot hote hai
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