इस पुरूष प्रधान समाज में वह एक अबला नारी थी !
नारी कविता ब्लॉग पर शिवानी कि कविता ने बहुत से लोगो को कमेन्ट करने के लिये प्रेरित किया हें। लेकिन फिर बहस आगई हैं कि साहित्य मे बार बार जो नारी को अबला कह जाता हैं क्या वोह सही हैं ?? क्या नारी जो ख़ुद भी आज भी यही लिखती हैं कि वोह अबला हैं , ये पुरूष प्रधान समाज हैं सही कर रही हैं ? क्या इस प्रकार का साहित्य आज के समय मे भी सही हैं जहाँ बार बार ये लिखा जाता हैं कि समाज मे नारी को केवल घुटन मिलती हैं ?? आज से ६० साल पहले जब देश आजाद हुआ तब स्थिती और थी , औरत के लिये समाज मे जो स्थान था उस समय उसके अनुकूल जो नारियाँ लेखिका बनी उनका रचना साहित्य उस समय के लिये था { नहीं मे ये नहीं कह रही साहित्य obselete हो जाता हैं } क्योकि उनके पास आगे बढने के लिये , घुटन से निकालने के लिये कोई और रास्ता नहीं था । किताबे पढ़ना और किताबे लिखना और इतना बढिया लिखना की कोई भी नारी पढे तो रिवोल्ट करने के तैयार हो जाए यही मकसद था उनके लेखन का पर आज के समय मे नारी के पास घुटन से आज़ादी अर्जित करने के बहुत साधन हैं । आज कि नारी का विद्रोह पुरूष से नहीं , समाज कि कुरीतियों से हैं जो नारी - पुरूष को एक अलग लाइन मे खडा करती हैं । ६० साल पहले कि नारी विद्रोह कर रही थी शायद पुरूष से और इसीलिये वोह बार बार कहती थी " हमें आजादी दो " लेकिन आज कि नारी अपने को आजाद मानती हैं और उसका विरोध हैं उस नीति से जो उसे पुरूष के बराबर नहीं समझती ।
कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ?? इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का । जैसा कि मीनाक्षी ने अपनी पिछली पोस्ट मे कहा
हम सब का प्रयास यही होगा कि आगे आने वाली पीढी स्त्री और पुरूष बाद मे हो मनुष्य पहले । प्रतिस्पर्धा ना रहे दोनों मे । अगर भारतीय समाज को "परिवार " को बचाना हैं तो उसे ये मानना होगा कि नारी पुरूष बराबर हैं नहीं तो अब परिवार और जल्दी टूटेगे क्योकि आज कि पीढी कि स्त्री आर्थिक रूप से सक्षम हैं और उसे अकेले रहने और अकेले तरक्की करने से परहेज नहीं हैं ।
आज फिर विचार आमन्त्रित हैं , अब इनमे कंजूसी न करे । बांटे अपने मन कि बात ।
abosultly 100 percent agreed with u rachana ji,both should be treated as humans first and hv equal values and respect,with equal rights.
ReplyDelete(:);)just a thought ,not in serious mood,but may be it can happen,if each women will start living independently and start living on her own,these days science has gone so forwad that it can creat a girl child from womens body cells without sperms and then whole world wil be of womens only}
nari ki dictonary se abla shandh hi mita dena chahiye,but some were somewere still in our country most womens r house wifes even they r highly educated,that makes them dependent on the man who earns,may be its womens natural instint to tk cr of famiy and kids more,i fully agree to that here the nature has made difference between both,today in whole world only 23 percent of women r working,i dont know if my decision may be wrong but oneday i can also leave my work for some good reasons,may be koin later,cant say frankly yet,just thinking.
"अगर भारतीय समाज को "परिवार " को बचाना हैं तो उसे ये मानना होगा कि नारी पुरूष बराबर हैं", मैं इस से पूरी तरह सहमत हूँ. परिवार को जितनी जरूरत पुरूष की है उतनी ही नारी की है. दोनों मिलकर ही एक ऐसे पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं जो परिवार को और समाज को ताकत देता है, उसे विपरीत स्थितियों में संरक्षण प्रदान करता है. नारी को पुरूष से कम आँका जाता है, इसी लिए परिवार भी कमजोर हो रहे हैं और समाज भी.
ReplyDeleteआजादी की सही परिभाषा क्या है ? यह जानना पहले जरुरी है ..सिर्फ़ यह सोचना कि नारी की आजादी का मतलब पुरूष से कोई अलग अस्त्तितव है तो यह सोच ग़लत है ..आजादी का मतलब मेरे अपने ख्याल से यही है की नारी को किसी भी हालत में कमजोर न समझा जाए ..उसके विचारों को उसकी सोच को ,उसके किए गए निर्णयों को भी वह मान्यता मिले जो अभी भी सिर्फ़ अधिकतर पुरूष को ही दी जाती है ..बातें घर में ही बहुत छोटी छोटी होती है पर जो मैंने आस पास अभी भी माहोल में देखा है कि स्त्री है इस लिए ज्यादातर उसकी बातो को इतना महत्व नही दिया जाता ..समाज दोनों से मिल कर बना है तो सिर्फ़ नारी को अबला समझने को बजाये एक साथ चलने की सोच कायम रखनी चाहिए ..नही तो सही कहा है रचना ने कि परिवार और जल्दी टूटेगे क्योकि आज कि पीढी कि स्त्री आर्थिक रूप से सक्षम हैं और उसे अकेले रहने और अकेले तरक्की करने से परहेज नहीं हैं ।
ReplyDeleteआजका आपका लेख वाकई बहुत दमदार है.
ReplyDeleteमैं आप से पूरी तरह सहमत हूँ रचना जी अगर परिवार बचाने है तो नर नारी दोनों को बराबर होना चाहिए, सिर्फ़ एक बात जोड़ना चाहूंगी कि दोनों को बराबर होना चाहिए अधिकारों में भी और जिम्मेदारियों में भी। लेकिन हर समय कोई फ़ीता ले कर न घूमा जाए कि मैने इतना किया तो तुम इतना करो। जिस प्रकार दोस्ती के रिशतों में ये नही देखा जाता कि किसने कितना किया इसी प्र्कार विवाह के रिशतों में भी थोड़ा कम ज्यादा हो सकता है उसको बहुत तूल देने की जरुरत नही॥
ReplyDeleteआप ने कहा आज की नारी आजाद है।…।क्या सचमुच? मुझे तो लगता है कि नारी आर्थिक रूप से जरूर आजाद हो गयी है पर मानसिक रुप से वो आज भी पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं।
क्या कोई कामकाजी महिला ऐसे लड़के से शादी करेगी जो विवाह से पहले बतला दे कि मैं तो हाउस हस्बेंड बनूंगा? क्या वो औरत और उसके घर वाले ऐसे आदमी को पूरा मान सम्मान दे पायेगें।
आज भी मैं ऐसी कई स्त्रियों को जानती हूँ जो काम पर जाती है पर अपने पति से साफ़ कह दिया है कि मेरी तन्खाह के बारे में कभी मत पूछना कि मै क्या करती हूँ पर अपनी पगार आते ही मेरी हथैली पर रखना।
Great postin.
ReplyDeleteI love it!
Happy day
“Too often when I tell people that I'm a househusband - they look at me like I've suddenly sprouted two heads. They get almost uncomfortable. They also seem to lose some respect so, I just don't bother.”
ReplyDeleteyeh 2006 ki baat hai lekin ab househusbands zayada ho gaye hain... jo zayada kamaye vo naukari kare aur doosra partner ghar aur bacchoin ko dekhain...
hamara desh abhi is soch mei peeche hi hai..
क्या कोई कामकाजी महिला ऐसे लड़के से शादी करेगी जो विवाह से पहले बतला दे कि मैं तो हाउस हस्बेंड बनूंगा? क्या वो औरत और उसके घर वाले ऐसे आदमी को पूरा मान सम्मान दे पायेगें।
ReplyDeleteआज भी मैं ऐसी कई स्त्रियों को जानती हूँ जो काम पर जाती है पर अपने पति से साफ़ कह दिया है कि मेरी तन्खाह के बारे में कभी मत पूछना कि मै क्या करती हूँ पर अपनी पगार आते ही मेरी हथैली पर रखना।
मै अनीताकुमार् जी से सहमत हूँ, साथ ही मेरे विचार मे समानता का आन्दोलन केवल नारी शोषण की प्रतिक्रिया मे आया है और प्रतिक्रिया स्थाई नही होती, समानता प्रतिस्पर्धा जाग्रत करने वाला शब्द है, जो जोडता नहीँ तोड्ता है. समानता परिवार को बचाने का नही तोड्ने का आधार का काम करेगी. नारी का महत्व है कुछ मामलो मे मै ही नही काफी मामलो मे पुरुष से भी अधिक सामर्थ्यवान है किंतु समान नही हो सकती, कुदरत ने किसी को भी किसी के समान नही बनाया है, समानता का संघर्ष कुदरत की व्यवस्था के खिलाफ संर्घष है जो कभी भी सफल नही हो सकता, इससे नर-नारी सभी को कीमत चुकानी होगी, नर को इसलिये कि उसने नारी का पूरा सम्मान नही किया उसकी क्षमताओँ को कमतर आंकाँ और नारी को इसलिये कि उसने अपनी स्थिति को मजबूत व उपयोगी बनाने के स्थान पर अपनी शक्ति को व्यर्थ की प्रतिस्पर्धा मे लगाया. एक बात और महिलाये भी समानता के लिये तैयार नही है, जब भी उनसे समानता की बात की जाती है, वे नारी होने का राग अलापकर अपने लिये आरक्षण व छूट की मांग करती है, कुछ अपवाद हो सकते है किंतु सामान्य स्थिति यही है. बडी से बडी समानतावादी महिलाए यही करती है, समानता के ऊपर कविता लिखना, भाषण देना एक अलग बात है किंतु व्यवहार मे सम्भव नही है क्योकि नर नारी की बराबरी कभी नही कर सकता.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletehmm magar nari abala kaha hai aaj kal to purush paratadit jayada hai
ReplyDeletesamay badal chuka hai nari jaag chuki hai
aazadi ki parivbhasha samjhna zaruri hai
ladhkiyon ka der raat tak bahar rahna purusho ke gale main baahen daal baat karna agar aazadi hai to fir shayad purana samaaj hi behatar tha
सही कहा श्रद्धाजी, हजारों सालों व अनुभवों के आधार पर सामाजिक व्यवस्थाएं बनती हैं, समय के साथ उनमे कोई बुराई आ जाय तो उस बुराई को दूर करने की आवश्यकता है, न कि व्यवस्था को ही नकारने की, समानता के नारे की बजाय महिलाओं को ही नहीं पुरुषों को भी महिला शिक्षा व भ्रूण हत्या को रोकने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिये अन्यथा समाज घोर संकट में फ़ंस जायेगा.
ReplyDelete@ श्रद्दा जैन @ राष्ट्रप्रेमी
ReplyDeleteआज़ादी का मतलब , समानता का मतलब बहुत सीधा हैं " निर्णय लेने का अधिकार " । और " निर्णय लेने का अधिकार " सीधा dependent हैं आप कि आर्थिक क्षमता पर । सदियों से नारी आर्थिक रूप से सक्षम नहीं रही और इसके प्रति जागरूक भी नहीं रही इसलिये धीरे धीरे समाज मै उसका दर्जा पुर्ष से नीचे होता गया । आज कि नारी जागरूक हैं और आर्थिक रूप से अपनी को सक्षम करती जा रही हैं इसलिये वोह अपने बारी मे " निर्णय लेने का अधिकार " को समानता और आज़ादी मानती हैं । इसके अलावा जो भी कार्य नारी के लिये ग़लत हैं वोह पुरूष के लिये भी ग़लत हो तभी आप आने वाली पीढी को ग़लत रास्ते पर जाने से रोक पायेगे । लड़को को रात को १२ बजे भी घुमने कि आज़ादी हैं लड़कियों को क्यों नहीं , क्यों लड़किया असुरक्षित हैं ??? अगर हम बरसो से एक गलत रुदिवादी परम्परा मे जी रहे हैं तो क्यों नहीं उनको तिलांजलि दे दी जाए ? क्यों नहीं बेटो को भी वही सीखाया जाय जो हम बेटी को सीखते हैं ??
रचनाजी, तर्क केवल ब्लोग पर या किताबों में ही चल सकते हैं, मैंने विद्यार्थी जीवन में दहेज के लेन-देन वाली शादियों मे भाग न लेने तथा महिलाओं के पर्दे का विरोध करने का संकल्प लिया था. दहेज तो कम नहीं हुआ मैं बीस वर्षो से किसी शादी मे भाग नहीं ले सका हूं. आज इस निष्कर्ष पर भी पहुंचा हूं कि पैत्रिक सम्पति में भाग दिये बिना दहेज बन्द करना महिलाओं के साथ और भी अन्यायपूर्ण होगा. व्यवहार में आज आप देख रही हैं में नर-नारी की बात करता ही नहीं हमारे वी.आई.पी. तक सुरक्षित नहीं हैं, आप आतंकवादियों से महिलाओं को सुरक्षित करवा सकतीं हैं? आपकी बात सौ प्रतिशत सही है कि आर्थिक मजबूती निर्णय करने में भागीदारी बढाती है किन्तु केवल नारी के बारे में या नर के बारे में सोचकर व्यवस्थायें नहीं बनतीं, इसके साथ ही आप परिवर्तन के जोश मे यह भूल रही हैं कि लडके व लड्के को एक ही तराजू में नहीं तोल सकते. किसी के कदम बहकने पर जन्म देने की क्षमता लड्की के पास होने के कारण लड्की को ही अधिक झेलना पडता है,कई बार तो लड्की की इच्छा के अभाव मे भी लडकी ही झेलती है, घट्नायें आप पढ्ती ही हैं. अतः लड्की की सुरक्षा की अधिक आवश्यकता पडती है. परिवार व समाज नर या नारी से अधिक व्यापक हैं, इनका संरंक्षण भी नर-नारी की अपेक्षा अधिक आवश्यक है, लड्कियों को देर रात बाहर रहने के लिये इन्कार केवल परंपरा के कारण नहीं सुरक्षा के लिये भी किया जाता है. व्यवस्थायें अच्छे लोगों को ध्यान में रखकर ही नहीं बुरे लोगों को ध्यान में रखकर भी बनाई जाती हैं.केवल लड्कों को बरबरी की शिक्षा दे देने से सारे बदल नहीं जायेंगे. किसी भी व्यवस्था को तिलांजलि देने से पूर्व नई व सफ़ल व्यवस्था की बहाली भी आवश्यक है, अव्यवस्था की स्थिति में क्या होता हैं, इसकी कल्पना कीजिये अव्यवस्था की स्थिति में स्बसे अधिक महिलाओं व बच्चों को ही झेलना पड्ता है.भारत-पाक विभाजन की कहानियां पढ लीजियेगा. आप जो चाहती हैं, शायद वही हम भी चाहते हैं किन्तु ध्यान देने की बात हैं, संसार मे आदर्श स्थिति कभी नहीं रही न कभी हो सकती है. अतः किसी न किसी व्यवस्था की आवश्यकता सदैव रहेगी, आप इससे असहमत नहीं होंगी.
ReplyDeletenari ko purusho ke barabar darja hasil hai ye sirf ek filmi baat bhar hai aaj bhi kamati bahu to sabko bhati hai lekin usko mana bahu hi jata hai beti nahi use vida kara le jate samay uaske ma-baap ko santvana yahi di jati hai ki wo sasural me beti ki tarah rahegi lekin sasural jate hi sab badal jata hai saas ma nahi saas ban jati hai aur nand bahen se nand wahi agar aapne prem wiwah kiya ho to niyam kanoon sakht hote hai itne ki shadi se pehle jo pati dost tha wo ab baat baat par naseehat deta nazar aata hai aur ladki ko itna neeche gira diya jata hai ki uske atma samman ko thes lagna swabhawik hai sar se palla na hate,jeth muh na dekhe saas sasur ke samne uparna baitho jabki uske pati par aisi koi bandish nahi hoti to kaha se barabari ki baat hoti hai ,,shadi se pehle ladki bhai ke barabar nahi pahuch pati aur shadi ke baad pati ke barabar nahi pahuch pati.
ReplyDelete