क्या नारी का ब्लॉग लिखना "ब्लॉग फेमिनिस्म " हैं ? क्या ब्लॉग केवल पुरूष के लिखने के लिये बने थे और महिला लेखन वहाँ शुरू होते ही ये " ब्लॉग फेमिनिस्म " होगया , क्या ये विचारधारा सही हैं ? क्या जरुरी हैं की हर कार्य जो महिला करती हैं उसको " फेमिनिस्म " मान कर समाज को बार बार लिंग भेद के आधार पर एक दूसरे के विरोध मे खडा किया जाए ।
आपके विचार आमंत्रित हैं ।
क्या नारी का ब्लाग लिखना " ब्लाग फेमिनिज़्म " है ?
ReplyDeleteरचना जी,
बहुत दिनों से यह सब चमगोंइयाँ पढ़ रहा हूँ,
अब आज कुछ मैं भी कह लूँ ?
1.सर्वप्रथम तो मैं सिरे से इस प्रश्न को ही ख़ारिज़ करता हूँ,
क्योंकि यह नितांत बेमानी सवाल है ।
2.लेखन में " मैस्कुलिज़्म या फ़ेमिनिज़्म " का सवाल ही
क्यों उठा रही हैं आप, महज़ बहस के लिये ? तो यह वक़्त
की बरबादी है ।
3.फ़ेमिनिज़्म एक बहुत ही सुकोमल एहसास है, यदि यह
किसी के लेखन में झलक भी रहा है, तो कौन सा मुद्दा है ।
4.क्या आप अपने पश्न को संदर्भित करेंगी कि ऎसा कोई
बयान किस कोने से आया है ?
5.कहीं ऎसा तो नहीं कि नारी के फ़ेमिनिज़्म को ढाल बना
कर नारी स्वयं ही सबको अपनी ओर आकर्षित कर रही हो ?
मेरी समझ में यह नहीं आता कि यह ' इश्यू ' पल्लवी, बेजी,
प्रत्यक्षा , ममता, लवली,शमा मीनाक्षी इत्यादि को आख़िर क्यों
नहीं परेशान कर रहा ?
संभवतः मैं गलती कर रहा होऊँ यदि आप इसे साबित कर सकें तो ?
बहुत हो गया, इस मुद्दे को यहीं ढक दें । और ...यह ना लिखियेगा
कि आप सब की आवाज़ एक पुरुष द्वारा दबायी जा रही है ।
डा० अमर कुमार
ReplyDeleteलीजिये लिंक भी देख लीजिये
क्या साबित करते हैं ये लिंक ?? और अगर इस पर मै विचचार आमत्रित कर रही हूँ बिना लिंक दिये तो केवल इस लिये की ये प्रश्न मेरे अपनी हैं और इनका उत्तर मुझे अपनी अंदर नहीं मिला । और ये आप का भ्रम हैं की किसी भी "नारी " की आवाज अब पुरूष दबा सकता हैं । और हम वैमनस्य बढ़ा नहीं रहे कम कर रहे हैं बस आप अपने नजरिये का कुछ विस्तार करले तो नईया पार हो जायेगी । फिर भी आपने टिपण्णी की इसके लिये धन्यावाद ।
लिंक केवल शोध को आगे ले जाने के लिये हैं , किसी भी तरह किसी के भी ब्लॉग पर पर्सनल आक्षेप नहीं हैं क्योकि ब्लॉग माध्यम हैं अभिव्यक्ति का
हिंदी जनपद का ब्लॉगफेमेनिज़्म
The Women, the Blog- the Blog Feminism arrives Hindi World
बिल्कुल नहीं
ReplyDeleteरचना जी,
ReplyDeleteआप क्यों परेशान हो रही हैं,बहसबाजी के चक्कर में, कोई कुछ भी लिख दे उल्टा-सीधा और आप बहस का मुद्दा बनाकर उसे प्रसिद्धि दे रही हैं. हां आपके द्वारा इस ब्लोग को केवल नारियों के लिये सीमित रखना प्रश्नचिह्न अवश्य लगाता है, क्या कोई ऐसा ब्लाग है जो केवल पुरुषओं के लिये ही हो आप नारी की हीन भावना से बाहर निकल कर अपने समर्थ व्यक्तित्व से समाज को लभान्वित करें तो मेरे विचार में अधिक अच्छा होगा. भले ही आपको स्तरीय न लगे में महिला होने के नाते नहीं एक व्यक्ति होने के नाते अपने ब्लोग पर लिखने के लिये आमन्त्रित करता हूं-
rashtrapremi.blogspot.com पर किसी महिला या पुरुष का नहीं किसी जाति का भी नहीं समस्त विचारवान व्यक्तियों का स्वागत है.
राष्ट्रप्रेमी जी
ReplyDeleteआप का ब्लॉग मे देख चुकी हूँ पहले ही और वहाँ नारी ब्लॉग को ब्लॉग रोल पर देखा कर अच्छा लगा । इस ब्लॉग की सदस्यता केवल उन ब्लॉगर के लिये हैं जो पकृति के बनाए नियम के अनुसार नारी /स्त्री /महिला मानी जाती हैं । ये एक प्रयास हैं ताकि नारी अपनी बात अपनी तरीके से कह सके । यहाँ पर अगर आप गौर करेगे तो पायेगे की सदस्या कमेन्ट ज्यादा नहीं करती क्योकि हम ख़ुद ही लिख कर अपनी बात अपने आप ही उस पर वाद विवाद नहीं करते । महिला /नारी अपनी दृष्टिकोण को पोस्ट मे लिख देती हैं और फिर दूसरे के दृष्टिकोण का इन्तेज़ार करती हैं जो उसे कमेन्ट के ज़रिये पता चलता हैं । सदस्यों मे वैचारिक मतभेद याहां ज्यादा नहीं हैं सो एक दुसरे की पोस्ट पर कमेन्ट कम ही हैं । नारी ब्लॉग पर कमेन्ट कर के सब विचार निर्भीक हो क़र रख सकते हैं बस भाषा शालीन रहे । आप नियमित इस ब्लॉग पर नज़र रखे हैं , बताते रहे हम कहा ग़लत हैं । कमेन्ट के लिये थैंक्स ।
ji main to is blog par pehli baar hi aaya aur sidha hi ye sawal paaya...
ReplyDeleterachana ji, main to bas aap se ye hi kahunga...aap kyon kisi ki bhi baat ko itna mehetva de rahe hain...unko likhna hai woh likhenge...
apne blog par daal kar to utla aab use aur badhava de rahe hain...
itna hi jaan lijiye ki...SOMETIMES NO REACTION IS THE BEST REACTION...
नारियो के ब्लॉग लेखन को फेमिनिज्म कहना पुरातन पुरुषत्ववादी मानसीक वृत्तियों का द्योतक है,चाहे महिला हो या पुरुष ब्लाग लेखन एक रचनात्मक कार्य है इसलिए इसमें और कोई अन्य लेखन मे अंतर नहीं करना चाहिए,यह हमारी उसी पुरातन सोच को दर्शित करता हैजिसमे हर कार्य का बांटकर कर टुकडो मे विभाजित कर दिया जाता है ताकि सामाजिक विभेद बना रहे और शोषक वृत्ति निरंतर चलता रहे.
ReplyDeleteनारी का ब्लॉग लिखना फेमिनिस्म कैसे हो सकता है? अगर यह सच है तो उसका जीना, खाना, पीना, उसकी हर हरकत फेमिनिस्ट हुई। सो इस विचार को तो मैं सिरे से खारिज करता हूँ जिसका भी यह विचार हो।
ReplyDeleteमगर मेरा तर्क दूसरा है। "नारी" पर ग्रुप-ब्लॉग का होना और उसमें सिर्फ़ महिलाओं की शिरकत मुझे फेमिनिस्ट ख़याल लगता है। सच कहूँ तो इस ब्लॉग पर आने से मैं इतने दिन इसीलिये बचता रहा क्योंकि ब्लॉग का शीर्षक पढ़कर ही मुझे लगा था कि यहाँ नारी-उपलब्धि के परचम लहराए जा रहे होंगे। ऐसा कतई नहीं कि मैं स्त्री-लेखन से परहेज़ करता हूँ मगर किसी भी तौर पर बार-बार नारी-नारी करना मुझे बेतुका लगता है। स्त्री आज बिल्कुल पुरुष के समकक्ष खड़ी है और वह किसी आरक्षण या दया की मोहताज भी नहीं है तो फ़िर ऐसा क्यों कि कई कच्ची-पक्की लेखिकाओं को नारी केन्द्रित होकर लिखना पड़ता है? लेखन में बात चाहे स्त्रीवाद की हो या पुरूषवाद की, ग़लत तो दोनों ही हैं। लेखन तो लेखन है, उसका लिंग से क्या संबन्ध। मेरे विचार में जैसे पुरुष है वैसे ही नारी है,तो यह क्या ज़रूरी है कि चार स्त्रियों को गुट बनाकर अपनी बात कहनी पड़े? पूरी बात यदि समेटना चाहूँ तो कह सकता हूँ कि जबतक आप नारी होने के प्रति conscious हैं या इसे एक विशेषता या अविशेषता मानते हैं तबतक इसे एक मुद्दे के रूप में देखते रहेंगे और मुद्दा जबतक मुद्दा रहता है तबतक ज़िन्दा रहता है। यदि आप इसे विशेषता या अविशेषता नहीं मानते तो आप इसे बिलकुल सहजता से लेंगे और इसपर कोई भी चर्चा आपको अनावश्यक लगेगी।
मैं नारी को इतनी सहजता से लेने की वक़ालत कर रहा हूँ कि किसी को भी इस बारे में अलग से सोचने की ज़रूरत ही न पड़े।
क्षमा चाहूँगा यदि मेरे विचारों से कोई आहत हो तो। मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं है।
शुभम।
@ महेन
ReplyDeleteकई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ?? इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2008/06/blog-post_20.html
"…हम सब का प्रयास यही होगा कि आगे आने वाली पीढी स्त्री और पुरूष बाद मे हो मनुष्य पहले । प्रतिस्पर्धा ना रहे दोनों मे।"
ReplyDeleteयही मैं भी कहना और करना भी चाहता हूँ। क्या आपको नहीं लगता कि यह एक मिला-जुल प्रयास होना चाहिये और इसमें हर उस "मनुष्य" की सहभागिता होनी चाहिये जो इस ओर जागरुक हैं?