पिछले दिनों रचना जी के एक बड़े ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न "नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट {woman empowerment } का क्या मतलब हैं ??" पर कई मित्रों ने अपने अपने विचार रखे और धीरे धीरे विचारों की धारा आगे बढ़ती गयी.... फ़िर एक और प्रश्न जन्मा "नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट " क्या "फेमिनिस्म" हैं याउसमे फरक है ? इस प्रश्न के उत्तर में पुरूष मित्रों की टिप्पणियों ने प्रभावित किया .. सबकी राय अपने आप में महत्त्वपूर्ण लगी…
दूसरी तरफ़ रचना जी के इस कथन को "नारी सशक्तिकरण की समर्थक नारियाँ किसी की आँख की किरकिरी नहीं बनना चाहती हैं . पढ़ कर सोचने पर विवश हो गयी कि क्या यह सच है... आँख की किरकिरी तो नारी तब से बन गयी थी जिस दिन उसने घर से पहला कदम बाहर निकाला था...
यहाँ पुरूष के उस वर्ग की ही बात हो रही है जो नारी को घर की चारदीवारी में ही देखना चाहता है….......
रचना जी के प्रश्नों पर बहस होते होते बात मेरे अपने विचारों पर जा पहुँची... प्रगति के इस दौर में विचार भी तेज़ी से एक दिशा से दूसरी दिशा की ओर दौड़ते हैं.. विचार विपरीत दिशा की ओर दौड़ते हुए अतीत में चले गए ... जब जब नारी ने अपना आत्मविश्वास खोया.... या अपनी गौरव गरिमा भूली... उसकी ममता और सेवाभाव को कायरता समझा गया...कुछ देर के लिए भी कमज़ोर पड़ी... तो समाज ने एक पल भी न लगाया उसे अबला कह कर अनेको बंधनों में बाँध लिया... उसकी आजादी छीन कर घर की चार दीवारी में बंद कर दिया...
समय बदला ....उसकी चेतना जागी.... अपने अधिकार की मांग करने लगी.... संघर्ष के उस दौर में ज्ञान का उजाला पाकर घर के बाहर एक बार निकली तो फ़िर उसने पीछे मुड कर न देखा.... अपने अन्दर की शक्ति देख कर आत्मविश्वास जागा... उसके इसी अदम्य विश्वास को देख कर '''कवि सुमन" कह उठे
" है आज भरा मुझमे कितना रे बल का पारावार नही
मुझको अबला कहने का अब कवि' को भी अधिकार नही "
विकास के पथ पर स्त्री पुरूष के साथ साथ चलते कब आगे निकल गयी उसे ख़ुद पता न चला…
कब उसने पुरूष के अहम् को तोडा... कब वह ख़ुद अपने ही अहम् में डूब कर अपने ही वजूद को पाने निकल पड़ी…!! स्त्री और पुरूष दोनों ही इस बात से अनजान जब अपने आस पास देखते हैं तो
अपने आप को अकेला पाते हैं...!!!
इसलिए नारी सशक्तिकरण से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय संस्थायें बढ़ रही हैं और अकेली औरत को अकेले ही जीवन राह पर चलने की सुविधायें जुटा रही हैं ..! नारी को आगे बढ़ते देख कर खुशी मिलती है... गर्व महसूस होता है वहीं लगता है कि ऐसी सफलता कोई मायने नही रखती है जहाँ पुरूष हीन भावना से ग्रस्त होकर अकेला हो जाए या ग़लत दिशा की ओर भटक जाए...
ऐसे नाज़ुक विषय पर बस इतना ही लिखना काफ़ी है ? ?
शायद नही ...!!!!
लेकिन एक नए चिंतन के लिए विचारों को थोड़ा अल्पविराम देना ज़रूरी है !!!
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
copyright
All post are covered under copy right law . Any one who wants to use the content has to take permission of the author before reproducing the post in full or part in blog medium or print medium .Indian Copyright Rules
Popular Posts
-
आज मैं आप सभी को जिस विषय में बताने जा रही हूँ उस विषय पर बात करना भारतीय परंपरा में कोई उचित नहीं समझता क्योंकि मनु के अनुसार कन्या एक बा...
-
नारी सशक्तिकरण का मतलब नारी को सशक्त करना नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट का मतलब फेमिनिस्म भी नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या ...
-
Women empowerment in India is a challenging task as we need to acknowledge the fact that gender based discrimination is a deep rooted s...
-
लीजिये आप कहेगे ये क्या बात हुई ??? बहू के क़ानूनी अधिकार तो ससुराल मे उसके पति के अधिकार के नीचे आ ही गए , यानी बेटे के क़ानूनी अधिकार हैं...
-
भारतीय समाज की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार बेटी विदा होकर पति के घर ही जाती है. उसके माँ बाप उसके लालन प...
-
आईये आप को मिलवाए कुछ अविवाहित महिलाओ से जो तीस के ऊपर हैं { अब सुखी - दुखी , खुश , ना खुश की परिभाषा तो सब के लिये अलग अलग होती हैं } और अप...
-
Field Name Year (Muslim) Ruler of India Razia Sultana (1236-1240) Advocate Cornelia Sorabji (1894) Ambassador Vijayalakshmi Pa...
-
नारी ब्लॉग सक्रियता ५ अप्रैल २००८ - से अब तक पढ़ा गया १०७५६४ फोलोवर ४२५ सदस्य ६० ब्लॉग पढ़ रही थी एक ब्लॉग पर एक पोस्ट देखी ज...
-
वैदिक काल से अब तक नारी की यात्रा .. जब कुछ समय पहले मैंने वेदों को पढ़ना शुरू किया तो ऋग्वेद में यह पढ़ा की वैदिक काल में नारियां बहुत विदु...
-
प्रश्न : -- नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट {woman empowerment } का क्या मतलब हैं ?? "नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट " ...
Meenakshi ji, Beautiful expression! Aap bahut achha likhi hein. Khaskar mujhe wo dono panktiyan kafi pasnd aayi..."mujhko...."
ReplyDeleteI read "Urvashi"’when I was in class 9th. I liked it very much and mujhe us book ki kuch lines ab bhi yaad hein. It is written by the poet-Ramdhari Singh dinkar. Mujhe 'Urwashi’ki ek pankti yaad aa rahi hai which I am putting here:
"देवी! ग्लानि क्या, इतिहासों में यदि प्रथित हम नहीं हुए!”
[Dinkar addresses the women to not be sad if History has denied them a Space.]
I think it says everything! :-)
Thanks and rgds.
www.rewa.wordpress.com
कब उसने पुरूष के अहम् को तोडा... कब वह ख़ुद अपने ही अहम् में डूब कर अपने ही वजूद को पाने निकल पड़ी…!! स्त्री और पुरूष दोनों ही इस बात से अनजान जब अपने आस पास देखते हैं तो
ReplyDeleteअपने आप को अकेला पाते हैं...!!!
बहुत ही सही बात लिख दी आपने मीनाक्षी जी ..मैं भी यही कहती हूँ की दोनों के बिना यह सृष्टि अधूरी है बस जरुरत है एक दूसरे के विचारों को समझने की
चर्चा को आगे बढ़ने के लिये थैंक्स । और इस लिंक के लिये भी । लिंक के short form पर भी गौर करे !!!!!!! आपकी बात का पुरजोर समर्थन कर रहा हैं मीनाक्षी जी !!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteमेरे विचार मे
"नारी और पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं " ये सन्दर्भ केवल पति पत्नी के लिये ही होता पर नारी सशक्तिकरण जब हम बात करते हैं तो हम नारी का रिश्ता नारी से , पुरूष से और समाज से तीनो को लेते हैं । पुरूष के रूप मे पति भी हैं , बेटा भी , पिता भी , दोस्त भी , प्रेमी भी , गुरु भी । और आज कल कि नारी अविवाहित भी हैं और अकेली अपने काम करने मे सक्षम भी सो " नारी सशक्तिकरण " उस नज़रिये से देखे जहाँ नारी लीक से हट कर काम करना चाहती हैं और करती भी हैं । जहाँ तक पति पत्नी के सम्बन्ध हैं मेरा मानना भी यही हैं कि इस जगह नारी और पुरूष एक दूसरे को अगर पूर्णता नहीं देते तो वह शादी ही अधूरी हैं और ऐसे संबंधो को निभाना या ना निभाना एक ही बात हैं ।
मीनाक्षी सधे और संयत शब्दों मे अच्छा लिखा है ।
ReplyDeletebahut sashakta post,har pankti se sehmat hai hum aapke.
ReplyDeleteअकेली औरत को अकेले ही जीवन राह पर चलने की सुविधायें जुटा रही हैं ..! नारी को आगे बढ़ते देख कर खुशी मिलती है... गर्व महसूस होता है वहीं लगता है कि ऐसी सफलता कोई मायने नही रखती है जहाँ पुरूष हीन भावना से ग्रस्त होकर अकेला हो जाए या ग़लत दिशा की ओर भटक जाए...
ReplyDeleteमीनाक्षी जी सधे और संयत शब्दों मे अच्छा लिखा है. वास्त्विकता यही है कि उत्साह में कुछ पल भले ही अकेले प्रसन्न्तादायक प्रतीत हों किन्तु दीर्घकाल में न पुरुष और न स्त्री अकेले रह सकते हैं, रह भी नहीं रहै हैं, जहां भी स्त्री को यह लगता है कि वह अकेली चल रही है, तब भी कोई न कोई पुरुष उसके साथ किसी न किसी रिश्ते से जुड्कर अवश्य ही सहयोग कर रहा होता है, ऐसा ही पुरुष के साथ भी है.
नारी और पुरूष दोनों ने मिल कर समाज का निर्माण किया. दोनों ने व्यक्तिगत और संयुक्त जिम्मेदारी और अधिकार आपस में बांटे. फ़िर धीरे-धीरे इस व्यवस्था में बिसंगातियाँ आनी शुरू हो गईं. पुरुषों के अधिकारों का और नारियों की जिम्मेदारियों का दायरा बढ़ता गया. शिक्षित नारियों में यह दायरा कुछ सीमित हुआ है पर अनपढ़ नारियों में यह दायरा बढ़ता जा रहा है. वह अनपढ़ नारियां जो खेतों में, बिल्डिंग साइट्स और घरों में नौकरी करती हैं, ऐसी नारियों की संख्या बहुत ज्यादा है. उन्हें सशक्त करने का अभियान चलाया जाना चाहिए. जब तक यह नहीं होता तब तक नारी मुक्ति की बात करना बेमानी हो जाता है.
ReplyDelete