देश में बुजुर्ग की स्थिति पर आज कल ब्लॉग जगत में मंत्रणा चल रही हैं एक घटना बाँट रही हूँ आप सब से आशा हैं आप जरुर अपने विचार देगे । घंटना वास्तविक हैं केवल पात्रो के नाम बदल दिये हैं ।
साल १९८८
गौरी की शादी होती हैं । गौरी एक सुंदर लड़की हैं पढ़ी लिखी हैं, विवाह सामाजिक रीति रिवाजो के साथ होता हैं । महेश का अपना छोटा कारोबार हैं । महेश के पिता का छोटा से DDA का फ्लैट हैं । दो बराबर के भाई भी हैं । माता पिता और ३ भाई के इस परिवार में गौरी बहु बन कर आती हैं ।
साल १९८९
गौरी और सास में तनातनी रहती हैं । जिस घर में विवाह से पहले नौकरानी थी वहाँ गौरी के आते ही नौकरानी हटा दी जाती हैं पता चलता हैं केवल विवाह तय होने तक ही नौकरानी रखी गयी थी । सास चाहती हैं बहु अपने सब फ़र्ज़ निभाये यानी झाड़ू , पोछा , बर्तन , और ५ लोगो का खाना पकाना । सास चाहती हैं बहु सुबह ५ बजे उठे , पति , दोनों देवर और ससुर के जाने के बाद १० बजे नाश्ता करे । गौरी ने अपने घर में इतना काम कभी नहीं किया था । उसकी माँ -पिता दोनों नौकरी करते थे और घर में हमेशा नौकर रहता था काम के लिये । बर्तन , झाड़ू पोछा तो उसने कभी सोचा भी नहीं था कि रोज करना होगा । लिहाजा सास बहु में तनाव कि स्थिति हो गयी ।
साल १९९०
होली के दिन किसी बात पर सास ने गौरी पर हाथ उठाया । गौरी ने हाथ वहीँ पकड लिया और मोड़ दिया । घर में सास , ससुर पति और एक देवर था । सास ने तुरत गौरी के घर फ़ोन लगाया और लड़की के पिता को तलब किया ।
माता पिता तुरंत पहुचे । पिता ने जब किस्सा सुना तो वो आग बबूला होगये और उन्होने सास को कहा कि हमने अपनी लड़की पिटने और नौकरानी बनने का लिये यहाँ नहीं भेजी थी । इस पर ससुर बोले अब औरतो कि बातो में क्या बोलना लेकिन गौरी को माफ़ी मांग लेनी चाहिये क्युकी गौरी बहु हैं । गौरी ने माफ़ी नहीं मांगी क्युकी हाथ सास ने उठाया था ।
गौरी ने कहा सास ने उसका जीना मुश्किल कर रखा हैं । सास उस से उम्मीद करती हैं कि वो घर कि नौकरानी कि तरह काम करे । सास नहीं चाहती वो घर में ससुर या देवर से बात करे क्युकी वो एक परायी स्त्री हैं और उसको इस घर में अधिकार नहीं हैं ।
गौरी के पिता के ये कहने पर कि मेरी लड़की भाग कर आप के घर नहीं आयी हैं , मैने उसका विवाह किया हैं और इस घर पर उसका भी अधिकार हैं ससुर बोले कि इस घर में अगर उसको रहना हैं तो हमारी तरह रहना होगा । वरना अपने पति के साथ अलग हो जाये । पति कि आय उतनी नहीं थी कि अलग रहा जा सके । ससुर का कहना था ये मेरा घर हैं और आप कि लड़की को हमारे हिसाब से ही रेहना होगा । मेरी पत्नी { गौरी कि सास } का मेनोपौस चल रहा हैं सो वो चिड चिड करती हैं । लेकिन मैने कहूँ तो मेरे जूते भी पोलिश करती हैं ।
साल १९९३
गौरी के पिता ने गौरी को एक फ्लैट खरीद कर दे दिया और गौरी अपने पति के साथ वहाँ आगयी । जिस समय गौरी का सामान ससुराल से टेम्पो में रखा जा रहा था सास ने गैस का सिलिंडर वापस रखवा दिया और कहा ये तुम्हारा नहीं मेरा हैं । इस पर एक पड़ोसन ने कहा माता जी बहु को भेज रही हैं या अलग कर रही हैं । वो खाना कैसे बनायेगी ।
नए घर में गौरी के पास ना टी वी था ना फ्रिज ना सोफा क्युकी जब शादी हुई थी गौरी के ससुर ने गौरी के पिता से कहा था कि ये सब मत दे , क्युकी ये सब दे कर लड़की वाले लड़की को अलग रहने कि बात करते हैं ।
गौरी कि माँ पिता के लिए अब और समान देना संभव नहीं था क्युकी शादी के निमित जो २.५ लाख रुपया था उसको वो लें दाएं जेवर इत्यादि पर खर्च कर चुके थे । अगर उस समय वो सामान वो दे देते तो आज उनकी बेटी इस तरह परेशान ना होती
साल १९९४
गौरी ने एक स्वस्थ कन्या को जनम दिया पर गौरी अपनी ससुराल नहीं गयी ।
गौरी के पिता का निधन हो जाता हैं ।
समय के साथ गौरी की माँ के समझाने पर गौरी ने तीज त्यौहार पर ससुराल जाना शुरू किया पर सास और ससुर और देवर से उसके संबंधो में कोई सुधार नहीं हुआ ।
गौरी के मायके और गौरी कि ससुराल में आना जाना रहता हैं । तीज त्यौहार मायके से ससुराल मिठाई और नेग जाता रहता हैं लेकिन इस के बावजूद हर समय गौरी के ससुराल वाले गौरी कि बुरायी करते हैं उसकी माँ के सामने
ससुराल वाले हमेशा उसके हर काम में बुराई खोज लेते थे । छोटे देवर ने तो यहाँ तक कहा कि वो जब शादी करेगा तो उसकी बीवी सब काम भी करेगी और नौकरी भी । आज तक उस देवर को ऐसी लड़की नहीं मिली जो दहेज़ भी लाये , नौकरी भी करे और घर में नौकरानी कि तरह सब काम भी करे ।
साल २०१०
दोनों देवर विदेश में बस गए । सास कि आँखों कि रौशनी चली गयी , गौरी का पति अपने घर आता जाता रहता हैं । गौरी निर्लिप्त हैं । सास को कपड़े बदलने से ले कर हर काम के लिये कोई चाहिये पर कोई नहीं हैं क्युकी उनके स्वाभाव के चलते कोई नहीं रहना चाहता हैं ।
साल २०११
गौरी कि सास का निधन हो जाता हैं । गौरी अपने पति कि बात मान कर हिन्दू कर्म काण्ड के हिसाब से ३ दिन ससुराल में रह कर अपने घर वापस जाती हैं । गौरी कि माँ गौरी के ससुर से हाथ जोड़ कर कहती हैं कि १३ वी के बाद एक दिन वो सपरिवार गौरी के मायके आये
ससुर का जवाब होता हैं उनका परिवार और महेश - गौरी का परिवार एक नहीं हैं ।
आज गौरी के ससुर तीन बेटो के होते हुए भी वृद्ध आश्रम जा कर रहना चाहते हैं क्युकी उनके पास इतना पैसा हैं कि वो वहाँ रह सके । ये बात जब उन्होने गौरी और महेश से कही तो गौरी कुछ नहीं बोली हां महेश ने इतना ही कहा देख लीजिये जैसा आप को ठीक लगे
आज गौरी के ससुर ८० साल के अशक्त हैं और क्युकी अकेले हैं इस लिये झाड़ू पोछा लगाने वालियां भी काम नहीं पकड़ना चाहती हैं और गौरी ये मानती हैं कि काम वाली उनको रखनी ही क्यूँ चाहिये ।
आप को क्या लगता हैं इस सच्ची घटना में बुजुर्ग कि कोई गलती नहीं हैं सारी गलती गौरी कि हैं
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
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बुजुर्गों की गलती ३०%
ReplyDeleteगौरी की गलती ७०%
रंजना जी से सहमत हूँ ...बुजुर्गों ने अपने समय में जो किया , उसका जवाब देने का समय उनकी लाचार वृद्धावस्था नहीं है !
ReplyDeleteयानी रंजना जी आप घरेलू हिंसा को सही मानती हैं क्युकी यहाँ सास ने हाथ उठाया था और आप ये भी सही मानती हैं कि लडके बहु को समय असमय "घर से निकल जाओ कहना सही हैं " घर को आप कैसे परिभाषित करती हैं ?? और क्या आप इसको एक सहज स्थिति मानती हैं जहां लड़की वालो के सामने नौकरानी रहे और शादी होते ही हटा दी जाए
ReplyDeleteगौरी आप कि नज़र में ७० प्रतिशत गलत हैं क्यूँ , क्यूंकि इस पोस्ट में बहुत सी ऐसी बाते मे नहीं लिख सकी जिन से गौरी को गुज़ारना पडा शादी होते ही जैसे शाकाहारी होने कि वजह से उसको रात का रखा खाना दिया जाता था जब घर में मासाहार बनता था . सास कहती थी जो बचा रखा हैं उस से रोटी खालो या जिसको बुखार में सास पानी मिला दूध देती थी .
रंजना जी परिस्थितियाँ बच्चो को अपने माता पिता से निर्लिप्त कर देती हैं .
वाणी जी यहाँ जवाब देने कि बात ही नहीं हैं बात हैं क्या बोया और क्या कटा . एक द्रश्य आप ने दिखाया और एक मैने दिखाया . समस्या गंभीर हैं और दोषारोपण नहीं बहस चाहती हैं .
बड़ो को अपने बड़प्पन को बना कर रखना भी चाहिये . बुढ़ापा एक दिन सबका आता हैं पर एक दिन बुढ़ापा आयेगा ये कितने सोचते हैं .
बहुत गंभीर समस्या है मगर समझना कोई नही चाहता कम से कम पुरानी पीढी तो बिल्कुल नही और यदि पुरानीपीढी ही नही समझेगी तो आने वाली पीढी से क्या उम्मीद की जा सकती है घर परिवार सामन्जस्य से चलते है ना कि रौब से या दबाव से …………आपसी प्यार विश्वास और सहयोग जरूरी होता है और जो ऐसा नही कर पाते उन्हे ही आगे जाकर दिक्कतो का सामना करना पडता है…………जो हम किसी को देते है वो ही हमे वापस मिलता है यदि ये बात समझ आ जाये तो सारी मुसीबते मिट जायें।
ReplyDeleteआज जो जगह जगह बुजुर्गो के हालात की चिन्ता हो रही है उसमे कहीं ना कहीं इन सब बातो का अभाव रहा है तभी ये हालात हुये हैं…………और यहाँ तो बुजुर्गो ने कोई कसर नही छोडी…………तो बताइये ऐसे लोगो के लिये दिल मे कितना मान सम्मान रह जायेगा…………अरे कहीं तो आपस मे प्यार या विश्वास होता मगर जब उन्होने पहल नही की तो नयी पीढी तो होती ही स्वच्छंद है वो क्यो मानेगी उनकी बात ……………वैसे भी बडी उम्र के लोगो से ही ये उम्मीद की जाती है कि वो समझे और बच्चो को समझने का मौका दें मगर जब वो भी छोटी छोटी बातो को तिल का ताड बनाने लगते है तब ऐसी ही विस्फ़ोटक स्थिति से 2-4 होना पडता है…………।
mai bhi joint family mei rehti hu,(mera ak beta hai)or job karti hu, us stithi mei bhi ghar jakar kabhi kabhar khana pakati hu or sat-sunday (holiday) wale din ghar k kaam karti hu, aisi problems mujhe bhi face karni padti hai, kai baar man bhi karta h alag jakar rehne ka, par chup reh jati hu ye soch k ki saas sasur ko is umar mei kon sambhalega
ReplyDeleteअब तक बहुत से लेख पढ़ लिए बुज़ुर्गो पर.. अभी अभी ज्ञानवाणी पर जो कमेंट दिया उसे यहाँ भी लगा रही हूँ " अपने घर में बहुत करीबी तीन बुज़ुर्ग हैं जिन्हें देखती हूँ तो लगता है कि कहीं न कही वे खुद अपनी अवस्था के जिम्मेदार हैं...एक वृद्ध - सारी उम्र कमा कमा कर बैंक में पैसा जमा किया, पैंशन भी बहुत है.. आलीशान मकान बनाया लेकिन उसे घर न बना सके..अब चार बच्चे अपनी अपनी गृहस्थी मे व्यस्त है..बूढ़े माँ बाप एक दूसरे को कोसते हुए साथ साथ रहते है..दूसरा वृद्ध - पेंशन बहुत ज़्यादा है,रौब से रह सकती हैं लेकिन तीन बेटों ने चार चार महीने के लिए माँ को बाँट लिया है...एक बेटी है उसे माँ के दर्द से कोई लेना देना नही है हाँ पैसे से सभी बच्चो को लगाव है वह भी उन बुज़ुर्गवार के कारण ही...तीसरी वृद्ध - अपने पति के साथ अलग रहती हैं.. तीन बच्चे हैं समय समय पर पैसा मदद के तौर पर ले जाते हैं...अंधी ममता जो कराए थोड़ा....इन तीनों का हमेशा कहना था बच्चों के लिए नहीं करेंगे तो किनके लिए कमा रहे हैं...बच्चों को सिर्फ दिया...बदले मे कुछ भी लेने की चाहत जागी जब वे खुद बूढ़े हुए तब तक बच्चे खुद इतने बड़े हो गए थे कि उनके लिए 'कुछ देना' उस उम्र मे सीखना मुश्किल था...."
ReplyDeleteयहाँ तो गलती बुजुर्गों की ही लग रही है.वाणी जी का कहना एक तरह से सही है लेकिन गौरी के ससुर एक कुढमगज किस्म के इंसान है.वो अपने बेटे के कहने पर नहीं मान रहे तो बहू की क्या मानेंगे.
ReplyDeleteकिसी भी घटना विशेष में किसी की गलती तलाशने की जरूरत नहीं है। जरूरत है सिस्टम को बदलने की, परिवार में सब एक दूसरे को इंसान समझने की। जब समझने लगेंगे तो यह समस्या नहीं रहेगी।
ReplyDeleteआपकी जिज्ञासाओं का एक एक कर समाधान करने का प्रयास करती हूँ-
ReplyDeleteयानी रंजना जी आप घरेलू हिंसा को सही मानती हैं क्युकी यहाँ सास ने हाथ उठाया था
(कोई माँ यदि अपने बेटी पर क्रोधावेग में कभी यदि हाथ उठा दे,तो क्या यह घरेलु हिंसा के अंतर्गत आता है?? )
और आप ये भी सही मानती हैं कि लडके बहु को समय असमय "घर से निकल जाओ कहना सही हैं "??
(इस परिस्थति को भी मैं उपरोक्त कैटिगरी में ही रख कर पूछना चाहूंगी,कि माँ जब अपने बच्चे को क्रोध में कहे,आज मैं तुझे जान से मार दूंगी..तो मान लेनाचाहिये कि आतंकवादियों की तरह निष्ठुरता से वह जान से मारे बिना नहीं छोड़ेगी ??)
घर को आप कैसे परिभाषित करती हैं ??
(घर वो जिसमे बड़े भले छोटों को डांट फटकार सकते हों,पर छोटे बड़ों का अपमान नहीं कर सकते,छोटों का काम नहीं कि वे गिव एंड टेक आधारित सेवा भाव रखें)
और क्या आप इसको एक सहज स्थिति मानती हैं जहां लड़की वालो के सामने नौकरानी रहे और शादी होते ही हटा दी जाए?
(जैसा कि आपने स्वयं कहा कि गौरी का पति बहुत साधारण कमाता था विवाह के समय,यह उजागर करता है कि उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी न होगी कि वे नौकर अफोर्ड करने के हाल में होंगे.विवाह पूर्व इनके यहाँ नौकर नहीं था गौरी की सास घर के काम करती थी ,यह भी आपने ही कहा... सामाजिक सम्मान तथा शादी ब्याह के समय अपने घर की स्थिति अच्छी बताने के लिए नौकर का रख लेना ठीक उसी प्रकार है जैसे घर में फटे पुराने पहनने वाले लोग बाहर निकलने पर साफ़ सुथरे नए कपडे पहन लेते हैं)
गौरी आप कि नज़र में ७० प्रतिशत गलत हैं क्यूँ , क्यूंकि इस पोस्ट में बहुत सी ऐसी बाते मे नहीं लिख सकी जिन से गौरी को गुज़ारना पडा??
(आपका यह पोस्ट पूरी तरह से बायस्ड लगा,क्योंकि गौरी के सास ससुर तथा परिवार वालों के नजरिये से इश्यु को यहाँ देखा ही नहीं गया है)
शादी होते ही जैसे शाकाहारी होने कि वजह से उसको रात का रखा खाना दिया जाता था जब घर में मासाहार बनता था.सास कहती थी जो बचा रखा हैं उस से रोटी खालो ..
(रात का बचा खाना खाना घरेलु हिंसा के अंतर्गत आना चाहिए...बिलकुल इत्तेफाक नहीं रखती..मैं शाकाहारी हूँ और मेरे घर में जब कभी मांसाहार पका,मैंने ढूंढ धान्धकर बचा खुचा स्वेच्छा से खा लिया,इसमें क्या बुरा है)
या जिसको बुखार में सास पानी मिला दूध देती थी
(यह बहुत गलत किया सास ने. यह उसकी असहनशीलता दर्शाती है..हालाँकि यहाँ भी इसे ऐसे देखा जा सकता है कि हो सकता है उनके पास सिमित मात्र में दूध हो या फिर बुखार में अमूमन गरिष्ठ भोजन नहीं दिया जाता, इसलिए दूध में पानी मिलकर डाय्ल्युट कर दिया गया हो..और यदि इनमे से कोई बात नहीं,तो गौरी ने अपने लिए सास के मन में कितना जगह बनाया,यह भी तो विचारणीय है..ताली एक हाथ से नहीं बजती )
रंजना जी परिस्थितियाँ बच्चो को अपने माता पिता से निर्लिप्त कर देती हैं.
( ऐसे बच्चों (दम्पति) को अपने लिए ओल्ड एज होम में अपने लिए समय रहते इंतजाम करके रखना चाहिए,क्योंकि हर अगली पीढी को पिछली पीढी की अधिकांश बातें दाकियानूसी पिछड़ी फालतू अवरोधक लगती है..आज जो अपने माता पिता से निर्लिप्त हैं,उनके बच्चे वयस्क होते तक उनके व्यवहार से भली प्रकार सीख चुके होंगे कि माता पिता से निर्लिप्त कैसे होना चाहिए)
बड़ो को अपने बड़प्पन को बना कर रखना भी चाहिये . बुढ़ापा एक दिन सबका आता हैं पर एक दिन बुढ़ापा आयेगा ये कितने सोचते हैं .
( अब एक प्रश्न-
मेरे पति के जन्मदाता बहुत बुरे हैं..मुझे कभी अपना नहीं माना...जबतक उनके देह दिमाग में ताकत रही,मुझे खूब खूब सताया...
मुझे क्या करना चाहिए-
१) उनके अशक्त होते ही अपना बदला निकाल लेना चाहिए ???
२) यह सोचकर उनकी सेवा और कर्तब्य निष्पादन में लगे रहना चाहिए कि " जैसे भी हैं,इन्ही से न हम हैं"
कृपया बताएं,क्योंकि इसीमे आपके सवालों के जवाब हैं कि किसको कितना नंबर मिलना चाहिए दोष का ...
माँ का मरना और सास का हाथ उठना तब एक समान होता था जब बहु बालिका बधू होती थी
ReplyDeleteकौन सी माँ २० साल कि बेटी पर हाथ उठाती हैं
बहु बच्ची नहीं हैं और अगर २० साल कि लड़की पर माँ भी हाथ उठाये तो वो घरेलू हिंसा ही हैं और यहाँ तो बहु पर हाथ उठाया गया
दूसरी बात मैने बहु को घर से निकल जाने कि नहीं कही हैं मैने बेटे बहु को घर से निकल जाने कि हैं
घर का मतलब हैं संरक्षण उस समय जब जरुरत हो उस मे कोई छोटा या बड़ा कि बात नहीं है लेकिन होता उलटा हैं जब पिता अपने बेटे को बहु के साथ अपने घर से जाने के लिये कहता हैं तो वो बता रहा हैं घर उसका हैं यानी बेटे का नहीं
किसी परिवार को धोखा देने जैसी स्थिति होती हैं जब शादी से पहले कुछ दिखाया जाता हैं और बाद मे कुछ और परिवार के विघटन का कारन भी यही दिखावा हैं
क्युकी बुजुर्गो के नज़रिये से कई पोस्ट आ चुकी हैं इस लिये इस पोस्ट मे वो दिखाया जो एक और पहलु हैं कि क्यूँ बुजुर्ग संरक्षित नहीं रह गए हैं
अगर आप अपनी मर्ज़ी से कुछ खाती हैं तो वो आप कि इच्छा लेकिन अगर किसी संभ्रांत परिवार कि लड़की को रात का खाना दे दिया जाए और बाकी सब ताज़ा खाना खाए तो ये सभ्यता नहीं हैं . आप खुद खा रही हैं गौरी को खिलाया जा रहा हैं दोनों में अंतर हैं .
जी ये तो मे कह ही चुकी हूँ जो बोया होगा वही काटना पड़ेगा बुढ़ापे में
अगर आप के पति के जन्मदाता ने केवल आप को सताया हैं और आप उसको उनका व्यवहार मानती हैं और उनकी सेवा करने में खुश हैं तो ये आप कि अपनी बात हैं और इसके पीछे आप कि अपनी सोच , परिस्थिती और आप कि शादी किन हालत मे हुई और आप के माता पिता कि आप के लिये क्या सोच थी सब जिम्मेदार होते हैं .
लेकिन आपकी सेवा करने से आप के प्रति उनका जो व्यवहार हैं वो कहीं भी सही नहीं सिद्ध हो जाता और यही बात में इस पोस्ट में कहना चाहती थी कि नयी पीढ़ी को पुराणी पीढ़ी भी प्रतारित करती हैं . विघटन के लिये केवल नयी पीढ़ी जिम्मेदार नहीं हैं . आप के प्रति उनका गलत व्यवहार गलत ही कहा जाएगा . आप सहना चाहती हैं आप कि मर्ज़ी
बहुत सी परिस्थितियों मे लड़की के पास मायके वापस जाने का विकल्प भी नहीं होता हैं
इस नाजुक मसले पर समझ व दूरदर्शिता की कमी करीब-करीब सभी जगह समस्या उपजा रही है । बदले हुए सन्दर्भों में यही समस्या आप चाहें तो यहाँ भी देखें-
ReplyDeleteअपनी-अपनी बारी...
जब सोच यह हो कि जिस लडकी के पास आर्थिक आलंबन (किसी भी रूप में,चाहे वह मायके वापस जाने का आधार ही क्यों न हो) नहीं होता वही परिवार को जोड़े रखने के क्रम में बड़ों की अनुचित लगने वाली बातें सह जाती हैं...तो इस वैचारिक दिवालियेपन के आगे कहने लायक कुछ बचता ही नहीं..
ReplyDeleteआप जिस अधिकार सजगता की हिमायत कर रही हैं, उसी आधार पर घर टूटा करते हैं...यही वह आधार है, जो उम्र के अंतिम पड़ाव पर स्थित बुजुर्गों को घर से बेघर कर ओल्ड एज होम या सड़क पर भीख मांगने पहुंचा देती हैं...
और सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि तथाकथित स्त्री स्वातंत्र की हिमायती ऐसी विचारधारा रखने वालियों की संख्या आज बहुत बड़ी है...
ऐसी स्त्रियों को अपने व्यक्तिगत सुख और स्वतंत्रता के आगे kartaby और संस्कार जैसे शब्द हास्यास्पद लगते हैं...
ऐसे परिवारों में जहां इतना पारिवारिक खलल रहता हो क्या उदाहरण उपयुक्त भी हैं ? जहन्नुम में जायं :(
ReplyDeletehttp://anvarat.blogspot.com/2011/06/blog-post_25.html
ReplyDeletereaders should read this post also
we are here to discuss why old people get isolated during old age
there are numerous reasons and the one citied by suman reflects the need to be more democratic when we are young so that when we get old we can adjust better
there are various reasons why kids when they grow up move away apart from being selfish
career needs , need to be on their own , different living styles are all reasons
we have to go into depth of the problem rather then always saying daughter in law is responsible , son is responsible
when the system collapses everyone is responsible
speaking lies at the time when you marry your child whether done by grooms family or brides
no communication with kids before their marriage
etc are probable causes and need to discussed so that
our generation builds no false hopes
अभी तक तो यही तय नहीं हो पा रहा है कि किसका दोष है और कितना ?
ReplyDeleteजो ख़ुद को इंसान बना पाए । उन पर भी ज़ुल्म ढहाए गए । इतिहास गवाह है कि सबसे ज़्यादा ज़ुल्म सबसे अच्छे लोगों पर ही हुआ है ।
तब सच्चा समाधान क्या है ?
इसे जानने के लिए इंसान को अपनी संकीर्णता और अपने पक्षपात की आदत छोड़नी होगी ।
किसी एक ऐसे उदहारण से हम इस समस्या को हल नहीं कर सकते है मुख्य समस्या है बुजुर्गो की देखभाल इसके लिए जरुरी कदम दोनों ही तरफ से उठाना होगा ये संभव नहीं है की बुजुर्ग बच्चो पर सारा जीवन जुल्म करे और जब बच्चो का मन उनसे हट जाये तो बुढ़ापे में उनसे किसी तरह के सहयोग या प्रेम की उम्मीद करे और ये भी सही नहीं है की बिलकुल लाचार हो चुके माँ या पिता को उनके पिछले कर्मो की वजह से अकेला छोड़ दिया जाये हा स्नेह से नहीं तो कम से कम अपनी जिम्मेदारी के तौर पर उन्हें जरुर अपने पास रखे उनको खुद अपने पिछले किये पर पछतावा होगा |
ReplyDeleteसाथ ही रंजना जी की इस बात से बिलकुल सहमत नहीं हूँ की ससुराल में सास पति ससुर आदि कोई भी हाथ उठाये तो उसे अपनी माँ पिता की मार या मेरे भले के लिए ही मुझे मारा गया है या जो प्यार करता है वो मार भी सकता है जैसे जुमले के साथ बर्दास्त कर ले | ये तो बिलकुल भी गलत बात है कौन से समझदार माँ बाप है जो आज अपने १५-१६ साल के बच्चो पर भी हाथ उठाते है फिर किसी विवाहित लड़की या लड़का के साथ इस तरह की हरकत बिलकुल भी गलत है और इस तरह के काम के विरोध को नारी स्वतंत्रता या जागरूकता के साथ जोड़ना तो और भी गलत है | मुझे लगता है की उन्हें अपने इन विचारो पर एक बार फिर से विचार करना चाहिए |
वंदना जी
ReplyDeleteशुक्रिया इस सच्चे कमेन्ट के लिये . किसी एक नयी पीढ़ी से ना तो समाज सुधरा हैं ना बिगड़ा हैं
मेरी सोच जी
परिवार बना कर चलना आसन नहीं हैं , आप चल रही हैं अच्छा लगा जान कर . कुछ नहीं चल पाते जैसे गौरी क्युकी उनकी सहन शीलता आप से कम हैं और जिस राह वो चली रोड़े बहुत थे
मीनाक्षी जी आभार इतनी सच से ओत प्रोत टीप के लिये
राजन जी
सही कहा
दिनेश जी
शुक्रिया टीप देने का
रंजना जी
वैचारिक दिवालियेपन जैसे शब्द कहने के लिये आभार . वैसे आप जो भी व्यक्तिगत राय रखती हो मै घरेलू हिंसा के सख्त खिलाफ हूँ . और जिनके मायके वाले आज भी ये मानते हैं जिस घर मे डोली गयी हैं उसी से अर्थी उठे उनकी बेटियों कि अर्थियां उठ ही जाती हैं असमय . और जहां प्रेम विवाह कर के लडकियां मायके के लोगो से अलग हो जाती हैं वो ससुराल में हर तरह से अडजस्ट करती ही हैं { ये आप पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं हैं क्युकी मे आप को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानती }
अंशुमाला जी
इतनी साफगोई से बात कहना , अच्छा लगा आप का कमेन्ट
Thanks Suman, I agree with you but I do not agree with Ranjanaji's comments.
ReplyDeleteFirst of all I would like to ask everybody here that, "My right might be your wrong, so if I revolt, will you call me a terrorist?"
Meri nazar mein kisi par bhi hath uthana, hinsa hai. Hinsa aur ahinsa ke vastvik arth ko samjhiye, use bhavnaon ke aanchal se dhakne ke bajay, satya ko sweekar karna hi samajhdari hai.
Ranjanaji, 'Swechha se kha liya' aur 'bacha khucha kho lo' jaise vakyon ke arth evam bhav dono mein kafi antar hai.
"kartaby और संस्कार"
Sanskar shabd ko aap kaise define karti hain ye usper nirbhar hai. Are they fit to call themselves CIVILIZED who beats their daughter-in-laws?
Regards,
Rewa Smriti
इस मामले में पूरी गलती बुजुर्गों की है, और यकीन मानिए ये कहानी तो कुछ भी नहीं है|
ReplyDeleteमेरे आस-पास में ही दो ऐसी मिशाल हैं जिनकी कहानी यदि आप सुनेंगी तो पता चलेगा कि कैसे बुजुर्ग अपने साथ साथ दूसरों की जिंदगी भी बर्बाद (नरक) कर देते हैं