इतना बड़ा जनसख्या में अनुपात का अंतर होने के बाद भी हम अपनी किस सोच के तहत कन्या भ्रूण की हत्या करते जा रहे हैं। सब ये दिलासा देते हैं कि अब समय बदल रहा है लोगों की सोच बदल रही है लेकिन फिर एकाएक कुछ ऐसा घट जाता है हम मजबूर हो जाते हैं की हम कहाँ बदल रहे हैं? कहाँ हमारी सोच बदल रही है। हम बिना पढ़े लिखे लोगों की बात माँ सकते हैं की वे लड़की को बोझ समझ रहे हैं लेकिन वे पढ़े लिखे लोग - जो डॉक्टर हैं, जो नर्सिंग होम चला रहे हैं वे तो अनपढ़ नहीं हैं वे तो इस वास्तविकता से अच्छी तरह से वाकिफ है की लिंग अनुपात तेजी से गिरता जा रहा है और इसका परिणाम मानव जाती के लिए अच्छा नहीं है।
हम चीख चीख कर अख़बारों में , पत्रिकाओं में और ब्लॉग सभी पर गुहार लगा रहे हैं की इस जाती को भी जीने का हक़ है और वे आते ही अपने अधिकारों की मांग नहीं करने लगती हैं , वे बालक की तरह से ही जीवन जीती हैं , उन्हें संतान समझ कर जीवन दीजिये और अगर नहीं देना है तो फिर अगर आपके पास कोई निश्चित पुत्र ही पैदा करने का उपाय है तो उसको अपना लीजिये लेकिन भ्रूण की हत्या का पाप मत लीजिये। इसके परिणाम कभी कभी कितने गंभीर हो जाते हैं इस बात को वही समझ सकता है जो इसका भुक्तभोगी है।
पिछले दिनों में विदर्भ क्षेत्र में ही थी और एक दिन ये खबर ने तो अन्दर तक हिला दिया की महाराष्ट्र के बीद जिले के एक नाले में बह रहे ९ कन्या भ्रूण पर लोगों की नजर पड़ी और उन सबको लेकर जब उनका परीक्षण किया गया तो पता चला की वे सारे कन्या भ्रूण थे।इस जिले में सर्वाधिक लिंगानुपात १०००/८०१ (२०११) में आँका गया है। महाराष्ट्र में यह१०००/८८३ है। इन सारे भ्रूणों के एक स्थान पर पाना इस बात का प्रतीक है कि इसमें कितने लोग शामिल हैं? सिर्फमाता पिता या उनके घर वाले नहीं, इसमें शामिल है वह डॉक्टर जो इस काम को अंजाम दे रहे हैं और वह नर्सिंग होम याहॉस्पिटल जो अपने यहाँ खुले आम भ्रूण हत्या करवा रहे हैं।
हम सुधर रहे हैं, हमारी सोच बदल रही है या फिर हम कन्या को एकमात्र संतान की तरह से ख़ुशी ख़ुशीस्वीकार कर रहे हैं। हमारी इन दलीलों पर ये घटना प्रश्न चिह्न लगा रही है। अब हम क्या और करें कि अपनी इस जाति कोबचाने के लिए लोगों को बदल सकें। कुछ आप सोचें और कुछ हम। ऐसे अपराधी लोगों के लिए कौन सी सजा होनीचाहिए चाहे वे प्रतिष्ठित लोग हों या फिर समाज के निर्माता ही क्यों न हों? हमें अपने प्रयास और तेज करने होंगे।
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
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यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है -क़ानून बनने के बाद भी न तो जागरूकता दिखती है और न ही कोई भय !
ReplyDeleteये तो दुर्भाग्यपूर्ण बात है…………इस तरफ़ ध्यान देना होगा।
ReplyDeleteडाक्टर भी तो व्यापारी जैसे बन चुके हैं. पैसा क्या उन्हें प्यारा नहीं. काहे के इथिक्स.
ReplyDeleteजी हाँ यह बहुत दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति है तथा इसके लिए हमारी रुढ़िवादी मानसिकता ही दोषी है जिस कन्या को हम देवी का रूप मानते है उसी की हम जन्म लेने के पहले ही ह्त्या कर रहे हैं |
ReplyDeletemai bhi aapki baatoein se puri tarah sehmat hu, maine takriban aaj se 3 saal pehle ak data mei padha tha k agar ladke or ladki ka anupat dekha jaye to har 1000 ladko k peeche sirf 800 ladkiya h ab to ye diffrence or badh gaya hoga, isko rokna boht jaruri h
ReplyDeletemai bhi aapki baatoein se puri tarah sehmat hu, maine takriban aaj se 3 saal pehle ak data mei padha tha k agar ladke or ladki ka anupat dekha jaye to har 1000 ladko k peeche sirf 800 ladkiya h ab to ye diffrence or badh gaya hoga, isko rokna boht jaruri h
ReplyDeleteरेखा जी
ReplyDeleteहमारे समाज में कन्या को जन्म लेने के बाद भी मार देने की परम्परा रही है और है भी, अक्सर आप ने सुना होगा की कचरे में लड़की मिली स्टेशन पर माँ बाप लड़की छोड़ कर चले गए आदि आदि कभी सोचा है फेकी गई या त्यागे गए बच्चो में लड़किया ही क्यों होती है लडके क्यों नहीं होते | डाक्टर यदि बताना बंद भी कर दे तो लोग इतने क्रूर होते है या हो चुके है की वो जन्म के बाद बच्चियों को मार देंगे या इस तरह सड़क पर मरने के लिए छोड़ देंगे | इसलिए जरुरी है की लोगो की मानसिकता में पहले बदलाव आया जाये तभी कुछ हो सकता है |
इस तरफ सार्थक प्रयास की जरूरत है
ReplyDeleteveena ji ne sahi kaha sarthak prayas kee zaroorat hai.
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