कल नारी ब्लॉग पर रचना जी की प्रस्तुति पढ़ी और साथ ही पढ़ी अंशुमाला जी की टिपण्णी जो वर्तमान आंकड़ों और सच्चाई को कुछ यूँ झुठ्लारही थी-
मै नहीं मानती इन सारे आकड़ो को सब झूठ है ये सब हमारे देश की महान , महानतम सभ्यता, संस्कृति,परंपरा रीती रिवाज आदि आदि को बदनाम करने के लिए कुछ आधुनिक और पश्चिमी सभ्यता वाले लोग की चाल है हमारे देश में तो नारी को पूजा जाता है हम नारी के देवी मानते है उन्हें लक्ष्मी मानते है और लक्ष्मी को कभी अपने घर से बाहर नहीं जाने दिया जाता है उस पर दुसरे बुरी नजर डाल सकते है जो हमारे घर की इज्जत के लिए ठीक नहीं है , कभी कभी पूजा करते समय घर में लक्ष्मी न देने वाली देवी के कपड़ो में आग लगा जाये तो उसे आप दहेज़ हत्या का नाम न दे | और कन्या भ्रूण हत्या जैसी कोई चीज नहीं होती है ये सब प्राकृतिक होता है आज कल प्रकृति ही लड़कियों को कम जन्म दे रही है तो इसमे समाज का क्या दोष है या मान भी लिया की कुछ लड़किया मर रही है तो आप को बता दू की हम जिस देश में रहते है वहा काफी पुरानी परम्परा है लड़कियों द्वारा बलिदान देने की यदि लड़किया अपने परिवार के भले के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे रही है तो उसे सम्मान की नजर से देखना चाहिए न की पाप की नजर से | हम सभी भारतीयों को अपने देश के सम्मान के लिए आगे आना चाहिए और इस तरह के सभी पश्चिम द्वारा चलिए जा रहे दुष्प्रचारो का विरोध करना चाहिए जितना ऊँचा स्थान हमारे देश में नारी का है और विश्व में कही नहीं है ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला.....
अंशुमाला जी ,मैं भी भारत वर्ष की नागरिक हूँ और कोई ऐसी वैसी नहीं बल्कि अपने देश व् उसकी संस्कृति पर बहुत गर्व करती हूँ किन्तु सच्चाई स्वीकार करने की ताक़त मुझमे है और ये आपमें भी होनी चाहिए.कुछ सच्चाई जो मैंने देखी है आप के समक्ष रख रही हूँ आप भी ध्यान दीजिये-
१-यहाँ आज ही क्या बहुत पुराने समय से लड़कियों की स्थिति ख़राब रही है एक बार के समाचार पत्र के अनुसार तो भाई ने बहन से रेप किया और माँ-बाप ने लड़की को ही मौत के घाट उतार दिया और अपने कुपुत्र को आगे भी ऐसी घटना को अंजाम देने के लिए जिंदा छोड़ दिया .
२- मेरी सहेली जिसके दो-ढाई साल का एक लड़का भी था उसे उसकी ससुराल वालों ने पहले उसकी आँखें फोड़ी और फिर उसके घुटने तोड़े और फिर फंदे में लटकाकर मार दिया.क्या वह उनके घर की लक्ष्मी नहीं थी?
३-सात सात लड़के होने पर भी जिनके यहाँ लड़की होती है वे क्यों रोते हैं ?और यही नहीं अपने लिए ही नहीं अपने लड़कों के यहाँ भी तीन तीन बेटे होने पर जब एक बेटी हो जाये तो सर पकड़ लेते हैं क्यों?
ये भी भारत के ही नागरिक हैं और इसी संस्कृति में पले बढ़ें हैं और नारी को ऐसे स्थिति में पहुंचा रहे हैं. सच्चाई ये है कि आज भारत में ऐसा बहुत कुछ हो रहा है जो यहाँ नारियों की स्थिति दुखद बना रहा है.और रोज के समाचार पत्र कम से कम इसका तो सही ब्यौरा दे ही रहे हैं .
शालिनी कौशिक
शालिनी जी, आश्चर्य है कि आप अंशुमाला जी के सैटायर/ व्यंग्य को नहीं समझ पाईं। मेरे अनुसार उनकी टिप्पणी एक बेहतरीन टिप्पणी है। जो काम हमारा दुःखों का चिट्ठा खोलना नहीं कर सकता वह यह सैटायर कर सकता है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
घुघुतीजी से पूर्ण सहमति।
ReplyDeleteदूसरी पंक्ति में ही अंदाजा हो गया था कि अंशुमालाजी क्या कहना चाह रही हैं। अच्छी टिप्पणी।
अंशुमाला जी ऐसे लोगों का विरोध ही कर रही है जो धर्म और संस्कृति के नाम पर यथार्थ को झुठलाते है.लास्ट में शायद आपने 'ब्ला ब्ला' भी नहीं देखा.पर कोई बात नहीं,कई बार गलतफहमी हो जाती है.
ReplyDeleteप्रिय शालिनी
ReplyDeleteलेख घुघूती बासूती जी का था और लिंक भी हैं
अंशुमाला की टिपण्णी आप को शायद समझ नहीं आयी
टिपण्णी वही कह रही हैं जो आप महसूस कर रही हैं
बस कहने का लहजा ज़रा "हट के " हैं और इसीलिये अंशुमाला , अंशुमाला हैं आप की ये पोस्ट महज इस लिये नहीं हटा रही हूँ क्युकी इस मे छुपा दर्द और क्रोध हैं जो एक वास्तविकता हैं . अगर अंशु की टिपण्णी से इसको ना जोड़ा जाए तो ये के संगृहीत करने वाली पोस्ट हैं
सस्नेह
रचना
अंशुमाला जी !!
नमस्ते
ज़रा सीधा सीधा लिखे वरना लोगो को लगेगा आपने साइड बदल ली हैं !!. कडवी सच्चाई हैं आप की टिपण्णी और उस से भी कडवी सच्चाई हैं शालिनी की ये पोस्ट . आग्रह बस इतना हैं की टंच कसे तो ऐसा की तीर कमान से निकल कर दिशा भ्रमित ना हो जाए
सस्नेह
रचना
aap sabhi sahi kah rahe hain kintu main kya karoon jab bhi kuchh galat bat dekhti hoon to khud ko rok nahi pati hoon.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteशालिनी जी
ReplyDeleteमेरी चार साल की बेटी है जब वो अपने खिलौने इधर उधर फेकती है तो मै उससे कहती हूँ की लाओ अपने खिलौने हम दोनों मिल कर उसे तोड़ते है फिर वो एक बार में ही समझ जाती है और अपने खिलौने ठीक से रख देती है जबकि उसके पहले मै कितनी बार भी कहूँ की अपने चीजे संभालो वरना वो टूट जायेगा तो वो मेरी बात नहीं सुनती है | बड़े बच्चो से अलग नहीं होते है कई बार उनको सीधे सीधे कुछ कहिये तो वो सुनने के लिए तैयार ही नहीं होते है तो उन्हें कुछ समझाने के लिए कान को( उनके कान को ) जरा हाथ घुमा कर पकड़ना पड़ता है | वैसे ये पोस्ट रहने दीजिये ताकि किसी और को भी इस तरह की गलत फहमी हो गई है तो वो दूर हो जायेगी |
रचना जी !!
ReplyDeleteनमस्ते
क्या करू मुझे तो आदत है उलटा लिखने और बोलने की सीधी बात किसी को समझ कहा आती है | और सोच रही हूँ एक बार साइड बदल कर देखू क्या बुरा है कम से कम अपने भाई बंधुओ का दर्द ??? जान जाउंगी जो हम लोगो के कारण गर्त में जा रही भारतीय संस्कृति के कारण परेशान है :))))
गलत फहमियाँ मिटा लेना ही ब्लागिन्ग की सार्थकता है और दूसरों के मत से दुखी न होना बल्कि अपना पक्ष शालीनता से रखना सहिश्नुता है। भारतीय संस्क्र6ति यही तो कहती है। बहस या चर्चा मे सब का पक्ष रहना चाहिये।
ReplyDeleteटंच के बारे में रचना जी की गाइड लाइन अच्छी लगी , ये पोस्ट संग्रहणीय है :))
ReplyDeleteaap sabhi ko dhanyawad meri bhool ko sudharne ke liye vishesh roop se anshumala ji ko kyonki unhone bahut hi sakaratmak roop se meri is post ko liya.thanks to all.
ReplyDeletesarthak post .aabhar
ReplyDeletewaah re satire.. :) :) maza aa gaya..!
ReplyDelete