फिर तस्लीम ब्लॉग पर इस विषय का एक साइंस से जुडा विस्तार आलेख मिला , आलेख का लिंक हैं लिंक नंबर २ ।
आज कल कई अखबारों मे एसे सर्वे का जिक्र मिलता हैं जिनका आधार नहीं बताया जाता हां ये कहा जाता हैं की फलां फला से बात हुई और उन्होने बताया ।
आज कल तमाम जगह कॉस्मेटिक सर्जरी की चर्चा होती हैं जिसमे 'हाइम्नोप्लास्टी' भी एक हैं । तस्लीम ब्लॉग पर आये कमेन्ट के बाद अपनी एक मित्र से बात की जो ४५ वर्ष से ऊपर हैं और विवाहित हैं । उन्होने ने कहा की उन्होने खुद ये ऑपरेशन करवाया हैं अपने पति की सहमति से । उन्होने कहा वो खुद करवाना चाहती थी और पति की ख़ुशी नहीं सहमति से करवाया । उनके हिसाब से ये उन्होने अपने विवाहित जीवन मे पुनह आनंद प्राप्त करने के लिये किया ।
उनके ३ विवाह योग्य पुत्र हैं और आज कल वधु की तलाश चल रही हैं । मैने उनसे पूछा की क्या अगर उनको पता चले की उनकी भावी पुत्रवधू ये ऑपरेशन करा चुकी हैं तो भी वो उसको बहु बनाएगी ।
उनका उत्तर था की वो अपने बेटे की पसंद को सर्वोपरि रखेगी ।
मेरे बहुत जोर देने पर की वो अपनी बात बताये की अगर चुनने का अधिकार उनका हो तो क्या वो ऐसी लड़की से अपने बेटे की शादी करेगी जो 'हाइम्नोप्लास्टी' करवा चुकी हैं । इस पर वो बोली उनकी नज़र मे एक अविवाहिता स्त्री "slut"ही होगी तभी उसको 'हाइम्नोप्लास्टी' की जरुरत पडी ।
कल एक और खबर पर नज़र गयी जहां कहा गया हैं की विदेशो मे बसे nri कन्या भ्रूण ह्त्या नहीं करते हैं वो तकनीक का सहारा लेकर x, y chromosome को ही मिलवाते हैं टेस्ट ट्यूब मे और तभी इसको कोख मे स्थापित करते हैं । पता नहीं कितना सच हैं पर अगर हैं तो ??? । महिला खुद sperm sorting or in-vitro fertilisation kae सहारे से ये कर रही हैं ताकि उनको बेटी पैदा करने के दंश से ना गुज़रना पडे ।
आज विराम हैं बस यही पर आप कहे आगे
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इंसान पहले क्रूर था, फिर सभ्य हुआ... अब फिर से तरक्की कर रहा है... और भी ज्यादा क्रूर होता जा रहा है.
ReplyDeleteआप का कहना बिल्कुल ठीक है. दोहरे मानदण्ड हैं हर किसी के पास.
ReplyDeleteशाहनवाज जी से सहमत-अब देखिये कल ही खबरों में था कि पाकिस्तान में सोलह साल के एक लड़के को रेंजरों ने गोली मार दी, सबके सामने. वाकई बहुत तरक्की पर है.
असली बात तो समाज में लड़कियों और स्त्रियों का नीचा स्थान है, जिसकी वजह से दहेज और अन्य बुराईयाँ. भ्रूण हत्या तो नतीजा है. जब भ्रूण हत्या करना कठिन हो गया तो लोग अन्य तरीके खोजने की कोशिश करेंगे. जब तक मूल कारण में बदलाव नहीं आयेगा, स्थिति कैसे बदलेगी?
ReplyDeleteआप के चिट्ठे एक अनुरोध है, कृपया इसकी रंग संरचना को बदलिये, पृष्ठभूमि और लिखे शब्दों के रंग मिलते जुलते हैं जिससे पढ़ने में कठिनाई होती है.
reality unleashed !!
ReplyDeleteये तो पहली बार सुन रहा हूँ कि पत्नी अपनी इच्छा से पति पर दबाव डालकर इस तरह का ऑपरेशन करवा रही है.बल्की पति द्वारा भी इस तरह के दबाव डालना एक अपवाद ही है.जहाँ तक बात है वर्जिनिटी की तो आज लडकों की मानसिकता में पहले की तुलना में बहुत फर्क आया है.वो चाहते है कि उनका साथी शादी के बाद उनके लिये वफादार रहे बस.ऐसा ही लडकियाँ भी सोचती है.आज ज्यादातर युवा विवाह पूर्व सेक्स संबंधों से बचते है.कुछ लोग लालच में आकर ये प्रचार कर रहे है कि ज्यादा से ज्यादा लडकियाँ ये ऑपरेशन करवा रही है.यदि ये लोग अपने इरादों में सफल हो गये तो फिर से कुँवारेपन का महत्तव बढ जाएगा और महिलाएँ केवल पुरुषों की इच्छा के लिए खुद से खिलवाड करती रहेंगी.जागरूक महिलाओं को ऐसे मिथ्या प्रचार का विरोध करना चाहिये जैसे कुछ समय पहले फीमेल वियाग्रा का किया था.इसके प्रचार में भी ये ही कहा जा रहा था कि महिलाएँ अपनी सेक्स लाईफ से संतुष्ट नहीं है जबकि ये समस्या मनोवेज्ञानिक ज्यादा है.यदि शुरूआती विरोध नहीं किया जाता तो ये दवा कंपनी भी यही प्रचार कर रही होती कि महिलाओ के बीच ये दवा तेजी से लोकप्रिय हो रही है,महिलाएँ जागरुक हो रही है आदि आदि.देर सवेर महिलाएँ भी बहकावे में आ ही जाती और इससे स्त्री पुरुष मानसिकता पर क्या पडता बताने की जरूरत नहीं है.भले ही भारत में इस दवा के प्रतिबंधित होने का एक कारण इसका स्वास्थय की दृष्टी से असुरक्षित होना भी रहा लेकिन महिलाओं के विरोध से कम से कम ये संदेश तो गया कि महिलाएँ ऐसे झूठे प्रचार की हकीकत जानती है.
ReplyDeleteइन सब के पीछे पुरुषप्रधानतावाद और स्त्रियों पर उस का प्रभाव तो है ही। लेकिन इस के पीछे इस से भी बड़ी शक्ति है इन उत्पादों को बाजार में बेच कर बनाया जाने वाला मुनाफा। उस की तो पूंजीवाद में खुली छूट है। चाहे वह स्त्री-पुरुष के तन हों या फिर उन्हें खेलने के औजार और सेवाएँ। पूंजीवाद बाजार पर किसी तरह का नियंत्रण नहीं चाहता है। जैसे चाहो मुनाफा कूटो। उस की आजादी अक्षुण्ण रहनी चाहिए। बाजार के लिए सब कुछ है। उस के सामने मनुष्यता और उस की स्वतंत्रता कोई मायने नहीं रखती। बस वह ढोल पीटे जाता है कि वह जनतंत्र का जनक है। (इसलिए उसे मनुष्यता, पृथ्वी और समूची प्रकृति को नष्ट करने की आजादी मिल गई है)
ReplyDeleteराजन पत्नी ने कोई दबाव नहीं डाला , ना पति ने डाला , सहज सहमती वाली बात हैं
ReplyDeleteरचना जी,पोस्ट में आपके शब्दों को पढकर मुझे ऐसा लगा था.वैसे पत्नी ने खुद ऐसी पहल की भी तो मुझे इसमें कुछ गलत नहीं लगता.
ReplyDeleteहाईम्नोप्लास्टी तो यौन संसर्ग में एक पक्ष के लिए यातनादायी अनुभव है -यौनिक आनंद के लिए कोई क्यों इसका सहारा लेगा भला ..यैनिक आनन्द के लिए भगनासा (क्लायिटोरिस ) और जी स्पाट तो है न ...और कई कट्टर इस्लामी देशों में नारी खतना के रूप में तो भगनासा को ही रिमूव कर किया जाता है ..
ReplyDeleteहाईमन (यौनछद ) अनचाहे यौनिक आग्रहों से बचाव का एक नैसर्गिक 'तिनके के ओट ' सा सहारा है ..मगर इसके रहने न रहने से यौनिक आनंद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ...लोग दकियानूसी केवल इसलिए हैं कि यौनछद का क्षतिग्रस्त होना नारी के पूर्व संसर्गों की एक संभावना प्रगट करता है ..मगर आजकल तो यह खेल कूद ,घुड़सवारी ,सायकिल चलाने से भी क्षतिग्रस्त हो जाता है - ऐसे में बेनेफिट आफ डाउट की हकदार तो वे हैं ही ....हाँ गुफा नारी ये सब काम नहीं करती थी तो उस समय हाईमन का टूटना प्रायः पूर्व पुरुष संसर्ग की एक प्रमाणिकता थी-दुर्भाग्य से वही अतीत स्मृति आज भी बहुतों को भरमाये हुए है!
स्त्री जननांगों में कसावट के लिये कुछ लोग ऐसे ऑपरेशन का विकल्प सुझाते है जिससे माना जाता है कि यौन संबंध आनंददायी हो जाते है लेकिन मुझे लगता है जब तक इसके लिये महिला की सहमति न हो ऐसा करवाना महिला पर अत्याचार ही है.हालाँकी ऐसा करने वाले लोग अपवाद ही है.
ReplyDeleteसमय बदल रहा है...लोग बदल रहे हैं...
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