-उपासना बेहार
भारत में बहुत सारे लोग प्रति वर्ष रोजगार के लिए अपने घर से दूर शहर या दूसरे मुल्कों में जाते हैं। । इसकी वजह से उनके परिवार खासकर उनकी बीबीयों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पडता है। ये समस्याऐं ना सिर्फ पारिवारिक है बल्कि सामाजिक और आर्थिक भी है। आमतौर पर हमारे समाज में ये माना जाता है कि इन बीबीयों को सुख सुविधाओं की कोई कमी नही होती है और उनको जीवन में ज्यादा समस्याओं का सामना नही करना पडता है। इस तरह की महिलाओं को पति वियोग तो सहना ही पडता है साथ ही सामाजिक लांझन,बच्चों की देखभाल,परिवार की जिम्मेदारी के बोझ तले हमेशा दबे रहना पडता है। ज्यादातर महिलाओं की जिन्दगी सालों से इसी ढर्रे पर चली आ रही है।
प्रवा़स आज एक गम्भीर समस्या बन कर उभरी है। इसके पीछे अनेक कारण छिपे हुए है। बेरोजगारी की वजह से लोग जीविकोपार्जन के लिए अपने परिवार को छोडकर दूसरे देश प्रवास करने को मजबूर होते है। इससे उनके और उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में थोडा बहुत सुधार तो अवष्य होता है परन्तु उनकी बीबीयों को सामाजिक,मानसिक,सांस्कृतिक दिक्कतों का सामना करना पडता है।
मुस्लिम समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या मैं में खाड़ी देशों में रोजगार के तलाश मैं जाते हैं ! अधिकतर मामलों में यह देखा गया है कि निकाह के चंद दिनो बाद ही पति रोजगार के लिए परदेश चला जाता है। फिर साल या कभी-कभी उससे भी ज्यादा समय बाद 3-4 माह के लिए स्वदेश वापस आते है उस दरमियान वे अभिभावको,रिष्तेदारों इत्यादि के प्रति अपने फर्ज को निभाते है,मतलब की पति-पत्नि के पास होते हुए भी उसे ज्यादा समय नही दे पाता। कुछ समय उपरान्त वे पुनः नौकरी में वापस चले जाते हैं,और पीछे छोड जाते हैं अपलक इतंजार करती हुई पत्नि को।
वर्ष २००४ में हैदराबाद शहर में ऐसे कुछ परिवारों में किये गये एक अध्ययन से निकल कर आया कि ये महिलाऐं कई तरह की समस्याओं का सामना कर रही है। उन्हें ना केवल बीबी के रुप में बल्कि एक मॉ,एक बहु के रुप में भी बहुत सारी दिक्कतों से रुबरु होना पड रहा है।
अध्ययन में ये देखा गया कि, संयुक्त परिवार में रहने वाली महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता नही होती है क्योकि शौहर द्वारा सारा पैसा ससुराल के नाम पर भेजा जाता है और ये पैसा ज्यादातर ससुराल की जिम्मेदारियों को पूरा करने में खर्च हो जाता है,जिससे बीबी-बच्चों की आर्थिक स्थिति में कोई परिवर्तन नही होता उल्टे पति के ना रहने के कारण परेशानीयॉ और बढ जाती हैं। ऐसी महिलाओं को हमेशा आर्थिक तंगी बनी रहती है। जिससे वे अपनी इच्छाओं को दबाती जाती है। पति के साथ ना होने पर समाज -रिष्तेदार और कभी-कभी तो ससुराल वाले उसके चरित्र पर उगंलियां उठाते है। ससुराल में भी वे अपने दिल की बात व शारिरिक/मानसिक दिक्कतों को किसी से कह नही पाती है और उसे अपने अंदर ही दबा देती है। ये महिलाऐं दिनभर घर के काम,बच्चों की देखभाल एवं परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने में ही अपना पूरा वक्त गुजार देती है। किसी चीज की आवष्यकता होती है तो सास/ननद आदि जा कर ला देतीं हैं। ये जब तक अतिआवष्यक ना हो जाये घर से बाहर नही निकलती है। घर की चारदिवारी में अपना ज्यादा समय गुजार देती है। बाहर की दुनिया से इनका ज्यादा वास्ता नही रहता है। ये सारी परेशानीयॉ धीरे-धीरे अनेक बीमारियो के रुप में बाहर आने लगती है और ये अवसाद का शिकार हो जाती है।
वही एकल परिवार में रहने वाली महिलाऐं आर्थिक रुप से स्वतंत्र होती है। ऐसे परिवार में आर्थिक सुद्वढता आती तो है परन्तु वे भी पूरी तरह अकेली ही होती है। परिवार के अंदर-बाहर की पूरी जिम्मेदारी उन्ही के सर आ जाती पडती है। बच्चे भी पिता के ना होने पर मॉ की बात सुनते नही है। उनकी बातों की अवहेलना करते है, और कई बार तो गलत राह पर चल पडते है। जिसका दोश भी परिवार/समाज द्वारा उसके ऊपर लगाया जाता हैं।
कई परिवारों में ये देखने में आया है कि इस्लामिक देशों में कार्यरत् शौहर जब वापस घर आते है तो वे ओर संर्किण मानसिकता के हो जाते है, तथा अपनी बीबी पर तरह-तरह की पाबंदियॉ लगाते है। कई बार ये भी देखने में आता है कि आस-पास के लोगों द्वारा झुठी शिकायत करने पर तथा बहकावे मे आ कर बीबीयों के साथ मार-पीट भी करते है।
ज्यादातर महिलाऐं अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट नही है। उनका ये मानना है कि परिवार/ससुराल की आर्थिक स्थिति तो बदल रही है परन्तु उनकी मानसिक परेशानियॉ बढ गई है। मानसिक शांति खत्म हो गयी है। वैवाहिक जीवन पर बहुत असर पडा है। शारिरिक संतुष्टी नही होने पर महिलाओं को कई तरह की मानसिक/शारिरिक बीमारीयॉ हो रही है। इनका मानना है कि हमसे तो अच्छी जिन्दगी विधवा महिलाओं की है क्योंकि उन्हें कम से कम पता होता है कि उनके शौहर नही रहें जिससे वे शारिरिक सुख की कामना ही नही करती है या चाहे तो दूसरा निकाह कर सकती है परन्तु हमारे पास तो केवल इंतजार ही एक रास्ता होता है। इन महिलाओं का कहना है कि अब हमारी जिन्दगी तो खत्म हो चूकी है बस बच्चे खुश रहें,अच्छे स्कूल में पढे और अच्छी जिन्दगी जिये।
ये महिलाएं अपनी बच्चीयों की शादी विदेश में कार्यरत् लडके से कराने के बिलकुल पक्ष में नही है। लडके द्वारा विवाह के बाद अपनी बीबी को भी अपने साथ विदेश ले जाने की शर्त में वे अपनी बेटी का विवाह उनसे करने को तैयार होगी । ये महिलाएं नही चाहती कि जिस तरह की मुष्कलातों का सामना वे कर रही है उनकी बेटी भी उन्ही दिक्कतों से रुबरु हो।
इन सभी महिलाओं का कहना है कि अगर भारत में नौकरी मिलेगी तो उनके शौहर वापस आ जायेगें पर भारत देश में अकुष्ल लोगों को ठीक - ठाक नौकरी मिलना बेहद मुष्कील है। सरकार को हमारी समस्या पर ध्यान देना चाहिए। इतने सालों से ये लोग भारत को विदेशी मुद्रा कमा कर दे रहें हैं। अगर सरकार कुछ नही कर सकती तो कम से कम बैक से ऋण लेने में ही कुछ सहुलियत या छुट दें। जिससे ये नौकरी ना सही कोई व्यवसाय शुरु कर लें।
सरकार के साथ-साथ ससुराल/समाज को इस तरह की महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने की आवष्यकता है। ससुराल पक्ष को चाहिए कि इनकी इच्छाओं का सम्मान करें आखिर इनके शौहर अपने परिवार की ही जिम्मेदारियों को ही तो पूरा करने अपनी बीबी को छोड सात समुन्दर पार गये है।
(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता है और भोपाल में रह कर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के साथ काम करती हैं )
इस दर्द को सहा तो नहीं पर बहुत करीब से देखा जरुर है. पहाड़ी हूँ और फ़ौज में या मैदानी इलाके में गए पति की बाट जोहती बहुत सी माँ बहनों के दर्द को महसूस किया है. शुरू में लगता था की ये दर्द सिर्फ पहाड़ी औरतों के भाग्य में बंधा है पर अब लगता है की ये सार्वभौमिक है.
ReplyDeleteआपने जो भी हालत बयां किये वे सच हैं ....... सार्थक सटीक आलेख
ReplyDeleteमै मुंबई से हूँ यहाँ के लिए तो ये काफी आम बात है | एक बड़ी संख्या यहाँ पर ऐसे लोगो की है जो अपनी पत्नियों को गांवो में छोड़ कर यहाँ आ कर काम करते है | कई ऐसे लोगो को भी देखा है जो अपने परिवार को यहाँ ला सकते है या लाने का प्रयास कर सकते है किन्तु वो उन्हें यहाँ नहीं लाते है कई बार संयुक्त परिवार में लोग पत्नियों को पति के साथ जाने नहीं देते उनके लिए बहु बेटे ले लिए नहीं घर के लिए आती है और उसका काम सास ससुर की देखभाल करना है | जहा तक बात शारीरिक जरूरतों की है तो मैंने ये भी देखा है की जिनके पति बाहर काम करते है उन महिलाओ पर परिवार द्वारा और भी सख्ती की जाती है उनके बाहर आने जाने पर रोक टोक की जाती है उन पर नजर रखा जाता है यहाँ तक की उन्हें उनके मायके जाने पर भी रोक टोक किया जाता है कारण वही है चरित्र के बिगड़ जाने का डर जबकि मुंबई के कई "रेड लाइट एरिया " ज्यादातर ऐसे ही लोगो के कारण गुलजार होता है जो पत्नियों को गांव छोड़ कर आते है और यहाँ से "मुम्बईया बीमारी"( एडस ) ले जा पत्नी को देते है |
ReplyDeleteवाकई एक बड़े नारी वर्ग की पीड़ा को सही रूप में व्यक्त किया है आपने
ReplyDeletesahi aur satik likha hai aapne aapki kahi ek ek baat sahi hai
ReplyDeletebadhai
rachana
yathaarthparak lekhan ke liye badhaai !
ReplyDeleteDavaab jab aur badhegaa to raastaa bhi niklegaa .varjnaaon ke paiband bhi tootengen hi .
veerubhai .
सहमत हूँ...
ReplyDeletebhut prabhaavpur lekh...
ReplyDeleteबहुत ही सटीक लिखा है आपने, बधाई!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com