नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

April 06, 2011

क्या मायने है "नारी" ब्लॉग के

नारी ब्लॉग सक्रियता अप्रैल २००८ -से अब तक
पढ़ा गया १०७५६४ फोलोवर ४२५ सदस्य ६०





नारी ब्लॉग को सफ़लत पूर्वक तीन वर्ष पूरे करने की इससे जुड़े सभी सदस्यों और पाठको को ढेरो बधाई |

कई बार "नारी" ब्लॉग के लेखो को कुछ लोगो द्वारा भारतीय संस्कृति और परम्पराओ के खिलाफ माना जाता है,

उनका ये सोचना सही है "नारी" ब्लॉग हमेशा ऐसी संस्कृतियों चाहे वो दुनिया में कही की भी हो का विरोध करेगी जो नारी को दोयम दर्जा दे कर कमतर मानती है उसे बराबरी का दर्जा नहीं देती और उन्हें पुरुषो की तरह सामान्य इन्सान नहीं मानती |
वो हर नारी को उन परम्परा के खिलाफ जाने के लिए उकसाती रहेगी जो उन्हें कष्ट देते है उन्हें बिना वजह के बंधन में डालते है | क्योकि जब तक कुछ नारीया भी इस संस्कृति और परम्परा के नाम पर सारी मर्यादाओ नैतिकता का बोझ अकेले ढोती रहेगी सारे जुल्म अत्याचार अकेले सहती रहेगी , सभी नारियो से इसी तरह के व्यवहार की उम्मीद की जाएगी और उन्हें दबाने का प्रयास किया जायेगा |
"नारी" ब्लॉग समाज के हर तबके की नारी की आवाज उठाता है और उठाता रहेगा चाहे वो दलित गरीब महिला हो घरेलु या काम काजी महिला हो या कोई अमीर और प्रतिष्ठित महिला हो या किसी भी धर्म या जाती की हो | हमें मालूम है की तथा कथित भारतीय संस्कृति के रक्षक आगे भी इस पर प्रकाशित लेखो का विरोध करेंगे उन्हें अपने हिसाब से समझेंगे किन्तु इससे " नारी " ब्लॉग पर कोई असर नहीं होगा |

एक समय था जब सती प्रथा , विधवा विवाह , और बाल विवाह का विरोध करने वालो को भी भारतीय संस्कृति के खिलाफ माना गया था उन्हें समाज तोड़ने वाला पश्चिमी संस्कृति में रंगा हुआ कहा गया था | उस दौर में भी इन विरोधो को पश्चिमी संस्कृति का हमला और भारतीय संस्कृति का अपमान बताया गया | किन्तु समय गवाह है कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का नाम लेकर नारी पर जुल्म करने वाले उसके साथ पशु जैसा व्यवहार करने वाले आज इतिहास में कही भी नहीं है और पूरा समाज भारतीय संस्कृति में व्याप्त इन कुरीतियों की खिलाफत करने वालो के साथ खड़ा है |

वैसे ही हम जानते है की आज जो बाते कुछ लोगो को भारतीय समाज के खिलाफ लग रही है या जो लोग इनके समर्थन में जाने अनजाने खड़े होते है कल को वो ही अपने आज के विचारो पर हँसेंगे जैसे हम आज बाल विवाह का समर्थन करने वालो पर हसंते है उसे बेफकुफी और गलत मानते है किन्तु आज भी भारत में बड़ी संख्या में ये सब हो रहा है और लोग उसका समर्थन भी कर रहे है |

कल को जब उनकी बेटिया बड़ी होंगी तो वो आज के संघर्स से पाई गई नारी स्वतंत्रता और सम्मान को दिलाने वाले लोगो को धन्यवाद (क्योकि वो कई बार चाह कर भी समाज से अकेले लड़ कर वो सब अपनी बेटी के लिए हासिल नहीं कर पाते) देंगे की उनकी बेटी आज यहाँ की कई सामाजिक कुरीतियों के चपेट में आने से बच गई और आज वो अपनी मर्जी की एक स्वतंत्र और खुशहाल जीवन जी रही है समाज में उसका भी अस्तित्व है उसका भी नाम है और वो बड़े फक्र से अपनी बेटी से खुद को जोड़ेंगे |

समय बदल गया है और लोगो खासकर बहुत सारे पुरुषो का व्यवहार और उनकी सोच भी महिलाओ के प्रति बदली है और वो अपनी घर की महिलाओ को पहले से कही ज्यादा सम्मान देते है और उन्हें आगे बढ़ाने का काम करते है किन्तु आज भी हम जाने अनजाने में अपने घर की या आस पास की महिलाओ के साथ कुछ ऐसा व्यवहार करते है या उसके प्रति सोच रखते है जो सही नहीं है और हर नारी के लिए एक समस्या बन गई है किन्तु वह कह नहीं पाती, कभी प्यार के कारण कभी डर के कारण कभी किसी अन्य कारणों से | " नारी" ब्लॉग लोगो को उस गलत सोच और व्यवहार की तरफ भी ध्यान दिलाता है, ये बाते यहाँ पर आप पढ़ और समझ सकते है और उनके प्रति किये जा रहे अपने व्यवहार और सोच को चैक कर सकते है और महिलाओ के दिल कि बात और सोच को समझ सकते है | ये न सोचे की आप के घर में रह रही या आप के करीबी महिला को कोई समस्या ही नहीं है या उसकी सोच इस ब्लॉग की नारियो से अलग है या उसकी परेशानिया अलग है | इस ब्लॉग पर लिख रही नारिया समाज के हर वर्ग से आती है हर तरह की नारियो का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए इनकी लेख भी आप के घर के और आस पास कि नारियो की ही सोच है बस आप उसे किसी और द्वारा लिखे जाने से जान रहे है |


इन सब के अलावा ये ब्लॉग वर्त्तमान में आ रही नहीं समस्याओ जैसे कन्या भ्रूण हत्या और महिलाओ के खिलाफ बढ़ते अपराध के खिलाफ भी लोगो को जागृत करती रही है और आगे भी करती रहेगी और भविष्य में आने वाली समस्याओ के खिलाफ भी सभी में अलख जगाती रहेगी |

सभी पाठको से आशा है की वो आगे भी अपने विचारो से हमें अवगत कराते रहेंगे और खासकर नारी ब्लॉग के आलोचकों से आग्रह है की वो इस ब्लॉग के लेखो के प्रति अपने विचारो और विरोध से हमें अवश्य अवगत कराये तभी तो हमें पता चलेगा की समाज की नारी के प्रति क्या सोच है आखिर लोग नारी को किस रूप में देखते है आखिर नारी को किन समस्याओ से दोचार होना पड़ता है | तभी हमें पता चल सकेगा की हमें किस सोच से और किस किस विचारो से संघर्स करना है |

26 comments:

  1. नारी ब्लाग के तीन साल होने पर इसके सभी सदस्यों को बहुत-बहुत बधाई!

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  2. नारी ब्लॉग की इस उपलब्धि पर बेहद प्रसन्न हूँ । इसके लिए बधाई एवं शुभकामनाएं । हर नारी जागरूक हो , आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के साथ जिए , यही कामना है ।

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  3. @"खासकर नारी ब्लॉग के आलोचकों से आग्रह है की वो इस ब्लॉग के लेखो के प्रति अपने विचारो और विरोध से हमें अवश्य अवगत कराये तभी तो हमें पता चलेगा की समाज की नारी के प्रति क्या सोच है आखिर लोग नारी को किस रूप में देखते है आखिर नारी को किन समस्याओ से दोचार होना पड़ता है | तभी हमें पता चल सकेगा की हमें किस सोच से और किस किस विचारो से संघर्स करना है |"

    सबसे पहले तो 'भिन्न दृष्टिकोण' को 'समस्या' ही मानने की सोच से संघर्ष करना पडेगा। क्योकि जब विभिन्न विचारों, दृष्टिकोणो पर स्वस्थ चिन्तन हो्ता है तभी मानव उपयोगी निष्कर्ष निकलते है। मंथन के मार्ग को बंद नहीं किया जाता चाहिए।

    ताज़ी हवा तो हर दिशा से आती है, फिर हमें दक्षिण की हवा ही नहीं चाहिए, मंतव्य अकसर सफल हो पाता है।

    सोच में स्थायित्व तो वहां ही शुरू हो जाता है जब हम कहते है……"इससे 'नारी'ब्लॉग पर कोई असर नहीं होगा"
    अर्थार्त प्रभाव की सम्भावनाएं समाप्त!!!! फिर क्यों कोई भिन्न किन्तु सार्थक विचार रखे???

    (यह मेरे विचार है……नारी ब्लॉग को पूरा अधिकार है,इन विचारो को प्रसरित न होने दे……तो उस अधिकार से अवश्य यह टिप्पणी हटा दें।)

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  4. सुधार………

    'मंथन के मार्ग को बंद नहीं किया जाता चाहिए।'

    >>मंथन के मार्ग को बंद नहीं किया जाना चाहिए।

    'ताज़ी हवा तो हर दिशा से आती है, फिर हमें दक्षिण की हवा ही नहीं चाहिए, मंतव्य अकसर सफल हो पाता है।'

    >>ताज़ी हवा तो हर दिशा से आती है, फिर हमें दक्षिण की हवा ही नहीं चाहिए, मंतव्य अकसर सफल नहिं हो पाता है।

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  5. सोच में स्थायित्व तो वहां ही शुरू हो जाता है जब हम कहते है……"इससे 'नारी'ब्लॉग पर कोई असर नहीं होगा"


    " सोच में स्थायित्व "यही कुंजी हैं सफलता कि . जिसकी सोच में स्थायित्व नहीं हैं वो fickle minded होता हैं . उसकी अपनी कोई सोच नहीं होती . वो किताबी ज्ञान और रिफ्रएंसिंग पर जीता हैं . उसकी सोच लकीर का फकीर जैसी होती हैं या "आया राम गया राम " कह ले .

    हम नारी ब्लॉग पर एक "सोच " को आगे ले जा रहे हैं
    सोच जो नारी को "नारी सश्क्तिकर्ण का रास्ता दिखाती हैं ,
    सोच जो नारी को वस्तु नहीं इंसान समझती हैं .
    सोच जो नारी को समझा रही हैं कि समानता ही हर समस्या कि कुंजी हैं
    हम यहाँ अपनी सोच बदलने नहीं आये हैं हम यहाँ अपनी सोच को विस्तार देने आये हैं उन लोगो से जुड़ने आये है जो हमारी सोच को सकारात्मक मानते हैं और उसको आगे ले जाने के इच्छुक हैं .
    नारी ब्लॉग कि आलोचना जिसको करनी हैं तोवो अपने ब्लॉग पर करे , हम पढते रहेगे पर अपने ब्लॉग पर हम वो कमेन्ट नहीं छापेगे क्युकी ये ब्लॉग बना ही " सोच में स्थायित्व" के साथ हैं .
    नारी ब्लॉग पर नारी कि सोच हैं , पर नारी "सोच भी सकती हैं " वो भी " स्थायित्व" के साथ ये अभी स्वीकार करने मे वक्त लगेगा .
    लीजिये जितना वक्त चाहे लीजिये , सब खिड़कियाँ अब खोल दी हैं लेकिन हवा अन्दर वही आयेगी जो बाद्लाव लायेगी और वो बदलाव जो हमारी सोच का परिचायक हैं .

    आप को नारी ब्लॉग के जन्मदिन कि बधाई . आप पढते हैं यही बहुत हैं हमारे लिये . हां अगर आप कि कोई भी परचित महिला हो तो उनतक इस ब्लॉग को पहुचा दे इतना तो कर सकियेगा हमारे नारी ब्लॉग के लिये .
    सादर
    रचना

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  6. नारी ब्लाग के तीन साल होने पर इसके सभी सदस्यों को बहुत-बहुत बधाई!

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  7. @" सोच में स्थायित्व "यही कुंजी हैं सफलता कि . जिसकी सोच में स्थायित्व नहीं हैं वो fickle minded होता हैं . उसकी अपनी कोई सोच नहीं होती . वो किताबी ज्ञान और रिफ्रएंसिंग पर जीता हैं . उसकी सोच लकीर का फकीर जैसी होती हैं या "आया राम गया राम " कह ले .

    रचना जी,

    >>> 'सोच में स्थायित्व' और 'लकीर का फकीर' में अन्तर कहाँ है, जो आपने दोनो को विरूदार्थी माना है।

    @वो किताबी ज्ञान और रिफ्रएंसिंग पर जीता हैं????

    >>>फिर कानूनी किताब संविधान और ताज़ा बयार का क्या करेंगी?

    क्षमा करना, पर विरोधाभास नजर आता है।

    नारी सम्मान सुदृढ आधार पर अपनी सफलता अर्जित करे इसी शुभकामनाओं के साथ्।

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  8. @ सबसे पहले तो 'भिन्न दृष्टिकोण' को 'समस्या' ही मानने की सोच से संघर्ष करना पडेगा। क्योकि जब विभिन्न विचारों, दृष्टिकोणो पर स्वस्थ चिन्तन हो्ता है तभी मानव उपयोगी निष्कर्ष निकलते है। मंथन के मार्ग को बंद नहीं किया जाता चाहिए।

    सुज्ञ जी इसे ऐसे समझते है की जैसे यदि कोई ये माने की महिलाओ के घर के अन्दर रहना चाहिए और केवल बच्चो की देखभाल करनी चाहिए या महिलाओ को केवल भारतीय कपडे ही पहनने चाहिए तो ये किसी के लिए उसके अपने विचार हो सकते है किन्तु महिलाओ की नजर से देखे तो ये उनके लिए एक समस्या है की लोग ऐसा क्यों सोचते है और ये विचार यदि आप के घर का कोई व्यक्ति रखे तो किसी महिला के लिए ये समस्या और बड़ी हो जाती है | विचार मंथन की कोई रोक नहीं है यदि आप अपने विचार नहीं रखेंगे तो हमें पता कैसे चलेगा की हमें आप को समझाना क्या है या दुसरे अपने आस पास के लोगो को समझाना क्या है |

    हमें लगता है की तजि हवा किसी भी दिशा से आये हमें उसे ग्रहण करना चाहिए क्योकि वो तजि हवा है उसे ग्रहण करने से हमें कोई भी नुकसान नहीं होगा | आजादी की लड़ाई पर भी पश्चिम में हुए आजादी की लड़ाईयो का असर था गणतंत्र तो भारतीय है किन्तु लोकतंत्र तो पश्चिमी सोच है हमने उसे अपनाया क्योकि वो हमारे लिए अच्छा है | इसके लिए हम क्या करे यदि कोई अच्छी सोच पश्चिम में पहले आ जाती है और हम तक बाद में आती है बस इसलिए उसे न अपनाये क्योकि वो पश्चिम की है तो गलत होगा |



    "इससे 'नारी'ब्लॉग पर कोई असर नहीं होगा"

    इसका ये अर्थ है की भले कोई ये कहता रहे की लड़कियों को ज्यादा पढाना बेकार है उन्हें काम नहीं करना चाहिए उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होना चाहिए तो हम पर इन बातो का असर नहीं होगा हम तब भी लड़कियों के पढ़ाने उनके आत्मनिर्भर बनाने उन्हें आत्मसम्मान से जीने की बात करते रहेंगे |

    सुज्ञ जी जानती हूँ की अब आप के मन में और सवाल होंगे किन्तु इस टिप्पणी के साथ माफ़ी भी चाहूंगी की मै आज इस बातचीत को और आगे नहीं बढ़ा पाऊँगी | वजह वही है जो आप हमेसा महिलाओ के लिए पहली जिम्मेदारी मानते है घरेलु जिम्मेदारिया | इस बातचीत को फिर कभी आगे बढ़ाएंगे | धन्यवाद |

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  9. हम तो नारी को पहले एक मानव के रूप में ही देखते हैं। उसके बाद नारी के रूप में क्‍योंकि वह नारी है।

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  10. सोच में स्थायित्व' और 'लकीर का फकीर' में अन्तर कहाँ है
    जब किसी को ये पता होता हैं कि उसको क्या चाहिये तो उसकी सोच मे स्थायित्व होता हैं .
    जब कोई कुछ केवल इस लिये चाहता हैं क्युकी वो सब चाहते हैं तो वो लकीर का फ़कीर होता है
    फिर कानूनी किताब संविधान और ताज़ा बयार का क्या करेंगी?
    कानून और संविधान जैसी किताबे कितने इस्तमाल करते हैं रेफ्रेंसिंग के लिये ?? नारी कि बात आते ही वो कानून बताये जाते हैं जो सदियों पहले बनाए गए थे . और सबसे बढ़िया बात ये हैं कि उन बताओ को भी मोड़ तोड़ कर नारी को समझया जाता हैं कि देखो तब दुनिया कितनी सुखी थी पर कभी किसी ने नारी से पूछा उस सुखी दुनिया मे नारी कितनी सुखी थी ?????


    क्षमा करना, पर विरोधाभास नजर आता है।

    क्षमा इत्यादि कि बात ब्लॉग पर नहीं होती हैं न होनी चाहिये . मेरी बातो मे विरोधाभास नज़र आया , खुश हूँ . लेकिन काश हम लोगो को भी आप लोगो कि बातो मे कोई विरोधभास कभी नज़र आता . पर नहीं आता सुज्ञ जी . सब साफ़ साफ़ नज़र आता हैं .
    बाकी अंशुमाला कि पोस्ट हैं आगे के जवाब वो देगी

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  11. आज के करीब १५ साल पहले मै एक सीमेंट फेक्ट्री के टाउनशिप के क्वार्टर में में रहती थी जहाँ पर घरेलू नौकर नहीं मिलते थे सारा घर का हाथ से ही करना होता था सुबह १० बजे तकगृहस्थी के अनगिनत काम निबटाकर हम कुछ महिलाये महिला मंडल के सेवा समिति के कामो से गाँवो में काम करते थे |उस समय मेरी बुआजी मेरे पास रहने आई थी जिनकी उम्र उस समय करीब ७० साल की थी |मुझे ये सब करते देख उन्होंने कहा था "बेटा आज का जमाना कितना अच्छा है तुम लोग अपनी मर्जी से काम कर लेते हो हमारी जिदगी तो बर्तन मांजने और घर में ही निकल गई |"
    तब मुझे लगा था सचमुच हमसे पहले की पीढ़ी ने (महिलाओ ने) कैसा जीवन जिया ?
    रचनाजी
    आपकी इस बात ने "और सबसे बढ़िया बात ये हैं कि उन बताओ को भी मोड़ तोड़ कर नारी को समझया जाता हैं कि देखो तब दुनिया कितनी सुखी थी पर कभी किसी ने नारी से पूछा उस सुखी दुनिया मे नारी कितनी सुखी थी "मुझे इतना पुराना वाकया याद दिला दिया |
    अन्शुमालाजी
    एक चेतनामय आलेख के लिए बधाई |

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  12. नारी ब्लॉग के उपलब्धिपूर्ण तीन साल पूरे होने पर बहुत बहुत बधाई...

    कभी कभी लगता है कि हम कितना विकास भी कर लें लेकिन पुरुष प्रधान समाज के एक दकियानूसी वर्ग को महिला की तरक्की बर्दाश्त नहीं होती...सबसे बड़ा उदाहरण महिला बिल है...पुरुष राजनेता किसी भी पार्टी में हो अंदर से नहीं चाहते कि महिलाओं की संसद या विधानसभाओं में भागीदारी बढ़े...और तो और आधुनिकता और खुली सोच वाला पत्रकारिता जगत भी इससे अछूता नहीं है...किस तरह ईर्ष्या और द्वेष के चलते किसी सम्मानित महिला का मान-मर्दन करने की कोशिश की जाती है, आज अपने ब्लॉग पर मैंने इसी पर पोस्ट लगाई है-

    कोई एक दिन में नहीं बन जाता गीताश्री


    जय हिंद...

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  13. बहुत अच्छा लिखा है अंशुमाला जी.यदि खुलकर इस पर अपने विचार रखूँ तो टिप्पणी आपकी पोस्ट से भी बडी हो जाएगी.महिलाओं के विषय में जब हम बात करते है धर्म या परंपरा की तो हमें ये देखना चाहिये कि वह किस रूप में हमारे बीच मौजूद है और व्यवहार में हमने क्या अपनाया हैं. महान पत्रकार स्व. प्रभाष जोशी जी सती प्रथा को पत्नी का पति पर प्रेम और समर्पण की परकाष्ठा मानते है उन्हें दुख है कि समर्पण की ये भावना अब न रही (क्या फर्क पडता है सती प्रथा खत्म हो गई तो सोच तो अभी भी वही है).इसी तरह आसारम बापू 'ढोल,गंवार..' वाली पंक्ति पर सफाई देते हुए कहते है कि यहाँ 'ताडना' शब्द का अर्थ मारना नहीं बस डांटना है क्योंकि महिलाओं के स्वभाव में बहुत चंचलता होती है(हम ढोल और पशुओं को भी मारते नहीं बस डाँटते ही तो है).अब आप खुद सोचिये ऐसी बातों से पुरूष क्या सीख ले रहे होंगे और महिलाओं पर इसका क्या असर होगा.जब इन पुरूषों की सोच ऐसी है तो आम पुरुषों का तो क्या कहें.अब मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पडता कि धर्मग्रंथों में ये बातें कहाँ से आई कौन लाया क्या सोचकर लिखी गई बस ये पता है कि ये महिलाओं के विरोध में जा रही है और हमें इनका विरोध करना चाहिये.अंशुमाला जी से सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि आप ये न सोचें कि लोग आपकी बातों को समझ नहीं रहे है लेकिन खुद की गलती मानना ज्यादातर पुरुषों के लिये इतना आसान नहीं होता .आप अच्छा लिखती हैं.

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  14. नारी ब्लॉग के सफलतापूर्वक तीन वर्ष पूरे करने पर गर्व भी है...ख़ुशी भी है...
    बहुत सारे विचारोत्तोजक आलेख पढ़ने को मिले हैं यहाँ...ढेरो शुभकामनाएं.

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  15. तमाम वैचारिक मतभेदों और अवरोधों के बावजूद नारी ब्लॉग अंगद के पांव - सा अपने लक्ष्य के प्रति दृढ है ....बहुत बधाई और शुभकामनायें आगे के अनगिनत सालों के लिए ...
    समाज में बदलाव एक -दो दिन में नहीं आता ...मगर किसी को तो पहला कदम उठाना ही पड़ता है ...और यह काम नारी ने किया है ...इसका एक उदाहरण इस रिपोर्ट में यहाँ देखिये ...

    http://www.dailynewsnetwork.in/epaper/khushboo/?pdf=kh0502-3.pdf

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  16. यह धरती इसी कारण एक बड़ा पागलखाना बनती जा रही है क्योकिं पुरुष तत्व बहुत अधिक हो गया है। हमारी शुभकामनायें कि नारी अपनी ताकत पहचाने और उसे हासिल करे,यह शक्ति संतुलन इस धरती को पुरुष की आत्मघाती प्रवृत्ति से बचाने के लिये भी आवश्यक है।

    एक बार फिर ह्र्दय की गहराईयों से शुभकामनायें और बधाई!

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  17. .
    .
    .
    अंशुमाला जी,

    'नारी' के तीन साल पूरे होने पर सभी योगदानकर्ताओं को बधाई...

    आप सही लिखती हैं... नारीवाद का यह संघर्ष किसी पुरूष या महिला विशेष से नहीं है अपितु उस संकीर्ण सोच से है जो नारी को व नारी की सोच को समान दर्जे का नहीं अपितु दोयम दर्जे का मानती है...

    तथाकथित प्राचीन व गौरवमयी संस्कृति के नाम पर आज की नारी को खाने-पीने-पहनने-ओढ़ने-बात करने-काम करने आदि आदि की तमीज/तहजीब सिखलाने वाले यह भूल जाते हैं कि संस्कृति कोई रूकी हुई चीज नहीं है जो ३-४ हजार साल पहले के काल में फिक्स हो गई है... यह परिवर्तनशील व चलायमान है... आज की नारी आज के पुरूष के 'मानसिक व बौद्धिक समकक्ष' बन कर रहना चाहती है... वह यह नहीं चाहती कि हर उपलब्ध मौके पर उसे सिखलाया-बताया जाये... अपने फैसले खुद लेने की उसकी क्षमता पर सब का विश्वास हो... और यह सब समाज से उसे मिलना ही चाहिये... और यही हमारी आज की संस्कृति भी कहलायेगा...


    आभार!


    ...

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  18. अंशुमाला जी, इसी संदर्भ में मेरा लेख http://ddmishra.blogspot.com/2011/03/blog-post_12.html अवश्य पढें ।

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  19. नारी ब्लॉग वास्तव में विचारोत्तेजक संपदा से लबालब भानमती का पिटारा है.विविध विचारों का अक्षय पात्र.हमारा भारतीय समाज सदियों से मेल शाविनिज्म का गवाह रहा है. पुरुष वर्चस्व वाले समाज में नारी समाज की निर्मात्री नारी का नारी से, पुरुष से ,परम्पराओ से विद्वेष, विडम्बना ,वैमनस्य , विरोध और आपसी सामंजस्य की गूढ़ प्रस्तुतियां भी नारी ब्लॉग में की गई है.वैसे इस ब्लॉग को अपडेट करने आज की युवतियों , टीन एजर्स आदि की भी सोच को समाहित किया जाना चाहिए और अवेयर भी. बहरहाल नारी ब्लॉग सिर्फ नारी ही नहीं पुरुषो के लिए विशेष पठनीय है . आखिर आप नारियों को हम पुरुषों का BETTER HALF जो कहा गया है! तीन वर्ष पूरे होने पर शुभकामनायें . मनसा ,वाचा कर्मणा हम आप के साथ हैं.

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  20. नारी ब्लॉग के तीन वर्ष पूर्ण करने पर हार्दिक बधाई |
    आशा

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  21. नारी ब्लॉग के तीन वर्ष होने पर बहुत बहुत बधाई ..

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  22. इस ब्लॉग के तीन साल पूरे होने पर बधाई।
    कई बार इस ब्लॉग को पढ़ते हैं और कभी सहमत भी होते हैं और कभी कभी असहमत भी होते हैं। कई बार कमेंट भी करना चाहा लेकिन देखा है कि ये ब्लॉग अचानक ही ’इन्वाईटिड फ़ॉर गेस्ट्स’ हो जाता है। दूसरी बात कमेट-बॉक्स के ऊपर लिखा ये वाक्य "नारी ब्लॉग पर वही कमेन्ट दिखाये जाते हैं जो नारी कि प्रगति को सही मानते हैं , जो नारी को पारंपरिक सोच से नहीं जोडते हैं । इस ब्लॉग का मकसद उन नारियों कि बात को आगे ले जाना हैं जो नारी को वस्तु ना मानकर इंसान मानती हैं । आप का कमेन्ट अगर हमारी बात के विरोध मे हैं आप उसको अपने ब्लॉग पर पोस्ट के रूप मे दे सकते हैं यहाँ उसको पब्लिश नहीं किया जाएगा" तो संवाद का माहौल नहीं दर्शाता जैसा कि हैडर में आह्वान किया गया है।
    इस कमेंट को विरोध का कमेंट मानें तो न्याय नहीं होगा। इतना विश्वास तो है कि जिन्हें हम आमतौर पर पढ़ते हैं, प्राय: उनकी नीयत का अंदाजा हो ही जाता है। ये सब कोई विवाद\संवाद बढ़ाने के लिये नहीं बल्कि एक कन्फ़्यूज़न क्लियर करने की इच्छा से लिखा है। खुशी का अवसर है, फ़िर से एक बार बधाई और नारी प्रगति की शुभकामनायें।
    फ़िर पता नहीं कमेंट करने के लिये एक साल और इंतज़ार करना पड़े:))

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  23. संजय जी
    नारी ब्लॉग केवल एक बार ’इन्वाईटिड फ़ॉर गेस्ट्स’ हुआ हैं जब हमारे दो सदस्यों के लिये व्यक्तिगत टीका टिपण्णी कि गयी . तब मुझे लगा कि मैने शायद ये ब्लॉग बना कर गलत किया हैं क्युकी मेरे सदस्यों के परिवार जन उनका लिखा पढते हैं और जब वो देखते हैं कि "व्यक्तिगत" आक्षेप हैं तो क्या गुज़रती होगी उनकी मानसिक स्थिति पर
    "तो संवाद का माहौल नहीं दर्शाता "
    जब नारी ब्लॉग बनाया था तब से आज तक कम से कम सौ कमेन्ट तो वो डिलीट किये हैं जिन मे अश्लीलता था , और इतने ही वो डिलीट किये हैं जिन मे वो लिनक्स थे जो उन ब्लोग्स पर ले जाते हैं जहां नारी को बार बार यही समझाया जाता हैं कि उसकी जगह घर मे हैं और पुरुष कि बाहर , वो सम्पूर्ण तभी हैं जब विवाह करती हैं , उसके लिये गहने पहनना कितना जरुरी हैं इत्यादि . ये सब कमेन्ट दिशा भ्रम उत्पन्न करते हैं . आप कहेगे कि नारी को खुद समझाने दीजिये सही क्या हैं और गलत क्या . हम मानते हैं कि "सामाजिक कंडिशनिंग " ने नारी कि समझने कि शक्ति को ख़तम करने का काम किया हैं .वो बाते जो सहज स्वीकार्य हैं हमारी समझ मे समानता कि विरोधी हैं .
    बस इसीलिये ऐसे कमेंट्स डिलीट कर दिये जाते हैं ताकि बहस ना हो क्युकी जब ब्लॉग बना था तब हम संवाद के लिये आये थे पर ब्लॉग पर भी समाज कि वही स्थिति मिली जहां संवाद नहीं बहस होती हैं जिसका निष्कर्ष ही नहीं हैं .

    हमने सोच लिया हैं कि हम अपनी बात कहेगे , अपने हिसाब से जागृति कि कोशिश करेगे जिनको उस बात पर आपत्ति हैं वो अपनी आपत्ति अपने ब्लॉग पर दर्ज करा दे

    हम तो आज भी इंतज़ार मे कि कोई ये तो कभी कहे कि हां नारी ब्लॉग ने हम को सोचने पर मजबूर किया .
    आप को भी नारी ब्लॉग के जन्म दिन कि बधाई

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  24. रचना जी,
    इस ’जी’ पर ऐतराज मत जताईयेगा, एक तो आपने खुद ऐसा लिखा है और दूसरे मुझे ऐसा बोलने की आदत भी है:))
    शायद वही इकलौता चांस रहा होगा आमंत्रित मेहमानों वाला जिसका मैंने जिक्र किया था।
    अशालीन कमेंट्स के बारे में आपकी बात से सौ प्रतिशत सहमत, दूसरे प्वाईंट पर पूर्ण सहमति न आपसे न दूसरे पक्ष से। लेकिन इतनी सदाशयता तो मैं खुद में मानता हूँ कि असहमति का हक दूसरों को है, शर्त वही कि भाषा असभ्य नहीं होनी चाहिये, ’बिलो द बेल्ट’ आक्षेप नहीं होने चाहियें। इस समस्या से सभी को दो-चार होना पड़ता है। मैं खुद बीच बीच में माडरेशन लगाता रहता हूँ, वजह यही है कि मुझे लगता है कि मेरे लिखे को या मेरे ब्लाग को मेरे घर की महिलायें पढ़ें तो उन्हें असहज न लगे। लेकिन शायद यहाँ के चलन के मुताबिक आपका फ़ैसला सही ही रहा होगा, वैसे भी ब्लॉग मालिक या एडमिनिस्ट्रेटर की ही मर्जी चलनी चाहिये। बल्कि मैं ’इन्वाईटिड फ़ॉर गेस्ट्स’ ब्लॉग का भी विरोधी नहीं, मैंने तो सिर्फ़ विरोधाभास की तरफ़ इशारा किया था।
    खैर, नारी ब्लॉग की हर पोस्ट तो नहीं, लेकिन कुछ पोस्ट्स ने सोचने पर मजबूर किया है ऐसा मैं मान रहा हूँ।
    फ़िर से आपको व समस्त नारी ब्लॉग टीम को हार्दिक शुभकामनायें।

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  25. आपका लेख चिंतन करने को बाध्य करता है....कुछ के लिए कड़वी लेकिन सच्ची बातें हैं..

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