अपने आस पास देखा तो पाया कि नारी के जागरूकता ने उसको नए आयाम दिए हैं और वह परम्पराओं से लड़ते हुए अपने अस्तित्व की लड़ाई बखूबी लड़ रही है और लड़ती रहेगी. बेटियाँ पिता को कन्धा देकर श्मशान तक ले जा रही है और मुखाग्नि देती हैं. कहीं तो पुत्र न होने का विकल्प है और कहीं पुत्र के नालायक होने का परिणाम . जब परिवार साथ छोड़ देता है तो पत्नी भी अपनी दुधमुंही बच्ची को दूसरों को थमा कर पति की चिता में मुखाग्नि देते देखा है.
इस कड़ी में एक साहस और जुड़ा और नया इतिहास रच गया. आज ही अखबार में देखा कि कानपुर के पास शुक्लागंज में १८ वर्षीय बेटी ने पिता को अलग खड़ा करके अपनी माँ को मुखाग्नि दी. पिता की परिवार के लिए और पत्नी के प्रति उपेक्षा के चलते उसकी माँ बीमारी झेलते झेलते स्वर्ग सिधार गयी . बेटी श्मशान पहुँच कर माँ को मुखाग्नि देने के लिए तैयार हुई तो पिता मुखाग्नि देने के लिए सामने आ गए . माँ की मृत्यु से संतप्त पुत्री ने पिता को माँ कि मुखाग्नि देने से मना ही नहीं बल्कि उन्हें खरी खोटी भी सुनाई - ' जब माँ बीमारी से मर रही थी, तब ख्याल नहीं रख सके तो अब क्या करने आये हैं.'
विवाद होने पर लोगों ने विवाद शांत कराया और पुत्री ने ही मुखाग्नि दी. एक गैर जिम्मेदार पति और पिता के लिए इससे बेहतर सबक और कोई हो ही नहीं सकता है. भाइयों के खिलाफ बगावत तो वह कर ही रही थी अब पिता के खिलाफ ये बगावत इस बात कि निशानी है कि वे हर जगह जिम्मेदार सिद्ध हो रही हैं और ये अपने आप में एक इतिहास रच गया. इसके लिए उसके साहस की प्रशंसा करूंगी.
shabaash kehnae ko man kar aayaa
ReplyDeleteसही है ऐसा ही कदम उठाना होगा तभी नारी अपनी पहचान आप बनेगी।
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी आप ने दी है ! बहुत - बहुत धन्यवाद !
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