देश कि राष्ट्रपति महिला
उत्तर प्रदेश कि मुख्यमंत्री महिला
विपक्ष कि नेता महिला
दिल्ली कि मुख्यमंत्री महिला
इसके अलावा कांग्रेस कि अध्यक्ष भी महिला
फिर भी औरत सुरक्षित नहीं हैं ??? हद्द हैं
मुझे तो ये समझ नहीं आता ये कहने का औचित्य ही क्या हैं । ये चारो महिला कैसे महिला के प्रति किये जा रहे अपराधो को "तुरंत " रोक सकती हैं ? हां आज मुजरिम जो जल्दी पकड़े जाते हैं वो शायद इन्ही के प्रयासों का नतीजा हो ।
हर बार जब भी समानता कि बात कि जाती है उसको नकार दिया जाता हैं और कहा जाता हैं स्त्री पुरुष पूरक हैं । कब लोग ये समझेगे कि स्त्री पुरुष पूरक नहीं हैं केवल पति पत्नी पूरक हैं । नारी सशक्तिकरण के रास्ते मे सबसे बड़ा कांटा हैं असमानता ।
शीला दीक्षित और सोनिया गाँधी राजनीति मे इसलिये नहीं हैं क्युकी उनके परिवार वाले उनको आगे लाये या वो अपनी दक्षता से राजनीति मे आयी वो महज यहाँ इस लिये हैं क्युकी उनके परिवार मे कोई पुरुष नहीं था जो राजनीति की डोर को आगे बढ़ता । दोनों एक राजीनीतिक परिवार की बहु थी उस परिवार कि वजह से यहाँ हैं । अगर उनके यहाँ उस समय कोई पुरुष होता तो संभव हैं वो भी एक बहु / पत्नी ही रहती ।
समानता का मतलब हैं "चुन " सकने का अधिकार समान रूप से मिलना । जब शीला दीक्षित और सोनिया गाँधी आयी तो समानता से नहीं , मात्र पत्नी / बहु के अधिकार से । एक रिप्लेसमेंट कि तरह ना कि ओरिजिनल चोइस कि तरह । इस के बावजूद जो कुछ उन्होने किया हैं वो कम नहीं हैं ।
प्रतिभा पाटिल , सुषमा स्वराज , मायावती और ममता बैनर्जी इत्यादि मान सकते हैं की राजनीति मे अपनी खुद की वजह से हैं ।
लेकिन इन सब के आते ही हम ये कहे की हमारी व्यवस्था मे सुधार हो जायेगा । कितने दिन से ये राजनीति मे हैं और कितना सुधार इनके आने से हुआ हैं उसका तुलनात्मक अध्यन कर के ही इन पर तंच कसना चाहिये ।
शीला दीक्षित ७० वर्ष की हैं और अगर वो अनुभव से ये कहती हैं कि लडकियां रात को ना निकले तो वो मुख्यमंत्री नहीं एक महिला हैं एक माँ हैं जो भारतीये समाज कि मानसिकता से परिचित है । वो जानती हैं सिस्टम एक महिला के मुख्यमंत्री बन जाने से नहीं बदलेगा इस लिये सुरक्षित रहने के उपाय जो सदियों से चले आ रहे हैं उन पर अमल कि सलाह देती हैं ।
हर माँ हर नारी यही करती हैं पर क्यूँ ??????? क्यूँ नहीं आज भी नारी "ओरिजिनल चोइस " नहीं हैं । क्यूँ आज भी बलात्कार होते हैं , क्यूँ कन्या भूंड ह्त्या होती हैं ।
कारण आसान हैं हम समानता कि बात जो कानून और संविधान से मिला हैं उसकी बात नहीं करते । हम संस्कार और संस्कृति कि बात करते हैं पर सभ्यता कि नहीं ।
भारतीये सभ्यता मे जो कुछ हैं वो संस्कारों मे नहीं हैं । संस्कृति मे नहीं हैं । संस्कारो से नारी को दोयम का दर्जा मिला हैं सभ्यता से नहीं ।
कल कमेन्ट मे एक लिंक मिला , वहाँ पढ़ा
विगत वर्ष IIM Bangalore में मेरी प्रबंधन की पढाई केसिलसिले में मेरे कुछ माह केसंयुक्त राष्ट्र अमेरिका में प्रवास केदौरान, मुझे वहाँ के सामाजिक वआर्थिक ढाँचे को नजदीक सेदेखने व इसपर कुछ महत्त्वपूर्णअध्ययन का अवसर मिला ।इसमें सबसे सुखद , वविश्मयकारी भी,अनुभव वजानकारी यह रही कि वहाँ केदैनन्दिन के अधिकांशकार्यकलाप, जैसे स्कूल बस केड्राइवर,रेस्तरा के कर्मचारी, ट्रैफिक पोलिस, हाईवे की नाइटपोलिस पैट्रोलिंग, हाईवे के रिमोटवे-साइड रेस्ट सेंटर्स के कर्मचारीव केयर-टेकर्स , गैस स्टेशन केनाइट सिफ्ट स्टाफ , जोकि हमारेदेश में अधिकांशतः पुरुषों द्वारा हीसँभाला जाता है, वहाँपरअधिकांशतः या सच पूछिये तोकहीं कहीं तो केवल महिलाएँ हीसँभालती नजर आयीं। वहाँ परकमोवेस हर कार्यक्षेत्र- परिवेश मेंही महिलाएँ अग्रणी भूमिका मेंनजर आयीं। यह बात महिलाओंकी समाज में वास्तविक अर्थों मेंपुरुषों के बराबर की भागीदारी कोदर्शाता है।मेरे विचार से, हमारेदेश में भी जब तक महिलाओं कीहर पक्ष- सामाजिक,आर्थिक वराजनीतिक , में इस तरह कीवास्तविक अर्थों में बराबर कीभागीदारी की स्थिति नहीं बनजाती, महिलाओं के सशक्तिकरणऔर आत्मनिर्भरता की बातअधूरी ही लगती है ।"
ये आज केवल नारी की ही नहीं वरन सभी की स्थिति है आज अपराधों का बोलबाला है और उन पर लगाम लगाने की बजाये उन्हें दर्ज करने पर लगाम लगाई जाती है और इसके लिए सभी नेता चाहे वे नारी हो या पुरुष एक से ही विचार रखते हैं...
ReplyDeleteमैंने नारी सशक्तिकरण के बारे में सभी को समर्थन देते देखा है ..चाहे ब्लोग्ग की दुनिया हो या सामाजिक या राजनीतिक ....सबने हालत के ऊपर अपने -अपने आंसू ही बहाए है ,किन्तु इस दिशा में होने वाले उपयुक्त सुझाव बराबर प्रगट नहीं किये ! इन होने वाली घटनाओं के परिप्रेक्ष में भी चर्चा होनी चाहिए.जैसे आग लगाने पर दमकल की ब्यवस्था ..वगैरह-वगैरह ! अगर हम इन समस्याओ से निदान नहीं पाते तो सिवाय सजग और होसियार रहने के अलावा कोई बिकल्प है क्या ? आज के प्रश्न दिवस के उपलक्ष में मेरा प्रश्न ब्लोग्ग जगत के सामने ! कोई जरुरी नहीं सभी इससे सहमत हो !यह मेरा एक बिचार मात्र ! इस मसाले पर ब्लोग्ग जगत में खुली चर्चा होनी चाहिए ! मंथन से ही अमृत निकलेगा !मेरी भावनाओ से बहुतो को गुस्सा भी आता है पर सच्छ्यी छुपाना समाज के लिए ...हितकर नहीं होगा ! आशा है ...इसके निदान पर खुली चर्चा हो ! बाकि सब बेहद सुन्दर ! धन्यवाद !
ReplyDeleteI have seen the above link .....
ReplyDeleteरचना जी जिस समाज की बुनियाद ही गलत हो तो ढांचा कैसे सुरक्षित रह सकता है? यहाँ तो कुर्सी पर बैठे ही वो लोग है जो खुद अपराधी है तो कैसे ये उम्मीद कर सकते है हम कि अपराध कम होगा या महिलाये सुरक्षित वो भी समानता के स्तर पर जबकि हम सभी जानते है कि कितने ही नेता तो ऐसे है जिन्होने स्नातक स्तर तक की भी पढाई नही की या कुछ केवल अंगूठा छाप के बराबर ही हैं तो ऐसे समाज मे हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं समानता की वो भी उन लोगो से जो खुद पिछडे इलाके से आये हैं और जहां उन्होने महिलाओ को सिर्फ़ चौके चूल्हे और बच्चा जनने की मशीन के अलावा और कुछ नही समझा…………यहाँ अभी वो वक्त आने मे बहुत देर है…………बेशक सम्मिलित प्रयासो से सब संभव है और देर सवेर होगा भी मगर फ़िलहाल तो सारे हालात सामने हैं ही।
ReplyDeleteनिदान बहुत आसान हैं , जहां भी जेंडर बायस हो तुरंत आवाज उठाओ और जेंडर बायस हमारे यहाँ हर बात मे हैं घर से लेकर ऑफिस तक । आज भी हमारे यहाँ काम का बटवारा लिंग आधारित हैं जैसे घर का काम औरत का , नौकरी पुरुष का ।
ReplyDeleteआज भी हर बलात्कार के बाद बात औरत के कपड़ो की होती हैं ना की बलात्कारी की , बात होती हैं औरत कितने बजे कहा और क्यों थी
सश्क्तिकर्ण को बढ़ावा देना हैं तो कन्या का दान बंद करना होगा , दहेज़ बंद करना होगा , मृत्यु पर लड़की के घर से सामान आने के रिवाज को बंद करना होगा । लड़की को पराया धन कहना बंद करना होगा । और भी ना जाने कितना कुछ हैं ।
समर्थन करने मे और अपने घर मे इम्प्लीमेंट करने मे फरक हैं । वो सब कुछ जो बेटे के लिये उचित समझते हैं उसको बेटी के लिये भी उचित बनाये । जहां बेटी के जाने पर प्रतिबन्ध हो वहाँ बेटे के जाने पर भी लगाये
रचना जी जिस समाज की बुनियाद ही गलत हो तो ढांचा कैसे सुरक्षित रह सकता है?
ReplyDeletesahii kehaa vandana aapnae
अपराध और लिंग-भेद अलग-अलग मुद्दे हैं. महिलाएं ही केवल अपराधियों का शिकार नहीं होती पुरुष भी अपराधों से पीड़ित होते है. अपराधी मानसिकता दिनों-दिन बढती जा रही है. इस पर नियंत्रण कैसे लगेगा कोई नहीं जानता, क्योंकि मूल्यों का क्षरण निरन्तर जारी है और सरकार अपराधों को नहीं रोक सकती. समाज का ढाचा ही ठीक करने की आवश्यकता है और शायद यह कार्य महिलाएं ही अधिक कुशलता से कर सकें.
ReplyDeleteरचना जी एक बात आपसे शायद छूट गयी बेटी को पैत्रिक संपत्ति में व्यवहार में हक देना होगा, इसके बिना दहेज बन्द करना शायद उसके साथ अन्याय ही होगा. केवल कानूनी प्रावधान से कुछ नहीं होगा, उसे लागू भी होना चाहिए.
ReplyDeleteachche sawaal uthati post
ReplyDeleteबहुत गहन विचार पर चिंतन-मनन हो रहा है .हमारे भारत देश का प्राचीन समय वर्तमान के समय से कई मायने में अच्छा भी रहा है. संस्कारों - परम्पराओं से बंधकर भी लोग विचारशून्य नहीं हुआ करते थे. नारी ब्लॉग में रचनाजी की पोस्ट देखी साथ ही भाई देवेन्द्र जी का ब्लॉग देखा. निःसंदेह उनकी भावनाओं से बहुत प्रभावित हुई. यही जरूरत है सामान्यजन की मानसिकता को बदलने की. समाज की सोच परिवर्तित करने की. स्वाभाविक है समय लगेगा ही ,पर निराश होने या हारने का मार्ग तो आज की *नारी-शक्ति* समयानुसार-आवश्यकतानुसार त्याग चुकी है व विजय-पथ की ओर अग्रसर है. जानतीं हैं राह में अनेक रोड़े आयेंगे ,संकट आएंगे . क्योंकि रोज विचलित कर देने वाले हादसे-घटनाएँ हो रहीं हैं. इस समय चैतन्यता-जागरूकता महिला-पुरुष का भेद-भाव न करके समाज को भी आगे आना ही होगा . अधिकांश परिवारों में पिता-भाई-पति-बेटे भी अपने घरों-सामाजिक क्षेत्रों की महिला-शक्ति के साथ उठ खड़े हुए हैं. संपूर्ण संवेदनशील व सजगता के साथ. तो कुछ मुठ्ठी भर असामाजिक तत्वों व गलत सोच लोगों को ढूंढकर बहिष्कृत करना ही होगा ,सजा दिलवाना ही होगा. हमारी महिला-नेत्रियों से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए कि इन महिलाओं ने तो हमारी नारी-शक्ति को सिद्ध करके दिखलाया है कि सही मौका मिलने पर वे किसी से कम नहीं बल्कि आगे ही है. समाज व देश के लोग भी उनको पूर्ण योग्य-सम्माननीय मानते हैं.
ReplyDeleteमेरा मानना है कि अच्छी सोच रखकर ही बेहतर कार्य किये जा सकते हैं. हाँ सावधानी में ही सुरक्षा (PREVENTION IS BETTER THAN CURE )को अपनाते हुए. निश्चय बदलाव आयेगा ही.
अलका मधुसूदन पटेल , साहित्यकार-लेखिका
बिल्कुल सही रचना जी हमारे यहाँ महिलाओं को जिम्मेदारी देना और उनकी काबिलियत को स्वीकार करना बड़ी मजबूरी में किया जाता है..... वे ओरिजिनल चोइस नहीं होतीं....
ReplyDeleteमैं आपसे सहमत हूँ. इस तरह के अपराधों को रोकने का एक ही तरीका है कि लड़कियाँ खुद सशक्त बनें. अपने साथ हो रही छेड़छाड़ के बारे में घरवालों को बताएँ और खुद भी विरोध करें. शुरुआती छेडछाड को अनदेखा कर देने से ही बात बिगड़ जाती है.
ReplyDeleteये कहना तो बड़ा ही बचकाना लगता है कि शासन के उच्च पद पर किसी महिला के आ जाने से महिलाओं के प्रति अपराध एकदम से बंद हो जायेंगे. महिलाओं के साथ होने वाली घटनाओं की जड़ें सामाजिक व्यवस्था में है और जब तक ये नहीं बदलेगी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होगा.