रंजना कुमारी द्वारा लिखा ये लेख १५ मार्च को नव भारत टाइम्स में प्रकाशित हुआ था आप इसे यहाँ भी पढ़ सकते है | किसी लड़की के साथ बलात्कार करने वालो को यदि अदालत इन दलीलों पर इस तरह की सजा दे कर छोड़ देगी तो फिर हो चुकी महिलाए समाज में सुरक्षित | जब अदालत ही ऐसी नजीरे रखेगा तब तो लोगो का इस तरह का अपराध करने का हौसला और भी बढ़ जायेगा |
रंजना कुमारी ॥
पिछले हफ्ते पश्चिमी दिल्ली में एक कॉलेज स्टूडेंट 20 साल की राधिका तंवर की दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी गई और अभी दो रोज पहले 77 साल की बुजुर्ग महिला के साथ दिल्ली के रोहिणी इलाके में रेप किया गया। देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध हर किसी की चिंता का विषय हैं। खासकर दिल्ली जैसे महानगरों में उनसे छेड़छाड़ और बलात्कार की घटनाएं इधर जिस तेजी से बढ़ी हैं, उन्हें देखते हुए महिलाओं की सुरक्षा के विशेष प्रबंध किए जाने चाहिए। लेकिन इसके साथ यह समझना भी जरूरी है कि वे कौन से कारक हैं जो स्त्री के खिलाफ किए जाने वाले अपराधों को लोगों की नजर में मामूली बना देते हैं।
शांति के लिए
कुछ ही दिन पहले बलात्कार के एक मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विचार कीजिए। लुधियाना में 5 मार्च 1997 को एक महिला से सामूहिक बलात्कार करने वाले तीन आरोपियों को हाल में सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ 50-50 हजार रुपये का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया, हालांकि इससे पहले सेशन कोर्ट ने इन्हीं आरोपियों को 10 साल की सजा दी थी। इस फैसले के खिलाफ की गई अपील को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था, लेकिन अब इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय हैरान करने वाला है। इस मामले में अभियुक्त पक्ष की दलील थी कि पीडि़त महिला और बलात्कार के तीनों आरोपियों का अलग-अलग व्यक्तियों से विवाह हो चुका है और अब वे 'शांति से जीना' चाहते हैं।
कैसा संदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क के आधार पर आरोपियों को दी गई सजा खत्म कर दी और उसकी जगह आर्थिक जुर्माना लगाकर दोषियों को बरी कर दिया। कोर्ट के पास मौका था कि वह बलात्कार के ऐसे मामले में एक नजीर पेश करता। महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को संज्ञान में लेते हुए वह अपने फैसले में संवेदनशीलता का परिचय दे सकता था, पर आर्थिक जुर्माने की सजा के उसके फैसले से अन्याय की संभावना ज्यादा बढ़ेगी। इस तरह तो हर बलात्कारी पैसा देकर सजा से बच जाने का प्रबंध करने के बारे में सोचने लगेगा। हमारे समाज में ऐसे वहशी लोगों की कमी नहीं है जो अपना गुनाह छिपाने और सजा से बचने के लिए 50 हजार रुपये से कई गुना ज्यादा रकम चुका सकते हैं। आखिर कोर्ट ने ऐसा फैसला देकर क्या संदेश देने की कोशिश की है?
किसी महिला से बलात्कार किसी की हत्या के अपराध से कतई कम नहीं है। क्या कोर्ट मर्डर के मामले में भी किसी सजा को आर्थिक जुर्माने में बदल सकता है? अगर नहीं, तो स्त्री के जीवन और उसकी आत्मा पर ठेस लगाने वाले बलात्कार के जुर्म में वह ऐसा कैसे कर सकता है? क्या एक मुआवजा स्त्री की अस्मिता पर लगा कलंक धो सकता है? बलात्कार के बारे में आम राय यही है कि इसके अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले। अपराधी को सजा दिलाने के साथ इसका ध्येय यह भी है कि पीडि़त लड़की या महिला को पूरी तरह रीहैबलिटेट किया जाए। सिर्फ आर्थिक मुआवजा उसके साथ हुए अन्याय की भरपाई नहीं कर सकता।
सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले में मुझे एक भूमिका पुलिस जांच में हुई कोताही की भी लगती है। पुलिस जांच के दौरान इस मामले को बहुत हल्के ढंग से लिया गया। जब कानून पीड़ित की बजाय दोषियों को बचाने का प्रयास करता है , तब ऐसे मामलों की सॉफ्ट हैंडलिंग का खतरा पैदा होता है और अक्सर ऐसे नतीजे सामने आते हैं जिसमें पीडि़त के सामने समझौते के सिवा कोई विकल्प नहीं बचता। कहीं ऐसा तो नहीं कि महिला अपने संबंधियों के दबाव में ऐसा समझौता करने पर बाध्य हुई हो ? अगर जुर्माना दो और छूट जाओ की ऐसी और भी नजीरें पेश की गईं तो सोचना कठिन है कि हमारे समाज में स्त्रियों को कितना अत्याचार झेलना पड़ेगा।
बलात्कार के मामलों में मेरी मांग फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की है। अगर त्वरित न्याय की यह व्यवस्था बनाई जा सकी तो साक्ष्यों को झुठलाने और पीड़िता को फुसलाने या दबाव डालकर उसका बयान बदलवाने जैसी आशंकाएं कम हो सकेंगी। कुछ अरसा पहले राजस्थान में एक जर्मन युवती से बलात्कार पर फैसला सिर्फ 17 दिन में आ गया। देश में हर स्त्री की अस्मिता के हनन को इतना ही महत्वपूर्ण मानकर कार्रवाई आखिर क्यों नहीं होती ? ऐसी स्थितियों में विलंबित न्याय का अर्थ प्रभावित स्त्री के लिए न्याय की आस धूमिल करना और उसके लिए हादसे की टीस को जारी रखना है।
कैसी विडंबना है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों में ज्यादा बढ़ोतरी यूपी और दिल्ली जैसे राज्यों में हुई है जहां महिला मुख्यमंत्री हैं। उम्मीद थी कि इन राज्यों में ऐसे अपराधों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस पॉलिसी अपनाई जाएगी। पर इन शीर्ष महिलाओं का कहना है कि लड़कियां देर रात घर से बाहर न निकलें और आधुनिक कपड़े पहनने का एडवेंचर ना करें। मिडल क्लास की लड़कियों के लिए जींस - शर्ट पहनना और बस - मेट्रो पकड़कर कार्यस्थल पर जाना उनकी जिंदगी का सवाल है। वे अपने पैरों पर खड़े होना चाहती हैं , करियर के वास्ते उन्होंने एजुकेशन ली है। ऐसा किए बगैर वे जीवित नहीं रह पाएंगी। इसलिए उनकी सुरक्षा के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होने की जरूरत है।
पांच सूत्री फॉर्म्युला
बहरहाल , महिलाओं को हमारे देश और समाज में सुरक्षित माहौल मिल सके , इसके लिए मैं पांच सूत्री फॉर्म्युले को तत्काल अमल में लाने की हिमायती हूं। सेक्सुअल असॉल्ट कानून को फौरन पारित करना , जेंडर सेंसटाइजेशन की ट्रेनिंग हर उम्र की महिला को दिलाना , रेप के मामले में एक स्पेशल टॉस्क फोर्स या लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसी बनाना , फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन करना और इस बारे में जागरूकता लाना कि हमारी सोसायटी के लोग किसी महिला के साथ कैसा भी अपराध होते देखें , तो उसका संगठित होकर विरोध करें। मेरे खयाल से ये पांच पहलकदमियां खासकर शहरों की महिलाओं की जिंदगी थोड़ा आसान बना सकती हैं।
बलात्कार के लगभग सभी मुकदमों का विचारण फास्ट ट्रेक अदालतों में ही होता है। समय उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के स्तर पर होता है। तब तक यदि जमानत न हो तो अपराधी जेल में ही रहता है।
ReplyDeleteयह सही है कि केवल बलात्कार के मामले में ही नहीं प्रत्येक अपराध के मामले में पुलिस अन्वेषण की कमी के कारण अपराधी बच निकलते हैं। हमारी पुलिस के अन्वेषक बिलकुल भी प्रोफेशनल नहीं है। इस का कारण उन पर अन्य अनेक प्रकार की जिम्मेदारियाँ होना है। प्रत्येक अन्वेषण का अधिकांश काम एक हेड़ कांस्टेबल के स्तर का कर्मचारी करता है। पुलिस में संज्ञेय अपराधों के मामले में अन्वेषण प्रोफेशनल अन्वेषकों द्वारा किया जाना चाहिए जो केवल अपराध अन्वेषण का काम करते हों। पुलिस में इन का अलग कैडर होना चाहिए।
इस तरह के निर्णय बहुत अफसोसजनक हैं...... दूसरों की हिम्मत भी बढ़ती है इस तरह के गलत कार्य करने की..... बाकी तो यह उदहारण और आलेख हमारी व्यवस्था का हाल बता ही रहे हैं....
ReplyDeleteकई बार कुछ निर्णय मुझे भी समझ नहीं आते.
ReplyDeleteमहिला सांसदों को इस तरह के बिषयो को संसद में बिशेस तरह से उठाने चाहिए ..ताकि गहराई से चर्चा हो सके और कोई नयी बिल आ जाये
ReplyDeleteकिसी की जिन्दगी अंधेरे में डुबोने वालों को मुआवजा देकर सजा से छूट देना निहायती अफसोसजनक है।
ReplyDeleteऐसे वहशी लोगों की कमी नहीं है जो अपना गुनाह छिपाने और सजा से बचने के लिए 50 हजार रुपये से कई गुना ज्यादा रकम चुका सकते हैं।
सही कहा आपने
आपके पाँच सूत्री फार्मूले से सहमत
प्रणाम
Excellent post!
ReplyDeleteWomen are the only oppressed group in our society that lives in intimate association with their opressors - Evelyn Cunningham