२ अक्टूबर २००८ को गाँधी जयंती के अवसर पर बहु प्रचारित लागू धूम्रपान निषेध क़ानून का वास्तविकता के धरातल पर आमजनों व प्रशासकीय गैर जिम्मेदारी की भेंट चढ़ जाना बेहद शर्मनाक स्थिति प्रदर्शित करता है. सार्वजनिक व निजी भवनों, स्थानों जैसे बस स्टैंड, रेलवे प्लेटफार्म, होटल, पब, थियेटर, एअरपोर्ट, शैक्षणिक संस्थाओं आदि जहाँ देखो वहीँ दिन के उजियारे में भी बेफिक्र बीड़ी-सिगरेट की कश मारते, गुटखा चबाकर थूकते आम जन ही नहीं पुलिस, शासन व प्रशासन के नुमाइंदों को दिखते हुए न दिखना बेहद निराशाजनक स्थिति को दर्शाती है. इससे साफ़ जाहिर होता है कि धूम्रपान करने वालों के लिए धूम्रपान निषेध क़ानून बेमानी है.
एक आम महिला होने के नाते मैं यह अच्छी तरह जानती हूँ कि इससे यदि कोई सर्वाधिक प्रभावित और भुक्तभोगी हैं तो वे अबोध बच्चे और महिलाएं हैं, जो आज भी आपसी नाते-रिश्तेदारी या सामाजिक सबंधों के चलते प्रतिकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती हैं. यदि कोई परेशान होकर कभी मुहं खोलने की जुर्रत कर भी ले तो उन्हें न जाने क्या-क्या सुनने को मिल जाता है, क्योंकि धूम्रपान के आदी हो चुके लोग इतने बेपरवाह होते हैं कि उन्हें अपने आस-पास चाहे वह बीमार ही क्यों न हो, बिलकुल भी नहीं दिखता, इनकी सेहत पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. हरदिन कौन चिकचिक कर अपना दिमाग ख़राब करता फिरे इसलिए इसे एक नियति समझकर इस दमघोंटू त्रासदी को झेलने की अभ्यस्त सी हो जाती हैं. प्राय: देखने को मिलता है कि हम जिन बुराईयों के अभ्यस्त से हो जाते हैं, उन्हें तो हम सहन कर लेते हैं, परन्तु नई बुराई की निंदा जरुर करते हैं. लेकिन हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए की यदि एक छोटी सी बुराई के लिए हमने दरवाजा खोल लिया तो उसके साथ कोई बड़ी मुसीबत/बुराई का आना भी तय हो जाता है. इसलिए उस हर बुराई का जिसकी चपेट में वे लोग भी आ जाते हैं जो न चाहते हुए भी इस त्रासदी को रोजमर्रा की आदत में शुमार कर कई बीमारियों को आमंत्रित कर देते हैं, जिनका दूर-दूर तक वास्ता नहीं होता और फिर इसे भाग्य का लेख मानकर मौन धारण कर झेलने को मजबूर रहते हैं, उन्हें इस पर गहराई से विचार कर व्यक्तिगत और सार्वजनिक दोनों स्तर से प्रतिकार कर बहुत सी अनचाही व्याधियों से अपने आप को ही नहीं अपितु असहाय बने वर्ग को भी बचा लेने के लिए कृत संकल्प होना चाहिए.
नारी मंच के माध्यम से मैं सभी ब्लॉगर्स और पाठकों से अनुरोध करती हूँ कि वे इस कानून के पीछे निहित सार्थक सोच की नेक मंशा की सफलता हेतु पुरुष-महिला जैसी मानसिकता से ऊपर उठकर अपने व्यक्तिगत या सार्वजनिक स्तर से प्रतिकार कर एक स्वस्थ समाज निर्माण में अहम् भूमिका निभाते हुए धूम्रपान पीड़ित जनता को कई तरह की समस्याओं/बीमारियों से बचाते हुए आदर्श मानवता का परिचय देने में कभी भी पीछे न हटें.
...कविता रावत
एक आम महिला होने के नाते मैं यह अच्छी तरह जानती हूँ कि इससे यदि कोई सर्वाधिक प्रभावित और भुक्तभोगी हैं तो वे अबोध बच्चे और महिलाएं हैं, जो आज भी आपसी नाते-रिश्तेदारी या सामाजिक सबंधों के चलते प्रतिकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती हैं. यदि कोई परेशान होकर कभी मुहं खोलने की जुर्रत कर भी ले तो उन्हें न जाने क्या-क्या सुनने को मिल जाता है, क्योंकि धूम्रपान के आदी हो चुके लोग इतने बेपरवाह होते हैं कि उन्हें अपने आस-पास चाहे वह बीमार ही क्यों न हो, बिलकुल भी नहीं दिखता, इनकी सेहत पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. हरदिन कौन चिकचिक कर अपना दिमाग ख़राब करता फिरे इसलिए इसे एक नियति समझकर इस दमघोंटू त्रासदी को झेलने की अभ्यस्त सी हो जाती हैं. प्राय: देखने को मिलता है कि हम जिन बुराईयों के अभ्यस्त से हो जाते हैं, उन्हें तो हम सहन कर लेते हैं, परन्तु नई बुराई की निंदा जरुर करते हैं. लेकिन हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए की यदि एक छोटी सी बुराई के लिए हमने दरवाजा खोल लिया तो उसके साथ कोई बड़ी मुसीबत/बुराई का आना भी तय हो जाता है. इसलिए उस हर बुराई का जिसकी चपेट में वे लोग भी आ जाते हैं जो न चाहते हुए भी इस त्रासदी को रोजमर्रा की आदत में शुमार कर कई बीमारियों को आमंत्रित कर देते हैं, जिनका दूर-दूर तक वास्ता नहीं होता और फिर इसे भाग्य का लेख मानकर मौन धारण कर झेलने को मजबूर रहते हैं, उन्हें इस पर गहराई से विचार कर व्यक्तिगत और सार्वजनिक दोनों स्तर से प्रतिकार कर बहुत सी अनचाही व्याधियों से अपने आप को ही नहीं अपितु असहाय बने वर्ग को भी बचा लेने के लिए कृत संकल्प होना चाहिए.
नारी मंच के माध्यम से मैं सभी ब्लॉगर्स और पाठकों से अनुरोध करती हूँ कि वे इस कानून के पीछे निहित सार्थक सोच की नेक मंशा की सफलता हेतु पुरुष-महिला जैसी मानसिकता से ऊपर उठकर अपने व्यक्तिगत या सार्वजनिक स्तर से प्रतिकार कर एक स्वस्थ समाज निर्माण में अहम् भूमिका निभाते हुए धूम्रपान पीड़ित जनता को कई तरह की समस्याओं/बीमारियों से बचाते हुए आदर्श मानवता का परिचय देने में कभी भी पीछे न हटें.
bhaai bat to aapne pte ki or saarthk likhi he yeh sch he ke kitaabi qaanun aaj bhi trenon men bson men futpathon or dukaanon shit sbhi saarvjnik sthanon pr lagu nhin kiya ja rha he hd to yeh he ke khud adaalt prisron or klektri prisron men bhi yeh lagu nhi he bs matr dikhaava he. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteएक आम व्यक्ति द्वारा इसे रोकना बिल्कूल भी संभव नहीं है कभी आप किसी को इस बारे में टोक कर देखिये पहले तो कहंगे कि आप को परेशानी हो रही है तो आप हट जाइये या आप कि बात पर ध्यान ही नहीं देंगे उसके बाद भी यदि आप ने कुछ कहा तो वो सीधे आप से बत्मीजी पर उतर आयेंगे फिर आप के पास चुप होने के आवा कोई चारा नहीं है | इस तरह के हर कानून का यही हल है आज ही मै बस से कही जा रही थी बस का ड्राइवर मोबाईल से बात करने लगा पहले तो मैंने कहा जाने दो वो सकता है जरुरी फोन हो वो तुरंत रख देगा पर वो तो बात करता ही जा रहा था और बस भी चलते जा रहा था जब तीन चार मिनट बाद भी उसने फोन नहीं रखा तो मैंने कंडक्टर से शिकायत की दो बार पर जैसे उसने मेरी बात ही नहीं सुनी | हम कुछ नहीं कर सकते है ज्याद से ज्यादा हम अपने अपनों को इस बात के लिए टोक सकते है|
ReplyDeleteधूम्रपान निषेध क़ानून को एक सिरे से नकार देना सभ्य कहलाने वाले समाज के लिए घातक है. अपने सच कहा कि धूम्रपान करने वाले बेपरवाह होते हैं और ये क़ानून को ठेंगा दिखाने में कभी भी पीछे रह ही नहीं सकते! निरक्षर लोगों की छोडो पढ़े-लिखे सभ्य कहलाने वाले इंसान जिस तरह से सार्वजनिक रूप से बिना किसी की परवाह किये बेफिक्री से धूम्रपान करते हैं उससे तो यही लगता है कि धूम्रपान निषेध क़ानून की कोई जरुरत ही नहीं है....... होने तो इससे जिसको हो नुक्सान......भुगत लेंगें अपनी-अपनी किस्मत का लेख समझकर... और फिर जिसके पास पैसा होगा वो तो अच्छे-अच्छे हॉस्पिटल में पड़े रहें और जो फटेहाल हो वे सड़ते रहें अपनी काल कोठरी में ....
ReplyDelete.. स्वस्थ समाज निर्माण की दिशा में आपकी सोच अनुकरणीय है ...काश इस दिशा में गंभीरता से मीडिया से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता सोच पाते.... जाग पाते...सार्थक जनजागरण की पहल कर आगे आ पाते .....
बिलकुल सही अपील है ।
ReplyDeleteधुम्रपान निषेध कानून का होना या ना होना कोई मायने नहीँ रखता जब तक कि आमजन इसके प्रति जागरूक नहीँ होता हैँ। धुम्रपान के विषय मेँ आवाज बुलन्द करती एक बहतरीन प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत आभार। -: VISIT MY BLOG :- जमीँ पे हैँ चाँद छुपा हुआ।............कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।
ReplyDeletesashkt alekh.
ReplyDeleteham kabhi nahi sudhrenge wali baat sab jagah hi lagu ho rahi hai.... kanoon kee kitne log parwah karte hai... aur kisse daren .... gaahe bagahe bade-chhote yahan koi antar nahi hai.... n beedi peene walon aur n sigrate peene walon kee kami hai... mil baithkar yahi to bhaichare bee badi-badi baaten hoti hain...jo dhuwen mein ud jaati hai...
ReplyDelete...AApke lekh ko padhkar media walon ko jaag jaana chahiye lekin we aisee bhool nahi karenge.. gine-chune hoge jo smoke nahi karte hongen... khair aapki jaagrukta bhari post bahut hi saarthak hai.. ham apne star se jarur paryatnsheel rahinge....AAbhar
Jai Hind
A big thank you kavita for this post
ReplyDeleteबहुत सार्थक सन्देश दिया इस पोस्ट के माध्यम से। बधाई कविता।
ReplyDeleteकृ्प्या मेरा ये ब्लाग भी देखें
http://veeranchalgatha.blogspot.com/
धन्यवाद।
आज के हालात देखकर तो यही लगता है की धूम्रपान निषेध कानून सिर्फ नामभर का है. धूम्रपान से होने वाली बीमारियों में आज कैंसर सबसे भयंकर रूप में उभर कर सामने आ रहा है... धूम्रपान से फेफड़ों का कैंसर होना जैसे आज आम बात सी हो गयी है इससे सबसे ज्यादा प्रभावित निम्न वर्ग की जनता है जो यह मानने से इनकार कर देते हैं कि बीमारी धूम्रपान से हुई है ...उनका सीधा किन्तु नासमझी का सवाल होता है कि डॉक्टर भी तो स्मोक करता है? उनकी इस नासमझी पर उतना अफ़सोस नहीं होता जितना कि पढ़े लिखे लोगों के मुहं से भी यही सुनकर मिलता है! फिर पढ़े-लिखे और अनपढ़ों में कोई अंतर नहीं! ...
ReplyDeleteआपका यह सशक्त जागरूकता भरा आलेख निश्चित ही समाजोपयोगी और स्वस्थ समाज की दिशा में सार्थक पहल का आगाज है ..जिससे देर सबेर बुद्धिजीवी वर्ग ही नहीं अपितु आम जनता भी जागेगी... .
कविता राउत का बहुत ही अर्थासभर आलेख है ये | सिगारेट के धुंए की तरह कायदे का सरेआम चींथडे उड़ाते लोग हमें हर जगह देखने मिलते है | कायदे सिर्फ कागज़ पर सदाकर टूट जातें हैं या लागू होते हैं तो सरकारी साहबों और पुलिसवालों की जेब भरने के लिएँ | आलेख के लिएँ बधाई |
ReplyDeleteबिल्कुल सही लिखा है कविता जी आपने. मैं तो अक्सर सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान करने वालों को टोक देती हूँ. वो माने या ना मानें पर मैं टोकना अपना कर्तव्य भी समझती हूँ और अधिकार भी. इस तरह की बुराइयाँ जागरूकता से ही दूर होती हैं, ना कि सिर्फ क़ानून बना देने से.
ReplyDeleteये सही है ये सिर्फ़ क़ानून का मामला ही नही है ... बल्कि जागरूकता की ज़रूरत है .... स्वस्थ की दृष्टि से भी ये हानिकारक है ... और जो धूम्रपान नही करते उनके लिए तो बिना बात की सज़ा है जो पीने वालों के शोंक के कारण झेलनी पढ़ती है ...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख है ....
बहुत सही लिखा आपने..इस सम्बन्ध में सार्थक पहल की जरुरत है.
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