पिछली पोस्ट में मैंने छेड़छाड़ के कारणों को ढूढ़ने का प्रयास किया था. इस बार मैं कुछ समाधान सुझाने की कोशिश कर रही हूँ. इसके पहले मैं स्पष्ट कर दूँ कि छेड़छाड़ से मेरा मतलब उस घटिया हरकत से है, जिसे यौन-शोषण की श्रेणी में रखा जाता है. यह वो हल्की-फुल्की छींटाकशी नहीं है, जो विपरीतलिंगियों में स्वाभाविक है, क्योंकि वह कोई समस्या नहीं है. कोई भी इस प्रकार की हरकत समस्या तब बनती है, जब वह समाज के किसी एक वर्ग को कष्ट या हानि पहुँचाने लगती है.
समस्या यह है कि हम यौनशोषण को तो बलात्कार से तात्पर्यित करने लगते हैं और छेड़छाड़ को हल्की-फुल्की छींटाकशी समझ लेते हैं, जबकि छेड़छाड़ की समस्या भी यौन-शोषण की श्रेणी में आती है. मैं अपनी बात थोड़ी शिष्टता से कहने के लिये छेड़छाड़ शब्द का प्रयोग कर रही हूँ. किसी को अश्लील फब्तियाँ कसना, अश्लील इशारे करना, छूने की कोशिश करना आदि इसके अन्तर्गत आते हैं. लिस्ट तो बहुत लम्बी है. पर यहाँ चर्चा का विषय दूसरा है. मेरा कहना है कि ये हरकतें भी गम्भीर होती हैं. यदि इन्हें रोका नहीं जाता, तो यही बलात्कार में भी परिणत हो सकती हैं.
पिछली पोस्ट में छेड़छाड़ की समस्या के कारणों को खोजने के पीछे मेरा उद्देश्य था, इसे जैविक निर्धारणवाद के सिद्धान्त से अलग करना, क्योंकि जैविक निर्धारणवाद किसी भी समस्या के समाधान की संभावनाओं को सीमित कर देता है. मेरा कहना था कि यह समस्या जैविक और मनोवैज्ञानिक से कहीं अधिक सामाजिक है. समाजीकरण की प्रक्रिया में हम जाने-अनजाने ही लड़कों में ऐसी बातों को बढ़ावा दे देते हैं कि वे छेड़छाड़ को स्वाभाविक समझने लगते हैं. इसी प्रकार हम लड़कियों को इतना दब्बू बना देते हैं कि वे इन हरकतों का विरोध करने के बजाय डरती हैं और शर्मिन्दा होती हैं. चूँकि इस समस्या के मूल में समाजीकरण की प्रक्रिया है, अतः इसका समाधान भी उसी में ढूँढ़ा जा सकता है. वैसे तो सरकारी स्तर पर अनेक कानून और सामाजिक और नैतिक दबाव इसके समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, पर इसे रोकने का सबसे अच्छा और प्राथमिक उपाय अपने बच्चों के पालन-पोषण में सावधानी बरतना है. भले ही यह एक दीर्घकालीन समाधान है, पर कालान्तर में इससे एक अच्छी पीढ़ी तैयार हो सकती है.
मैं यहाँ लड़कियों के प्रति रखी जाने वाली सावधानियों की चर्चा कर रही हूँ, जिससे उन्हें ऐसी हरकतों से बचाया जा सके-
-लड़कियों में आत्मविश्वास जगायें. घर का माहौल इतना खुला हो कि वे अपने साथ हुई किसी भी ऐसी घटना के बारे में बेहिचक बता सकें.
-लड़की के साथ ऐसी कोई घटना होने पर उसे कभी दोष न दें, नहीं तो वह अगली बार आपको बताने में हिचकेगी और जाने-अनजाने बड़ी दुर्घटना का शिकार हो सकती है.
-लड़कियों को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग ज़रूर दिलवाएँ. इससे उनमें आत्मविश्वास जगेगा और वो किसी दुर्घटना के समय घबराने के स्थान पर साहस से काम लेंगी.
-लड़कियों को कुछ बातें समझाये. जैसे कि-
-वे रात में आने-जाने के लिये सुनसान रास्ते के बजाय भीड़भाड़ वाला रास्ता चुनें.
-भरसक किसी दोस्त के साथ ही जायें, अकेले नहीं.
-किसी दोस्त पर आँख मूंदकर भरोसा न करें.
-अपने मोबाइल फोन में फ़ास्ट डायलिंग सुविधा का उपयोग करें और सबसे पहले घर का नम्बर रखें.
ऐसी एक दो नहीं अनेक बातें हैं. पर सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात बेटियों को आत्मविश्वासी बनाना है और अति आत्मविश्वास से बचाना है. उपर्युक्त बातें एक साथ न बताने लग जायें, नहीं तो वो या तो चिढ़ जायेगी या डर जायेगी. आप अपनी ओर से भी कुछ सुझाव दे सकते हैं. अगली कड़ी में मैं लड़कों के पालन-पोषण में ध्यान रखने वाली बातों की चर्चा करूँगी.
bahut sahi likha hai aapne....aaj k jamane me ek gal ko is bare me sari knowledge honi chahiye...yaha gals ko yahi kahugi ki kisi b incident se darna nahi chahiye balki is tarah face karna chahiye ki agli bar koi aapko dekhne ya kuch kahne se pahle b 100 bar soche....coz dar kar ghar me beth jana ya ghar se n nikalna kabi problem ka solution nahi hota....even in sab cheezo se boys ego satisfy hota hai....ek or baat...boys ko ignore karna unse picha chudane ka right way hai or b ka tarike hai....anyway good post
ReplyDeletegreat work mukti
ReplyDeleteआपके द्वारा सुझाई गई सभी बातें बिलकुल सही हैं
ReplyDeleteतीनो ही लेख पढने और चिंतन करने योग्य हैं
ReplyDeleteधन्यवाद