आज पेपर में एक खबर छपी है कि पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रांत के बुनेर जिले के रहने वाले अरशद मलंग के शरीर पर कुछ स्वास्थ्य समस्याओं के चलते बाल नहीं थे, इससे उसे अपने पौरुष में कमी महसूस होती थी। उसने अल्लाह से दुआ मांगी कि अगर उसके शरीर पर बाल उग आये तो वह अपनी एक संतान को दान कर देगा। अल्लाह की दुआ और डाक्टरी इलाज से उसके शरीर पर बाल आ गए और अपने को पूर्ण पुरुष महसूस करते हुए मन्नत के अनुसार अरशद मियां अपनी सबसे छोटी छह माह की बेटी को दान कर दिया। यह नन्ही सी बच्ची अब जीवन भर अपने बाप के पौरुष प्राप्ति के सुख का दारुण दुख भोगेगी। शायद उसे यह कभी पता भी न चले कि उसे किन कारणों से दूसरे परिवार को सौंप दिया गया था। यहां एक प्रश्न उठता है कि बेटी ही क्यों उन्होंने अपने किसी बेटे का दान क्यों नहीं किया?
हमारे यहां दक्षिण भारत में भी बेटियों को मंदिर को दान देने की प्रथा है। जहां वह आजीवन देवदासी बन मंदिर के पुजारी और शहर को गणमान्य पुरुष समाज के भोग का साधन बनती है। भारत हो या पाकिस्तान या विश्व का कोई अन्य देश लड़कियों पर होने वाले इस प्रकार के अत्याचारों का हम पुरजोर विरोध करते हैं। लड़कियां कोई निर्जीव वस्तु नहीं हैं जिन्हें दान कर दिया जाए। वे भी जीती जागती इंसान हैं जिन्हें पढ़ने-लिखने और अपनी इच्छानुसार जीवन जीने का हक है। कोई भी समाज तब तक सभ्य समाज कहलाने का हकदार नहीं है जब तक वहां धर्म या अपने स्वार्थ के लिए बाल शोषण खासकर बच्चियों का यौन शोषण होता हो।
-प्रतिभा वाजपेयी
बिलकुल सही कहा,आखिर बच्चियों में भी जान है,और उन में भी भावनायें जाग्रत होतीं हैं,उनका शोषण अनुचित है ।
ReplyDeleteबिलकुल सही - कोई भी समाज तब तक सभ्य समाज कहलाने का हकदार नहीं है जब तक वहां बाल शोषण (चाहे वह बच्चा हो या बच्ची) होता हो।
ReplyDelete..अफ़सोस........
ReplyDeleteदुखद।
ReplyDeleteलड़कियाँ तो हमेशा से ही सामान समझी जाती रही हैं. तभी तो उनका दान किया जाता है, उनकी रखवाली के लिये कोई न कोई पुरुष उनके साथ रहता है और उनको खरीदा-बेचा जाता है. यहाँ मुद्दा सही उठाया है आपने, पर यह सब रोकेगा कौन? कानून, सरकार, समाज या हम और आप?
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील मुद्दा उठाया है आपने.
ye sach sachmuch swapno se pare ka sach hai..........
ReplyDeleteआपने बहुत सही मुद्दा उठाया है....शायद बहुत समय बाद नारी पर इस तरह के मुद्दे का आना हुआ. (नारी के सदस्य हमारे इस विचार को अन्यथा नहीं लेंगे)
ReplyDeleteआपको यदि अन्यथा अथवा अनुचित न लगे तो हम अपने यहाँ कई बार इस बात का विरोध कर चुके हैं कि धार्मिक अथवा किसी तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में छोटी-छोटी बच्चियों को ही सजा-संवार कर क्यों बिठाते हैं?
शादी समारोहों में लड़कियों को ही क्यों सामान परोसने के लिए लाया जाता है?
द्वार पर स्वागत के लिए लड़कियों को ही क्यों खडा किया जाता है?
रिशेप्श्निस्ट के रूप में काउंटर पर लड़की ही क्यों होती है?
किसी अधिकारी की सेक्रेटरी लड़की ही क्यों होती है?
बहुत से सवाल हैं जिनके लिए पूछा जा सकता है कि लड़की ही क्यों?
बहुत अच्छा लिखा है आप ने
ReplyDeleteबहुत -२ आभार
HAME ISKI PURJOR BHARTSANA KARNI CHAHIYE.....
ReplyDeleteVISHAY KO PRAKAASH ME LAANE KE LIYE AAPKA BAHUT BAHUT AABHAR !!!
is himmat ke liye badhai ,
ReplyDeleteBahut sahi mudda uthaya aapne. Is baare mein Dr. Kumarendra Singh sengar ji ki teep bahut hi sateek hai, jisse mein purntah sahmat hun.....
ReplyDeleteअरे, इसमें सोचने की क्या बात है, एक तो अहद पूरा हुआ, दूसरा दहेज़ भी बचा।
ReplyDeleteयही सच है।
बहुत अच्छा लिखा है आप ने
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